NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: Print Culture and the Modern World (मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: Print Culture and the Modern World
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NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. निम्नलिखित के कारण दें –
- 1295 ई० में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में काफ़ी साल बिताने के बाद इटली वापस लौटा।
- वह चीन से वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक का ज्ञान अपने साथ लेकर आया।
- उसके बाद इतालवी भी तख्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और फिर यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
- इस तरह यूरोप में वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई 1295 के बाद ही संभव हो पाई।
- 1295 तक यूरोप के कुलीन वर्ग, पादरी, भिक्षु छपाई वाली पुस्तकों को धर्म विरुद्ध, अश्लील और सस्ती मानते थे।
प्रश्न 2. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ
प्रश्न 3. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था –
- उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने महिलाओं में साक्षरता को बढ़ावा दिया।
- महिलाओं की जिंदगी और भावनाओं पर गहनता से लिखा जाने लगा, इससे महिलाओं का पढ़ना भी बहुत ज्यादा हो गया।
- उदारवादी पिता और पति अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे और उन्नीसवीं सदी के मध्य में जब बड़े। छोटे शहरों में स्कूल बने तो उन्हें स्कूल भेजने लगे।
- कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी शिक्षा की जरूरत को बार-बार रेखांकित किया।
- इन पत्रिकाओं में पाठ्यक्रम भी छपता था और पाठ्य सामग्री भी, जिसका इस्तेमाल घर बैठे स्कूली शिक्षा के लिए किया जा सकता था।
- लेकिन परंपरावादी हिंदू व दकियानूसी मुसलमान महिला शिक्षा के विरोधी थे तथा इस पर प्रतिबंध लगाते थे।
- फिर भी बहुत-सी महिलाओं ने इन विरोधों व पाबंदियों के बावजूद पढ़ना-लिखना सीखा।
- पूर्वी बंगाल में, उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में कट्टर रूढ़िवादी परिवार में ब्याही कन्या रशसुंदरी देवी ने रसोई में छिप-छिप कर पढ़ना सीखा।
- बाद में चलकर उन्होंने ‘आमार जीवन’ नामक आत्मकथा लिखी। यह बंगला भाषा में प्रकाशित पहली संपूर्ण आत्मकथा थी।
- कैलाश बाशिनी देवी ने महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया।
- ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की दयनीय हालत के बारे में जोश और रोष से लिखा।
- इस तरह मुद्रण में महिलाओं की दशा व दिशा के बारे में उन्नीसवीं सदी में काफी कुछ लिखा जाने लगा।
(ख) गरीब जनता –
- उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जाने लगीं।
- इससे गरीब लोग भी बाजार से उन्हें खरीदने व पढ़ने लगे।
- इसने साक्षरता बढ़ाने व गरीब जनता में भी पढ़ने की रुचि जगाने में मदद की।
- उन्नीसवीं सदी के अंत से जाति-भेद के बारे में लिखा जाने लगा।
- ज्योतिबा फुले ने जाति-प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
- स्थानीय विरोध आंदोलनों और सम्प्रदायों ने भी प्राचीन धर्म ग्रंथों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
- गरीब जनता की भी ऐसी पुस्तकों में रुचि बढ़ी।
- इस तरह मुद्रण के प्रसार ने गरीब जनता की पहुँच में आकर उनमें नयी सोच को जन्म दिया तथा मजदूरों में नशाखोरी कम हुई, उनमें साक्षरता के प्रति रुझान बढ़ा और राष्ट्रवाद का विकास हुआ।
(ग) सुधारक –
- उन्नीसवीं सदी में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने सुधारकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन का कार्य किया।
- उन्होंने अपने लेखन व मुद्रण से जनता को समाज में व्याप्त बुराइयों व कुरीतियों से लड़ने व इन्हें बदलने के लिए तैयार किया।
- उन्नीसवीं सदी के अंत तक जाति-भेद के बारे में तरह-तरह की पुस्तिकाओं और निबंधों में लिखा जाने लगा था। ‘निम्न जातीय’ आंदोलनों के मराठी प्रणेता, ज्योतिबा फुले ने अपनी गुलामगिरी में जाति-प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
- बाद में भीमराव अंबेडकर व पेरियार जैसे सुधारकों ने जाति पर जोरदार कलम चलाई, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
- इस तरह सुधारकों के लिए मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने एक साधन के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चर्चा करें
