NCERT Solutions | Class 11 Rajniti Vigyan राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory) Chapter 7 | Nationalism (राष्ट्रवाद)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 11
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NCERT | Class 11 Rajniti Vigyan राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
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Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 11 |
Subject: | Rajniti Vigyan |
Chapter: | 7 |
Chapters Name: | Nationalism (राष्ट्रवाद) |
Medium: | Hindi |
Nationalism (राष्ट्रवाद) | Class 11 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions For Class 11 Political Science Political theory Chapter 7 Nationalism
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
राष्ट्र जनता को कोई आकस्मिक समूह नहीं है। लेकिन यह मानव समाज में पाए जाने वाले अन्य समूहों अथवा समुदायों से अलग है। यह परिवार से भी अलग है। परिवार तो प्रत्यक्ष सम्बन्धों पर आधारित होता है जिसका प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्यों के व्यक्तित्व और चरित्र के विषय में व्यक्तिगत जानकारी रखता है। यह जनजातीय, जातीय और अन्य सगोत्रीय समूहों से भी अलग है। इन समूहों में विवाह और वंश परम्परा सदस्यों को आपस में जोड़ती है। इसलिए यदि हम सभी सदस्यों को। व्यक्तिगत रूप से भी नहीं जानते हों तो भी आवश्यकता पड़ने पर हम उन सूत्रों को खोज निकाल सकते हैं जो हमें आपस में जोड़ते हैं। लेकिन राष्ट्र के सदस्य के रूप में हम अपने राष्ट्र के अधिकांश सदस्यों को सीधे तौर पर न कभी जान पाते हैं और न ही उनके साथ वंशानुगत नाता जोड़ने की आवश्यकता पड़ती है। फिर भी राष्ट्र हैं, लोग उनमें रहते हैं और उनका सम्मान करते हैं।प्रश्न 2.
उत्तर :
शेष सामाजिक समूहों से अलग राष्ट्र अपना शासन अपने आप करने और अपने भविष्य को तय करने का अधिकार चाहते हैं। दूसरों शब्दों में, वे आत्म-निर्णय का अधिकार मानते हैं। आत्म-निर्णय के अपने दावे में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक् राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाए। अक्सर ऐसी माँग उन लोगों की ओर से आती है जो दीर्घकाल से किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते आए हों और उनमें साझी पहचान का बोध हो। कुछ मामलों में आत्म-निर्णय के ऐसे दावे एक स्वतन्त्र राज्य बनाने की उस इच्छा से भी जुड़े होते हैं। इन दावों का सम्बन्ध किसी समूह की संस्कृति की संरक्षा से होता है।प्रश्न 3.
उत्तर :
विगत दो सौ वर्षों की अवधि में राष्ट्रवाद एक ऐसे सम्मोहक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में हमारे समाने आया है जिसे इतिहास रचने में योगदान किया है। इसने उत्कृष्ट निष्ठाओं के साथ-साथ गहन विद्वेषों को भी प्रेरित किया है। इसने जनता को जोड़ा है तो विभाजित भी किया है। इसने अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने से सहायता की तो इसके साथ वह विरोध, कटुता और युद्धों का कारण भी रहा है। साम्राज्यों और राष्ट्रों के ध्वस्त होने का यह भी एक कारण रहा है। राष्ट्रवादी संघर्षों ने राष्ट्रों और साम्राज्यों की सीमाओं के निर्धारण-पुनर्निर्धारण में योगदान किया है। आज भी दुनिया का एक बड़ा भाग विभिन्न राष्ट्र राज्यों में बँटा हुआ है। हालाँकि राष्ट्रों की सीमाओं के पुनर्संयोजन की प्रक्रिया अभी समाप्त नहीं हुई है और वर्तमान राष्ट्रों के अन्दर भी अलगाववादी संघर्ष साधारण बात है। राष्ट्रवाद विभिन्न चरणों से गुजर चुका है। उदाहरण के लिए, 19वीं सदी के यूरोप में इसने कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। वर्तमान जर्मनी और इटली का गठन एकीकरण और सुदृढ़ीकरण की इसी प्रक्रिया के माध्यम से हुआ था।लेटिन अमेरिका में बड़ी संख्या में नए राज्य भी स्थापित किए गए थे। राज्य की सीमाओं के सुदृढ़ीकरण के साथ स्थानीय निष्ठाएँ और बोलियाँ भी निरन्तर राष्ट्रीय निष्ठाओं एवं सर्वमान्य जनभाषाओं के रूप में विकसित हुईं। नए राष्ट्रों के लोगों ने एक नवीन राजनीतिक पहचान प्राप्त की, जो राष्ट्र-राज्य की सदस्यता पर आधारित थी। विगत सदी में हमने देश को सुदृढ़ीकरण की ऐसी ही प्रक्रिया से गुजरते देखा है। लेकिन राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में हिस्सेदार भी रहा है। यूरोप में 20वीं सदी के आरम्भ में ऑस्ट्रियाई-हंगेरियाई और रूसी साम्राज्य तथा इनके साथ एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के विघटन के मूल में राष्ट्रवाद ही था। भारत तथा अन्य पूर्वी उपनिवेशों के औपनिवेशिक शासन से स्वतन्त्र होने के संघर्ष भी राष्ट्रवादी संघर्ष थे। ये संघर्ष विदेशी नियन्त्रण से स्वतन्त्र राष्ट्र-राज्य स्थापित करने की आकांक्षा से प्रेरित थे।
प्रश्न 4.
