NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2: Nationalism in India (भारत में राष्ट्रवाद)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2: Nationalism in India (भारत में राष्ट्रवाद)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2: Nationalism in India

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NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2: भारत में राष्ट्रवाद

यहाँ हम आप के लिए लाये है हिंदी में एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान पुस्तक के इतिहास अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद का पूर्ण समाधान | कक्षा 10 के लिए ये एनसीईआरटी समाधान हिंदी माध्यम में पढ़ रहे छात्रों के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारत और समकालीन विश्व -II एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद नीचे दिए हुए है ।



संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1. व्याख्या करें

(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?
(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?
(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे?
(घ) गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया?

उत्तर
(क) आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई थी। क्योंकि

  1. औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ़ संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे।
  2. उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था।
  3. वियतनाम, चीन, बर्मा, भारत और लैटिन तथा अफ्रीकी देशों में राष्ट्रीय आंदोलन उनके सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण के कारण प्रारंभ हुए। इनमें राष्ट्रीय भावनाओं का विकास हुआ तथा उन्होंने उपनिवेशवाद को पूरे विश्व से हटा दिया।

इस कारण राष्ट्रवाद का उदय उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के कारण हुआ। उपनिवेशिक देश उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए एकजुट हुए, औपनिवेशिक शासन का विरोध किया तथा अपने देश के हित के लिए एकजुट होकर लड़े। इससे राष्ट्रवाद को पनपने में मदद मिली।
(ख) प्रथम विश्वयुद्ध 1 अगस्त 1914 ई० में मित्रराष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जापान, अमेरिका) तथा धुरी राष्ट्रों (आस्ट्रिया-हंगरी, जर्मनी, तुर्की, इटली) के मध्य प्रारंभ हुआ। इसका भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा, जो इस प्रकार है –

  1. भारतीयों का विश्व से संपर्क – इस युद्ध में सैनिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए बड़ी संख्या में भारतीयों को सेना में भर्ती किया गया। जब वे युद्ध क्षेत्रों में गए तो वहां से मिले अनुभवों का उनपर प्रभाव पड़ा, और उनमें आत्मविश्वास जागा। उन्होंने यह भी जाना कि स्वतंत्र वातावरण और लोकतंत्रीय संगठन क्या होते हैं? अत: वे ऐसी ही स्थिति भारत में भी विकसित या स्थापित करने के लिए तत्पर हो गए।
  2. आर्थिक प्रभाव – युद्ध के कारण ब्रिटेन की रक्षा व्यय बढ़ गया। इसे पूरा करने के लिए उसने अमेरिका जैसे देशों से कर्जे लिए। इन कर्जी को चुकाने के लिए भारतीयों पर सीमा शुल्क और अन्य टैक्स बढ़ा दिए। इस कारण भारतीयों पर आर्थिक दबाव बढ़ा । इसी समय कीमतें भी बढ़ जाने से भारतीयों की आम आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई। अत: आम भारतीय जनता अंग्रेजी शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलन में सम्मिलित हो गई।
  3. सांप्रदायिक एकता – ‘खलीफा’ के प्रश्न पर सभी मुसलमान अंग्रेजों के विरूद्ध हो गए। जब गांधी जी ने अली बंधुओं के सहयोग के लिए खिलाफत आंदोलन प्रारंभ किया तो हिंदु-मुस्लिम एकता को बल मिला। साथ ही 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य “लखनऊ समझौता” हो गया। इस कारण भारत में सांप्रदायिक एकता को मजबूत आधार प्राप्त हुआ और राष्ट्रवादी आंदोलन का जनाधार बढ़ा।
  4. प्राकृतिक संकट – 1918-21 ई० के मध्य भारत में अकाल, सूखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ पड़ीं जिनमें सरकार का रवैया असहयोग पूर्ण था। आम जनता महामारियों का शिकार हो रही थी, और सरकार इनसे निपटने के लिए कोई खास प्रयास नहीं कर रही थी। इस कारण भारतीय अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध एकजुट हो गए।
  5. डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट – 1915 ई० में अंग्रेजी सरकार ने क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट’ पास किया। यह एक दमनकारी एक्ट था। इसने क्रांतिकारी आंदोलन को दबाने के बजाए और तीव्र कर दिया जिससे आम जनता में भी राष्ट्रवादी भावनाएं पनपी। इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

(ग) भारत में रॉलट एक्ट का विरोध :

  1. 1918 ई० में अंग्रेजी सरकार ने ‘रॉलट’ की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की जिसका उद्देश्य भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को रोकने के लिए कानून बनाना था।
  2. इस समिति ने दो कानून बनाए जिनके द्वारा सरकार को स्वतंत्रता आंदोलन का दमन करने के लिए असीमित अधिकार मिल गए। इनका प्रमुख कानून था-सरकार राजनैतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए जेल में दो साल के लिए कैद कर सकती है। भारतीयों ने इसे ‘काला कानून’ कहा तथा इसके विरोध में हड़ताल व प्रदर्शन किए।
  3. गांधी जी ने भी इसके विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ करने का आह्वान किया। उनका यह विरोध अंततः असहयोग आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ।

(घ) 5 फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक जगह पर बाजार से गुजर रहा एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया। आंदोलनकारियों ने कुछ पुलिसवालों को थाने में बंदकर आग लगा दी। इस घटना के बारे में सुनते ही महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन रोकने का आह्वान किया। उनको लगा था कि आंदोलन हिंसक होता जा रहा था।

प्रश्न 2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर सत्याग्रह के विचार का मूल आधार सत्य की शक्ति पर आग्रह तथा सत्य की खोज करना है। गांधी जी इसके प्रबल समर्थक थे तथा उन्होंने इसकी व्याख्या इस प्रकार की

