NCERT Solutions | Class 11 Arthshastra Chapter 9

NCERT Solutions | Class 11 Arthshastra भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास (Bhartiya Arthvyavastha ka Vikas) Chapter 9 | पर्यावरण और धारणीय विकास 

NCERT Solutions for Class 11 Arthshastra भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास (Bhartiya Arthvyavastha ka Vikas) Chapter 9 पर्यावरण और धारणीय विकास

CBSE Solutions | Arthshastra Class 11

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NCERT | Class 11 Arthshastra भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास (Bhartiya Arthvyavastha ka Vikas)

NCERT Solutions Class 11 Arthshastra
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 11
Subject: Arthshastra
Chapter: 9
Chapters Name: पर्यावरण और धारणीय विकास
Medium: Hindi

पर्यावरण और धारणीय विकास | Class 11 Arthshastra | NCERT Books Solutions

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 9 (Hindi Medium)

प्रश्न अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
पर्यावरण को समस्त भूमंडलीय विरासत और संसाधनों की समग्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें वे सभी जैविक और अजैविक तत्व आते हैं, जो एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

प्र.2. जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?
उत्तर :
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 9 (Hindi Medium) 1

प्र.3. निम्न को नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें
(क) वृक्ष
(ख) मछली
(ग) पेट्रोलियम
(घ) कोयला
(ङ) लौह अयस्क
(च) जल
उत्तर :
नवीकरणीय ससांधन-वृक्ष, मछली गैर-नवीकरणीय ससांधन-पेट्रोलियम, कोयला, लौह-अयरेक जल

प्र.4. आजकल विश्व के सामने “……………………..” और “……………………..” की दो मुख्य पर्यावरणीय समस्याएँ हैं।
उत्तर :
वैश्विक ऊष्णता और ओजोन अपक्षय।

