NCERT Solutions | Class 6 Hindi Writing निबंध-लेखन

NCERT Solutions | Class 6 Hindi Writing | निबंध-लेखन 

NCERT Solutions for Class 6 Hindi Writing निबंध-लेखन

CBSE Solutions | Hindi Class 6

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NCERT | Class 6 Hindi

NCERT Solutions Class 6 Hindi
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 6th
Subject: Hindi
Chapter:
Chapters Name: निबंध-लेखन
Medium: Hindi

निबंध-लेखन | Class 6 Hindi | NCERT Books Solutions

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निबंध का अर्थ है-बँधा हुआ यानी एक सूत्र में बँधी हुई रचना। जब किसी विषय पर क्रमबद्धता के साथ विचारों को प्रकट किया जाता है, तो ऐसा लेख निबंध कहलाता है। निबंध किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। साधारण रूप से निबंध के विषय परिचित होते हैं यानी जिनके बारे में हम सुनते, देखते व पढ़ते रहते हैं, जैसे धार्मिक त्योहार, विभिन्न प्रकार की समस्याएँ राष्ट्रीय त्योहार, मौसम आदि। निबंध लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

  • निबंध निर्धारित शब्द सीमा के अंतर्गत ही लिखा गया हो।
  • निबंध के वाक्य क्रमबद्ध और सुसंबद्ध होने चाहिए तथा विचार मौलिक हों।
  • निबंध की भाषा सरल, स्पष्ट व प्रभावशाली होनी चाहिए।
  • सभी अनुच्छेद एक-दूसरे से जुड़े हों।
  • निबंध में लिखे वाक्य छोटे और प्रभावशाली होने चाहिए।
  • निबंध लिखने के बाद उसे एक बार अवश्य पढ़ लें, ताकि यदि लिखते समय कोई बात छूट गई हो तो वह फिर से लिखी जा सके।

निबंधों की शब्द सीमा
कक्षा 6 – 150 से 175 शब्द
कक्षा 7 – 175 से 200 शब्द
कक्षा 8 – 200 से 250 शब्द
निबंध कई प्रकार के हो सकते हैं; जैसे वर्णनात्मक, विचारात्मक तथा भावात्मक। मुख्य रूप से निबंध के निम्नलिखित तीन अंग होते हैं।

भूमिका – भूमिका ऐसी होनी चाहिए जो निबंध के प्रति पढ़ने वाले की उत्सुकता को बढ़ाए।
विषय विस्तार – इसमें तीन से चार अनुच्छेदों में विषय के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किए जाते हैं। इसमें मुख्य भाषा विषय से संबंधित तथा विस्तृत होता है।
उपसंहार – यह निबंध के अंत में लिखा जाता है। इस अंग में निबंध में लिखी गई बातों के सार के रूप में एक अनुच्छेद में लिखा जाता है। आगे कुछ छात्रोपयोगी निबंध नमूने के तौर पर दिए जा रहे हैं।

निबंध लेखन का अभ्याम

1. विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ है, क्योंकि समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर करती है? अतः विद्यार्थी जीवन पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को स्वर्णिम काले है। इसी काल में भावी जीवन की तैयारी की जाती है तथा शक्तियों का विकास किया जाता है। इस काल में बालक के मस्तिष्क रूपी स्लेट पर कुछ अंकित हो जाता है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।

विद्यार्थी जीवन की महत्ता को जानते हुए प्राचीन काल में विद्यार्थी को घरों से दूर गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था, गुरु के कठोर अनुशासन को उसे पालन करना पड़ता था। गुरु अपने शिष्यों को तपा-तपाकर स्वर्ण बना देता था।

लेकिन आधुनिक युग में विद्यार्थी विद्यालयों में विद्याध्ययन करता है। आज गुरु ओं के कठोर अनुशासन का अभाव है। आज शिक्षा का संबंध धन से जोड़ा जाता है। विद्यार्थी यह समझता है कि वह धन देकर विद्या प्राप्त कर रहा है। उसमें गुरुओं के प्रति सम्मान के भाव की कमी पाई जाती है। शिक्षा में नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इन्हीं कारणों से आज विद्यार्थी अनुशासनहीन पश्चिमी सभ्यता का अनुयायी तथा भारतीय संस्कृति से दूर हो गया है।
आदर्श विद्यार्थी के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है
काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन पंचलक्षणं ॥

