NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: Print Culture and the Modern World (मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: Print Culture and the Modern World (मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: Print Culture and the Modern World

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NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

यहाँ हम आप के लिए लाये है हिंदी में एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान पुस्तक के इतिहास अध्याय 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया का पूर्ण समाधान | कक्षा 10 के लिए ये एनसीईआरटी समाधान हिंदी माध्यम में पढ़ रहे छात्रों के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारत और समकालीन विश्व -II एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया नीचे दिए हुए है ।



संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1. निम्नलिखित के कारण दें –

(क) वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
(ग) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।

उत्तर
(क) 1295 तक यूरोप में बुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई न आने के निम्न कारण थे

  1. 1295 ई० में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में काफ़ी साल बिताने के बाद इटली वापस लौटा।
  2. वह चीन से वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक का ज्ञान अपने साथ लेकर आया।
  3. उसके बाद इतालवी भी तख्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और फिर यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
  4. इस तरह यूरोप में वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई 1295 के बाद ही संभव हो पाई।
  5. 1295 तक यूरोप के कुलीन वर्ग, पादरी, भिक्षु छपाई वाली पुस्तकों को धर्म विरुद्ध, अश्लील और सस्ती मानते थे।

(ख) धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था क्योंकि मुद्रण से धर्म-सुधार आंदोलन के नए विचारों के प्रसार में मदद मिली। मुद्रण ने लोगों में नया बौद्धिक माहौल बनाया। न्यू टेस्टामेंट के लूथर के तर्जुमे या अनुवाद की 5,000 प्रतियाँ कुछ ही हफ़्तों में बिक गईं, और तीन महीने में ही दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। मुद्रण की प्रशंसा करते। हुए लूथर ने कहा, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफ़ा”।
(ग) छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए। उन किताबों के आधार पर उन्होंने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए तथा रोमन कैथलिक चर्च की बहुत-सी बातों का विरोध करने लगे। धर्म के बारे में ऐसी किताबों और चर्च पर उठाए जा रहे सवालों से परेशान रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक-विक्रेताओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगाईं और 1558 ई० से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखने लगे।
(घ) महात्मा गांधी ने स्वराज की लड़ाई को दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई कहा क्योंकि ब्रिटिश भारत की सरकार इन तीन आज़ादियों को दबाने की कोशिश कर रही थी। लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति, पत्र-पत्रिकाओं की वास्तविकता को व्यक्त करने की आजादी और सामूहिक जनमत को बल प्रयोग व मनमाने कानूनों द्वारा दबाया जा रहा था। इसीलिए गांधी ने इन तीन आजादियों के लिए संघर्ष को ही स्वराज की लड़ाई कहा।

प्रश्न 2. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ

(क) गुटेन्बर्ग प्रेस
(ख) छपी किताबों को लेकर इरैस्मस के विचार
(ग) वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट

