CBSE Class 10 Hindi A Unseen Passages अपठित गद्यांश

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अपठित गद्यांश CBSE Class 10 Hindi A Unseen Passages अपठित गद्यांश

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CBSE Class 10 Hindi A Unseen Passages अपठित गद्यांश Textbook Questions and Answers

अपठित बोध

अपठित बोध ‘अपठित’ शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘unseen’ का समानार्थी है। इस शब्द की रचना ‘पाठ’ मूल शब्द में ‘अ’ उपसर्ग और ‘इत’ प्रत्यय जोड़कर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है-‘बिना पढ़ा हुआ।’ अर्थात गद्य या काव्य का ऐसा अंश जिसे पहले न पढ़ा गया हो। परीक्षा में अपठित गद्यांश और काव्यांश पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस तरह के प्रश्नों को पूछने का उद्देश्य छात्रों की समझ अभिव्यक्ति कौशल और भाषिक योग्यता का परख करना होता है।

अपठित गद्यांश

अपठित गद्यांश अपठित गद्यांश प्रश्नपत्र का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों से नहीं पूछा जाता है। यह अंश साहित्यिक पुस्तकों पत्र-पत्रिकाओं या समाचार-पत्रों से लिया जाता है। ऐसा गद्यांश भले ही निर्धारित पुस्तकों से हटकर लिया जाता है परंतु, उसका स्तर, विषय वस्तु और भाषा-शैली पाठ्यपुस्तकों जैसी ही होती है।

प्रायः छात्रों को अपठित अंश कठिन लगता है और वे प्रश्नों का सही उत्तर नहीं दे पाते हैं। इसका कारण अभ्यास की कमी है। अपठित गद्यांश को बार-बार हल करने से –

  • भाषा-ज्ञान बढ़ता है।
  • नए-नए शब्दों, मुहावरों तथा वाक्य रचना का ज्ञान होता है।
  • शब्द-भंडार में वृद्धि होती है, इससे भाषिक योग्यता बढ़ती है।
  • प्रसंगानुसार शब्दों के अनेक अर्थ तथा अलग-अलग प्रयोग से परिचित होते हैं।
  • गद्यांश के मूलभाव को समझकर अपने शब्दों में व्यक्त करने की दक्षता बढ़ती है। इससे हमारे अभिव्यक्ति कौशल में वृद्धि होती है।
  • भाषिक योग्यता में वृद्धि होती है।

अपठित गद्यांश के प्रश्नों को कैसे हल करें –

अपठित गद्यांश के प्रश्नों को कैसे हल करेंअपठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए

  • गद्यांश को एक बार सरसरी दृष्टि से पढ़ लेना चाहिए।
  • पहली बार में समझ में न आए अंशों, शब्दों, वाक्यों को गहनतापूर्वक पढ़ना चाहिए।
  • गद्यांश का मूलभाव अवश्य समझना चाहिए।
  • यदि कुछ शब्दों के अर्थ अब भी समझ में नहीं आते हों तो उनका अर्थ गद्यांश के प्रसंग में जानने का प्रयास करना चाहिए।
  • अनुमानित अर्थ को गद्यांश के अर्थ से मिलाने का प्रयास करना चाहिए।
  • गद्यांश में आए व्याकरण की दृष्टि से कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों को रेखांकित कर लेना चाहिए। अब प्रश्नों को पढ़कर संभावित उत्तर गद्यांश में
  • खोजने का प्रयास करना चाहिए।
  • शीर्षक समूचे गद्यांश का प्रतिनिधित्व करता हुआ कम से कम एवं सटीक शब्दों में होना चाहिए।
  • प्रतीकात्मक शब्दों एवं रेखांकित अंशों की व्याख्या करते समय विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • मूल भाव या संदेश संबंधी प्रश्नों का जवाब पूरे गद्यांश पर आधारित होना चाहिए।
  • प्रश्नों का उत्तर देते समय यथासंभव अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए।
  • उत्तर की भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहमयी होनी चाहिए।
  • प्रश्नों का जवाब गद्यांश पर ही आधारित होना चाहिए, आपके अपने विचार या राय से नहीं।
  • अति लघूत्तरात्मक तथा लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तरों की शब्द सीमा अलग-अलग होती है, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • प्रश्नों का जवाब सटीक शब्दों में देना चाहिए, घुमा-फिराकर जवाब देने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए – 

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

प्रश्नः 1.

