NCERT Solutions | Class 11 Rajniti Vigyan राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory) Chapter 10 | Development (विकास)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 11
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NCERT | Class 11 Rajniti Vigyan राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
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Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 11 |
Subject: | Rajniti Vigyan |
Chapter: | 10 |
Chapters Name: | Development (विकास) |
Medium: | Hindi |
Development (विकास) | Class 11 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions For Class 11 Political Science Political theory Chapter 10 Development
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
‘विकास’ शब्द अपने व्यापक अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है। कोई समाज के बारे में अपनी समझ द्वारा यह स्पष्ट करता है कि समाज के लिए समग्र रूप से उसकी दृष्टि क्या है और उसे प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय क्या है? साधारणतया विकास शब्द का प्रयोग प्रायः आर्थिक विकास की दर में वृद्धि और समाज को आधुनिकीकरण जैसे संकीर्ण अर्थों में भी होता रहता है। ‘विकास’ की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ नहीं होता है। प्रायः देखा गया है कि विकास को काम समाज के व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार नहीं होता है। इस प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित होते हैं जबकि शेष लोगों को अपने घर, जमीन, जीवन-शैली को बिना किसी भरपाई के खोना पड़ सकता है।प्रश्न 2.
उत्तर :
जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे निम्नलिखित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़े हैं-सामाजिक प्रभाव
विकास की समाज को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। अन्त बातों के अतिरिक्त बड़े बाँधों के निर्माण,
औद्योगिक गतिविधियों और उत्खनन कार्यों के कारण बड़ी संख्या में लोगों को उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ है। विस्थापन का परिणाम आजीविका खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में हमारे सामने आया है। अगर ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिए पर चले जाते हैं। कालान्तर में वे नगरीय और ग्रामीण गरीबों की विशाल संख्या में सम्मिलित हो जाते हैं। उनके परम्परागत कौशल नष्ट हो जाते हैं। संस्कृति भी नष्ट होती है क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं, तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन पद्धति खो बैठते हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव
विकास के कारण अनेक देशों के पर्यावरण को भी बहुत नुकसान पहुँचा है। जब दक्षिणी और दक्षिण-पूर्व एशिया के तटों पर सुनामी ने कहर ढाया, तो यह देखा गया कि तटीय वनों के नष्ट होने और समुद्र तट के निकट वाणिज्यिक उद्यमों के स्थापित होने के कारण ही इतना अधिक नुकसान हुआ। कालान्तर में पारिस्थितिकी संकट से हम बुरी तरह प्रभावित होंगे। वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करने वाली समस्या है। भूमि का जल स्तर भी गिर गया है, ग्रामीण महिलाओं को पानी लेने अब बहुत दूर जाना पड़ता है।
विकास के लिए हम जिन क्रियाओं पर निर्भर हैं वे ऊर्जा के निरन्तर बढ़ते उपयोग से सम्पन्न होते हैं। विश्व में प्रयुक्त ऊर्जा का अधिकांश भाग कोयला अथवा पेट्रोलियम जैसे स्रोतों से आता है, जिन्हें पुनः प्राप्त करना सम्भव नहीं है। उपभोक्ताओं की बढ़ी हुई आवश्यकताओं को पूरा करने में अमेजन के बरसाती जंगलों का विशाल भू-भाग उजड़ता जा रहा है। इस प्रकार विकास ने समाज और पर्यावरण को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है।
प्रश्न 3.
उत्तर :
विकास की प्रक्रिया ने जिन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है, उनमें प्रमुख हैं-1. आजीविका के अधिकार का दावा – विकास की कीमत अत्यन्त दरिद्रों और आबादी के असुरक्षित भाग को चुकानी पड़ती है। चाहे यह कीमत पारिस्थितिकी तन्त्र में नुकसान के कारण हो या विस्थापन के समय आजीविका खाने के कारण। लोकतन्त्र में लोगों को यह अधिकार है। कि वे सरकार के सामने आजीविका के अधिकार की माँग कर सकते हैं।
2. नैसर्गिक संसाधनों पर अधिकार का दावा – आदिवासी और आदिम समुदाय जिनका पर्यावरण से गहन संबंध होता है नैसर्गिक संसाधनों के उपयोग के परम्परागत अधिकारों का दावा करने लगे हैं।
प्रश्न 4.