उत्तर
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस – गुटेन्बर्ग, एक व्यापारी का बेटा था जो एक बड़ी रियासत में पला बढ़ा। उसने बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनें देखी थी और बड़ा होने पर पत्थर की पालिश करने की कला, सोने और शीशे को इच्छित आकृतियाँ गढ़ने में निपुणता प्राप्त की। अपने इस ज्ञान और अनुभव का प्रयोग करके उसने सन् 1448 में एक मशीन का आविष्कार किया। इसमें एक स्क्रू से लगा एक हैंडल होता था जिसे घुमाकर प्लाटेन को गीले कागज पर दबा दिया जाता था। गुटेन्बर्ग ने रोमन वर्णमाला के तमाम 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए और जुगत लगाई कि इन्हें इधर-उधर’ मूव कराकर या घुमाकर शब्द बनाए जा सके। अतः इसे ‘मूवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन’ के नाम से जाना गया। इस मशीन की सहायता से जो पहली किताब छपी, वह बाइबल थी, जिसकी 180 प्रतियाँ बनाने में तीन वर्ष लगे थे। यह उस समय की सबसे तेज छपी किताब थी। इस तरह से गुटेन्बर्ग प्रेस मुद्रण और छपाई के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रतीक था।।
(ख) लातिन का विद्वान और कैथलिक धर्म सुधारक इरैस्मस छपाई को लेकर बहुत आशंकित था। उसने अपनी पुस्तक एडेजेज़ में लिखा था कि पुस्तकें भिनभिनाती. मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है, जहाँ ये नहीं पहुँच जातीं? हो सकता है कि जहाँ-जहाँ एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ, लेकिन इनका ज्यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। बेकार ढेर है क्योंकि अच्छी चीजों की अति भी अति ही है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक दुनिया को सिर्फ तुच्छ किताबों से ही नहीं पाट रहे बल्कि बकवास, बेवकूफ़, सनसनीखेज, धर्मविरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबें छापते हैं, और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य ही नहीं रह जाता । इरैस्मस की छपी किताबों पर इस तरह के विचारों से प्रतीत होता है कि वह छपाई की बढ़ती तेज़ी और पुस्तकों के प्रसार से आशंकित था, उसे डर था कि इसके बुरे प्रभाव हो सकते हैं तथा लोग अच्छे साहित्य के बजाए व्यर्थ व फ़िजूल की किताबों से भ्रमित होंगे।
(ग) वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट 1878 में लागू किया गया। 1875 के विद्रोह के बाद ज्यों-ज्यों भाषाई समाचार-पत्र राष्ट्रवाद के समर्थन में मुखर होते गए, त्यों-त्यों औपनिवेशिक सरकार में कड़े नियंत्रण के प्रस्ताव पर बहस तेज़ होने लगी और इसी का परिणाम था 1878 का वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट। इससे सरकार को भाषाई प्रेस में छपी रपट और संपादकीय को सेंसर करने का व्यापक हक मिल गया। अगर किसी रपट को बागी करार दिया जाता था तो अखबार को पहले चेतावनी दी जाती थी और अगर चेतावनी की अनसुनी की जाती तो अखबार को जब्त किया जा सकता था और छपाई की मशीनें छीन ली जा सकती थीं। इस तरह यह एक्ट देशी प्रेस का मुँह बंद करने के लिए लाया गया था।

प्रश्न 3. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था –

(क) महिलाएँ
(ख) ग़रीब जनता
(ग) सुधारक

उत्तर
(क) महिलाएँ –

  1. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने महिलाओं में साक्षरता को बढ़ावा दिया।
  2. महिलाओं की जिंदगी और भावनाओं पर गहनता से लिखा जाने लगा, इससे महिलाओं का पढ़ना भी बहुत ज्यादा हो गया।
  3. उदारवादी पिता और पति अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे और उन्नीसवीं सदी के मध्य में जब बड़े। छोटे शहरों में स्कूल बने तो उन्हें स्कूल भेजने लगे।
  4. कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी शिक्षा की जरूरत को बार-बार रेखांकित किया।
  5. इन पत्रिकाओं में पाठ्यक्रम भी छपता था और पाठ्य सामग्री भी, जिसका इस्तेमाल घर बैठे स्कूली शिक्षा के लिए किया जा सकता था।
  6. लेकिन परंपरावादी हिंदू व दकियानूसी मुसलमान महिला शिक्षा के विरोधी थे तथा इस पर प्रतिबंध लगाते थे।
  7. फिर भी बहुत-सी महिलाओं ने इन विरोधों व पाबंदियों के बावजूद पढ़ना-लिखना सीखा।
  8. पूर्वी बंगाल में, उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में कट्टर रूढ़िवादी परिवार में ब्याही कन्या रशसुंदरी देवी ने रसोई में छिप-छिप कर पढ़ना सीखा।
  9. बाद में चलकर उन्होंने ‘आमार जीवन’ नामक आत्मकथा लिखी। यह बंगला भाषा में प्रकाशित पहली संपूर्ण आत्मकथा थी।
  10. कैलाश बाशिनी देवी ने महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया।
  11. ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की दयनीय हालत के बारे में जोश और रोष से लिखा।
  12. इस तरह मुद्रण में महिलाओं की दशा व दिशा के बारे में उन्नीसवीं सदी में काफी कुछ लिखा जाने लगा।

