CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस

CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

रस CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij, Kritika, Sparsh, Sanchayan are the part of NCERT Solutions for Class 10. Here we have given CBSE Class 10 Hindi NCERT Solutions of क्षितिज, कृतिका, स्पर्श, संचयन.
Please find Free NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan, Sparsh, Kshitiz, Kritika in this page. We have compiled detailed Chapter wise Class 10 Hindi NCERT Solutions for your reference.
CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस. is part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस.

CBSE Class 10 Hindi A व्याकरण रस Textbook Questions and Answers

रस – साहित्य का नाम आते ही रस का नाम स्वतः आ जाता है। इसके बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारतीय साहित्य शास्त्रियों ने साहित्य के लिए रस की अनिवार्यता समझा और इसे साहित्य के लिए आवश्यक बताया। वास्तव में रस काव्य की आत्मा है।

किसी साहित्य को पढ़कर जब व्यक्ति कविता के भावों से तादात्म्य स्थापित कर लेता है तब इस प्रक्रिया में उसके मन के स्थायी भाव रस में परिणित हो जाते हैं। इस तरह काव्य से जो आनंद प्राप्त होता है वह जीवन के अनुभवों से प्राप्त अनुभवों जैसा होकर भी उससे ऊँचे स्तर को प्राप्त कर लेता है। यह आनंद व्यक्तिगत संकीर्णता से अलग होता है।

परिभाषा-कविता-कहानी को पढने, सुनने और नाटक को देखने से पाठक, श्रोता और दर्शक को जो आनंद प्राप्त होता है, उसे रस कहते हैं।

रस के अंग-रस के चार अंग माने गए हैं –

  1. स्थायीभाव
  2. विभाव
  3. अनुभाव
  4. संचारीभाव

1. स्थायीभाव – कविता या नाटक का आनंद लेने से सहृदय के हृदय में भावों का संचार होता है। ये भाव मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं। सुषुप्तावस्था में रहने वाले ये भाव साहित्य के आनंद के द्वारा जग जाते हैं और रस में बदल जाते हैं

मानव मन में अनेक तरह के भाव उठते हैं पर साहित्याचार्यों ने इन भावों को मुख्यतया नौ स्थायी भावों में बाँटा है पर वत्सल भाव को शामिल करने पर इनकी संख्या दस मानी जाती है। ये स्थायीभाव और उनसे संबंधित रस इस प्रकार हैं – 
            रस                            स्थाई भाव
  1. श्रृंगार रस             - रति
  2. हास्य रस             - हास
  3. करूण रस           - शोक
  4. रौद्र रस               - क्रोध
  5. वीर रस               - उत्साह
  6. भयानक रस        - भय
  7. बीभत्स रस         - जुगुप्सा या घृणा
  8. अदभुत रस         - विस्मय या आश्चर्य
  9. शान्त रस             - निर्वेद
  10. वत्सल रस           - वात्सल्य

2. विभाव – विभाव का शाब्दिक अर्थ है-भावों को विशेष रूप से जगाने वाला अर्थात् वे कारण, विषय और वस्तुएँ, जो सहृदय के हृदय में सुप्त पड़े भावों को जगा देती हैं और उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभाव के भेद होते हैं –

1. आलंबन विभाव- वे वस्तुएँ और विषय, जिनके सहारे भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं।
आलंबन विभाव के दो भेद होते हैं
(क) आश्रय – जिस व्यक्ति या पात्र के हृदय में भावों की उत्पत्ति होती है, उसे आश्रय कहते हैं।
(ख) विषय – जिस विषय-वस्तु के प्रति मन में भावों की उत्पत्ति होती है, उसे विषय कहते हैं। एक उदाहरण देखिए –
अपने भाइयों और साथी राजाओं के एक-एक कर मारे जाने से दुर्योधन विलाप करने लगा। यहाँ ‘दुर्योधन’ आश्रय तथा ‘भाइयों और राजाओं का एक-एक कर मारा जाना’ विषय है। दोनों के मेल से आलंबन विभाव बन रहा है।

