NCERT Solutions | Class 12 Arthshastra व्यष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti Arthshastra) Chapter 4 | पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

CBSE Solutions | Arthshastra Class 12
Check the below NCERT Solutions for Class 12 Arthshastra व्यष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti Arthshastra) Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Pdf free download. NCERT Solutions Class 12 Arthshastra were prepared based on the latest exam pattern. We have Provided पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Class 12 Arthshastra NCERT Solutions to help students understand the concept very well.
NCERT | Class 12 Arthshastra व्यष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti Arthshastra)
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
---|---|
Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 12 |
Subject: | Arthshastra |
Chapter: | 4 |
Chapters Name: | पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत |
Medium: | Hindi |
पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत | Class 12 Arthshastra | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions for Class 12 Microeconomics Chapter 4 Theory of Firm Under Perfect Competition (Hindi Medium)
[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)
प्र० 1. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर :
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- क्रेताओं और विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या-क्रेताओं की संख्या इतनी अधिक होती है कि किसी वस्तु की बाजार माँग को कोई एक व्यक्ति क्रेता प्रभावित नहीं कर सकता। इसी तरह, विक्रेताओं की संख्या भी इतनी अधिक होती है कि एक व्यक्ति विक्रेता बाजार पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकता।
- एक समान या समरूप वस्तु–पूर्णस्पर्धी बाजार में प्रत्येक फर्म समरूप वस्तु बेचती है। वस्तु इतनी समरूप होती है कि कोई क्रेता दो भिन्न विक्रेताओं की वस्तु में भेद नहीं कर सकता। ऐसे में वह किसी व्यक्तिगत विक्रेता की वस्तु के लिए अपनी प्राथमिकता को व्यक्त करने में सक्षम नहीं होता। ऐसे में विभिन्न फर्मों की वस्तुएँ एक दूसरे की पूर्ण प्रतिस्थापक बन जाती हैं।
बहुत संख्या में क्रेताओं तथा विक्रेताओं की उपस्थिति तथा वस्तु के रूबरू होने का निहितार्थ-
(i) कोई भी व्यक्तिगत क्रेता अपनी माँग को परिवर्तित करके वस्तु की बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति विक्रेता अपनी पूर्ति को प्रभावित करके वस्तु की बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। अतः किसी भी व्यक्तिगत क्रेता या व्यक्तिगत विक्रेता को बाजार कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। ऐसे में एक व्यक्तिगत क्रेता या विक्रेता के लिए कीमत स्थिर हो जाती है।
चित्र में बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति (Ms) एक दूसरे को बिन्दु E पर काटता है। तदनुसार बाजार कीमत = OP पर निर्धारित हो जाती है। इस कीमत पर एक व्यक्तिगत विक्रेता जितनी मात्रा चाहे बेच सकता है।
(ii) जब वस्तु समरूप होती है तब फर्म का कीमत पर आंशिक नियंत्रण भी नहीं होता। किसी भी फर्म के उत्पाद के पूर्ण प्रतिस्थापक बाजार में उपलब्ध होते हैं। ऐसी स्थिति में बिक्री लागत’ करना अर्थहीन हो जाता है। अतः पूर्णस्पर्धी बाजार में बिक्री लागते’ खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती।
(iii) पूर्ण ज्ञान-क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार में प्रचलित कीमत की पूर्ण जानकारी होती है। वे ये भी जानते हैं कि समरूप वस्तु बेची जा रही है। ऐसे में क्रेता बाजार कीमत से अधिक कीमत देने को तैयार नहीं
होंगे तथा विक्रेता को बिक्री लागतें खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।
(iv) निर्बाध प्रवेश तथा बर्हिगमन-कोई भी फर्म उद्योग में प्रवेश करने तथा छोड़ने के लिए स्वतन्त्र होती है। किसी भी फर्म के प्रवेश करने या छोड़ने पर किसी प्रकार के कानूनी, सरकारी या कृतिम रुकावट नहीं होती। अधिक लाभ से प्रभावित होकर नई फर्मे बाजार में प्रवेश कर सकती हैं और यदि किसी फर्म को हानि हो रही है तो वह बाजार छोड़ सकती हैं अतः सभी फर्मे केवल सामान्य लाभ कमा पाती हैं। निहितार्थ-इसका अर्थ है कि अल्पकाल में कोई भी फर्म तीन स्थितियों में हो सकती हैं। (i) सामान्य लाभ (ii) असामान्य लाभ (iii) हानि परन्तु दीर्घकाल में कोई भी फर्म सामान्य लाभ से अधिक लाभ नहीं कमा सकती।
(v) पूर्ण गतिशीलता–पूर्णस्पर्धी बाजार में वस्तुएँ और उत्पादन के साधन बिना रोक-टोक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है। कोई भी उत्पादन के साधन स्वतन्त्र रूप से एक फर्म से दूसरी फर्म में स्थानान्तरित हो सकता है।
(vi) परिवहन लागत का अभाव-पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में यह मान लिया जाता है कि उपभोक्ता किसी भी फर्म से वस्तु खरीदे उसे परिवहन लागत खर्च नहीं करनी पड़ेगी।
(vii) स्वतन्त्र निर्णय लेना-विभिन्न फर्मों के बीच उत्पादित की जाने वाली मात्रा के या ली जाने वाली कीमत के संदर्भ में कोई समझौता नहीं होता। इस बाजार में अन्य किसी बाजार की तुलना में अधिकतम उत्पादन
तथा न्यूनतम कीमत होती है।
प्रo 2. एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर :
कुल संप्राप्ति = कीमत x बेची गई मात्र
TR = P x Q
प्र० 3. कीमत रेखा क्या है?
