NCERT Solutions | Class 6 Hindi Baal Raam Katha Chapter 2 जंगल और जनकपुर

NCERT Solutions | Class 6 Hindi Baal Raam Katha Chapter 2 | जंगल और जनकपुर 

NCERT Solutions for Class 6 Hindi Baal Raam Katha Chapter 2 जंगल और जनकपुर

CBSE Solutions | Hindi Class 6

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NCERT | Class 6 Hindi

NCERT Solutions Class 6 Hindi Baal Raam Katha
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 6th
Subject: Hindi Baal Raam Katha
Chapter: 2
Chapters Name: जंगल और जनकपुर
Medium: Hindi

जंगल और जनकपुर | Class 6 Hindi | NCERT Books Solutions

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Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 2

प्रश्न 1.

अयोध्या से वन की ओर जाते समय पहले पड़ाव के समय विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को कौन-कौन-सी विद्याएँ सिखाईं? इन विद्याओं की क्या विशेषताएँ थीं?

उत्तर-

विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को ‘बला-अतिबला’ नाम की विद्याएँ सिखाईं। इन विद्याओं की विशेषता यह थी कि कोई उन पर प्रहार नहीं कर सकता था, चाहे वे सोए हुए ही क्यों न हों।

प्रश्न 2.

विश्वामित्र ने ऐसा क्यों कहा कि “ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं”, इनसे कोई डर नहीं है।

उत्तर-

जंगल की शोभा पेड़-पौधों और वनस्पतियों से होती है। वन की रक्षा तभी हो सकती है जब जंगल में जानवर भी हों। जानवर वन की शोभा को बढ़ाते हैं। यदि जंगल में जानवर न हों तो लोग जंगल को अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए नष्ट कर देंगे।

प्रश्न 3.

ताड़का कौन थी? राम ने उसका वध किस प्रकार किया?

उत्तर-

ताड़का एक भयानक राक्षसी थी। ताड़का के डर से कोई व्यक्ति उस वन में प्रवेश नहीं करता था, क्योंकि वह उन्हें मार देती थी। इस कारण उस सुंदर वन का नाम ‘ताड़का-वन’ पड़ गया था। राम ने अपने धनुष की टॅकार से पहले तो ताड़का के क्रोध को भड़काया, फिर उसके हृदय में बाण मारकर उसे सदा के लिए मृत्यु की गोद में सुला दिया।

प्रश्न 4.

राम ने विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा किस प्रकार की?

उत्तर-

राम और लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक रात-दिन जागकर यज्ञ की रक्षा की। उन्होंने राक्षसों को भगा दिया। परन्तु यज्ञ के अंतिम दिन सुबाहु और मारीच ने वहाँ धावा बोल दिया। राम-लक्ष्मण और राक्षसी सेना के बीच युद्ध हुआ। राम के एक बाण से मारीच मूर्छित होकर समुद्र के किनारे जाकर गिरा। राम ने एक ही बाण से सुबाहु का वध कर दिया। इस प्रकार विश्वामित्र का यज्ञ पूरा हो गया।

प्रश्न 5.

राम के यह पूछने पर कि-मुनिवर! हमारे लिए क्या आज्ञा है?” विश्वामित्र ने कहाँ चलने के लिए कहा?

उत्तर-

विश्वामित्र ने राम से कहा कि हम यहाँ से मिथिला जायेंगे। तुम दोनों भी मेरे साथ चलो। राजा जनक के पास शिव जी का एक अद्भुत धनुष है, तुम भी उसको देखना।

प्रश्न 6.

विश्वामित्र का महल से बाहर स्वागत करते हुए राजा जनक चकित क्यों हुए?

उत्तर-

राजा जनक की दृष्टि जब राम-लक्ष्मण पर पड़ी, तो वे चकित हो गए। वे अपने को रोक न सके और महर्षि से पूछा कि “ये सुंदर राजकुमार कौन हैं?” विश्वामित्र ने कहा-महाराज! ये राजा दशरथ के पुत्र राम-लक्ष्मण हैं।”

प्रश्न 7.

शिव जी का धनुष कैसा था?

उत्तर-

शिव जी का धनुष सचमुच विशाल था। वह लोहे की एक पेटी में रखा हुआ था। पेटी में आठ पहिए लगे हुए थे। पहियों के सहारे ही उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता था।

प्रश्न 8.

धनुष को देखकर राजा जनक उदास क्यों थे?

उत्तर-

राजा जनक ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि जो कोई इस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी के साथ ही वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे। अब तक कोई भी राजकुमार उस धनुष पर प्रत्यंचा तो दूर, उसे अपने स्थान से हिला तक न सका था।

प्रश्न 9.

राम द्वारा शिव-धनुष उठाने व उसके टूटने का वर्णन करो।

उत्तर-

विश्वामित्र की आज्ञा से राम ने शिव-धनुष उठा लिया। जब उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए धनुष को झुकाया तो वह टूट गया। यज्ञशाला में सन्नाटा छा गया, परन्तु राजा जनक की खुशी का ठिकाना न था। उनको अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर मिल गया था।

प्रश्न 10.

विवाह से ठीक पहले राजा जनक ने दशरथ के सामने क्या प्रस्ताव रखा?

