NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4: The Age of Industrialization (औद्योगिकीकरण की युग)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4: The Age of Industrialization
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NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4: औद्योगिकीकरण की युग
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. निम्नलिखित की व्याख्या करें –
- 17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की तरफ़ रुख करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे।
- उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी। इस माँग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। इसलिए नए व्यापारी गाँवों की तरफ जाने लगे।
- गाँवों में गरीब काश्तकार और दस्तकार सौदागरों के लिए काम करने लगे। यह वह समय था जब छोटे व गरीब किसान आमदनी के नए स्रोत हूँढ़ रहे थे।
- इसलिए जब सौदागर वहाँ आए और उन्होंने माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान फौरन तैयार हो गए।
- सौदागरों के लिए काम करते हुए वे गाँव में ही रहते हुए अपने छोटे-छोटे खेतों को भी संभाल सकते थे।
- इससे कुटीर उद्योग को बल मिला।
- प्रथम चरण – कंपनी ने सर्वप्रथम बुनकरों को सक्रिय व्यापारियों व दलालों से मुक्त करवाने के लिए इनपर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतन भोगी कर्मचारी नियुक्त किए जिन्हें ‘गुमास्ता’ कहा गया।
- द्वितीय चरण – कंपनी ने बुनकरों पर पाबंदी लगा दी कि वे अन्य खरीददारों को अपना माल नहीं बेच सकते। जब बुनकरों को काम का ऑर्डर मिल जाएगा तो उन्हें कच्चा माल खरीदने के लिए कर्जा देने की भी व्यवस्था की गई, परंतु इसमें एक शर्त यह रखी गई कि जो कर्जा लेगा वह अपना माल गुमास्ता को ही बेचेगा।
परंतु जल्द ही गुमास्तों और बुनकरों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई क्योंकि एक तो गुमास्ते तैयार माल की उचित कीमत नहीं देते थे, दूसरे यदि कोई बुनकर समय पर माल तैयार नहीं कर पाता तो उसे दंड देते थे, जैसे कोड़े मारना।
इस व्यवस्था में बुनकर की स्थिति दयनीय हो गई क्योंकि जहाँ उन्हें अपने माल की उचित कीमत नहीं मिल रही थी वहीं वे कंपनी के कर्जे तले भी दबते जा रहे थे।
प्रश्न 2. प्रत्येक वक्तव्य के आगे ‘सही’ या ‘गलत’ लिखें
उत्तर
चर्चा करें
- विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी। इसलिए कम वेतन पर मजदूर मिल जाते थे। अतः उद्योगपति मशीनों की बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को ही रखते थे।
- जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था वहाँ उद्योगपति मशीनों की बजाए मजदूरों को ही काम | पर रखना पसंद करते थे।
- बहुत सारे उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किए जा सकते थे। मशीनों से एक जैसे उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा | सकते थे। लेकिन बाजार में अक्सर बारीक डिजाइन और खास आकारों वाली चीजों की काफी माँग रहती थी । इन्हें बनाने के लिए यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं बल्कि इन्सानी निपुणता की जरूरत थी।
- विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के कुलीन लोग हाथों से बनी चीजों को महत्व देते थे। हाथ से बनी चीजों को परिष्कार और सुरूचि का प्रतीक माना जाता था। उनको एक-एक करके बनाया जाता था और उनका डिजाइन भी अच्छा होता था।
- यदि थोड़ी मात्रा में उत्पादन करना हो तो उसे मशीनों की बजाय श्रमिकों से ही कराया जाता था।
- क्रिसमस के समय बाइंडरों और प्रिंटरों का कार्य मशीनों की बजाए मजदूरों की सहायता से अधिक अच्छी तरह से हो सकता था।
- विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन के उच्च वर्ग के कुलीन व पूँजीपति वर्ग के लोग हाथों से बनी वस्तुओं को अधिक महत्त्व देते थे क्योंकि ये वस्तुएँ सुरुचि और परिष्कार की प्रतीक थी। इनमें अच्छी फिनिशिंग यानि सफाई होती थी। इनमें डिजाइनों की विविधता होती थी तथा इन्हें बड़ी मेहनत से बनाया जाता था।
- कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी तैयार कर दिए जिन्हें ‘गुमाश्ता’ कहा जाता था।
- कंपनी का माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी। एक बार काम का ऑर्डर मिलने पर बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज दे दिया जाता था। जो कर्ज लेते थे उन्हें अपना बनाया हुआ कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। उसे वे और किसी व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।
