NCERT Solutions | Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 9

NCERT Solutions | Class 11 Rajniti Vigyan भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार (Indian Constitution at Work) Chapter 9 | Constitution as a Living Document (संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज) 

NCERT Solutions for Class 11 Rajniti Vigyan भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार (Indian Constitution at Work) Chapter 9 Constitution as a Living Document (संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 11

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NCERT | Class 11 Rajniti Vigyan भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार (Indian Constitution at Work)

NCERT Solutions Class 11 Rajniti Vigyan
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 11
Subject: Rajniti Vigyan
Chapter: 9
Chapters Name: Constitution as a Living Document (संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज)
Medium: Hindi

Constitution as a Living Document (संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज) | Class 11 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions

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NCERT Solutions For Class 11 Political Science Indian Constitution at Work Chapter 9 Constitution as a Living Document

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

निम्नलिखित में से कौन-सा वाक्य सही है?
संविधान में समय-समय पर संशोधन करना आवश्यक होता है; क्योंकि
(क) परिस्थितियाँ बदलने पर संविधान में उचित संशोधन करना आवश्यक हो जाता है।
(ख) किसी समय विशेष में लिखा गया दस्तावेज कुछ समय पश्चात् अप्रासंगिक हो जाता
(ग) हर पीढ़ी के पास अपनी पसन्द का संविधान चुनने का विकल्प होना चाहिए।
(घ) संविधान में मौजूदा सरकार का राजनीतिक दर्शन प्रतिबिम्बित होना चाहिए।

उत्तर :

(क) परिस्थितियाँ बदलने पर संविधान में उचित संशोधन करना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 2.

निम्नलिखित वाक्यों के सामने सही/गलत का निशान लगाएँ-
(क) राष्ट्रपति किसी संशोधन विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता।
(ख) संविधान में संशोधन करने का अधिकार केवल जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के पास ही होता है।
(ग) न्यायपालिका संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव नहीं ला सकती परन्तु उसे संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। व्याख्या द्वारा वह संविधान को काफी हद तक बदल सकती है।
(घ) संसद संविधान के किसी भी खंड में संशोधन कर सकती है।

उत्तर :

(क) (✓) सही
(ख) (✗) गलत
(ग) (✓) सही
(घ) (✓) सही

प्रश्न 3.

निम्नलिखित में से कौन भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया में भूमिका निभाते हैं?
इस प्रक्रिया में ये कैसे शामिल होते हैं?
(क) मतदाता
(ख) भारत का राष्ट्रपति
(ग) राज्य की विधानसभाएँ
(घ) संसद
(ङ) राज्यपाल
(च) न्यायपालिका।

उत्तर :

(क) मतदाता लोकसभा व विधानसभाओं में अपने चुने हुए प्रतिनिधि भेजता है। ये चुने हुए प्रतिनिधि ही मतदाता की राय को संसद में या विधानसभा में व्यक्त करते हैं। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से मतदाता ही संविधान में भाग लेता है।
(ख) कोई भी संविधान संशोधन बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही प्रभावी माना जाता है।
(ग) राज्य विधानमण्डलों को भी संविधान संशोधनों में भागीदारी दी गई है। बहुत-सी धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पास होकर राज्यों के पास जाना आवश्यक है और कम-से-कम आधे राज्यों में विधानमण्डल द्वारा साधारण बहुमत से सहमति मिलने पर ही वह प्रस्ताव संशोधन कानून का रूप ले लेता है।
(घ) संसद को ही संविधान में संशोधन प्रस्तावित कानूनी अधिकार है और कुछ धाराएँ तो संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत से पारित प्रस्ताव में संशोधित हो सकती है।
(ङ) राज्यपाल की संविधान संशोधन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है।
(च) न्यायपालिका की संविधान संशोधन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है।

प्रश्न 4.