- कई लोगों का मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं और वे निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा दौर लाएँगी जब विवेक और बुद्धि का राज होगा।
- इन लोगों का ऐसा मानने का कारण यह था कि किताबों व पढ़ने के प्रति लोगों में जागरूकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
- अब कम शिक्षित लोग भी किताबों के माध्यम से दार्शनिकों, लेखकों व चिंतकों के विचारों को जान रहे थे।
- पुरानी मान्यताओं में सुधार की आवश्यकता को बुद्धि व विवेक से तौला जाने लगा था।
- विभिन्न विचारों को पढ़कर लोग अपनी खुद की मान्यताएँ तय करने में सक्षम हो रहे थे।
- फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।” मर्सिए के उपन्यासों में नायक अक्सर किताबें पढ़कर बदल जाते हैं। इस तरह बहुत-से लोग मुद्रण संस्कृति की भूमिका के प्रति आश्वस्त थे कि इससे निरंकुशवाद का अंत और ज्ञानोदय होगा।
उदाहरण के लिए यूरोप में लातिन के विद्वान और कैथलिक धर्म सुधारक इरैस्मस ने लिखा कि ‘किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है जहाँ ये नहीं पहुँच जाती? हो सकता है कि जहाँ-तहाँ ये एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ, लेकिन इनका ज़यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। ये बेकार का ढेर है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक दुनिया को तुच्छ, बकवास, बेवकूफ़, सनसनीखेज, धर्म-विरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबों से पाट रहे हैं और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान सहित्य का मूल्य भी नहीं रह जाता।’
इसी तरह भारत में भी दकियानूसी मुसलमानों का मानना था कि औरतें उर्दू के रूमानी अफ़साने पढ़कर बिगड़ जाएँगी। वहीं दकियानुसी हिंदू मानते थे कि किताबें पढ़ने से कन्याएँ विधवा हो जाएंगी।
कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े सवाल लिख और छाप कर जातीय और वर्गीय शोषण के बीच का रिश्ता समझाने की कोशिश की। बंगलौर के सूती-मिल मज़दूरों ने खुद को शिक्षित करने के ख्याल से पुस्तकालय बनाए, उनकी मूल कोशिश थी कि मजदूरों के बीच नशाखोरी कम हो, साक्षरता आए और उन तक राष्ट्रवाद का संदेश भी यथासंभव पहुँचे।
इस तरह भारत की गरीब जनता पर भी मुद्रण संस्कृति के प्रसार के व्यापक प्रभाव पड़े।
- बहुत से समाज व धर्म-सुधारकों ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों को दूर करने के लिए लिखना शुरू किया, जिससे लोगों में चेतना आई।
- जातिवाद, महिला शोषण व मजदूरों की दयनीय स्थिति पर लिखा गया, इससे जनमानस में अपनी खराब स्थिति को समझने में मदद मिली।
- 1870 के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर व कार्टून छपने लगे थे।
- कुछ ने शिक्षित भारतीयों के पश्चिमी पोशाकों और पश्चिमी अभिरुचियों का मजाक उड़ाया।
- राष्ट्रवादी लोगों ने राष्ट्रवाद को बढ़ाने के लिए स्थानीय मुद्रण का व्यापक सहारा लिया।
- खुलेआम व चोरी-छिपे राष्ट्रवादी विचार व लेख प्रकाशित होने लगे जिन्हें आम जनता तक पहुँचाना मुश्किल नहीं था।
- अंधविश्वासों, सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ विदेश राज पर भी सवाल उठाए जाने लगे तथा भारत की जनता की गरीबी व परेशानियों तथा पिछड़ेपन के लिए ब्रिटिश सत्ता को कोसा जाने लगा।
- इस तरह मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में व्यापक भूमिका निभाई।
परियोजना कार्य
अध्याय-समीक्षा
1. भारत में प्रेस
का जनक जेम्स अगस्टस हिकी ने 1717 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के बंगाल गजट का
संपादक।
2. पांडुलिपियां यह
हस्तलिखित लेख होते थे इन्हे ताड़ के पत्तों पर लिखा जाता था।
3. चैप बुक अश्लील
प्रेमप्रसंग चार या छः पृष्ठ वाली पुस्तकें।
4. उलमा इस्लामी
कानून और शरिया के विद्वान।
5. सन् 1448 में गुटनबर्ग ने
बाइबल को छापा।
6. सन् 1517 में मार्टिन
लूथर ने धर्म सुधार पर 95 थिसिस लिखी।
7. सन् 1508 में ईरासमय ने
एडाजिस पुस्तक छापी।
8. सन् 1821 में राजा राम
मोहन राय ने सम्वाद कुमौदिनी छापी।
9. सन् 1820 में कलकता
सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस कन्ट्रोल बिल पास किया।
10. सन् 1822 में गुजराती
समाचार पत्र मुम्बई में छापा गया।
1 अंक वाले लघु
प्रश्न:
1. यूरोप में पहली
प्रिटिंग प्रेस का आविष्कार किसने किया?