उत्तर :
लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसाधनों को लेकर विरोध या बेहतर जीवन के विषय में विभिन्न विचारों के द्वन्द्व का हल विचार-विमर्श और सभी के अधिकारों के प्रति सम्मान के माध्यम से होता है। इन्हें ऊपर से थोपा नहीं जा सकता। इस प्रकार अगर बेहतर जीवन प्राप्त करने में समाज का प्रत्येक व्यक्ति साझीदार है, तो विकास के लक्ष्य तय करने और उसके कार्यान्वयन के तरीके खोजने में भी प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार विकास के बारे में निर्णय लेने में अन्य सरकार की अपेक्षा लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ही लाभ है।प्रश्न 5.
उत्तर :
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में पर्यावरण आन्दोलन बड़े सफल रहे हैं। पर्यावरण आन्दोलन की जड़े औद्योगीकरण के विरुद्ध 19वीं सदी में विकसित हुए विद्रोह में देखी जा सकती हैं। वर्तमान में पर्यावरणीय आन्दोलन एक विश्वव्यापी प्रकरण बन गया है और इसके गवाह हैं विश्वभर में फैले हजारों गैर-सरकारी संगठन और बहुत-सी ‘ग्रीन’ पार्टियाँ। कुछ जाने-माने पर्यावरण संगठनों में ग्रीन पीस और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड शामिल हैं। भारत में भी हिमालय के वन क्षेत्र को बचाने के लिए ‘चिपको आन्दोलन’ का जन्म हुआ। ये समूह पर्यावरण उद्देश्यों की रोशनी में सरकार की औद्योगिक एवं विकास नीतियों को बदलने के लिए दबाव डालने का प्रयत्न करते हैं।परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
(क) विकास
(ख) पर्यावरण
(ग) तानाशाही
(घ) योजना
उत्तर :
(क) विकास।प्रश्न 2.
(क) योजना आयोग
(ख) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
(ग) भारतीय संसद
(घ) मानवाधिकार आयोग
उत्तर :
(ख) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)।प्रश्न 3.
(क) पर्यावरण
(ख) विधि
(ग) योजना
(घ) नर्मदा बाँध
उत्तर :
(क) पर्यावरण।प्रश्न 4.
(क) नाइजीरिया
(ख) दक्षिणी अफ्रीका
(ग) इजरायल
(घ) फिलिस्तीन
उत्तर :
(क) नाइजीरिया।अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
एशियाई व अफ्रीकी देशों में गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की समस्याएँ हैं।प्रश्न 2.
उत्तर :
पर्यावरणवादियों का विचार है कि मानव को पारिस्थितिकी के सुर-में-सुर मिलाकर जीना चाहिए और पर्यावरण में अपने तात्कालिक हितों के लिए छेड़छाड़ करना बंद करना चाहिए।प्रश्न 3.
उत्तर :
यह एक पर्यावरणीय आन्दोलन है और भारत में हिमालय के वनक्षेत्र को बचाने के लिए प्रारम्भ किया गया था।प्रश्न 4.
उत्तर :
‘मानव विकास प्रतिवेदन संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) प्रकाशित करता है। यह उसका वार्षिक प्रकाशन है। इस प्रतिवेदन में साक्षरता और शैक्षिक स्तर, आयु सम्भावित और मातृ-मृत्यु दर जैसे विभिन्न सामाजिक संकेतकों के आधार पर देशों का दर्जा निर्धारित किया जाता है।प्रश्न 5.
उत्तर :
लोकतन्त्र और विकास दोनों का समान उद्देश्य जनसाधारण के लिए रोजगार प्राप्त कराना है।लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
‘विकास’ शब्द अपने व्यापकतम अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है। कोई समाज विकास के बारे में अपनी समझे द्वारा यह स्पष्ट करता है कि समाज के लिए समग्र रूप से उसकी दृष्टि क्या है और उसे प्राप्त करने का सर्वोत्तम तरीका क्या है? विकास शब्द का प्रयोग प्रायः आर्थिक विकास की दर में वृद्धि और समाज का आधुनिकीकरण जैसे संकीर्ण अर्थों में भी होता रहता है। दुर्भाग्यवश विकास को साधारणतया पूर्व निर्धारित लक्ष्यों का बाँध, उद्योग, अस्पताल जैसी परियोजनाओं को पूरा करने से जोड़कर देखा जाता है। विकास का काम । समाज के व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार नहीं होता है। इस प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित होते हैं जबकि शेष लोगों को अपने घर, जमीन, जीवन-शैली को बिना किसी भरपाई के खोना पड़ सकता है।प्रश्न 2.