इस अध्याय में आपने पढ़ा कि संविधान का 42वाँ संशोधन अब तक का सबसे विवादास्पद संशोधन रहा है। इस विवाद के क्या कारण थे?
(क) यह संशोधन राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान किया गया था। आपातकाल की घोषणा अपने आप में ही एक विवाद का मुद्दा था।
(ख) यह संशोधन विशेष बहुमत पर आधारित नहीं था।
(ग) इसे राज्य विधानपालिकाओं का समर्थन प्राप्त नहीं था।
(घ) संशोध्न के कुछ उपबन्ध विवादास्पद थे।

उत्तर :

(क) यह संशोधन राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान किया गया था। आपातकाल की घोषणा अपने आप में ही एक विवाद का मुद्दा था।
(घ) संशोधन के कुछ उपबन्ध विवादास्पद थे।

प्रश्न 5.

निम्नलिखित वाक्यों में कौन-सा वाक्य विभिन्न संशोधनों के सम्बन्ध में विधायिका और न्यायपालिका के टकराव की सही व्याख्या नहीं करता?
(क) संविधान की कई तरह से व्याख्या की जा सकती है।
(ख) खंडन-मंडन/बहस और मदभेद लोकतंत्र के अनिवार्य अंग होते हैं।
(ग) कुछ नियमों और सिद्धांतों को संविधान में अपेक्षाकृत ज्यादा महत्त्व दिया गया है। कतिपय संशोधनों के लिए संविधान में विशेष बहुमत की व्याख्या की गई है।
(घ) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी विधायिका को नहीं सौंपी जा सकती।
(ङ) न्यायपालिका केवल किसी कानून की संवैधानिकता के बारे में फैसला दे सकती है। वह ऐसे कानूनों की वांछनीयता से जुड़ी राजनीतिक बहसों का निपटारा नहीं कर सकती।

उत्तर :

(घ) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी विधायिका को नहीं सौंपी जा सकती।

प्रश्न 6.

बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत के बारे में सही वाक्य को चिह्नित करें। गलत वाक्य को सही करें।
(क) संविधान में बुनियादी मान्यताओं का खुलासा किया गया है।
(ख) बुनियादी ढाँचे को छोड़कर विधायिका संविधान के सभी हिस्सों में संशोधन कर, सकती है।
(ग) न्यायपालिका ने संविधान के उन पहलुओं को स्पष्ट कर दिया है जिन्हें बुनियादी ढाँचे के अन्तर्गत या उसके बाहर रखा जा सकता है।
(घ) यह सिद्धांत सबसे पहले केशवानंद भारती मामले में प्रतिपादित किया गया है।
(ङ) इस सिद्धांत से न्यापालिका की शक्तियाँ बढ़ी हैं। सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया है।

उत्तर :

उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।

प्रश्न 7.

सन् 2000-2003 के बीच संविधान में अनेक संशोधन किए गए। इस जानकारी के आधार पर आप निम्नलिखित में से कौन-सा निष्कर्ष निकालेंगे?
(क) इस काल के दौरान किए गए संशोधन में न्यायपालिका ने कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं किया।
(ख) इस काल के दौरान एक राजनीतिक दल के पास विशेष बहुमत था।
(ग) कतिपय संशोधनों के पीछे जनता का दबाव काम कर रहा था।
(घ) इस काल में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच कोई वास्तविक अन्तर नहीं रह गया था।
(ङ) ये संशोधन विवादास्पद नहीं थे तथा संशोधनों के विषय को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहमति पैदा हो चुकी थी।

उत्तर :

(i) इस काल के दौरान किए गए संशोधन में न्यायपालिका ने कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं किया।
(ii) इस काल में किए गए संविधान संशोधन विवादरहित थे, सभी राजनीतिक दल संशोधनों के विषयों पर सहमत थे।

प्रश्न 8.

संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है? व्याख्या करें।

उत्तर :

संविधान संशोधन प्रक्रिया को कठिन बनाने के लिए विशेष बहुमत का प्रावधान रखा गया है। जिससे संशोधन की सुविधा का दुरुपयोग न किया जा सके।
विशेष बहुमत में सर्वप्रथम संशोधन बिल के प्रवेश पर सदन की कुल संख्या के बहुमत के सदस्यों द्वारा वह बिल पारित होना चाहिए। इसके अलावा उपस्थित व वोट करने वाले सदन के सदस्यों के 2/3 बहुमत से बिल पास होना चाहिए। इस प्रकार से संविधान बिल दोनों सदनों में अलग-अलग पारित होना चाहिए। इस प्रावधान का यह लाभ है कि बिल को पारित करने के लिए आवश्यक बहुमत होता है।

प्रश्न 9.