उत्तर :
कीमत रेखा एक समतल सरल रेखा होता है, जो एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में ली जाने वाली बाजार कीमत को दर्शाती है। यह समतल सीधी रेखा इसीलिए है क्योंकि फर्म, उद्योग द्वारा निर्धारित बाजार कीमत को स्वीकार करती हैं बाजार द्वारा निर्धारित कीमत पर एक फर्म जितनी चाहे उतनी मात्रा बेच सकती हैं ऐसे में AR वक्र X अक्ष के समान्तर रेखा होता है और AR वक्र को कीमत रेखा कहते हैं।
प्र० 4. एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर :
कुल संप्राप्ति वक्र की प्रवणता सीमान्त संप्राप्ति द्वारा निर्धारित होती है। एक कीमत स्वीकारक फर्म में बहुत बड़ी संख्या में क्रेता और विक्रेता होने के कारण तथा वस्तु समरूप होने के कारण वस्तु की कीमत बाजार माँग और बाजार पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। ऐसे में AR वक्र X अक्ष के समान्तर रेखा हो जाता है। AR स्थिर होने से MR भी स्थिर हो जाता है तथा उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर AR = MR होता है। अतः TR वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाला सीधी रेखा होता है। यह एक उद्गम से होकर गुजरता है, क्योंकि बिक्री की मात्रा शून्य होने पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होता है।
प्र० 5. एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर :
कुल संप्राप्ति = बाजार कीमत x बेची गई मात्रा
प्र० 6. एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमान्त संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर :
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमान्त संप्राप्ति बराबर होते हैं।
प्र० 7. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर :
एक उत्पादक संतुलन में होता है जब निम्नलिखित दो शर्ते एक साथ पूरी हों-
(i) MC = MR
(ii) MC वक्र MR वक्र को नीचे से करता हो
उपरोक्त तालिका में MC = MR दो स्तरों पर हैं, इकाई 2 तथा इकाई 6 परंतु उत्पादक संतुलन में 6 ईकाइयों पर है, क्योंकि दूसरी इकाई के बाद MC कम हो रहा है जबकि उत्पादक संतुलन की दूसरी शर्त के अनुसार MC अगली इकाई पर बढ़ना चाहिए। ये दोनों शर्ते एक साथ 6 इकाई पर संतुष्ट हो रही हैं क्योंकि 6 इकाई पर
(i) MC = MR = 90
(ii) 7 इकाई पर MC = 100 जो 6 इकाई के MC = 9 से अधिक है। इसे सामने दिए चित्र में भी दर्शाया गया है। उत्पादक का MC = MR दो बिन्दु पर हैं। बिंदु A तथा बिन्दु B परंतु उत्पादक बिंदु B पर संतुलन मात्रा QE में है, क्योंकि इस बिंदु पर MC, MR को नीचे से करता है।
प्र० 8. क्या प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं है, उसकी निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
हाँ, अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं है, उसकी निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। इसमें दो स्थितियाँ संभव हैं।
(i) जब बाजार कीमत सीमान्त लागत हो- ऐसे में फर्म को ?
असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं। इसे नीचे दिए चित्र द्वारा दिखाया गया है। फर्म बिन्दु E पर संतुलन में है जहाँ (i) MR = MC है तथा (ii) MC अगली इकाई पर बढ़ रहा है। प्रति इकाई है कीमत = OP है जबकि प्रति इकाई लागत = OC है। प्रति है इकाई लाभ OP – OC = PC है। कुल लाभ PC x OQ = ar PCEM के बराबर है।
(ii) जब बाजार कीमत < सीमान्त लागत हो। ऐसे में फर्म को हानि होगी हानि > कुल स्थिर लागत
अतः फर्म उत्पादन बंद कर देगी।
यदि बाजार कीमत < सीमान्त लागत है तो इसका अर्थ है औसत परिवर्ती लागत भी नहीं प्राप्त हो रही।
प्र० 9. क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
नहीं एक लाभ अधिकतमीकरण फर्म संतुलन में तब होगी जब
(i) MR = MC
(ii) MC बढ़ रहा है।
प्र० 10. क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है, यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
नहीं, यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है तो फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती, क्योंकि स्थिर लागत की प्राप्ति को दीर्घकाल पर स्थगित किया जा सकता है, परन्तु परिवर्ती लागत ६ अल्पकाल में प्राप्त होनी चाहिए। इसीलिए जिस बिन्दु पर बाजार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है उस पर फर्म कोई उत्पादन नहीं करेगी। MC वक्र का वह भाग जो न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत के ऊपर होता है वही फर्म का पूर्ति वक्र होता है।
प्र० 11. क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
यदि दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण में बाजार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो फर्म उत्पादन बंद कर देगी। दीर्घकाल में सारी लागत परिवर्ती लागत होती है। अतः यदि औसत लागत तक भी। एक उत्पादक को प्राप्त नहीं हो रही तो वह उत्पादन कदापि नहीं करेगा।
प्र० 12. अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर :
सीमान्त वक्र का वह हिस्सा जो न्यूनतम परिवर्ती लागत के ऊपर होता है अल्पकाल में फर्म का पूर्ति वक्र होता है।
प्र० 13. दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है ?
उत्तर :
दीर्घकाल में फर्म का AC वक्र ही फर्म का पूर्ति वक्र होता है।
प्र० 14. प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर :
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म की पूर्ति में वृद्धि करती है और उसे दाईं ओर खिसका देती है। प्रौद्योगिकीय प्रगति से समान साधनों से अधिक उत्पादन किया जा सकता है।
प्र० 15. इकाई कर लगाने से एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता
उत्तर :
जब किसी वस्तु पर इकाई कर लगता है तो अल्पकाल में पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है, क्योंकि अल्पकाल काल का पूर्ति वक्र MC का न्यूनतम AVC वक्र के ऊपर का हिस्सा होता है। कर लगने पर MC तथा AVC वक्र बाँई ओर खिसकेंगे, अतः पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसकेगा।
प्र० 16. किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर :
किसी आगत की कीमत में वृद्धि से वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। और लाभ कम हो जाता है। अत: किसी आगत की कीमत में वृद्धि से पूर्ति में कमी हो जाती है।
प्र० 17. बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाजार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर :
बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाजार पूर्ति में भी वृद्धि हो जायेगी। पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जायेगा।
प्र० 18. पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर :
पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की कीमतों में परिवर्तन के कारण वस्तु की पूर्ति है की मात्रा के अनुक्रियाशीलता को मापती है।
प्र० 19. निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई कीमत 10 ₹ है।
उत्तर :
प्र० 20. निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाजार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
अतः लाभ 4 इकाई पर अधिकतम है। इस उत्पादन स्तर पर कीमत 20/4 = ₹ 5 होगी।
प्र० 21. निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत ₹10 दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
II. Q3 = TR – TC
लाभ 5 इकाइयों पर अधिकतम है अतः उत्पादक 5 इकाइयों पर उत्पादन करेगा।
प्र० 22. दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है- SS1 कॉलम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कॉलम SS2 में फर्म 2 की पूर्ति सारणी है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
उत्तर :
प्र० 23. एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कॉलम SS1 तथा कालम SS2 क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
उत्तर :
प्र० 24. एक बाजार में 3 समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाजार पूर्ति सारणी को परिकलन कीजिए।
उत्तर :
क्योंकि तीनों फर्मे समरूपी हैं बाजार पूर्ति ss1 को 3 से गुणा करके ज्ञात की जा सकती है।
प्र० 25. 10 ₹ प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 ₹ है। बाजार कीमत बढ़कर 15 ₹ हो जाती है और अब फर्म को 150 ₹ की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
उत्तर :
प्र० 26. एक वस्तु की बाजार कीमत 5 ₹ से बदलकर 20 ₹ हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
उत्तर :
प्र० 27. 10 ₹ बाजार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाजार कीमत बढ़कर 30 ₹ हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
उत्तर :
NCERT Class 12 Arthshastra व्यष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti Arthshastra)
Class 12 Arthshastra Chapters | Arthshastra Class 12 Chapter 4
NCERT Solutions for Class 12 Economics (Hindi Medium)
Part A – NCERT Solutions for Class 12 Microeconomics व्यष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti Arthshastra)
-
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 1 परिचय
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 3 उत्पादन तथा लागत
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 5 बाजार संतुलन
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार
NCERT Solutions for Class 12 Economics (Hindi Medium)
Part B – NCERT Solutions for Class 12 Macroeconomics समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Samashti Arthashastra ka Parichay)
-
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 1 परिचय
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 4 आय निर्धारण
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था
NCERT Solutions For Class 12 Arthshastra Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र
Post a Comment
इस पेज / वेबसाइट की त्रुटियों / गलतियों को यहाँ दर्ज कीजिये
(Errors/mistakes on this page/website enter here)