NCERT Solutions | Class 7 Hindi Writing skills निबंध-लेखन

NCERT Solutions | Class 7 Hindi Writing skills | निबंध-लेखन 

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Writing skills निबंध-लेखन

CBSE Solutions | Hindi Class 7

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NCERT | Class 7 Hindi

NCERT Solutions Class 7 Hindi Writing skills
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 7th
Subject: Hindi Writing skills
Chapter:
Chapters Name: निबंध-लेखन
Medium: Hindi

निबंध-लेखन | Class 7 Hindi | NCERT Books Solutions

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निबंध गद्य की विशेष विधा है। नि + बंध अर्थात नियोजित रूप में बँधा होना। यह अपने विचारों को प्रकट करने का उत्तम माध्यम है। इसमें लेखक किसी विषय पर स्वतंत्र, मौलिक तथा सारगर्भित विचार क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। निबंध लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • निबंध निर्धारित शब्द-सीमा के अंतर्गत ही लिखा जाता है।
  • निबंध के वाक्य क्रमबद्ध और सुसंबद्ध होने चाहिए तथा विचार मौलिक हो। निबंध की भाषा प्रभावशाली और विषयानुकूल हो तथा उसमें विराम-चिह्नों का यथास्थान प्रयोग किया जाता हो।
  • निबंध दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर ही लिखा गया हो।
  • निबंध में दिए गए संकेतों के आधार पर विषय वस्तु अलग-अलग अनुच्छेदों में व्यक्त हो। अनावश्यक बातों का वर्णन निबंध में नहीं होना चाहिए।

निबंध चार प्रकार के होते हैं-

  1. विचारात्मक निबंध
  2. भावात्मक निबंध
  3. वर्णनात्मक निबंध
  4. विवरणात्मक निबंध।

1. समाज, साहित्य, राजनीति, धर्म आदि विषयों पर जब अपने विचार रखे जाते हैं तो वे विचारात्मक निबंध कहलाते हैं।
2. जब व्यक्तिगत या सामाजिक अनुभवों को रोचक व भाव प्रधान ढंग से लिखा जाता है तो वे भावात्मक निबंध कहलाते हैं।
3. प्राकृतिक दृश्य, मेला, घटना आदि का वर्णन पर आधारित निबंध, वर्णनात्मक निबंध कहलाते हैं।
4. ऐतिहासिक स्थल, संस्मरण या काल्पनिक घटनाओं पर आधारित निबंध विवरणात्मक निबंध कहलाते हैं।

निबंध के अंग

1. भूमिका/प्रस्तावना – किसी विषय का प्रारंभिक परिचय देते हुए एक अनुच्छेद में जो पंक्तियाँ लिखी जाती हैं उन्हें भूमिका कहते हैं। इसे ही प्रस्तावना भी कहते हैं। भूमिका सारगर्भित होने के साथ-साथ कौतूहल और जिज्ञासा जगाने वाली होनी चाहिए।
2. विषय विस्तार/प्रतिपादन – इसमें विषय की पूरी तरह जाँच-पड़ताल की जाती है। उसमें कई अनुच्छेद होने चाहिए।
3. उपसंहार – निबंध में कही कई बातों को सार रूप में प्रस्तुत कर विषय का निष्कर्ष निकाला जा सकता है या पाठकों को एक संदेश दिया जा सकता है।

1. समय का सदुपयोग
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।।
पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब।

कबीर की उपर्युक्त पंक्तियों में समय के महत्त्व की चर्चा की गई है। इस संसार में प्रायः सभी चीजों को बढ़ाया-घटाया जा सकता है, पर समय का एक पल भी बढ़ा पाना मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर है। इसलिए समय इस संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु है। इसलिए मानव का कर्तव्य है कि वह समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करे। समय का सदुपयोग हमारे जीवन में सफलता की कुंजी है। यह जीवन तो नश्वर और अनिश्चित है। इसलिए प्रतिदिन समय का सही सदुपयोग करते हुए हमें जीवन को सफल बनाना चाहिए। जो समय बरबाद करता है, समय उसी को बरबाद कर देता है, जो इसका सम्मान करता है, इसके एक-एक पल का सदुपयोग करता है, समय उसे सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचा देता है। समय को बरबाद करने वाले मनुष्य सुअवसर हाथ से खो जाने पर सिर धुन कर पछताते रह जाते हैं।