उत्तर :
साधारणतया यह माना जाता है कि राष्ट्रों का निर्माण ऐसे समूह द्वारा किया जाता है जो कुल या भाषा अथवा धर्म या फिर जातीयता जैसी कुछेक निश्चित पहचान का सहभागी होता है। लेकिन ऐसे निश्चित विशिष्ट गुण वास्तव में हैं ही नहीं जो सभी राष्ट्रों में समान रूप से मौजूद हों। कई राष्ट्रों की अपनी कोई एक सामान्य भाषी नहीं है। कनाड़ा का उदाहरण लिया जा सकता है। कनाडा में अंग्रेजी और फ्रांसीसी भाषा-भाषी लोग साथ रहते हैं। भारत में भी अनेक भाषाएँ हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में और भिन्न-भिन्न समुदायों द्वारा बोली जाती हैं। बहुत से शब्दों में उन्हें जोड़ने वाला कोई सामान्य धर्म भी नहीं है। नस्ल अथवा कुल जैसी अन्य विशिष्टताओं के लिए भी यही कहा जा सकता है। राष्ट्र बहुत सीमा तक एक काल्पनिक समुदाय होता है, जो अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास आकांक्षाओं और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बँधा होता है। यह कुछ मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग उस समग्र समुदाय के लिए तैयार करते हैं, जिससे वे अपनी पहचान बनाते हैं। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता।प्रश्न 5.
उत्तर :
राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-- साझे विश्वास – राष्ट्र विश्वास के माध्यम से बनता है। राष्ट्रवाद समूह के भविष्य के लिए सामूहिक पहचान और दृष्टि का प्रमाण है, जो स्वतन्त्र राजनीतिक अस्तित्व का आकांक्षी है।
- इतिहास – राष्ट्रवादी भावनाओं को इतिहास भी प्रेरित करती है। राष्ट्रवादियों में स्थायी ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है। यानी वे राष्ट्र को इस रूप में देखते हैं जैसे वे बीते अतीत के साथ-साथ आने वाले भविष्य को समेटे हुए हैं।
- भू-क्षेत्र – राष्ट्रवादी भावनाएँ एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी होती हैं। किसी विशिष्ठ भू-क्षेत्र पर दीर्घकाल तक साथ-साथ रहना और उससे जुड़े साझे अतीत की यादें लोगों को एक सामूहिक पहचान का बोध कराती हैं।
- साझे राजनीतिक आदर्श – राष्ट्रवादियों की साझा राजनीतिक दृष्टि होती है कि वे किस प्रकार का राज्य बनाना चाहते हैं। शेष बातों के अलावा वे लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता और उदारवाद जैसे मूल्यों और सिद्धान्तों को भी स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 6.
उत्तर :
लोकतन्त्र में कुछ राजनीतिक मूल्यों और आदर्शों के लिए साझी प्रतिबद्धता ही किसी राजनीतिक समुदाय या राष्ट्र का सर्वाधिक वांछित आधार होती है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक समुदाय के सदस्य कुछ दायित्वों से बँधे होते हैं। ये दायित्व सभी लोगों के नागरिकों के रूप में अधिकारों को पहचान लेने से पैदा होते हैं। अगर राष्ट्र के नागरिक अपने सहनागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को जान और मान लेते हैं तो इससे राष्ट्र मजबूत ही होता है। लोकतन्त्र राष्ट्रवाद की भावना को समझता है। तथा उसी की आधारशिला पर टिका हुआ है इसलिए तानाशाही की अपेक्षा लोकतन्त्र संघर्षरत राष्ट्रवादियों से अच्छा बरताव करता है।प्रश्न 7.
उत्तर :
राष्ट्रवादी अधिकतर स्वतन्त्र राज्य को अधिकार के रूप में मानने लगते हैं। लेकिन यह सम्भव नहीं कि प्रत्येक राष्ट्रीय समूह को स्वतन्त्र राज्य प्रदान किया जाए। साथ ही, यह सम्भवतः अवांछनीय भी होगा। यह ऐसे राज्यों के गठन की ओर ले जा सकता है जो आर्थिक और राजनीतिक क्षमता की दृष्टि से अत्यन्त छोटे हों और इससे अल्पसंख्यक समहों की समस्याएँ और बढ़े। हमें राष्ट्रवाद के असहिष्णु और एक जातीय स्वरूपों के साथ कोई सहानुभूति नहीं रखनी चाहिए।परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
(क) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(ख) महात्मा गांधी
(ग) जवाहरलाल नेहरू :
(घ) बंकिमचन्द्र चटर्जी
उत्तर :
(क) रवीन्द्रनाथ टैगोर।प्रश्न 2.
(क) अशिक्षा
(ख) धर्म-निरपेक्षता
(ग) जातिवाद
(घ) साम्प्रदायिकता
उत्तर :
(ख) धर्म-निरपेक्षता।प्रश्न 3.
(क) लॉस्की
(ख) गार्नर
(ग) जिमर्न
(घ) ब्राइस
उत्तर :
(ग) जिमर्न।प्रश्न 4.
(क) गोल्ड स्मिथ
(ख) जोसेफ इमैनुअल
(ग) बार्कर
(घ) शूमां
उत्तर :
(ग) बार्कर।प्रश्न 5.
(क) विश्व-बन्धुत्व की भावना
(ख) उग्र राष्ट्रवाद
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(घ) वैज्ञानिक प्रगति
उत्तर :
(ख) उग्र राष्ट्रवाद।अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
(i) साम्प्रदायिकता की भावना तथा(ii) जातीयता एवं प्रान्तीयता की भावना।
प्रश्न 2.
उत्तर :
(i) भौगोलिक एकता तथा(ii) सांस्कृतिक एकता।
प्रश्न 3.
उत्तर :
(i) भाषावाद तथा(ii) क्षेत्रवाद।
प्रश्न 4.
उत्तर :
(i) सैन्यवाद को जन्म तथा(ii) युद्ध को प्रोत्साहन।
प्रश्न 5.
उत्तर :
(i) देशप्रेम की प्रेरणा तथा(ii) बन्धुत्व की भावना का विकास।
प्रश्न 6.
उत्तर :
राष्ट्रवाद वैश्विक मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए राष्ट्रवाद का अध्ययन आवश्यक है।प्रश्न 7.
उत्तर :
‘बास्क’ स्पेन में स्थित है। यह स्पेन को एक पहाड़ी क्षेत्र है।प्रश्न 8.
