NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 1 | Challenges of Nation Building (राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 12
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NCERT | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
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Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 12 |
Subject: | Rajniti Vigyan |
Chapter: | 1 |
Chapters Name: | Challenges of Nation Building (राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ) |
Medium: | Hindi |
Challenges of Nation Building (राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ) | Class 12 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 Challenges of Nation Building (राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ)
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 Text Book Questions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
(क) भारत-विभाजन ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों-पंजाब और बंगाल-का बँटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर :
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।प्रश्न 2.

उत्तर :

प्रश्न 3.
(क) जूनागढ़,
(ख) मणिपुर,
(ग) मैसूर,
(घ) ग्वालियर।
उत्तर :

प्रश्न 4.
विस्मय-रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ।
इन्द्रप्रीत—यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बल प्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतन्त्र में आम सहमति से काम लिया जाता है।
देसी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?
उत्तर :
1. विस्मय की राय के सम्बन्ध में विचार-देसी रियासतों का विलय प्रायः लोकतान्त्रिक तरीके से ही हुआ क्योंकि 565 में से केवल चार-पाँच रजवाड़ों ने ही भारतीय संघ में शामिल होने से कुछ आना-कानी दिखाई थी। इनमें से भी कुछ शासक जनमत एवं जनता की भावनाओं की अनदेखी कर रहे थे। विलय से पूर्व अधिकांश रियासतों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया गया था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे। इन रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ समान रूप से चुनावी प्रक्रिया क्रियान्वित हुई। अत: विस्मय का यह विचार सही है कि भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ जनता तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ।2. इन्द्रप्रीत की राय के सम्बन्ध में विचार—यह बात ठीक है कि कुछ रियासतों (हैदराबाद और जूनागढ़) को भारत में मिलाने के लिए बल प्रयोग किया गया, परन्तु तत्कालीन परिस्थितियों में इन रियासतों पर बल प्रयोग करना आवश्यक था, क्योंकि इन रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया था तथा इनकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की थी कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को हमेशा खतरा बना रहता था। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि जो बल प्रयोग किया गया, वह इन रियासतों की जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि शासन (शासन वर्ग) के विरुद्ध किया गया क्योंकि इन दोनों राज्यों की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या भारत में विलय चाह रही थी। उन्होंने आन्दोलन शुरू कर रखा था और जब से ये रियासतें भारत में शामिल हो गईं, तब से इन रियासतों के लोगों को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार दे दिए गए।
प्रश्न 5.
आज आपने अपने सर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा…… आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा…… अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी। -मोहनदास करमचन्द गांधी
….. भारत आजादी की जिन्दगी के लिए जागेगा…… हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएँगे….. आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिन्दुस्तान अपने को फिर से पा लेगा…… आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, सम्भावनाओं के द्वार खुल रहे हैं…… -जवाहरलाल नेहरू इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेण्डा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेण्डा अँच रहा है और क्यों?
उत्तर :
मोहनदास करमचन्द गांधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए उपर्युक्त बयान राष्ट्र निर्माण की भावना से सम्बन्धित हैं।गांधी जी ने देश की जनता को चुनौती देते हुए कहा है कि देश में स्वतन्त्रता के बाद लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था कायम होगी, राजनीतिक दलों में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष होगा। ऐसी स्थिति में नागरिकों को अधिक विनम्र और धैर्यवान बनना होगा, उन्हें धैर्य से काम लेना होगा तथा चुनावों में निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देशहित को प्राथमिकता देनी होगी।
जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिया गया बयान हमें विकास के उस एजेण्डे की तरफ संकेत कर रहा है कि भारत आजादी की जिन्दगी जिएगा। यहाँ राजनीतिक स्वतन्त्रता, समानता और किसी हद तक न्याय की स्थापना हुई है लेकिन हमारे कदम पुराने ढर्रे से प्रगति की ओर बहुत धीमी गति से बढ़ रहे हैं। नि:सन्देह 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को उपनिवेशवाद का खात्मा हो गया। हिन्दुस्तान जी उठा, यह एक स्वतन्त्र हिन्दुस्तान था लेकिन आजादी मनाने का यह उत्सव क्षणिक था क्योंकि आगें बहुत समस्याएँ थीं जिनमें उनको समाप्त कर नई सम्भावनाओं के द्वार खोलना है, जिससे गरीब-से-गरीब भारतीय यह महसूस कर सके कि आजाद हिन्दुस्तान भी उसका मुल्क है। इस प्रकार नेहरू के बयान में भविष्य के राष्ट्र की कल्पना की गई है जिसमें उन्होंने एक ऐसे राष्ट्र को कल्पना की है जो आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमानी बनेगा।
उपर्युक्त दोनों कथनों में महात्मा गांधी का कथन इस दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह भविष्य में लोकतान्त्रिक शासन के समक्ष आने वाली समस्याओं के प्रति नागरिकों को आगाह करता है कि सत्ता प्राप्ति के मोह, विभिन्न प्रकार के लोभ-लालच, भ्रष्टाचार, धर्म, जाति, वंश, लिंग के आधार पर जनता में फूट डाल सकते हैं तथा हिंसा हो सकती है। ऐसी परिस्थितियों में जनता को विनम्र और धैर्यवान रहते हुए देशहित में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए।
प्रश्न 6.