उत्तर :
विकास की सामाजिक अवधारणा का प्रयोग करने का श्रेय एल०टी० हॉबहाउस (L.T. Hobhouse) को दिया जाता है जिन्होंने अपनी पुस्तक सोशल डेवलपमेण्ट (Social Development) में विकास की सामाजिक अवधारणा, विकास की दशाओं तथा विभिन्न प्रकार के विकासों (जैसे कि संस्थाओं का विकास अथवा बौद्धिक विकास) इत्यादि अनेक विषयों पर समुचित प्रकाश डाला है। हॉबहाउस (Hobhouse) के अनुसार, “विकास का अभिप्राय नए प्रकायों के उदय होने के परिणामस्वरूप सामान्य कार्यक्षमता में वृद्धि अथवा पुराने प्रकार्यों की एक-दूसरे के साथ समायोजना के कारण सामान्य उपलब्धि में वृद्धि से है।हॉबहाउस ने विकास की अवधारणा को समुदायों के विकास के संदर्भ में विकसित किया है। यदि कोई समुदाय अपने स्तर, कुशलता, स्वतन्त्रता तथा पारस्परिकता में आगे बढ़ता है तो हम यह कह सकते हैं। कि वह अमुक समुदाय विकास की ओर अग्रसर है। किसी एक तत्त्व का ही नहीं अपितु सभी तत्त्वों का समन्वय विकास के लिए अनवार्य है।
प्रश्न 3.
उत्तर :
नर्मदा बचाओ आंदोलन’ नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर परियोजना के अंतर्गत बनने वाले बाँधों के निर्माण के विरुद्ध एक मिशन है। बड़े बाँधों के समर्थकों का तर्क है कि इनसे बिजली उत्पन्न होगी, काफी बड़े क्षेत्र में जमीन की सिंचाई में सहायता मिलेगी। सौराष्ट्र और कच्छ के रेगिस्तानी क्षेत्र को पेयजल भी उपलब्ध होगा। बड़े बाँधों के विरोधी (नर्मदा बचाओ आंदोलन) इन दावों का खण्डन करते हैं। इसके अतिरिक्त अपनी जमीन के डूबने और उसके कारण अपनी आजीविका के छिनने से दस लाख से अधिक लोगों के विस्थापन की समसया उत्पन्न हो गई है। इनमें से अधिकांश लोग जनजाति या दलित समुदायों के हैं और देश के अति वंचित समूहों में आते हैं।प्रश्न 4.
उत्तर :
‘सामाजिक विकास’ को टी०बी० बॉटोमोर ने इस प्रकार परिभाषित किया है, ‘सामाजिक विकास से हमारा तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें समाज के व्यक्तियों में ज्ञान की वृद्धि हो और व्यक्ति प्रौद्यागिक आविष्कारों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लें साथ ही वे आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर हो जाएँ।” सामाजिक विकास की प्रक्रिया के अंतर्गत औद्योगीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप आर्थिक व राजनीतिक संगठनों की कार्यक्षमता में वृद्धि हुई है तथा इसके आधार पर समाजों को विकसित तथा अविकसित या विकासशील जैसी श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।सामाजिक विकास का अभिप्राय जैवकीय विकास न होकर मानवीय ज्ञान में वृद्धि तथा प्राकृतिक पर्यावरण पर मानवीय नियंत्रण में अधिकाधिक वृद्धि है। मानवीय ज्ञान में वृद्धि की दृष्टि से अगर समाज में व्यक्ति अपने पूर्वजों की अपेक्षा ज्ञान में अभिवृद्धि कर चुके हैं तो उसे हम विकसित समाज कह सकते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण पर मानवीय नियन्त्रण की वृद्धि भी विकास का एक सूचक है तथा जिन समाजों ने इस नियन्त्रण में सफलता प्राप्त कर ली है वे विकसित समाज हैं। वास्तव में, सामाजिक विकास को केवल आर्थिक विकास तक ही सीमित करना उचित नहीं है। विकासशील देशों के लिए ‘सामाजिक विकास’ एक बहु-आयामी अवधारणा है।
प्रश्न 5.