भारतीय संविधान में अनेक संशोधन न्यायपालिका और संसद की अलग-अलग व्याख्याओं का परिणाम रहे हैं। उदाहरण सहित व्याख्या करें।

उत्तर :

यह बिल्कुल सत्य है कि संविधान में अनेक संशोधन इस कारण से किए गए कि निश्चित विषय पर न्यायपालिका ने संविधान की व्याख्या करते हुए संसद से अलग दृष्टिकोण रखा। जब भी किसी विषय पर संसद को न्यायालय का कोई निर्णय राजनीतिक दृष्टि से अनुकूल नहीं लगा तो उसे निरस्त करने के लिए संविधान में संशोधन कर दिया।

गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि संसद को मूल अधिकारों में कटौती करने का अधिकार नहीं है और इस बात का निर्णय करने का अधिकार न्यायालय को है कि मूल अधिकारों में कटौती की है, अथवा नहीं। इसी न्यायालय ने शंकरप्रसाद बनाम भारत सरकार के मुकदमे में यह निर्णय दिया है कि संविधान में परिवर्तन एक विधायी प्रक्रिया है और संसद द्वारा साधारण विधायी प्रक्रिया के लिए अनुच्छेद 118 के अन्तर्गत बनाए गए नियम संविधान में संशोधन के विधेयकों के लिए भी लागू किए जाएँ। इन सबको संसद ने बाद में बदल दिया।

प्रश्न 10.

अगर संशोधन की शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है तो न्यायपालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? 100 शब्दों में व्याख्या करें।

उत्तर :

नहीं, हम इस बात से सहमत नहीं हैं। न्यापालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। हमारे यहाँ सर्वोच्च न्यायालय संविधान की सर्वोच्चता एवं पवित्रता की सुरक्षा करता है; अत: संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के संरक्षण का कार्य भी प्रदान किया गया है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय को संसद अथवा राज्य विधानमण्डलों द्वारा निर्मित कानून की वैधानिकता की जाँच कराने का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 131 और 132 सर्वोच्च न्यायालय को संघीय तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्मित विधियों के पुनरावलोकन का अधिकार प्रदान करते हैं; अतः यदि संसद अथवा राज्य विधानमण्डल, संविधान का अतिक्रमण करते हैं या संविधान के विरुद्ध विधि का निर्माण करते हैं, तो संसद या राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को ‘न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति (Power of Judicial Review) कहा जाता है। इसी प्रकार, वह संघ सरकार अथवा राज्य सरकार के संविधान का अतिक्रमण करने वाले समस्त कार्यपालिका आदेशों को भी अवैध घोषित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करने वाला (Interpreter) अन्तिम न्यायालय है। उसे यह घोषित करना पड़ता है कि किसी विशेष अनुच्छेद का क्या अर्थ है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की भाँति कानून की उचित प्रक्रिया (Due Process of the Law) के आधार पर न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति का प्रयोग न कर कानून के द्वारा स्थापितं प्रक्रिया (Procedure Established by the Law) के आधार पर करता है। इस दृष्टि से भारत का सर्वोच्च न्यायालय केवल संवैधानिक आधारों पर ही संसद अथवा विधानमण्डल के द्वारा पारित कानूनों को अवैध घोषित कर सकता है। इस दृष्टिकोण से भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से कमजोर है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति के आधार पर संसद का तीसरा सदन नहीं कहा जा सकता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.

संविधान की पवित्रता की सुरक्षा कौन करता है?
(क) उच्चतम न्यायालय
(ख) राष्ट्रपति
(ग) संसद
(घ) प्रधानमन्त्री

उत्तर :

(क) उच्चतम न्यायालय।

प्रश्न 2.

न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति निम्नलिखित में से किसके पास है?
(क) राष्ट्रपति
(ख) उच्चतम न्यायालय
(ग) संसद
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर :

(ख) उच्चतम न्यायालय।

प्रश्न 3.