समय के सदुपयोग के कारण ही अनेक वैज्ञानिक अनेक महत्त्वपूर्ण आविष्कार करने में समर्थ हुए। मानव सभ्यता के विकास की कहानी भी समय के सदुपयोग की कहानी कहती है।

विद्यार्थियों के लिए तो समय बहुत ही उपयोगी है। समय का सदुपयोग करने वाला विद्यार्थी ही ज्ञान प्राप्त करता है तथा इसी ज्ञान के बल पर जीवन में कुछ बन जाता है। इसके विपरीत जो विद्यार्थी अपने बहुमूल्य क्षणों को खेलकूद मौज मस्ती या आलस्य में नष्ट कर देता है, उसका भावी जीवन उतना ही अंधकारमय हो जाता है।

महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, राजेंद्र प्रसाद, जगदीश चंद्र वसु, पंडित जवाहर लाल नेहरू आदि नेता समय का पूरी तरह से सदुपयोग किया करते थे और इसलिए इतने महान बन गए। समय के दुरुपयोग से व्यक्ति आलसी तथा निकम्मा बन जाता है। तथा पग-पग पर उसे असफलता तथा निराशा का मुँह देखना पड़ता है।

हमें ध्यान रखना चाहिए कि समय का प्रत्येक क्षण भविष्य का निर्माता है। समय का सदुपयोग करने वाला मनुष्य जीवन में दिन-प्रतिदिन उन्नति करता है और समय की उपेक्षा करने वाला मनुष्य कभी सफलता नहीं पाता। समय एक देवता है जो यदि प्रसन्न हो जाए, तो सिकंदर बना देता है पर यदि कुपित हो जाए तो समूल नाश कर देता है।

2. गणतंत्र दिवस
भारत की पवित्र भूमि पर अनेक पर्व तथा उत्सव मनाए जाते हैं। इन पर्वो का अपना विशेष महत्त्व होता है। धार्मिक और सांस्कृतिक पर्वो के अतिरिक्त कुछ ऐसे पर्व हैं जिनका संबंध सारे राष्ट्र के जन-जीवन से होता है। इन्हें ‘राष्ट्रीय पर्व’ कहते हैं। 26 जनवरी इन्हीं में से एक है। यह भी एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय त्योहार है। इसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र का अर्थ है- जनता का राज्य। यह दिन हमारे लिए बड़ा शुभ है। इस दिन हमारा देश गणतंत्र बना था। भारत को स्वतंत्रता तो 15 अगस्त 1947 को ही मिल गई थी, परंतु जब सारे नियम बनाकर संविधान की पुस्तक तैयार कर दी गई तब 26 जनवरी 1950 के दिन भारत को पूरी तरह से स्वतंत्र गणतंत्र बना दिया गया। सारे संसार में इसकी घोषणा हो गई। भारत 26 जनवरी 1950 में पूरी तरह से स्वतंत्र है और यहाँ जनता का अपना राज्य है। कोई भी मनुष्य भारत का राष्ट्रपति बन सकता है। सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद थे। वे बिहार के एक गाँव के किसान के लड़के थे, परंतु अपनी योग्यता के कारण राष्ट्रपति बने थे।

26 जनवरी के दिन दिल्ली शहर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। लोग सवेरे अंधेरे में ही उठकर इंडियागेट की ओर चल पड़ते हैं। नियत समय पर राष्ट्रपति महोदय विजय चौक पर झंडा फहराते हैं। तब तोपों की सलामी दी जाती हैं। राष्ट्रपति की सवारी इंडिया गेट की ओर चल पड़ती है। लाखों लोग इस जुलूस को देखते हैं। राष्ट्रपति की गाड़ी के पीछे जल सेना, वायु सेना और थल सेना के जवान होते हैं। हाथियों और हथियारों के जुलूस निकलते हैं। इनके पीछे प्रदेशों की कई तरह की झाँकियाँ होती हैं। इनमें उन प्रदेशों (राज्यों) की संस्कृति की झलक दिखाई जाती है।