  1. अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं।
  2. प्रतिशोध की भावना या आक्रमकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।
  3. इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। उत्पीड़क शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाए सच्चाई को देखने और उसे सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  4. इस संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है। गांधी जी का अटूट विश्वास था कि अहिंसा का धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें

(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
(ख) साइमन कमीशन

उत्तर
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
संपादक
टॉइम्स ऑफ इंडिया
दिल्ली।
महोदय
आज 13 अप्रैल, 1919 ई० की शाम को जलियाँवाला बाग में भयंकर हत्याकांड हुआ जिसने विश्व मानवता को शर्मिंदा कर दिया। इसमें एक ओर अपने : प को सभ्य कहने वाली अंग्रेजी सरकार थी और दूसरी तरफ असभ्य, अशिक्षित माने जाने वाले भारतीय थे। यह घटना इस प्रकार घटी-डॉ० सैफुद्दीन किचलू और डॉ० सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरुद्ध अमृतसर में सार्वजनिक हड़ताल हो गई है तथा हर जगह जनसभाओं का आयोजन हो रहा है। |

इसी समय आज 13 अप्रैल को बैसाखी वाले दिन लोग बैसाखी के मेले में सम्मिलित होने के लिए इस बाग में बड़ी संख्या में एकत्र हुए। इसी बाग में एक शांतिपूर्ण जनसभा भी चल रही थी। अचानक जनरल डायर (जालंधर डिविजन का कमांडर) सेना की एक टुकड़ी के साथ यहाँ पहुँचा। उसने बाग के मुख्य द्वारों को बंद कर दिया तथा बिना किसी चेतावनी के निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। यह गोलीबारी 10 मिनट तक चलती रही। चूँकि लोगों को बचाव का कोई मार्ग नहीं मिला इस कारण वे इसमें फँस गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार एकत्र लोगों की संख्या 20 हजार के आस-पास थी। इसमें से 1000 लोग मारे गए हैं जबकि सरकारी आँकड़े यह संख्या 379 बता रहे हैं।

इस घटना की जानकारी जैसे ही लोगों को प्राप्त हुई उनमें सरकार के विरुद्ध आक्रोश और गुस्सा भड़क उठा है तथा अमृतसर तथा पंजाब के अन्य भागों में तनाव का माहौल बन गया है। अत: सरकार ने स्थिति पर काबू पाने के लिए सारे पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया है।

अतः मैं निवेदन करती हूँ कि इस समाचार को अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छापे, जिससे संपूर्ण विश्व और भारतवर्ष को इसकी जानकारी मिले । जो अंग्रेजी सरकार जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक कहकर सम्मानित कर रही है उसको उसके इस अमानवीय कृत्य के लिए दंडित किया जाए।
जय हिंद
भवदीया
क ख ग
(ख) साइमन कमीशन
संपादक
नवजागरण
कलकत्ता।
महोदय,
3 फरवरी, 1928 ई० को इंग्लैंड की सरकार ने सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्यों का एक कमीशन भारत भेजा। इसके मुख्य उद्देश्ये भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना तथा उसके बारे में सुझाव देने हैं। इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं है। अतः इस कमीशन का घोर विरोध होने लगा है। इसको काले झंडे दिखाए जा रहे हैं और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए जा रहे हैं।

साइमन विरोधी प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपतराय कर रहे हैं। इस कमीशन में जहाँ कोई भी भारतीय सदस्य नहीं हैं वहीं इसकी रिपोर्ट अपूर्ण और अव्यावहारिक है। इसमें औपनिवेशिक साम्राज्य का उल्लेख नहीं किया गया है और न ही इसमें अधिराज्य की स्थिति को स्पष्ट किया गया है। इसमें केंद्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना का कोई उल्लेख नहीं किया गया।

कमीशन ने व्यस्क मताधिकार की मांग को भी अव्यावहारिक बताकर ठुकरा दिया है। अत: यह रिपोर्ट भारतीयों को संतुष्ट नहीं कर पा रही है। इसी कारण चारों ओर इसका विरोध हो रहा है। इस रिपोर्ट द्वारा सांप्रदायिकता को जो बढ़ावा दिया गया है यह सरकार के भारत के प्रति गलत उद्देश्यों को उजागर करता है।

अतः मैं आपसे निवेदन करती हूँ कि इस रिपोर्ट को आप अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छापकर भारतीयों की भावनाओं पर आघात करने वाली अंग्रेजी सरकार की आलोचना करें।
जय हिंद
भवदीया
क ख ग

प्रश्न 4. इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तर भारत माता और जर्मेनिया की छवि की तुलना

(i) जर्मेनिया की छवि जर्मन राष्ट्र की प्रतीक थी, जबकि भारत माता की छवि भारत राष्ट्र की छवि थी।
(ii) दोनों ही छवियों ने राष्ट्रवादियों को प्रेरित किया, जिन्होंने अपने-अपने देशों को एक करने और उदारवादी राष्ट्र का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए कार्य किया।
(iii) भारत में निर्मित भारत माता की छवि में धार्मिक तत्वों की महत्त्वता अधिक थी। परंतु जर्मनिया की छवि में मानवतावादी तत्व अधिक थे।
(iv) भारत माता एक हिंदू देवी के रूप में त्रिशूल (हथियार) और ध्वज लिए खड़ी है। यह धार्मिक गुण एक राष्ट्र की अवधारणा को प्रकट करता है जिसमें हिंदुओं को अपने दूसरी जाति और धर्म जैसे मुसलमान, ईसाई, आदि भाइयों के साथ हिल-मिलकर रहने को कहा गया है।

भारत माता की छवि को संकीर्ण सोच के लोगों ने सांप्रदायिक रूप देना शुरू कर दिया, जिसके कारण ये छवि विवादित हो गई। इसके विपरीत जर्मनिया की छवि ने ऐसे किसी विवाद को जन्म नहीं दिया।

प्रश्न 1. 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए?