2. उद्दीपन विभाव- वे वाह्य वातावरण, चेष्टाएँ और अन्य वस्तुएँ जो मन के भावों को उद्दीप्त अर्थात तेज़ करते हैं, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।

इसे उपर्युक्त उदाहरण के माध्यम से समझते हैं –
भाइयों एवं साथी राजाओं की मृत्यु से दुखी एवं विलाप करने वाला दुर्योधन ‘आश्रय’ है। यहाँ युद्ध के भयानक दृश्य, भाइयों के कटे सिर, घायल साथी राजाओं की चीख-पुकार, हाथ-पैर पटकना आदि क्रियाएँ दुख के भाव को उद्दीप्त कर रही हैं। अतः ये सभी उद्दीपन विभाव हैं।

3. अनुभाव – अनुभाव दो शब्दों ‘अनु’ और भाव के मेल से बना है। ‘अनु’ अर्थात् पीछे या बाद में अर्थात् आश्रय के मन में पनपे भाव और उसकी वाह्य चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं।

4. संचारी भाव- आश्रय के चित्त में स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले जो अन्य भाव आते रहते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनका दूसरा नाम अस्थिर मनोविकार भी है।
चुटकुला सुनने से मन में उत्पन्न खुशी तथा दुर्योधन के मन में उठने वाली दुश्चिंता, शोक, मोह आदि संचारी भाव हैं।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।

संचारी और स्थायी भावों में अंतर –
1. संचारी भाव बनते-बिगड़ते रहते हैं, जबकि स्थायीभाव अंत तक बने रहते हैं।
2. संचारी भाव अनेक रसों के साथ रह सकता है। इसे व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है, जबकि प्रत्येक रस का स्थाई भाव एक ही होता है।

रस-निष्पत्ति –

हृदय के स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है अर्थात् वे एक दूसरे से मिल-जुल जाते हैं, तब रस की निष्पत्ति होती है। अर्थात्
स्थायीभाव + विभाव + अनुभाव + संचारीभाव = रस की व्युत्पत्ति।

रस के भेद –
रस के भेद और उनके उदाहरण निम्नलिखित हैं –

1. श्रृंगार रस- शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का सहज आकर्षण है। स्त्री-पुरुष में सहज रूप से विद्यमान रति नामक स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारीभाव के संयोग से आनंद लेने योग्य हो जाता है, तब इसे शृंगार रस कहते हैं।
अनुभूतियों के आधार पर शृंगार रस के दो भेद होते हैं –
(क) संयोग शृंगार रस
(ख) वियोग शृंगार रस

(क) संयोग श्रृंगार रस – काव्य में या अन्यत्र जब नायक-नायिका के मिलन का वर्णन होता है, तब वहाँ संयोग शृंगार रस होता
उदाहरण – वर्षा ऋतु में रात्रि के समय बिजली चमक रही है, बादल बरस रहे हैं। दादुरमोर की आवाज़ सुनाई देती है। पद्मावती अपने प्रीतम के संग जागती हुई वर्षा का आनंद ले रही है और बादलों की गर्जना सुनकर चौंककर प्रीतम के सीने से लग जाती है। संयोग शृंगार का वर्णन देखिए

“पदमावति चाहत रितु पाई, गगन सुहावन भूमि सुहाई।
चमक बीजु बरसै जग सोना, दादुर मोर सबद सुठिलोना॥
रंगराती प्रीतम संग जागी, गरजै गगन चौंकि उर लागी।
शीतल बूंद ऊँच चौपारा, हरियर सब देखाइ संसारा॥ (मलिक मोहम्मद जायसी)

यहाँ स्थायीभाव रति (प्रेम) है। रानी पद्मावती आश्रय तथा आलंबन उसका प्रीतम है। बिजली चमकना, दादुर-मोर का बोलना, बादलों का गरजना उद्दीपन विभाव तथा चौंककर सीने से लग जाना डरना संचारी भाव है।

