NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 7

NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 7 | Rise of Popular Movements (जन आन्दोलनों का उदय) 

NCERT Solutions for Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 7 Rise of Popular Movements (जन आन्दोलनों का उदय)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 12

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NCERT | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)

NCERT Solutions Class 12 Rajniti Vigyan
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12
Subject: Rajniti Vigyan
Chapter: 7
Chapters Name: Rise of Popular Movements (जन आन्दोलनों का उदय)
Medium: Hindi

Rise of Popular Movements (जन आन्दोलनों का उदय) | Class 12 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions

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NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 Rise of Popular Movements (जन आन्दोलनों का उदय)

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 Text Book Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.

चिपको आन्दोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से कथन गलत हैं-
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आन्दोलन था।
(ख) इस आन्दोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।
(घ) इस आन्दोलन की माँग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण होना चाहिए।

उत्तर :

(क) सही,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही।

प्रश्न 2.

नीचे लिखे कुछ कथन गलत हैं। इनकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को हानि पहुंचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आन्दोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आन्दोलनों का उदय हुआ।

उत्तर :

(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को बढ़ावा दे रहे हैं।
(ख) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।
(ग) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।

प्रश्न 3.

उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में ( अब उत्तराखण्ड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आन्दोलन का जन्म हुआ? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर :

1970 के दशक में उत्तर प्रदेश के उत्तरांचल (उत्तराखण्ड) क्षेत्र में चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक (लिपट) जाना अर्थात् पेड़ को आलिंगनबद्ध कर लेना।

चिपको आन्दोलन के कारण-चिपको आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे—

(1) चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब वन विभाग ने खेती-बाड़ी के औजार बनाने के लिए ‘Ashtree’ काटने की अनुमति नहीं दी तथा खेल सामग्री बनाने वाली एक व्यावसायिक कम्पनी को यह पेड़ काटने की अनुमति प्रदान की गई। इससे गाँव वालों में रोष उत्पन्न हुआ और गाँव वाले वनों की इस कटाई का विरोध करते हुए जंगल में एकत्रित हो गए तथा पेड़ों से चिपक गए, जिससे ठेकेदारों के कर्मचारी पेड़ों को काट न सकें। इस घटना का पूरे देश में प्रसार हुआ।

(2) गाँव वालों ने माँग रखी कि वन कटाई का ठेका किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए तथा स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक साधनों पर उपयुक्त नियन्त्रण होना चाहिए।

(3) चिपको आन्दोलन का एक अन्य कारण पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखना था। गाँववासी चाहते थे कि इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी सन्तुलन को हानि पहुँचाए बिना विकास किया जाए।

(4) ठेकेदारों द्वारा शराब की आपूर्ति करने का विरोध के रूप में यह आन्दोलन उठा। इस क्षेत्र में वनों की कटाई के दौरान ठेकेदार यहाँ के पुरुषों को शराब आपूर्ति का व्यवसाय भी करते थे। अतः स्त्रियों ने शराबखोरी की लत के विरोध में भी आवाज बुलन्द की।

प्रभाव-चिपको आन्दोलन को देश में व्यापक सफलता प्राप्त हुई और सरकार ने पन्द्रह वर्षों के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी ताकि इस अवधि में क्षेत्र का वनाच्छादन फिर से ठीक अवस्था में आ जाए। इस आन्दोलन की सफलता ने भारत में चलाए गए अन्य आन्दोलनों को भी प्रभावित किया। इस आन्दोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता के आन्दोलन चलाए गए।

प्रश्न 4.

भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?

उत्तर :

1990 के दशक में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने भारतीय किसानों की दुर्दशा सुधारने हेतु अनेक मुद्दों पर बल दिया, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. बिजली की दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया।
  2. 1980 के दशक में उत्तरार्द्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण के प्रभाव को देखते हुए नगदी फसलों के सरकारी खरीद मूल्यों में बढ़ोतरी की माँग की।
  3. कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबन्दियों को हटाने पर बल दिया।
  4. किसानों के लिए पेन्शन का प्रावधान करने की माँग की।

सफलताएँ – भारतीय किसान यूनियन को निम्नलिखित सफलताएँ प्राप्त हुईं-

(1) बीकेयू (BKU) जैसी माँगें देश के अन्य किसान संगठनों ने भी उठायीं। महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आन्दोलन को इण्डिया की ताकतों (यानी शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ ‘भारत’ (यानी ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम करार दिया।

