NCERT Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 4 Climate जलवायु

 

 NCERT Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter Chapter 4 Climate जलवायु 

NCERT Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 4 Climate जलवायु



These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Social Science in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter Chapter 4 Climate जलवायु Jalvaayu.


प्रश्न अभ्यास
पाठ्यपुस्तक से


प्रश्न 1. बहुविकल्पीय प्रश्नः
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें:

(i) नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है?

(क) सिलचर
(ख) चेरापूंजी
(ग) मासिनराम
(घ) गुवाहटी

(ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है?

(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है?

(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानसून

(iv) भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है?

(क) मई के प्रारंभ में
(ख) जून के प्रारंभ में
(ग) जुलाई के प्रांरभ में
(घ) अगस्त के प्रारंभ में

(v) निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है?

(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें
(ग) ठंडा दिन एवं रातें
(घ) ठंडा दिन एवं गर्म रातें

उत्तरः

(i) (ख)
(ii) (ग)
(iii) (ग)
(iv) (ग)
(v) (ख)

प्रश्न 2. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए।

  1. भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
  2. भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?
  3. भारत के किस भाग में दैनिक तापामान अधिक होता है एवं क्यों?
  4. किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा हाती है?
  5. जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं?
  6. मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
  7. मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?

उत्तर:
(i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं – अक्षांश, तुंगता, ऊँचाई, वायु दाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।
(ii) भोरत की जलवायु मानसून द्वारा अत्यधिक प्रभावित है। इसलिए इसकी जलवायु मानसून प्रकार की है।
(iii) भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में जिसमें भारत का मरुस्थल भी शामिल है तथा जहाँ सर्वाधिक दैनिक तापमान होता है। थार मरुस्थल में दिन का तापमान 50°C तक जा सकता है जबकि उसी रात में यह 15°C तक गिर सकता है। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि रेत उष्मा को बहुत जल्दी अवशोषित करती है और छोड़ती है। इस तथ्य के कारण इस क्षेत्र में दिन और रात के तापमान में बहुत अधिक अंतर होता है।
(iv) मालाबार क्षेत्र पश्चिमी तट पर स्थित है। दक्षिण पश्चिमी पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है।
(v) क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक संकरी पट्टी में स्थित हवाएँ होती हैं। इनकी गति गर्मी में 110 कि.मी. प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 कि.मी. प्रति घंटा के बीच विचलन करती है। ग्रीष्म ऋतु में हिमालय के उत्तर-पश्चिमी जेट धाराओं का तथा भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट धाराओं का प्रभाव होता है। हिमालय के दक्षिण में बहती उपोष्ण पश्चिमी जेट धाराएँ पश्चिमी विक्षोभों के लिए जिम्मेदार हैं जो कि देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भागों में सर्दियों के महीनों में वर्षा का कारण बनती हैं। देश के प्रायद्वीपीय भाग पर बहने वाली उपोष्ण पूर्वी जेट धाराएँ (उष्ण पूर्वी जेट धारा) ग्रीष्म ऋतु में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के लिए जिम्मेदार हैं जो मानसून सहित अक्तूबर-नवंबर की अवधि के दौरान भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।
(vi) ऋतुओं के अनुसार हवाओं की दिशा में परिवर्तन मानसून है। मानसून के आगमन के समय के आस-पास सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है जो कई दिनों तक होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गर्जन व बिजली चमकने के साथ अचानक आगमन को मानसून ‘प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है। वर्षा में विराम का अर्थ है कि मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं।
(vii) विभिन्न अक्षाशों में स्थित होने एवं उच्चावच लक्षणों के कारण भारत की मौसम संबंधी परिस्थितियों में बहुत अधिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। किन्तु ये भिन्नताएँ मानसून के कारण कम हो जाती हैं क्योंकि मानसून पूरे भारत में बहती हैं। संपूर्ण भारतीय भूदृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव-जीवन तथा उनके त्योहार-उत्सव, सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं। मानसून के आगमन का पूरे देश में भरपूर स्वागत होता है। भारत में मानसून के आगमन का स्वागत करने के लिए विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। मानसून झूलसाती गर्मी से राहत प्रदान करती है। मानसून वर्षा कृषि क्रियाकलापों के लिए पानी उपलब्ध कराती है। वायु प्रवाह में ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन एवं इससे जुड़ी मौसम संबंधी परिस्थितियाँ ऋतुओं का एक लयबद्ध चक्र उपलब्ध कराती हैं जो पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधती है। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं एवं संपूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती हैं। नदी। घाटियाँ जो इन जलों का संवहन करती हैं, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है। भारत के लोगों का संपूर्ण जीवन मानसून के इर्द-गिर्द घूमता है। इसलिए मानसून को एक सूत्र में बांधने वाला समझा जाता है।

प्रश्न 3. उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती हैं?
उत्तरः हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे। बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

प्रश्न 4. कारण बताएँ ।

  1. भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता हैं?
  2. भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
  3. तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
  4. पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।
  5. राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।