उत्तर :
नेहरू जी धर्मनिरपेक्षता में पूर्ण विश्वास रखते थे, वे धर्म विरोधी या नास्तिक नहीं थे। उनकी धर्म सम्बन्धी धारणा संकुचित न होकर अधिक व्यापक थी। भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने अपने तर्क प्रस्तुत किए। ये तर्क इस प्रकार हैं “अनेक कारणों की वजह से हम इस भव्य तथा विभिन्नता से भरपूर देश को एकता के सूत्र में बाँधे रखने में सफल हुए हैं। इसमें मुख्य रूप से हमारे संविधान निर्माण तथा उनका अनुकरण करने वाले महान नेताओं की बुद्धिमत्ता तथा दूरदर्शिता है।यह बात कम महत्त्व की नहीं है कि भारतीय स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष हैं और हम प्रत्येक धर्म का अपने दिल से आदर करते हैं। भारतवासियों की भाषाई तथा धार्मिक पहचान चाहे कुछ भी हो, वे कभी भी भाषायी तथा सांस्कृतिक एकरूपता रूपी एक नीरस तथा कठोर व्यवस्था को उन पर थोपने के लिए प्रयत्न नहीं करते। हमारे लोग इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि जब तक हमारी विविधता सुरक्षित है, हमारी एकता भी सुरक्षित है। हजारों वर्ष पूर्व हमारे प्राचीन ऋषियों ने यह उद्घोषित किया था कि समस्त विश्व एक कुटुम्ब है।”
नेहरू जी की उपर्युक्त पंक्तियों में निम्नांकित तर्क हमारे समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं-
(1) नेहरू जी ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है तथा प्राचीन काल से ही यहाँ समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक विशेषताओं वाले समूह व जनसमूह विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आते रहे हैं। नेहरू जी के शब्दों में, “भारत मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि भारत के मस्तिष्क की विश्व में बहुत मान्यता है जिसके कारण भारत विदेशी प्रभावों को आमन्त्रित करता है और इन प्रभावों की अच्छाइयों को एक सुसंगत तथा मिश्रित बपौती में संश्लेषित कर लेता है। भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश में, विभिन्नता में एकता जैसे सिद्धान्त को नहीं उत्पन्न किया गया है क्योंकि यहाँ यह हजारों वर्षों से एक सभ्य सिद्धान्त बन गया है तथा यही भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है। इस विभिन्नता के प्रति न डगमगाने वाले समर्पण को निकाल देने से भारत की आत्मा ही लुप्त हो जाएगी। स्वतन्त्रता संग्राम ने इसी सभ्यता के सिद्धान्त को एक राष्ट्र की व्यावहारिक राजनीति में निर्मित करने के लिए उपयोग किया।” पं० नेहरू द्वारा प्रस्तुत यह तर्क भावनात्मक और नैतिक तो ही है साथ ही इनका आधार भी युक्तिसंगत व देश की गरिमा व अस्मिता के अनुकूल है जो राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की दृष्टि से समीचीन प्रतीत होते हैं।
(2) नेहरू जी ने देश की स्वतन्त्रता से पहले तथा संविधान निर्माण की प्रक्रिया के दौरान भी इस बात पर विशेष बल दिया था कि भारत की एकता व अखण्डता तभी अक्षुण्ण रह सकती है जबकि अल्पसंख्यकों को समान अधिकार, धार्मिक तथा सांस्कृतिक स्वतन्त्रता एवं धर्मनिरपेक्ष राज्य का वातावरण तथा विश्वास प्राप्त होता रहे। उनका तर्क था कि हम भारत में अनेक कारणों से राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सफल हुए हैं, इसी कारण भारत धर्मनिरपेक्ष व अल्पसंख्यक, भाषाई और धार्मिक समुदायों की पहचान को बचाने में सफल रहा। भारत विश्व को एक परिवार समझकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना में विश्वास करने वाला राष्ट्र रहा है।
चूँकि भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना था अत: पं० नेहरू का यह कथन पूर्ण युक्तिपरक है कि अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिमों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा। पाकिस्तान चाहे जितना भी उकसाए अथवा वहाँ के गैर-मुस्लिमों को अपमान व भय का सामना करना पड़े परन्तु हमें अपने अल्पसंख्यक भाइयों के साथ सभ्यता व शालीनता का व्यवहार करना है तथा उन्हें समस्त नागरिक अधिकार दिए जाने हैं तभी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाएगा।
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखने के लिए 15 अक्टूबर, 1947 को नेहरू जी ने देश के विभिन्न प्रान्तों के मुख्यमन्त्रियों को जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने यह तर्क दिया था कि मुस्लिमों की संख्या इतनी अधिक है कि चाहें तो भी वे दूसरे देशों में नहीं जा सकते। इस प्रकार नेहरू जी द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क भावनात्मक और नैतिक होते हुए भी युक्तिपरक हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए प्रस्तुत किए गए नेहरू जी के तर्क केवल भावनात्मक व नैतिक़ ही नहीं बल्कि युक्तिपरक भी हैं।
प्रश्न 7:
उत्तर :
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से निम्नांकित दो प्रमुख अन्तर थे-- आजादी के साथ देश के पूर्वी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी चुनौती थी।
- देश के पूर्वी क्षेत्रों में भाषाई समस्या अधिक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में धार्मिक एवं जातिवाद की समस्या अधिक थी।
प्रश्न 8.
उत्तर :
केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक आयोग बनाया। फजल अली की अध्यक्षता में गठित इस आयोग का कार्य राज्यों के सीमांकन के मामले पर कार्रवाई करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों को सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें-
- भारत की एकता व सुरक्षा की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
- राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया जाए।
- भाषाई और सांस्कृतिक सजातीयता का ध्यान रखा जाए।
- वित्तीय तथा प्रशासनिक विषयों की ओर उचित ध्यान दिया जाए।
इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए।
भारतीय संविधान में वर्णित मूल वर्गीकरण की चार श्रेणियों को समाप्त कर दो प्रकार की इकाइयाँ (स्वायत्त राज्य व केन्द्रशासित प्रदेश) रखी गई।
प्रश्न 9.