उत्तर 1921 में असहयोग आंदोलन में भारत के विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं। आंदोलन में शामिल प्रमुख सामाजिक समूह निम्नलिखित थे-शिक्षित मध्यम वर्ग, भारतीय दस्तकार और मजदूर, भारतीय किसान, पूँजीपति वर्ग, जमींदार वर्ग तथा व्यापारिक वर्ग। सभी ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया।

  1. शिक्षित मध्यम वर्ग – शहरों में शिक्षित मध्यम वर्ग ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने इस्तीफे दे दिए। वकीलों ने मुकदमें लड़ने बंद कर दिए। शिक्षित वर्ग आंदोलन में शामिल इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने देखा कि उनके बराबर पढ़े-लिखे अंग्रेज उनके अफसर बन जाते थे। भारतीय लोगों को वेतन भी अंग्रेजों के मुकाबले कम मिलता था। वे केवल क्लर्क ही पैदा होते थे और क्लर्क ही मर जाते थे। इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण शिक्षित वर्ग अंग्रेज सरकार का विरोधी था।
  2. व्यापारी वर्ग – बहुत से स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इनकार कर दिया। अंग्रेज सरकार की गलत नीतियों के कारण व्यापारी वर्ग पूरी तरह बरबाद हो चुका था। अंग्रेज सस्ते दामों पर कच्चा माल ब्रिटेन ले जाते थे और वहाँ से तैयार माल लाकर अधिक कीमत पर भारत में बेचते थे। भारतीय व्यापारियों को इससे बहुत नुकसान होता था।
  3. सामान्य जनता – असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन बन गया था क्योंकि आम जनता ने विदेशी कपड़ों तथा चीजों का बहिष्कार किया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। आम जनता अंग्रेजों के अत्याचार से दुखी हो चुकी थी इसलिए उसने बढ़-चढ़कर असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
  4. बाग़ान मजदूर – गांधी जी के विचार और स्वराज की अवधारणा जब मजदूरों को समझ में आई तो वे भी बाग़ानों की चारदीवारियों से बाहर निकलकर राष्ट्रीय आंदोलन में सम्मिलित हो गए। वे अपने अधिकारियों की अवहेलना करने । लगे। वे बागानों को काम छोड़कर अपने घरों को लौट गए क्योंकि उनको लगने लगा कि गांधी राज आते ही सबको जमीन मिल जाएगी।

प्रश्न 2. नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
उत्तर 31 जनवरी 1930 को गांधी जी ने इरविन को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इसमें सबसे महत्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते थे। यह भोजन का अभिन्न हिस्सा था। इसलिए नमक पर कर को ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनकारी पहलू बताया था। 11 मार्च तक उनकी माँगें नहीं मानी गई तो 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 56 स्वयंसेवकों के साथ नमक यात्रा शुरू की। यह यात्रा साबरमती से दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। 6 अप्रैल को वे दाँडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालदर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था ।

यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था

  1. इस बार लोगों को न केवल अंग्रेजों को सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किए।
  2. यह यात्रा साबरमती से 240 किलोमीटर दूर दाँडी में जाकर समाप्त होनी थी। गांधी जी की टोली ने 23 दिनों तक हर रोज लगभग 10 मील का सफर तय किया। गांधी जी जहाँ भी रूकते हजारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधी जी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और कहा कि लोग अंग्रेजों की शांतिपूर्ण अवज्ञा करें यानि कि अंग्रेजों को कहा। न मानें।

इस प्रकार गांधी जी की नमक यात्रा उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक बन गई।

प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता?
उत्तर सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में अनेक औरतों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। गांधी जी की बातों को सुनने के लिए औरतें अपने घरों से बाहर आ जाती थीं।

मैंने भी इस समय अनेक जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की, मैं भी अन्य महिलाओं के साथ जेल गई। इस आंदोलन के दौरान मैंने यह अनभव किया कि शहरी क्षेत्रों में सभी वर्गों की महिलाओं ने भाग लिया परंतु इसमें उच्च जातियों की महिलाएं अधिक थीं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न किसान परिवार की महिलाओं ने अधिक भाग लिया।

इस दौरान मैंने पाया कि सभी राष्ट्रसेवा को अपना प्रथम कर्तव्य मानने लगे। हम महिलाओं में यह आत्मविश्वास जागा कि वे घर के अतिरिक्त राष्ट्रसेवा का दायित्व भी निभा सकती हैं।

परंतु कांग्रेस ने लंबे समय तक महिलाओं को उच्च पद नहीं दिए। उन्हें आंदोलनों में केवल प्रतीकात्मक उपस्थिति तक ही सीमित रखा।

प्रश्न 4. राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे?
उत्तर पृथक चुनाव प्रणाली का अभिप्राय ऐसे चुनाव क्षेत्रों से है जिनका निर्माण धर्म के आधार पर किया जाए अर्थात् एक धर्म का व्यक्ति केवल अपने धर्म के व्यक्ति को ही वोट देगा। अंग्रेजों ने भारत में फूट डालने के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण किया। अपने इस कार्य में अंग्रेज सरकार काफी हद तक सफल रही क्योंकि पृथक निर्वाचन क्षेत्रों पर भारतीय आपस में बँट गए

  1. कांग्रेस पृथक निर्वाचन पद्धति का विरोध कर रही थी। पहले अंग्रेजों ने केवल हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही थी किंतु बाद में जब हरिजनों को भी हिंदुओं से अलग करके पृथक निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटने की बात कही जाने लगी तो कांग्रेस ने इसका खुलकर विरोध किया।
  2. दलितों के उद्धार में लगे बी.आर. अम्बेडकर दलितों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र चाहते थे। उनका मानना था कि उनकी सामाजिक अपंगता केवल राजनीतिक सशक्तिकरण से ही दूर हो सकती है।
  3. भारत को मुस्लिम समुदाय भी पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के पक्ष में था। मुहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि यदि मुसलमानों को केंद्रीय सभा में आरक्षित सीटें दी जाएँ और मुस्लिम बहुल प्रातों में मुसलमानों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए तो वे मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग छोड़ने के लिए तैयार हैं।

