NCERT Solutions | Class 4 Hindi Rimjhim Chapter 11 | पढ़क्कू की सूझ

CBSE Solutions | Hindi Class 4
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NCERT | Class 4 Hindi Rimjhim
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
---|---|
Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 4 |
Subject: | Hindi |
Chapter: | 11 |
Chapters Name: | पढ़क्कू की सूझ |
Medium: | English |
पढ़क्कू की सूझ | Class 4 Hindi | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions For Class 4 Hindi Chapter 11 Padhakkoo Kee Soojh
NCERT Solutions for Class 4 Hindi Chapter 11 प्रश्न-अभ्यास
NCERT Solutions for Class 4 Hindi Chapter 11 पाठ्यपुस्तक से
कविता में कहानीप्रश्न 1. ‘पढ़क्कू की सूझ’ कविता में एक कहानी कही गई है। इस कहानी को तुम अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :-
इसका उत्तर: कविता को सारांश’ में है। उसे पढ़ो और लिखो।
कवि की कविताएँ
तीसरी कक्षा में तुमने रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘मिर्च का मज़ा’ पढ़ी थी। अब तुमने उन्हीं की कविता ‘पढ़क्कू की सूझ’ पढ़ी।।
(क) दोनों में से कौन-सी कविता पढ़कर तुम्हें ज्यादा मज़ा आया?
(चाहो तो तीसरी की किताब फिर से देख सकते हो।)
उत्तर :-
दोनों में से मुझे ‘पढ़क्कू की सूझ’ कविता ज्यादा मजेदार लगी। इसमें पढ़क्कू तर्कशास्त्री है। पढ़ा-लिखा है। फिर भी बैल के मालिक से मूर्खतापूर्ण सवाल करता है। इससे कविता काफी रोचक बन जाती है।
(ख) तुम्हें काबुली वाला ज्यादा अच्छा लगा या पढ़क्कू? या कोई भी अच्छा नहीं लगा?
उत्तर :-
मुझे दोनों ही बड़े अच्छे और मजेदार लगे।।
(ग) अपने साथियों के साथ मिलकर एक-एक कविता हूँढ़ो। कविताएँ इकट्ठा करके कविता की एक किताब बनाओ।
उत्तर :-
विद्यार्थी स्वयं करें।
मेहनत के मुहावरे
कोल्हू का बैल ऐसे व्यक्ति को कहते हैं, जो कड़ी मेहनत करता है या जिससे कड़ी मेहनत करवाई जाती है। मेहनत और कोशिश से जुड़े कुछ और मुहावरे नीचे लिखे हैं। इनका वाक्यों में इस्तेमाल करो।
- दिन-रात एक करना
- पसीना बहाना
- एड़ी-चोटी का जोर लगाना
- दिन-रात एक करना-वार्षिक परीक्षा में अव्वल अंक पाने के लिए सोनिया ने दिन-रात एक कर दी।
- पसीना बहाना-हमारे किसान खेतों में पसीना बहाकर फसल उगाते हैं।
- एड़ी-चोटी का जोर लगाना-सफलता उन्हें ही मिलती है जो एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं।
पढ़क्कू
(क) पढ़क्कू का नाम पढ़क्कू क्यों पड़ा होगा?
उत्तर :-
वह दिन-रात पढ़ता रहता होगा।
(ख) तुम कौन-सा काम खूब मन से करना चाहते हो? उसके आधार पर अपने लिए भी पढ़क्कू जैसा कोई शब्द सोचो।
उत्तर :-
मैं गप्पें खूब मारना चाहता हूँ। इस आधार पर मैं ‘गप्पू’ के नाम से पुकारा जा सकता हूँ।
अपना तरीका
हाँ जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ।
पूँछ धरता हूँ का मतलब है पूँछ पकड़ लेता हूँ।
नीचे लिखे वाक्यों को अपने शब्दों में लिखो।
(क) मगर बूंद भर तेल साँझ तक भी क्या तुम पाओगे?