2. कौन सा धर्म
सुधारक प्रोटेस्टेट धर्म सुधार के लिए उत्तरदायी था?
3. गुटेन्बर्ग
द्वारा छापी पहली पुस्तक कौन सी थी?
4. पुस्तकों का
पेपर ब्रेक संस्करण कब प्रकाशित हुआ?
5. इंग्लैंड में
फेरीवालों के द्वारा एक पैसे में बिकने वाली किताबों को क्या कहा जाता
था?
6. कौन-सा पढ़ने का
साधन विशेषकर नारियों के लिए था?
7. 1818 का वर्नाक्यूलर एक्ट किस तर्ज पर बना था?
8. जापान की सबसे
पुरानी छपी पुस्तक का नाम क्या था?
9. किस देश में
मुद्रण की तकनीक सबसे पहले विकसित हुई?
10. ‘मुद्रण ईश्वर की
दी हुई महानतम देन है’ यह शब्द किसने कहा था?
11. किसने शक्ति
चालित बेलनाकार प्रेस को कारगर बनाया?
12. वुडब्लॉक
प्रिंटिग की तकनीक यूरोप में कौन लाया?
13. मुद्रण की सबसे
पहली तकनीक किन देशों में विकसित हुई?
14. भारत में छपाई
की तकनीक कब और कौन लाया?
15. 1871 में गुलामगिरी किसने लिखी?
16. तुलसीदास के
रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कब और कहाँ छपा?
17. दो फारसी
अखबारों के नाम लिखो जो 1882 में प्रकाशित हुए?
लघु/दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3/5 अंक वाले:-
प्रश्न - मुद्रण संस्कृति के प्रसार पर महिलाओं
पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर -
(i) मुद्रण संस्कृति
के विकसित होने से किताबों में महिलाओं की जीवन ,उनकी समस्याएँ
और उनकी भावनाओं के बारे में बहुत कुछ लिखा जाने लगा । धीरे धीरे परिवार के
विभिन्न सदस्य महिलाओं को पढ़ाने लिखाने लगे ।
(ii) कैलाशबशिनी देवी
जैसी लेखिकाओं ने जब महिलाओं के लिए लेख लिखना शुरू किया और उनके
अधिकार के बारे में बताया जिसे पढ़कर महिलाओं को अपने स्थिति का पता चला ।
(iii) जब महिलाँए
पढ़ना लिखना सिख लिया तो वे रोजगार की माँग करने लगी ।
अतिरिक्त प्रश्न (परीक्षा-उपयोगी)
प्रश्न 1: नई मुद्रण की खोज यूरोप के सभी
भागों में क्यों फैल गई ? कारण बताइए।
उत्तर:
(i) किताबों की बढ़ती
माँग हस्तलिखित पांडुलिपियों से पूरी नहीं हो रही थी।
(ii) नकल उतारना बेहद
खर्चीला।
(iii) पांडुलिपियाँ
अक्सर नाजुक होती भी उनके लाने - ले जाने रख - रखाव में तमाम
मुश्किलें थी।
(iv) इनका चलन सीमित
रहा।
(v) किताबों की बढ़ती
माँग के चलते बुडब्लाॅक प्रिटिंग लोकप्रिय हो गयी।
प्रश्न 2: मुद्रित किताबें अशिक्षित लोगों के
बीच लोकप्रिय क्यों हुई ?