झाँकियों के पीछे स्कूलों के बच्चों की कतारें होती हैं। ये कतारें परेड या नृत्य करती आती है। सब लोग अनुशासन में चलते हैं। इस जुलूस से सबके मन में खुशी की लहर दौड़ जाती है।

भारत के सभी प्रदेशों की राजधानियों में भी गणतंत्र दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। प्रदेशों में राज्यपालों के द्वारा झंडा फहराया जाता है। इसके बाद उनका भाषण होता है। फिर लोग खुशी-खुशी अपने-अपने घरों को लौटते हैं। गणतंत्र दिवस समारोह को देखकर भारतवासी गौरव का अनुभव करते हैं।

3. होली
रंगों का त्योहार होली वसंत ऋतु के आगमन का संदेशवाहक है। इसे वसंत का यौवन कहा जाता है। हमारे पूर्वजों ने होली के उत्सव को आपसी प्रेम का प्रतीक माना है। इसमें छोटे-बड़े सभी मिलकर पुराने भेद-भाव को भुला देते हैं। होली हँसी-खुशी का त्योहार है। यह एकता, भाई-चारे, मिलन और खुशी का प्रतीक है।

यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है। इसमें एक-दूसरे पर रंग डालते हैं। रंग-गुलाल भी मलते हैं। रंग पानी में घोल पिचकारी चलाने से बड़ा आनंद आता है। सबके मन मस्त हो जाते हैं। लोग नाचते-गाते हैं और विभिन्न प्रकार का स्वांग रचते हैं। आपस में गले मिलते हैं।

इस त्योहार की धार्मिक कथा है कि प्राचीन समय में प्रहलाद नाम का एक ईश्वर भक्त था। उसके पिता हिरण्य कश्यप कहते थे मुझे ईश्वर मानो, लेकिन उसका पुत्र ईश्वर भक्त था। पिता के कहने पर भी प्रहलाद ने भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्य कश्यप की बहन होलिका थी।

अत्याचारी हिरण्य कश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता में बैठ गई थी। होलिका तो जल गई पर प्रहलाद बच गया। इसी घटना की याद में आज भी लोग लकड़ियों के ढेर को होली बनाकर जलाते हैं तथा उसकी परिक्रमा करते हैं। होली का त्योहार बुराई पर भलाई की विजय का प्रतीक है।

अगले दिन फाग खेला जाता है। सुबह से ही लोग टोलियाँ बनाकर एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं, रंग डालते हैं और गले मिलते हैं। लोग नाचते-गाते अपने घरों से निकलते हैं. और रंग का उत्सव दोपहर तक चलता रहता है। दोपहर के बाद लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ खिलाते हैं। होली का पर्व, प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश देता है।

4. हमारा देश-भारत वर्ष
भारत एक अत्यंत प्राचीन देश है जो कभी ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था। यह देश ऋषि-मुनियों साधु-संतों, महापुरुषों आदि का देश है। स्वयं भगवान ने भी इसी देश में अवतार लिया। यह देश देवताओं का भी दुलारा है। राजा दुष्यंत के पुत्र के नाम पर इसका नाम ‘भारत’ पड़ा। यह एक विशाल देश है। जनसंख्या के आधार पर यह संसार में दूसरे नंबर पर है। यह हमारी प्रिय मातृ भूमि है। भारत की प्राकृतिक बनावट एवं इसकी संपदा अद्भुत है। भारत के उत्तर में हिमालय है और शेष तीन ओर समुद्र हैं। यहाँ पर अनेक पर्वत, नदियाँ, मैदान और मरुस्थल हैं।

भारत का क्षेत्रफल बहुत विशाल है। यह एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की लगभग 80 प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है। यहाँ गेहूँ, मक्का, ज्वार, धान, गन्ना आदि की फ़सलें होती हैं। यहाँ की धरती बहुत उपजाऊ है। यहाँ के हरे-भरे वन इसकी शोभा बढ़ाते हैं। यहाँ गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियाँ बहती हैं।

यहाँ ताजमहल, लालकिला, कुतुब मीनार, स्वर्ण मंदिर, अजंता तथा एलोरा की गुफाएँ देखने योग्य हैं। यहाँ सारनाथ, शिमला, मंसूरी, श्रीनगर, नैनीताल, भ्रमण योग्य स्थान हैं। यहाँ श्रीराम, श्रीकृष्ण, गुरुनानक, बुद्ध, विवेकानंद, दयानंद, रामतीर्थ जैसे महापुरुष पैदा हुए हैं। भारत की भूमि में सोना, चांदी, तांबा, लोहा, कोयला आदि अनेक प्रकार के खनिज मिलते हैं।