उत्तर :
किसी भी देश के आर्थिक विकास का उस देश की मानव-शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव को ‘जनांकिकीय संक्रान्ति सिद्धान्त’ द्वारा स्पष्ट किया जाता है जिसके अनुसार-1. किसी भी अविकसित राष्ट्र में अशिक्षा, बाल विवाह एवं अन्य धार्मिक विश्वासों के कारण जन्म-दर अधिक होती है तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मृत्यु-दर भी अधिक होती है। इसलिए मानव-शक्ति में विशेष वृद्धि नहीं होती।
2. किसी भी विकासशील राष्ट्र में स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से मृत्यु-दर कम होती है किन्तु
जन्म-दर में कोई विशेष कमी नहीं होती। इससे जनसंख्या में वृद्धि होती है तथा प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन अधिक होने लगता है। ऐसा होने से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। किन्तु एक सीमा से अधिक जनसंख्या बढ़ जाने पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है जिसे दूर करने के लिए मानव-शक्ति का नियोजन आवश्यक हो जाता है।
3. किसी भी विकसित राष्ट्र में शिक्षा की वृद्धि एवं रहन-सहन का स्तर ऊँचा होने के कारण रूढ़िवादिता एवं पारम्परिक दृष्टिकोण समाप्त हो जाता है जिससे जन्म-दर में कमी आ जाती है। तथा स्वस्थ सेवाओं एवं उत्पादन में वृद्धि के कारण मृत्यु-दर में भी कमी आती है। इसलिए मानव-शक्ति में वृद्धि होती है तथा समाज में आर्थिक संतुलन की स्थिति बन जाती है।
प्रश्न 6.
उत्तर :
टी० डब्ल्यूशुल्ज (T.W. Schultz) का मत है कि मानवीय साधनों का विकास निम्नलिखित पाँच विधियों से किया जा सकता है-- कार्यरत प्रशिक्षण की व्यवस्था करके,
- वयस्क श्रमिकों के लिए अध्ययन कार्यक्रमों का संगठन करना, जिसमें कृषि संबंधी विस्तार । कार्यक्रम सम्मिलित हों,
- ऐसी स्वास्थ्य सेवाएँ, सम्मिलित करना जिनसे लोगों का जीवन-स्तर, शक्ति एवं तेज में वृद्धि हो,
- प्रारम्भिक, माध्यमिक एवं उच्चतर स्तर पर संगठित शिक्षा की व्यवस्था करना तथा
- व्यक्तियों व परिवारों को स्थान परिवर्तित करके उन्हें नौकरी के अवसरों से समायोजित करना। | इस सूची में तकनीकी सहायता, विशेषज्ञों, तथा सलाहकारों का आयात करना भी जोड़ा जा सकता है। ।
दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
आर्थिक विकास के निम्नलिखित प्रमुख लक्षण इसकी प्रकृति को स्पष्ट करते हैं-1. आर्थिक विकास एक प्रक्रिया- आर्थिक विकास किसी विशेष आर्थिक स्थिति का परिचायक नहीं है। यह तो प्रक्रिया है जो अविकसित या अर्द्धविकसित समाजों के उन प्रयासों को प्रकट करती है जो एक विशेष समय सन्दर्भ में उने लक्ष्यों की प्राप्ति से संबंधित हैं जिनके द्वारा वह
समाज विकसित अथवा औद्योगीकृत समाजों के रूप में रूपान्तरित होने के लिए करता है।
2. एक, चेतन प्रक्रिया- आर्थिक विकास एक चेतन प्रक्रिया है जिसमें विकास के स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और उनकी प्राप्ति के लिए कार्यक्रम नियोजित किया जाता है।
3. नवोदित राष्ट्रों की तीसरी दुनिया से संबंधित- यह प्रक्रिया विशेषतः एशिया और अफ्रीका के उन राष्ट्रों में घटित हो रही है जो औद्योगीकरण की राह में पिछड़े हुए हैं। वे अपनी परम्परागत कृषि व्यवस्था में औद्योगिक अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहे हैं। उनके अपने विभिन्न मॉडल और प्रयास हैं।
4. संक्रमणकालिक स्थिति- उपर्युक्त विशेषता इस बात को भी प्रकट करती है कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया संक्रमण अथवा रूपान्तर के दौर से संबंधित है। विकास के एक निश्चित बिंदु पर पहुँचकर इस प्रक्रिया का अर्थ और संदर्भ बदल जाता है क्योंकि तब तो संबंधित राष्ट्र विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ चुके होते हैं।
प्रश्न 2.