उत्तर-

राजा जनक ने दशरथ से अनुरोध किया, “राजन्! राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर मेरी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि मेरी छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ हो जाए और मेरे छोटे भ्राता कुशध्वज की भी दो कन्याएँ-माँडवी और श्रुतकीर्ति हैं। कृपया उन्हें भरत और शत्रुध्न के लिए लिए स्वीकार करें।”
Bal Ram Katha Class 6 Chapter 2 Summary

राम और लक्ष्मण को साथ लेकर विश्वामित्र सरयू नदी की ओर बढ़े। वे नदी के किनारे-किनारे चलते रहे। संध्या हो जाने पर वे बोले-हम आज रात नदी के किनारे पर ही विश्राम करेंगे। राम के निकट आने पर वे बोले-मैं आप लोगों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इस विद्या के सीखने पर कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा, तुम्हारी निद्रावस्था में भी नहीं। विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को ‘बला-अतिबला’ नाम की विद्याएँ सिखाईं। रात को नदी-किनारे आराम करने के बाद सुबह फिर यात्रा शुरू हो गई। चलते-चलते वे एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहाँ दो नदियाँ आपस में मिलती थीं। संगम की दूसरी नदी गंगा थी। राम-लक्ष्मण विश्वामित्र की बातों को ध्यान से सुनते हुए ठीक उनके पीछे चल रहे थे। आगे की यात्रा और कठिन थी। विश्वामित्र ने रात्रि के समय नदी को पार करना ठीक नहीं समझा। संगम पर ही एक आश्रम में विश्राम करने के बाद सुबह उन्होंने नाव से गंगा पार की।

नदी के उस पार घना जंगल था। हर ओर झींगुरों की आवाज व जानवरों की दहाड़ सुनाई दे रही थी। विश्वामित्र ने बताया कि ये जानवर जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं। असली डर तो इस जंगल में रहने वाली ताड़का का है। वह अचानक आक्रमण करती है। उसके डर के कारण कोई जंगल में नहीं आता। तुम्हें इस खतरे को हमेशा के लिए मिटा देना है। राम ने विश्वामित्र की आज्ञा से धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर एक बाण खींचकर छोड़ दिया। ताड़का बिलबिलाती हुई आई। दो बालकों को देखकर उसका क्रोध और भी बढ़ गया। ताड़का उन पर पत्थर बरसाने लगी। राम का एक बाण ताड़का के हृदय में लगा। वह फिर दोबारा नहीं उठ पाई। विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने दोनों राजकुमारों को सौ-तरह के नए अस्त्र-शस्त्र दिए। महर्षि का आश्रम यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था। अब ताड़का का भय भी नहीं था। रात्रि के समय उन्होंने वहीं विश्राम किया। सुबह होने पर वे आश्रम की ओर चले। आगे का रास्ता बहुत मनोहारी था। जंगल से भयानक आवाजें गायब हो चुकी थीं। प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए वे आश्रम में पहुंच गए। आश्रम-वासियों ने उनकी अगवानी की।

विश्वामित्र यज्ञ की तैयारी में लग गए थे। आश्रम की रक्षा की जिम्मेदारी राम-लक्ष्मण को सौंपकर विश्वामित्र आश्वस्त थे। कुछ ही दिनों में अनुष्ठान पूरा होने वाला था। जब अनुष्ठान का अंतिम दिन आया तो भयानक आवाजों से आकाश भर गया। सुबाहु और मारीच ने छल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। राम ने धनुष उठाकर मारीच पर निशाना लगाया। बाण लगते ही वह मूर्छित हो गया। जब उसे होश आया तो वह दक्षिण दिशा की ओर भाग गया। सुबाहु का एक बाण से ही प्राणान्त हो गया। मारीच के भागने व सुबाहु का वध होने पर राम ने विश्वामित्र से पूछा कि हमारे लिए क्या आज्ञा है? विश्वामित्र ने कहा कि हम यहाँ से विदेहराज जनक के दरबार में मिथिला जायेंगे। उनके पास एक अद्भुत शिव-धनुष है।

विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को साथ लेकर गौतम ऋषि के आश्रम से होते हुए मिथिला पहुँच गए। राजा जनक ने महल से बाहर आकर विश्वामित्र का स्वागत किया। जनक की दृष्टि जब राम-लक्ष्मण पर पड़ी तो वे बिना पूछे अपने को रोक नहीं पाए। विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण का परिचय दिया। एक सुंदर उद्यान में उनके ठहरने की व्यवस्था की गई। अगले दिन सभी आमंत्रित लोग यज्ञशाला में उपस्थित हुए। शिव-धनुष को भी यज्ञशाला में लाया गया। शिव-धनुष बहुत ही विशाल था। उसे पहियों के सहारे ही खिसकाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता था। राजा जनक ने विश्वामित्र से कहा कि मुनिवर, मैंने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करूँगा जो इस धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा। अनेक राजकुमारों ने यज्ञशाला में प्रयास किया, परन्तु कोई भी उस धनुष को हिला तक न सका। विश्वामित्र के कहने पर राम धनुष उठाने के लिए आगे बढ़े। उन्होंने बड़ी ही सहजता से धनुष को उठा लिया और बोले-“इसकी प्रत्यंचा चढ़ा दूं मुनिवर!” राम ने आसानी से प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए धनुष को झुकाया। दबाब से धनुष बीच में से टूट गया। महाराज जनक की खुशी का ठिकाना न था। सीता के लिए सुयोग्य वर मिल गया था। उन्होंने मुनिवर की आज्ञा से दशरथ के पास संदेश भिजवा दिया। दशरथ बारात लेकर जनकपुरी आ गए। धूम-धाम से सीता जी का विवाह संपन्न हुआ। जनक की इच्छा से उर्मिला का विवाह लक्ष्मण व उसके भाई की दोनों पुत्रियों-मांडवी और श्रुतकीर्ति का विवाह भरत व शत्रुघ्न के साथ हो गया। बहुओं को लेकर जब वे अयोध्या लौटे तो अयोध्या में आनंदोत्सव मनाया गया।

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