यहाँ भिन्न-भिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। सभी लोग बड़े प्रेम से रहते हैं। सब अपने-अपने ढंग से ईश्वर की आराधना करते हैं। यहाँ पर अनेक तीर्थ-स्थल हैं। हमारा देश दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति करे। हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं। इसके अलावे प्रत्येक भारतवासी का भी कर्तव्य है कि वह देश की अखंडता और एकता के लिए कार्य करे तथा इसके सम्मान की रक्षा के लिए संकल्प ले।

5. विद्यार्थी जीवन
भारतीय संस्कृति में मानव जीवन को चार अवस्थाओं या आश्रमों में विभक्त किया गया है- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, तथा संन्यास आश्रम। जन्म से लेकर 25 वर्ष तक की आयु के काल को ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता था। यही विद्यार्थी जीवन है। इस काल में विद्यार्थी को गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था। विद्यार्थी जीवन मनुष्य जीवन
की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था है। विद्यार्थी जीवन सारे जीवन की नींव है। अतः मानव जीवन की सफलताअसफलता विद्यार्थी जीवन पर ही आश्रित है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन भी उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।

विद्यार्थी का पहला कर्तव्य विद्या ग्रहण करना है। इसी जीवन में विद्यार्थी अपने लिए अपने माता-पिता तथा परिवार के लिए और समाज और अपने राष्ट्र के लिए तैयार हो रहा होता है। विद्यार्थी का यह कर्तव्य है कि वह अपने शरीर, बुद्धि, मस्तिष्क, मन और आत्मा के विकास के लिए पूरा-पूरा यत्न करे। आलस्य विद्यार्थियों का सबसे बड़ा शत्रु है। जो विद्यार्थी निकम्मे रहकर समय आँवा देते हैं, उन्हें भली-भाँति अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। विद्यार्थी जीवन का एक-एक क्षण अमूल्य है।

विद्यार्थी को संयमी होना पड़ता है। व्यसनों में फँसने वाले विद्यार्थी कभी उन्नति नहीं कर सकते। शिक्षकों तथा माता-पिता के प्रति आदर और श्रद्धा भाव रखना विद्यार्थी के लिए नितांत आवश्यक है। अनुशासन प्रियता, नियमितता, समय पर काम करना, उदारता, दूसरों की सहायता, पुरुषार्थ, सत्यवादिता, देश-भक्ति आदि विद्यार्थी जीवन के आवश्यक गुण हैं। इन गुणों के विकास
के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। आज के विद्यार्थी वर्ग की दुर्दशा के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन आवश्यक है।

शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों का भी कर्तव्य है कि भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हो।

6. विज्ञान-वरदान या अभिशाप
आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। विज्ञान ने अनेक चमत्कारिक आविष्कार किए हैं। इसने मनुष्य के व्यक्तिगत, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिए हैं। आज मनुष्य चंद्रमा और अन्य ग्रहों-उपग्रहों तक पहुँचकर अपनी कीर्ति-पताका फहरा रहा है। यह सब विज्ञान की ही देन है।

आज विज्ञान ने यातायात के ऐसे द्रुतगामी साधन दिए हैं कि यह दुनिया के किसी भी कोने में थोड़े समय में पहुँच सकता है। टेलीफ़ोन, बेतार के तार, टेलीप्रिंटर सैल्यूलर फ़ोन, सेटलाइट फ़ोन जैसी अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं जिससे संचार माध्यमों में क्रांति आ गई है। मनोरंजन के क्षेत्र में दूरदर्शन, विडियो, चित्रपट जैसे साधन देकर विज्ञान ने मानव को उपकृत किया है।

चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियाँ अत्यंत चौका देने वाली हैं। कल तक जो बीमारियाँ असाध्य समझी जाती थीं, उनका उपचार आज संभव है। आज तो मानव शरीर के अंगों का प्रत्यारोपण, अल्ट्रासाउंड, शल्प चिकित्सा, टेस्ट ट्यूब बेबी, स्कैनिंग जैसे अत्याधुनिक सुविधाओं ने अनेक असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त कर ली है। इसके अतिरिक्त कृषि, शिक्षा, आवास, उद्योग, मुद्रण कला जैसे अनेक क्षेत्रों में भी विज्ञानों के वरदानों ने चमत्कारिक प्रगति की है।

आज इतनी उपलब्धियों के बावजूद विज्ञान एक अभिशाप भी है। ऐसे-ऐसे अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ है जो एक ही प्रहार में पूरे शहर को नष्ट कर देने की क्षमता रखते हैं। न्यूट्रान बम सारे जीवित प्राणियों को मार डालता है और संपत्ति बच जाती है। आपसी होड़ के कारण, रूस, अमेरिका, फ्रांस, चीन, इंग्लैंड आदि देशों ने हथियारों का इतना भयानक भंडार बना लिया है कि यदि कभी विश्वयुद्ध छिड़ गया तो आधी दुनिया तत्काल समाप्त हो जाएगी।

सच तो यह है कि विज्ञान अपने आप में एक महान शक्ति है। मनुष्य इसका जैसा चाहे वैसा उपयोग कर सकता है। अणु-शक्ति के प्रयोग से बड़े-बड़े बिजली घर भी बन सकते हैं और पलक झपकते लाखों लोगों की जान भी ले सकते हैं। यह तो हमारी विवेक-बुद्धि पर निर्भर करता है कि इसका किस प्रकार उपयोग करें।

7. मित्रता
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को जीवन में अनेक वस्तुओं की आवश्यकता होती है। वह अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा नहीं कर सकता है। अतः उसे दूसरे लोगों की सहायता की जरूरत पड़ती है। यही आवश्यकता मित्रता को जन्म देती है। मित्रता अनमोल धन है। इसकी तुलना हीरे-मोती या सोने-चाँदी से नहीं की जा सकती। एक सच्चा और प्रिय मित्र वही है जो सुख-दुख में साथ दे। सच्चे मित्रों के बीच किसी भी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थिति के कारण व्यवधान नहीं हो सकता। मित्रता मनुष्य के हृदय को जोड़ती है, प्राणों के तार मिलाती है।

मित्रता से अनेक लाभ होते हैं। मित्र के समान समाज में सुख और आनंद देने वाला दूसरा कोई नहीं है। दुख के दिनों में मित्र को देखते ही हृदय में शक्ति आ जाती है। सच्चा मित्र संकट के समय में अपने मित्र को उबारता है और अपने मित्र की रक्षा के लिए सामने आकर डट जाता है। सच्चा मित्र एक शिक्षक की भाँति होता है। वह अपने मित्र का मार्गदर्शन करता है। सच्चा मित्र सुख और दुख में समान भाव से मित्रता को निभाता है, जो आनंद पाने के लिए मित्र बने हों, उन्हें सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता। सामने मीठी बाते करने वाले और पीठ पीछे कार्य बिगाड़ने वाले मित्र को विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए।

सच्ची मित्रता ईश्वर का वरदान है। वह आसानी से नहीं मिलती। सच्चा मित्र दुर्लभ होता है लेकिन जब वह मिल जाता है, तब अपने मित्र के सारे कार्यों को सुलभ बना देता है।

8. दशहरा (विजयादशमी)
‘दशहरा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘दस सिरों का हारना’ क्योंकि श्रीराम ने रावण को जिसके दस सिर थे, हरा दिया था, इसलिए इसका नाम ‘दशहरा’ पड़ गया। इसके अतिरिक्त इस पर्व को ‘विजयदशमी’ भी कहा जाता है। यह त्योहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। दशहरा धर्म की अधर्म पर तथा न्याय की अन्याय पर विजय का प्रतीक है। इस समय वर्षा की ऋतु के बाद शरद् ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन श्रीराम ने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी। रावण पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में यह त्योहार मनाया जाता है।