उत्तर :
विकास का वैकल्पिक प्रारूप विकास की महँगी, पर्यावरण की नुकसान पहुँचाने वाली और प्रौद्योगिकी से संचालित सोच से दूर होने का प्रयास करता है। विकास को देश में मोबाइल फोनों की संख्या अत्याधुनिक हथियारों अथवा कारों की बढ़ती संख्या से नहीं बल्कि लोगों के जीवन की उस गुणवत्ता से नापा जाना चाहिए, जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शांति और बुनियादी आवश्यकताओं के पूरा होने में झलकती है।एक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने और ऊर्जा के पुनः प्राप्त हो सकने वाले स्रोतों का यथासंभव उपयोग करने के प्रयास किए जाने चाहिए। वर्षा जल संचयन, सौर एवं जैव गैस संयन्त्र, लघु-पनबिजली परियोजना, जैव कचरे से खाद बनाने के लिए कम्पोस्ट गड्ढे बनाना आदि इस दिशा में संभव प्रयासों के कुछ उदाहरण हैं। बड़े सुधार को प्रभावी बनाने के लिए बड़ी परियोजनाएँ ही एकमात्र तरीका नहीं हैं। बड़े बाँधों के विरोधियों ने छोटे बाँधों की वकालत की है, जिनमें बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है और विस्थापन भी कम होता है। ऐसे छोटे बाँध नागरिकों के लिए अधिक लाभप्रद हो सकते हैं।
इसी के साथ-साथ हमें अपने जीवन स्तर को बदलकर उन साधनों की आवश्यकताओं को भी कम करने की आवश्यकता है, जिनका नवीकरण नहीं हो सकता। यह एक उलझा हुआ मामला है। इसे चयन की आजादी में कटौती भी माना जा सकता है, लेकिन जीवन जीने के वैकल्पिक तरीकों की संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने का आशय अच्छे जीवन की वैकल्पिक दृष्टि को खोलकर स्वतंत्रता और सृजनशीलता की संभावना बढ़ाना भी है। ऐसी किसी नीति के लिए देश-भर के लोगों और सरकार के बीच बड़े पैमाने पर सहयोग की आवश्यकता होगी। इसका अर्थ होगा कि ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिए लोकतान्त्रिक पद्धति अपनाई जाए। अगर हम विकास को किसी की स्वतंत्रता में वृद्धि की प्रक्रिया के रूप में देखते हैं और लोगों को निष्क्रिय उपभोक्ता नहीं मानकर विकास-लक्ष्यों को निर्धारित करने में सक्रिय भागीदारी मानते हैं, तो वैसे मसलों पर सहमति तक पहुँचना संभव है।
प्रश्न 3.
उत्तर :
विकास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू ‘मानव’ है। इसलिए किसी भी देश का आर्थिक विकास वस्तुत: वहाँ की मानव-शक्ति की अवस्था एवं उसके विकास पर अत्यधिक निर्भर करता है। अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठनों के प्रलेखों एवं कार्यक्रमों में विकास को जनसाधारण की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में देखा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की इस घोषणा के पश्चात् कि विकास का अतिंम लक्ष्य सभी को अच्छे जीवन हेतु अधिक अवसर प्रदान करता है’ शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, आवास, सामाजिक कल्याण एवं पर्यावरण संरक्षण जैसी सुविधाओं में सुधार पर बल दिया गया है। इसी प्रकार यूनीसेफ की विकास संबंधी नीति; जैसे सुरक्षित जल, संतुलित आहार, स्वच्छ आवास, मौलिक शिक्षा, महिला विकास आदि अनेक दैनिक आवश्यकताओं के प्रावधान पर केन्द्रित है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी आधुनिक क्षेत्र के विकास की आवश्यकताओं को अनदेखा किए बिना लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन योजनाओं के विकास पर बल दिया है।यद्यपि प्राकृतिक संसाधन, पूँजी निर्माण, तकनीकी व नवाचार, सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक संस्थाएँ, विदेशी सहायता एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की आर्थिक विकास में अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका है, तथापि इन सब से ‘मानव संसाधन के विकास का प्रश्न जुड़ा हुआ है। मानव विकास एवं आर्थिक विकास साथ-साथ चलने वाली क्रियाएँ हैं तथा एक के बिना दूसरी की न तो कल्पना की जा सकती है और न ही एक दूसरी के बिना आगे बढ़ सकती है। आर्थिक विकास में यंत्र, उपकरण, कच्चा माल, वित्त इत्यादि अपनी विशेष भूमिका का निर्वाह करते हैं किंतु मानवीय कारक एवं मानवीय सहायता के बिना आर्थिक विकास का कोई भी साधन न तो गति प्राप्त कर सकता है और न ही आर्थिक विकास में अपना समुचित योगदान ही प्रदान कर सकता है। इसलिए यह माना जाता है कि आर्थिक विकास के समस्त भौतिक संसाधन मानव के लिए हैं और मानव ही उनका उपयोग आर्थिक विकास के निमित्त करता है।