(ख) गरीब जनता –

  1. उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जाने लगीं।
  2. इससे गरीब लोग भी बाजार से उन्हें खरीदने व पढ़ने लगे।
  3. इसने साक्षरता बढ़ाने व गरीब जनता में भी पढ़ने की रुचि जगाने में मदद की।
  4. उन्नीसवीं सदी के अंत से जाति-भेद के बारे में लिखा जाने लगा।
  5. ज्योतिबा फुले ने जाति-प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
  6. स्थानीय विरोध आंदोलनों और सम्प्रदायों ने भी प्राचीन धर्म ग्रंथों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
  7. गरीब जनता की भी ऐसी पुस्तकों में रुचि बढ़ी।
  8. इस तरह मुद्रण के प्रसार ने गरीब जनता की पहुँच में आकर उनमें नयी सोच को जन्म दिया तथा मजदूरों में नशाखोरी कम हुई, उनमें साक्षरता के प्रति रुझान बढ़ा और राष्ट्रवाद का विकास हुआ।

(ग) सुधारक –

  1. उन्नीसवीं सदी में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने सुधारकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन का कार्य किया।
  2. उन्होंने अपने लेखन व मुद्रण से जनता को समाज में व्याप्त बुराइयों व कुरीतियों से लड़ने व इन्हें बदलने के लिए तैयार किया।
  3. उन्नीसवीं सदी के अंत तक जाति-भेद के बारे में तरह-तरह की पुस्तिकाओं और निबंधों में लिखा जाने लगा था। ‘निम्न जातीय’ आंदोलनों के मराठी प्रणेता, ज्योतिबा फुले ने अपनी गुलामगिरी में जाति-प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
  4. बाद में भीमराव अंबेडकर व पेरियार जैसे सुधारकों ने जाति पर जोरदार कलम चलाई, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
  5. इस तरह सुधारकों के लिए मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने एक साधन के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चर्चा करें

प्रश्न 1. अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
उत्तर अठारहवीं सदी के मध्य तक यह आम विश्वास बन चुका था कि किताबों के जरिए प्रगति और ज्ञानेंदय होता है क्योंकि-

  1. कई लोगों का मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं और वे निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा दौर लाएँगी जब विवेक और बुद्धि का राज होगा।
  2. इन लोगों का ऐसा मानने का कारण यह था कि किताबों व पढ़ने के प्रति लोगों में जागरूकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
  3. अब कम शिक्षित लोग भी किताबों के माध्यम से दार्शनिकों, लेखकों व चिंतकों के विचारों को जान रहे थे।
  4. पुरानी मान्यताओं में सुधार की आवश्यकता को बुद्धि व विवेक से तौला जाने लगा था।
  5. विभिन्न विचारों को पढ़कर लोग अपनी खुद की मान्यताएँ तय करने में सक्षम हो रहे थे।
  6. फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।” मर्सिए के उपन्यासों में नायक अक्सर किताबें पढ़कर बदल जाते हैं। इस तरह बहुत-से लोग मुद्रण संस्कृति की भूमिका के प्रति आश्वस्त थे कि इससे निरंकुशवाद का अंत और ज्ञानोदय होगा।

प्रश्न 2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उत्तर कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित थे। उन्हें आशंका थी कि न जाने इसका आम लोगों के जेहन पर क्या असर हो। भय था कि अगर छपे हुए किताबों पर कोई नियंत्रण न होगा तो लोगों में बागी और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे। अगर ऐसा हुआ तो ‘मूल्यवान’ साहित्य की सत्ता ही नष्ट हो जाएगी।

उदाहरण के लिए यूरोप में लातिन के विद्वान और कैथलिक धर्म सुधारक इरैस्मस ने लिखा कि ‘किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है जहाँ ये नहीं पहुँच जाती? हो सकता है कि जहाँ-तहाँ ये एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ, लेकिन इनका ज़यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। ये बेकार का ढेर है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक दुनिया को तुच्छ, बकवास, बेवकूफ़, सनसनीखेज, धर्म-विरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबों से पाट रहे हैं और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान सहित्य का मूल्य भी नहीं रह जाता।’