अर्थात विद्यार्थी को कौए के समान चेष्ठावान, बगुले के समान एकाग्रचित्त, कुत्ते के समान कम सोने वाला, कम खाने वाला तथा विद्याध्ययन के लिए त्याग करने वाला होना चाहिए। दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक विद्यार्थी में इन गुणों का अभाव पाया जाता है। विद्यार्थी ही देश के भविष्य होते हैं। इसलिए विद्यार्थियों में विनयशीलता, संयम आज्ञाकारिता जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।

आज के विद्यार्थी वर्ग के पतन के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों को भी कर्तव्य है कि वे भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हों।

2. स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्र रहने की इच्छा केवल मनुष्य में ही नहीं पशु, पक्षियों में भी पाई जाती है। हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए हमारे देश के अनेक नेताओं ने अपना बलिदान दिया था उन्हीं के बलिदान के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 में हमें अंग्रेजी शासन से मुक्ति मिली। थी। इसी दिन से भारत एक स्वतंत्र देश गिना जाने लगा। तब से लेकर हर वर्ष 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में आयोजित किया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस पर पूरे देश में अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जिनमें देशभक्तों को याद किया जाता है तथा राष्ट्रीय ध्वज फ हराया जाता है। दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले पर भारत के प्रधानमंत्री प्रातः ध्वजारोहण करते हैं। राष्ट्रीय ध्वज को तोपों की सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात प्रधानमंत्री देशवासियों के नाम अपना संदेश देते हैं। इस कार्यक्रम को दूरदर्शन पर सीधा प्रसारित किया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद दिलाता है। हमारा कर्तव्य है कि उन देश भक्तों की कुरबानी को न भूलें जिन्होंने अपने मस्तक देकर हमें स्वतंत्रता का उपहार प्रदान किया। इस दिन हमें देश की एकता और अखंडता की रक्षा । का प्रण लेना चाहिए।

3. मेरा जीवन लक्ष्य
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का कुछ न कुछ लक्ष्य अवश्य होता है। वह अपने भविष्य के बारे में तरह-तरह के सपने संजोता है तथा उस लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश भी करता है; जैसे-कुछ युवक डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि बनना चाहते हैं। मैंने भी अपने जीवनकाल के बारे में एक स्वप्न देखा है। मैं बड़ा होकर एक चिकित्सक बनना चाहता हूँ परंतु मेरे माता-पिता मुझे इंजीनियर बनाना चाहते हैं लेकिन मैंने प्रण लिया है कि मैं बड़ा होकर एक चिकित्सक ही बनूंगा।

सब लोग समझते हैं कि चिकित्सक के व्यवसाय में खूब आय होती है तथा आज के समय में लोग धनी व्यक्ति को ही सम्मान देते हैं, लेकिन मैंने चिकित्सक बनने का लक्ष्य धन की कमाई को ध्यान में रखकर निर्धारित नहीं किया है। मैंने यह लक्ष्य इसलिए निर्धारित किया है क्योंकि में आज देखता हूँ कि अधिकांश गरीब लोगों को चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती जिसके कारण उन्हें अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा कभी-कभी तो उनके परिवार के सदस्य की बिना उपचार के असमय ही मृत्यु हो जाती है या जीवन भर रोगों से घिरे रहते हैं। मैं एक चिकित्सक बनकर इन गरीब दीन-दुखियों की सेवा में भी कुछ समय लगाना चाहता हूँ। इसका अर्थ यह नहीं कि मैं अपने परिवार के लिए कुछ नहीं कमाऊँगा। धनी व्यक्तियों से पूरी फीस लँगा, पर अपनी कमाई का कुछ भाग गरीबों के लिए खर्च करूंगा। मैं कमाई के साथ-साथ समाज सेवा करके मनुष्य के कर्तव्य को पूरा करने का प्रयास करूंगा। इससे मैं समाज सेवकों एवं उनकी संस्थाओं से संपर्क करूंगा।

मैंने पढ़ा था-
यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
मैंने इसी कथन को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है तथा इसे पढ़ाई में चुने जाने के लिए अभी से प्रयासरत रहूँगा।

