NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

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Sparsh Hindi Class 9 Solutions Chapter 2 दुःख का अधिकार

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Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
2. खरबूजे बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?
उत्तर

  1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसका दर्जा और अधिकार का पता चलता है तथा उसकी | अमीरी-गरीबी की श्रेणी का भी पता चलता है।
  2. खरबूजे बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए नहीं खरीद रहा था क्योंकि वह घुटनों में सिर गड़ाए फफक-फफककर | रो रही थी। इसके बेटे की मृत्यु के कारण लगे सूतक के कारण लोग इससे खरबूजे नहीं ले रहे थे।
  3. उस स्त्री को देखकर लेखक को उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई थी। उसे देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा। वह नीचे झुककर उसकी अनुभूति को समझना चाहता था तब उसकी पोशाक इसमें अड़चन बन गई।
  4. उस स्त्री का लड़का तेईस बरस का था। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर खेती करके परिवार का गुजारा करता था। एक दिन वह सुबह मुँह-अंधेरे खेत में बेलों से पके खरबूजे चुन रहा था कि गीली मेड़ की तरावट में आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस लिया। ओझा के झाड़-फेंक आदि का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
  5. उस बुढ़िया का बेटा मर चुका था। लोगों को पता था कि बुढ़िया को दिए उधार के लौटाने की कोई संभावना नहीं
    है। इसलिए अब बुढ़िया को कोई भी उधार देने को तैयार नहीं था।

लिखित

प्रश्न (क)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?
2. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड्चन बन जाती है?
3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढिया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
6. बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर

1. मनुष्य की पहचान उसकी पोशाक से होती है। यह पोशाक ही मनुष्य को समाज में अधिकार दिलाती है। उसका दर्जा निश्चित करता है। जीवन के बंद दरवाजे खोल देता है। यदि हम समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में हमारी पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है। जिस प्रकार वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने में रोके रखती है।

2. जब भी ऐसी परिस्थिति आती है कि किसी दु:खी व्यक्ति को देखकर व्यथा और दुःख का भाव उत्पन्न होता है। हमें उसके दु:ख का कारण जानने के लिए उसके समीप बैठने में हमारी पोशाक बंधन और अड़चन बन जाती है। उत्तम पोशाक हमें नीचे झुकने नहीं देती। यह हमें अमीरी का बोध कराती है। मानव-मानव के बीच दूरियाँ बढ़ाने का काम पोशाक करती है। ये पोशाक ही नियमों का उल्लंघन करती है। यदि हम निचली श्रेणियों के दुःख को कम करके उन्हें दिलासा देना चाहते हैं तो ये पोशाक उसके लिए अड़चन बन जाती है।

3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि उसकी पोशाक रुकावट बन गई। जब उसने उस खरबूजे बेचनेवाली स्त्री को घुटनों पर सिर रखकर रोते देखा और बाजार में खड़े लोगों का उस स्त्री के संबंध में बातें करते देखा तो लेखक का मन दुःखी हो उठा। कारण जानना चाहते हुए भी वह ऐसा नहीं कर पाया। यद्यपि व्यक्ति का मन दूसरों के दुःख में दुःखी होता है, परंतु पोशाक परिस्थितिवश उसे झुकने नहीं देती।

4. भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर खेती करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूजों की डलिया बाज़ार में बेचने के लिए कभी-कभी वह चला जाया करता था। वह घर का एकमात्र सहारा था। उसके घर में खानेवाले अधिक और कमानेवाला एक ही था। उनके घर की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई थी। घर के बेटे पर सभी की आशाएँ टिकी होती हैं। भगवाना ही था जिस पर घर के सभी सदस्यों की आशाएँ टिकी हुई थीं। परिवार का निर्वाह
करने के लिए वह छोटे-बड़े काम करके घर के सदस्यों का ध्यान रखता था।

5. लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन, बुढिया खरबूजे बेचने इसलिए चली गई क्योंकि उसके पास जो कुछ था भगवाना की मृत्यु के बाद दान-दक्षिणा में खत्म हो चुका था। बच्चे भूख के मारे बिलबिला रहे थे। बहू बीमार थी। मजबूरी के कारण बुढ़िया को खरबूजे बेचने के लिए लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन जाना पड़ा था। भूख अच्छे-अच्छे लोगों को भी हिलाकर रख देती है। मृत्यु का दु:ख हो, या खुशी का आभास हो लेकिन पेट की आग घर से बाहर निकलने के लिए विवश कर देती है।