उत्तर:
(i) जो लोग पढ़ नहीं
पाते थे वे भी बोलकर पढ़े गए का सुनकर मजा लेते थे।
(ii) लोकगीत और
लोककथाओं का छपना।
(iii) ऐसी किताबें
सचित्र होती थी।
(iv) इन्हें सामूहिक
ग्रामीण सभाओं में या शहरी शराबखानों में गाया सुनाया जाता
था।
प्रश्न 3: पाण्डुलिपियां क्या है ? इनका प्रयोग
व्यापक स्तर पर क्यों नहीं किया जाता था ?
उत्तर: हाथ से लिखी पुस्तकों को पांडुलिपियाँ
कहते है।
(i) किताबो की बढ़ती
माँग पांडुलिपियों से पूरी नहीं होने वाली थी।
(ii) नकल उतारना बेहद
खर्चीला, समय अधिक लगना माँग पूरी
नहीं होना।
(iii) ये बहुत नाजुक
होती थी, लाने ने जाने, रख - रखाव में
मुश्किलें आती थी।
(iv) उपरोक्त समस्याओं
की वजह से उनका आदान प्रदान मुश्किल था।
प्रश्न 4: भारतीय लोग किस प्रकार अपनी
पांडुलिपियों की नकल करते थे तथा उन्हें सुरक्षित रखते थे ?
उत्तर:
(i) पांडुलिपियाँ
ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थी।
(ii) पन्नों पर
सुन्दर तस्वीरें भी बनाई जाती थी।
(iii) उन्हें तख्तियों
की जिल्द में रखा जाता था।
(iv) उन्हें ख्याल#2354; से सिलकर बाँध दिया जाता था।
प्रश्न 5: मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी
क्रान्ति लाने में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:
(i) छपाई के चलते
विचारों का प्रसार उनके लेखन ने परपंरा, अंधविश्वास और निरकुंशवाद की आलोचना।
(ii) रीति - रिवाजों
की जगह विवके के शासन पर बल दिया।
(iii) चर्च की धार्मिक
और राज्य की निरंकुश सत्ता पर हमला।
(vi) छपाई ने वाद -
विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया।
प्रश्न 6:19 वीं सदी में महिलाओं द्वारा
पढ़ने के चलन के प्रति लोगों का क्या रवैया था ? महिलाओं की इस संदर्भ में क्या
प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर:
(i) उदारवादी पति और
पिता अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे।
(ii) शहरों में छोटे
- छोटे स्कूल खुले तो उन्हें स्कूल भेजने लगे।
(iii) बागी औरतों ने
इन प्रतिबंधों को अस्वीकार कर दिया।
प्रश्न 7: भारत में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में
मुद्रण संस्कृति ने किस प्रकार योगदान दिया ?
उत्तर:
(i) दमनकारी नीति के
बावजूद राष्ट्रवादी अखबार देश के हर कोने मे बढ़ते - फैलते गए।
(ii) उन्होंने
औपनिवेशिक कुशासन के बारे में लिखा।
(iii) पंजाब के
क्रांतिकारियों को गिरतार किया गया तो बाल गंगाधर तिलक ने
अपना केसरी समाचार छापा तथा लोगों ने गहरी हमदर्दी जताई।
(iv) पंजाब तथा देश
के अन्य भागों में राष्ट्रवादी आंदोलन को बल मिला।
(v) इस कारण बाल
गंगाधनर तिलक को कैद कर लिया गया जिसका पूरे भारत मे विरोध हुआ।
प्रश्न 8: तरीको का उल्लेख कीजिए जिनसे मुद्रित किताबों तक आम आदमी की पहुँच बढ़ी।
उत्तर:
(i) मद्रास में काफी सस्ती किताबें चैक - चैराहों पर बेची जा रही थी ?। अब गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकते थे।
(ii) सार्वजनिक
पुस्तकालय खुलना, शहरों तथा कस्बों या
सम्पन्न गांवो में।
(iii) जाति भेद के
बारे में लिखना पुस्तिकाओं और निबन्धों में।
(vi) मजदूरों में नशा
खोरी कम हो साक्षरता आए तथा राष्ट्रवादी का संदेश पहुँचे।
प्रश्न 9: रोमन कैथोलिक चर्च के विभाजन में मुद्रण
संस्कृति की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर:
(i) मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक की कुरीतियों की आलोचना करते हुए 95 स्थापनाएं लिखी।
(ii) इसकी एक छपी
प्रति ब्रिटेन वर्ग के गिरजाघर के दरवाजे पर टाँगी गई।
(iii) लूथर के लेख बड़ी
तादात में छापे गये।
(vi) नतीजा यह हुआ कि चर्च का विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेट धर्म की सुधार की शुरूआत हुई।
प्रश्न 10: मुद्रण ने किस प्रकार समुदायों
और भारत के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों को जोड़ने का कार्य किया था ?