आकाश गंगा को यह नाम क्यों मिला?
उत्तर:
आकाश में पृथ्वी से देखने पर आकाशगंगा नदी की धारा की भाँति दिखाई देती है, इसलिए इसका नाम आकाशगंगा पड़ा।

प्रश्नः 2.
पृथ्वी से कितनी आकाशगंगा दिखाई देती है ? उनके नाम क्या हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी से केवल एक आकाशगंगा दिखाई देती है। इसका नाम ‘स्पाइरल गैलेक्सी’ है।

प्रश्नः 3.
आकाशगंगा में कितने तारे हैं ? उनमें सूर्य की स्थिति क्या है?
उत्तर:
आकाशगंगा में लगभग बीस अरब तारे हैं, जिनमें अनेक सूर्य से भी बड़े हैं। सूर्य इसी आकाशगंगा का एक सदस्य है जो इसके केंद्र से दूर इसकी एक भुजा पर स्थित है।

प्रश्नः 4.
आकाशगंगा में उभार और मछली की भाँति भुजाएँ निकलती क्यों दिखाई पड़ती हैं ?
उत्तर:
आकाशगंगा के केंद्र में तारों का जमावड़ा है। यही जमावड़ा उभार की तरह दिखाई देता है। आकाशमंडल में अन्य तारे धूल और गैस के बादलों में समाए हुए हैं। इनकी स्थिति देखने में मछली की भुजाओं की भाँति निकलती-सी प्रतीत होती हैं।

प्रश्नः 5.
प्रकाश वर्ष क्या है? गद्यांश में इसका उल्लेख क्यों किया गया है?
उत्तर:
प्रकाशवर्ष लंबी दूरी मापने की इकाई है। एक प्रकाशवर्ष प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गई दूरी होती है। गद्यांश में इसका उल्लेख आकाशगंगा की विशालता बताने के लिए किया गया है, जिसकी लंबाई एक लाख प्रकाश वर्ष है।

उदाहरण (उत्तर सहित)

कुछ अपठित गद्यांशों के उदाहरण दिए जा रहे हैं। छात्र इनका अभ्यास करें।
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

1. भारत में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश को खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर बनाना था, लेकिन इस बात की आशंका किसी को नहीं थी कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल न सिर्फ खेतों में, बल्कि खेतों से बाहर मंडियों तक में होने लगेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग खाद्यान्न की गुणवत्ता के लिए सही नहीं है, लेकिन जिस रफ़्तार से देश की आबादी बढ़ रही है, उसके मद्देनज़र फ़सलों की अधिक पैदावार ज़रूरी थी। समस्या सिर्फ रासायनिक खादों के प्रयोग की ही नहीं है। देश के ज़्यादातर किसान परंपरागत कृषि से दूर होते जा रहे हैं।

दो दशक पहले तक हर किसान के यहाँ गाय, बैल और भैंस खूटों से बँधे मिलते थे। अब इन मवेशियों की जगह ट्रैक्टर-ट्राली ने ले ली है। परिणामस्वरूप गोबर और घूरे की राख से बनी कंपोस्ट खाद खेतों में गिरनी बंद हो गई। पहले चैत-बैसाख में गेहूँ की फ़सल कटने के बाद किसान अपने खेतों में गोबर, राख और पत्तों से बनी जैविक खाद डालते थे। इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा-शक्ति बरकरार रहती थी, बल्कि इससे किसानों को आर्थिक लाभ के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाली फसल मिलती थी। 

प्रश्नः 1.
हमारे देश में हरित क्रांति का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
हमारे देश में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य था – देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना।

प्रश्नः 2.
खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किनका प्रयोग सही नहीं था?
उत्तर:
खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने हेतु रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक नहीं था।

प्रश्नः 3.
विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता के लिए क्या आवश्यक मानने लगे और क्यों?
उत्तर:
विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता हेतु रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक मानते थे क्योंकि देश की आबादी
बहुत तेजी से बढ़ रही थी। इसका पेट भरने के लिए फ़सल के भरपूर उत्पादन की आवश्यकता थी।

प्रश्नः 4.
हरित क्रांति ने किसानों को परंपरागत कृषि से किस तरह दूर कर दिया?
उत्तर:
हरित क्रांति के कारण किसान खेती के पुराने तरीके से दूर होते गए। वे खेती में हल-बैलों की जगह ट्रैक्टर की मदद से कृषि कार्य करने लगे। इससे बैल एवं अन्य जानवर अनुपयोगी होते गए।

प्रश्नः 5.
हरित क्रांति का मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर क्या असर हुआ? इसे समाप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर:
हरित क्रांति की सफलता के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से ज़मीन प्रदूषित होती गई, जिससे वह अपनी उपजाऊ क्षमता खो बैठी। इसे समाप्त करने के लिए खेतों में घूरे की राख और कंपोस्ट की खाद के अलावा जैविक खाद का प्रयोग भी करना चाहिए।

2. ताजमहल, महात्मा गांधी और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र-इन तीन बातों से दुनिया में हमारे देश की ऊँची पहचान है। ताजमहल भारत की अंतरात्मा की, उसकी बहुलता की एक धवल धरोहर है। यह सांकेतिक ताज आज खतरे में है। उसको बचाए रखना बहुत ज़रूरी है।

मजहबी दर्द को गांधी दूर करता गया। दुनिया जानती है, गांधीवादी नहीं जानते हैं। गांधीवादी उस गांधी को चाहते हैं जो कि सुविधाजनक है। राजनीतिज्ञ उस गांधी को चाहते हैं जो कि और भी अधिक सुविधाजनक है। आज इस असुविधाजनक गांधी का पुनः आविष्कार करना चाहिए, जो कि कड़वे सच बताए, खुद को भी औरों को भी।