6. अमीर और गरीब में जन्मजात अंतर होता है। अमीर को दुःख मनाने का अधिकार है गरीब को नहीं। बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि वह महिला अपने जवान बेटे की मृत्यु के कारण अढ़ाई-मास तक पलंग से उठ न सकी। पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद मूर्छित हो जाती थी। शहर भर के लोगों के हृदय उसके पुत्र शोक को देखकर द्रवित हो उठे थे। दूसरी ओर लोग बुढ़िया पर ताने कस रहे थे। वे उसकी मजबूरी से कोसों दूर थे। उसके दु:ख को वे समझ नहीं पा रहे थे। क्योंकि वह उस संभ्रांत महिला की भाँति बीमार न पड़कर अपना दुःख भुलाकर बाज़ार में खरबूजे बेचकर अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करने आई थी जो कि लोगों के मन में खटक रहा था। दु:ख का अधिकार अमीर-गरीब में भेदभाव उत्पन्न करता है। थोड़ा-सा दु:ख जहाँ अमीरी को हिला देता है वहाँ बड़े-से-बड़ा दुःख भी गरीब को सहज बने रहने पर मजबूर कर देता है। बुढ़िया के दुःख और संभ्रांत महिला के दु:ख में यही अंतर था।

प्रश्न (ख)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

1. बाज़ार के लोग खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
2. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
3. लड़के को बचाने के लिए बुढिया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
4. लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाजा कैसे लगाया?
5. इस पाठ का शीर्षक ‘दु:ख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

1. बाज़ार के लोग खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक आदमी घृणा से थूकते हुए कह रहा था कि बेटे की मृत्यु को अभी पूरे दिन नहीं हुए और यह दुकान लगाकर बैठी है। पेट की रोटी ही इनके लिए सब कुछ है। जैसी नीयत होती है; वैसी ही बरकत भगवान देता है। जवान लड़के की मौत हुई है, बेहया दुकान लगाकर बैठी है। सभी अपने व्यंग्य वाणों से उस स्त्री पर ताने कसे जा रहे थे। वह बेबसी से सिर झुकाए बैठी थी।

2. पास-पड़ोसवालों से लेखक को पता चला कि बुढ़िया का 23 बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के बाहर डेढ़ बीघा जमीन में खेती कर अपने परिवार को निर्वाह करता था। कभी-कभी वह खरबूजे भी बेचता था। मुँह अंधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुनते हुए गीली मेड़े की तरावट पर आराम कर रहे साँप पर उसका पैर पड़ गया। साँप के डसने से उसकी मृत्यु हो गई।

3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने ओझा को बुलाकर झाड़-फेंक करवाया। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा दी गई। घर में जो कुछ आटा या अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे, भगवाना से लिपट-लिपटकर रोए, पर सर्प के विष से उसका सारा बदन काला पड़ गया था और लडका मर गया।

4. लेखक को जब आस-पड़ोसवालों ने वास्तविकता बताई तो वे बुढ़िया की विवशता को समझ गए। घर में जब कमानेवाला कोई न रहे तो मौत की परवाह न करके घर से बाहर निकलना ही पड़ता है। परंतु दूसरे लोग किसी भी परिस्थिति में चैन नहीं लेने देते। वैसे भी उन्हें गरीबों के दुःख का अंदाजा नहीं होता। लेखक इसी सोच में डूबे हुए बुढिया के दुःख का अंदाजा लगा रहे थे कि अमीर लोग अपने दुःख को बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करते हैं। वह बेहोश होने का नाटक करते हैं। और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़े रहते हैं। परंतु लेखक जानता था कि बुढ़िया अपने मन में दु:खे को दबाए हुए है। अपनी बेबसी के अनुसार अपना दुःख दर्शा रही है।

5. ‘दुःख का अधिकार’ शीर्षक अत्यंत सटीक है। संपूर्ण कथावस्तु दो वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है पहला शोषित वर्ग
है जिसके शोषण का समाज को ‘अहसास नहीं है और दूसरा शोषक वर्ग, जिसका दुःख लोगों के हृदय तक पहुँचता है और आँखों से आँसू बहने लगते हैं। गरीब के दु:ख से लोग सर्वथा वंचित रहते हैं। उसके जीवन की कठिनाइयों को समझना नहीं चाहते। शोक या गर्म के लिए उसे सहूलियत नहीं देना चाहते। दु:खी होने को भी एक अधिकार मानते हैं। दु:ख मनाने का अधिकार भी केवल संपन्न वर्ग को है। दु:ख तो सभी को होता है, पर संपन्न वर्ग इस दु:ख का दिखावा करता है, गरीब को कमाने-खाने की चिंता दम नहीं लेने देती। अतः दु:ख को अधिकार शीर्षक पूर्णतया उपयुक्त है।