उत्तरः
(i) वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन कोरिआलिस बल के कारण होती है। भारत उत्तर-पूर्वी पवनों के क्षेत्र में आता है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध की उपोष्ण कटिबंधीय उच्चदाब पेटी से उत्पन्न होती हैं। ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं। कोरिआलिस बल को ‘फेरल का नियम’ भी कहा जाता है तथा यह पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न होता है। यह उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनों को दक्षिण गोलार्द्ध में बाएं ओर विक्षेपित कर देती हैं।
(ii) विषुवत रेखा को पार करने के उपरांत, दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनें दक्षिण-पश्चिम की ओर बहने लगती हैं और दक्षिणपश्चिमी मानसून के रूप में प्रायद्वीपीय भारत में प्रवेश करती हैं। ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से बहते हुए आर्द्रता ग्रहण करती हैं और भारत की मुख्यभूमि पर विस्तृत वर्षण लाती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिणपश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती हैं। मानसून की अवधि 100 से 120 दिनों के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केंद्रित हैं।
(iii) सर्द ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर | बहती हैं इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। यद्यपि इन पवनों के कारण तमिलनाडु के तट पर वर्षा होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं और अपने साथ आर्द्रता लाती हैं।
(iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि अंडमान सागर पर पैदा होने वाला चक्रवातीय दबाव मानसून एवं अक्तूबर-नवंबर के दौरान उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराओं द्वारा देश के आंतरिक भागों की ओर स्थानांतरित कर दिया जाता है। ये चक्रवात विस्तृत क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती हैं।
(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाटों के वृष्टि छाया प्रदेश सूखा संभावित होते हैं क्योंकि इनमें मानसून के दौरान बहुत कम वर्षा होती है। पवनें पर्वतों पर आर्द्रता लिए हुए आती हैं किन्तु तापमान में कमी अधिकतर आर्द्रता घाटों की पवनमुखी ढालों पर वर्षण के रूप में खो देती हैं और जब तक वे पवनविमुखी ढाल पर पहुँचती हैं तब तक वे शुष्क हो चुकी होती हैं।

प्रश्न 5. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाएँ ।
उत्तरः उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत के निर्णायक प्रभाव तथा दक्षिण में महासागर होने के बावजूद भी तापमान,
आर्द्रता एवं वर्षण में भिन्नताएँ मौजूद हैं।

(क) उदाहरणतः, गर्मियों में राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में, उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस होता है जबकि उसी समय देश के उत्तर में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20 डिग्री सेल्सियस हो सकता है। सर्दियों की किसी रात में जम्मू-कश्मीर के द्रास में तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22 डिग्री सेल्सियस हो सकता है।
(ख) अण्डमान व निकोबार एवं केरल में दिन व रात के तापमान में बहुत कम भिन्नता होती है।
(ग) एक अन्य विभिन्नता वर्षण में हैं। जबकि हिमालय के ऊपरी भागों में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है, देश के शेष भागों में वर्षा होती है। मेघालय में 400 से.मी. से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में वार्षिक वर्षण 10 से.मी. से भी कम होती है।
(घ) देश के अधिकतर भागों में जून से सितंबर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवंबर में होती है।
(ङ) उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।

प्रश्न 6. मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तरः किसी भी क्षेत्र को वायु दाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती है। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षण के पैटर्न को भी प्रभावित करती है। भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं:
(क) वायु दाब एवं धरातलीय पवनेंः पवनें उच्च-वायुदाब क्षेत्र से कम-वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं। सर्दियों में हिमालय के उत्तर में उच्च-वायुदाब क्षेत्र होता है। ठण्डी शुष्क हवाएँ इस क्षेत्र से दक्षिण में सागर के ऊपर कम वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं। गर्मियों के दौरान मध्य एशिया के साथ-साथ उत्तर-पश्चिमी भारत के ऊपर कम वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। परिणामस्वरूप, कम वायुदाब प्रणाली दक्षिण गोलार्द्ध की दक्षिणपूर्वी व्यापारिक पवनों को आकर्षित करती है। ये व्यापारिक पवने विषुवत रेखा को पार करने के उपरांत कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं। विषुवत रेखा को पार करने के बाद ये पवनें दक्षिण-पश्चिमी दिशा में बहने लगती हैं और भारतीय प्रायद्वीप में दक्षिणपश्चिमी मानसून के रूप में प्रवेश करती हैं। इन्हें दक्षिण पश्चिमी मानसून के नाम से जाना जाता है। ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से बहते हुए आर्द्रता ग्रहण करती हैं और भारत की मुख्यभूमि पर विस्तृत वर्षण लाती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिणपश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती हैं। मानसून की अवधि 100 से 120 दिनों के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केंद्रित हैं।
(ख) जेट धाराएँ: क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक संकरी पट्टी में स्थित हवाएँ होती हैं। इनकी गति गर्मी में 110 कि.मी. प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 कि.मी. प्रति घंटा के बीच विचलन करती है। हिमालय के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराओं की गतिविधियों एवं गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर बहने वाली पश्चिमी जेट धाराओं की उपस्थिति मानसून को प्रभावित करती है। जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है। किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जल धारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है।

हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे बढती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।
(ग) पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभः हिमालय के दक्षिण से बहने वाली उपोष्ण-कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ सर्दी के महीनों में देश के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभों के लिए जिम्मेदार हैं।

प्रश्न 7. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तरः उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवंबर से आरंभ होकर फरवरी तक रहती है। इस मौसम में आसमान प्रायः साफ रहता है, तापमान कम रहता है और मन्द हवाएं चलती हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। दिसंबर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के उपरी ढालों पर हिमपात होता है। इस ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं जिससे ये अपने साथ आर्द्रता लाती हैं। देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से । बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं। शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा की कुल मात्रा कम होती है, लेकिन ये रबी फसलों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 8. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर: भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ:
(क) मानसून की अवधि जून के प्रारंभ से सितंबर के मध्य तक 100 से 120 दिन के बीच होती है।
(ख) इसके आगमन के आस-पास सामान्य वर्षण में अचानक वृद्धि हो जाती है। यह कई दिनों तक लगातार होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गर्जन व बिजली चमकने के साथ अचानक आगमन को मानसून ‘प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है।
(ग) मानसून में आई एवं शुष्क अवधियाँ होती हैं जिन्हें वर्षण में विराम कहा जाता है।
(घ) वार्षिक वर्षा प्रतिवर्ष अत्यधिक भिन्नता होती है।
(ङ) यह कुछ पवनविमुखी ढलानों एवं मरुस्थल को छोड़कर भारत के शेष क्षत्रों को पानी उपलब्ध कराती है।
(च) वर्षा का वितरण भारतीय भूदृश्य में अत्यधिक असमान है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिमी घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती है अर्थात् 250 से0मी0 से अधिक। दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, लेह में बहुत कम वर्षा होती है। सर्वाधिक वर्षा देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में होती है।
(छ) उष्णकटिबंधीय दबाव की आवृत्ति एवं प्रबलता मानसून वर्षण की मात्रा एवं अवधि को निर्धारित करते हैं।
(ज) भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों से मानसून सितंबर के प्रारंभ में वापसी शुरू कर देती हैं। अक्तूबर के मध्य तक यह देश के उत्तरी हिस्से से पूरी तरह लौट जाती है। और दिसंबर तक शेष भारत से भी मानसून लौट जाता है।
(झ) मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक ओर यह देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ ला देता है, वहीं दूसरी ओर यह देश के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बन जाता है।

भारत में मानसूनी वर्षा के प्रभाव

  • (क) भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून से प्राप्त पानी पर निर्भर है। देरी से, कम या अधिक मात्रा में वर्षा का फसलों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
  • (ख) वर्षा के असमान वितरण के कारण देश में कुछ सूखा संभावित क्षेत्र हैं जबकि कुछ बाढ़ से ग्रस्त रहते हैं।
  • (ग) मानसून भारत को एक विशिष्ट जलवायु पैटर्न उपलब्ध कराती है। इसलिए विशाल क्षेत्रीय भिन्नताओं की उपस्थिति के बावजूद मानसून देश और इसके लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाला प्रभाव डालती है।

मानचित्र कौशल

भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ

(क) 400 सें.मी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ख) 20 सें.मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र
(ग) भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा

उत्तरः (क) और (ख)

NCERT Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 4 Climate जलवायु

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परियोजना कार्य

(क) पता लगाएँ कि आपके क्षेत्र में एक विशेष मौसम से कौन से गाने, नृत्य, पर्व एवं भोजन संबंधित हैं? क्या भारत के दूसरे क्षेत्रों से इनमें कुछ समानता है?
(ख) भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विशेष ग्रामीण मकानों तथा लोगों की वेशभूषा के फोटोग्राफ इकट्ठे कीजिए। देखिए कि क्या उनमें और उन क्षेत्रों की जलवायु की दशाओं तथा उच्चावच में कोई संबंध है।

उत्तरः

(क) स्वयं कीजिए।
(ख) स्वयं कीजिए।


कक्षा 9वी के सामाजिक विज्ञान के प्रश्न उत्तर 



Chapter 1 The French Revolution फ़्रांसिसी क्रांति
Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
Chapter 3 Nazism and the Rise of Hitler नात्सीवाद और हिटलर का उदय
Chapter 4 Forest Society and Colonialism वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
Chapter 5 Pastoralists in the Modern World आधुनिक विश्व में चरवाहे


Chapter 1 India Size and Location भारत – आकार और स्थिति
Chapter 2 Physical Features of India भारत का भौतिक स्वरुप
Chapter 3 Drainage अपवाह
Chapter 4 Climate जलवायु
Chapter 5 Natural Vegetation and Wild Life प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी
Chapter 6 Population जनसंख्या




Chapter 1 What is Democracy? Why Democracy? लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?
Chapter 2 Constitutional Design संविधान निर्माण
Chapter 3 Electoral Politics चुनावी राजनीति
Chapter 4 Working of Institutions संस्थाओं का कामकाज
Chapter 5 Democratic Rights लोकतांत्रिक अधिकार

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