NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

Sanchayan Hindi Class 9 Solution Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

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Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी Textbook Questions and Answers

बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1. ‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?
2. पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए।
3. कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया?
4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई’-लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?
5. त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण कैसे बना?
6. टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था?
7. कैलाशशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी?
8. त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय में बताईए।
उत्तर
1. उनाकोटी का अर्थ है-एक करोड़ से एक कम। उनाकोटी में शिव की कोटि से एक कम मूर्तियाँ हैं। भारत के | यह सबसे बड़े शैव तीर्थों में से एक है। यहाँ आदिवासी धर्म फलते-फूलते हैं। यह स्थान जंगल में काफी भीतर है। यह पूरा इलाका देवी-देवताओं से भरा पड़ा है। इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था। वह शिव-पार्वती के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले जाने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उसके लिए यह शर्त रखी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटी मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू धुन के पक्के व्यक्ति की तरह अपने काम में जुट गया। लेकिन जब गिनती हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात का बहाना बनाते हुए कल्लू को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने।।

2. प्राचीन काल में एक महान राजा हुए हैं-भगीरथ। उन्होंने अपनी तपस्या से गंगा को धरती पर आने के लिए राजी किया। गंगा के वेग से धरती पाताल लोक में न चली जाए, इसके लिए भगवान शिव से प्रार्थना की गई। भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया और धीरे-धीरे धरती पर छोड़ दिया। इसी घटना को चित्रों के द्वारा उनाकोटी में दर्शाया। गया है।

3. उनाकोटी का पूरा इलाका ही शब्दशः देवियों-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। इन आधार-मूर्तियों के निर्माता अभी चिहनित नहीं किए जा सके हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था। वह शिव-पार्वती के निवास कैलाश जाना चाहता था। लेकिन इसके लिए शर्त यह रखी थी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। जब भोर हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने। इस प्रकार उनाकोटी की मूर्तियों के निर्माता के रूप में कल्लू कुम्हार को प्रसिद्धि मिली और उनका नाम उनाकोटी से जुड़ गया।

4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई’-लेखक के इस कथन के पीछे वह घटना है, जब लेखक सी.आर.पी. एफ. के जवानों के साथ त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त क्षेत्र से गुजर रहा था। मार्ग में एक जवान ने एक जगह की तरफ इशारा करके बताया कि दो दिन पहले वहाँ विद्रोहियों ने एक जवान को मार डाला था। इस बात को सुनकर लेखक घबरा गया।

5. त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है। अगरतला के बाहरी हिस्से पचौरथल पर उन्हें बताया गया कि त्रिपुरा के उन्नीस कबीलों में से दो यानी चकमा और मधु महायानी बौद्ध हैं। ये कबीले त्रिपुरा में बर्मा या म्याँमार के चटगाँव के रास्ते आए थे। दरअसल इस मंदिर की मुख्य बुद्ध प्रतिमा भी 1930 के दशक में रंगून से लाई गई थी। त्रिपुरा में लगातार बाहरी लोगों के आने से कुछ समस्याएँ तो पैदा हुईं लेकिन इसके चलते यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बना है।

6.

टीलियामुरा कस्बे में लेखक की मुलाकात प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया और रेडियो कलाकार व गायिका मंजू ऋषिदास से हुई। हेमंत कुमार गायक होने के साथ-साथ जिला परिषद् के सदस्य भी थे। वे सामाजिक कार्यों में हाथ बँटाते थे। मंजू ऋषिदास नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व करती थी और स्वच्छ पेयजल तथा गलियाँ पक्की करवाने के लिए प्रयासरत थी।

7. कैलासशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को यह जानकारी दी कि आलू की बुआई के लिए आमतौर पर पारंपरिक आलू के बीजों की जरूरत दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर पड़ती है। इसके टी०पी०एस० की सिर्फ 100 ग्राम मात्रा दो हेक्टेयर की बुआई के लिए कड़ी होती है। त्रिपुरा की टी०पी०एस० का निर्यात अब न सिर्फ असम, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को बल्कि बांग्लादेश, मलेशिया और वियतनाम को भी किया जा रहा है।

8. त्रिपुरा में बाँस के द्वारा पतली-पतली सीके तैयार की जाती हैं। इन सींकों को अगरबत्ती बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। त्रिपुरा के कुछ अन्य घरेलू उद्योग हैं-अचार बनाना, पापड़ बनाना, लिफाफे तैयार करना, चटनी बनाना, पतंग बनाना, वस्त्र तैयार करना, मसाले तैयार करना, पुस्तकों पर जिल्द चढ़ाना आदि।

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