(2) 1990 के दशक में बीकेयू ने अपनी संख्या बल के आधार पर एक दबाव समूह की तरह कार्य किया तथा अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी मांगें मनवाने में सफलता पायी।

(3) यह आन्दोलन मुख्य रूप से देश के समृद्ध राज्यों में सक्रिय था। खेती को अपनी जीविका का आधार बनाने वाले अधिकांश भारतीय किसानों के विपरीत बीकेयू जैसे संगठनों के सदस्य बाजार के लिए नगदी फसल उगाते थे। बीकेयू की तरह राज्यों के अन्य किसान संगठनों ने अपने सदस्य बनाए, जिनका क्षेत्र की चुनावी राजनीति से सम्बन्ध था। महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन और कर्नाटक का रैयत संघ ऐसे किसान संगठनों के जीवन्त उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.

आन्ध्र प्रदेश में चले शराब-विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान कुछ गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे?

उत्तर :

आन्ध्र प्रदेश में चले शराब-विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान निम्नलिखित गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा-

  1. शराब पीने से पुरुषों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य कमजोर होता है।
  2. शराब पीने से व्यक्ति की कार्यक्षमता प्रभावित होती है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
  3. शराबखोरी से ग्रामीणों पर कर्ज का बोझ बढ़ता है।
  4. शराबखोरी से कामचोरी की आदत बढ़ती है।
  5. शराब माफिया के सक्रिय होने से गाँवों में अपराधों को बढ़ावा मिलता है तथा अपराध और राजनीति के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बनता है।
  6. शराबखोरी से परिवार की महिलाओं से मारपीट एवं तनाव को बढ़ावा मिलता है।
  7. शराब विरोधी आन्दोलन ने महिलाओं के मुद्दों-दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल व सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न, लैंगिक असमानता आदि के प्रति समाज में जागरूकता उत्पन्न की।

प्रश्न 6.

क्या आप शराब-विरोधी आन्दोलनको महिला-आन्दोलन का दर्जा देंगे? कारण बताएँ।

उत्तर :

शराब-विरोधी आन्दोलन को महिला-आन्दोलन का दर्जा दिया जा सकता है क्योंकि अब तक जितने भी शराब-विरोधी आन्दोलन हुए उनमें महिलाओं की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण रही है। शराबखोरी से सर्वाधिक परेशानी महिलाओं को होती है। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है, परिवार में तनाव व मारपीट का वातावरण बनता है। तनाव के चलते पुरुष शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। इन्हीं कारणों से शराब-विरोधी आन्दोलनों का प्रारम्भ प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता रहा है। अत: शराब-विरोधी आन्दोलन को महिला-आन्दोलन भी कहा जा सकता है।

प्रश्न 7.

नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजना का विरोध क्यों किया?

उत्तर :

नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजना का विरोध अग्रलिखित कारणों से किया-

  1. बाँध निर्माण से प्राकृतिक नदियों व पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है।
  2. जिस क्षेत्र में बाँध बनाए जाते हैं वहाँ रह रहे गरीबों के घर-बार, उनकी खेती योग्य भूमि, वर्षों से चले आ रहे कुटीर-धन्धों पर भी बुरा असर पड़ता है।
  3. प्रभावित गाँवों के करीब ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मामला उठाया जा रहा था।
  4. परियोजना पर किए जाने वाले व्यय में हेरा-फेरी के दोषों को उजागर करना भी परियोजना विरोधी स्वयं सेवकों का उद्देश्य था।
  5. आन्दोलनकर्ता प्रभावित लोगों को आजीविका और उनकी संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण को बचाना चाहते थे। वे जल, जंगल और जमीन पर प्रभावित लोगों का नियन्त्रण या इन्हें उचित मुआवजा और उनका पुनर्वास चाहते थे।

प्रश्न 8.