प्र.5. निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं• बढ़ती जनसंख्या

  • वायु-प्रदूषण
  • जल-प्रदूषण
  • संपन्न उपभोग मानक
  • निरक्षरता
  • औद्योगीकरण
  • शहरीकरण
  • वन-क्षेत्र में कमी
  • अवैध वन कटाई
  • वैश्विक ऊष्णता
उत्तर :
(क) बढ़ती जनसंख्या- बढ़ती जनसंख्या से प्राकृतिक संसाधनों की माँग बढ़ जाती है। जबकि प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति स्थिर है। इससे अतिरेक माँग उत्पन्न होती है जो प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालती है। इन संसाधनों का अत्यधिक उपभोग किया जाता है और उपभोग धारण क्षमता की सीमा से बाहर चला जाता है जिससे पर्यावरणीय हानि होती है। इससे सरकार के समक्ष सर्व की आवश्यकताएँ पूरी करने में असमर्थता की समस्या आती है।
(ख) वायु-प्रदूषण- इससे कई प्रकार की बीमारियाँ जैसे दमा, फेफड़ों का कैंसर, क्षय रोग होती हैं। इससे सरकार के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक व्यय की समस्या उत्पन्न होती है।
(ग) जल-प्रदूषण- इससे हैजा, मलेरिया, अतिसार, दस्त जैसी कई बीमारियाँ होती हैं। इससे भी सरकार के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक व्यय की समस्या उत्पन्न होती है।
(घ) संपन्न उपभोग मानक- इससे प्राकृतिक संसाधनों की माँगें बढ़ जाती हैं। जबकि प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति स्थिर है। इससे अतिरेक माँग उत्पन्न होती है। जो प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालती है। इन संसाधनों का अत्यधिक उपभोग किया जाता है और उपभोग धारण क्षमता की सीमा से बाहर चला जाता है। जिससे पर्यावरणीय हानि होती है। इससे समस्या ये उत्पन्न होती है कि अमीर वर्ग तो कुत्तों के खाने, सौंदर्य प्रसाधन और विलासिताओं पर व्यय करते हैं और गरीब वर्ग को अपने बच्चों और परिवार की आधारभूत आवश्यकताओं के लिए भी धन नहीं मिलता।
(ङ) निरक्षरता- ज्ञान के अभाव के कारण लोग ऐसे संसाधनों का प्रयोग करते रहते हैं जैसे-उपले, लकड़ी आदि। इससे संसाधनों का दुरुपयोग होता है। यह दुरुपयोग पर्यावरण को हानि पहुँचाता है। सरकार को लोगों के स्वास्थ्य पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है।
(च) औद्योगीकरण- इसे वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण होता है। इससे काफी बीमारियाँ जैसे: दमा, कैंसर, हैजा, अतिसार, मलेरिया, बहरापन आदि हो सकती हैं। अत: सरकार का स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय बढ़ रहा है जिससे सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है।
(छ) शहरीकरण- इससे प्राकृतिक संसाधनों की माँग बढ़ जाती है जबकि प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति स्थिर है। इन संसाधनों का अति उपयोग होता है और यह उपयोग धारण क्षमता की सीमा को पार कर देता है जिससे पर्यावरण का अपक्षय होता है। इससे भी आय की असमानताओं के कारण अमीर वर्ग कुत्तों के खाने, सौंदर्य प्रसाधन पर खर्च करता है और गरीब वर्ग परिवार की आधारभूत आवश्यकताओं के लिए भी धन नहीं जुटा पाता।
(ज) वन-क्षेत्र में कमी- इससे पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से वैश्विक उष्णता हो रही है। अतः सरकार को स्वास्थ्य के साथ-साथ ऐसे तकनीकी अनुसंधान पर भी व्यय करना पड़ रहा है जिससे एक पर्यावरण अनुकूल वैकल्पिक तकनीक की खोज की जा सके।
(झ) अवैध वन कटाई- इससे जैविक विविधता प्रभावित हो रही है, मृदा क्षरण, वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है जिससे खाद्य श्रृंखला पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
(ट) वैश्विक ऊष्णता- वैश्विक उष्णता के कारण पूरे विश्व में तापमान बढ़ रहा है। यदि समुद्र के जल का तापमान मात्र 2°C से भी बढ़ गया तो संपूर्ण पृथ्वी जलमयी हो जाएगी।

प्र.6. पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर :
पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं
(क) यह जीवन के लिए संसाधन प्रदान करता है। नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय दोनों पर्यावरण द्वारा ही प्रदान किये जाते हैं।।
(ख) यह अवशेष को समाहित करता है।
(ग) यह जनहित और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
(घ) यह सौंदर्य विलयक सेवाएँ भी प्रदान करता है।

प्र.7. भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें।
उत्तर :
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक इस प्रकार हैं
(क) वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि;
(ख) अधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण;
(ग) वन भूमि का अतिक्रमण;
(घ) भू-संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना;
(ङ) कृषि-रसायन का अनुचित प्रयोग जैसे, रासायनिक खाद और कीटनाशक;
(च) सिंचाई व्यवस्था का नियोजन तथा अविवेकपूर्ण प्रबंधन;

प्र.8. समझायें कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च क्यों होती है?
उत्तर :
नकारात्मक पर्यावरण प्रभाव का सबसे नकारात्मक अवसर लागत पर्यावरण अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत है। वायु तथा जल गुणवत्ता (भारत में 70% जल स्रोत प्रदूषित हैं) में गिरावट के कारण वायु संक्रामक तथा जल संक्रामक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। फलस्वरूप, स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय बढ़ता जा रहा है। वैश्विक पर्यावरण मुद्दों जैसे वैश्विक ऊष्णता और ओजोन क्षय ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है, जिसके कारण सरकार को और अधिक धन व्यय करना पड़ा।