इस प्रकार इन बातों से पता चलता है कि पृथक निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर भारतीयों में फूट पड़ गई थी। कांग्रेस पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के खिलाफ थी जबकि दलित वर्ग तथा मुस्लिम वर्ग इसके पक्ष में थे। जिन्ना और अम्बेडकर जैसे नेता चाहते थे कि पृथक निर्वाचन पद्धति को लागू किया जाए जिससे दलितों और मुसलमानों को राजनीति में विशिष्ट स्थान प्राप्त हो सके जबकि गांधी जी इसके विरुद्ध थे। उनका कहना था कि पृथक निर्वाचन पद्धति से भारत के विभिन्न धर्मों के लोगों में रोष उत्पन्न होगा, उनकी एकता समाप्त हो जाएगी। इसलिए वे इसे स्वीकारने के पक्ष में नहीं थे।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. कीनिया के उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का अध्ययन करें। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन की तुलना कीनिया के स्वतंत्रता संघर्ष से करें।
उत्तर कीनिया की खोज सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने की। 1498 में वास्को-डी-गामा मोम्बासा पहुँचा। इसके बाद समुद्री रास्ते से पुर्तगालियों ने कीनिया के साथ मसालों का व्यापार शुरू किया। 17वीं शताब्दी में ब्रिटिश, डच तथा अरबों ने भी इस क्षेत्र में आना शुरू किया और 1730 तक इन यूरोपीय शक्तियों ने पुर्तगालियों को कीनिया से बाहर कर दिया। 1885 में जर्मनों ने इस पर कब्जा किया और 1890 में इसके तटीय प्रदेश ब्रिटेन को सौंप दिए । अंग्रेजों ने कीनिया-यूगांडा रेलवे का निर्माण किया। इसका कुछ स्थानीय जनजातियों ने विरोध किया। 20वीं सदी के आरंभ में ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय किसानों ने कॉफी और चाय की खेती करनी प्रारंभ कर दी। 30,000 श्वेत लोग यहाँ आकर बस गए और लाखों किकियू (स्थानीय जनजाति के लोग) भूमिहीन हो गए।

1952 से 1959 तक कीनिया आपातकालीन स्थिति में रहा तथा यहाँ माऊ-माऊ विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ पूरे जोरशोर से चला। यूरोप की गोरी जातियाँ कीनिया के अश्वेत लोगों को निम्न कोटि का मानती थी। इस सिद्धांत की तीव्र प्रतिक्रिया हुई और कीनिया में राष्ट्रवाद का प्रसार होने लगा। राष्ट्रवाद को मुख्य प्रेरणा जातीय समानता के सिद्धांत से मिली। पाश्चात्य संपर्क और पाश्चात्य साहित्य ने भी कीनिया के प्रबुद्ध लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जगाई। किंतु 1956 तक माऊ-माऊ विद्रोह पूरी तरह कुचल दिया गया।

इस विद्रोह से यह सिद्ध हो चुका था कि कीनिया के लोग राष्ट्रवाद की भावना से भर चुके थे और उन्हें अधिक समय तक गुलाम नहीं बनाया जा सकता था।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई अफ्रीकी देशों में स्वतंत्रता की लहर आई । विश्व युद्ध के कारण उपनिवेशी शक्तियाँ कमजोर पड़ चुकी थीं। परिणामस्वरूप कीनिया में भी 1957 में पहले प्रत्यक्ष चुनाव कराए गए। अंग्रेजों ने सोचा था कि वहाँ उदारवादियों को सत्ता सौंप दी जाएगी। किंतु ‘जीमो केनियाटा’ की पार्टी कीनिया अफ्रीकन नेशनल यूनियन (KANU) ने अपनी सरकार बना ली और 12 दिसम्बर 1963 को कीनिया आजाद हो गया।

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन तथा कीनिया के स्वतंत्रता संघर्ष की तुलना

समानताएँ:

  1. दोनों ही देशों का साम्रज्यवादी शक्तियों ने शताब्दियों तक शोषण किया। अतः दोनों ही आर्थिक पिछड़ेपन और सामाजिक रूढ़िवादिता से पीड़ित रहें। दोनों ही देशों की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दुर्बलता का लाभ उठाकर यूरोपीय शक्तियों ने यहाँ उपनिवेशवाद और ‘नव-उपनिवेशवाद’ का प्रसार किया।
  2. दोनों ही देशों में राष्ट्रवाद की लहर फैली। दोनों ही देश उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद के विरोधी थे। दोनों देशों के । लोगों ने पूरी ताकत से उपनिवेशवादी शक्तियों का विरोध किया और अंत में इसमें सफलता पाई।
  3. अपने आर्थिक-सामाजिक विकास के लिए दोनों ही महाद्वीप विदेशी सहायता लेने के लिए विवश हो गए। अतः सहायता देने वाली शक्तियों को सहायता प्राप्त देशों में अपना राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने के पर्याप्त अवसर मिलते रहते हैं।

असमानताएँ:

  1. भारत का राष्ट्रवाद कीनिया के मुकाबले अधिक परिपक्व था। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन में समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया। जातीय, भाषायी तथा धार्मिक आधार पर विभाजित सभी वर्ग राष्ट्रीयता के प्रश्न पर एकजुट हो गए। जबकि कीनिया में राष्ट्रीय आंदोलन स्थानीय जनजातियों द्वारा ही चलाए गए। जब इन स्थानीय जनजातियों को अपनी रोजी-रोटी छिनती नजर आई तो इन्होंने विद्रोह कर दिया। इनके विद्रोहों में वो एकता दिखाई नहीं देती जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विद्रोहों में दिखती है।
  2. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन अधिकांशतः अहिंसक तथा शांतिपूर्ण रहा केवल कुछ अपवादों को छोड़कर क्योंकि यहाँ राष्ट्रवादी नेता सुनियोजित कार्यक्रम चलाते थे। उनके पीछे राष्ट्रवाद की एक लंबी परंपरा की तथा महात्मा गांधी जैसे चमत्कारिक व्यक्तित्व के नेता थे जो अहिंसा के पुजारी थे। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो भारत का राष्ट्रीय आंदोलन उतना उग्र नहीं था जितना कीनिया का था। रंगभेद और कबीलेवाद की समस्याओं का सामना कीनिया को करना पड़ा। कीनिया के नेता भारतीय नेताओं की तुलना में अधिक उग्र रहे।
  3. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का कारण यहाँ के शिक्षित वर्ग द्वारा राष्ट्रीय चेतना का प्रसार करना था। यहाँ के प्रबुद्ध वर्ग ने फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति आदि के समानता, स्वतंत्रता तथा न्याय जैसे विचारों को आम जनता तक पहुँचाया। भारत में शिक्षा का प्रसार कीनिया के मुकाबले अधिक था। इसलिए कीनिया में स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे विचारों को फैलने में काफी समय लगा। वहाँ राष्ट्रवादी विचार देर से फैले।

इस प्रकार हमने देखा कि भारत और कीनिया के स्वतंत्रता संघर्ष में काफी समानताएँ थीं किंतु साथ ही काफी असमानताएँ भी थीं।

अतिरिक्त प्रश्न (परीक्षा-उपयोगी)

अति-लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

1 अंक वाले प्रश्न:

1.  रोलेट एक्ट कब लागू हुआ ?

उत्तर - 1919 में |

2.  गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब लौटे ?

उत्तर - 1915 |

3.  “जलियावाला बाग हत्याकाण्ड कब और कहाँ हुआ ?

उत्तर - 13 अप्रैल 1919 में , अमृतसर

4.  ‘इनलैण्ड एमिगे्रशन एक्टक्या था ?

उत्तर - बगानों में काम करने वाले मजदूरों को इस एक्ट के तहत बिना इजाजत बगान से बाहर जाने की अनुमती नहीं थी ।

5.    गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन कब और किस घटना से वापस लिया ?

उत्तर - 1922 में , चौरीचैरा की घटना ने गाँधी जी को बहुत ही विक्षुब्ध किया जिसमें भारतीय क्रांतिकारियों ने चैरीचैरा पुलिस स्टेशन में आग लगा दी ।

7.    खिलाफत आंदोलन कब और किसके द्वारा शुरू किया गया ?

उत्तर - 1919 में शौकत अली और मुहम्मद अली ने।

प्रश्न - काग्रेस में समाजवादी विचारधारा लाने वाले दो नेताओं का नाम बताइए।

उत्तर -

1.    जवाहर लाल नेहरू

2.    सुभाष चन्द्र बोस

प्रश्न 8: गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन कब और किस घटना से वापस लिया ?

उत्तर: 1922 में, चौरीचौरा की घटना ने गांघी जी को बहुत ही विक्षुब्ध किया जिसमें भारतीय क्रांतिकारियों ने चौरीचौरा पुलिस स्टेशन में आग लगा दी | कई पुलिस वाले मारे गए |

प्रश्न 9: स्वराज पार्टी का गठन किसने किया ?

उत्तर :

प्रश्न 10: पिकेटिंग का क्या अर्थ है ?

उत्तर : प्रदर्शन या विरोध का एक ऐसा स्वरुप जिसमें लोग किसी दुकान, फैक्ट्री, दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते हैं |

प्रश्न 11: पूर्ण स्वराज की माँग कब और कहाँ की गई ?

उत्तर : पूर्ण स्वराज की माँग 1929 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में काग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में की |

प्रश्न 12: डॉo अम्बेडकर ने दलितों के लिए कौन सी एसोसिएशन को संगठित किया और कब ?

उत्तर : डॉ० आंबेडकर में 1930 में दलितों के लिए दमित वर्ग एसोसिएशन बनाया |

प्रश्न 13: वंदेमातरम् गीत के रचयिता कौन थे ?

उत्तर : बंकिम चन्द्र चटर्जी |

प्रश्न 14: वैध्य शासन व्यवस्था का क्या अर्थ है ?

उत्तर :

प्रश्न 15: खिलाफत आन्दोलन कब और किसके द्वारा शुरू किया गया ?

उत्तर: खिलाफत आन्दोलन 1919 में दो भाइयों शौकत अली और मुहम्मद अली के द्वारा शुरू किया गया |

प्रश्न 16: भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की स्थापना कब और किसने की ?

उत्तर : 1885 ई० में ए० ओ० ह्युम ने किया था |

प्रश्न 17: 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा लिया गया कोई एक महत्वपूर्ण फैसला बताइए |

उत्तर : इस अधिवेशन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन चलाने का फैसला लिया गया |

प्रश्न 18 : सत्याग्रह का अर्थ बताइए |

उत्तर : सत्याग्रह का अर्थ सत्य के लिए आग्रह करना| यदि उद्देश्य सच्चा है और अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीडन के खिलाफ मुकाबला करने के लिए शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है |

प्रश्न 19: बेगार का अर्थ बताइए |

उत्तर : बिना किसी पारिश्रमिक (मेहनताना) के किसी के काम करवाना बेगार कहलाता है |

प्रश्न 20 : गिरमिटिया मजदुर किसे कहते हैं ?

उत्तर : औपनिवेशिक शासन के दौरान बहुत सारे लोगों को काम के लिए फिजी, गुयाना, वेस्टइंडीज आदि स्थलों पर ले जाया गया जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा जाने लगा | जिस अनुबंध के अंतर्गत उन मजदूरों को बाहर ले जाया जाता था उसे गिरमिट कहते थे |

प्रश्न 21 : पूना पैक्ट में किन दो नेताओं के बीच समझौता हुआ ?

उत्तर : डॉ० भीम राव अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच ?