क्या आन्दोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतन्त्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।

उत्तर :

अहिंसक और शान्तिपूर्ण आन्दोलनों एवं विरोध की कार्रवाइयों ने लोकतन्त्र को नुकसान नहीं बल्कि मजबूत किया है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

1.चिपको आन्दोलन-अहिंसक और शान्तिपूर्ण तरीके से चलाया गया यह एक व्यापक जन आन्दोलन था। इससे पेड़ों की कटाई, वनों का उजड़ना रुका। पशु-पक्षियों और जनता को जल, जंगल, जमीन और स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण मिला। सरकार लोकतान्त्रिक माँगों के समक्ष झुकी।

2. वामपन्थियों द्वारा चलाए गए किसान और मजदूर आन्दोलनों द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी और सरकार को सर्वहारा वर्ग की उचित माँगों के लिए जगाने में सफलता मिली।

3. दलित पैंथर्स नेताओं द्वारा चलाए गए आन्दोलनों, लिखे गए सरकार विरोधी साहित्यकारों की कविताओं और रचनाओं ने आदिवासी, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों में चेतना पैदा की। दलित पैंथर्स राजनीतिक दल और संगठन बने। जाति भेद-भाव और छुआछूत जैसी बुराइयों को दूर किया गया। समाज में समानता, स्वतन्त्रता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनीतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।

4. ताड़ी-विरोधी आन्दोलन ने नशाबन्दी और मद्य-निषेध के विरोध का वातावरण तैयार किया। महिलाओं से जुड़ी अनेक समस्याएँ; जैसे-यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा और महिलाओं को विधायिका में दिए जाने वाले आरक्षण के मामले उठे। संविधान में कुछ संशोधन हुए और कानून बनाए गए।

प्रश्न 9.

दलित पैंथर्स ने कौन-कौन से मुद्दे उठाए?

उत्तर :

दलित पैंथर्स बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों में दलित शिक्षित युवा वर्ग का आन्दोलन था। इसमें ज्यादातर शहर की झुग्गी-बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित पैंथर्स ने दलित समुदाय से सम्बन्धित सामाजिक असमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दे उठाए।

प्रश्न 10.

निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें
… लगभग सभी नए सामाजिक आन्दोलन नयी समस्याओं; जैसे-पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन….. के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपने आप में समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था। इस अर्थ में ये आन्दोलन अतीत की क्रान्तिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग हैं। लेकिन, ये आन्दोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है….. सामाजिक आन्दोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आन्दोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो जाता है। ये आन्दोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्त्वों से भरे हैं, अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। ‘इस’ या ‘उस’ के विरोध (पश्चिम-विरोधी, पूँजीवाद-विरोधी, ‘विकास’-विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हों-ऐसी बात नहीं। – रजनी कोठारी
(क) नए सामाजिक आन्दोलन और क्रान्तिकारी विचारधाराओं में क्या अन्तर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आन्दोलनों की सीमाएँ क्या-क्या हैं?
(ग) यदि सामाजिक आन्दोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ‘बिखरा’ हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केन्द्रित हैं। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।

उत्तर :

(क) सामाजिक आन्दोलन समाज से जुड़े हुए मामलों अथवा समस्याओं को उठाते हैं; जैसे-जाति भेदभाव, रंग भेदभाव, लिंग भेदभाव के विरोध में चलाए जाने वाले सामाजिक आन्दोलन। इसी प्रकार ताड़ी विरोधी आन्दोलन, सभी को शिक्षा, सामाजिक न्याय और समानता के लिए चलाए जाने वाले आन्दोलन आदि।

जबकि क्रान्तिकारी विचारधारा के लोग तुरन्त सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में बदलाव लाना चाहते हैं। वे लक्ष्यों को ज्यादा महत्त्व देते हैं, तरीकों को नहीं। मार्क्सवादी-लेनिनवादी या नक्सलवादी आन्दोलन को क्रान्तिकारी विचारधारा के आन्दोलन मानते हैं।

(ख) सामाजिक आन्दोलन बिखरे हुए हैं तथा इसमें एकजुटता का अभाव पाया जाता है। सामाजिक आन्दोलनों के पास सामाजिक बदलाव में लिए कोई ढाँचागत योजना नहीं है।

(ग) सामाजिक आन्दोलनों द्वारा उठाए गए विशिष्ट मुद्दों के कारण यह कहा जा सकता है कि ये आन्दोलन अपने मुद्दों पर अधिक केन्द्रित हैं।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 InText Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

है तो यह बड़ी शानदार बात! लेकिन कोई मुझे बताए कि हम जो यहाँ राजनीति का इतिहास पढ़ रहे हैं, उससे यह बात कैसे जुड़ती है?