यदि मनुष्य पूर्ण क्षमता से कार्य करता है तो भौतिक संसाधन भी अपना पूरा योगदान आर्थिक विकास में देते हैं, किंतु यदि मानव संसाधन की कमी होती है तो अन्य संसाधनों की सम्पूर्णता के बावजूद यथेष्ट आर्थिक विकास नहीं होता। आर्थिक विकास में एक ओर मानव के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास किया जाता है तथा दूसरी ओर आर्थिक विकास स्वयं मानवीय साधनों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। मानवीय पूँजी में वृद्धि से ही विश्व के विकसित राष्ट्रों ने विकास की गति को बढ़ाया है तथा आज आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में मानवीय संसाधन को महत्त्वपूर्ण मानते हुए मानव पूंजी में निवेश की विचारधारा विकसित हुई है।
प्रश्न 4.
उत्तर :
सन् 1950 में नाइजीरिया के ओगोनी प्रान्त में तेल पाया गया। जल्द ही आर्थिक वृद्धि और बड़े व्यापार के दावेदारों ने ओगोनी के चारों ओर राजनीतिक षड्यन्त्र, पर्यावरणीय समस्याओं और भ्रष्टाचार का घना ताना-बाना बुन दिया। इसने उसी क्षेत्र के विकास को रोक दिया जहाँ तेल मिला था। केन सारो वीवा जम से एक ओगोनीवासी थे और 1980 के दशक में एक लेखक, पत्रकार एवं टेलीविजन निर्माता के रूप में जाने जाते थे। अपने काम के दौरान उन्होंने देखा कि तेल और गैस उद्योग ने गरीब ओगोनी किसानों के पैरों के नीचे दबे खजाने को लूट लिया और बदले में उनकी जमीन को प्रदूषित और किसानों को बेघर कर दिया। सारो वीवा ने अपने चारों ओर होने वाले इस शोषण पर प्रतिक्रिया दर्ज की। सारो वीवा ने सन् 1990 में एक खुले, जमीनी और समुदाय पर टिके हुए राजनीतिक आंदोलन द्वारा अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व किया।आंदोलन का नाम ‘मूवमेण्ट फॉर सरवायवल ऑफ ओगोनी पीपल’ था। आंदोलन इतना असरदार हुआ कि तेल कंपनियों को 1993 तक ओगोनी से वापस जाना पड़ा। लेकिन सारो वीवा को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। नाइजीरिया के सैनिक शासकों ने उसे एक हत्या के मामले में फंसा दिया और सैनिक न्यायाधिकरण ने उसे फाँसी की सजा सुना दी। सारो वीवा का कहना था कि सैनिक ऐसी शैल’ नामक उस बहुराष्ट्रीय तेल कंपनी के दबाव में कर रहे हैं जिसे ओगोनी से भागना पड़ा था। दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों ने इस मुकदमे को विरोध किया और सारो वीवा को छोड़ देने का आह्वान किया। विश्वव्यापी विरोध की अवहेलना करते हुए नाइजीरिया के शासकों ने सन् 1995 में सारो वीवा को फाँसी दे दी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
राजनीतिक विज्ञान में विकास शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया गया है। उदाहरण के लिए, औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया तथा आर्थिक एवं राजनीतिक संगठनों की कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए शब्द का प्रयोग किया गया है। अनेक विद्वानों ने विकास शब्द का प्रयोग दो प्रकार के देशों-विकसित (Developed) तथा विकासशील (Developing) में भेद करने के लिए किया है। वास्तव में, विकास (जोकि जैविक एवं सावयविक अवधारणा है) की अवधारणा का सामाजिक विज्ञानों के अध्ययनों में प्रयोग किए जाने का एक प्रमुख कारण ही नए राष्ट्रों का उदय तथा उनके द्वारा विभिन्न सामाजिक समस्याओं के समाधान के प्रयास हैं। नवीन राष्ट्रों के सम्मुख एक प्रमुख समस्या देश को आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाने तथा राष्ट्र-निर्माण करके समस्याओं के समाधान की रही है।विकास शब्द से अभिप्राय उन्नत दिशा में विभेदीकरण है जो कि अनेक दशाओं में वृद्धि इत्यादि में देखा जा सकता है। इन दशाओं में तीन दशाएँ प्रमुख हैं-
- श्रम-विभाजन में वृद्धि,
- संस्थाओं और समितियों की संख्या में वृद्धि तथा
- संचार साधनों में वृद्धि। इस शब्द का प्रयोग केवल परिमाणात्मक वृद्धि के लिए ही नहीं किया जाता अपितु संगठन की कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए भी किया जाता है।