73वाँ तथा 74वाँ संविधान संशोधन किससे सम्बन्धित था?
(क) स्थानीय संस्थाएँ
(ख) राजनीतिक दल
(ग) दल-बदल
(घ) प्रत्याशी जमानत राशि

उत्तर :

(क) स्थानीय संस्थाएँ।

प्रश्न 4.

73वाँ तथा 74वाँ संविधान संशोधन किस वर्ष पारित हुआ?
(क) 1992
(ख) 1991
(ग) 1993
(घ) 1994

उत्तर :

(ख) 1991

प्रश्न 5.

केशवानन्द मामले में उच्चतम न्यायालय ने किस वर्ष निर्णय दिया?
(क) 1973
(ख) 1974
(ग) 1957
(घ) 1975

उत्तर :

(क) 1973

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

संविधान संशोधन से क्या आशय है?

उत्तर :

संविधान में परिस्थितियों व समय की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन कर नए प्रावधानों को शामिल करने व ढालने की प्रक्रिया को संविधान संशोधन कहते हैं।

प्रश्न 2.

लचीला संविधान क्या है?

उत्तर :

लचीला संविधान वह होता है जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके।

प्रश्न 3.

संविधान संशोधन प्रक्रिया में कौन-सी संस्थाएँ सम्मिलित होती हैं?

उत्तर :

संविधान संशोधन की प्रक्रिया एक लम्बी प्रक्रिया है जिसमें निम्नलिखित संस्थाएँ सम्मिलित होती हैं –

  1. संसद
  2. राज्यों के विधानमण्डल
  3. राष्ट्रपति।

प्रश्न 4.

अनुच्छेद 368 क्या है?

उत्तर :

अनुच्छेद 368 संविधान का वह प्रमुख अनुच्छेद है जिसमें संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया दी गई है, जिसका प्रयोग करके संसद साधारण बहुमत व विशेष बहुमत के आधार पर संविधान में संशोधन कर सकती है।

प्रश्न 5.

संविधान संशोधन में राष्ट्रपति की क्या भूमिका है?

उत्तर :

संविधान संशोधन बिल दोनों सदनों से अलग-अलग पास होने पर राष्ट्रपति के पास भेजा। जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर संशोधन प्रभावी हो जाता है।

प्रश्न 6.

52वाँ संविधान संशोधन किससे सम्बन्धित था?

उत्तर :

52वाँ संविधान संशोधन दल-बदल से सम्बन्धित था।

प्रश्न 7.

यदि किसी संशोधन प्रस्ताव को लोकसभा पास कर दे और राज्यसभा उससे सहमत न हो तो उसका समाधान कैसे होता है?

उत्तर :

संविधान संशोधन बिलों पर संसद के दोनों सदनों का समान अधिकार है। यदि संशोधन बिल एक सदन से पास होने के बाद दूसरे सदन की सहमति प्राप्त नहीं करता तो वह रद्द हो जाता है।

प्रश्न 8.

क्या राष्ट्रपति संशोधन बिल को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है?

उत्तर :

संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद अथवा आधे राज्यों के अनुसमर्थन की प्राप्ति के बाद संशोधन बिल राष्ट्रपति के पास उसकी स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। साधारण बिल को तो राष्ट्रपति एक बार पुनर्विचार हेतु वापस भेज सकता है, परन्तु संशोधन बिल पर वह ऐसा नहीं कर सकता और उसे स्वीकृति देनी ही पड़ती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

73वें व 74वें संविधान संशोधन का क्या उद्देश्य था?

उत्तर :

स्वतन्त्रता के पश्चात् बलवन्त मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर स्थानीय संस्थाओं का ग्रामीण क्षेत्र में गठन तो किया गया परन्तु अधिकांश समय तक ये संस्थाएँ अनेक कारणों से क्रियाहीन ही रहीं। इनके पास न पर्याप्त साधन थे न अधिकार। चुनाव प्रक्रिया नियमित न थी। कमजोर वर्गों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त न था। सन् 1991 में नरसिम्हाराव की सरकार ने इन संस्थाओं (ग्रामीण व शहरी स्तर पर) को संगठनात्मक रूप से सुदृढ़ करने व शक्तिशाली बनाने के उद्देश्यों से 73वाँ वे 74वाँ संविधान संशोधन पारित किया। 73वाँ संविधान संशोधन ग्रामीण क्षेत्र की स्थानीय संस्थाओं से सम्बन्धित है तथा 74वाँ संविधान संशोधन शहरी क्षेत्र की स्थानीय संस्थाओं से सम्बन्धित है। इन संशाधनों के माध्यम से स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं व अनुसूचित जाति के लोगों को अलग-अलग 33% आरक्षण दिया गया है।

प्रश्न 2.

विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की प्रक्रिया में कौन-से सिद्धान्त प्रयुक्त किए जाते हैं?

उत्तर :

विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं में दो सिद्धान्त अधिक अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं –

(1) एक सिद्धान्त है विशेष बहुमत का। उदाहरण के लिए; अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, रूस आदि के संविधानों में इस सिद्धान्त का समावेश किया गया है। अमेरिका में दो-तिहाई बहुमत का सिद्धान्त लागू है, जबकि दक्षिण अफ्रीका और रूस जैसे देशों में तीन-चौथाई बहुमत की आवश्यकता होती है।

(2) दूसरा सिद्धान्त है संशोधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी का। यह सिद्धान्त कई आधुनिक संविधानों में अपनाया गया है। स्विट्जरलैण्ड में तो जनता को संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने तक का अधिकार है। रूस और इटली अन्य ऐसे देश हैं जहाँ जनता को संविधान में संशोधन करने या संशोधन के अनुमोदन का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 3.

संविधान की मूल संरचना का सिद्धान्त क्या है?

उत्तर :

भारतीय संविधान के विकास को जिस बात से बहुत दूर तक प्रभावित किया है वह है संविधान की मूल संरचना का सिद्धान्त। इस सिद्धान्त को न्यापालिका ने केशवानन्द भारती के प्रसिद्ध मामले में प्रतिपादित किया था। इस निर्णय ने संविधान के विकास में निम्नलिखित सहयोग दिया –

  1. इस निर्णय द्वारा संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्तियों की सीमाएँ निर्धारित की गईं।
  2. यह संविधान के किसी या सभी भागों के सम्पूर्ण संशोधन (निर्धारित सीमाओं के अन्दर) की अनुमति देता है।
  3. संविधान की मूल संरचना या उसके बुनियादी तत्त्व का उल्लंघन करने वाले किसी संशोधन के विषय में न्यायपालिका का निर्णय अन्तिम होगा-केशवानन्द भारती के मामले में यह बात स्पष्ट की गई थी।

उच्चतम न्यायालय ने केशवानन्द के मामले में 1973 में निर्णय दिया था। बाद के तीन दशकों में संविधान की सभा व्यवस्थाएँ इसे ध्यान में रखकर की गईं।

प्रश्न 4.

भारत की संविधान संशोधन प्रक्रिया में क्या कमियाँ हैं?

उत्तर :

भारत की संविधान संशोधन प्रक्रिया में निम्नलिखित दोष हैं –

  1. भारतीय संघ की इकाइयों अथवा राज्यों को संविधान में संशोधन प्रस्ताव पेश करने का अधिकार नहीं है और यह तथ्य उन्हें केन्द्रीय सरकार से निम्न स्तर की ओर ले जाता है। वे इस दृष्टि से समान भागीदारी नहीं हैं जो पूर्व संघीय व्यवस्था के सिद्धान्तों के विरुद्ध है।
  2. संविधान संशोधन बिल पर संसद तथा संसद व राज्यों से पारित होने के बाद जनमत संग्रह करवाए जाने की व्यवस्था नहीं है और यह तथ्य जन-प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का विरोध करता है।
  3. संविधान संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में यदि मतभेद उत्पन्न हो जाए तो उसके समाधान के लिए किसी प्रकार का तरीका निश्चित नहीं है, वह रद्द हो जाता है। संसद द्वारा पारित संविधान संशोधन प्रस्ताव पर राज्य विधानमण्डलों के अनुसमर्थन की समय-सीमा निश्चित नहीं है। इससे राज्य संविधान में अनावश्यक देरी कर सकते हैं।

दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

भारतीय संविधान संशोधन 52 के मुख्य प्रावधान क्या थे?