इसी तरह भारत में भी दकियानूसी मुसलमानों का मानना था कि औरतें उर्दू के रूमानी अफ़साने पढ़कर बिगड़ जाएँगी। वहीं दकियानुसी हिंदू मानते थे कि किताबें पढ़ने से कन्याएँ विधवा हो जाएंगी।

प्रश्न 3. उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
उत्तर मुद्रण संस्कृति का भारत की गरीब जनता पर भी असर पड़ा। उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जा रही थीं, जिसके चलते गरीब लोग भी बाजार से उन्हें खरीदने की स्थिति में आ गए थे। गरीबी, जातीय भेदभाव व अंधविश्वासों को दूर करने के लिए बहुत-से सुधारक लिख रहे थे। इनका प्रभाव गरीब जनता पर पड़ रहा था। ज्योतिबा फुले व पेरियार ने जाति पर जोरदार कलम चलाई। इनके लेख पूरे भारत में पढ़े गए। स्थानीय विरोध आंदोलनों और सम्प्रदायों ने भी प्राचीन धर्मग्रंथों की आलोचना करते हुए नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।

कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े सवाल लिख और छाप कर जातीय और वर्गीय शोषण के बीच का रिश्ता समझाने की कोशिश की। बंगलौर के सूती-मिल मज़दूरों ने खुद को शिक्षित करने के ख्याल से पुस्तकालय बनाए, उनकी मूल कोशिश थी कि मजदूरों के बीच नशाखोरी कम हो, साक्षरता आए और उन तक राष्ट्रवाद का संदेश भी यथासंभव पहुँचे।

इस तरह भारत की गरीब जनता पर भी मुद्रण संस्कृति के प्रसार के व्यापक प्रभाव पड़े।

प्रश्न 4. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?
उत्तर मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जो इस प्रकार है –

  1. बहुत से समाज व धर्म-सुधारकों ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों को दूर करने के लिए लिखना शुरू किया, जिससे लोगों में चेतना आई।
  2. जातिवाद, महिला शोषण व मजदूरों की दयनीय स्थिति पर लिखा गया, इससे जनमानस में अपनी खराब स्थिति को समझने में मदद मिली।
  3. 1870 के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर व कार्टून छपने लगे थे।
  4. कुछ ने शिक्षित भारतीयों के पश्चिमी पोशाकों और पश्चिमी अभिरुचियों का मजाक उड़ाया।
  5. राष्ट्रवादी लोगों ने राष्ट्रवाद को बढ़ाने के लिए स्थानीय मुद्रण का व्यापक सहारा लिया।
  6. खुलेआम व चोरी-छिपे राष्ट्रवादी विचार व लेख प्रकाशित होने लगे जिन्हें आम जनता तक पहुँचाना मुश्किल नहीं था।
  7. अंधविश्वासों, सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ विदेश राज पर भी सवाल उठाए जाने लगे तथा भारत की जनता की गरीबी व परेशानियों तथा पिछड़ेपन के लिए ब्रिटिश सत्ता को कोसा जाने लगा।
  8. इस तरह मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में व्यापक भूमिका निभाई।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. पिछले सौ साल में मुद्रण संस्कृति में हुए अन्य बदलावों का पता लगाएँ। फिर इनके बारे में यह बताते हुए लिखें कि ये क्यों हुए और इसके कौन-से नतीजे हुए?
उत्तर शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी इसे स्वयं करें।


अध्याय-समीक्षा

1. भारत में प्रेस का जनक जेम्स अगस्टस हिकी ने 1717 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के बंगाल गजट का संपादक।