अंत में तीसरी बात लोकतंत्र की। हमारी जो पीड़ा है, वह शोषण से पैदा हुई है, लेकिन आज विडंबना यह है कि उस शोषण से उत्पन्न पीड़ा का भी शोषण हो रहा है। यह है हमारा ज़माना, लेकिन अगर हम अपने पर विश्वास रखें और अपने पर स्वराज लाएँ तो हमारा ज़माना बदलेगा। खुद पर स्वराज तो हम अपने अनेक प्रयोगों से पा भी सकते हैं, लेकिन उसके लिए अपनी भूलें स्वीकार करना, खुद को सुधारना बहुत आवश्यक होगा 

प्रश्नः 1.
संसार में भारत की प्रसिद्धि का कारण क्या है?
उत्तर:
संसार में भारत की प्रसिद्धि के तीन कारण हैं-ताजमहल, महात्मा गांधी और लोकतांत्रिक प्रणाली।

प्रश्नः 2.
गांधीवादी आज किस तरह के गांधी को चाहते हैं ?
उत्तर:
गांधीवादी आज उस गांधी को चाहते हैं जो सुविधाजनक है।

प्रश्नः 3.
हमारे देश के लिए ताजमहल का क्या महत्त्व है? आज इसे किस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है?
उत्तर:
हमारे देश के लिए ताजमहल का विशेष महत्त्व है। यह हमारे देश की अंतरात्मा की उसकी बहुलता की धरोहर है। आज प्रदूषण के कारण यह खतरे की स्थिति से गुजर रहा है। इसकी रक्षा करना आवश्यक हो गया है।

प्रश्नः 4.
राजनीतिज्ञ किस गांधी की आकांक्षा रखते हैं ? वास्तव में आज कैसे गांधी की ज़रूरत है?
उत्तर:
राजनीतिज्ञ उस गांधी की आकांक्षा रखते हैं जो और भी सुविधाजनक हो। वास्तव में आज ऐसे गांधी की आवश्यकता है जो खुद को भी कड़वा सच बताए और दूसरों को भी बताए।

प्रश्नः 5.
ज़माना बदलने के लिए क्या आवश्यक है ? इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
ज़माना बदलने के लिए हमें स्वयं पर स्वराज लाना होगा। इसे पाने के लिए हमें अपने पर अनेक प्रयोग करने होंगे, अपनी भूलें स्वीकारनी होंगी तथा खुद को सुधारना होगा।

3. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययनों और संयुक्त राष्ट्र की मानव-विकास रिपोर्टों ने भारत के बच्चों में कुपोषण की व्यापकता के साथ-साथ बाल मृत्यु-दर और मातृ मृत्यु दर का ग्राफ़ काफ़ी ऊँचा रहने के तथ्य भी बार-बार जाहिर किए हैं। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट बताती है कि लड़कियों की दशा और भी खराब है।

पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बाद, बालिग होने से पहले लड़कियों को ब्याह देने के मामले दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा भारत में होते हैं। मातृ-मृत्यु दर और शिशु मृत्यु-दर का एक प्रमुख कारण यह भी है। यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी हुई है जब बच्चों के अधिकारों से संबंधित वैश्विक घोषणा-पत्र के पच्चीस साल पूरे हो रहे हैं। इस घोषणा-पत्र पर भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों ने भी हस्ताक्षर किए थे। इसका यह असर ज़रूर हुआ कि बच्चों की सेहत, शिक्षा, सुरक्षा से संबंधित नए कानून बने, मंत्रालय या विभाग गठित हुए, संस्थाएँ और आयोग बने।

घोषणा-पत्र से पहले की तुलना में कुछ सुधार भी दर्ज हआ है। पर इसके बावजूद बहुत सारी बातें विचलित करने वाली हैं। मसलन, देश में हर साल लाखों बच्चे गुम हो जाते हैं। लाखों बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर हैं। श्रम-शोषण के लिए विवश बच्चों की तादाद इससे भी अधिक है वे स्कूल में पिटाई और घरेलू हिंसा के शिकार होते रहते हैं।

परिवार के स्तर पर देखें तो संतान का मोह काफ़ी प्रबल दिखाई देगा, मगर दूसरी ओर बच्चों के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता बहुत क्षीण है। कमज़ोर तबकों के बच्चों के प्रति तो बाकी समाज का रवैया अमूमन असहिष्णुता का ही रहता है। क्या ये स्वस्थ समाज के लक्षण हैं? 