उत्तर:
(i) मुद्रित प्रणाली
ने नए विचारों के विकास, प्रसार और अभिव्यक्ति हेतु एक नए प्लेटफार्म का
विकास किया।
(ii) मुद्रित प्रणाली
संचार का सबसे सस्ता और सरल साधन था।
(iii) ये भारत के
लोगों की समस्या को उजागर करते थे।
(iv) धार्मिक पुस्तके
बड़ी तादाद में व्यापक जन समुदाय तक पहुँच रही थी।
(v) अखबार भारतीय
मूल के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक समाचार पहुँचाते थे।
प्रश्न 11: 'वुडब्लॉक' ( काठ की तख्ती ) वाली छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई इस कथन
को
स्पष्ट करो।
उत्तर: वुडब्लाॅक वाली छपाई यूरोप में 1295 ई. के पश्चात्
आई क्योकि-
(i) यह तकनीक पहले
चीन के पास थी।
(ii) मार्को पोलों यह
ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा।
(iii) मार्को पोला ने
यूरोप को गुडब्लाॅक तकनीक से अवगत कराया।
(iv ) यह तकनीक यूरोप
में फैल गयी।
प्रश्न 12: जापान की मुद्रण प्रणाली का विकास
कैसे और कब हुआ?
उत्तर:
(i) 768 - 776 ई. में चीनी बौद्ध भिक्षु जापान में हस्तलिखित प्रणाली को लेकर पहुँचे।
(ii) 868 ई. में जापान में बौद्ध धर्म पर आधारित ‘डायमंत्र सूत्र’ छपी।
(iii) एदो ( टोक्यों )
में चित्रों का छापना शुरू हो गया पुस्तके अनेक विषयों पर लिखी
गई।
प्रश्न 13: छापेखाने की तकनीक में क्या नए
प्रयोग हुए ?
उत्तर:
(i) रिचर्ड एम. ह्मू
ने बिजली से चलने वाले सिलेंडरिकल प्रेस का आविष्कार किया।
(ii) आॅफसेट प्रेस के
छः रगों से प्रिटिंग सम्भव हो गई।
(iii) कागज के पृष्ठ
के स्थल पर रोल का प्रयोग होने लगा।
(iv) प्रिटिंग
प्रक्रिया आॅटोमेटिक हो गई।
प्रश्न 14:
"कैलिग्राफ" शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर: चीन में मुद्रण प्रणाली का प्रचलन प्राचील काल से
हो रहा था। 1594 ई. में लकड़ी के
ब्लाॅक बनाकर उन पर स्याही फेरकर प्रिटिंग की जाती थी। पतले पेपर पर कागज के
दोनों तरफ संभव नहीं था अतः मोटे पृष्ठों की सिलाई कर पुस्तक तैयार की जाती थी
और इस पर सुन्दर आकृतियों को उभारते थे। इसे कैलीग्राफ कहा जाता है।
NCERT Solutions for Class 10 Social Science History in Hindi
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Chapter 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदयChapter 2: भारत में राष्ट्रवाद
Chapter 3: भूमंडलीकृत विश्व का बनना
Chapter 4: औद्योगिकीकरण की युग
Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
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