2. पांडुलिपियां यह हस्तलिखित लेख होते थे इन्हे ताड़ के पत्तों पर लिखा जाता था।

3. चैप बुक अश्लील प्रेमप्रसंग चार या छः पृष्ठ वाली पुस्तकें।

4. उलमा इस्लामी कानून और शरिया के विद्वान।

5. सन् 1448 में गुटनबर्ग ने बाइबल को छापा।

6. सन् 1517 में मार्टिन लूथर ने धर्म सुधार पर 95 थिसिस लिखी।

7. सन् 1508 में ईरासमय ने एडाजिस पुस्तक छापी।

8. सन् 1821 में राजा राम मोहन राय ने सम्वाद कुमौदिनी छापी।

9. सन् 1820 में कलकता सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस कन्ट्रोल बिल पास किया।

10. सन् 1822 में गुजराती समाचार पत्र मुम्बई में छापा गया।

1 अंक वाले लघु प्रश्न:

1. यूरोप में पहली प्रिटिंग प्रेस का आविष्कार किसने किया?

2. कौन सा धर्म सुधारक प्रोटेस्टेट धर्म सुधार के लिए उत्तरदायी था?

3. गुटेन्बर्ग द्वारा छापी पहली पुस्तक कौन सी थी?

4. पुस्तकों का पेपर ब्रेक संस्करण कब प्रकाशित हुआ?

5. इंग्लैंड में फेरीवालों के द्वारा एक पैसे में बिकने वाली किताबों को क्या कहा जाता था?

6. कौन-सा पढ़ने का साधन विशेषकर नारियों के लिए था?

7. 1818 का वर्नाक्यूलर एक्ट किस तर्ज पर बना था?

8. जापान की सबसे पुरानी छपी पुस्तक का नाम क्या था?

9. किस देश में मुद्रण की तकनीक सबसे पहले विकसित हुई?

10. ‘मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन हैयह शब्द किसने कहा था?

11. किसने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस को कारगर बनाया?

12. वुडब्लॉक प्रिंटिग की तकनीक यूरोप में कौन लाया?

13. मुद्रण की सबसे पहली तकनीक किन देशों में विकसित हुई?

14. भारत में छपाई की तकनीक कब और कौन लाया?

15. 1871 में गुलामगिरी किसने लिखी?

16. तुलसीदास के रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कब और कहाँ छपा?

17. दो फारसी अखबारों के नाम लिखो जो 1882 में प्रकाशित हुए?

लघु/दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3/5 अंक वाले:-

प्रश्न - मुद्रण संस्कृति के प्रसार पर महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर -

(i) मुद्रण संस्कृति के विकसित होने से किताबों में महिलाओं की जीवन ,उनकी समस्याएँ और उनकी भावनाओं के बारे में बहुत कुछ लिखा जाने लगा । धीरे धीरे परिवार के विभिन्न सदस्य महिलाओं को पढ़ाने लिखाने लगे 

(ii) कैलाशबशिनी देवी जैसी लेखिकाओं ने जब महिलाओं के लिए लेख लिखना शुरू किया और उनके अधिकार के बारे में बताया जिसे पढ़कर महिलाओं को अपने स्थिति का पता चला ।

(iii) जब महिलाँए पढ़ना लिखना सिख लिया तो वे रोजगार की माँग करने लगी ।

अतिरिक्त प्रश्न (परीक्षा-उपयोगी)

प्रश्न 1: नई मुद्रण की खोज यूरोप के सभी भागों में क्यों फैल गई ? कारण बताइए।

उत्तर:

(i) किताबों की बढ़ती माँग हस्तलिखित पांडुलिपियों से पूरी नहीं हो रही थी।

(ii) नकल उतारना बेहद खर्चीला।

(iii) पांडुलिपियाँ अक्सर नाजुक होती भी उनके लाने - ले जाने रख - रखाव में तमाम मुश्किलें थी।

(iv) इनका चलन सीमित रहा।

(v) किताबों की बढ़ती माँग के चलते बुडब्लाॅक प्रिटिंग लोकप्रिय हो गयी।

प्रश्न 2: मुद्रित किताबें अशिक्षित लोगों के बीच लोकप्रिय क्यों हुई ?