उत्तर :

सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों में जन आन्दोलनों की शानदार उपलब्धि रही है। चिपको आन्दोलन में उत्तराखण्ड के एक गाँव के स्त्री एवं पुरुषों ने पर्यावरण की सुरक्षा और जंगलों की कटाई का विरोध करने के लिए एक अनूठा प्रयास किया, जिसमें इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाँह में भर लिया ताकि उनको काटने से बचाया जा सके। इस आन्दोलन को व्यापक सफलता प्राप्त हुई।

जन आन्दोलनों का राजनीति से सम्बन्ध का पुराना इतिहास रहा है। जन आन्दोलन कभी राजनीतिक तो कभी सामाजिक आन्दोलन का रूप ले सकते हैं और अकसर यह दोनों ही रूपों में नजर आते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन को ही लें तो यह मुख्य रूप से राजनीतिक आन्दोलन था लेकिन औपनिवेशक काल में सामाजिक-आर्थिक मसलों पर भी विचार मन्थन चला जिससे अनेक स्वतन्त्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ; जैसे-जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठनों के आन्दोलन। इन आन्दोलनों ने सामाजिक संघर्षों के कुछ अन्दरूनी मुद्दे उठाए।

ऐसे ही कुछ आन्दोलन आजादी के बाद के दौर में भी चलते रहे। मुम्बई, कोलकाता और कानपुर जैसे बड़े शहरों के औद्योगिक मजदूरों के बीच मजदूर संगठनों के आन्दोलनों का बड़ा जोर था। सभी बड़ी पार्टियों ने इस तबके के मजदूरों को लामबन्द करने के लिए अपने-अपने मजदूर संगठन बनाए।

प्रश्न 2.

गैर-राजनीतिक संगठन? मैं यह बात कुछ समझा नहीं। आखिर, पार्टी के बिना राजनीति कैसे की जा सकती है?

उत्तर :

सामान्यत: गैर-राजनीतिक संगठन ऐसे संगठन हैं जो दलगत राजनीति से दूर स्थानीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़े हुए होते हैं तथा सक्रिय राजनीति में भाग लेने की अपेक्षा एक दबाव समूह की तरह कार्य करते हैं।

औपनिवेशिक दौर में सामाजिक-आर्थिक मसलों पर भी विचार मन्थन चला जिससे अनेक स्वतन्त्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ; जैसे-जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठनों के आन्दोलन। ये आन्दोलन 20वीं सदी के प्रारम्भ में अस्तित्व में आए। मुम्बई, कोलकाता और कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में मजदूर संगठनों के आन्दोलनों का जोर था। इनका मुख्य जोर आर्थिक अन्याय और असमानता के मसले पर रहा। ये सभी गैर-राजनीतिक संगठन थे और इन्होंने अपनी माँगें मनवाने के लिए आन्दोलनों का सहारा लिया।

यद्यपि ऐसे गैर-राजनीतिक संगठनों ने औपचारिक रूप से चुनावों में भाग तो नहीं लिया लेकिन राजनीतिक दलों से इनका सम्बन्ध नजदीकी रहा। इन आन्दोलनों में सम्मिलित हुए कई व्यक्ति और संगठन राजनीतिक दलों में भी सक्रिय हुए।

प्रश्न 3.

क्या दलितों की स्थिति इसके बाद से ज्यादा बदल गई है? दलितों पर अत्याचार की घटनाओं के बारे में मैं रोजाना सुनती हूँ। क्या यह आन्दोलन असफल रहा? या, यह पूरे समाज की असफलता है?

उत्तर :

दलितों की स्थिति में सुधार हेतु सन् 1972 में शिक्षित दलित युवा वर्ग ने महाराष्ट्र में एक आन्दोलन चलाया, जिसे दलित पैंथर्स आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन के माध्यम से दलितों की स्थिति सुधारने हेतु अनेक प्रयास किए गए। इस आन्दोलन का उद्देश्य जाति प्रथा को समाप्त करना तथा गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन तैयार करना था।

यद्यपि इस आन्दोलन द्वारा शिक्षित युवा वर्ग ने काफी प्रयास किया, लेकिन अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो पायी। भारतीय संविधान में छुआछूत की प्रथा को समाप्त कर दिया गया। इसके बावजूद भी पुराने जमाने में जिन जातियों को अछूत माना गया था, उनके साथ नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बर्ताव कई रूपों में जारी रहा। दलितों की बस्तियाँ मुख्य गाँव से अब भी दूर थीं, दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते थे। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-मोटी बात को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म ढाए जाते थे।

प्रश्न 4.

मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो कहे कि मैं किसान बनना चाहता हूँ। क्या हमें अपने देश में किसानों की जरूरत नहीं है?

उत्तर :

यद्यपि भारत एक कृषि-प्रधान देश है और भारतीय अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा कृषि पर आधारित है, लेकिन संसाधनों के अभाव व वर्षा आधारित कृषि होने के कारण किसानों को इस कार्य में पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा जनाधिक्य व कृषिगत क्षेत्र की सीमितता के कारण इस क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी जैसी समस्या आम बात हो गई है। आम नागरिक को इस क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य नजर नहीं आ रहा है। इसलिए लोग कृषिगत कार्यों की अपेक्षा अन्य कार्यों में अधिक रुचि लेने लगे हैं।

प्रश्न 5.

क्या आन्दोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जा सकता है? आन्दोलनों के दौरान नए प्रयोग किए जाते हैं और सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल अपना लेते हैं।

उत्तर :

जन-आन्दोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जन-आन्दोलन कभी सामाजिक तो कभी राजनीतिक आन्दोलन का रूप ले सकते हैं। भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति पूर्व और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अनेक जन-आन्दोलन हुए, जिन्होंने बाद में राजनीतिक रूप ग्रहण कर लिया। भारत के स्वाधीनता आन्दोलन को इसका उदाहरण माना जा सकता है।

इसी प्रकार भारत की स्वतन्त्रता के उपरान्त प्रारम्भिक वर्षों में दक्षिण भारत के आन्ध्र प्रदेश के अन्तर्गत आने वाले तेलंगाना क्षेत्र के किसान कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में लामबन्द हुए। इन्होंने काश्तकारों के बीच जमीन के पुनर्वितरण की माँग की। आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में किसान तथा कृषि मजदूरों ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में अपना विरोध जारी रखा। ऐसे आन्दोलनों ने औपचारिक रूप से चुनावों में भाग तो नहीं लिया लेकिन राजनीतिक दलों से इनका नजदीकी रिश्ता कायम हुआ। इन आन्दोलनों में शामिल कई व्यक्ति और संगठन राजनीतिक दलों में सक्रिय रूप से जुड़े। ऐसे जुड़ाव से दलगत राजनीति में विभिन्न सामाजिक तबकों की बेहतर नुमाइन्दगी सुनिश्चित हुई।

इस प्रकार जन-आन्दोलनों और राजनीति का गहरा नाता रहा है। आन्दोलनों के दौरान किए जाने वाले सफल प्रयोगों को राजनीतिक दल अपना लेते हैं।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 Other Important Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् होने वाले प्रमुख किसान आन्दोलनों की विवेचना कीजिए।

उत्तर :

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् किसान आन्दोलन
भारत एक कृषि-प्रधान देश है। भारतीय अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा कृषि पर निर्भर है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने कृषकों की दशा सुधारने हेतु अनेक प्रयास किए, फिर भी कृषकों की माँगें पूरी नहीं हो पायीं और उन्होंने आन्दोलन का सहारा लिया। इनमें से कुछ आन्दोलन निम्नलिखित हैं-

1. तिभागा आन्दोलन-तिभागा आन्दोलन सन् 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यत: जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बटाईदारों का संयुक्त आन्दोलन था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण सन् 1943 में बंगाल में पड़ा भीषण अकाल था। इस आन्दोलन के कारण कई गाँवों में किसान सभा का शासन स्थापित हो गया परन्तु औद्योगिक मजदूर वर्ग और मझोले किसानों के समर्थन के बिना यह शीघ्र ही समाप्त हो गया।

2. तेलंगाना आन्दोलन-तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में सन् 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। इस आन्दोलन में किसानों ने माँग की कि उनके सभी ऋण माफ कर दिए जाएँ परन्तु जमींदारों ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। क्रान्तिकारी किसानों ने पाँच हजार गुरिल्ला किसान तैयार किए और जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। गुरिल्ला सैनिकों ने जमींदारों के हथियार छीन लिए और उन्हें भगा दिया लेकिन भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।