प्रश्नः 1.
यूनिसेफ की रिपोर्ट में किस बात पर चिंता व्यक्त की गई है ?
उत्तर:
यूनिसेफ की रिपोर्ट में नवजात बच्चों और माताओं की ऊँची मृत्युदर पर चिंता व्यक्त की गई है।

प्रश्नः 2.
घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य था बच्चों एवं माताओं की मृत्युदर में कमी लाकर उनकी दशा सुधारने का प्रयास करना।

प्रश्नः 3.
भारत-पाकिस्तान किस समस्या से जूझ रहे हैं? इसका मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान दोनों ही नवजात बच्चों एवं माताओं की ऊची मृत्युदर की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका मुख्य कारण वयस्क होने से पहले ही लड़कियों का विवाह कर देना है। इस अवस्था में लड़कियाँ गर्भधारण के योग्य नहीं होती हैं।

प्रश्नः 4.
बच्चों के अधिकारों से संबंधित घोषणापत्र जारी होने के बाद क्या सुधार हुआ और ऐसी कौन-सी बातें हैं जो हमें दुखी करती हैं?
उत्तर:
बच्चों के अधिकारों से संबंधित घोषणापत्र जारी होने के बाद बच्चों की सेहत, शिक्षा सुरक्षा आदि से जुड़े कानून बने पर प्रतिवर्ष लाखों बच्चों का गुम होना, लाखों बच्चों का स्कूल न जाना, बाल श्रमिक बनने को विवश होना तथा पिटाई एवं हिंसा का शिकार होना आदि हमें दुखी करती है।

प्रश्नः 5.
क्या ये स्वस्थ समाज के लक्षण हैं ? ऐसा किस स्थिति को देखकर कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
गरीब वर्ग के बच्चों के प्रति समाज का रवैया अच्छा न होना, उनके प्रति असहिष्णुता की भावना रखना आदि स्थिति को देखकर ऐसा कहा गया है क्योंकि एक ओर परिवार में संतान के प्रति काफ़ी मोह दिखाई देता है तो सामाजिक स्तर पर लोग संवेदनहीन बन गए हैं।

4. चंपारण सत्याग्रह के बीच जो लोग गांधी जी के संपर्क में आए वे आगे चलकर देश के निर्माताओं में गिने गए। चंपारण में गांधी जी न सिर्फ सत्य और अहिंसा का सार्वजनिक हितों में प्रयोग कर रहे थे बल्कि हलुवा बनाने से लेकर सिल पर मसाला पीसने और चक्की चलाकर गेहूँ का आटा बनाने की कला भी उन बड़े वकीलों को सिखा रहे थे, जिन्हें गरीबों की अगुवाई की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। अपने इन आध्यात्मिक प्रयोगों के माध्यम से वे देश की गरीब जनता की सेवा करने और उनकी तकदीर बदलने के साथ देश को आजाद कराने के लिए समर्पित व्यक्तियों की एक ऐसी जमात तैयार करना चाह रहे थे जो सत्याग्रह की भट्ठी में उसी तरह तपकर निखरे, जिस तरह भट्ठी में सोना तपकर निखरता और कीमती बनता है।

गांधी जी की मान्यता थी कि एक प्रतिष्ठित वकील और हज़ामत बनाने वाले हज़्ज़ाम में पेशे के लिहाज़ से कोई फ़र्क नहीं, दोनों की हैसियत एक ही हैं। उन्होंने पसीने की कमाई को सबसे अच्छी कमाई माना और शारीरिक श्रम को अहमियत देते हुए उसे उचित प्रतिष्ठा व सम्मान दिया था। कोई काम बड़ा नहीं, कोई काम छोटा नहीं, इस मान्यता को उन्होंने प्राथमिकता दी ताकि साधन शुद्धता की बुनियाद पर एक ठीक समाज खड़ा हो सके। आज़ाद हिंदुस्तान आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और आत्म-सम्मानित देश के रूप में विश्व-बिरादरी के बीच अपनी एक खास पहचान बनाए और फिर उसे बरकरार भी रखे। 

प्रश्नः 1.
किसी काम या पेशे के बारे में गांधी जी की मान्यता क्या थी?
उत्तर:
किसी काम या पेशे के बारे में गांधी जी की मान्यता यह थी कि एक प्रसिद्ध वकील और हज्जाम के पेशे में कोई अंतर नहीं है।

प्रश्नः 2.
गांधी जी सबसे अच्छी कमाई किसे मानते थे?
उत्तर:
गांधी जी पसीने की कमाई को सबसे अच्छी कमाई मानते थे।

प्रश्नः 3.
चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी आध्यात्मिक प्रयोग क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी आध्यात्मिक प्रयोग इसलिए कर रहे थे ताकि देश की गरीब जनता की सेवा करने तथा देश को आजाद कराने के लिए ऐसे लोगों की फ़ौज तैयार की जा सके जो उद्देश्य के प्रति समर्पित रहें।

प्रश्नः 4.
गांधी जी लोगों को शारीरिक श्रम का महत्त्व किस तरह समझा रहे थे?
उत्तर:
गांधी जी लोगों को शारीरिक श्रम समझाने के लिए उच्चशिक्षित लोगों को हलुवा बनाने और सिल पर मसाला पीसने जैसे काम सिखा रहे थे ताकि लोग शारीरिक श्रम में रुचि लें।

प्रश्नः 5.
शारीरिक श्रम को महत्त्व देने और हर काम को समान समझने के पीछे गांधी जी की दूरदर्शिता क्या थी?
उत्तर:
शारीरिक श्रम को महत्त्व देने और हर काम को समान समझने के पीछे गांधी जी की दूरदर्शिता यह थी कि इससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके जिससे देश हमारा आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनकर दुनिया में एक अलग पहचान बनाए। ।

5. आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?

बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी। 

प्रश्नः 1.
नारी की वास्तविक आज़ादी कब होगी?
उत्तर:
नारी की वास्तविक आज़ादी तब होगी जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह मन से आज़ादी महसूस कर सकेगी।

प्रश्नः 2.
कामयाबी, नैतिकता शब्दों से प्रत्यय अलग करके मूलशब्द भी लिखिए। 
उत्तर:
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प्रश्नः 3.
कैसे कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की है?
उत्तर:
वर्तमान समय में नारी प्रौदयोगिकी, सेना, वायुसेना, विज्ञान आदि क्षेत्र में तरह-तरह के रूपों में सफलता के झंडे गाड़ रही है। उसने हर क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ी है। इस तरह कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की हैं।

प्रश्नः 4.
दूरदराज़ के क्षेत्रों में लेखक को महिलाओं की आज़ादी पर संदेह क्यों लगता है ?
उत्तर:
दूरदराज के क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में महिलाओं की आज़ादी के बारे में लेखक को इसलिए संदेह लगता है क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में महिलाएँ स्वतंत्र मनुष्य की भाँति अपना फैसला स्वयं लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने का साहस नहीं कर पा रही हैं।

प्रश्नः 5.
नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वह कमज़ोर क्यों पड़ जाती है?
उत्तर:
नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो इसलिए कमज़ोर पड़ जाती है क्योंकि तब इसकी राह में धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता की बात सामने आ जाती है और परिवार की स्थिरता के लिए उसे समर्पण भाव अपनाना पड़ता हैं।

6. अकाल के बीच भी अच्छे काम और अच्छे विचार का एक सुंदर छोटा सा उदाहरण राजस्थान के अलवर क्षेत्र का है जहाँ तरुण भारत संघ पिछले बीस बरस से काम कर रहा है। वहाँ पहले अच्छा विचार आया तालाबों का, हर नदी, नाले को छोटे-छोटे बाँधों से बाँधने का। इस तरह वहाँ आसपास के कुछ और जिलों के कोई 600 गाँवों ने बरसों तक वर्षा की एकएक बूंद को सहेज लेने का काम चुपचाप किया। इन तालाबों, बाँधों ने वहाँ सूखी पड़ी पाँच नदियों को ‘सदानीरा’ का नाम वापस दिलाया।

अच्छे विचारों से अच्छा काम हुआ और फिर आई चुनौती भरे अकाल की पहली सूचना। नदियों में, तालाबों में, कुओं में वहाँ तब भी पानी लबालब भरा था। फिर भी इस क्षेत्र के लोगों ने, किसानों ने आज से सात-आठ माह पहले यह निर्णय किया कि पानी कम गिरा है इसलिए ऐसी फ़सलें नहीं बोनी चाहिए जिनकी प्यास ज़्यादा होती है। तो कम पानी लेने वाली फ़सलें लगाई गईं। इसमें उन्हें कुछ आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा पर आज यह क्षेत्र अकाल के बीच में एक बड़े हरे द्वीप की तरह खड़ा है। यहाँ सरकार को न तो टैंकरों से पानी ढोना पड़ रहा है न अकाल राहत का पैसा बाँटना पड़ा है। गाँव के लोग, किसी के आगे हाथ नहीं पसार रहे हैं।

उनका माथा ऊँचा है। पानी के उम्दा काम ने उनके स्वाभिमान की भी रक्षा की है। अलवर में नदियाँ एक दूसरे से जोड़ी नहीं गई हैं। यहाँ के लोग अपनी नदियों से, अपने तालाबों से जुड़े हैं। यहाँ पैसा नहीं बहाया गया है, पसीना बहाया है, लोगों ने और उनके अच्छे काम और अच्छे विचारों ने अकाल को एक दर्शक की तरह पाल के किनारे खड़ा कर दिया है। 

प्रश्नः 1.
तरुण भारत संघ कहाँ काम कर रहा है?
उत्तर:
तरुण भारत संघ राजस्थान के अलवर क्षेत्र में काम कर रहा है।

प्रश्नः 2.
लोगों के परिश्रम के कारण अकाल की स्थिति कैसी हो गई है?
उत्तर:
लोगों के परिश्रम के कारण अकाल की स्थिति एक दर्शक की भाँति हो गई।

प्रश्नः 3.
‘सदानीरा’ किन्हें कहा जाता है ? राजस्थान की पाँच नदियों को यह नाम कैसे वापस मिला?
उत्तर:
‘सदानीरा’ उन नदियों को कहा जाता है जिसमें बारहों महीने जल भरा रहता है। राजस्थान के अलवर क्षेत्र में तालाबों, नदी, नालों को छोटे-छोटे बाँधों से बाँधने के कारण वर्षा की एक-एक बूंद बचाने का काम किया गया जिससे नदियाँ सदानीरा हो उठी।