बंगाल में यह त्योहार ‘दुर्गा पूजा’ के रूप में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों की कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से जब पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर उठी, तो माँ दुर्गा ने उसके साथ नौ दिन तक घोर संग्राम किया। इसके बाद दसवें दिन उसे मार गिराया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र पूजा होती है और दसवें दिन दुर्गा की प्रतिमा को नदी या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। दशहरे से पहले आठ दिन तक रामलीला होती है। रामलीला के दौरान कागज़ और बाँस आदि की सहायता से रामलीला मैदान में एक और लंकी बनाई जाती है। उसे बम, पटाखों और आतिशबाजी के अन्य वस्तुओं से सजाया जाता है। हनुमान जी के द्वारा उसमें आग लगा दी जाती है। दूसरी ओर से रावण और राक्षस आदि आते हैं। उनका युद्ध होता है। एक बड़े खुले मैदान में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के बड़े-बड़े पुतले बनाकर खड़े किए जाते हैं। गोले और आतिशबाजियाँ चलती हैं। इसके बाद राम और लक्ष्मण के बाणों से रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जल उठते हैं। दशहरा मनाने से श्रीरामचंद्र, लक्ष्मण, हनुमान आदि की वीरता और विजय का संस्कार बच्चों के हृदय पर बहुत पड़ता है। वे राम-लक्ष्मण की तरह धनुष-बाण लेकर खेल खेला करते हैं।

विजयदशमी का त्योहार अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें यह प्रेरणा देता है कि धर्म की अधर्म पर सदा विजय होती है। श्रीराम ने रावण पर जो विजय प्राप्त की थी, वह धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर ही विजय थी। यह त्योहार हमें धर्म, मर्यादा तथा कर्तव्य-पालन की प्रेरणा देता है। श्रीराम के आदर्शों से जुड़ा यह त्योहार यह शिक्षा भी देता है कि हमें श्रीराम के समान बनने का प्रयास करना चाहिए और अन्याय के समझ कभी झुकना नहीं चाहिए। भारत की संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्त्व है। हमें चाहिए कि त्योहारों को हर्ष और उल्लाह से मनाएँ तथा उनसे प्रेरणा लें।

9. ‘प्रदूषण’
‘प्रदूषण’ शब्द में दो शब्द मिले हैं-प्र + दूषण अर्थात दूषयुक्त। प्रदूषण का साधारण अर्थ है पर्यावरण के संतुलन का दोषपूर्ण हो जाना। प्रदूषण के कारण ही जल, थल और वायु दूषित हो गई है।

वर्तमान युग को मशीनी युग कहा जाता है। जहाँ मशीन का सहारा लेकर मानव ने अपने जीवन को सुख सुविधाओं से युक्त बनाने के लिए अनेक आविष्कार कर डाले। वहीं दूसरी ओर अपने लिए नित नई समस्याओं को भी जन्म दे डाला। विज्ञान ने जहाँ हमारे जीवन में वरदान दिए, वहीं दूसरी ओर उसके वरदान अभिशाप भी बन गए। उन्हीं में से एक है-प्रदूषण। प्रदूषण की समस्या हमारे समक्ष सुरसा के समान मुँह बाए खड़ी है।

वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। महानगर वायु प्रदूषण के प्रकोप से सर्वाधिक ग्रस्त हैं। इसका मुख्य कारण है नगरों का तीव्र गति से विकास व औद्योगीकरण। सड़कों पर दौड़ते वाहनों से निकलने वाले धुएँ व औद्योगिक चिमनियों से निकलने वाली जहरीली गैसों ने नगर के निवासियों का साँस लेना दूभर कर दिया है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण वाहनों व कारखानों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिससे वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है।

छोटे क्षेत्रों व महानगरों में जल-प्रदूषण के भिन्न-भिन्न कारण हैं। नदियों में पशुओं को नहलाना, नदी के पानी में स्वयं स्नान करना व कपड़े आदि धोना गाँवों में जल प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। महानगरों के कारखानों के पाइपों से निकलता गंदा, रसायनयुक्त जल आस-पास की नदियों में मिल जाता है तथा उसे और दूषित कर देता है। गंगा नदी का जल भी आज प्रदूषित हो चुका है। प्रदूषित जल को पीने से अनेक जानलेवा बीमारियाँ हो जाती हैं।

जल प्रदूषण के कारण पेट के रोग हो जाते हैं। कारखानों से निकलने वाला कचरा नदियों, नालों में बहा दिया जाता है, जो जल को इतना प्रदूषित कर देता है कि उसे पीने से व्यक्ति हैजा, अजीर्ण, आंत्र शोध जैसे अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।