उत्तर :
भारत की एक राष्ट्र के रूप में विशेषताएँ भारत की एक राष्ट्र के रूप में प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-1. मातृभूमि के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम-मातृभूमि से प्रेम प्रत्येक राष्ट्र का स्वाभाविक लक्षण एवं विशेषता माना जाता है। एक ही स्थान या प्रदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इस प्यार के कारण वे आपस में एक भावना के अन्दर बँध जाते हैं। भारत से लाखों की संख्या में लोग विदेश में जाकर बस गए हैं लेकिन मातृभूमि से प्रेम के कारण वे सदा अपने आपको भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते हैं।
2. भौगोलिक एकता-भौगोलिक एकता भी राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करती है। जब मनुष्य कुछ समय के लिए एक निश्चित प्रदेश में रह जाता है तो उसे उस प्रदेश से प्रेम हो जाता है और यदि उसका जन्म भी उसी प्रदेश में हुआ हो तो प्यार की भावना और तीव्र हो जाती है।
3. सांस्कृतिक एकरूपता-भारतीय संस्कृति इस देश को एक राष्ट्र बनाती है। यह विभिन्नता में एकता लिए हुए है। इस संस्कृति की अपनी पहचान है। लोगों के अपने संस्कार हैं, छोटे-बड़ों का आदर करते हैं। वैवाहिक बन्धन, जाति प्रथाएँ, साम्प्रदायिक सद्भाव, सहनशीलता, त्याग, पारस्परिक प्रेम, ग्रामीण जीवन का आकर्षक वातावरण इस राष्ट्र की एकता को बनाने में अधिक सहायक रहा है।
4. सामान्य इतिहास-भारत का एक अपना राजनीतिक-आर्थिक इतिहास है। इस इतिहास का अध्ययन सभी करते हैं और इसकी गलतियों से छुटकारा पाने का प्रयास समय-समय पर सत्ताधारियों, सुधारकों, धर्म प्रवर्तकों, भक्त और सूफी सन्तों ने किया है।
5. सामान्य हित-भारत राष्ट्र के लिए सामान्य हित महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यदि लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक हित समान हों तो उनमें एकता की उत्पत्ति होना स्वाभाविक है। 18वीं शताब्दी में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए अमेरिका के विभिन्न राज्य आपस में संगठित हो गए और उन्होंने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।
6. संचार के साधनों की विभिन्न भूमिका-भारत एक राष्ट्र है। इसकी भावना को सुदृढ़ करने के लिए जनसंचार माध्यम, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिण्ट मीडिया आदि भी भारत को एक राष्ट्र बनाने में योगदान दे रहे हैं।
7. जन इच्छा-भारत का एक राष्ट्र के रूप में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में राष्ट्रवादी बनने की इच्छा भी है। मैजिनी ने लोक इच्छा को राष्ट्र का आधार बताया है।
प्रश्न 10.
राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई-समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आपमें बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य की जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। – रामचन्द्र गुहा
(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
इस अवतरण में लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच निम्नलिखित समानताओं का उल्लेख किया है-- भारत और सोवियत संघ दोनों में ही विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्ग हैं। भारत में अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं और उनकी भाषा और वेश-भूषा भी अलग-अलग है।
- भारत और सोवियत संघ दोनों राष्ट्रों को ही इन सांस्कृतिक विभिन्नताओं के बीच एकता का भाव कायम करने हेतु प्रयास करने पड़े। भारत के प्रत्येक प्रान्त की संस्कृति भिन्न है। परन्तु सभी प्रान्तों के लोग एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हैं।
- दोनों ही राष्ट्रों के निर्माण के प्रारम्भिक वर्षों में अत्यन्त संघर्ष का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत को नए राष्ट्र के निर्माण में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि आजादी साथ-साथ देश का भी विभाजन हुआ।
- दोनों ही राष्ट्रों की पृष्ठभूमि धार्मिक आधार पर बँटी हुई तथा कर्ज और बीमारी से त्रस्त थी। चूंकि भारत बहुत लम्बे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते थे तथा ब्रिटिश सरकार ने यहाँ की जनता को कर्जदार बना दिया था। धन के अभाव में वे बीमारी से छुटकारा पाने में अशक्त थे।
(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?
उत्तर :
भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच दो असमानताएँ इस प्रकार-- भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई जबकि सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई।
- भारत ने राष्ट्र-निर्माण के लिए कई प्रकार की बाहरी सहायता अर्थात् विदेशी सहायता प्राप्त की जबकि सोवियत संघ ने राष्ट्र-निर्माण के लिए आत्म-निर्भरता का सहारा लिया।
(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों?
उत्तर :
राष्ट्र-निर्माण के इन दोनों प्रयोगों में सोवियत संघ ने बेहतर काम किया अत: वह एक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आया। प्रथम विश्वयुद्ध के पहले रूस, यूरोप में एक बहुत ही पिछड़ा देश था। रूस में पूँजीवाद को समाप्त करने तथा उसे एक आधुनिक औद्योगिक राष्ट्र बनाने के लिए स्टालिन ने नियोजित आर्थिक विकास के आधार पर कार्य आरम्भ किया। रूसी क्रान्ति से समाजवादी विचारधारा की जो लहर सम्पूर्ण विश्व में बही उसने जाति, रंग और लिंग के आधार पर भेदभाव समाप्त करने में बड़ी सहायता दी। जबकि भारत में आज भी साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भ्रष्टाचार, निरक्षरता, भुखमरी जैसी समस्याएँ विद्यमान हैं और भारत आज भी एक विकासशील राष्ट्र है।NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 InText Questions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
देश के विभाजन से पूर्व बंगाल प्रान्त को दो भागों में विभाजित किया गया जिसका एक भाग पूर्वी बंगाल जो सन् 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। लेकिन सन् 1971 में यहाँ जिया उर रहमान के नेतृत्व में स्वतन्त्र बंगलादेश का निर्माण हुआ। इस प्रकार सन् 1971 के पश्चात् पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से को बंगलादेश के नाम से जाना जाता है तथा बंगाल का दूसरा भाग जो भारत में आ गया उसे पश्चिमी बंगाल कहा गया। आज तक इसका यही नाम चला आ रहा है।प्रश्न 2.