प्र.9. भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर :
धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
(क) ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों का उपयोग-
भारत अपनी विद्युत आवश्यकताओं के लिए थर्मल और हाइड्रो पॉवर संयंत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है। इन दोनों का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वायु शक्ति और सौर ऊर्जा गैर-पारंपरिक स्रोतों के अच्छे उदाहरण हैं। तकनीक के अभाव में इनका विस्तृत रूप से अभी तक विकास नहीं हो पाया है।
(ख) अधिक स्वच्छ ईंधनों का उपयोग-

शहरी क्षेत्रों में ईंधन के रूप में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। दिल्ली में जन-परिवहन में उच्च दाब प्राकृतिक गैस के उपयोग से प्रदूषण कम हुआ है और वायु स्वच्छ हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में बायोगैस और गोबर गैस को प्रोत्साहित किया जा रहा है जिससे वायु प्रदूषण कम हुआ है।
(ग) लघु जलीय प्लांटों की स्थापना- पहाड़ी इलाकों में लगभग सभी जगह झरने मिलते हैं। इन झरनों पर लघु जलीय प्लांटों की स्थापना हो सकती है। ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
(घ) पारंपरिक ज्ञान व व्यवहार- पारंपरिक रूप से भारत की कृषि व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधा व्यवस्था, आवास, परिवहन सभी क्रियाकलाप पर्यावरण के लिए हितकर रहे हैं। परंतु आजकल हम अपनी पारंपरिक प्रणालियों से दूर हो गए हैं, जिससे हमारे पर्यावरण और हमारी ग्रामीण विरासत को भारी मात्रा में हानि पहुँची है।
(ङ) जैविक कंपोस्ट खाद- कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग ने न केवल भू-क्षय किया है बल्कि जल व्यवस्था विशेषकर भूतल जल प्रणाली भी प्रदूषित हुई है।
(च) अधारणीय उपभोग तथा उत्पादन प्रवृत्तियों में परिवर्तन-धारणीय विकास प्राप्त करने के लिए हमें उपभोग प्रवृत्ति (संसाधनों के अति उपयोग और दुरुपयोग की अवहेलना) तथा उत्पादन प्रवृति (पर्यावरण अनुकूल तकनीकों का प्रयोग) में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

प्र.10. भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है-इस कथन के समर्थन में तर्क दें।
उत्तर :
क्षेत्र के मामले में भारत विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है जिसका कुल क्षेत्रफल 32,87 263 वर्ग किलोमीटर (32.87 करोड़ वर्ग हेक्टेयर) है। यह विश्व के कुल क्षेत्र का 2.42% हिस्सा है। निरपेक्ष संदर्भ में यह भारत वास्तव में एक बड़ा देश है। हालाँकि भूमि-आदमी अनुपात विशाल जनसंख्या के कारण अनुकूल नहीं है।

दक्षिण के पठार की काली मिट्टी विशिष्ट रूप से कपास की खेती के लिए उपयुक्त है। अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गंगा मैदान है जो कि विश्व के अत्यधिक उर्वरक क्षेत्रों में से एक है और विश्व में सबसे गहने खेती और जनसंख्या वाला क्षेत्र है।

भारत 4 ईंधन खनिजों, 11 धात्विक, 52 गैर-धात्विक, 22 लघु खनिजों और कुल 89 खनिजों का उत्पादन करता है। भारत में उच्च गुणवत्ता लौह अयस्क बहुतायत मात्रा में है। देश के कुल लौह-अयस्क भंडार में 14,630 मिलियन टन हेमेटाइट और 10,619 मिलियन टन मैगनेटाइट है। हेमेटाइट लौह अयस्क मुख्यतः छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, गोआ और कर्नाटक में पाया जाता है। कोयला सबसे अधिक मात्रा में उपलब्ध खजिन संसाधन है। कोयला उत्पादन के क्षेत्र में भारत का चीन और अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा स्थान है।