(ख) वियोग श्रृंगार रस-प्रिय से बिछड़कर वियोगावस्था में दिन बिता रहे नायक-नायिका की अवस्था का वर्णन होता है, तब वियोग शृंगार होता है

मनमोहन तै बिछुरी जब सौं,
तन आँसुन सौ सदा धोवती हैं।
हरिश्चंद जू प्रेम के फंद परी
कुल की कुल लाजहि खोवती हैं।
दुख के दिन कोऊ भाँति बितै
विरहागम रंग संजोवती है।
हम ही अपनी दशा जानें सखी,
निसि सोबती है किधौं रोबती हैं। (‘भारतेंदु हरिश्चंद’)

यहाँ स्थायी भाव रति (प्रेम) है। विरहिणी नायिका आश्रय तथा उसका प्रिय (मनमोहन) आलंबन है। विभाव-मिलन के सुखद दिन तथा संचारी भाव-पूर्व मिलन की यादें, दुख आदि, जिनके संयोग से वियोग शृंगार रस की अनुभूति हो रही है।

2. हास्य रस – किसी विचित्र व्यक्ति, वस्तु, आकृति, वेशभूषा, असंगत क्रिया विचार, व्यवहार आदि को देखकर जिस विनोद भाव का संचार होता है, उसे हास कहते हैं। हास के परिपुष्ट होने पर हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
उदाहरण – श्रीराम-लक्ष्मण के वन गमन के समय उनके पैरों की रज छूकर शिला बन चुकी अहिल्या जीवित हो उठीं। यह समाचार सुनते ही विंध्याचल पर्वत पर रहने वाले मुनिगण बड़े खुश हुए कि यहाँ की अब सभी शिलाएँ नारी बन जाएँगी –

विंध्य के बासी उदासी तपोव्रत धारी नारि बिना मुनि महा दुखारे ।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भये मुनिवृंद सुखारे।
हवै हैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे प्रभु के पदकंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जो करुणा करि कानन को पग धारे॥

यहाँ विंध्याचल पर तपस्या करने वाले ऋषि-मुनि आश्रय, राम आलंबन हैं, शिलाओं का पत्थर बनने की खबर सुनना विभाव और प्रसन्न होना, राम के वन आगमन को अच्छा समझना संचारी भाव है। इनके निष्पत्ति से हास परिपुष्ट हो रहा है और हास्य रस की उत्पत्ति हो रही है।

3. वीर रस – युद्ध में वीरों की वीरता के वर्णन में वीर रस परिपुष्ट होता है। जब हृदय में उत्साह नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है, तब वीर रस की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण – अर्जुन के दूसरे मोर्चे पर युद्धरत होने और कौरवों द्वारा चक्रव्यूह की रचना से चिंतित युधिष्ठिर जब अभिमन्यु को अपनी चिंता बताते हैं तो अभिमन्यु उनसे कहता है

हे सारथे! हे द्रोण क्या, देवेंद्र भी आकर अड़ें,
है खेल क्षत्रिय बालकों का, व्यूह-भेदन कर लड़े।
मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे।

यहाँ आश्रय अभिमन्यु, आलंबन कौरव पक्ष के वीर और उनके द्वारा रचित चक्रव्यूह, उनकी ललकार सुनकर भुजाएँ फड़कना, वचन देना, उत्साहित होना विभाव तथा रणक्षेत्र में जाने को तत्पर होना, रोमांच, उत्सुकता उग्रता संचारीभाव तथा वीर रस की निष्पत्ति हुई है।