प्रश्न (ग)
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

1. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सबे रोटी का टुकड़ा है।
3. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और… दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर
1. आशय-प्रस्तुत कहानी देश में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेदभाव का पर्दाफाश करती है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि दु:ख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है। कहानी धनी लोगों की अमानवीयता और गरीबों की विवशता को उजागर करती है। लेखक पोशाक के विषय में वर्णन करते हुए कहता है कि जिस प्रकार पतंग को डोर के अनुसार नियंत्रित किया जाता है तथा जब डोर पतंग से अलग हो जाती है, तब,पतंग हवा के साथ बहती हुई उड़ती है। और हवा के कारण अचानक ही धरती पर नहीं आ गिरती। किसी न किसी वस्तु में अटककर रह जाती है। वैसी ही स्थिति हमारी पोशाक के कारण उत्पन्न होती है। खास पोशाक के कारण व्यक्ति आसमानी बातें करने लगता है। उसकी पोशाक उसे अपनी अमीरी का आभास कराती है। वह गरीबों को अपने बराबर स्थान नहीं देना चाहता। उसकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो जाती है। वह चाहते हुए भी किसी के दुःख-दर्द में शामिल नहीं हो सकता। इसी तरह लेखक भी नीचे झुककर उस गरीब स्त्री का दुःख बाँटना चाहता था, किंतु उसकी पोशाक उसमें बाधा उत्पन्न करती है।

2. आशय-आशय यह है कि समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमों, कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है तभी वह सामाजिक प्राणी कहलाता है क्योंकि समाज में अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व जीवन मूल्यों को दिया जाता है। इस कहानी में बुढिया को घर की मज़बूरी फुटपाथ पर खरबूजे बेचने के लिए विवशकर देती है। वह दिल पर पत्थर रखकर लोगों के ताने सहन करती है। लोग ताना देते हुए कहते हैं कि इनके लिए बेटा-बेटी, पति-पत्नी और धर्म-ईमान सभी कुछ रोटी ही होती है। लोग किसी की विवशता पर हँस तो सकते है, परंतु उसका सहारा नहीं बन सकते। पेट की आग उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर देती है। दूसरों से सहानुभूति के स्थान पर ताने सुनने पड़े तो मन फूट-फूटकर रोने को चाहता है। ऐसा ही कहानी में उस बुढ़िया के साथ हुआ था।

3. आशय-इस पंक्ति का आशय यह है कि आज के इस समाज में दु:ख मनाने का अधिकार भी केवल धनी वर्ग को होता है। यह सत्य है कि दुःख सभी को तोड़कर रख देता है। दु:ख में मातम सभी मनाना चाहते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब। दुःख का सामना होने पर सभी विवश हो जाते हैं। गरीब व्यक्ति के पास न तो दु:ख मनाने की सुविधा है न समय है वह तो रोजी-रोटी के चक्कर में ही उलझा रहता है। संपन्न वर्ग शोक का दिखावा अवश्य करता है। परंतु वे अभागे लोग जिन्हें न दुःख मनाने का अधिकार है और न अवकाश। जो परिस्थितियों के सामने घुटने टेक देते हैं, उन्हें पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए दु:खी होते हुए भी काम करना पड़ता है। इस प्रकार निचली श्रेणी के लोगों को रोटी की चिंता दु:ख मनाने के अधिकार से वंचित कर देती है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो-
(क) कङ्घा , पतंग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(ग) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(ङ) अंधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में, मैं।
उत्तर
ध्यान दो कि ङ, ऊ, ए, न और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं-इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे-अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्गों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे-संशय, संरचना में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ’।। (‘) यह चिह्न है अनुस्वार का और (*) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिक का स्वर के साथ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए-
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण-बेटा-बेटी ।
उत्तर
पाठ में दिए गए शब्द-युग्मः बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, पोता-पोती, झाड़ना-फेंकना, छन्नी-ककना, दुअन्नी-चवन्नी। अन्य शब्द-युग्म इस प्रकार हैं- आते-जाते, धर्म-ईमान, दान-दक्षिणा

