NCERT Solutions | Class 12 Geography Practical Work in Geography (खण्ड 3: भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य (भाग-2)) Chapter 2 | Data Processing (आंकड़ों का प्रक्रमण)

CBSE Solutions | Geography Class 12
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NCERT | Class 12 Geography Practical Work in Geography (खण्ड 3: भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य (भाग-2))
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
---|---|
Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 12 |
Subject: | Geography |
Chapter: | 2 |
Chapters Name: | Data Processing (आंकड़ों का प्रक्रमण) |
Medium: | Hindi |
Data Processing (आंकड़ों का प्रक्रमण) | Class 12 Geography | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions for Class 12 Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Data Processing (Hindi Medium)
NCERT Solutions for Class 12 Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Data Processing (Hindi Medium)
[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)
प्र० 1. निम्नांकित चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए
(i) केंद्रीय प्रवृत्ति का जो माप चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है वह है
(क) माध्य
(ख) माध्य तथा बहुलक
(ग) बहुलक
(घ) माध्यिका
(ii) केंद्रीय प्रवृत्ति का वह माप जो किसी वितरण के उभरे भाग से हमेशा संपाती होगा वह है
(क) माध्यिका
(ख) माध्य तथा बहुलक
(ग) माध्य
(घ) बहुलक
(iii) ऋणात्मक सहसंबंध वाले प्रकीर्ण अंकन में अंकित मानों के वितरण की दिशा होगी
(क) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ
(ख) नीचे बाएँ से ऊपर दाएँ
(ग) बाएँ से दाएँ
(घ) ऊपर से दाँए से नीचे बाएँ
उत्तर :
(i) (घ) माध्यिका(ii) (ख) माध्य तथा बहुलक ।
(iii) (क) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ
प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
(i) माध्य को परिभाषित कीजिए?
उत्तर :
किसी चर/मद के विभिन्न मूल्यों का साधारण अंकगणितीय औसत माध्य कहलाता हैं। यह अधिकतम व न्यूनतम मूल्यों/ मानों के बीच एक स्थिर मूल्य होता है।(ii) बहुलक के उपयोग के क्या लाभ हैं?
उत्तर :
किसी श्रेणी में जिस मान/मूल्य की सबसे अधिक पुनरावृत्ति होती है वह मान बहुलक कहलाता है। बहुलक में वे मान महत्वपूर्ण होते हैं जिनकी पुनरावृत्ति सर्वाधिक बार हुई है। ये मान प्रायः श्रेणी के मध्य में होते हैं। अतः बहुलक पर श्रेणी के चरम मूल्यों/मानों का प्रभाव नहीं पड़ता।(iii) प्रकीर्णन किसे कहते हैं?
उत्तर :
दो चरों के बीच विशिष्ट सह संबंध अथवा साहचर्य को दर्शाने के लिए बनाए गए रेखा-चित्रों को प्रकीर्ण आरेख अथवा प्रकीर्ण अंकन कहते हैं। इस रेखाचित्र पर X तथा Y मानों का बिखराव प्रकीर्णन कहलाता है।(iv) सहसंबंध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर :
कुछ भौगोलिक परिघटनाओं के परिणाम ज्ञात करने के लिए दो या अधिक चरों के बीच साहचर्य अथवा पारस्परिक निर्भरता, उनकी प्रकृति, दिशा व गहनता का अध्ययन ही सहसंबंध है।(v) पूर्ण सहसंबंध किसे कहते हैं?
उत्तर :
सहसंबंध की दिशा व गहनता का विस्तार किसी भी परिस्थिति में ± 1 से अधिक नहीं हो सकता। सहसंबंध पूरी 1 (एक) होने पर (चाहे धनात्मक हो या ऋणात्मक) इसे पूर्ण सहसंबंध कहा जाता है।(vi) सहसंबंध की अधिकतम सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर :
सहसंबंध की अधिकतम सीमाएँ -1 से लेकर +1 के बीच कुछ भी हो सकती है। यह जितना शून्य (0) के समीप होगी सहसंबंध उतना ही कमजोर होगा तथा जितना ± 1 के पास होगी सहसंबंध उतना ही प्रगाढ अथवा संघन होगा।प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए|
(i) आरेखों की सहायता से सामान्य तथा विषम वितरणों में माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की सापेक्षिक स्थितियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
सामान्य वितरण की विशेषता है कि इसमें माध्य, माध्यिका तथा बहुलक का मान समान होता है क्योंकि सामान्य वितरण सममित होता है। इसमें अधिकतम आवृत्ति का मान, वितरण के मध्य में होता है तथा इस बिंदू से आधी इकाईयाँ ऊपर व आधी नीचे होती हैं। अति उच्च तथा अति निम्न मूल्यों की बारंबारता बहुत ही कम होती हैं। देखें चित्र सामान्य वक्र आवृत्तियों को प्रदर्शित करने वाला रेखाचित्र घंटाकार वक्र कहलाता है। सामान्य वक्र में आंकड़ों की परिवर्तनशीलता कम अथवा अधिक हो सकती है। सामान्य वक्र का एक उदाहरण है-चित्र A में धनात्मक विषमता वाला वक्र दिखाया गया है जिसमें निम्न मूल्यों की आवृत्तियाँ अधिक तथा अधिक मूल्य की आवृत्तियाँ कम है। इस स्थिति में पहले बहुलक, फिर माध्यिका तथा अंत में माध्य आता है। जबकि चित्र B में ऋणात्मक विषमता वाला वक्र दिखाया गया है। इसमें कम मूल्य की आवृत्तियाँ कम तथा अधिक मूल्य की आवृत्तियाँ अधिक होती हैं। इस स्थिति में पहले माध्य, फिर माध्यिका तथा अंत में बहुलक आता है।
यदि आंकड़े विषम अथवा विकृत हों तो माध्य, माध्यिका तथा बहुलक संपाती नहीं होंगे। विषम आंकड़ों के प्रभाव को A तथा B के द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