(ख) बैल हमारा नहीं अभी तक मंतिख पढ़ पाया है।
(ग) सिखा बैल को रखा इसने निश्चय कोई ढब है।
(घ) जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे।
उत्तर :-
(क) मगर शाम तक तुम एक बूंद तेल भी नहीं पा सकोगे।
(ख) हमारा बैल अभीतक तर्कशास्त्र नहीं पढ़ा है।
(ग) इसने बैल को निश्चय ही कोई तरकीब सूझा रखी है।
(घ) जहाँ कोई भी बात नहीं, वहाँ भी नई बात बना लेते थे।
गढ़ना
पढ़क्कू नई-नई बातें गढ़ते थे।
बताओ, ये लोग क्या गढ़ते हैं।
सुनार | जेवर |
लुहार | लोहे की चीज |
ठठेरा | बर्तन |
कवि | कविता |
कुम्हार | मिट्टी के बर्तन |
लेखक | कहानी, लेख |
अर्थ खोजो
नीचे दिए गए शब्दों के अर्थ अक्षरजाल में खोजो-
उत्तर :-
पढ़क्कू की सूझ कविता का सारांश
एक पढ़क्कू व्यक्ति था। वह तर्कशास्त्र पढ़ता था। तेज बहुत था। जहाँ कोई भी बात न होती, वहाँ भी नई बात गढ़ लेता था। एक दिन की बात है। वह चिंता में पड़ गया कि कोल्हू में बैल बिना चलाए कैसे घूमता है। यह बहुत गंभीर विषय बन गया उनके लिए। सोचने लगे कि मालिक ने अवश्य ही उसे कोई तरकीब सिखा दी होगी। आखिरकार उसने मालिक से पूछ ही लिया कि बिना देखे तुम कैसे समझ लेते हो कि कोल्हू का तुम्हारा बैल घूम रहा है या खड़ा हुआ है। मालिक ने जवाब दिया-क्या तुम बैल के गले में बँधी घंटी नहीं देख रहे हो? जबतक यह घंटी बजती रहती है तबतक मुझे कोई चिंता नहीं रहती। लेकिन जैसे ही घंटी से आवाज आनी बंद हो जाती मैं दौड़कर उसकी पूँछ पकड़कर ऐंठ देता हूँ। इसपर पढ़क्कू ने कहा-तुम तो बिल्कुल बेवकूफ जैसी बातें कर रहे हो। ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा बैल खड़ा-खड़ा ही गर्दन हिलाता रह जाए। तुम समझोगे कि बैल चल रहा है लेकिन शाम तक एक बूंद तेल भी नहीं निकल पाएगा। मालिक हँसकर पढ़क्कू से बोला-जहाँ से तुमने यह ज्ञान सीखा है वहीं जाकर उसे फैलाओ। यहां पर सब कुछ सही है क्योंकि मेरा बैल अभी तक तर्कशास्त्र नहीं पढ़ पाया है।
काव्यांशों की व्याख्या
1. एक पढ़क्कू बड़े तेज़ थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे,जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे।
एक रोज़ वे पड़े फ़िक्र में समझ नहीं कुछ पाए,
बैल घूमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए?”
कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है?
सिखा बैल को रक्खा इसने, निश्चय कोई ढब है।
शब्दार्थ : पढ़क्कू-पढ़ने-लिखने वाला। तर्कशास्त्र-एक तरह का विषय जिसमें तर्क विद्या सिखायी जाती है। गढ़ते थे-बनाते थे। फ़िक्र-चिंता। गज़ब-विचित्र। ढब-तरकीब, तरीका।।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रिमझिम भाग-4′ में संकलित कविता ‘पढ़क्कू की सूझ से ली गई हैं। इसके कवि हैं-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ इसमें कवि ने एक पढ़क्कू व्यक्ति के विषय में वर्णन किया है।
व्याख्या-पढ़क्कू व्यक्ति तर्कशास्त्र पढ़ते थे। तेज थे। जहाँ कोई भी बात नहीं होती थी, वहाँ भी नई बात गढ़ लेते थे। एक दिन की बात है। बेचारे पढ़क्कू चिंता में पड़ गए। लगे सोचने कि आखिर कोल्हू में बैल बिना किसी के चलाए घूमता कैसे है। कई दिनों तक वे इसी विषय पर सोचते रहे। उन्हें लगा कि मालिक ने जरूर अपने बैल को कोई तरकीब सिखा दिया होगा।
2. आख़िर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे,
अजी, बिना देखे, लेते तुम जान भेद यह कैसे?”
कोल्हू का यह बैल तुम्हारा चलता या अड़ता है?
रहता है घूमता, खड़ा हो या पागुर करता है?”