प्रश्न - महात्मा गाँधी द्वारा किसानों के पक्ष में आयोजित किए गए दो मुख्य सत्याग्रहों का नाम बताइए।

उत्तर -

1. गाँधी जी ने बिहार के चम्पारण के किसानों के सहयोग से सत्याग्रह प्रारम्भ किया और किसानों को उग्र खेती प्रणाली के विरूद्ध प्रेरित किया ।

2. गाँधी जी ने गुजरात के खेडा जिला के किसानों के पक्ष में सत्याग्रह किया जो फसल न होने के कारण , प्लेग और महामारी के कारण भू राज्स्व नहीं दे सके थे ।

प्रश्न - गदर पार्टी के प्रमुख नेताओं के नाम लिखिए और राष्टीªय आंदोलन में गदर पार्टी की क्या भूमिका थी ?

उत्तर - गदर पार्टी के प्रमुख नेताओं के नाम थे रासबिहारी बोस , लाला हरदयाल , मैडम कामा और राजा महेन्द्र प्रताप ।

1.  इस पार्टी के नेताओं ने विदेशों में अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध जनमत तैयार किया ।

2.  गदर पार्टी के प्रमुख नेताओं ने रास्ट्रीय आंदोलन में बढ चढ कर भाग लिया

प्रश्न - भारतीय नेताओं के 1919 में राॅलेक्ट एक्ट के विरोध करने के क्या कारण थे ?

उत्तर -

1.  इस कानून ने अंग्रेजी सरकार को यह शक्ति दे दी थी कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये जेल में डाल दे ।

2.  उसके लिए किसी वकिल दलील और अपील की अनुमति नहीं थी ।

3.  यह कानून भारतीयों को उत्पिडित करने के उदेश्य से लाया गया था ।

4.  अंग्रेजी शासन राॅलेक्ट एक्ट लाकर स्वतंत्रता संग्राम की लहर को दबाना चाहती थी ।

प्रश्न: भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध क्यों किया ?

उत्तर - भारतीयों द्वारा साइमन कमीशन का विरोध किए जाने के निम्नलिखित कारण थें:-

1.    इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था ।

2.    इस कमीशन की धाराओं में भरतीयों को स्वराज्य दिए जाने का कोई जिक्र नहीें था।

प्रश्न - अंगे्रजो द्वारा साइमन कमीशन को लाने के क्या उदेश्य थे ?

उत्तर - अंगे्रजो द्वारा साइमन कमीशन को लाने के निम्नलिखित  उदेश्य थे:-

1.    1919 के गर्वनमेंट आॅफ इंडिया एक्ट की समीक्षा की जा सके ।

2.    यह सुझाव दिया जा सके कि भारतीय प्रशासन में कौन से नए सुधार लाया जा सके

3.    भारत में पैदा तत्कालीन राजनीतिक गतिरोध को दूर किया जा सके ।

प्रश्न - पूना पेक्ट क्या हैं ? इस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखों ।

उत्तर -  महात्मा गांधी ने ब्रिट्रिश निर्णयों के विरूद्ध जेल में रहते हुए अनिश्चितकालीन उपवास  रख लिया था जिससे सारे देश में हलचल मच गई थी । अपने प्रिय नेता के प्राणरक्षा के लिए मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं ने डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर से दलितों के पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मार्ग छोड़ देने की आग्रह की । इस विषय पर दोनो पक्षों में 25 सितम्बर 1932 को एक समझौता हुआ जिसे पूना पेक्ट कहा गया ।   

प्रश्न - गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फेसला क्यों किया ?

उत्तर - गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लिए जाने के निम्नलिखित कारण थे:-

1. चैरी - चैरा के घटना से गाँधीजी काफी परेशान हो उठे जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि लोगों को वे  अब शांत नहीं रख सकेगें। 

2. वे सोचने लगे कि यदि लोग हिंसक हो जाएगें तो अग्रेंजी सरकार भी उत्तेजित हो जाएगी जिससे र्निदोष लोग भी मारे जाएगें ऐसे मेे उन्होनें 1922 मेें इस आंदोलन को वापस लेना ही उचित समझा ।

प्रश्न - खिलाफत और असहयोग आंदोलन से क्या तात्पर्य हैं ? इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं के नाम लिखों ।

उत्तर -

खिलाफत आन्दोलन: खिलाफत आंदोलन दो अली भइयों (मोहम्द अली और शौकत अली) ने 1919 में शुरू किया क्योंकि मित्र राष्ट्रों ने तुर्की को पराजित करके उसकी बहुत सी बस्तियों को आपस मे बडे अन्यायपूर्ण ढंग से बाँट लिया था । कांगे्रस के नेताओ ने इन अली भइयों का पूर्ण साथ दिया ।

असहयोग आंदोलन: सन् 1920 में  अंग्रजी सरकार के अत्याचार पूर्ण व्यवहार अन्यायपूर्ण बर्ताव का विरोध करने के लिए कांग्रेस ने महात्मा गाँधी और मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में एक अन्य आंदोलन शुरू किया जिसे असहयोग आंदोलन के नाम से जाना गया । इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं के नाम:- मोहम्द अली और शौकत अली , महात्मा गाँधी और मोतीलाल नेहरू आदि थें ।

प्रश्न - प्रथम विश्व युद्ध ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया ?