(ii) माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की उपयोगिता का वर्णन उनके गुण व दोषों के आधार पर कीजिए।
उत्तर :
- सामान्य वितरण में माध्य, माध्यिका तथा बहुलक का मान समान होता है।
- अधिकतम आवृत्ति का मान वितरण के मध्य में होता है।
- मध्य बिंदू से आधी इकाइयाँ ऊपर तथा आधी नीचे होती हैं।
- अधिकतर इकाइयाँ वितरण के मध्य में अर्थात् माध्य के निकट होती हैं।
- अति उच्च तथा अति निम्न मूल्यों की बारंबारता का बंटन बहुत ही कम होता है।
- सामान्य वितरण वक्र की आकृति घंटाकार वक्र जैसी होती हैं क्योंकि यह वक्र सममित होती है।
- यदि आंकड़े विषम अथवा विकृत हों तो माध्य, माध्यिका तथा बहुलक संपाती नहीं होंगे।
- सामान्य वितरण वक्र की सहायता से केंद्रीय प्रवृत्ति के तीनों मापों की तुलना आसानी से की जा सकती है।
(iii) एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से मानक विचलन के गणना की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर :
मानक विचलन, प्रकीर्णन का सर्वाधिक स्थिर भाप है। इसकी गणना हमेशा माध्य के परिपेक्ष्य में की जाती है। इसलिए इस वर्ग माध्यन्मूल विचलन भी कहते हैं। इसे ग्रीक अक्षर 6 से तथा अंग्रेजी अक्षर SD से अभिव्यक्त करते हैं।इसका गणितीय सूत्र है-