मालिक ने यह कहा, “अजी, इसमें क्या बात बड़ी है?
नहीं देखते क्या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है?
शब्दार्थ : भेद-रहस्य, गुप्त बात। अड़ता है-रुकता है। पागुर-जुगाली ।
प्रसंग-पूर्ववत् ।।
व्याख्या-पढ़क्कू से नहीं रहा गया एकदिन बैल के मालिक के पास पहुँच ही गए। पूछने लगे-आखिर तुम कैसे जान जाते हो कि कोल्हू में लगा तुम्हारा बैल चल रहा है या रुका है? घूम रहा है या खड़ा है या फिर जुगाली कर रहा है। मालिक ने जवाब दिया-अरे भाई, इसमें कोई बड़ी बात तो है नहीं। क्या तुम देखते नहीं हो कि बैल के गर्दन में घंटी बँधी है? बस इसी से मैं समझ जाता हूँ कि बैल चल रहा है या रुका है।
3. जब तक यह बजती रहती है, मैं न फ़िक्र करता हूँ,
हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ।
कहा पढ़क्कू ने सुनकर, तुम रहे सदा के कोरे!
बेवकूफ! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े!
अगर किसी दिन बैल तुम्हारा सोच-समझ अड़ जाए,
चले नहीं, बस, खड़ा-खड़ा गर्दन को खूब हिलाए।
शब्दार्थ : फ्रिक्र-चिंता। तनिक-थोड़ा। धरता हूँ-पकड़ता हूँ। कोरे-मूर्ख, बेवकूफ। मंतिख-तर्कशास्त्र। अड़ जाए-रुक जाए।
प्रसंग-पूर्ववत् ।
व्याख्या-पढ़क्कू को यह बात समझ में नहीं आ रही कि कोल्हू में लगा बैल बिना किसी के चलाए घूमता कैसे है। वह बैल के मालिक से पूछ बैठता है इस विषय में बैल का मालिक उसे बताता है कि बैल के गले में घंटी बँधी है। यह जबतक बजती रहती है तबतक उसे कोई चिंता नहीं होती। लेकिन जब घंटी से आवाज आनी बंद हो जाती है इसका मतलब है कि बैल रुक गया है। फिर वह उसकी पूँछ ऐंठ देता है और बैल चल पड़ता है। पढ़क्कू इसपर मालिक से कहता है-तुम तो बिल्कुल बेवकूफ जैसी बातें कर रहे हो। तुम भला तर्क शास्त्र की बातें कैसे समझ पाओगे कभी किसी दिन ऐसा भी हो सकता है कि बैल एक ही जगह पर खड़ा-खेड़ा गर्दन हिलाता रह जाए।
4. घंटी टुन-टुन खूब बजेगी, तुम न पास आओगे,
मगर बूंद भर तेल साँझ तक भी क्या तुम पाओगे?
मालिक थोड़ा हँसा और बोला कि पढ़क्कू जाओ,
सीखा है यह ज्ञान जहाँ पर, वहीं इसे फैलाओ।
यहाँ सभी कुछ ठीक-ठाक है, यह केवल माया है,
बैल हमारा नहीं, अभी तक मंतिख पढ़ पाया है।
शब्दार्थ : साँझ-शाम, संध्या। मंतिख-तर्कशास्त्र।
प्रसंग-पूर्ववत् ।
व्याख्या-मालिक ने पढ़क्कू से कहा-बैल के गले में बँधी घंटी जबतक बजती रहेगी तबतक मुझे चिंता की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि इसका मतलब है कि बैल चल रहा है। इस पर पढ़क्कू ने कहा-कभी किसी दिन ऐसा भी तो हो। सकता है कि तुम्हारा बैल खड़ा-खड़ा ही गर्दन हिलाता रह जाए। तुम समझोगे कि बैल चल रहा है लेकिन शाम तक एक बूंद तेल भी नहीं निकल पाएगा। मालिक हँसकर पढ़क्कू से बोला-जहाँ से तुमने यह ज्ञान सीखा है वहीं जाकर उसे फैलाओ। यहाँ पर सब कुछ ठीक-ठाक है। तुम्हारी बात भ्रम फैलाने वाली है। अभी तक मेरा बैल तुम्हारा तर्कशास्त्र नहीं पढ़ पाया है। वह बिल्कुल सीधा-सादा है।
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