4. रौद्र रस – क्रोध की अधिकता से उत्पन्न इंद्रियों की प्रबलता को रौद्र कहते हैं। जब इस क्रोध का मेल विभाव, अनुभाव और संचारीभाव से होता है, तब रौद्ररस की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण-सीता स्वयंवर के अवसर पर धनुष भंग होने की खबर सुनते ही परशुराम स्वयंवर स्थल पर आए। लक्ष्मण के वचनों ने उनके क्रोध को और भी भड़का दिया। वे रौद्र रूप धारण कर कहने लगे –

अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुवादी बालक वध जोगू॥
बाल विलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनहार भा साँचा॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उत्तर देत छोडौं बिनु मारे। केवल कौशिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ भ्रम थोरे ॥

यहाँ स्थायी भाव क्रोध है, आश्रय-परशुराम, आलंबन-कटुवादी लक्ष्मण है एवं परशुराम का कठोर वचन उच्चारण अनुभाव है एवं आवेग, उग्रता, चपलता आदि संचारी भाव है। इनके संयोग से रौद्र रस की निष्पत्ति हुई है।

5. भयानक रस – डरावने दृश्य देखकर मन में भय उत्पन्न होता है। जब भय नामक स्थायीभाव का मेल विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है, तब भयानक रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण – प्रलय का एक भयानक चित्र देखिए –
पंचभूत का वैभव मिश्रण झंझाओं का सकल निपातु,
उल्का लेकर सकल शक्तियाँ, खोज रही थीं खोया प्रात।
धंसती धरा धधकती ज्वाला, ज्वालामुखियों के नि:श्वास;
और संकुचित क्रमशः उसके अवयव का होता था ह्रास।

यहाँ – स्थायीभाव – भय, आश्रय स्वयं मनु हैं जो प्रलय की भयंकरता देख रहे हैं, आलंबन-प्रलय का प्रकोप, अनुभाव-भयभीत होना, उद्दीपन-धधकती ज्वालाएँ, धरा का धंसते जाना, ज्वालामुखी में सब कुछ नष्ट होना तथा संचारी भाव-शंका, भय आदि हैं, जिनके संयोग से भयानक रस की निष्पत्ति हुई है।

6. करुण रस – प्रिय जन की पीड़ा, मृत्यु, वांछित वस्तु का न मिलना, अनिष्ट होना आदि से शोकभाव परिपुष्ट होता है तब वहाँ करुण रस होता है।
उदाहरण – दुलारों में नित पाली हुई, प्रेम की प्रतिभा वह प्यारी।
खिलौना इस घर की वह हाय, वही थी सरला सुकुमारी।
अरे! कोई यह दीन पुकार, कहीं यदि सुनता हो कोई।
मुझे दिखला दे मेरा प्राण, जगा दे फिर किस्मत सोई ॥

यहाँ – स्थायी भाव-शोक, आश्रय-जिससे हृदय का भाव जाग्रत हो, आलंबन – मृत प्रियजन और नाश को प्राप्त ऐश्वर्य। उद्दीपन – प्रिय केशव दर्शन, चिता जलाना उससे संबंधित वस्तुओं एवं अन्य रोते हुए बांधवों का दर्शन, अत्याचार आदि। अनुभाव – विलाप, रोदन, भाग्य की निंदा, प्रलाप आदि। संचारी भाव – मोह ग्लानि चिंता विषाद आदि।

7. वीभत्स रस – वीभत्स का स्थायी भाव जुगुप्सा है। अत्यंत गंदे और घृणित दृश्य वीभत्स रस की उत्पत्ति करते हैं। गंदी और घृणित वस्तुओं के वर्णन से जब घृणा भाव पुष्ट होता है तब यह रस उत्पन्न होता है।

उदाहरण – हाथ में घाव थे चार
थी उनमें मवाद भरमार
मक्खी उन पर भिनक रही थी,
कुछ पाने को टूट पड़ी थी
उसी हाथ से कौर उठाता
घृणा से मेरा मन भर जाता।