बड़े-बड़े महानगरों में आवास की भारी समस्या है। इसीलिए वहाँ झुग्गी-झोपड़ियाँ बन जाती हैं जिनमें मज़दूर आदि रहते हैं। इनके कारण गंदगी होती है तथा भूमि पर प्रदूषण होता है। मुंबई की चालें, दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियाँ, कानपुर, चेन्नई तथा कोलकाता के स्लम इसके उदाहरण हैं। साथ ही अधिक अन्न उगाने के लिए जिस प्रकार कीटनाशकों तथा रासायनिकों का प्रयोग किया जा रहा है, उससे भी भूमि प्रदूषित होती है। भूमि पर प्रदूषण के कारण अनेक बीमारियों का जन्म होता है।

महानगरों में वाहनों, लाउडस्पीकरों, मशीनों तथा कल कारखानों के बढ़ते शोर के कारण ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ गया है जिसके कारण रक्त-चाप, हृदय रोग, कान के रोग आदि जन्म लेते हैं।

आज प्रदूषण मानव स्वास्थ्य को धीरे-धीरे घुन की भाँति खाए जा रहा है। मलेरिया, हैजा, चिकनगुनिया कैंसर श्वास के रोग, उच्च रक्त चाप जैसी बीमारियाँ प्रदूषण के कारण बढ़ रही हैं। यद्यपि प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है तथापि इसका एकमात्र समाधान वृक्षारोपण है। वृक्ष वातावरण को शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। औद्योगिक इकाइयों को यदि धनी आबादी वाले क्षेत्रों से हटकर नगरों से दूर स्थापित किया जाए, तो इससे प्रदूषण के विस्तार को रोका जा सकता है। वनों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए।

10. वसंत ऋतु
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है। पेड़ ऋतुओं का विविध दृश्ययुक्त अद्भुत क्रम है। धन्य है भारतीय जो स्वर्ग से भी सुंदर धरा पर निवास करते हैं। भारत में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं- वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत, वसंत और ग्रीष्म। सभी ऋतुओं की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। अपनी-अपनी सुंदरता है। इन सभी ऋतुओं में वसंत ऋतु सबसे सुंदर मानी जाती है।

फाल्गुन और चैत्र – ये दो महीने वसंत के काल हैं। इस समय मौसम अत्यंत सुहावना होता है- न अधिक सरदी पड़ती है और न अधिक गरमी। अपने सुहावने मौसम के कारण ही वसंत को ऋतुराज कहा जाता है।

वसंत को प्रकृति का यौवन कहा जाता है। इस ऋतु में धरती एक नई नवेली दुल्हन की भाँति सजी-सँवरी दिखाई देती है। वसंत की शोभा वन-उपवन तथा सर्वत्र दिखाई देती है। ऐसा लगता है चारों ओर सौंदर्य का साम्राज्य छा गया हो। शीतल, मंद, सुगंधित , पवन बहने लगती है, फूलों पर तितलियाँ और भौरे मँडराते दिखते हैं, पीली-पीली सरसों देखकर ऐसा लगता है मानो धरती ने पीली चुनरिया ओढ़ ली हो। आम के वृक्ष बौर से लद जाते हैं तथा कोयल की गूंज सुनाई पड़ती है। प्रकृति के इस मादक रूप को देखकर मन मयूर नाच उठता है।

वसंत पंचमी से वसंत का आगमन होता है। वसंत पंचमी के दिन ही ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव हुआ था, इसलिए इस दिन सरस्वती पूजन का आयोजन किया जाता है। किंवदंती है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं तथा स्थान-स्थान पर वसंत मेले का आयोजन होता है। हिंदी के महाकवि निराला जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसलिए साहित्य प्रेमी “निराला जयंती’ का आयोजन करते हैं। स्थान-स्थान पर रंग-बिरंगी पतंगें भी उड़ाई जाती हैं। वसंत ऋतु हमारे जीवन में नव स्फूर्ति, नव उल्लास तथा नव-शक्ति का संचार करती है। यह ऋतु जड़-चेतन सभी में एक नई उमंग भर देती है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है।

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