CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल अनुच्छेद लेखन

CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल अनुच्छेद लेखन

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

अनुच्छेद लेखन CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल अनुच्छेद लेखन

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CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल अनुच्छेद लेखन Textbook Questions and Answers

अनुच्छेद लेखन


मानव मन में नाना प्रकार के भाव-विचार आते-जाते रहते हैं। किसी विषय विशेष से संबंधित भावों-विचारों को सीमित शब्दों में लिखते हुए एक अनुच्छेद में लिखना अनुच्छेद लेखन कहलाता है। अनुच्छेद लेखन भी एक कला है। इस तरह के लेखन में अनावश्यक विस्तार से बचते हुए इस तरह लेखन किया जाता है कि कोई आवश्यक तथ्य छूटने न पाए।

अनुच्छेद लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. अनुच्छेद लेखन में मुख्य विषय से भटकना नहीं चाहिए।
  2. व्यर्थ के विस्तार से बचने का प्रयास करना चाहिए।
  3. वाक्यों के बीच निकटता और संबद्धता होनी चाहिए।
  4. भाषा प्रभावपूर्ण और प्रवाहमयी होनी चाहिए।
  5. छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना अच्छा रहता है।
  6. भाषा सरल, बोधगम्य और सहज होनी चाहिए।
  7. अनुच्छेद लेखन उतने ही शब्दों में करना चाहिए जितने शब्द में लिखने का निर्देश दिया गया हो। उस शब्द-सीमा से 5 या अधिक शब्द होने से फर्क नहीं पड़ता है।
  8. अनुच्छेद पढ़ते समय लगे कि इसमें लेखक की अनुभूतियाँ समाई हैं।
नोट- आजकल परीक्षा में अनुच्छेद लेखन के लिए शीर्षक और उससे संबंधित संकेत बिंदु दिए गए होते हैं। इन संकेत बिंदुओं को ध्यान में रखकर अनुच्छेद लेखन करना चाहिए। इन संकेत बिंदुओं को अनदेखा करके अनुच्छेद-लेखन करना हितकर नहीं होगा। इसस अक कम हान का सभावना बढ़ जाती है।




1. समाचार-पत्र एक : लाभ अनेक
अथवा
समाचार-पत्र : ज्ञान और मनोरंजन का साधन

जिज्ञासा पूर्ति का सस्ता एवं सुलभ साधन
रोज़गार का साधन
समाचार पत्रों के प्रकार
जानकारी के साधन ।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने समाज और आसपास के अलावा देश-दुनिया की जानकारी के लिए जिज्ञासु रहता है। उसकी इस जिज्ञासा की पूर्ति का सर्वोत्तम साधन है-समाचार-पत्र, जिसमें देश-विदेश तक के समाचार आवश्यक चित्रों के साथ छपे होते हैं। सुबह हुई नहीं कि शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार पत्र विक्रेता घर-घर तक इनको पहुँचाने में जुट जाते हैं। कुछ लोग तो सोए होते हैं और समाचार-पत्र दरवाजे पर आ चुका होता है।

अब समाचार पत्र अत्यंत सस्ता और सर्वसुलभ बन गया है। समाचार पत्रों के कारण लाखों लोगों को रोजगार मिला है। इनकी छपाई, ढुलाई, लादने-उतारने में लाखों लगे रहते हैं तो एजेंट, हॉकर और दुकानदार भी इनसे अपनी जीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं पुराने समाचार पत्रों से लिफ़ाफ़े बनाकर एक वर्ग अपनी आजीविका चलाता है। छपने की अवधि पर समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं।

प्रतिदिन छपने वाले समाचार पत्रों को दैनिक, सप्ताह में एक बार छपने वाले समाचार पत्रों को साप्ताहिक, पंद्रह दिन में छपने वाले समाचार पत्र को पाक्षिक तथा माह में एक बार छपने वाले को मासिक समाचार पत्र कहते हैं। अब तो कुछ शहरों में शाम को भी समाचार पत्र छापे जाने लगे हैं। समाचार पत्र हमें देश-दुनिया के समाचारों, खेल की जानकारी मौसम तथा बाज़ार संबंधी जानकारियों के अलावा इसमें छपे विज्ञापन भी भाँति-भाँति की जानकारी देते हैं।