प्रश्नः 4.
राजस्थान के किसानों ने अकाल का किस तरह मुकाबला किया?
उत्तर:
राजस्थान के किसानों को पता लगा कि वर्षा कम हुई है, उन्होंने ऐसी फ़सलें बोने का निर्णय लिया जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है। इस तरह अकाल के बीच भी यह क्षेत्र हरा-भरा बना रहा और अकाल का प्रभाव कम हो गया।

प्रश्नः 5.
अच्छे विचार लोगों का स्वाभिमान बनाए रखने में सहायक होते हैं, कैसे?
उत्तर:
अच्छे विचारों से ही अच्छा काम होता है। लोगों ने यह अच्छा काम नदियों से अपने तालाबों को जोड़कर किया। इस कारण उन्हें सरकारी मदद और अकाल राहत के पैसे का इंतज़ार नहीं करना पड़ा और न हाथ फैलाना पड़ा। इससे उनका स्वाभिमान ज्यों का त्यों बना रहा।

7. गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरूक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना पर्याप्त नहीं समझते थे, वरन् उनके बीच एक मानवीय स्वाभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रूप दिया।

विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व मंच पर भारत का माथा नीचा हो ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सद्भावना, स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता-रूपी टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं। 

प्रश्नः 1.
अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के पीड़ित होने का क्या कारण था?
उत्तर:
अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के पीड़ित होने का कारण रंग-भेद और सामाजिक स्तर से संबंधित भेदभाव था।

प्रश्नः 2.
मिसाल, प्रतिशोध शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
मिसाल – उदाहरण
प्रतिशोध – बदला लेना

प्रश्नः 3.
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के बीच क्या-क्या कार्य किए और क्यों?
उत्तर:
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के बीच समानता और जागरूकता बनाए रखने का कार्य किया। इसका कारण यह था कि वे काले-गोले या ऊँच-नीच का भेद-भाव मिटाकर लोगों में स्नेह और हार्दिक सहयोग स्थापित करना चाहते थे।

प्रश्नः 4.
गांधी जी प्रतिरोध में कटुता की भावना क्यों नहीं लाने देना चाहते थे? इसके लिए उन्होंने क्या किया?
उत्तर:
गांधी जी अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिरोध में कटुता की भावना इसलिए नहीं लाने देना चाहते थे ताकि विश्व स्तर पर भारत का माथा नीचा न होने पाए। इसके लिए उन्होंने प्रेम, मैत्री, बंधुत्व, सद्भावना, स्नेह आदि गुणों को अपनाए रखा।

8. तिलक ने हमें स्वराज का सपना दिया और गांधी ने उस सपने को दलितों और स्त्रियों से जोड़कर एक ठोस सामाजिक अवधारणा के रूप में देश के सामने ला रखा। स्वतंत्रता के उपरांत बड़े-बड़े कारखाने खोले गए, वैज्ञानिक विकास भी हुआ, बड़ी-बड़ी योजनाएँ भी बनीं, किंतु गांधीवादी मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता सीमित होती चली गई। दुर्भाग्य से गांधी के बाद गांधीवाद को कोई ऐसा व्याख्याकार न मिला जो राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भो में गांधी के सोच की समसामयिक व्याख्या करता। सो यह विचार लोगों में घर करता चला गया कि गांधीवादी विकास का मॉडल धीमे चलने वाला और तकनीकी प्रगति से विमुख है। उस पर ध्यान देने से हम आधुनिक वैज्ञानिक युग की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। कहना न होगा कि कुछ लोगों की पाखंडी जीवन शैली ने भी इस धारणा को और पुष्ट किया।

इसका परिणाम यह हुआ कि देश में बुनियादी तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तो आई पर देश के सामाजिक और वैचारिकढाँचे में ज़रूरी बदलाव नहीं लाए गए। सो तकनीकी विकास ने समाज में व्याप्त व्यापक फटेहाली, धार्मिक कूपमंडूकता और जातिवाद को नहीं मिटाया। 

प्रश्नः 1.
गांधी जी ने स्वराज के सपने को सामाजिक अवधारणा का रूप कैसे दिया?
उत्तर:
गांधी जी ने स्वराज के सपने को सामाजिक अवधारणा का रूप देने के लिए देश की महिलाओं और दलितों को जोड़ा।

प्रश्नः 2.
स्वतंत्रता, प्रतिबद्धता शब्दों में प्रयुक्त उपसर्ग, मूलशब्द और प्रत्यय अलग कीजिए। 
उत्तर:
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प्रश्नः 3.
स्वतंत्रता के बाद गांधीवादी मूल्यों की क्या दशा हुई और क्यों?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद लोगों द्वारा गांधीवादी मूल्यों की उपेक्षा शुरू कर दी गई क्योंकि गांधी जी की मृत्यु के बाद गांधीवाद का कोई ऐसा व्याख्या करने वाला न मिला जो राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक संदर्भो में गांधी जी के विचारों की समसामयिक व्याख्या करता।