उत्तर :
जर्मनी की तरह भारत एवं पाकिस्तान के बँटवारे को समाप्त करना सम्भव नहीं है क्योंकि जर्मनी के विभाजन व भारत के विभाजन की परिस्थितियों में व्यापक अन्तर है। जर्मनी का विभाजन विचारधारा और आर्थिक कारणों के आधार पर हुआ जबकि भारत के विभाजन का आधार धर्म था अर्थात् भारत व पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ जिसमें पाकिस्तान की धार्मिक कट्टरपन्थिता की भावना विशेष महत्त्व रखती है। इस दृष्टि से इस विभाजन को समाप्त करना या दोनों देशों का एकीकरण करना प्रायः असम्भव कार्य है।प्रश्न 3.
उत्तर :
राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों में सुधार की प्रथम शर्त यही मानी जाती है कि हम एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर उनका सम्मान करें तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा-रेखा का सम्मान करें। प्रायः यह देखा गया है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव का मुख्य कारण दोनों देशों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का न होना तथा पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ करना व आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना माना जाता है। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को लेकर विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार करना तथा भारत विरोधी नीति अपनाना दोनों देशों के सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न करता है। इस प्रकार आपसी सम्बन्धों को बेहतर बनाने हेतु एक-दूसरे का सम्मान करना अति आवश्यक है।प्रश्न 4.
उत्तर :
देसी रियासतों के एकीकरण के दौरान विभिन्न छोटी-छोटी रियासतों को भारत संघ में शामिल किया गया। इन रियासतों में कुछ रियासतें तो अपनी इच्छानुसार भारत संघ में सम्मिलित हो गईं तथा कुछ को समझा-बुझाकर तथा कुछ को सैन्य व आर्थिक सहायता देकर भारत संघ में सम्मिलित करने का प्रयास किया गया। लेकिन रियासतों के एकीकरण के पश्चात् इन रियासतों के राजा, महाराजाओं के जीवन बसर के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष सहायता देने का प्रावधान दिया गया जिसमें इनको प्रतिवर्ष विशेष सहायता राशि ‘प्रिवीपर्स’ के रूप में देने की व्यवस्था की गई। यह व्यवस्था सन् 1970 तक रही। इसके पश्चात् ये व्यक्ति आम नागरिक की भाँति जीवन बसर कर रहे हैं। इनको भी संविधान द्वारा वहीं अधिकार प्रदान किए गए हैं जो एक आम नागरिक को प्राप्त है।प्रश्न 5.

(1) स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले निम्नलिखित राज्य किन मूल राज्यों के अंग थे?
(क) गुजरात,
(ख) हरियाणा,
(ग) मेघालय,
(घ) छत्तीसगढ़।
(2) देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्यों के नाम बताएँ।
(3) दो ऐसे राज्यों के नाम बताएँ जो पहले संघ-शासित राज्य थे।
उत्तर :
(1)(क) गुजरात मूलत: मुम्बई राज्य (महाराष्ट्र) का अंग था।
(ख) हरियाणा मूलत: पंजाब का अंग था।
(ग) मेघालय मूलतः असोम का अंग था।
(घ) छत्तीसगढ़ मूलत: मध्य प्रदेश का अंग था।
(2)
- पंजाब,
- बंगाल, देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले दो राज्य थे।
(3) राज्य बनने से पूर्व गोवा तथा अरुणाचल प्रदेश संघ शासित प्रदेश थे।
प्रश्न 6.
उत्तर :
राज्यों की संख्या में वृद्धि का आधार केवल जनसंख्या नहीं हो सकता। राज्यों की संख्या के निर्धारण में अनेक तत्त्वों का ध्यान रखना पड़ता है जिनमें जनसंख्या के साथ-साथ देश का क्षेत्रफल, आर्थिक संसाधन, उस क्षेत्र के लोगों की भाषा, देश की सभ्यता एवं संस्कृति, लोगों का जीवन व शैक्षणिक स्तर आदि तत्त्व प्रमुख हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का क्षेत्रफल भारत की तुलना में बहुत अधिक है तथा वह एक विकसित देश है और संसाधनों की तुलना में भी यह भारत से समृद्ध है। इस आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्यों की संख्या 50 है। भारत का क्षेत्रफल कम होने, उसका विकासशील देश होना तथा संसाधनों की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका से कम समृद्ध होना आदि ऐसे तत्त्व हैं जिनके कारण भारत में और अधिक राज्य नहीं बनाए जा सकते।NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 Other Important Questions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयाँभारत के विभाजन के लिए यह आधार तय किया गया था कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे और शेष हिस्से भारत कहलाएँगे। लेकिन व्यवहार में इस विभाजन में निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-
1. मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना-भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी अधिक थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। ऐसा कोई तरीका न था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। अत: फैसला यह हुआ कि पाकिस्तान के दो इलाके शामिल होंगे-
- पूर्वी पाकिस्तान और
- पश्चिमी पाकिस्तान। इनके मध्य में भारतीय भू-भाग का बड़ा विस्तार होगा।
2. प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना—मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो, ऐसा भी नहीं था। विशेषकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त जिसके नेता खान अब्दुल गफ्फार खाँ थे, जो द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे। अन्ततः उनकी आवाज की अनदेखी कर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त को पाकिस्तान में मिलाया गया।
3. पंजाब और बंगाल के बँटवारे की समस्या-तीसरी कठिनाई यह थी कि ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। ऐसे में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा तहसील को आधार माना जाएगा। 14-15 अगस्त मध्यरात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था। इन दोनों प्रान्तों का धार्मिक आधार पर बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी थी।
4. अल्पसंख्यकों की समस्या-सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। ये लोग इस तरह से सांसत में थे जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यकों के पास एकमात्र रास्ता यही बचा था कि वे अपने-अपने घरों को छोड़ दे। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी भरा था। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अकसर अस्थायी तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। हर हाल में अल्पसंख्यकों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा। इस प्रक्रिया में उन्हें हर तकलीफ-कत्ल, स्त्रियों से जबरन शादी, उन्हें अगवा करना, बच्चों का माँ-बाप से बिछड़ जाना, अपनी सम्पत्ति को छोड़ना आदि झेलनी पड़ी। इस तरह विभाजन में सिर्फ सम्पदा, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि इसमें दोनों समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार भी हुए।
प्रश्न 2.