उत्तर :

52वाँ संविधान संशोधन एक महत्त्वपूर्ण व प्रभावकारी संविधान संशोधन था। इसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त था। इसे सन् 1985 में पारित किया गया था। इसके निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान थे –

  1. अगर कोई सदस्य किसी पार्टी के टिकट पर जीतने के बाद उस पार्टी को छोड़ता है तो उसकी सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  2. अगर कोई निर्दलीय सदस्य चुनाव जीतने के बाद किसी दल में सम्मिलित होता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  3. अगर कोई सनोनीत सदस्य किसी दल में शामिल हो जाता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  4. विघटन व विलय की स्थिति में यह कानून लागू नहीं होगा। (5) संशोधन के कानून के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय अध्यक्ष का होगा।

प्रश्न 2.

संविधान संशोधन प्रक्रिया की सामान्य विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर :

भारतीय संविधान में दी गई संशोधन विधि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. संविधान में संशोधन के कार्य के लिए किसी अलग संस्था की व्यवस्था नहीं की गई। यह शक्ति केन्द्रीय संसद को सौंप दी गई है।
  2. राज्यों के विधानमण्डलों को संशोधन बिल आरम्भ करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
  3. संविधान की धारा 368 में लिखे गए विशेष उपबन्धों के अतिरिक्त संशोधन बिल साधारण बिल की भाँति संसद द्वारा ही पास किए जाते हैं। इसके लिए दोनों सदनों का आवश्यक बहुमत प्राप्त हो जाने पर राष्ट्रपति की स्वीकृति ली जाती है। इसके लिए जनमत संग्रह की कोई व्यवस्था नहीं की गई, जबकि स्विट्जरलैण्ड, अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के कुछ विशेष राज्यों में इस प्रकार की व्यवस्था की गई है।
  4. संसद में संशोधन बिल पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व-अनुमति अनिवार्य नहीं है।
  5. संविधान में कुछ विशेष संशोधनों के लिए कम-से-कम आधे राज्यों की स्वीकृति आवश्यक है, जबकि अमेरिकी संविधान में कम-से-कम तीन-चौथाई राज्यों की स्वीकृति आवश्यक है।
  6. संविधान की समस्त धाराओं को संशोधित किया जा सकता है, यहाँ तक कि संविधान का संशोधन करने की धारा 368 का भी संशोधन किया जा सकता है।

प्रश्न 3.

राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल तथा राज्यसभा द्वारा संविधान संशोधन किस प्रकार सम्भव

उत्तर :

1. राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल द्वारा संविधान संशोधन – राष्ट्रपति तथा राज्यपाल कुछ धाराओं का प्रयोग करके संविधान में आगामी परिवर्तन कर सकते हैं, उदाहरणतया राष्ट्रपति, धारा 331 के अन्तर्गत दो एंग्लो-इण्डियनों को लोकसभा में मनोनीत कर सकता है, यदि वह अनुभव करे। कि ऐंग्लो-इण्डियन समुदाय को लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हुआ है। राष्ट्रपति द्वारा इस शक्ति के प्रयोग को धारा 81 में निश्चित लोकसभा की संख्या पर प्रभाव पड़ सकता है। राज्यपाल को भी राष्ट्रपति को इस तरह इस शक्ति प्रयोग करके विधानसभा की सदस्य-संख्या में परिवर्तन करने का अधिकार प्राप्त है। राज्यपाल को एंग्लो-इण्डियन को नियुक्त करने का अधिकार संविधान की धारा 333 के अन्तर्गत प्राप्त है। असम का राज्यपाल छठी अनुसूची में दी गई कबाइली प्रदेशों की सूची में स्वयं परिवर्तन कर सकता है। राज्य की भाषा निश्चित करने का अधिकार विधानमण्डल को प्राप्त है। परन्तु यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि राज्य की जनसंक्ष्या का एक प्रमुख भाग निश्चित भाषा का । प्रयोग करता है तो वह उस भाषा को भी सरकारी रूप से प्रयोग किए जाने का आदेश जारी कर सकता है। राष्ट्रपति धारा 356 का प्रयोग करके राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।