प्रश्नः 4.
गांधीवादी मूल्य आजादी के बाद लोगों के आकर्षण का केंद्र-बिंदु क्यों नहीं बन सके?
उत्तर:
आज़ादी के बाद गांधीवादी मूल्य लोगों के आकर्षण का केंद्र-बिंदु इसलिए नहीं बन सके क्योंकि लोग यह मानने लगे कि गांधीवादी विकास का मॉडल धीरे चलने वाला है। इससे हम वैज्ञानिक युग की दौड़ में पीछे रह जाएँगे।।

प्रश्नः 5.
गांधीवादी मूल्यों की उपेक्षा का परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
गांधीवादी मूल्यों की उपेक्षा का यह परिणाम हआ कि देश ने बुनियादी, तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तो की पर देश के सामाजिक-वैचारिक ढाँचे में बदलाव न लाने के कारण गरीबी, धर्मांधता और जातिवाद के ज़हर को कम नहीं किया जा सका।

9. कहा जाता है कि हमारा लोकतंत्र यदि कहीं कमज़ोर है तो उसकी एक बड़ी वजह हमारे राजनीतिक दल हैं। वे प्रायः अव्यवस्थित हैं, अमर्यादित हैं और अधिकांशतः निष्ठा और कर्मठता से संपन्न नहीं हैं। हमारी राजनीति का स्तर प्रत्येक दृष्टि से गिरता जा रहा है। लगता है उसमें सुयोग्य और सच्चरित्र लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। लोकतंत्र के मूल में लोकनिष्ठा होनी चाहिए, लोकमंगल की भावना और लोकानुभूति होनी चाहिए और लोकसंपर्क होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र में इन आधारभूत तत्वों की कमी होने लगी है, इसलिए लोकतंत्र कमज़ोर दिखाई पड़ता है।

हम प्रायः सोचते हैं कि हमारा देश-प्रेम कहाँ चला गया, देश के लिए कुछ करने, मर-मिटने की भावना कहाँ चली गई ? त्याग और बलिदान के आदर्श कैसे, कहाँ लुप्त हो गए? आज हमारे लोकतंत्र को स्वार्थांधता का घुन लग गया है। क्या राजनीतिज्ञ, क्या अफसर, अधिकांश यही सोचते हैं कि वे किस तरह से स्थिति का लाभ उठाएँ, किस तरह एक-दूसरे का इस्तेमाल करें। आम आदमी अपने आपको लाचार पाता है और ऐसी स्थिति में उसकी लोकतांत्रिक आस्थाएँ डगमगाने लगती हैं।

लोकतंत्र की सफलता के लिए हमें समर्थ और सक्षम नेतृत्व चाहिए, एक नई दृष्टि, एक नई प्रेरणा, एक नई संवेदना, एक नया आत्मविश्वास, एक नया संकल्प और समर्पण आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता के लिए हम सब अपने आप से पूछे कि हम देश के लिए, लोकतंत्र के लिए क्या कर सकते हैं? और हम सिर्फ पूछकर ही न रह जाएँ, बल्कि संगठित होकर समझदारी, विवेक और संतुलन से लोकतंत्र को सफल और सार्थक बनाने में लग जाएँ। 

प्रश्नः 1.
हमारे लोकतंत्र की कमज़ोरी का कारण क्या है?
उत्तर:
हमारे लोकतंत्र की कमजोरी का कारण अव्यवस्थित और अमर्यादित वे राजनीतिक दल हैं जिनमें निष्ठा और कर्मठता की कमी

प्रश्नः 2.
आज राजनीति का स्तर क्यों गिरता जा रहा है?
उत्तर:
आज राजनीति का स्तर इसलिए गिरता जा रहा है क्योंकि राजनीति में सुयोग्य और सच्चरित्र लोगों की कमी होती जा रही है।

प्रश्नः 3.
लोकतंत्र के आधारभूत तत्व कौन-से हैं ? इनकी कमी का लोकतंत्र पर क्या असर पड़ा है ?
उत्तर:
लोकतंत्र के मूल में लोकनिष्ठा, लोकमंगल की भावना लोकानुभूति, लोकसंपर्क आदि लोकतंत्र के आधारभूत तत्व हैं। इनकी कमी के कारण लोकतंत्र से लोगों की आस्था कमज़ोर होती जाती है और लोकतंत्र कमज़ोर पड़ जाता है।

प्रश्नः 4.
आम आदमी की लोकतांत्रिक आस्थाएँ क्यों डगमगाने लगती हैं ?
उत्तर:
आज लोकतंत्र में देश-प्रेम, देश के लिए कुछ करने की भावना, त्याग-बलिदान आदि गायब हो चुकी है। लोगों में स्वार्थांधता भरती जा रही हैं। राजनीतिज्ञ अफसर अपनी स्थिति का फायदा उठाने को आतुर हैं। ऐसे में लाचार आम आदमी की लोकतांत्रिक आस्थाएँ उगमगाने लगती हैं।