अथवा भारत विभाजन के प्रमुख कारणों का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय परिस्थितियों से विवश होकर ही कांग्रेस के नेताओं ने भारत-विभाजन के साथ स्वतन्त्रता प्राप्त करना स्वीकार किया। महात्मा गांधी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि “पाकिस्तान का निर्माण उनकी लाश पर होगा।” फिर भी भारत का विभाजन होकर ही रहा। भारत-विभाजन के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ व कारण निम्नांकित रूप से वर्णित हैं-1. अंग्रेजी सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति–ब्रिटिश शासकों ने हिन्दू-मुसलमानों में निरन्तर फूट डालने हेतु ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया। वे निरन्तर हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों में कटुता लाने तथा उन्हें परस्पर विरोधी बनाने का प्रयास करते रहे। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, “पाकिस्तान के निर्माता कवि इकबाल तथा मि० जिन्ना नहीं? बल्कि लॉर्ड मिण्टो थे।” कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वाधीनता आन्दोलन में अधिकांश हिन्दुओं ने भाग लिया था इसलिए ब्रिटिश शासन ने हिन्दुओं और कांग्रेस से अपना बदला लेने के लिए मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन दिया।
2. लीग के प्रति कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति–कांग्रेस ने लीग के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई। सन् 1916 में लखनऊ पैक्ट में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकार किया गया। सिन्ध को बम्बई से पृथक् किया गया, सी० आर० फार्मले में पाकिस्तान की माँग को कछ सीमा तक स्वीकार किया गया।
3. हिन्दू-मुसलमानों में परस्पर अविश्वास की भावना-हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही जातियों के लोग परस्पर अविश्वास की भावना रखते थे। सल्तनत काल व मुगलकाल में अनेक मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए। इसलिए इन दोनों जातियों में परस्पर द्वेष की भावना थी। इसके अलावा हिन्दुओं का मुस्लिमों के प्रति सामाजिक बहिष्कार सम्बन्धी व्यवहार भी अच्छा नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसलमानों को ईसाइयों का व्यवहार हिन्दुओं की तुलना में अधिक अच्छा लगा और वे ईसाइयों के निकट होते चले गए।
4. जिन्ना की हठधर्मिता—जिन्ना द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के समर्थक थे। सन् 1940 के बाद संवैधानिक गतिरोध को दूर करने हेतु अनेक योजनाएँ प्रस्तुत की गईं परन्तु जिन्ना की पाकिस्तान निर्माण सम्बन्धी हठधर्मिता . के कारण कोई भी योजना स्वीकार नहीं की जा सकी और अन्ततः भारत और पाकिस्तान का विभाजन होकर रहा।
5. साम्प्रदायिक दंगे-जब मुस्लिम लीग को संवैधानिक साधनों से सफलता प्राप्त नहीं हुई तो उसने मुस्लिमों को साम्प्रदायिक उपद्रव करने हेतु बढ़ावा दिया तथा लीग की सीधी कार्रवाई की योजना में नोआखली और त्रिपुरा में मुसलमानों द्वारा अनेक दंगे करवाए गए। मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनुसार, “16 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में काला दिन है क्योंकि इस दिन सामूहिक हिंसा ने कलकत्ता जैसी महानगरी को हत्या, रक्तपात और बलात्कारों की बाढ़ में डुबो दिया।”
6. सत्ता के प्रति आकर्षण-भारत-विभाजन का एक कारण कांग्रेस और लीग के अनेक नेताओं का सत्ता के प्रति आकर्षण भी था। स्वतन्त्रता संघर्ष के लिए नेताओं ने अत्यन्त कष्ट सहे थे तथा उनमें और अधिक संघर्ष करने की शक्ति नहीं रह गयी थी। यदि वे माउण्टबेटन योजना को स्वीकार नहीं करते तो न जाने कितने वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें सत्ता का सुख भोगने का अवसर प्राप्त होता। माइकेल ब्रेचर के शब्दों में, “कांग्रेसी नेताओं . के सम्मुख सत्ता के प्रति आकर्षण भी था….. और विजय की घड़ी में वे इससे अलग होने के इच्छुक नहीं थे।”
7. सत्ता हस्तान्तरण के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण-भारत-विभाजन के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण यह था कि इससे भारत एक निर्बल देश हो जाएगा तथा भारत व पाकिस्तान हमेशा एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहेंगे। इस प्रकार ब्रिटेन की यह इच्छा आज भी काफी सीमा तक पूर्ण होती दिखाई दे रही है।
इस तरह उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण भारत का विभाजन हो गया। महात्मा गांधी के अनुसार, “32 वर्षों के सत्याग्रह का यह एक लज्जाजनक परिणाम था।”
प्रश्न 3.