एस०एफ० नैडल (S.F. Nadel) के अनुसार विकास शब्द से तात्पर्य केवल उस परिवर्तन से नहीं है। जिससे कोई अप्रकट अथवा छिपी चीज सामने आती है, अपितु इनका संबंध संभावित परिवर्तनों से भी है। उनका कहना है कि विकास की प्रक्रिया का अतिंम रूप ही किसी समाज को प्रगति की अवस्था तक पहुँचाता है। अधिकांश विद्वान् (जैसे पारसन्स इत्यादि) विकास शब्द का प्रयोग उन परिवर्तनों के लिए करते हैं जो औद्योगीकरण के कारण सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थाओं पर परिलक्षित होते हैं।
एस० चोडक (S. Chodak) के अनुसार, विकास शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में क्रिया जाता है, जिनमें से चार का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक सोसाइटल डिवेलपमेण्ट (Societal Development) में किया है। ये अर्थ हैं-
- उविकास (Evolution) के दृष्टिकोण के अनुसार विकास संगठन की उच्च अवस्था की ओर होने वाली आकस्मिक प्रक्रिया है जोकि धीमी गति से होती है।
- उत्पत्ति (Genetic) संबंधी दृष्टिकोण के अनुसार विकास आंतरिक तत्त्वों में वृद्धि है।
- संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक (Structural-functional) दृष्टिकोण के अनुसार विकास संरचना और प्रकार्यों में परिवर्तन की एक निरंतर प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप विशेषीकरण, विभेदीकरण, अंगों की पारस्परिक आश्रितता तथा समग्र की स्वतन्त्रता में वृद्धि होती हैं।
- निर्णायकवाद (Determinism) दृष्टिकोण के अनुसार विकास स्वतः होने वाली परिवर्तन की एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा संरचनाओं व अन्तक्रियाओं में जटिलता आ जाती है।
प्रश्न 2.
उत्तर :
आज सम्पूर्ण विश्व में संपोषित विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है। यह विकास की वह प्रक्रिया है जिसे कोई भी देश अपने संसाधनों द्वारा इसे दीर्घकालीन अवधि तक बनाए रख सकता है। इस प्रकार के विकास द्वारा वर्तमान की आवश्यकताएँ तो पूरी होती ही हैं, साथ ही भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेही भी निश्चित की जाती है। इसका अर्थ ऐसा विकास है जो ने केवल मानव समाज की तत्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल देता है अपितु स्थायी तौर पर भविष्य के लिए भी निर्वाध विकास का आधार प्रस्तुत करता है। संपोषित विकास की धारणा सर्वप्रथम सन् 1987 ई० में ब्रटलैण्ड प्रतिवदेन में सम्मिलित की गई जिसमें इस तथ्य पर जोर दिया गया कि आर्थिक विकास की ऐसी पद्धति बनाई जानी चाहिए जिससे भावी पीढ़ियों के विकास पर किसी प्रकार की, आँच न आए। इस प्रकार का संरक्षण सकारात्मक प्रकृति का होता है जिसके अंतर्गत पारिस्थितिकीय तंत्र के तत्त्वों का संचय, रखरखाव, पुनस्र्थापन, दीर्घावधिक उपयोग एवं अभिवृद्धि सभी समाहित होती है।संपोषित विकास की धारणा विकास को केवल आर्थिक एवं औद्योगीकरण के पहलू से ही नहीं देखती अपितु इसमें उसके सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर भी समुचित विचार किया जाता है। आर्थिक विकास के साथ-साथ मानव के जीवन-स्तर में गुणात्मक सुधार बनाए रखना संपोषित विकास का प्रमुख लक्ष्य है। विकास के विश्लेषण का यह परिप्रेक्ष्य समग्र विकास पर बल देता है। संपोषित विकास एक बहुमुखी धारणा है जिसमें समानता, सामाजिक सहभागिता, पर्यावरण संरक्षण की क्षमता विकेन्द्रीकरण, आत्म-निर्भरता, मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है। संपोषित विकास हेतु आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को भोजन, वस्त्र और आवास के साथ-साथ बिजली, पानी परिवहन एवं संचार जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हों। इसके साथ ही मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा हो तथा उसे काम करने हेतु प्रदूषणरहित पर्यावरण, पोषित आहार तथा चिकित्सा सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सकें।
संपोषित विकास जनसाधारण को आर्थिक गतिविधियों में रोजगार के अवसर प्रदान करने पर बल देता है ताकि उनका जीवन-स्तर ऊँचा हो सके। संपोषित विकास का लक्ष्य आर्थिक विकास, सामाजिक समानता एवं न्याय तथा पर्यावरण संरक्षण में वृद्धि करना है। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि संपोषित विकास का लक्ष्य आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक आवश्यकताओं में संतुलन बनाए रखना है ताकि वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसके निम्नलिखित चार लक्षण हैं-