उत्तर :
आत्म-निर्णय के दावे में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक् इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाए।लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
लार्ड ब्राइस के अनुसार, राष्ट्रिक जाति की भावना वह अनुभूति या अनुभूतियाँ हैं जो व्यक्तियों के एक समूह को उन बन्धनों के प्रति सजग बनाती हैं जो पूरी तरह से न तो राजनीतिक होते हैं, न धार्मिक और जो उन व्यक्तियों को ऐसे समाज के रूप में संगठित करने देते हैं जो या तो राष्ट्र होता है। या राष्ट्र होने की क्षमता रखता है।‘राष्ट्रीय समुदाय’ शब्द का उपयोग एक ऐसे समाज को व्यक्त करने के लिए किया जाता है जिसमें राष्ट्रीय भावना का अभी निर्माण ही हो रहा हो और जिसमें एक राष्ट्र की तरह रहने की इच्छा की कमी
प्रश्न 2.
उत्तर :
जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है, राष्ट्रवाद हमारे लिए आवश्यक है। हमारा अस्तित्व ही राष्ट्रीयता पर निर्भर करता है, यह हमारे जीवन-मरण का प्रश्न है। यद्यपि अपने सारे दुर्भाग्यों के लिए विदेशियों को जिम्मेदार ठहराना मूर्खता है, फिर भी इसमें कोई सन्देह नहीं कि अंग्रेजों की लम्बी गुलामी ने हममें बहुत-सी बुराइयाँ उत्पन्न कर दी हैं जिनका वास्तविक उपचार आत्म-निर्णय है। भये, कार्यरता और कपट जैसी बुराइयों को राजनीतिक राष्ट्रीयता ही दूर कर सकती है।प्रश्न 3.
उत्तर :
राष्ट्रीयता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को निम्नलिखित उपायों से दूर किया जा सकता है- संकुचित भावनाओं का त्याग और देश-प्रेम या देशभक्ति की प्रबल भावना का विकास किया जाना चाहिए।
- देश के विभिन्न भागों में भावनात्मक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
- शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रचार तथा प्रसार किया जाना चाहिए तथा शिक्षा व्यवस्था का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए।
- देशभर में परिवहन तथा संचार के साधनों का पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए।
- देश के सभी क्षेत्रों का सन्तुलित आर्थिक विकास किया जाना चाहिए।
- संकीर्ण हितों तथा स्वार्थपूर्ण मनोवृत्तियों पर आधारित राजनीति को नियन्त्रित किया जाना चाहिए।
- देश में सुदृढ़ तथा न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए।
दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तर :
किसी राष्ट्र के स्वतन्त्र और सम्प्रभु बन सकने से पूर्व उसमें निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है-- उसमें अपनी सम्पत्ति की व्यवस्था करने और अपने प्राकृतिक साधनों तथा अपनी पूँजी का विकास कर सकने की क्षमता होनी चाहिए।
- उसे अच्छे कानून बनाने चाहिए और न्याय की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। राज्य क्षेत्रातीतन्यायालयों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
- उसे एक उपयुक्त ढंग की सरकार स्थापित करनी चाहिए।
- उसे व्यापार करने देने, कर्ज अदा करने और यात्रा की अनुमति देने का अथवा कर्त्तव्य स्वीकार करना चाहिए।
- उसे अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। उसे राजदूतों को अपने यहाँ आमन्त्रित करना चाहिए, विवादों में मध्यस्थताएँ स्वीकार करनी चाहिए और सन्धियाँ करनी चाहिए आदि। उसके पास ऐसे नागरिक होने चाहिए जो गौरव के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में उसका प्रतिनिधित्व कर सकें।
- जब तक युद्धों का होना जारी है तब तक उसे विदेशी आक्रमणों से अपनी रक्षा करने में समर्थ होना चाहिए।
प्रश्न 2.
उत्तर :
वर्तमान में राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता के मध्य सम्बन्ध को लेकर दो विरोधी विचार प्रचलित हैं। पहले मत के विद्वानों का कहना है कि राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता परस्पर विरोधी हैं। उनका तर्क है कि राष्ट्रीयता व्यक्ति को अपने देश के प्रति श्रद्धा भाव रखने के लिए प्रेरित करती है, जबकि अन्तर्राष्ट्रीयता का आधारभूत सिद्धान्त विश्वबन्धुत्व की स्थापना करना है। लेकिन यह मत भ्रामक और असंगत प्रतीत होता है। वास्तव में राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता परस्पर विरोधी नहीं हैं। राष्ट्रीयता तभी अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक बनती है, जबकि उसका अन्धानुकरण किया जाए तथा उसके उग्र रूप को ग्रहण किया जाए। उदार राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीयता की पोषक और विश्व-शान्ति की समर्थक है। भारत का पंचशील सिद्धान्त इस सन्दर्भ में उदाहरणस्वरूप लिया जा सकता है।इस प्रकार राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता एक-दूसरे की परस्पर पूरक हैं। यही मत अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि राष्ट्रीयता ही अन्तर्राष्ट्रीयता का प्रथम चरण है। गांधी जी के अनुसार, “मेरे विचार से राष्ट्रवादी हुए बिना अन्तर्राष्ट्रवादी होना असम्भव है। अन्तर्राष्ट्रीयता तभी सम्भव हो सकती है, जबकि राष्ट्रीयता एक यथार्थ बन जाए।”
प्रश्न 3.