प्र.11. क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर :
हाँ, पर्यावरण संकट एक नवीन घटना है। यह पूर्ति-माँग के उत्क्रमण से उत्पन्न हुई है। हाल के वर्षों में जनसंख्या में बहुत वृद्धि हुई है इससे संसाधन की माँग बढ़ गई है जबकि संसाधनों की आपूर्ति स्थिर है। इससे अतिरेक माँग उत्पन्न हुई है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डाल रही है। इन संसाधनों का उपयोग बढ़ रहा है और यह धारण क्षमता की सीमा से बाहर होता जा रहा है। इसने पर्यावरण संकट को जन्म दिया है।

प्र.12. इनके दो उदाहरण दें
(क)
पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग।
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग
उत्तर :
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग-जब लोग कुत्ते के भोजन, सौंदर्य प्रसाधन, अत्यधिक बिजली उपकरण, परिवार के सदस्यों की संख्या से अधिक संख्या में कारें खरीद रहे हैं तो ये पर्यावरणीय संसाधनों के अति प्रयोग के सूचक हैं।
(ख)

पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग-गोबर और लकड़ी ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, प्राकृतिक खाद के स्थान पर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाना, जैविक कीटनाशकों के स्थान पर रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग, ये पर्यावरणीय संसाधनों के दुरुपयोग के उदाहरण हैं।

प्र.13. पर्यावरण की चार मुख्य क्रियाओं का वर्णन कीजिए। महत्त्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए। पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
भारत में पर्यावरण संबंधी महत्त्वपूर्ण मुद्दे निम्नलिखित हैं
(क) जल संक्रमण-

भारत में औद्योगिक अवशिष्ट के कारण पेय जल संक्रामक होता जा रहा है। इससे जल संक्रामक बीमारियाँ फैल रही हैं।
(ख) वायु-प्रदूषण- शहरीकरण के कारण, भारतीय सड़कों पर वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मोटर वाहनों की संख्या 1951 के 3 लाख से बढ़कर 2003 में 67 करोड़ हो गई। भारत विश्व में दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है परंतु यह पर्यावरण पर अनचाहे एवं अप्रत्याशित प्रभावों की अवसर लागत पर हुआ है।
(ग) वनों की कटाई- भारत का वन आवरण बढ़ती जनसंख्या के कारण लगातार कम हो रहा है। इससे वायु प्रदूषण तथा उससे जुड़ी समस्याएँ भी बढ़ रही हैं। भारत में प्रतिव्यक्ति वन भूमि 0.08 हेक्टेयर है जबकि आवश्यकता 0.47 हेक्टेयर की है।
(घ) भू-क्षय- भू-क्षय वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि, वन भूमि का अतिक्रमण, वनों में आग और अत्यधिक चराई, भू–संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना, अनुचित फसल चक्र, कृषि-रसायन का अनुचित प्रयोग, सिंचाई व्यवस्था का नियोजन तथा अविवेकपूर्ण प्रबंधन, संसाधनों की निर्बाध उपलब्धता तथा कृषि पर निर्भर लागतों की दरिद्रता के कारण हो रहा है।

निश्चित रूप से, पर्यावरण हानि की भरपाई की अवसर लागत बिगड़ता स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सुविधाओं पर अतिरिक्त व्यय, खराब पर्यावरण में जीवन की खराब गुणवत्ता के रूप में है जिसे ठीक करने के लिए सरकार को अत्यधिक व्यय करना पड़ता है।

प्र.14. पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति-माँग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
अर्थ- पर्यावरण अपने कार्य बिना किसी रुकावट या बाधा के तब तक कर सकता है जब तक संसाधनों की माँग उनकी पूर्ति से कम हो। जब माँग, पूर्ति से अधिक हो जाती है तो पर्यावरण अपने कार्य सुरीति करने में असक्षम हो जाता है इससे पर्यावरण संकट जन्म लेता है। इसे पूर्ति-माँग के उत्क्रमण की संज्ञा दी जाती है। दूसरे शब्दों में, जब संसाधनों की उत्पादन तथा उपभोग माँग संसाधनों के पुनर्जनन दर से अधिक हो जाती है तो इससे पर्यावरण की अवशोषी क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है, इसे पूर्ति संसाधनों की पूर्ति माँग का उत्क्रमण कहा जाता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
(क) विकासशील देशों की बढ़ती जनसंख्या
(ख) विकसित देशों के संपन्न उपभोग तथा उत्पादन स्तर
(ग) नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की गहन और व्यापक निकासी।