4. पर्यावरण प्रदूषण
पर्यावरण दो शब्दों के मेल से बनता है। परि + आवरण, यानी वह आवरण जो हमें चारों तरफ से घेरे हुए है। नदी, पहाड़, वायु, आकाश, धरती आदि पदार्थ जो हमारे चारों ओर उपस्थित हैं, उसी का नाम पर्यावरण है। ‘प्रदूषण’ शब्द का अर्थ है-हमारे आसपास का वातावरण गंदा होना। आज प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदूषण चार प्रकार के होते हैं-ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भूमि प्रदूषण।।

भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव तथा उद्योग धंधों के लिए भूमि की कमी को पूरा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। इसी प्रकार कल-कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ ने वायु को प्रदूषित कर दिया है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला अवशिष्ट पदार्थ जब नदी आदि के पानी में बहा दिया जाता है, तो इस कारण से नदी का पानी प्रदूषित होता है और नगरों में मशीनों, वाहनों आदि के शोर से ध्वनि प्रदूषण होता है।

प्रदूषण के कारण अनेक प्रकार के रोगों का जन्म होता है। वायु प्रदूषण के कारण साँस और आँखों के रोग, खाँसी, दमा आदि होते हैं। प्रदूषित जल के सेवन करने से पेट के रोग हो सकते हैं। ध्वनि प्रदूषण से मानसिक तनाव बढ़ता है। यही नहीं प्रदूषण से उच्च रक्त चाप, हृदय रोग, एलर्जी, चर्म रोग भी हो जाते हैं।

प्रदूषण की रोकथाम के लिए यह आवश्यक है कि वनों की कटाई बंद हो, कारखाने शहरों से दूर स्थापित किए जाएँ। ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने होंगे तथा अपने आसपास साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना होगा।

5. समय का सदुपयोग
समय अमूल्य धन है। व्यक्ति के निर्माण में समय का महत्त्व असंदिग्ध है। बीता हुआ समय कभी नहीं लौटता। अतः जो व्यक्ति समय की उपेक्षा करता है समय उसका साथ छोड़कर आगे बढ़ जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि समय के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग किया जाय।

सुख और दुख भी समय की देन हैं। समय केवल उसका मित्र है जिसका जीवन का एक-एक पल बहुमूल्य है। उन्नति करने वाला व्यक्ति बेकार की बातों में अपना सयम नष्ट नहीं करता। समय का दुरुपयोग मनुष्य के लिए घातक, उन्नति में बाधक तथा पश्चाताप का कारण बनता है।

प्रत्येक कार्य को करने की एक निश्चित एवं सुदृढ़ योजना बना लेनी चाहिए, फिर उसके अनुरूप कार्य संपन्न करना चाहिए। सूर्य और चंद्रमा निर्धारित समय पर उदय-अस्त होते हैं, पूरी प्रकृति समय के अनुशासन में बँधी हुई है। संसार में जितने भी महापुरु ष हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन के एक-एक पल का उपयोग किया है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, संगीतकार, साहित्यकार समय का सम्मान करके ही बड़े बने हैं। समय का सम्मान करना ही सच्ची पूजा है। जो व्यक्ति अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता है, वही जीवन में सदैव प्रसन्न, संतुष्ट और संपन्न रहता है। अतः समय का यह महत्त्व समझकर जो व्यक्ति अपने जीवन में आचरण करते हैं, वही समाज की अगुवाई करते हैं। पूज्य एवं पथ प्रदर्शक बनते हैं।

6. प्रकाश पर्व दीपावली
त्योहारों के देश भारत में समय-समय पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं, जो व्यक्ति को अपनी संस्कृति से जोड़े रखते हैं तथा जीवन में उल्लास एवं उत्साह भर देते हैं। दीपावली भी भारतीयों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना है-दीप + अवली अर्थात दीपों की पंक्ति। इस दिन दीप जलाने का विशेष महत्त्व है इसलिए इस दिन रात को दीपक जलाकर प्रकाश किया जाता है। अतः दीपावली प्रकाश पर्व है।

दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली मनाने के विषय में अनेक मत हैं। कुछ लोगों का विचार है कि जब श्री रामचंद्र जी लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे तब उनके स्वागत की खुशी में लोगों ने घी के दीए जलाए थे, तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद और जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी को दीपावली के दिन ही मोक्ष प्राप्त हुआ था। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह इसी दिन मुगलों के कारागार से मुक्त हुए थे। दीपावली सफ़ाई और स्वच्छता का संदेश लेकर आती है। कुछ दिन पहले से ही लोग अपने घरों की सफ़ाई करने में जुट जाते हैं। उस दिन बाजार में दुकानें मिठाइयों, पटाखों और सजावट के सामान से विशेष रूप से सजी रहती है।