- सामाजिक प्रगति एवं समानता,
- पर्यावरणीय संरक्षण,
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण,
- स्थायी आर्थिक वृद्धि।
संपोषित विकास एक ऐसा दीर्घकालीन एवं समकालीन परिप्रेक्ष्य है जो स्वस्थ समुदाय के विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक मुद्दों की ओर संयुक्त रूप से ध्यान देता है तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपभोग से बचने का प्रयास करता है। इस प्रकार का विकास हमें अपने प्राकृतिक स्रोतों को बचाने एवं उनमें वृद्धि करने की प्रेरणा देता है। संपोषित विकास की धारणा को अनेक उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। सभी जानते हैं कि भूमि के नीचे पानी का स्तर घटता जा रहा है एवं पानी की मात्रा कम होती जा रही है। आने वाले दशकों में पानी की मात्रा इतनी कम हो जाएगी कि इसके लिए भी संघर्ष होने लगेगा। यदि कोई देश संपोषित विकास द्वारा इस समस्या का हल करना चाहता है तो उसे न केवल पानी का उपयोग कम करना होगा अपितु इसमें वृद्धि के उपाय भी खोजने होंगे। इसी भाँति, औद्योगिक विकास के समय पर्यावरणीय संरक्षण एवं संतुलन का ध्यान रखना होगा। निर्धनता एवं स्वास्थ्य का निम्न स्तर परस्पर जुड़े हुए हैं। इसके समाधान हेतु ऐसी योजना बनाने की आवश्यकता है कि रोगों की रोकथाम हेतु प्रभावी उपाए किए जाएँ साथ ही निर्धनता उन्मूलन के कार्यक्रम लागू किए जाएँ।
NCERT Class 11 Rajniti Vigyan राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)
Class 11 Rajniti Vigyan Chapters | Rajniti Vigyan Class 11 Chapter 10
NCERT Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 11 Political Science : Indian Constitution at Work
खण्ड (क) : भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार
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(संविधान : क्यों और कैसे?)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 2 Rights in the Indian Constitution
(भारतीय संविधान में अधिकार)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 3 Election and Representation
(चुनाव और प्रतिनिधित्व)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 4 Executive
(कार्यपालिका)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 5 Legislature
(विधायिका)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 6 Judiciary
(न्यायपालिका)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 7 Federalism
(संघवाद)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 8 Local Governments
(स्थानीय शासन)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 9 Constitution as a Living Document
(संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 10 The Philosophy of Constitution
(संविधान का राजनीतिक दर्शन)
NCERT Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Political Theory
खण्ड (ख) : राजनीतिक सिद्धान्त
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NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 1 Political Theory : An Introduction
(राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 2 Freedom
(स्वतंत्रता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 3 Equality
(समानता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 4 Social Justice
(सामाजिक न्याय)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 5 Rights
(अधिकार)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 6 Citizenship
(नागरिकता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 7 Nationalism
(राष्ट्रवाद)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 8 Secularism
(धर्मनिरपेक्षता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 9 Peace
(शांति)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 10 Development
(विकास)
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