प्र.15. वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें।
उत्तर :
भारत के पर्यावरण को दो तरफ से खतरा है। एक तो निर्धनता के कारण पर्यावरण का अपक्षय और दूसरा खतरा साधन संपन्नता और तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्रक के प्रदूषण से है।

भारत की अत्यधिक गंभीर पर्यावरण समस्याओं में वायु प्रदूषण, दूषित जल, मृदा क्षरण, वन्य कटाव और वन्य जीवन की विलुप्ति है।
(क) जल-प्रदूषण- भारत में ताजे जल के सर्वाधिक स्रोत अत्यधिक प्रदूषित होते जा रहे हैं। इनकी सफाई में सरकार को भारी व्यय करना पड़ रहा है। 120 करोड़ की जनसंख्या के लिए स्वच्छ जल का प्रबंधन सरकार के लिए एक बड़ी समस्या है। जल जीवों की विविधता भी विलुप्त होती दिखाई दे रही है।
(ख) भूमि अपक्षय-भारत में भूमि का अपक्षय विभिन्न मात्रा और रूपों में हुआ है, जो कि मुख्य रूप से अस्थिर प्रयोग और अनुपयुक्त (प्रबंधन) कार्य प्रणाली का परिणाम है।
(ग) ठोस अवशिष्ठ प्रबंधन-

विश्व की 17% जनसंख्या और विश्व पशुधन की 20% जनसंख्या भारत की मात्र 2.5% क्षेत्रफल में रहती है। जनसंख्या और पशुधन का अधिक घनत्व और वानिकी, कृषि, चराई, मानव बस्तियाँ और उद्योगों के प्रतिस्पर्धी उपयोगों से देश के निश्चित भूमि संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है।
(घ) जैविक विविधता की हानि-प्रदूषण के कारण बहुत से पशु-पक्षियों और पौधों को प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही है। इसका हमारे पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पेड़े रहा है।
(ङ) शहरी क्षेत्रों में वाहन प्रदूषण से उत्पन्न वायु प्रदूषण- भारत के शहरी क्षेत्रों में वायु-प्रदूषण बहुत है, जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है। कुछ अन्य क्षेत्रों में उद्योगों के भारी जमाव और तापीय शक्ति संयंत्रों के कारण वायु-प्रदूषण होता है। वाहन उत्सर्जन चिंता का प्रमुख कारण है क्योंकि यह धरातल पर वायु-प्रदूषण का स्रोत है और आम जनता पर अधिक प्रभाव डालता है।
(च) मृदा क्षरण- भारत ने एक वर्ष में भूमि का क्षरण 53 बिलियन टन प्रतिशत की दर से हो रहा है। भारत सरकार के अनुसार, प्रत्येक वर्ष मृदा क्षरण से 5.8 मिलियन से 8.4 मिलियन टन पोषक तत्वों की क्षति होती है।

प्र.16. भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें। भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है-एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में संपन्नता का कारण भी है। क्या यह सत्य है?
उत्तर :
भारत विश्व का दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है परंतु यह पर्यावरण की कीमत पर हुआ है। भारत में विकास के दो गंभीर पर्यावरण प्रभाव वायु प्रदूषण तथा जल संक्रमण है।