उत्तर :
अनेक विचारक राष्ट्रवाद के बहुत बड़े प्रशंसक और भक्त हैं। वे इसमें अच्छाइयाँ-हीअच्छाइयाँ पाते हैं। पर दूसरे लोगों का कहना है कि राष्ट्रवाद से अनेक बुरे परिणाम निकले हैं। इन लोगों का विश्वास है कि राष्ट्रीयता अपने वर्तमान रूप में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सद्भावना की सबसे बड़ी शत्रु है। राष्ट्रवाद पर अपने निबन्ध में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नि:संकोच राष्ट्रवाद को बुरा कहा है। वह उसे ‘समूची जाति का सामूहिक और संगठित स्वार्थ’, ‘आत्मपूजा’, ‘स्वार्थी उद्देश्यों के लिए राजनीति और व्यवसाय का संगठन’, ‘शोषण के लिए संगठित शक्ति’ आदि कहते हैं।राष्ट्रवाद पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की समालोचना
“राष्ट्रवाद हमारा अन्तिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं हो सकता मेरी शरणस्थली तो मानवता है। मैं हीरों की कीमत पर शीशा नहीं खरीदूंगा और जब तक मैं जीवित हूँ देशभक्ति को मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने दूंगा” यह रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था वे औपनिवेशिक शासन के विरोधी थे और भारत की स्वाधीनता के अधिकार का दावा करते थे वे महसूस करते थे कि उपनिवेशों के ब्रितानी प्रशासन में ‘मानवीय सम्बन्धों की गरिमा बरकरार रखने की गुंजाइश नहीं है। यह एक ऐसा विचार है। जिसे ब्रितानी सभ्यता में भी स्थान मिला है। टैगोर पश्चिमी साम्राज्यवाद का विरोध करने और पश्चिमी सभ्यता को खारिज करने के बीच फर्क करते थे। भारतीयों को अपनी संस्कृति और विरासत में गहरी सभ्यता होनी ही चाहिए लेकिन बाहरी दुनिया से मुक्त भाव से सीखने और लाभान्वित होने का प्रतिरोध नहीं करनी चाहिए।
टैगोर जिसे ‘देशभक्ति’ कहते थे, उसकी समालोचना उनके लेखन का स्थायी विषय था। वे देश के स्वाधीनता आन्दोलन में मौजूद संकीर्ण राष्ट्रवाद के कटु आलोचक थे। उन्हें भय था कि तथाकथित | | भारतीय परम्परा के पक्ष में पश्चिम की खारिजी का विचार यहीं तक सीमित रहने वाला नहीं है। यह अपने देश में मौजूद ईसाई, यहूदी, पारसी और इस्लाम समेत तमाम विदेशी प्रभावों के खिलाफ आसानी से आक्रामक भी हो सकता है।
प्रश्न 4.
उत्तर :
राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के गुण राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-1. देशप्रेम की प्रेरणा- राष्ट्रीयता की भावना लोगों में देशप्रेम का भाव उत्पन्न करती है और उन्हें देश के हित के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित करती है। यह प्रेरणा राष्ट्रीय पर्वो के आयोजन, राष्ट्रगान तथा राष्ट्रीय गीतों, नाटकों आदि से और अधिक व्यापक होती है।
2. राजनीतिक एकता की स्थापना में योगदान- राष्ट्रीयता की भावना राजनीतिक एकता की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही विभिन्न जातियों व धर्मों के | लोग एकता के सूत्र में संगठित हो जाते हैं और एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
3. राज्यों को स्थायित्व- राष्ट्रीयता राज्यों को स्थायित्व भी प्रदान करती है। राष्ट्रीय चेतना के आधार पर निर्मित राज्य अधिक स्थायी सिद्ध हुए हैं।
4. उदारवाद को प्रोत्साहन- राष्ट्रीयता आत्म-निर्णय के सिद्धान्त को मान्यता देती है। इसलिए राष्ट्रीयता मानवीय स्वतन्त्रता को स्वीकार कर उदारवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
5. सांस्कृतिक विकास- राष्ट्रीयता देश के सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहित करती है। प्राचीन यूनान के महाकवि होमर, फ्रांस के दान्ते तथा वोल्तेयर, इंग्लैण्ड के टेनीसन, शैले, टामस पेन, जर्मनी के हीगल और भारत के मैथिलीशरण गुप्त आदि ने राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही साहित्यिक रचनाएँ की हैं।
6. आत्म-सम्मान की भावना- राष्ट्रीयता व्यक्ति में आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न करती है। और उसे आत्म-गौरव को सँजोने की प्रेरणा देती है।
7. विश्वबन्धुत्व की पोषक- राष्ट्रीयती व्यक्ति के दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री और सहयोग को प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार राष्ट्रीयता विश्वबन्धुत्व की पोषक भी है; उदाहरणार्थ-भारत का पंचशील सिद्धान्त ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’का पोषक है।
8. आर्थिक विकास में योगदान- राष्ट्रीयता राष्ट्र के आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है। | राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर ही व्यक्ति अपने राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाने के लिए एकजुट होकर कार्य करते हैं।
प्रश्न 5.
उत्तर :
बास्क स्पेन का एक पहाड़ी और समृद्ध क्षेत्र है। इस क्षेत्र को स्पेनी सरकार ने स्पेन राज्यसंघ के अन्तर्गत स्वायत्त क्षेत्र का दर्जा दे रखा है, लेकिन बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेतागण इस स्वायत्तता से सन्तुष्ट नहीं हैं। वे चाहते हैं कि बास्क स्पेन से अलग होकर एक स्वतन्त्र देश बन जाए। इस आन्दोलन के समर्थकों ने अपनी माँग पर जोर डालने के लिए संवैधानिक और हाल तक हिंसक तरीकों का इस्तेमाल किया है।
बास्क राष्ट्रवादियों का कहना है कि उनकी संस्कृति स्पेनी से बहुत भिन्न है। उनकी अपनी भाषा है, जो स्पेनी भाषा से बिल्कुल नहीं मिलती है। हालाँकि आज बास्क के मात्र एक-तिहाई लोग उस भाषा को समझ पाते हैं। बास्क क्षेत्र की पहाड़ी भू-संरचना उसे शेष स्पेन से भौगोलिक तौर पर अलग करती है। रोमन काल से अब तक बास्क क्षेत्र ने स्पेनी शासकों के समक्ष अपनी स्वायत्तता का कभी समर्पण नहीं किया। उसकी न्यायिक, प्रशासनिक एवं वित्तीय प्रणालियाँ उसकी अपनी विशिष्ट व्यवस्था के जरिए संचालित होती थीं।
आधुनिक बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन की शुरूआत तब हुई जब उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में स्पेनी शासकों ने उसकी विशिष्ट राजनीतिक-प्रशांसनिक व्यवस्था को समाप्त करने की कोशिश की। बीसवीं सदी में स्पेनी तानाशाह फ्रैंको ने इस स्वायत्तता में और कटौती कर दी। उसने बास्क भाषा को सार्वजनिक स्थानों, यहाँ तक कि घर में भी बोलने पर पाबन्दी लगा दी थी। ये दमनकारी कदम अब वापस लिए जा चुके हैं। लेकिन बास्क आन्दोलनकारियां को स्पेनी शासक के प्रति सन्देह और क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश का भय बरकरार है। उने विरोधियों का कहना है कि बास्क अलगाववादी एक ऐसे मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं जिसका समाधान हो चुका है।
प्रश्न 6.