प्रश्नः 5.
लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए नई दृष्टि, नई प्रेरणा, नई संवेदना, नया आत्मविश्वास, संकल्प और समर्पण रखते हुए लोकतंत्र के प्रति अपने दायित्वों को समझने का प्रयास करें। फिर हमें संगठित होकर समझदारी विवेक और संतुलन से लोकतंत्र को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

10. एक ज़माना था जब मुहल्लेदारी पारिवारिक आत्मीयता से भरी होती थी। सब मिल-जुलकर रहते थे। हारी-बीमारी, खुशी-गम सब में लोग एक दूसरे के साथ थे। किसी का किसी से कुछ छिपा नहीं था। आज के लोगों को शायद लगे कि लोगों की अपनी ‘प्राइवेसी’ क्या रही होगी, लेकिन इस ‘प्राइवेसी’ के नाम पर ही तो हम एक-दूसरे से कटते रहे और कटते-कटते ऐसे अलग हुए कि अकेले पड़ गए। पहले अलग चूल्हे-चौके हुए, फिर अलग मकान लेकर लोग रहने लगे, निजी स्वतंत्रता को अपनी नई परिभाषा देकर यह एकाकीपन हमने स्वयं अपनाया है। मुहल्ले में आपस में चाहे जितनी चखचख हो, यह थोड़े ही संभव था कि बाहर का कोई आकर किसी को कड़वी बात कह जाए। पूरा मोहल्ला टिड्डी-दल की तरह उमड़ पड़ता था।

देखते-देखते ज़माना हवा हो गया। मुहल्लेदारी टूटने लगी, आबादी बढ़ी, महँगाई बढ़ी, पर सबसे ज़्यादा जो चीज़ दुर्लभ हो गई वह थी आपसी लगाव, अपनापन। लोगों की आँखों का शील मर गया।

देखते-देखते कैसा रंग बदला है। लोग अपने-आप में सिमटकर पैसे के पीछे भागे जा रहे हैं। सारे नाते-रिश्तों को उन्होंने ताक पर रख दिया है, तब फिर पड़ोसी से उन्हें क्या लेना-देना है। यह नीरस महानगरीय सभ्यता महानगरों से चलकर कस्बों और देहातों तक को अपनी चपेट में ले चुकी है। मकानों में रहने वाले एक-दूसरे को नहीं जानते। इन जगहों में आदमी का अस्तित्व समाप्त हो गया है। यदि आपको फ़्लैट नंबर मालूम नहीं है तो उसी बिल्डिंग में जाकर भी वांछित व्यक्ति को नहीं ढूँढ़ पाएँगे। ऐसी जगहों में किसी प्रकार के संबंधों की अपेक्षा ही कहाँ की जा सकती है?

प्रश्नः 1.
आज एक-दूसरे से कटते जाने का कारण क्या है?
उत्तर:
आज एक-दूसरे से कटते जाने का कारण ‘प्राइवेसी’ बनाए रखने का प्रयास है।

प्रश्नः 2.
आज के व्यक्ति को प्राइवेसी के नाम पर क्या प्राप्त हुआ है?
उत्तर:
आज के व्यक्ति को प्राइवेसी के नाम पर अलगाव और अकेलापन प्राप्त हुआ है।

प्रश्नः 3.
मुहल्लेदारी में पारिवारिक आत्मीयता से लाभ क्या-क्या होता था?
उत्तर:
मुहल्लेदारी में पारिवारिक आत्मीयता बनी रहने से सब मिल-जुलकर रहते थे, एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते थे। वे आपस में भले झगड़ लें, पर बाहरी व्यक्ति का मुकाबला करने के लिए एकजुट हो जाते थे।

प्रश्नः 4.
वह ज़माना हवा होते ही आया बदलाव समाज के लिए उपयुक्त था या अनुपयुक्त, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वह ज़माना हवा होते ही मुहल्लेदारी टूटने लगी, आबादी और महँगाई तो बढ़ी पर आपसी लगाव, अपनापन गायब हो गया। … लोगों की आँखों से शील मर गई। ये बदलाव समाज के लिए पूर्णतया अनुचित और अनुपयुक्त था।

प्रश्नः 5.
प्राइवेसी ने महानगरीय सभ्यता से संबंधों को लगभग समाप्त कर दिया है। ऐसा कहना कितना उचित है?
उत्तर:
‘प्राइवेसी’ ने महानगरीय सभ्यता की छाँव में पलने वाले संबंधों को छिन्न-भिन्न कर दिया है। यहाँ एक ही मकान में रहने वाले लोग एक-दूसरे को जानते नहीं हैं। फ़्लैट नंबर मालूम न होने पर बिल्डिंग में वांछित व्यक्ति से नहीं मिला जा सकता है। अतः यहाँ संबंध पूर्णतया समाप्त हो गए हैं।


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