ये गुमाश्ता बुनकरों के बीच नहीं रहते थे इसलिए इनका बुनकरों से टकराव होने लगा। गुमाश्ता दंभपूर्ण व्यवहार करते थे तथा माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को पीटा करते थे। अब बुनकर न तो मोल-भाव कर सकते थे और न ही किसी और को माल बेच सकते थे। उन्हें कंपनी से जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी पर वे कर्षों की वजह से कंपनी से बँधे हुए थे।
ब्रिटेन तथा कपास का इतिहास
- इंग्लैंड में औद्योगीकरण से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था।
- यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था।
- इस चरण को आदि औद्योगीकरण कहा जाता है।
- इंग्लैंड में सबसे पहले 1730 के दशक में कारखाने खुले लेकिन उनकी संख्या में 18वीं सदी के अंत में तेजी से वृद्धि हुई।
- कपास नए युग का प्रतीक था। 19वीं सदी के अंत में कपास के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई।
- 1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था।
- 1787 में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया।
- यह वृद्धि उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत सारे बदलावों का परिणाम था।
- 18वीं सदी में कई ऐसे अविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी।
- प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से ज्यादा मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने लगा।
- इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा सामने रखी।
- अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे देहात में फैला हुआ था। यह काम लोग अपने घर पर ही करते थे लेकिन अब महँगी नयी मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था।
- कारखानों में सारी प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थीं।
- सूती उद्योग और कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे फलते-फूलते उद्योग थे।
- कपास उद्योग 1840 के दशक तक औद्योगीकरण के पहले चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था।
- जब इंग्लैंड में कपास उद्योग विकसित हुआ तो वहाँ के उद्योगपति दूसरे देशों से आने वाले आयात को लेकर पेरशान दिखाई देने लगे।
- उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयातित कपड़े पर आयात शुल्क वसूल करे जिससे मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैंड में आराम से बिक सके।
- दूसरी तरफ उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे।
- 1860 के दशक में बुनकरों के सामने नयी समस्या खड़ी हो गई।
- उन्हें अच्छी कपास नहीं मिल पा रही थी।
- जब अमेरिकी गृहयुद्ध शुरू हुआ और अमेरिका से कपास की आमद बंद हो गई तो ब्रिटेन भारत से कच्चा माल मँगाने लगा।
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद आधुनिकीकरण न कर पाने और अमेरिका, जर्मनी में जापान के मुकाबले कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी।
- कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था और ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में जबरदस्त गिरावट आई।
- ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त थे। इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। भारतीय बाजारों को रातों-रात एक विशाल देशी बाजार मिल गया।
- भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा बहुत सारे अन्य सामान बनने लगे।
- नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखाने कई पालियों में चलने लगे। बहुत सारे नये मजदूरों को काम मिल गया। उद्योगपतियों के साथ-साथ मजदूरों को भी फायदा हुआ, उनके वेतन में बढ़ोतरी होने से उनकी कायापलट हो गई।
- प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार को फँसा देखकर राष्ट्रवादी नेताओं ने भी स्वदेशी चीजों के प्रयोग पर बल देना शुरू कर दिया जिससे भारतीय उद्योगों को और अधिक बढ़ावा मिला।
इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध के कारण विदेशी उत्पादों को हटाकर स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर कब्जा कर लिया और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत बना ली।
परियोजना कार्य
बदलती प्रौद्योगिकी – पहले पत्थरों व टाइलों का यहाँ सिर्फ व्यापार होता था। राजस्थान के कोटा, जोधपुर व उदयपुर से पत्थर यहाँ लाकर बेचे जाते थे लेकिन बदलते फैशन में सिर्फ साधारण पत्थर के स्थान पर अब नक्काशीदार पत्थरों तथा पालिश किये गये पत्थरों की माँग ने यहाँ पत्थरों की कटाई-तराशी और पालिश की तकनीक में बहुत परिवर्तन ला दिया है। मशीनों द्वारा यहाँ पत्थरों को विभिन्न आकारों व डिजाइनों में काटा व तराशा जाता है। राजस्थान से लाए गए पत्थरों को विदेशों से लाए गए पत्थरों के साथ मेल करके पत्थरों की डिजाइनदार टाइलें बनायी जाती हैं। दीवारों व ड्राइंगरूम के लिए पत्थरों को लकड़ी व प्लास्टिक के फ्रेमों में भी जोड़ा व जड़ा जाता है। इसके लिये कुशल कारीगर व आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