उत्तर :
एक संस्कृति-एक राज्य के विचार को त्यागते ही यह आवश्यक हो जाता है कि ऐसे तरीकों के बारे में विचार किया जाए जिसमें विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय एक ही देश में फल-फूल सकें। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक लोकतान्त्रिक देशों ने सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान को स्वीकार करने और संरक्षित करने के उपायों को प्रारम्भ किया है। भारतीय संविधान में धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों की संरक्षा के लिए विस्तृत प्रावधान किए हैं।विभिन्न देशों में समूहों को जो भी अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनमें सम्मिलित हैं-
अल्पसंख्यक समूहों एवं उनके सदस्यों की भाषा, संस्कृति एवं धर्म के लिए संवैधानिक संरक्षा के अधिकार। कुछ प्रकरणों में इन समूहों को विधायी संस्थाओं और अन्य राजकीय संस्थाओं में प्रतिनिधित्व का अधिकार भी होता है। इन अधिकारों को इस आधार पर न्यायोचित ठहराया जा सकता है कि ये अधिकार इन समूहों के सदस्यों के लिए कानून द्वारा समान व्यवहार एवं सुरक्षा के साथ ही समूह की सांस्कृतिक पहचान के लिए भी सुरक्षा का प्रावधान करते हैं। इसके अलावा, इन समूहों को राष्ट्रीय समुदाय के एक अंग के रूप में भी मान्यता देनी होती है। इसका आशय यह है कि राष्ट्रीय पहचान को समावेशी रीति से परिभाषित करना होगा जो राष्ट्र-राज्य के सदस्यों की महत्ता और अद्वितीय योगदान को मान्यता प्रदान कर सके।
यह आशा की जाती है कि समूहों को मान्यता और संरक्षा प्रदान करने से उनकी आकांक्षाएँ सन्तुष्ट होंगी, फिर भी हो सकता है, कि कुछ समूह पृथक् राज्य की माँग पर अडिग रहें। यह विरोधाभासी भी प्रतीत हो सकता है कि जहाँ दुनिया में भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया जारी है वहाँ राष्ट्रीय आकांक्षाएँ अभी भी बहुत सारे समूह और मनुष्यों को उद्देलित कर रही हैं। ऐसी माँगों से लोकतान्त्रिक तरीके से निपटने के लिए यह आवश्यक है कि सम्बन्धित देश अत्यन्त उदारता व दक्षता का परिचय दें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
या
राष्ट्रीयता की परिभाषा दीजिए तथा इसके विभिन्न पोषक तत्वों की विवेचना कीजिए।
या
राष्ट्रीयता के विकास में उत्तरदायी तत्त्वों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषाएँ‘राष्ट्रीयता’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘नैशनलिटी’ (Nationality) शब्द का हिन्दी अनुवाद है, जिसका उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘नेशियो’ (Natio) शब्द से हुई है। इस शब्द से जन्म और जाति का बोध होता है। राष्ट्रीयता एक सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक भावना है, जो लोगों को एकता के सूत्र में बाँधती है। इसी भावना के कारण लोग अपने राष्ट्र से प्रेम करते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीयता एक भावात्मक शब्द है। इसी भावना के कारण लोग अपने देश पर संकट आने की स्थिति में अपने तन, मन और धन का बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। जे० एच० रोज के अनुसार, “राष्ट्रीयता हृदयों की वह एकता है, जो एक बार बनने के बाद कभी खण्डित नहीं होती है।”
राष्ट्रीयता की पूर्ण एवं सम्यक परिभाषा करना एक कठिन कार्य है; किन्तु कुछ विद्वानों ने इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है। इन विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
जिमर्न के अनुसार, “राष्ट्रीयता सामूहिक भावना का एक रूप है, जो विशिष्ट गहनता, समीपता तथा महत्ता से एक निश्चित देश से सम्बन्धित होती है।”
ब्लंश्ली के अनुसार, “राष्ट्रीयता मनुष्यों का वह समूह है, जो समान उत्पत्ति, समान जाति, समान भाषा, समान परम्पराओं, समान इतिहास तथा समान हितों के कारण एकता के सूत्र में बँधकर राज्य का निर्माण करता है।”
गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक भावना या सिद्धान्त है, जिसकी उत्पत्ति उन लोगों में से होती है, जो साधारणत: एक जाति के होते हैं, जो एक भूखण्ड पर रहते हैं तथा जिनकी एक भाषा, एक धर्म, एक इतिहास, एक जैसी परम्पराएँ एवं एक जैसे हित होते हैं तथा जिनके राजनीतिक समुदाय और राजनीतिक एकता के एक-से आदर्श होते हैं।”
डॉ० बेनीप्रसाद के अनुसार, “राष्ट्रीयता की निश्चित परिभाषा करना कठिन है। परन्तु यह स्पष्ट है कि ऐतिहासिक गतिविधियों में यह पृथक् अस्तित्व ही उस चेतना का प्रतीक है, जो सामान्य आदतों, परम्परागत रीति-रिवाजों, स्मृतियों, आकांक्षाओं, अवर्णनीय सांस्कृतिक सम्प्रदायों तथा हितों पर आधारित है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं, “राष्ट्रीयता एक ऐसी भावना है, जिसके कारण एक देश के लोग एकता के सूत्र में बँधे रहते हैं और जो अपने देश एवं देशवासियों के प्रति संभावपूर्वक रहने की प्रेरणा देती है।”
राष्ट्रीयता के प्रमुख निर्माणक तत्त्व