2. बढ़ती जनसंख्या : प्रगति में बाधक
अथवा
समस्याओं की जड़ : बढ़ती जनसंख्या

जनसंख्या वृद्धि बनी समस्या
संसाधनों पर असर
वृद्धि के कारण
जनसंख्या रोकने के उपाय।
किसी राष्ट्र की प्रगति के लिए जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण संसाधन होती है, पर जब यह एक सीमा से अधिक हो जाती है तब यह समस्या का रूप ले लेती है। जनसंख्या वृद्धि एक ओर स्वयं समस्या है तो दूसरी ओर यह अनेक समस्याओं की जननी भी है। यह परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति पर बुरा असर डालती है।

जनसंख्या वृद्धि के साथ देश के विकास की स्थिति ‘ढाक के तीन पात वाली’ बनकर रह जाती है। प्रकृति ने लोगों के लिए भूमि वन आदि जो संसाधन प्रदान किए हैं, जनाधिक्य के कारण वे कम पड़ने लगते हैं तब मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ शुरू कर देता है। वह अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का विनाश करता है।

इससे प्राकृतिक असंतुलन का खतरा पैदा होता है जिससे नाना प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जनसंख्या वृद्धि के लिए हम भारतीयों की सोच काफ़ी हद तक जिम्मेदार है। यहाँ की पुरुष प्रधान सोच के कारण घर में पुत्र जन्म आवश्यक माना जाता है। भले ही एक पुत्र की चाहत में छह, सात लड़कियाँ क्यों न पैदा हो जाएँ पर पुत्र के बिना न तो लोग अपना जन्म सार्थक मानते हैं और न उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती दिखती है।

इसके अलावा अशिक्षा. गरीबी और मनोरंजन के साधनों का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि में योगदान देता है। जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए लोगों का इसके दुष्परिणामों से अवगत कराकर जन जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। सरकार द्वारा परिवार नियोजन के साधनों का मुफ़्त वितरण किया जाना चाहिए तथा ‘जनसंख्या वृद्धि’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।

3. मोबाइल फ़ोन : सुखद व दुखद भी
अथवा
विज्ञान की अद्भुत खोज : मोबाइल फ़ोन

विज्ञान की अद्भुत खोज
फ़ोनों की बदलती दुनिया में
संचार क्षेत्र में क्रांति
स्ता और सुलभ साधन
लाभ और हानियाँ।
विज्ञान ने मानव जीवन को विविध रूपों में प्रभावित किया है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहाँ विज्ञान ने हस्तक्षेप न किया हो। समय-समय पर हुए आश्चर्यजनक आविष्कारों ने मानव जीवन को बदलकर रख दिया है। विज्ञान की इन्हीं अद्भुत खोजों में एक है मोबाइल फ़ोन जिससे मनुष्य इतना प्रभावित हुआ कि आप हर किशोर ही नहीं हर आयु वर्ग के लोग इसका प्रयोग करते देखे जा सकते हैं।

वास्तव में मोबाइल फ़ोन इतना उपयोगी और सुविधापूर्ण साधन है कि हर व्यक्ति इसे अपने पास रखना चाहता है और इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग भी कर रहा है। संचार की दुनिया में फ़ोन का आविष्कार एक क्रांति थी। तारों के माध्यम से जुड़े फ़ोन पर अपने प्रियजनों से बातें करना एक रोमांचक अनभव था। शरू में फ़ोन महँगे और कई उपकर लाना-ले-जाना संभव न था।

हमें बातें करने के लिए इनके पास जाना पड़ता था पर मोबाइल फ़ोन जेब में रखकर कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। अब यह सर्वसुलभ भी बन गया है। वास्तव में मोबाइल फ़ोन का आविष्कार संचार के क्षेत्र में क्रांति से कम नहीं है। आज मोबाइल फ़ोन पर बातें करने के अलावा फ़ोटो खींचना, गणनाएँ करना, फाइलें सुरक्षित रखना जैसे बहुत से काम किए जा रहे हैं क्योंकि यह जेब का कंप्यूटर बन गया है।