उत्तर :
भारत का विभाजन-14-15 अगस्त, 1947 को एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए। भारत और पाकिस्तान का विभाजन दर्दनाक था तथा इस पर फैसला करना और अमल में लाना और भी कठिन था।विभाजन के कारण–
- मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ की बात की थी। इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की।
- भारत के विभाजन के पूर्व ही देश में दंगे फैल गए ऐसी स्थिति में कांग्रेस के नेताओं ने भारत-विभाजन की बात स्वीकार कर ली।
भारत-विभाजन के परिणाम भारत और पाकिस्तान विभाजन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए-
1. आबादी का स्थानान्तरण-भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद आबादी का स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा। जिन इलाकों में अधिकतर हिन्दू अथवा सिक्ख आबादी थी, उन इलाकों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी प्रकार मुस्लिम-बहुल आबादी वाले इलाकों से हिन्दू और सिक्ख भी नहीं गुजरते थे।
2. घर-परिवार छोड़ने के लिए विवश होना-विभाजन के फलस्वरूप लोग अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए तथा अक्सर अस्थायी तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। वहाँ की स्थानीय सरकार व पुलिस इन लोगों से बेरुखी का बर्ताव कर रही थी। लोगों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा और ऐसा उन्हें हर हाल में करना था, यहाँ तक कि लोगों ने पैदल चलकर यह दूरी तय की।
3. महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार-विभाजन के फलस्वरूप सीमा के दोनों तरफ हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरदस्ती शादी करनी पड़ी तथा अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई परिवारों में तो खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला। बहुत-से बच्चे अपने माता-पिता से बिछुड़ गए।
4. हिंसक अलगाववाद-विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि इस विभाजन में दो समुदाय जो अब तक पड़ोसियों की तरह रहते थे उनमें हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। सभी के लिए मारकाट अत्यन्त नृशंस थी तथा बँटवारे का मतलब था ‘दिल के दो टुकड़े हो जाना।
5. भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा-विभाजन के कारण 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा तथा वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ टेबिल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्ययन्त्रों तक का बँटवारा हुआ था। सरकारी और रेलवे कर्मचारियों का भी बँटवारा हुआ। इस प्रकार साथ-साथ रहते आए दो समुदायों के बीच यह एक हिंसक और भयावह विभाजन था।
6. अल्पसंख्यकों की समस्या विभाजन के समय सीमा के दोनों तरफ ‘अल्पसंख्यक’ थे। जिस जमीन पर वे और उनके पुरखे सदियों तक रहते आए थे उसी जमीन पर वे ‘विदेशी’ बन गए थे। जैसे ही देश का बँटवारा होने वाला था वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। इस कठिनाई से उबरने के लिए किसी के पास कोई योजना भी नहीं थी। हिंसा नियन्त्रण से बाहर हो गयी। दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों ने अपने-अपने घरों को छोड़ दिया। कई बार तो उन्हें ऐसा चन्द घण्टों के अन्दर करना पड़ा।
इस तरह भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक व त्रासदी से भरा था। सआदत हसन मंटो के अनुसार, “दंगाइयों ने चलती ट्रेन को रोक लिया। गैर मजहब के लोगों को खींच-खींचकर निकाला और तलवार तथा गोली से मौत के घाट उतार दिया। बाकी यात्रियों को हलवा, फल और दूध दिया गया।”
प्रश्न 4.
उत्तर :
राज्यों के पुनर्गठन की समस्या-राज्यों का गठन तथा पुनः संगठन स्वतन्त्र भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। उस समय भारतवर्ष छोटी-छोटी रियासतों में बँटा हुआ था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था-(i) ब्रिटिश भारत,
(ii) देसी राज्य (रजवाड़े)।
ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देसी राज्यों का शासन देसी राजाओं के हाथों में था। राजाओं ने ब्रिटिश राज की सर्वोच्च सत्ता स्वीकार कर रखी थी और इसमें वे अपने राज्य के घरेलू मामलों का शासन चलाते थे। अंग्रेजी प्रभुत्व में आने वाले भारतीय साम्राज्य के एक-तिहाई हिस्से में रजवाड़े कायम थे। प्रत्येक चार भारतीयों में से एक किसी-न-किसी रजवाड़े की प्रजा थी।
देसी राज्यों या रजवाड़ों के विलय की समस्या-स्वतन्त्रता के तुरन्त पहले ब्रिटिश-शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से स्वतन्त्र हो जाएँगे। रजवाड़ों की कुल संख्या लगभग 565 थी। ब्रिटिश शासन का यह दृष्टिकोण था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला रजवाड़ों की प्रजा को नहीं करना था बल्कि यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था। यह एक गम्भीर समस्या थी और इससे अखण्ड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था।
अनेक राजाओं ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा भी कर दी थी। रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गई कि स्वतन्त्रता के बाद भारत कई छोटे-छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का लक्ष्य एकता और आत्मनिर्णय के साथ-साथ लोकतन्त्र का रास्ता अपनाना था जबकि रजवाड़ों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया जाता था और शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे।
राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का समाधान-यद्यपि देसी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी, परन्तु पं० नेहरू, तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया। देसी रियासतों की समस्या के हल के लिए पं० नेहरू ने 27 जून, 1947 को एक विभाग की स्थापना की, जिसे राज्य विभाग कहा जाता है। पं० नेहरू ने सरदार पटेल को इस विभाग का मन्त्री एवं वी० पी० मेनन को इसका सचिव नियुक्त किया। देसी रियासतों का विलय तीन चरणों में किया गया-
(i) प्रथम चरण-एकीकरण,
(ii) द्वितीय चरण-अधिमिलन एवं
(iii) तृतीय चरण-प्रजातन्त्रीकरण।
(i) प्रथम चरण : एकीकरण-एकीकरण में वे देसी रियासतें आती हैं, जिन्होंने सरदार पटेल के परामर्श पर स्वयं ही भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया था। अधिकांश देसी रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसे ‘इन्स्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं।
(ii) द्वितीय चरण : अधिमिलन-अधिमिलन में मणिपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों को शामिल किया गया, जबकि इन्होंने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।
(iii) तृतीय चरण : प्रजातन्त्रीकरण-तृतीय चरण प्रजातन्त्रीकरण से सम्बन्धित था। देसी रियासतों को प्रजातान्त्रिक ढाँचे में ढालना भारत सरकार के लिए प्रमुख समस्या थी। इस समस्या के लिए प्रान्तों में प्रजातान्त्रिक एवं प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इन प्रान्तों में भी संसदीय शासन प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की व्यवस्था की गई।
इस तरह पं० नेहरू एवं सरदार पटेल की सूझ-बूझ से देशी रियासतों की समस्या का समाधान किया गया।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
यद्यपि भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद सन् 1951 में भारत की कुल आबादी में 12 प्रतिशत मुसलमान थे। इसके अलावा अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बी भी थे।भारत सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के लिए सहमत थे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे जिस धर्म को माने, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर ही होना चाहिए। धर्म को नागरिकता की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके इस धर्मनिरपेक्ष आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। इस तरह भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना।
प्रश्न 2.