दीपावली के साथ पाँच त्योहार जुड़े हैं–धनतेरस, नरक चतुर्दशी, गोवर्धन पूजा और भैयादूज।

धनतेरस के दिन सोने-चाँदी के आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। छोटी दीपावली के दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। दीपावली । के दिन रात में लोग अपने-अपने घरों पर दीपकों तथा मोमबत्तियों का प्रकाश किया करते हैं। लक्ष्मीपूजन किया जाता है। बच्चे आतिशबाजी करते हैं। लोग अपने मित्रों एवं संबंधियों के घर मिठाई के साथ शुभकामनाओं तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है और उसके अगले दिन भैया-दूजे का त्योहार मनाया जाता है। हमें इस दिन जुआ। खेलने तथा शराब से दूर रहना चाहिए। दीपावली हमें आनंद एवं प्रकाश देती है, इसलिए हमें यह त्योहार सदैव मिल-जुलकर एवं सद्भावना से मनाना चाहिए।

7. खेलों का महत्त्व
खेल हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। चाहे वह बच्चा हो या जवान या बुजुर्ग सभी को खेलना अच्छा लगता है। खेलों से स्वस्थ शरीर एवं मन स्वथ्य रहता है। खेलने से हमारे शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है। यह एक प्रकार का व्यायाम भी है, जो हमारे शरीर को मजबूत और सुगठित बनाता है।

खेल दो प्रकार के होते हैं-बाहरी और भीतरी। अर्थात घर के बाहर खुले मैदान में खेले जाने वाले खेल तथा घर के अंदर खेले जाने वाले खेल। घर के अंदर खेले जाने वाले खेलों में शतरंज, कैरमबोर्ड, लूडो, साँप-सीढी आदि कई प्रकार के खेल आते हैं। कैरमबोर्ड, शतरंज, लूडो जैसे खेलों से हमारा मानसिक विकास होता है।

घर के बाहर खुले मैदान में खेले जाने वाले खेलों से हमारा मानसिक विकास होता है; जैसे फुटबॉल, क्रिकेट, टेनिस, कबड्डी, हॉकी, बास्केटबॉल, गोल्फ आदि। ये खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जा रहे हैं।

खेलने वाला व्यक्ति कुछ देर के लिए संसार के सारे झंझटों को भूल जाता है, वह निश्चित हो जाता है। इससे काम करने की शक्ति बढ़ती है तथा हमें समूह में काम करने की आदत पड़ती है। खेलों से हमारे अंदर आत्मविश्वास, सहयोग, अनुशासन, साहस, एकता आदि मानवीय गुणों का भी विकास होता है। हमें नए-नए लोगों से मिलने और समझने का अवसर मिलता है।

आज खेल-जगत में प्रसिद्धि के साथ-साथ धन भी खूब कमाया जा रहा है। इसलिए शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हमारे जीवन में खेलों का बहुत अधिक महत्त्व है।

8. ऋतुओं का राजा वसंत
भारत में छह ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि यही ऋतु सबसे अधिक सौंदर्यमयी तथा मादक होती है। इस ऋतु में पृथ्वी का कण-कण रोमांचित हो जाता है। वसंत ऋतु भी दो महीने के लिए आती है। चैत और बैशाख वसंत ऋतु के मास है। इस समय प्रकृति मानो रंग-बिरंगे फूलों की चादर ओढ़े हुए इठलाती दिखाई देती है, इस समय न तो अधिक गरमी होती है और न सरदी। पक्षियों की चहचहाहट, भंवरों की गुन-गुन आदि मधुर संगीत के समान सुनाई पढ़ते हैं। शीतल-मंद-सुगंधित पवन बहने लगती है, सरसों के फूलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो धरती ने पीली चुनरिया ओढ़ ली हो। आम वृक्षों पर बौर छा जाता है तथा कोयल का मधुर संगीत सुनाई पड़ता है।

वसंत ऋतु उल्लास, उमंग, माधुर्य, मादकता, उत्साह तथा सौंदर्य की ऋतु है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह ऋतु अत्यंत उपयोगी है। भारतीय परंपरा के अनुरूप इसी काल में नए संवत वर्ष का चक्र भी प्रारंभ होता है। यह ऋतु कवियों को बहुत प्रिय है।।

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