3. आधुनिक किसान आन्दोलन-अपने हितों की रक्षा के लिए किसान समय-समय पर आन्दोलन करते रहते हैं। पिछले कई वर्षों से कपास के दामों में कमी होने के कारण कपास उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब आदि के किसानों में असन्तोष फैल गया। मार्च 1987 में गुजरात के किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए विधानसभा का घेराव करने की योजना बनाई। सरकार ने गुजरात विधानसभा (गांधीनगर) की किलेबन्दी कर दी। पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और किसानों ने पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध ग्राम बन्द करने की अपील की, जिसके कारण गुजरात के अनेक शहरों में दूध और सब्जी की समस्या कई दिनों तक रही।

किसान आन्दोलनों का मूल्यांकन स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी किसानों की समस्या वैसी ही बनी हुई है जैसी कि ब्रिटिशकाल में थी। इससे स्पष्ट होता है कि स्वतन्त्रता से पूर्व और स्वतन्त्रता के बाद किए गए सभी किसान आन्दोलन असफल रहे। इन किसान आन्दोलनों की असफलता के महत्त्वपूर्ण कारक हैं-किसान आन्दोलनों में संगठन की कमी, किसानों में अज्ञानता, अन्धविश्वास, क्रान्तिकारी तथा उद्देश्यपूर्ण विचारधारा की कमी और योग्य नेतृत्व का अभाव।

प्रश्न 2.

जन-आन्दोलन के मुख्य कारणों का उल्लेख करते हुए भारतीय राजनीति पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

जन-आन्दोलन के प्रमुख कारण जन-आन्दोलन के अनेक कारण उत्तरदायी थे, जिनमें से प्रमुख अग्रलिखित हैं-

1. राजनीतिक दलों के आचार-व्यवहार से मोह भंग होना-सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों के आचार-व्यवहार से मोह भंग हो गया। गैर-कांग्रेसवाद या जनता पार्टी की असफलता से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया। इससे दल-रहित जन-आन्दोलनों का उदय हुआ।

2. सरकार की आर्थिक नीतियों से मोह भंग होना-सरकार की आर्थिक नीतियों से भी लोगों का मोह भंग हुआ क्योंकि गरीबी और असमानता बड़े पैमाने पर बनी रही। आर्थिक संवृद्धि का लाभ समाज के हर तबके को समान रूप से नहीं मिला। जाति और लिंग आधारित साम्प्रदायिक असमानताओं ने गरीबी के मुद्दे को और ज्यादा जटिल और धारदार बना दिया। समाज के विभिन्न समूहों के बीच अपने साथ हो रहे अन्याय और वंचना का भाव प्रबल हुआ।

3. लोकतान्त्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से विश्वास उठना-राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतान्त्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया। ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध को स्वर देने के लिए इन्होंने आवाम को लामबन्द करना शुरू कर दिया। दलित पैंथर्स आन्दोलन, किसान आन्दोलन, ताड़ी विरोध आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन आदि इसी तरह के जनआन्दोलन थे।

भारतीय राजनीति पर जन-आन्दोलनों का प्रभाव भारतीय राजनीति पर जन-आन्दोलनों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े-

  1. इन सामाजिक आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के जरिये हल नहीं कर पा रहे थे।
  2. विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए ये आन्दोलन अपनी बात रखने को बेहतर माध्यम बनकर उभरे।
  3. समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आन्दोलनों ने एक तरह से लोकतन्त्र की रक्षा की है तथा सक्रिय भागीदारी के नए रूपों के प्रयोग ने भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।
  4. ये आन्दोलन जनता की उचित माँगों के प्रतिनिधि बनकर उभरे हैं और इन्होंने नागरिकों के एक बड़े समूह को अपने साथ जोड़ने में सफलता हासिल की है।

प्रश्न 3.