उत्तर :
भारत के विभाजन का यह आधार तय किया गया कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे। अविभाजित भारत के ऐसे दो इलाके थे-एक इलाका पश्चिम में था जबकि दूसरा इलाका पूर्व में। इसे देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान में ये दो इलाके शामिल होंगे। ये पूर्वी पाकिस्तान तथा पश्चिमी पाकिस्तान कहलाए। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दो इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। इसलिए पाकिस्तान को दो भागों में बाँटा गया।प्रश्न 3.
उत्तर :
जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय-जूनागढ़, गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य था। जूनागढ़ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था। जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ के शासक के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी अन्तत: दिसम्बर 1947 में करवाए गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 80 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।प्रश्न 4.
उत्तर :
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय-स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के बाद हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया लेकिन हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित था। यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक रूप में निवासरत थे। इस कारण हैदराबाद का भारत में विलय अनिवार्य था। तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल की आशंका थी कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। सरदार पटेल तथा लॉर्ड माउण्टबेटन द्वारा हैदराबाद के निजाम को समझाने के प्रयासों की विफलता के बाद सरदार पटेल ने सैन्य कार्रवाई करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।प्रश्न 5.
उत्तर :
पाण्डिचेरी तथा गोवा का भारत में विलय-स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पाण्डिचेरी फ्रांस तथा गोवा पुर्तगाल के अधीन थे। फ्रांस, पाण्डिचेरी को भारत में शामिल करने के पक्ष में नहीं था। परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों ने कार्रवाई करके पाण्डिचेरी को भारत संघ में शामिल कर लिया। इसी तरहं पुर्तगाल भी गोवा से अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहता था। अतः पुर्तगाल ने भारत द्वारा पेश किए गए सभी प्रस्तावों का विरोध किया। परिणामस्वरूप 18 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन व दीव को पुर्तगाल से मुक्त कराके भारत में शामिल कर लिया। भारतीय प्रधानमन्त्री ने इसे मात्र पुलिस कार्रवाई की संज्ञा दी। सन् 1987 में गोवा भारत का 25वाँ राज्य बन गया।प्रश्न 6.
उत्तर :
राष्ट्रीय आन्दोलन की चरम स्थिति में मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ की बात की। इस सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नामक दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की। यद्यपि कांग्रेस ने द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त और पाकिस्तान की माँग का विरोध किया तथापि ब्रिटिश शासन की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के चलते कांग्रेस ने भी अन्ततः पाकिस्तान की माँग मान ली और भारत का विभाजन निश्चित हो गया।प्रश्न 7.
उत्तर :
खान अब्दुल गफ्फार खाँ को ‘सीमान्त गांधी’ कहा जाता है। वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (पेशावर के मूल निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वे कांग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के समर्थक थे। सच्चे गांधीवादी, अहिंसा व शान्ति के समर्थक होने के कारण उनको ‘सीमान्त गांधी’ कहा जाता था। वे द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के विरोधी थे। संयोग से उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।प्रश्न 8.
उत्तर :
रजवाड़ों का सहमति-पत्र-आजादी के तुरन्त पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के समाप्त होने के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से आजाद हो जाएंगे और वह अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। शान्तिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इस सहमति-पत्र को ‘इंस्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं।प्रश्न 9.
उत्तर :
राज्य पुनर्गठन आयोग-आन्ध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामलों पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए।प्रश्न 10.
उत्तर :
संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय भाषा की समस्या का समाधान-बहुभाषी संस्कृति होने के कारण देश में भाषा की समस्या सबसे महत्त्वपूर्ण थी जिसका संविधान सभा को हल निकालना था। भाषा की समस्या का ऐसा हल ढूँढने का प्रयास किया गया जिसे सभी सामान्य रूप से स्वीकार कर लें और यह प्रयास तीन वर्षों तक जारी रहा। संविधान सभा की अन्तिम बैठक के प्रारम्भ में सभा के अध्यक्ष डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि भाषायी प्रावधानों को मतदान के लिए नहीं रखेंगे क्योंकि यदि कोई निर्णय देश को स्वीकार न हुआ तो उसको लागू करना कठिन होगा। लम्बे वाद-विवाद के बाद भाषा की समस्या पर निर्णय लिए गए और इस प्रकार संविधान सभा में भाषा की समस्या का समाधान किया गया। जहाँ तक राष्ट्रीय भाषा का प्रश्न है तो उस पर यह सहमति बनी कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया जाएगा। अतिलघउत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने तीन प्रमुख चुनौतियाँ थीं-- भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम करना।
- लोकतान्त्रिक व्यवस्था को लागू करना।
- आर्थिक विकास तथा गरीबी को समाप्त करने हेतु नीति निर्धारित करना।
प्रश्न 2.