(iv) प्रकीर्णन का कौन-सा माप सबसे अधिक अस्थिर है तथा क्यों?
उत्तर :
प्रकीर्णन को मापने के लिए अनेक विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। जैसे-विस्तार, चतुर्थक विचलन, माध्य विचलन, मानक विचलन, विचरण गुणांक तथा लॉरेंज वक्र आदि। इनमें से प्रत्येक विधि के अपने विशेष गुण तथा सीमाएँ हैं। किंतु विस्तार अथवा परिसर द्वारा परिकलित माप सबसे अधिक अस्थिर है। क्योंकि इसे श्रेणी के सबसे । उच्चतम मान में से-न्यूनतम मान को घटाकर प्राप्त किया जाता है। जैसे-निम्नलिखित अवर्गीकृत आंकड़ों के आधार पर दैनिक मजदूरी के वितरण के लिए विस्तार की गणना कीजिए – रु० 80, 85, 95, 100, 110, 120, 200 है। विस्तार/परिसर की गणना के लिए सूत्र है- R = L – S, R = परिसर (Range), L = उच्चतम मान (Largest Value) S = निम्नतम मान (Smallest Value) यहाँ L = 200, तथा S = 200 हैअतः R= L – S अर्थात् R = 200 – 80 = 120 यदि इस श्रेणी में से अंतिम माने = 200 को हटा दें तब R = 120 – 80 = 40 इस तरह केवल एक मान को हटाने पर R का मान घटकर केवल एक-तिहाई रह गया है।अतः दो चरम मानों पर आधारित परिणाम भ्रामक, अवास्तविक व अविश्वसनीय होते हैं।
(v) सहसंबंध की गहनता पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
सहसंबंध की गहनता का मापन दोनों चरों में अनुरूपता या साहचर्य की मात्रा पर निर्भर करता है। इस अनुरूपताअथवा साहचर्य की गहनता की मात्रा गणितीय दृष्टि से -1 से शून्य की ओर बढ़ते हुए +1 तक हो सकती है। अतः इसका मान किसी भी परिस्थिति में ± 1 से अधिक नहीं हो सकता।। सह संबंध पूरा 1 (एक) होने पर (चाहे वह धनात्मक हो या ऋणात्मक) इसे पूर्ण सहसंबंध क़हते हैं। गहनतम सहसंबंध के दो विपरीत सिरों ± 1 के ठीक मध्य में (शून्य) 0 सहसंबंध की स्थिति होती है। इस बिंदू पर या उसके समीप चरों की उपस्थिति सहसंबंध के अभाव को दर्शाती है।

दो चरों के मध्य विशिष्ट साहचर्य को दर्शाने के लिए बनाए गए आरेख को प्रकीर्ण आरेख अथवा प्रकीर्ण अंकन कहते हैं। रेखाचित्र पर X तथा Y मानों का बिखराव अथवा प्रकीर्णन सहसंबंध की गहनता को दर्शाते हैं। प्रकीर्ण आरेख पर जब एक सरल रेखा निचले बाँए से ऊपरी दाएँ भाग की ओर अग्रसर होती हैं तो यह पूर्ण धनात्मक सहसंबंध (1.00) को दर्शाती है। इसके विपरीत जब यह रेखा ऊपरी बाएँ से निचले दाएँ भाग की ओर जाती है। तब पूर्ण ऋणात्मक सहसंबंध (-1.00) को दर्शाती है। सहसंबंध का अभाव होने पर या शून्य सहसंबंध होने पर X तथा Y चरों में कोई परिवर्तन नहीं होता। प्रकीर्ण आरेख पर X तथा Y चरों का बिखराव X तथा Y अक्ष के समान्तर होता है और समांतर सरल रेखाएँ दिखाई देती हैं।


(vi) कोटि सहसंबंध की गणना के विभिन्न चरण कौन से हैं?
उत्तर :
स्पीयर मैंन ने कोटियों के आधार पर सहसंबंध की गणना विधि प्रस्तुत की है। प्रचलित रूप में इसे स्पीयरमैन के कोटि सहसंबंध के नाम से जाना जाता है जिसे ग्रीक अक्षर P तथा उच्चारण रो (rho) से अभिव्यक्त किया जाता है। इसकी गणना के निम्न चरण हैं-प्रथम चरण – दिए गए X तथा Y चरों के आंकड़ों को तालिका में क्रमशः प्रथम व द्वितीय स्तंभों में लिख दिया जाता है जैसे-



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