उत्तर:

(i) जो लोग पढ़ नहीं पाते थे वे भी बोलकर पढ़े गए का सुनकर मजा लेते थे।

(ii) लोकगीत और लोककथाओं का छपना।

(iii) ऐसी किताबें सचित्र होती थी।

(iv) इन्हें सामूहिक ग्रामीण सभाओं में या शहरी शराबखानों में गाया सुनाया जाता

था।

प्रश्न 3: पाण्डुलिपियां क्या है ? इनका प्रयोग व्यापक स्तर पर क्यों नहीं किया जाता था ?

उत्तर: हाथ से लिखी पुस्तकों को पांडुलिपियाँ कहते है।

(i) किताबो की बढ़ती माँग पांडुलिपियों से पूरी नहीं होने वाली थी।

(ii) नकल उतारना बेहद खर्चीला, समय अधिक लगना माँग पूरी नहीं होना।

(iii) ये बहुत नाजुक होती थी, लाने ने जाने, रख - रखाव में मुश्किलें आती थी।

(iv) उपरोक्त समस्याओं की वजह से उनका आदान प्रदान मुश्किल था।

प्रश्न 4: भारतीय लोग किस प्रकार अपनी पांडुलिपियों की नकल करते थे तथा उन्हें सुरक्षित रखते थे ?

उत्तर:

(i) पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थी।

(ii) पन्नों पर सुन्दर तस्वीरें भी बनाई जाती थी।

(iii) उन्हें तख्तियों की जिल्द में रखा जाता था।

(iv) उन्हें ख्याल#2354; से सिलकर बाँध दिया जाता था।

प्रश्न 5: मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति लाने में क्या भूमिका निभाई ?

उत्तर:

(i) छपाई के चलते विचारों का प्रसार उनके लेखन ने परपंरा, अंधविश्वास और निरकुंशवाद की आलोचना।

(ii) रीति - रिवाजों की जगह विवके के शासन पर बल दिया।

(iii) चर्च की धार्मिक और राज्य की निरंकुश सत्ता पर हमला।

(vi) छपाई ने वाद - विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया।

प्रश्न 6:19 वीं सदी में महिलाओं द्वारा पढ़ने के चलन के प्रति लोगों का क्या रवैया था ? महिलाओं की इस संदर्भ में क्या प्रतिक्रिया थी ?

उत्तर:

(i) उदारवादी पति और पिता अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे।

(ii) शहरों में छोटे - छोटे स्कूल खुले तो उन्हें स्कूल भेजने लगे।

(iii) बागी औरतों ने इन प्रतिबंधों को अस्वीकार कर दिया।

प्रश्न 7: भारत में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में मुद्रण संस्कृति ने किस प्रकार योगदान दिया ?

उत्तर:

(i) दमनकारी नीति के बावजूद राष्ट्रवादी अखबार देश के हर कोने मे बढ़ते - फैलते गए।

(ii) उन्होंने औपनिवेशिक कुशासन के बारे में लिखा।

(iii) पंजाब के क्रांतिकारियों को गिरतार किया गया तो बाल गंगाधर तिलक ने

अपना केसरी समाचार छापा तथा लोगों ने गहरी हमदर्दी जताई।

(iv) पंजाब तथा देश के अन्य भागों में राष्ट्रवादी आंदोलन को बल मिला।

(v) इस कारण बाल गंगाधनर तिलक को कैद कर लिया गया जिसका पूरे भारत मे विरोध हुआ।

प्रश्न 8: तरीको का उल्लेख कीजिए जिनसे मुद्रित किताबों तक आम आदमी की पहुँच बढ़ी।

उत्तर:

(i) मद्रास में काफी सस्ती किताबें चैक - चैराहों पर बेची जा रही थी ?। अब गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकते थे।

(ii) सार्वजनिक पुस्तकालय खुलना, शहरों तथा कस्बों या सम्पन्न गांवो में।

(iii) जाति भेद के बारे में लिखना पुस्तिकाओं और निबन्धों में।

(vi) मजदूरों में नशा खोरी कम हो साक्षरता आए तथा राष्ट्रवादी का संदेश पहुँचे।

प्रश्न 9: रोमन कैथोलिक चर्च के विभाजन में मुद्रण संस्कृति की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:

(i) मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक की कुरीतियों की आलोचना करते हुए 95 स्थापनाएं लिखी।

(ii) इसकी एक छपी प्रति ब्रिटेन वर्ग के गिरजाघर के दरवाजे पर टाँगी गई।

(iii) लूथर के लेख बड़ी तादात में छापे गये।

(vi) नतीजा यह हुआ कि चर्च का विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेट धर्म की सुधार की शुरूआत हुई।

प्रश्न 10: मुद्रण ने किस प्रकार समुदायों और भारत के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों को जोड़ने का कार्य किया था ?

उत्तर:

(i) मुद्रित प्रणाली ने नए विचारों के विकास, प्रसार और अभिव्यक्ति हेतु एक नए प्लेटफार्म का विकास किया।

(ii) मुद्रित प्रणाली संचार का सबसे सस्ता और सरल साधन था।

(iii) ये भारत के लोगों की समस्या को उजागर करते थे।

(iv) धार्मिक पुस्तके बड़ी तादाद में व्यापक जन समुदाय तक पहुँच रही थी।

(v) अखबार भारतीय मूल के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक समाचार पहुँचाते थे।

प्रश्न 11: 'वुडब्लॉक' ( काठ की तख्ती ) वाली छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई इस कथन को

स्पष्ट करो।

उत्तर: वुडब्लाॅक वाली छपाई यूरोप में 1295 ई. के पश्चात् आई क्योकि-

(i) यह तकनीक पहले चीन के पास थी।

(ii) मार्को पोलों यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा।

(iii) मार्को पोला ने यूरोप को गुडब्लाॅक तकनीक से अवगत कराया।

(iv ) यह तकनीक यूरोप में फैल गयी।

प्रश्न 12: जापान की मुद्रण प्रणाली का विकास कैसे और कब हुआ?

उत्तर:

(i) 768 - 776 ई. में चीनी बौद्ध भिक्षु जापान में हस्तलिखित प्रणाली को लेकर पहुँचे।

(ii) 868 ई. में जापान में बौद्ध धर्म पर आधारित डायमंत्र सूत्रछपी।

(iii) एदो ( टोक्यों ) में चित्रों का छापना शुरू हो गया पुस्तके अनेक विषयों पर लिखी गई।

प्रश्न 13: छापेखाने की तकनीक में क्या नए प्रयोग हुए ?

उत्तर:

(i) रिचर्ड एम. ह्मू ने बिजली से चलने वाले सिलेंडरिकल प्रेस का आविष्कार किया।

(ii) आॅफसेट प्रेस के छः रगों से प्रिटिंग सम्भव हो गई।

(iii) कागज के पृष्ठ के स्थल पर रोल का प्रयोग होने लगा।

(iv) प्रिटिंग प्रक्रिया आॅटोमेटिक हो गई।

प्रश्न 14: "कैलिग्राफ" शब्द का क्या अर्थ है ?

उत्तर: चीन में मुद्रण प्रणाली का प्रचलन प्राचील काल से हो रहा था। 1594 ई. में लकड़ी के ब्लाॅक बनाकर उन पर स्याही फेरकर प्रिटिंग की जाती थी। पतले पेपर पर कागज के दोनों तरफ संभव नहीं था अतः मोटे पृष्ठों की सिलाई कर पुस्तक तैयार की जाती थी और इस पर सुन्दर आकृतियों को उभारते थे। इसे कैलीग्राफ कहा जाता है।



NCERT Solutions for Class 10 Social Science History in Hindi

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Chapter 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
Chapter 2: भारत में राष्ट्रवाद
Chapter 3: भूमंडलीकृत विश्व का बनना
Chapter 4: औद्योगिकीकरण की युग
Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

NCERT Solutions for Class 10 Social Science Geography in Hindi


NCERT Solutions for Class 10 Social Science Political Science in Hindi


NCERT Solutions for Class 10 Social Science Economics in Hindi

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