उत्तर :
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का आधार तय किया गया कि धार्मिक बहुसंख्या के आधार पर विभाजन होगा। अर्थात् जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे क्षेत्र ‘पाकिस्तान’ के भू-भाग होंगे तथा शेष भाग ‘भारत’ कहलाएँगे।प्रश्न 3.
उत्तर :
विभिन्न रजवाड़ों या रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस सहमति-पत्र को ‘इंस्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ यह था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं।प्रश्न 4.
उत्तर :
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् रजवाड़ों को भी कानूनी तौर पर स्वतन्त्र होना था। ब्रिटिश शासन का नजरिया यह था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ अथवा स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था। यह एक गम्भीर समस्या व चुनौती थी।प्रश्न 5.
उत्तर :
भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु सन् 1951 के वक्त भारत में 12% मुसलमान थे फिर भी लोकतान्त्रिक भारत में मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी और यहूदियों के साथ समानता का व्यवहार किया गया। अत: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना।प्रश्न 6.
उत्तर :
मुस्लिम बहुल हर क्षेत्र पाकिस्तान में जाने को तैयार नहीं था। खान अब्दुल गफ्फार खाँ (सीमान्त गांधी) पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के निर्विवाद नेता थे तथा वे ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ के खिलाफ थे। उनके विचारों पर अमल नहीं किया गया तथा ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।प्रश्न 7.
उत्तर :
‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल के अनेक भागों में बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। अत: निर्णय हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हल्के को आधार बनाया जाएगा।प्रश्न 8.
उत्तर :
मुस्लिम लीग के द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की और यह माँग मान ली गयी।प्रश्न 9.
उत्तर :
- अनेक परिवारों के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों तक को मार डाला। बहुत-से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछुड़ गए।
- वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ टेबल-कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्य यन्त्रों तक का बँटवारा हुआ।
प्रश्न 10.
उत्तर :
राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता एक पन्थनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर थे क्योंकि वे जानते थे कि बहुधर्मावलम्बी देश भारत में किसी धर्म विशेष को संरक्षण देना भारत की एकता के लिए बाधक बनेगा तथा इससे विविध धर्मावलम्बियों के मूल अधिकारों का हनन होगा।बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
(a) 565
(b) 570
(c) 580
(d) 562
उत्तर :
(a) 565प्रश्न 2.
(a) भारतीय जनता पार्टी
(b) मुस्लिम लीग
(c) कांग्रेस
(d) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।
उत्तर :
(b) मुस्लिम लीग।प्रश्न 3.
(a) सन् 1953 में
(b) सन् 1954 में
(c) सन् 1955 में
(d) सन् 1956 में।
उत्तर :
(a) सन् 1953 में।प्रश्न 4.
(a) पं० जवाहरलाल नेहरू
(b) महात्मा गांधी
(c) सरदार पटेल
(d) गोपालकृष्ण गोखले।
उत्तर :
(c) सरदार पटेल।प्रश्न 5.
(a) 15 अगस्त, 1947
(b) 26 जनवरी, 1950
(c) 14 अगस्त, 1948
(d) 19 जून, 1951
उत्तर :
(b) 26 जनवरी, 1950प्रश्न 6.
(a) महात्मा गांधी
(b) मुहम्मद अली जिन्ना
(c) सीमान्त गांधी
(d) मौलाना आजाद।
उत्तर :
(c) सीमान्त गांधी।प्रश्न 7.
(a) 14
(b) 15
(c) 16
(d) 17
उत्तर :
(a) 14प्रश्न 8.
(a) औद्योगिक विकास
(b) निर्धनता
(c) बेरोजगारी
(d) भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना।
उत्तर :
(d) भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना।प्रश्न 9.
(a) सन् 1971 में
(b) सन् 1974 में
(c) सन् 1976 में
(d) सन् 1978 में।
उत्तर :
(a) सन् 1971 में।प्रश्न 10.
(a) पंजाब और हरियाणा
(b) महाराष्ट्र और गुजरात
(c) असम और मेघालय
(d) मध्य प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश।
उत्तर :
(b) महाराष्ट्र और गुजरात।NCERT Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)
Class 12 Rajniti Vigyan Chapters | Rajniti Vigyan Class 12 Chapter 1
NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
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( भाग ‘अ’ – समकालीन विश्व राजनीति)
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(समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व)
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(सत्ता के वैकल्पिक केंद्र)
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(अंतर्राष्ट्रीय संगठन)
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(समकालीन विश्व में सुरक्षा)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 8 Environment and Natural Resources
(पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 9 Globalisation
(वैश्वीकरण)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Politics In India Since Independence
(भाग ‘ब’ – स्वतंत्र भारत में राजनीति)
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NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 1 Challenges of Nation Building
(राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 2 Era of One Party Dominance
(एक दल के प्रभुत्व का दौर)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 3 Politics of Planned Development
(नियोजित विकास की राजनीति)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 4 India’s External Relations
(भारत के विदेश संबंध)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 5 Challenges to and Restoration of Congress System
(कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
(लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 7 Rise of Popular Movements
(जन आन्दोलनों का उदय)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 8 Regional Aspirations
(क्षेत्रीय आकांक्षाएँ)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics
(भारतीय राजनीति : नए बदलाव)
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