यह कहना सही है कि भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है। एक ओर यह निर्धनताजनित है क्योंकि निर्धन क्षेत्र भोजन पकाने के लिए, एल.पी.जी. खरीदने में सक्षम नहीं है। अतः वे गाय के गोबर के उपले और जलाऊ लकड़ी को ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं, यह संसाधनों का दुरुपयोग है। जबकि दूसरी ओर अमीर वर्ग निकटतम स्थान पर जाने के लिए कारों का प्रयोग करते हैं, हर कमरे में वातानुकूलिर का प्रयोग करते हैं, हीटर, माइक्रोवेव और अनेक बिजली उपकरणों का प्रयोग करते हैं जिससे संसाधनों का अति उपयोग हो रहा है तथा परिणामस्वरूप पर्यावरण दूषित हो रहा है।

प्र.17. धारणीय विकास क्या है?
उत्तर :
धारणीय विकास की कई परिभाषाएँ दी गई हैं परंतु सर्वाधिक उद्धृत परिभाषा आवर कॉमन फ्यूचर (Our common future) जिसे ब्रुटलैंड रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है, ने दी है।
” ऐसी विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता का समझौता किए बिना पूरा करे।
“इसके अंतर्गत दो महत्त्वपूर्ण अवधारणाए हैं ‘आवश्यकता’ और ‘भावी पीढियाँ’।

  • इस परिभाषा में आवश्यकता की अवधारणा का संबंध संसाधनों के वितरण से है। मुख्य रूप से संसाधन विश्व के गरीब वर्ग को भी समान रूप से मिलने चाहिए।
  • भावी पीढ़ियों से तात्पर्य है वर्तमान पीढ़ी को आगामी पीढ़ी द्वारा एवं बेहतर पर्यावरण उत्तराधिकार के रूप में सौंपा जाना चाहिए।

प्र.18. अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ सुझाइए।
उत्तर :
अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की निम्नलिखित रणनितियाँ हैं
ग्रामीण क्षेत्र के निवासी होने पर

  • ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी, उपलों या अन्य जैव पदार्थ के स्थान पर रसोई गैस और गोबर गैस का उपयोग
  • जहाँ पर खुला स्थान है उन गाँवों में वायु मिलों की स्थापना की जा सकती है।
  • हमें कृषि, स्वास्थ्य, आवास और परिवहन में ऐसा पारंपरिक ज्ञान और व्यवहार का प्रयोग करना चाहिए जो पर्यावरण के अनुकूल हो।
  • रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर हमें जैविक कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए।शहरी क्षेत्र के निवासी होने पर
  • फोटोवोल्टिक सेल द्वारा सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • वाहनों में पेट्रोल या डीजल की जगह उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करना चाहिए।

प्र.19. धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें।
उत्तर :
यह बहुत सुंदर कहा गया है कि यह पर्यावरण हमें पूर्वजों से विरासत में नहीं मिला बल्कि इसे हमने भावी पीढ़ियों से उधार
लिया है। जो चीज उधार ली जाती है उसे समान या बेहतर स्थिति में वापिस करना होता है। यहाँ पर वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता का विचार महत्त्वपूर्ण हो जाता है। हमें पिछली पीढ़ी को उपलब्ध संसाधनों और भावी पीढ़ी को उपलब्ध संसाधनों के बीच समता बनाने की आवश्यकता है। हम अपनी भावी पीढ़ी के भविष्य को दाव पर लगाकर अपने वर्तमान का आनंद नहीं ले सकते। अतः विकास धारणीय तभी हो सकता है जब हम विकास की ऐसी विधियाँ अपनाएँ जिससे वर्तमान समय में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन भविष्य आवश्यकताओं की परवाह किए बिना नहीं करती। हमें भावी पीढ़ियों को उतने ही संसाधन विरासत के रूप में सौंपने की जरूरत है जितने हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त किए हैं। संसाधनों का रूप अवश्य अलग हो सकता है जैसे हमने पेट्रोलियम पाया और हम उच्च दाब प्राकृतिक गैस दे रहे हैं, अतः शब्द समान नहीं है, समता है।

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