राष्ट्रीयता के निर्माण अथवा राष्ट्रीयता की भावना के विकास में अनेक तत्त्व सहायक होते हैं। उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. भौगोलिक एकता- भौगोलिक एकता राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा-स्रोत है। जब लोग समान भौगोलिक परिस्थितियों में रहते हैं तो उनकी आवश्यकताएँ एवं समस्याएँ भी समान होती हैं। अत: वे लोग मिल-जुलकर समान ढंग से अपनी समस्याएँ सुलझाने हेतु एकजुट होते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें एकता की भावना उत्पन्न होती है, यह भावना ही कालान्तर में राष्ट्रीयता का प्रतीक बनती है। परन्तु इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि भौगोलिक एकता राष्ट्रीयता को एक सहायक तत्त्व है; अतः इसे अनिवार्य तत्त्व नहीं माना जाना चाहिए।
2. भाषा की एकता- राष्ट्रीयता के विकास में भाषा की एकता भी महत्त्व रखती है। समान भाषा-भाषी देशों में समान विचार एवं समान साहित्य का सृजन होता है। उनके समान रीति-रिवाज एवं समान रहन-सहन के कारण उनमें समान राष्ट्रीयता की भावना का उदय होता है। भाषा की एकता भी राष्ट्रीयता का एक अनिवार्य तत्त्व नहीं है; उदाहरणार्थ-कर्नाटक प्रान्त के नागरिक कन्नड़ भाषा बोलते हैं; तमिलनाडु के निवासी तमिल बोलते हैं और भारत के अधिकांश उत्तर-मध्य क्षेत्र में हिन्दी बोली जाती है। अत: इस आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि भारत में राष्ट्रीयता का अभाव है।
3. संस्कृति की एकता- सांस्कृतिक एकता राष्ट्रीयता के मूल्यवान तत्त्वों में से एक है। संस्कृति के अन्तर्गत एक निश्चित भू-भाग के व्यक्तियों का साहित्य, रीति-रिवाज, प्राचीन परम्पराएँ इत्यादि सम्मिलित होती हैं। समान संस्कृति के आधार पर समान विचार, समान आदर्श तथा समान प्रवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे राष्ट्रीयता के निर्माण में सहायता मिलती है।
4. समान ऐतिहासिक परम्पराएँ- ऐतिहासिक घटनाओं एवं स्मृतियों का भी राष्ट्रीयता के विकास में काफी महत्त्व होता है। विजय और पराजय की स्मृतियाँ, सामाजिक विकास के आदर्श, सांस्कृतिक उत्थान-पतन का संकलित इतिहास राष्ट्रीयता के विकास में पर्याप्त सहायक होता है। सम्राट अशोक, अकबर और शिवाजी आदि का गौरव गाथा पढ़ने से समस्त भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार होता है।
5. धार्मिक एकता- धार्मिक एकता भी राष्ट्रीयता के निर्माण तथा विकास में वृद्धि करती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि धार्मिक भिन्नता के कारण अनेक देशों में कितना अधिक रक्तपात हुआ है। धार्मिक भिन्नता के आगे राष्ट्रीयता की भावना दुर्बल पड़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दो भिन्न धर्मावलम्बी राष्ट्रों के मध्य युद्ध होते हैं। इसीलिए प्रसिद्ध विद्वान रैम्जे म्योर ने लिखा है, “कुछ मामलों में धार्मिक एकता राजनीतिक एकता के निर्माण में शक्तिशाली योग देती है, जबकि कुछ दूसरे मामलों में धार्मिक भिन्नता उसके मार्ग में अनेक बाधाएँ उपस्थित करती है।”
6. राजनीतिक एकता- समान राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रहने वाले लोग भी एकता का अनुभव करते हैं। इसके अतिरिक्त वे समान राजनीतिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप मानसिक एकता का भी अनुभव करते हैं, जो आगे चलकर राष्ट्रीयता के निर्माण में सहायक होती है। इसके साथ ही कठोर विदेशी शासन भी राष्ट्रीयता के निर्माण में सहायक सिद्ध होता है।
7. जातीय एकता- जातीय एकता भी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक होती है। एक जाति के लोग समान संस्कारों एवं रीति-रिवाजों आदि के कारण एक संगठन में बंधे रहते हैं, जिनके परिणामस्वरूप उनमें एकता की भावना का उदय होता है।
8. सामान्य आर्थिक हित- आधुनिककाल में राष्ट्रीयता के निर्माण में आर्थिक तत्त्व सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना जाता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में रोजगार प्राप्त करने में सभी का सामान्य आर्थिक हित है। अत: इस दिशा में किए जाने वाले प्रयास राष्ट्रीय एकता के प्रयास के अन्तर्गत आते हैं।
9. अन्य तत्व- समान सिद्धान्तों में आस्था, सामान्य आपदाएँ, युद्ध लोकमत एवं सामूहिक एकता की चेतना भी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक सिद्ध होती है। सामान्य आपदाओं; जैसे-गुजरात में आए भूकम्प और तमिलनाडु तथा अण्डमान द्वीप समूह में आए सुनामी समुद्री लहरों के तूफान के समय सभी क्षेत्रों से की गई सहायता इस बात का प्रतीक है कि हमारे अन्दर राष्ट्रीयता की भावना विद्यमान है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राष्ट्रीयता भावात्मक एकता का प्रतीक होती है। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही व्यक्ति राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण तथा बलिदान की भावना प्रकट करता है। राष्ट्रीयता का निर्माण विभिन्न तत्त्वों के मिश्रण से होता है। इनमें सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक परम्पराओं की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही भारत अंग्रेजी दासता से स्वतन्त्र हुआ। तथा यहूदियों ने यहूदी राष्ट्रीयता की भावना से आप्लावित होकर अपने स्वतन्त्र राष्ट्र की स्थापना की।
प्रश्न 2.