कुछ लोग इसका दुरुपयोग करने से नहीं चूकते हैं। असमय फ़ोन करके दूसरों को परेशान करना, अवांछित फ़ोटो खींचना जैसे कार्य करके इसका दुरुपयोग करते हैं। इसके कारण छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। इसका आवश्यकतानुरूप ही प्रयोग करना चाहिए।

4. सांप्रदायिकता का फैलता जहर
अथवा
मानवता के लिए घातक : सांप्रदायिकता का जहर

सांप्रदायिकता-अर्थ एवं कारण
सांप्रदायिकता का जहर
सांप्रदायिकता की रोकथाम
हमारी भूमिका।
धर्म के बिगड़े एवं कट्टर रूप को सांप्रदायिकता की संज्ञा दी जा सकती है। ‘धारयति इति धर्मः’ अर्थात् जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। मनुष्य अपने आचरण और जीवन को मर्यादित रखने के लिए धर्म का सहारा लिया करता था। बाद में धर्म ने एक जीवन पद्धति का रूप ले लिया। धर्म का यह रूप मनुष्य और समाज के लिए कल्याणकारी माना जाता था।

धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आया और धर्म का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करना शुरू कर दिया। यहीं से धर्म में विकृति आई। लोगों में अपने धर्म के प्रति कट्टरता आने लगी और सांप्रदायिकता अपना रंग दिखाने लगी। सांप्रदायिकता के वशीभूत होकर मनुष्य वाणी और कर्म से दूसरे धर्मावलंबियों की भावनाएँ भड़काता है जो व्यक्ति समाज और राष्ट्र सभी के लिए हानिकारक होती है।

दुर्भाग्य से यह कार्य आज समाज के तथा कथित ठेकेदार और समाज सुधारक कहलाने वाले नेता खुले आम कर रहे हैं जिससे लोगों का आपसी विश्वास घट रहा है। इसके अलावा धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता, भाई-चारा, आपसी सौहार्द्र नष्ट हो रहा है तथा घृणा की भावना प्रगाढ़ हो रही है। सांप्रदायिकता की रोक थाम के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना बंद किया जाना चाहिए।

ऐसा करने वालों को कठोर दंड देना चाहिए। हमारे नेताओं को चाहिए कि वे वोट की राजनीति बंद करें और लोगों को जाति-धर्म के आधार पर न बाँटें। इस स्थिति में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम किसी के बहकावे में न आएँ और सद्भाव बनाए रखते हुए दूसरों की भावनाएँ और उनके धर्मों का भी आदर करें।

5. सुविधाओं का भंडार : कंप्यूटर
अथवा
कंप्यूटर : आज की आवश्यकता

विज्ञान की अद्भुत खोज
बढ़ता प्रयोग
ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
अधिक प्रयोग हानिकारक।
विज्ञान ने मनुष्य को जो अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं उनमें प्रमुख है-कंप्यूटर। कंप्यूटर ऐसा चमत्कारी उपकरण है जो हमारी कल्पना को साकार रूप दे रहा है। जिन बातों की कल्पना कभी मनुष्य किया करता था, उन्हें कंप्यूटर पूरा कर रहा है। यह बहूपयोगी  उपकरण है जिससे मनुष्य की अनेकानेक समस्याएँ हल हुई हैं। कंप्यूटर में लगा उच्च तकनीकि वाला मस्तिष्क मनुष्य की सोच से  भी अधिक तेजी से कार्य करता है जिससे मनुष्य का समय और भ्रम दोनों ही बचने लगा है।

आज कंप्यूटर का प्रयोग हर छोटे-बड़े सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में किया जाने लगा है। इसका प्रयोग इतनी जगह पर किया जा रहा है कि इसे शब्दों में बाँधना कठिन है। पुस्तक प्रकाशन, बैंकों में खाते का रख-रखाव, फाइलों की सुरक्षा, रेल और वायुयान के टिकटों का आरक्षण, रोगियों के आपरेशन, बीमारियों की खोज, विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण आदि में इसका प्रयोग अत्यावश्यक हो गया है।