उत्तर - प्रथम विश्व युद्ध ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में निम्न योगदान दिया:

1. प्रथम विश्व युद्ध 1914-18   तक चला । इस काल में भरतीय राष्टीªय आंदोलन को गति मिली । साथ ही साथ राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा ।

2. अंग्रजोें ने भरतीयों से पूछे बिना भारत को युद्ध में एक पार्टी बना दिया साथ ही साथ भारत के संसाधनों का अपने हित के लिए धडल्ले से प्रयोग किया इससे भारतीयों में अंग्रेजो के प्रति विरोध करने की जज्बा पैदा हुआ ।

3. यद्यपि मुस्लिम लीग अंग्रजी सरकार की बांदी थी परन्तु प्रथम महायुद्ध के घटनाओं के कारण इसे कांग्रेस के समीप आना पड़ा जिससे राष्ट्रीय आंदोलनों में काफी सहायता मिली ।

4. इस महायुद्ध के कारण मुस्लिम विशेषकर मुस्लिम लीग अंग्रेजों के विरूद्ध हो गये क्योंकि महायुद्ध की समाप्ति के बाद मित्र राष्ट्रो ने तुर्की के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया ।

प्रश्न - सविनय अवज्ञा आन्दोलन की चार सीमाओं का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर - सविनय अवज्ञा आन्दोलन की चार सीमाँए निम्नलिखित हैं:

1. जब सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ उस समय समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था ।

2. कांग्रेस से कटे हुए मुस्लमानों का एक तबका किसी संयुक्त संर्घष के लिए तैयार नहीं था ।

3. भारत के विभिन्न धार्मिक नेताओं और जाति समूहों के नेताओं ने अपनी आनी माँगे शुरू कर दी जिससे सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति इन्होने कोई खास रूचि नहीं दिखाई ।

4. धीरे धीरे हिंदू और मुस्लमानों के बीच संबंध खराब होत#2375; गये कई शहरों में सांप्रादायिक टकराव और दंगे हुए जिससे दोनों समुदायों के बीच फासले बढते गये । 

प्रश्न - काँग्रेस के तीन गरम दल के नेताओं का नाम लिखो ।

उत्तर:

1.    बाल गंगाधर तिलक ।

2.    लाला लाजपत राय ।

3.    विपिन चन्द्र पाल ।

प्रश्न: पाकिस्तान की माँग मुस्लिम लिग द्वारा कब और कहाँ रखी गई ?

उत्तर: 1940 0 में अपने लाहौर अधिवेशन में

प्रश्न: अंग्रेजों के विरूद्ध आजाद हिन्द फौज का गठन किसने किया ?

उत्तर: नेता जी सुभाष चद्र बोस ने ।

प्रश्न - लोगों को एकजुट करने के लिए राष्ट्रवादी नेता किस प्रकार के चिन्हो और प्रतीको का प्रयोग कर रहे थे ?

उत्तर - 

राष्ट्रवादी नेताओं ने भारत के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के लिए विभिन्न प्रतीको और चिन्हो का प्रयोग कर रहे थे ।

1. बंगाल में  स्वदेशी आंदोलन के दौरान एक तिरंगा झंडा ( हरा पीला लाल ) तैयार किया गया । जिसमें बिट्रिश भारत के आठ प्रंतो का प्रतिनिधित्व करते कमल के आठ फूल और हिंदूओ व मुस्लमानों का प्रतिनिधित्व करता एक अर्धचंद्र दर्शाया गया था ।

2. गाँधीजी ने भी स्वराज्य का झंडा तैयार कर लिया यह भी (सफेद हरा लाल ) रंग का तिरंगा था । इसके मध्य में गाँधीवादी प्रतीक चरखों को महत्व दी गई जो स्वावलंबन का प्रतीक था ।

प्रश्न : मोहम्मद अली जिन्ना की क्या माँग थी ?

उत्तर : उनका कहना था कि अगर मुसलमानों को केन्द्रीय सभा में आरक्षित सीटें दी जाएँ और मुस्लिम बहुल प्रांतों (बंगाल और पंजाब) में मुसलमानों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए तो वे मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की माँग छोड़ने के लिए तैयार हैं।

प्रश्न - सत्याग्रह का मूलमंत्र क्या था ?

उत्तर:

(i) अहिंसा के द्वारा किसी को भी जीता जा सकता है |

(ii) संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है।

(iii) आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है |

(iv) उत्पीड़क से मुकाबला के लिए शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है |

(v) गांधीजी का विश्वास था की अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र

में बाँध सकता है।

प्रश्न - सभी सामाजिक समूह स्वराज की अमूर्त अवधारणा से प्रभावित नहीं थे | क्यों ?

उत्तर : सभी सामाजिक समूह स्वराज की अमूर्त अवधारण से प्रभावित नहीं थे यह बात बिलकुल सत्य है जिसके निम्नलिखित कारण थे |

(i) देश के हर वर्ग और सामाजिक समूहों पर उपनिवेशवाद का एक जैसा असर नहीं था | उनके अनुभव भी अलग-अलग थे |

(ii) अलग-अलग समूहों के लिए स्वराज के मायने भी भिन्न थे और सबके अपने हित थे |

(iii) बहुत से पढ़े-लिखे भारतीय और अमीर लोग सीधे तौर पर अंग्रेजों से जुड़े थे, जिनके अपने-अपने हित थे | उनका स्वराज व स्वतंत्रता के प्रति रुख उदासीन था |

(iv) किसानों की अपनी समस्याएँ थी, जबकि अंग्रेजी सेना में शामिल भारतीय सिपाहियों की भी अपनी समस्याएँ थी |

(v) स्वराज आन्दोलन के लिए इन समूहों को खड़ा करना एक बहुत बड़ी समस्या थी | इनके एकता में भी टकराव के बिंदु निहित थे |   

प्रश्न: गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के लिए नमक को ही मुख्य हथियार क्यों बनाया ?

उत्तर : गाँधी जी जानते थे कि नमक एक ऐसी वस्तु है जो भारत के सभी लोग उपयोग करते हैं चाहे वे अमीर हो गरीब हो|

प्रश्न : गाँधी इरविन समझौता क्या था ?