2. राज्यसभा द्वारा संशोधन – संविधान की धारा 249 के अन्तर्गत यदि राज्यसभा दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास कर दे कि राज्य सूची के अमुक विषय पर संसद द्वारा कानून का बनाया जाना राष्ट्रीय हित के लिए आवश्यक अथवा लाभदायक है तो संसद को राज्य सूची के उस विषय पर समस्त भारत या उसके किसी भाग के लिए कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है, परन्तु संसद को यह अधिकार एक वर्ष के लिए ही प्राप्त होता है। संविधान के इस परिवर्तन को हम संशोधन नहीं कह सकते, क्योंकि यह परिवर्तन स्थायी न होकर अस्थायी होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

संविधान में विभिन्न अनुच्छेदों का संशोधन करने के लिए निम्नलिखित तीन विधियाँ व्यवहार में लाई जाती हैं –

(1) अनुच्छेद 4 तथा 11 के अनुसार इस संविधान के कुछ भागों में संशोधन संसद के दोनों सदनों के साधारण बहुमत से किया जाता है, परन्तु इस प्रकार के अनुच्छेद बहुत थोड़े हैं। नए राज्यों को बनाने, पुराने राज्यों के पुनर्गठन, भारतीय नागरिकों की योग्यता परिवर्तन, राज्यों में द्वितीय सदन का बनाना अथवा उसे समाप्त करना, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित क्षेत्रों सम्बन्धी व्यवस्था में परिवर्तन के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। यह उल्लेखनीय है कि इन मामलों का सम्बन्ध यद्यपि संविधान की व्यवस्थाओं से है तथापि वास्तव में इन्हें संविधान के संशोधन नहीं माना जाता।

(2) संविधान के अनुच्छेद 368 के अधीन इसके कुछ भागों में परिवर्तन संसद के प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के साधारण बहुमत, परन्तु उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से किया जाता है परन्तु आधे राज्यों के विधानमण्डलों का समर्थन आवश्यक है। राष्ट्रपति के चुनाव की विधि, राज्यों तथा केन्द्र की शक्तियों, सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों सम्बन्धी व्यवस्था, संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व सम्बन्धी परिवर्तन के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया गया है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में इसके लिए कांग्रेस के उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत तथा तीन-चौथाई राज्यों के समर्थन की आवश्यकता है। परन्तु वह समर्थन राज्य सरकारों का है, विधानमण्डलों का नहीं।

(3) संविधान के अन्य अनुच्छेदों का परिवर्तन संसद प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के साधारण बहुमत परन्तु मतदान के समय उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से कर सकती है। उल्लेखनीय है कि मौलिक अधिकारों में परिवर्तन यद्यपि इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत है। गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि संसद को मूल अधिकारों में कटौती करने का अधिकार नहीं है और इस बात का निर्णय करने का अधिकार न्यायालय को है कि मूल अधिकारों में कटौती की है, अथवा नहीं। इसी न्यायालय ने शंकरप्रसाद बनाम भारत सरकार के मुकदमे में यह निर्णय दिया है कि संविधान में परिवर्तन एक विधायी प्रक्रिया है और संसद द्वारा साधारण विधायी प्रक्रिया के लिए अनुच्छेद 118 के अन्तर्गत बनाए गए नियम संविधान में संशोधन के विधेयकों के लिए भी लागू किए जाएँ। संविधान की धारा 368 में किए गए संशोधनों की विधि के अतिरिक्त कुछ अन्य धाराओं के अन्तर्गत भी परिवर्तन किया जा सकता है और शासन प्रणाली को प्रभावित किया जा सकता है। यह बात अलग है कि हम इन परिवर्तनों को संशोधन का नाम नहीं दे सकते, क्योंकि ये धारा 368 में नहीं आते हैं।

प्रश्न 2.