प्रश्न 4.
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए बंद दरवाजे खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
उत्तर
बंद दरवाजे खोल देना-इसका अर्थ है कि जहाँ पहले सुनवाई नहीं होती थी, वहाँ अब बात सुनी जाती है। जहाँ पहले अपमान होता था, वहाँ अब मान-सम्मान होता है।

यदि आदमी की पोशाक अच्छी होती है तो लोग उसका आदर-सत्कार करते हैं। उसे कहीं भी आने-जाने से रोका नहीं जाता/उसके लिए सभी रास्ते खुले होते हैं।

निर्वाह करना-पेट भरना/घर का खर्च चलाना/कमाकर परिवार का पालन-पोषण करना। भगवाना सब्ज़ी-तरकारी बोकर परिवार का निर्वाह करता था।

भूख से बिलबिलाना-भूख के कारण तड़पना, भूख से रोना। खाने-पीने की सामग्री न होने के कारण बुढ़िया के पोते-पोतियाँ भूख से व्याकुल हो रहे थे। घर का आर्थिक स्थिति डगमगाने लगती है तो बच्चे भूख से बिलबिलाने लगते हैं।
कोई चारा न होना-कोई उपाय न होना।
भगवाना की माँ के पास अपने पोता-पोती को पेट भरने के लिए तथा बहू की दवा-दारू करने के लिए पैसे नहीं थे। कोई उधार भी नहीं देता था। घर में जब कमाई का कोई उपाय नहीं रहता तो दुःख भरे क्षणों में भी कमाई के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। बुढिया के पास इसके अतिरिक्त कोई साधन नहीं था कि वह बाज़ार में खरबूजे बेचने जाती।

शोक से द्रवित हो जाना-दुःख से हृदय पिघल जाना। लेखक खरबूजे बेचनेवाली बुढ़िया के रोने से दु:खी था। किसी के दु:ख को देखकर स्वयं भी दुःखी होने का भाव प्रकट होता है। प्रतिष्ठित लोगों के दुःख को देखकर लोगों के हृदय पिघलने लगते हैं। उन लोगों के दुःख को प्रकट करने का तरीका अत्यंत मार्मिक होता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 3
उत्तर
(क)

  1. छन्नी-ककना-बुढिया माँ ने अपने पुत्र को बचाने के लिए छन्नी-ककना तक बेच दिए।
  2. अढ़ाई-मास-आज से ठीक अढाई मास बाद हमारी वार्षिक परिक्षाएँ शुरू हो जाएँगी।
  3. पास-पड़ोस-मेरे पास-पड़ोस में सभी लोग मिल-जुलकर रहते हैं।
  4. दुअन्नी-चवन्नी-महिला को गरीब जानकर किसी ने उसे दुअन्नी-चवन्नी भी उधार न दी।
  5. मुँह-अँधेरे-मेरे दादा जी को मुँह-अँधेरे उठकर सैर करने की आदत है।
  6. झाड़ना-फेंकना-मोहन डॉक्टर के इलाज करने की बजाए ओझा से झाड़ना-फेंकना करवाने में अधिक विश्वास रखता है।

(ख)

  1. फफक-फफककर-अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनते ही बुढ़िया फफक-फफकर रोने लगी।
  2. बिलख-बिलखकर-अध्यापिका की डाँट पड़ते ही छात्रा बिलख-बिलखकर रोने लगी।
  3. तड़प-तड़पकर-साँप से काटे जाने पर भगवाना ने तड़प-तड़पकर प्राण दे दिए।
  4. लिपट-लिपटकर-घायल होने के कारण पुत्र पिता से लिपट-लिपटकर रोने लगा।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(क)
1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख)
1.
अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
2. भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।उत्तर
(क)

  1. रमेश बिस्तर से उठते ही पेट दर्द से बिलबिलाने लगा।
  2. बच्चे को चुप कराने के लिए बाजार से खिलौना लाना ही होगा।
  3. गरीबी के कारण मोहन को छोटी उम्र में नौकरी ही क्यों न करना पड़े।

(ख)

  1. अरे जो जैसे बोता है, वैसा ही काटता है।
  2. कविता जो एक बार यहाँ आई तो फिर नहीं गई।

योग्यता विस्तार
प्रश्न 1.
व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है। इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं? उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

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