अब तो छात्र अपनी पढ़ाई और लोग अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए इसका प्रयोग आवश्यक मानने लगे हैं। कंप्यूटर पर अब पीडीएफ (PDF) फ़ॉर्म में पुस्तकें अपलोड कर दी जाती हैं। अब छात्रों को बस एक बटन दबाने की ज़रूरत है। ज्ञान का संसार कंप्यूटर की स्क्रीन पर प्रकट हो जाता है। अब उन्हें न भारी भरकम बस्ता उठाने की ज़रूरत है और न मोटी-मोटी पुस्तकें।

इसके अलावा कंप्यूटर पर गीत सुनने, फ़िल्में देखने और गेम खेलने की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। कंप्यूटर का अत्यधिक प्रयोग हमें आलसी और मोटापे का शिकार बनाता है। इंटरनेट के जुड़ जाने से कुछ लोग इसका दुरुपयोग करते हैं। कंप्यूटर का अधिक प्रयोग हमारी आँखों के लिए हानिकारक है। हमें कंप्यूटर का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए।


6. दहेज का दानव
अथवा
दहेज प्रथा : एक सामाजिक समस्या

दहेज क्या है?
दहेज का बदलता स्वरूप
दहेज प्रथा कितनी घातक
दहेज प्रथा की रोकथाम।
भारतीय संस्कृति के मूल में छिपी है-कल्याण की भावना। इसी भावना के वशीभूत होकर प्राचीनकाल में कन्या का पिता अपनी बेटी की सुख-सुविधा हेतु कुछ वस्त्र-आभूषण और धन उसकी विदाई के समय स्वेच्छा से दिया करता था। कालांतर में यही रीति विकृत हो गई। इसी विकृति को दहेज नाम दिया गया। धीरे-धीरे लोगों ने इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया।

सभ्यता और भौतिकवाद के कारण लोगों में धन लोलुपता बढ़ी है जिसने इस प्रथा को विकृत करने में वही काम किया जो आग में घी करता है। वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से खुलकर दहेज माँगने लगे और समाज की नज़र बचाकर बलपूर्वक दहेज लेने लगे जिससे इस प्रथा ने दानवी रूप ले लिया। आज स्थिति यह है कि समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाने लगा है।

लोग घर में कन्या का जन्म किसी अपशकुन से कम नहीं समझते हैं। इससे समाज की सोच में विकृति आई है। दहेज प्रथा हमारे समाज के लिए अत्यंत घातक है। इस प्रथा के कारण ही जन्मी-अजन्मी लड़कियों को मारने का चलन शुरू हो गया। आज का समय तो जन्मपूर्व ही कन्या भ्रूण की हत्या करा देता है। इसमें असफल रहने के बाद वह जन्म के बाद कन्याओं के पालन-पोषण में दोहरा मापदंड अपनाता है।

वह लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा, खान-पान और अन्य सुविधाओं के साथ ही उनके साथ व्यवहार में हीनता दिखाता है। दहेज प्रथा के कारण ही असमय नव विवाहिताओं को अपनी जान गवानी पड़ती है। मनुष्यता के लिए इससे ज़्यादा कलंक की बात क्या होगी कि अनेक लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाती हैं या उन्हें बेमेल विवाह के लिए बाध्य होना पड़ता है।

दहेज प्रथा रोकने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही काफ़ी नहीं हैं। इसके लिए युवा वर्ग को आगे आना होगा और दहेज रहित-विवाह प्रथा की शुरूआत करके समाज के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।


7. जीवन में व्यायाम का महत्त्व
अथवा
स्वास्थ्य के लिए हितकारी : व्यायाम

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन
उत्तम स्वास्थ्य की औषधि-व्यायाम
व्यायाम का सर्वोत्तम समय
व्यायाम एक-लाभ अनेक।
स्वास्थ्य और मानवजीवन का घनिष्ठ संबंध है। यूँ तो स्वास्थ्य की महत्ता हर प्राणी के लिए होती है पर मनुष्य इसके प्रति कुछ अधिक ही सजग रहता है और स्वस्थ रहने के नाना उपाय करता है। मनुष्य जानता है कि धन को तुरंत दुबारा कमाया जा सकता है परंतु स्वास्थ्य इतनी सरलता से नहीं पाया जा सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही सांसारिक सुखों का लाभ उठा सकता है।

यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो दुनिया का कोई सुख व्यक्ति को रुचिकर नहीं लगता है, तभी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है। स्वास्थ्य पाने का एक साधन सात्विक भोजन, स्वस्थ आदतें, उचित दिनचर्या और दवाईयाँ हैं, पर ये सभी स्वस्थ रहने के साधन मात्र हैं। स्वास्थ्य का अर्थ केवल शारीरिक नहीं बल्कि इस परिधि में मानसिक स्वास्थ्य भी आता है।

इसे पाने की मुफ्त की औषधि है-व्यायाम, जिसे पाने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है। व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय भोर की बेला है जब वातावरण में शांति, हवा में शीतलता और सुगंध होती है। ऐसे वातावरण में मन व्यायाम में लगता है। व्यायाम से हमारे शरीर का रक्त प्रवाह तेज़ होता है, हड्डियाँ मज़बूत और मांसपेशियाँ लचीली बनती हैं। इससे तन-मन दोनों स्वस्थ होता है। हमें भी समय निकालकर व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

8. विद्यार्थी और अनुशासन
अथवा
अनुशासन का महत्त्व

अनुशासन का अर्थ
अनुशासन की आवश्यकता
प्रकृति में अनुशासन
अनुशासन सफलता की कुंजी।
‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग जोड़ने से अनुशासन शब्द बना है, जिसका अर्थ है शासन के पीछे चलना अर्थात् समाज द्वारा बनाए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित जीवन जीना। जीवन के हर क्षेत्र और हर काल में अनुशासन की महत्ता होती है पर विद्यार्थी काल जीवन की नींव के समान होता है। इस काल में अनुशासन की आवश्यकता और महत्ता और भी बढ़ जाती है।

इस काल में विद्यार्थी जो कुछ सीखता है वही उसके जीवन में काम आता है। इस काल में एक बार अनुशासनबद्ध जीवन की आदत पड़ जाने पर आजीवन यही आदत बनी रहती है। मानव मन अत्यंत चंचल होता है। वह स्वच्छंद आचरण करना चाहता है। इसके लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है। प्रकृति अपने कार्य व्यवहार से मनुष्य तथा अन्य प्राणियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाती है।

सूर्य समय पर निकलता है। चाँद और तारे रात होने पर चमकना नहीं भूलते हैं। ऋतु आने पर फूल खिलना नहीं भूलते हैं। वर्षा ऋतु में बादल बरसना और समयानुसार वृक्ष फल नहीं भूलते हैं। ऋतुएँ समय पर आती जाती हैं और मुर्गा समय पर बाँग देता है। ये हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं।

जीवन में जितने भी लोगों ने सफलता प्राप्त की है उसके मूल में अनुशासन रहा है। गांधी जी, नेहरू जी, टैगोर, तिलक, विवेकानंद आदि की सफलता का मूल मंत्र अनुशासन रहा है। विद्यार्थियों को कदम-कदम पर अनुशासन का पालन करना चाहिए और सफलता के सोपान चढ़ना चाहिए।

9. समय का महत्त्व
अथवा
समय चूकि वा पुनि पछताने

समय की पहचान
समय पर काम न करने पर पछताना व्यर्थ
समय का सदुपयोग-सफलता का सोपान
आलस्य का त्याग।
एक सूक्ति है–’समय और सूक्ति किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं।’ ये आते और जाते रहते हैं, चाहे कोई इनका लाभ उठाए या नहीं पर गुणवान लोग समय की महत्ता समझकर समय का लाभ उठाते हैं। एक चतुर मछुआरा अपने जाल और नाव के साथ ज्वार की प्रतीक्षा करता है और उसका लाभ उठाता है। जो लोग समय पर काम नहीं करते हैं उनके हाथ पछताने के सिवा कुछ भी नहीं लगता है।