भारत की संविधान संशोधन प्रक्रिया के दोष लिखिए।

उत्तर :

भारतीय संविधान में संशोधन की विधि में बहुत दोष हैं, क्योंकि संशोधन विधि में बहुत-सी बातें स्पष्ट नहीं हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं –

1. सभी धाराओं में संशोधन करने के लिए राज्यों की स्वीकृति नहीं ली जाती – संविधान की सभी धाराओं में संशोधन करने के लिए राज्यों की स्वीकृति नहीं ली जाती, बल्कि कुछ ही धाराओं पर राज्यों की स्वीकृति ली जाती है। संविधान का अधिकांश हिस्सा ऐसा है, जिसमें संसद स्वयं ही संशोधन कर सकती है।

2. राज्यों के अनुसमर्थन के लिए समय निश्चित नहीं – संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह संविधान में किए जाने वाले संशोधन को राज्यों द्वारा समर्थन अथवा अस्वीकृत के लिए भारतीय संविधान में कोई भी समय निश्चित नहीं किया गया है। भारत में अभी तक इस दोष को अनुभव नहीं किया गया, क्योंकि प्रायः एक ही दल का शासन केन्द्र तथा राज्यों में रहा है और आधे राज्यों का अनुसमर्थन आसानी से प्राप्त हो जाता है। परन्तु आज जिस प्रकार की स्थिति है, उससे यह दोष स्पष्ट हो जाता है।

3. संशोधन विधेयक को राज्यों के पास भेजने की भ्रमपूर्ण स्थिति – संविधान में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या संविधान में संशोधनों के विधेयकों को सभी राज्यों को भेजा जाना आवश्यक है अथवा उसे उनमें से कुछ एक राज्यों को भेजा जाना पर्याप्त है। संविधान में संशोधन के तीसरे विधेयक को कुछ राज्यों की राय जानने से पूर्व ही पास कर दिया गया था। और मैसूर की विधानसभा ने इसके विरुद्ध आपत्ति की थी।

4. संशोधन प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की स्वीकृति – संविधान के अनुच्छेद 368 के खण्ड 2 में कहा गया है कि जब किसी विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाए, तो उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा उसके पश्चात् राष्ट्रपति विधेयक को अपनी सहमति प्रदान कर हस्ताक्षर कर देगा और तब संविधान संशोधन लागू माना जाएगा।

5. राज्यों को संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं – उल्लेखनीय है कि संविधान में संशोधन का प्रस्ताव केवल संघीय विधानमण्डलों अर्थात् संसद में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। कोई भी राज्य विधानमण्डल ऐसा प्रस्ताव केवल उस अवस्था में कर सकता है, जब वह अनुच्छेद 169 के अन्तर्गत विधानपरिषद् को समाप्त करना अथवा उसकी स्थापना करना चाहता हो।

6. अनेक अनुच्छेदों का साधारण प्रक्रिया के द्वारा संशोधन सम्भव – संविधान की धाराएँ ऐसी हैं, जिनके लिए संवैधानिक सुरक्षा की आवश्यकता नहीं थी और संसद के साधारण बहुमत से संशोधन किए जाने से किसी प्रकार की हानि की सम्भावना नहीं थी। उदाहरण के लिए; धारा 224 द्वारा सेवानिवृत्त न्यायाधीश को न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर कार्य करने का अधिकार दिया गया है। इस धारा को बदलने के लिए किसी विशेष तरीके को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

7. जनमत संग्रह की व्यवस्था नहीं – भारत में संविधान संशोधन की विधि ऐसी है, जिसमें जनता की अवहेलना हो सकती है, क्योंकि इसमें जनता की राय जानने की कोई व्यवस्था नहीं है। 44वें संशोधन विधेयक के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि संविधान की मूल विशेषताओं को जनमत संग्रह द्वारा ही बदला जा सकता है। इस संशोधन को लोकसभा ने पारित कर दिया, परन्तु राज्यसभा ने इस संशोधन विधेयक की जनमत संग्रह की धारा को पास नहीं किया। राज्यसभा को यह विचार है कि भारत जैसे देश के लिए जनमत संग्रह करवाना बहुत कठिन है। और अव्यावहारिक भी है।

उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया इतनी जटिल नहीं है जितनी कि अमेरिका तथा स्विट्जरलैण्ड के संविधानों की है और न ही ब्रिटेन के संविधान के समान इतनी सरल है कि इसे साधारण प्रक्रिया से संशोधित किया जा सके। इस दृष्टिकोण से भारत के संविधान संशोधन की प्रक्रिया सरल तथा जटिल दोनों प्रकार की है। संशोधन की इस प्रक्रिया के कारण ही भारत का संविधान सामाजिक तथा आर्थिक विकास का सूत्रधार बना।

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