उत्तर :
राष्ट्रीय भावना के विकास में बाधक तत्त्वराष्ट्रीय भावना के विकास में निम्नलिखित तत्त्व बाधक हैं-
1. अज्ञानता और अशिक्षा- राष्ट्रीयता के निर्माण में प्रमुख बाधक तत्त्व अज्ञानता और अशिक्षा हैं। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति का दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है और वह राष्ट्रहित के स्थान पर व्यक्तिगत हित को सर्वोपरि समझने लगता है। इस कारण ऐसे संकुचित दृष्टिकोण वाले व्यक्ति राष्ट्रीयता के विकास में बाधक सिद्ध होते हैं।
2. आवागमन के अच्छे साधनों का अभाव- आवागमन के अच्छे साधनों के अभाव में देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों के बीच सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता है। इस सम्पर्क के अभाव में उस पारस्परिक एकता का जन्म नहीं हो पाता है, जो राष्ट्रीयता का मूल आधार है। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से अब विकसित एवं विकासशील देशों में आवागमन के अच्छे साधनों , का अभाव नहीं रह गया है।
3. साम्प्रदायिकता की भावना- किसी वर्ग-विशेष द्वारा अपने स्वार्थों को महत्त्व देना और दूसरे वर्ग या वर्गों के हितों की उपेक्षा करना या उन्हें नीचा दिखाने की प्रवृत्ति साम्प्रदायिकता कहलाती है। साम्प्रदायिकता से द्वेष, शत्रुता, फूट, मतभेद आदि की भावनाएँ पनपती हैं, जो राष्ट्रीयता की प्रबल विरोधी हैं।
4. जातिवाद तथा भाषावाद- सम्प्रदायवाद के समान ही जातिवाद और भाषावाद भी राष्ट्रीयता के विकास में बाधक हैं। जातिवाद विभिन्न जातियों के मध्य कटुता और घृणा का भाव उत्पन्न करता है। तथा भाषावाद लोगों में एकता की भावना को खण्डित करता है। इस कारण विभिन्न जाति व भाषायी लोगों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित नहीं हो पाती है।
5. क्षेत्रीयता की भावना- क्षेत्रीयता की भावना राष्ट्रीयता के विकास के लिए घातक है। इस | भावना के कारण एक क्षेत्र में रहने वाले लोग अन्य या दूसरे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से घृणा करने लगते हैं। इसी कारण पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिन्धी जैसी धारणाएँ विकसित होती हैं, जो राष्ट्रीयता के विकास को अवरुद्ध कर देती हैं। भारत में नए-नए राज्यों का उदय उग्र क्षेत्रवाद की भावना के ही परिणाम हैं।
6. पराधीनता- पराधीनता सभी बुराइयों की जड़ है। पराधीन व्यक्ति अपने देश या राष्ट्र के लिए न कुछ सोच सकता है और न कुछ कर सकता है। इसलिए पराधीनता राष्ट्रीयता के मार्ग की सबसे बड़ी अवरोधक है।
7. देशभक्ति की भावना का अभाव- जिस देश के नागरिकों में देश-प्रेम का अभाव होता है, उस देश में राष्ट्रीयता का विकास होना असम्भव है। ऐसा देश अल्प समय में ही दूसरे देश के अधीन होकर अपनी स्वतन्त्रता खो बैठता है।
प्रश्न 3.
उत्तर :
राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के दोषराष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा कभी-कभी विश्व-शान्ति के लिए खतरा बन जाती है। इसीलिए राष्ट्रीयता में कुछ दोष भी हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है-
1. विश्व-शान्ति के लिए घातक- संकीर्ण और उग्र राष्ट्रीयता विश्व शान्ति के लिए घातक होती है। उग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर ही बीसवीं शताब्दी में जर्मनी ने सम्पूर्ण मानव जाति को दो-दो विश्व युद्धों की विभीषिकाएँ झेलने को विवश कर दिया था।
2. सैन्यवाद और युद्ध को प्रोत्साहन- राष्ट्रीयता का उग्र रूप सैन्यवाद और युद्ध को प्रोत्साहन देता है। इतिहास साक्षी है कि उग्र राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही फ्रांस तथा जर्मनी अनेक बार युद्धरत हुए और दोनों देशों को जन-धन की अपार क्षति उठानी पड़ी।
3. साम्राज्यवाद का उदय- उग्र राष्ट्रीयता की भावना देशवासियों को अंहकारी तथा स्वार्थी बना देती है और वे अपने राष्ट्र को ही विश्व शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं। इस मनोवृत्ति का परिणाम साम्राज्यवादी विस्तार के रूप में प्रकट होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में साम्राज्यवाद के विकास का एक प्रमुख कारण राष्ट्रवाद भी था।
4. छोटे-छोटे राज्यों का संगठन- उग्र राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर कभी-कभी छोटे-छोटे राज्य बन जाते हैं और उनमें आपसी द्वेष के कारण देश की एकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है। मध्यकाल में यूरोप में अनेक छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना उग्र राष्ट्रीयता का ही परिणाम थी।
5. व्यक्ति का नैतिक पतन- संकीर्ण राष्ट्रीयता व्यक्ति को स्वार्थी और अंहकारी बना देती है। वह इतना पतित हो जाता है कि मानव जाति को समूल नष्ट करने की दिशा में प्रवृत्त हो जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने संकीर्ण राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर यहूदियों पर भयानक अत्याचार किए थे।
6. अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक- राष्ट्रीयता की मान्यता है-‘एक राष्ट्र एक राज्य’, लेकिन राष्ट्रीयता का यह सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय के प्रतिकूल है। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही विभिन्न राष्ट्रों का दृष्टिकोण अन्य राष्ट्रों के प्रति संकीर्ण तथा उपेक्षित-सा हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और सद्भावना का विकास अवरुद्ध हो जाता है। और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।
प्रश्न 4.