समय बीतने पर काम करने से उसकी सफलता का आनंद सूख जाता है। ऐसे ही लोगों के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-‘समय चूकि वा पुनि पछताने।’ का बरखा जब कृषि सुखाने। अर्थात् समय पर काम करने से चक कर पछताना उसी तरह है जैसा कि फ़सल सखने के बाद वर्षा होने से वह हरी नहीं हो पाती है। जो व्यकि सदुपयोग करते हैं वे हर काम में सफल होते हैं।

शत्रु आक्रमण का जो देश मुकाबला नहीं करता वह गुलाम होकर रह जाता है, समय पर बीज न बोने वाले किसान की फ़सल अच्छी नहीं होती है और समय पर वर्षा न होने से भयानक अकाल पड़ जाता है। इस तरह निस्संदेह समय का उपयोग सफलता का सोपान है। समय पर काम करने के लिए आवश्यक है-आलस्य का त्याग करना। आलस्य भाव बनाए रखकर समय पर काम पूरा करना कठिन है। अतः हमें आलस्य भाव त्यागकर समय का सदुपयोग करना चाहिए।



10. देश-प्रेम
अथवा
प्राणों से प्यारा : देश हमारा

देश से लगाव स्वाभाविक गुण
देश के लिए सर्वस्व न्योछावर
मातृभूमि ‘माँ’ के समान
राष्ट्रीय एकता प्रगाढ़ करने में सहायक।
मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है कि वह जिस व्यक्ति, वस्तु या स्थान के साथ कुछ समय बिता लेता है उससे उसका लगाव हो जाता है। ऐसे में जिस देश में उसने जन्म पाया है, जहाँ का अन्न-जल और वायु ग्रहण कर बड़ा हुआ है, उस स्थान से लगाव होना लाजिमी है। इसी लगाव का नाम है देश-प्रेम। अर्थात् देश के कण-कण से प्रेम होना उसकी सजीव-निर्जीव वस्तुओं के अलावा पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं और मनुष्यों से प्यार करना देश-प्रेम कहलाता है।

यह वह पवित्र भावना है जो देश की रक्षा करते हुए अपना तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चादेश प्रेमी कहलाता है। कहा गया है-‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। आखिर हो भी क्यों न व्यक्ति को स्वर्ग जाने के योग्य जननी और जन्मभूमि ही बनाते हैं। माँ संतान को जन्म देती है पर जन्मभूमि की रज में लोटकर बच्चा बढ़ता है और यहीं का अन्न जलग्रहण कर बड़ा होता है।

वास्तव में जन्मभूमि के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश के वीरों और देशभक्तों ने जन्मभूमि की रक्षा के लिए सुख-चैन त्याग दिया, जेल की दर्दनाक यातनाएँ भोगी, हँसते-हँसते लाठियाँ और कोड़े खाए और हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम गए। देश प्रेम की पवित्र भावना जाति, धर्म, भाषा, वर्ण, वर्ग, प्रांत और दल से ऊपर होती है। यह इन संकीर्णताओं का बंधन नहीं स्वीकारती है। इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है। हमें अपने देश पर गर्व है। मैं इससे असीम प्यार करता हूँ।

11. हमारे देश के राष्ट्रीय पर्व
अथवा
देश की अखंडता में सहायक राष्ट्रीय पर्व

राष्ट्रीय पर्व का अर्थ एवं उनकी महत्ता
हमारे राष्ट्रीय पर्व और मनाने का ढंग
देश की एकता अखंडता बनाने में सहायक
राष्ट्रीय पर्यों का संदेश।
पर्व मानव जीवन को मनोरंजन और ऊर्जा से भरकर मनुष्य की नीरसता दूर करते हैं। इन पर्यों को सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय पर्यों के रूप में बाँटा जा सकता है। राष्ट्रीय पर्व वे पर्व हैं जिन्हें राष्ट्र के सारे लोग बिना किसी भेदभाव के एकजुट होकर मनाते हैं। इनका सीधा संबंध देश की एकता और अखंडता से होता है।