यहाँ – स्थायीभाव – जुगुप्सा (घृणा) है,
आश्रय – जिसके मन में घृणा हो,
आलंबन – घाव, मवाद भिनभिनाती मक्खियाँ ।
उद्दीपन – घाव-मवाद युक्त हाथ से भोजन करना
अनुभाव – नाक-मुँह सिकोड़ना, घृणा करना, थूकना
संचारी भाव – ग्लानि दैन्य आदि।

8. अद्भुत रस – जब किसी वस्तु का वर्णन आश्चर्य उत्पन्न करता है, तब अद्भुत रस उत्पन्न होता है।

उदाहरण – अखिल भुवन चर-अचर सब हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गदगद् वचन, विकसत दृग पुलकातु॥

यहाँ-स्थायी भाव-विस्मय है। आश्रय-माता यशोदा तथा आलंबन-बालक श्री कृष्ण का मुख, मुख के भीतर का दृश्य उद्दीपन। आँखों का फैलना, गदगद वचन बोलना अनुभाव, भय संचारीभाव है। इनके संयोग से अद्भुत रस की उत्पत्ति हुई है।

9. शांत रस – जब चित्त शांत दशा में होता है तब शांत रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव निर्वेद है।

उदाहरण – अब लौं नसानी अब न नसैहौं।
राम कृपा भव निशा सिरानी, जागे फिर न डसैहौं।
पायो नाम चारु चिंतामनि, उर करतें न खसैहौं।
श्याम रूप सुनि रुचिर कसौटी चित्त कंचनहि कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिय निज बस हवै न हसैहौं।
मन मधुकर पनकरि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।

यहाँ-स्थायीभाव-निर्वेद, उद्दीपन विभाव-संसार की क्षणभंगुरता, सारहीनता, इंद्रियों द्वारा उपहास, अनुभाव-राम के चरणों में मन लगना, संचारी भाव-दृढ़ प्रतिज्ञ मति होना आदि के संयोग से निर्वेद नामक स्थायी भाव पुष्ट होकर शांत रस को प्राप्त हुआ है।

10. वात्सल्य रस – छोटे बच्चों के प्रति स्नेह के चित्रण में वात्सल्य रस उत्पन्न होता है। हृदय में ‘वत्सल’ नामक स्थायी भाव का मेल विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है, तब वात्सल्य रस परिपुष्ट होता है।

उदाहरण – मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे मधुवन मोहि पठायो।
चार पहर वंशी वन भटक्यो साँझ परे घर आयो।
ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, वरबस मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोरो, छीको केहि विधि पायो।
सूरदास तब बिहँसि यशोमति मैं उर कंठ लगायो॥

यहाँ – स्थायीभाव-वत्सल, आश्रय – माता यशोदा, आलंबन – श्री कृष्ण, उद्दीपन – श्रीकृष्ण के मुख पर लगा मक्खन, अनुभाव-यशोदा के मन में शंका, जिज्ञासा प्रकट करना, संचारी भाव – यशोदा का हर्षित होना आदि के संयोग से वात्सल्य रस परिपुष्ट हुआ है।



NCERT Solutions for Class 10 Hindi – A

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Bhag 2 क्षितिज भाग 2

काव्य – खंड

गद्य – खंड

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Bhag 2 कृतिका भाग 2

NCERT Solutions for Class 10 Hindi – B

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Bhag 2 स्पर्श भाग 2

काव्य – खंड

गद्य – खंड

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Bhag संचयन भाग 2

CBSE Class 10 Hindi A Unseen Passages अपठित बोध

CBSE Class 10 Hindi A Grammar व्याकरण

CBSE Class 10 Hindi A Writing Skills लेखन कौशल

CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित बोध

CBSE Class 10 Hindi B Grammar व्याकरण

CBSE Class 10 Hindi B Writing Skills लेखन कौशल

Post a Comment

इस पेज / वेबसाइट की त्रुटियों / गलतियों को यहाँ दर्ज कीजिये
(Errors/mistakes on this page/website enter here)

Previous Post Next Post