इन गोदामों व शोरूमों पर दो तरह के मज़दूर होते हैं-एक तो वे जो सिर्फ पत्थरों की ढुलाई का काम करते हैं व दूसरे वो जो इसकी कटाई व गढ़ाई का काम करते हैं । ढुलाई की मजदूरी करने वाले मजदूर प्रायः बिहार, उड़ीसा व उत्तर प्रदेश से यहाँ आते हैं तथा पत्थरों की नक्कासी व पॉलिश व घिसाई-कटाई करने वाले मज़दूर राजस्थान व कटकी से यहाँ आते हैं।
इस उद्योग के कुछ मालिकों व मजदूरों से बात करके पता चला कि यह उद्योग यहाँ 50-60 वर्षों से चल रहा है तथा चूंकि यह जगह औद्योगिक क्षेत्र के रूप में घोषित नहीं है इसलिये यहाँ के मालिक व मजदूर सरकारी उत्पीड़न के शिकार हैं तथा क्षेत्र में उद्योग के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
इसके उत्पादों का विज्ञापन और मार्केटिंग के बारे में पूछने पर बताया कि उन्हें इसके लिये विशेष प्रयास व उपाय करने की जरूरत नहीं पड़ती। दिल्ली व उसके आस-पास इस तरह की कुछ एक जगह ही हैं जैसे मंगोलपुरी, कीर्ति नगर आदि तथा निर्माण कार्य में लगी कम्पनियाँ व लोग स्वयं ही अच्छे पत्थरों व टाइलों की खोज में यहाँ स्वयं आते हैं तथा इस क्षेत्र में अच्छी क्वालिटी व कीमत कम होने के कारण इन्हें अपना ग्राहक बनाने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती। बस स्थानीय निकायों की सख्ती ने कुछ लोगों को अपने शोरूम व गोदामों को अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए मजबूर कर दिया है। 50-60 वर्षों से चल रहे इस उद्योग का भविष्य सरकार की नीतियों के ऊपर निर्भर करता है।
अध्याय-समीक्षा :
1. प्राच्य- यह
शब्द उन देशों के लिए प्रयोग किया जाता है जो कि यूरोप के पूर्व में
स्थित है।
2 . पूँजी- यह
मुद्रा की बड़ी मात्रा है जिसका निवेश किया जाता है या व्यापार या उद्योग
में इस्तेमाल किया जाता है।
3. समाजवादी-
जिसमें देश के प्रत्येक व्यक्ति का समान हिस्सा होता है तथा मुख्य
उद्योगों पर स्वामित्व और नियंत्रण सरकार का होता है।
4. स्पिनिंग जेनी-
एक सूत कातने की मशीन है । जो जेम्स हरग्रीब्ज द्वारा 1764 में बनाई गई थी।
5. स्टेपल- एक
व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है उसे छांटता है।
6. फुलर्ज-
चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है।
7. कार्डि़ग- वह
प्रक्रिया है जिससे कपास या ऊन आदि की रेशों को कताई के लिए तैयार किया
जाता है।
8. फलाई शटल- वह
रस्सियों और पुलियों के जरिए चलने वाला एक यांत्रिक औजार जिसका बुनाई
के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
9. भारत में सबसे
पहली जूट मिल कलकता में लगी।
10. भारत में सबसे
पहले भारतीय जूट मिल लगाने वाले व्यवसाय का नाम सेठ हुक्म चन्द था।
अभ्यास-प्रश्नावली:
Q2. प्रत्येक वक्तव्य के आगे ‘सही’ या ‘गलत’ लिखें :
(क) उन्नीसवीं
सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80 प्रतिशत तकनीकी
रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।
(ख) अठारहवीं सदी
तक महीन कपड़े के अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भारत का दबदबा था।
(ग) अमेरिकी
गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आई।
(घ) फ्लाई शटल के
आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।
उत्तर:
(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
Q3. पूर्व-औद्योगीकरण
का मतलब बताएँ।
उत्तर: इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियों की स्थापना से
भी पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने
लगा था। यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था। बहुत सारे इतिहासकार
औद्योगीकरण के इस चरण को आदि-औद्योगीकरण (protoindustrialisation)
का नाम देते हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर :
Q1. मैन चेस्टर के
आगमन से भारतीय बुनकरों के
सामने आई समस्या क्या थी ?
उत्तर:
(i) भारत के कपड़ा
निर्यात में कमी
(ii) ईस्ट इंडिया
कंपनी पर ब्रिटिश कपड़ा बेचने का दबाव
(iii) स्थानीय बाजार
सिकुड़ने लगे
(iv) कम लागत
(v) अच्छी कपास न
मिलना
Q2. प्रथम विश्व युद्ध
के समय भारत के औद्योगिक
उत्पादन बढ़ने के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(i) अंग्रेजों की
युद्ध सम्बंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए
(ii) वर्दी के कपडे़
Q3. 1930 की महामन्दी के
कारण लिखे ?
उत्तर:
(i) प्रथम विश्व
युद्ध के बाद निर्यात घटना।
(ii) अमेरिकी
पूंजीपतियों द्वारा यूरोपियन देशों के लिये कर्जे बन्द।
(iii) कृषि में अति
उत्पादन।
(iv) उद्योगों में
मशीनीकरण।
Q4. नए सौदागरों का
शहरों से व्यापार स्थापित
करना कठिन क्यों था ?