उत्तर : 5 मार्च 1931 को गाँधी जी ने इरविन के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए | जिसमें गाँधी जी ने लंदन में होने वाले दुसरे गोलमेज सम्मलेन में हिस्सा लेने पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी | इससे पहले कांग्रेस गोलमेज सम्मलेन का बहिष्कार कर चुकीं थी | इसके बदले ब्रिटिश सरकार राजनितिक बंदियों को रिहा करने पर राजी हो गई | गाँधी और इरविन के बीच इस समझौते को गाँधी इरविन समझौता कहा जाता है |

प्रश्न : किन दो उद्योगपतियों के नेतृत्व में उद्योगपतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध किया ?

उत्तर : पुरुषोत्तम दास, ठाकुर दास और जी.डी. बिडला |

प्रश्न : फिक्की की स्थापना कब हुई ?

उत्तर : फिक्की की स्थापना 1927 ई० में हुई |

प्रश्न : भारतीय व्यापारी और उद्योगपतियों ने औपनिवेशिक नीतियों का विरोध क्यों किया ? उनकी क्या माँगे थी ?

उत्तर : पहले विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भारी मुनाफा कमाया था और वे ताकतवर हो चुके थे । अपने कारोबार को फैलने के लिए उन्होंने ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी।

उनकी माँगे निम्नलिखित थी -

(i) वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे |

(ii) रुपया-स्टर्लिंग विदेशी विनिमय अनुपात में बदलाव चाहते थे |

प्रश्न : भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने औपनिवेशिक नीतियों के विरोध में कौन-कौन से कदम उठाए |

उत्तर : भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने औपनिवेशिक नीतियों के विरोध में निम्नलिखित कदम उठाए :

(i) व्यावसायिक हितों को संगठित करने के लिए उन्होंने 1920 में भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस (इंडियन इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल कांग्रेस) और 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (पेफडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑप़फ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री-फिक्की) का गठन किया।

(ii) उद्योगपतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध किया | (ii) पहले सिविल नाफरमानी आंदोलन का समर्थन किया।

(iii) उन्होंने आंदोलन को आर्थिक सहायता दी और आयातित वस्तुओं को खरीदने या बेचने से इनकार कर दिया।

(iv) ज्यादातर व्यवसायी स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में देखते थे जहाँ कारोबार पर औपनिवेशिक पाबंदियाँ नहीं होंगी और व्यापार व उद्योग निर्बाध ढंग से फल-फूल सकेंगे।

प्रश्न : भारतीय उद्योगपतियों द्वारा व्यावसायिक हितों को संगठित करने के लिए किन दो व्यावसायिक संगठनों का गठन किया ?

उत्तर :

(i) भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस (इंडियन इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल कांग्रेस) का 1920 में और

(ii) 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (पेफडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑप़फ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री-फिक्की)

प्रश्न : गोलमेज सम्मलेन के विफलता के बाद व्यावसायिक संगठनों का उत्साह मंद क्यों पड़ गया ?

उत्तर : गोलमेज सम्मलेन के विफलता के बाद व्यावसायिक संगठनों का उत्साह मंद पड़ने के निम्नलिखित कारण थे |

(i) उन्हें उग्र गतिविधियों का भय था।

(ii) वे लंबी अशांति की आशंका से भग्न (आशंकित) थे |

(iii) कांग्रेस के युवा सदस्यों में समाजवाद के बढ़ते प्रभाव से डरे हुए थे।

प्रश्न : औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में नागपुर के अलावा और कहीं भी बहुत बड़ी संख्या में हिस्सा नहीं लिया। कारण बताइए |

उत्तर : उस समय बड़े-बड़े उद्योगपति कांग्रेस के नजदीक आ रहे थे, जिससे मजदुर वर्ग कांग्रेस से छिटकने लगे थे | मजदूर कांग्रेस से देश में समाजवादी नीतियाँ चाहते थे परन्तु उद्योगपति कांग्रेस के युवा समाजवादी नेताओं के प्रभाव से डरे हुए थे | कांग्रेस अपने कार्यक्रम में मजदूरों की माँगों को समाहित करने में हिचकिचा रही थी। कांग्रेस को लगता था कि इससे उद्योगपति आंदोलन से दूर चले जाएँगे और साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों में फूट पडे़गी।

प्रश्न : सविनय अवज्ञा आन्दोलन (नमक सत्याग्रह आन्दोलन) में औरतों की भूमिका का वर्णन कीजिए |

Or (अथवा)

राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान बहुत सारी औरतें अपनी जिंदगी में पहली बार अपने घर से निकलकर सार्वजनिक क्षेत्र में आई थीं। इस कथन की पुष्टि कीजिए |

उत्तर : इस आन्दोलन में औरतों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया। गांधीजी के नमक सत्याग्रह के दौरान हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थीं। उन्होंने जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहुत सारी महिलाएँ जेल भी गईं। शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएँ सक्रिय थीं जबकि ग्रामीण इलाकों में संपन्न किसान परिवारों की महिलाएँ आंदोलन में हिस्सा ले रही थीं। गाँधी के आह्वान के बाद औरतों को राष्ट्र की सेवा करना अपना पवित्र दायित्व दिखाई देने लगा था।

प्रश्न : औरतों के विषय में गाँधी जी का क्या मानना था ?

उत्तर: गाँधीजी का मानना था कि घर चलाना, चूल्हा-चौका सँभालना, अच्छी माँ व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरत का असली कर्त्तव्य है। इसीलिए लंबे समय तक कांग्रेस संगठन में किसी भी महत्त्वपूर्ण पद पर औरतों को जगह देने से हिचकिचाती रही। कांग्रेस को उनकी प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही दिलचस्पी थी।

 

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History in Hindi

Get here all NCERT Solutions for Class 10 History in Hindi

Chapter 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
Chapter 2: भारत में राष्ट्रवाद
Chapter 3: भूमंडलीकृत विश्व का बनना
Chapter 4: औद्योगिकीकरण की युग
Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

NCERT Solutions for Class 10 Social Science Geography in Hindi


NCERT Solutions for Class 10 Social Science Political Science in Hindi


NCERT Solutions for Class 10 Social Science Economics in Hindi

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