उत्तर :
आत्म-निर्णय के अधिकार के दावे के रूप में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करता है कि उसके पृथक् राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता प्रदान की जाए। अक्सर ऐसी माँग उन लोगों की तरफ से आती हैं जो दीर्घकाल से किसी निश्चित भू-भौग पर साथ-साथ रहते आए हों और जिनमें साझी पहचान को बोध हो। कुछ प्रकरणों में आत्म-निर्णय के दावे एक स्वतन्त्र राज्य बनाने की इच्छा से भी जुड़े होते हैं। इन दावों का सम्बन्ध किसी समूह की संस्कृति की संरक्षा से होता है।दूसरी तरह के बहुत-से दावे उन्नीसवीं सदी के यूरोप में सामने आए, उस समय ‘एक संस्कृति-एक राज्य की मान्यता ने जोर पकड़ा। परिणामस्वरूप पहले विश्वयुद्ध के पश्चात् राज्यों की पुनर्व्यवस्था में ‘एक संस्कृति-एक राज्य के विचार को प्रयोग में लाया गया। वर्साय की सन्धि से बहुत-से छोटे नवे स्वतन्त्र राज्यों का गठन हुआ लेकिन उस समय उठाई जा रही आत्म-निर्णय की सभी माँगों को सन्तुष्ट करना वास्तव में असम्भव था। इसके अतिरिक्त ‘एक संस्कृति-एक राज्य की माँगों को सन्तुष्ट करने से राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन हुए। इससे सीमाओं के एक ओर से दूसरी ओर बहुत बड़ी जनसंख्या का विस्थापन हुआ। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग अपने घरों से उजड़ गए और उस जगह से उन्हें बाहर धकेल दिया गया जहाँ पीढ़ियों से उनका घर था। बहुत सारे लोग साम्प्रदायिक हिंसा के भी शिकार हो गए।
अलग-अलग सांस्कृतिक समुदायों को अलग-अलग राष्ट्र राज्य प्राप्त हुए, इसे ध्यान में रखकर सीमाओं में परिवर्तन किया गया। इस प्रयास के कारण मानव जाति को भारी मूल्य चुकाना पड़ा। इस प्रयास के बाद भी यह सुनिश्चित करना सम्भव नहीं हो सका कि नवगठित राज्यों में केवल एक ही नस्ल के लोग रहें। वास्तव में अधिकतर राज्यों की सीमाओं के अन्दर एक से अधिक नस्ल और संस्कृति के लोग रहते थे। ये छोटे-छोटे समुदाय राज्य के अन्दर अल्पसंख्यक थे और अक्सर हानिकारक स्थितियों में रहते थे। इस विकास का सकारात्मक पक्ष यह था कि उन बहुत सारे राष्ट्रवादी समूहों को राजनीतिक मान्यता प्रदान की गई जो स्वयं को एक अलग राष्ट्र के रूप में देखते थे और अपने भविष्य को निश्चित करने तथा अपना शासन स्वयं चलाना चाहते थे। लेकिन राज्यों के भीतर अल्पसंख्यक समुदायों की समस्या यथावत् बनी रही।
जब एशिया एवं अफ्रीका औपनिवेशिक प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे, तब राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलनों ने राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की भी घोषणा की। राष्ट्रीय आन्दोलनों का मानना था कि राजनीतिक स्वाधीनता राष्ट्रीय समूहों को सम्मान एवं मान्यता प्रदान करेगी और साथ ही वहाँ के लोगों के सामूहिक हितों की रक्षा भी करेगी। अधिकांश राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन राष्ट्र के लिए न्याय, अधिकार और समृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य से प्रेरित थे। हालाँकि यहाँ भी प्रत्येक सांस्कृतिक समूह जिनमें से कुछ पृथक् राष्ट्र होने का दावा करते थे, के लिए राजनीतिक स्वाधीनता तथा राज्यसत्ता सुनिश्चित करना लगभग असम्भव साबित हुआ। इस क्षेत्र के अनेक देश जनसंख्या के देशान्तरण, सीमाओं पर युद्ध और हिंसा की चपेट में आते रहे। इस प्रकार, यहाँ राष्ट्रीय राज्य विरोधाभासी स्थिति में दिखाई देते हैं जिन्होंने संघर्षों की बदौलत स्वाधीनता प्राप्त की, लेकिन अब वे अपने भू-क्षेत्रों में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों का विरोध कर रहे हैं।
वास्तव में आज दुनिया की सभी राज्य सत्ताएँ इस दुविधा में फँसी हैं कि आत्म-निर्णय के आन्दोलनों से , कैसे निपटा जाए और इसने राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार पर सवाल उत्पन्न कर दिए हैं। बहुत-से । लोग यह अनुभव करने लगे हैं कि समाधान नए राज्यों के गठन में नहीं वरन् वर्तमान राज्यों को अधिक लोकतान्त्रिक और समतामूलक बनाने में हैं। समाधान यह सुनिश्चित करने में है कि अलग-अलग सांस्कृतिक और नस्लीय पहचानों के लोग देश में समान नागरिक और मित्रों के समान सह अस्तित्वपूर्वक रह सकें। यह न केवल आत्म-निर्णय के नए दावों के उभार से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए वरन् सुदृढ़ और एकताबद्ध राज्य बनाने के लिए आवश्यक होगा। जो राष्ट्र-राज्य अपने शासन में अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान का सम्मान नहीं करते उनके लिए अपने सदस्यों की निष्ठा प्राप्त करना कठिन होता है।
NCERT Class 11 Rajniti Vigyan राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)
Class 11 Rajniti Vigyan Chapters | Rajniti Vigyan Class 11 Chapter 7
NCERT Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 11 Political Science : Indian Constitution at Work
खण्ड (क) : भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार
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NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 1 Constitution: Why and How?
(संविधान : क्यों और कैसे?)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 2 Rights in the Indian Constitution
(भारतीय संविधान में अधिकार)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 3 Election and Representation
(चुनाव और प्रतिनिधित्व)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 4 Executive
(कार्यपालिका)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 5 Legislature
(विधायिका)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 6 Judiciary
(न्यायपालिका)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 7 Federalism
(संघवाद)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 8 Local Governments
(स्थानीय शासन)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 9 Constitution as a Living Document
(संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 10 The Philosophy of Constitution
(संविधान का राजनीतिक दर्शन)
NCERT Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Political Theory
खण्ड (ख) : राजनीतिक सिद्धान्त
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NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 1 Political Theory : An Introduction
(राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 2 Freedom
(स्वतंत्रता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 3 Equality
(समानता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 4 Social Justice
(सामाजिक न्याय)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 5 Rights
(अधिकार)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 6 Citizenship
(नागरिकता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 7 Nationalism
(राष्ट्रवाद)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 8 Secularism
(धर्मनिरपेक्षता)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 9 Peace
(शांति)
NCERT Solutions For Class 11 Rajniti Vigyan Chapter 10 Development
(विकास)
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