राष्ट्रीय पर्व व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय होते हैं, इसलिए देशवासियों के अलावा विभिन्न प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय, विभिन्न संस्थाएँ मिल-जुलकर मनाती हैं। इस दिन देश में सरकारी अवकाश रहता है। यहाँ तक कि दुकानें और फैक्ट्रियाँ भी बंद रहती हैं ताकि देशवासी इन्हें मनाने में अपना योगदान दें। हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं-स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और गांधी जयंती (02 अक्टूबर)।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रातःकाल सरकारी कार्यालयों एवं भवनों पर झंडा फहराया जाता है और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इस दिन देशभक्तों और शहीदों के योगदान को याद करते हुए स्वतंत्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई जाती है। गांधी जयंती के अवसर पर कृतज्ञ देशवासी गांधी जी के योगदान को याद करते हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा करते हैं।

देश की एकता अखंडता बनाए रखने में राष्ट्रीय त्योहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री देशवासियों से एकता बनाए रखने का आह्वान करते हैं। ये पर्व हमें एकजुट रहकर देश की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा देश के लिए तन-मन और धन न्योछावर करने का संदेश देते हैं। हमें इस संदेश को सदा याद रखना चाहिए।

12. भारतीय समाज में नारी की स्थिति
अथवा
भारतीय समाज में नारी की बदलती स्थिति

प्राचीन भारत में नारी की स्थिति
मध्यकाल में नारी की स्थिति
आधुनिक काल में नारी
भारतीय नारी त्याग एवं ममता की मूर्ति।
स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इनमें स्त्रियों की स्थिति में देश काल और परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर बदलाव आता रहा है। प्राचीनकाल में हमारे देश में स्त्रियों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। वह यज्ञ कार्यों, वेद-पुराण और ऋचाओं की रचना में सहभागी रहती थी। वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी।

उस समय कहा जाता था कि ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं। इससे नारी की उच्च स्थिति का अनुमान स्वयं लगाया जा सकता है। मध्यकाल तक नारियों की स्थिति में बहुत गिरावट आ चुकी थी। पुरुष प्रधान समाज ने नारियों को परदे की वस्तु बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया।

उसे निर्णय लेने के अधिकार से वंचित कर दिया गया।मुसलमानों के आक्रमण के कारण वे घरों में रहने को विवश थी। इस कारण उनकी शिक्षा में गिरावट आई और वे निरक्षरता का शिकार हो गई। आधुनिक काल में स्त्रियों की दशा में खूब सुधार हुआ है। स्वतंत्रता के बाद उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया। इस कारण वह प्रगति की दौड़ में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।

चिकित्सा, शिक्षा, पुलिस सेवा, प्रशासन आदि में वह अपनी योग्यता से पुरुषों से आगे निकलती जा रही है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘लाडली योजना’ जैसी योजनाओं के कारण उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है। नारी त्याग, ममता, सहानुभूति, स्नेह की मूर्ति है। हमें नारियों का सम्मान करना चाहिए।

13. वन रहेंगे-हम रहेंगे
अथवा
वनों की महत्ता

वन प्रकृति के अनुपम उपहार
वनों के लाभ
मनुष्य का स्वार्थपूर्ण व्यवहार
वन बचाएँ जीवन बचाएँ।
प्रकृति ने मनुष्य को जो नाना प्रकार के उपहार दिए हैं, वन उनमें सबसे अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं। मनुष्य और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। पृथ्वी पर जीवन योग्य जो परिस्थितियाँ हैं उन्हें बनाए रखने में वनों का विशेष योगदान है। मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं के साथ इन्हीं वनों में पैदा हुआ, पला, बढ़ा और सभ्य होना सीखा।

वनों ने मनुष्य की हर जरूरत को पूरा किया है। वन हमें लकड़ी, छाया, फल-फूल, कोयला, गोंद, कागज, नाना प्रकार की औषधियाँ देते हैं। वे पशुओं तथा पशु-पक्षियों के लिए आश्रय-स्थल उपलब्ध करते हैं। इससे जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। वन वर्षा लाने में सहायक हैं जिससे प्राणी नवजीवन पाते हैं। वन बाढ़ रोकते हैं और भूक्षरण कम करते हैं तथा धरती का उपजाऊपन बनाए रखते हैं।