उत्तर:
(i) शहरों में
उत्पादकों के संगठन और गिल्ड काफी शक्तिशाली थे।
(ii) कारीगरों को
प्रशिक्षण देते थे।
(iii) उत्पादकों पर
नियंत्रण रखते थे।
(iv) मूल्य निश्चित
करते थे।
(v) नए लोगों को
अपने व्यवसाय मे आने से रोकते थे।
Q5. नए उद्योग
परंपरागत उद्योगों की जगह
क्यों नहीं ले सकें ?
उत्तर:
(i) औद्योगिक
क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कम थी।
(ii) प्रौद्येगिकीय
बदलाव की गति धीमी थी।
(iii) कपड़ा उद्योग एक
गतिशील उद्योग था।
(iv) उत्पादन का एक
बड़ा भाग कारखानों की बजाय गृह उद्योग द्वारा पूरा होता था।
(v) प्रौद्योगिकीय
काफी महँगी थी।
(vi) मशीनें खराब हो
जाती थी तो उनकी मरम्मत पर काफी खर्चा आता था।
Q6. भारतीय सौदागरों
के नियत्रण वाला यह नेटवर्क
टूटने क्यों लगा था ?
उत्तर:
(i) यूरोपीय
कम्पनियों ने धीरे - धीरे स्थानीय अदालतों से विभिन्न प्रकार की रियायतें
प्राप्त करके व्यापार पर अधिकार प्राप्त कर लिए थे।
(ii) बाद में व्यापार
पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।
(iii) सूरत और हुगली
के बंदरगाहों पर व्यापार घटने से जहाँ से स्थानीय व्यापारी
कार्य संचालन करते थे।
(iv) पहले जिस ऋण से
व्यापार चलता था वह समाप्त होने लगा।
Q7. ईस्ट इंडिया
कम्पनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को
नियुक्त क्यों किया था ?
उत्तर:
(i) वे बुनकरों को
कर्ज देते थे।
(ii) ताकि वे किसी और
व्यापारी को अपना माल तैयार करके न दे सके।
(iii) वे खुद बुनकरों
से तैयार माल इकट्ठा करते थे।
(iv) वे खुद कपड़ों की
गुणवता की जांच करते थे।
Q8. जाॅबर कौन थे ? नई कारखाना प्रणाली में उनकी
क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
(i) उद्योगपति नए
मजदूरों की भर्ती के लिए एक जाॅबर रखते थे।
(ii) जाॅबर कोई
पुराना विश्वस्त कर्मचारी होता था।
(iii) वह गाँव से लोगो
को लाता था।
(vi) काम का भरोसा
देता तथा शहर में बसने के लिए मदद करता।
(v) जाॅबर मदद के
बदले पैसे व तोहफों की मांग करने लगा तथा उनकी जिन्दगी को नियन्त्रित
करने लगा।
Q9. ब्रिटिश
निर्माताओं ने विज्ञापनों की मदद से भारतीय व्यापार पर किस
प्रकार कब्जा किया ?
उत्तर:
(i) उत्पादों को
बेचने के लिए कैलेन्डर अखबारों व मैगजीन का प्रयोग।
(ii) लेबलों पर
भारतीय देवी देवताओं की तस्वीर लगी होती थी।
(iii) ईश्वर भी यही
चाहता कि लोग उनकी चीज को खरीदे।
(vi) विदेश में बनी
चीज भी भारतीयों को जानी - पहचानी लगती थी।
Q10. 1850 - 51 तक भारत के सूती माल के निर्यात में गिरावट क्यों आने लगी ?
उत्तर:
(i) इंग्लैड में
सूती माल के उद्योग के विकास के कारण।
(ii) इंग्लैड में
आयातित माल पर आयात कर का लगना।
(iii) भारत में
इंग्लैड में निर्मित माल को बेचने का दबाव।
(iv) ब्रिटेन के
वस्त्र उत्पादों में नाटकीय वृद्धि हुई।
(v) 1870 के दशक के आते - आते भारतीय आयात 50 प्रतिशत तक बढ़ गया।
Q11. हुगली और सूरत के बंदरगाहों से
व्यापार धीरे - धीरे खत्म होने के परिणामों की
व्याख्या करो।
उत्तर:
(i) नए बंदरगाहों के
बढते महत्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती शक्ति का संकेत था।
(ii) बम्बई और कलकता
के नये बंदरगाहों से व्यापार यूरोपीय देशों के नियंत्रण में था।
(iii) माल यूरोपीय
जहाजों के द्वारा ले जाता जाता था।
(iv) पुराने
व्यापारिक घराने प्रायः समाप्त हो चुके थे जो बच गए थे उनके पास यूरोपीय
कंपनियों के नियंत्रण वाले नेटवर्क में काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
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Chapter 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदयChapter 2: भारत में राष्ट्रवाद
Chapter 3: भूमंडलीकृत विश्व का बनना
Chapter 4: औद्योगिकीकरण की युग
Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
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