वास्तव में वन मानवजीवन का संरक्षण करते हैं। वन परोपकारी शिव के समान हैं जो विषाक्त वायु का स्वयं सेवन करते हैं और बदले में प्राणदायी शुद्ध ऑक सीजन देते हैं। दुर्भाग्य से मनुष्य की जब ज़रूरतें बढ़ने लगी तो उसने वनों की अंधाधुंध कटाई शुरू कर दी। नई बस्तियाँ बनाने, कृषि योग्य भूमि पाने, सड़कें बनाने आदि के लिए पेड़ों की कटाई की गई, जिससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ा और वैश्विक ऊष्मीकरण में वृद्धि हुई।

इससे असमय वर्षा, बाढ़, सूखा आदि का खतरा उत्पन्न हो गया। धरती पर जीवन बचाने के लिए पेड़ों को बचाना आवश्यक है। आओ हम जीवन बचाने के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाने और बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं।

14. प्रदूषण की समस्या
अथवा
जीवन खतरे में डालता प्रदूषण

प्रदूषण का अर्थ
प्रदूषण के कारण
प्रदूषण के प्रभाव
प्रदूषण से बचाव के उपाय।
स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तुओं का सेवन करें, जिस वातावरण में रहें वह साफ़-सुथरा हो। जब हमारे पर्यावरण और वायुमंडल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दूषित करते हैं तथा इनका स्तर इतना बढ़ जाता है कि स्वास्थ्य के लिए  हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति प्रदूषण कहलाती है।  आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में मनुष्य के कार्य व्यवहार ने प्रदूषण को खूब बढ़ाया है।

बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दूसरी ओर अंधाधुंध कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं। इसके लिए भी वनों की कटाई की गई।  सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए मनुष्य ने नित नए आविष्कार किए।

मोटर-गाड़ियाँ वातानुकूलित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य आदि के कारण पर्यावरण इतना प्रदूषित हआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शदध हवा मिलना कठिन हो गया है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है।  वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है।

मोटर-गाड़ियों और फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अति वृष्टि, अनावृष्टि और असमय वर्षा प्रदूषण का ही दुष्परिणाम है। इस प्रदूषण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में संतुलन लाया जा सकता है। इसके अलावा हमें सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के करीब लौटना चाहिए।



15. जल है तो जीवन है
अथवा
जल ही जीवन है
अथवा
जल संरक्षण-आज की आवश्यकता

जीवनदायी जल
जल प्रदूषण के कारण
जल संरक्षण कितना ज़रूरी
जल संरक्षण के उपाय।
पृथ्वी पर प्राणियों के जीवन के लिए हवा के बाद सबसे आवश्यक वस्तु है-जल। यद्यपि भोजन भी आवश्यक है पर इस भोजन को तरल रूप में लाने और सुपाच्य बनाने के लिए जल की आवश्यकता होती है। मानव शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। कहा भी गया है-क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व से बना शरीरा। वनस्पतियों में तो 80 प्रतिशत से ज़्यादा जल पाया जाता है। इस जल के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है।

पृथ्वी पर यूँ तो तीन चौथाई भाग जल ही है पर इसमें पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। यह पीने योग्य जल कुओं, तालाबों, नदियों और झीलों में पाया जाता है जो मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियों के कारण दूषित होता जा रहा है। मनुष्य नदी, तालाबों में खुद नहाता है और जानवरों को नहलाता है।

इतना ही नहीं वह फैक्ट्रियों और नालियों का दषित पानी इसमें मिलने देता है जिससे जल प्रदषित होता है। पेयजल की मात्रा में आती कमी और गिरते भ-जल स्तर के कारण जल संरक्षण अत्यावश्यक हो गया। पृथ्वी पर जीवन बनाए और बचाए रखने के लिए जल बचाना ज़रूरी है।

जल संरक्षण का पहला उपाय है-उपलब्ध जल का दुरुपयोग न किया जाए और हर स्तर पर होने वाली बरबादी को रोका जाए। टपकते नलों की मरम्मत की जाए और अपनी आदतों में सुधार लाया जाए। इसे बचाने का दूसरा उपाय है-वर्षा जल का संरक्षण करना और इसे व्यर्थ बहने से बचाना। ऐसा करके हम आने वाली पीढ़ी को जल का उपहार स्वतः दे जाएँगे।


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