भारत में स्त्रियों के उत्थान के लिए उठाए गए कदमों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

भारत में स्त्रियों के उत्थान के लिए उठाए गए कदम

भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्त्रियों की दशा में सुधार लाने के लिए अनेक कदम उठाए गए, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

1. महिला अपराध प्रकोष्ठ तथा परिवार न्यायपालिका-इस विभाग का मुख्य कार्य महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए सुनवाई करना तथा विवाह, तलाक, दहेज व पारिवारिक विवादों को सुलझाना है।

2. सरकारी कार्यालयों में महिलाओं की भर्ती-वर्तमान में लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। वायु सेना, नौ सेना तथा थल सेना और सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों में अधिकारी पदों पर स्त्रियों की भर्ती पर लगी रोक को हटा लिया गया है। सभी क्षेत्रों में महिलाएँ कार्य कर रही हैं।

3. स्त्री शिक्षा-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में स्त्री शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है।

4. राष्ट्रीय महिला आयोग-सन् 1990 के एक्ट के अन्तर्गत एक राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई है। महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, असम एवं गुजरात राज्यों में भी महिला आयोगों की स्थापना की जा चुकी है। ये आयोग महिलाओं पर हुए अत्याचार, उत्पीड़न, शोषण तथा अपहरण आदि के मामलों की जाँच-पड़ताल करते हैं। सभी राज्यों में महिला आयोग स्थापित किए जाने की माँग जोर पकड़ रही है और इन आयोगों को प्रभावी बनाने की माँग भी जोरों पर है।

5. महिला आरक्षण-महिलाएँ कुल आबादी की लगभग 50 प्रतिशत हैं। लेकिन सरकारी कार्यालयों, संसद, राज्य विधानमण्डलों आदि में इनकी संख्या बहुत कम है। सन् 1993 के 73वें व 74वें संविधान संशोधन । द्वारा पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं में एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। संसद और राज्य विधानमण्डलों में भी इसी प्रकार आरक्षण किए जाने की माँग जोर पकड़ रही है। यद्यपि इस ओर प्रयास किया जा रहा है; परन्तु सर्वसम्मति के अभाव में यह विधेयक संसद में पारित नहीं हो पाया है।

उपर्युक्त प्रयासों के अलावा अखिल भारतीय महिला परिषद् तथा कई अन्य महिला संगठन स्त्रियों को अत्याचार उत्पीड़न और अन्याय से बचाने, उन पर अत्याचार तथा बलात्कार करने वाले अपराधियों को दण्ड दिलवाने तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं की स्थिति में क्या परिवर्तन आया? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं की स्थिति को असमानता से समानता तक लाने के जागरूक प्रयास होते रहे हैं। वर्तमान काल में महिलाओं को पुरुषों के समान समानता का दर्जा प्राप्त है। महिलाएँ किसी भी प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण को चुनने के लिए स्वतन्त्र हैं; परन्तु ग्रामीण समाज में अभी भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है जिसे दूर किए जाने की आवश्यकता है। यद्यपि कानूनी तौर पर महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किए गए हैं परन्तु आदिकाल से चली आ रही पुरुष प्रधान व्यवस्था में व्यावहारिक रूप में महिलाओं के साथ अभी भी भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 2.

राष्ट्रीय महिला आयोग को समझाइए।

उत्तर :

राष्ट्रीय महिला आयोग भारत में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए सन् 1990 में संसद ने एक कानून बनाया जो कि 31 जनवरी, 1992 को अस्तित्व में आया। इस कानून के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। राष्ट्रीय महिला आयोग को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। यह आयोग महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए संसद को कानून बनाने के लिए उस पर दबाव डालता है। संसद द्वारा पास किए गए कानूनों की आयोग समीक्षा करता है, जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित हैं। यह आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जाँच करता है तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफारिश करता है। इसके साथ-साथ यह आयोग महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहता है।

प्रश्न 3.

जन-आन्दोलन का क्या अर्थ है? दल समर्थित (दलीय) और स्वतन्त्र (निर्दलीय) आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

जन-आन्दोलन का अर्थ-प्रजातान्त्रिक मर्यादाओं तथा संवैधानिक नियमों के आधार पर तथा सामाजिक शिष्टाचार से सम्बन्धित नियमों के पालन सहित सरकारी नीतियों, कानून व प्रशासन सहित किसी मुद्दे पर व्यक्तियों के समूह या समूहों के द्वारा असहमति प्रकट किया जाना ‘जन-आन्दोलन’ कहलाता है। – जन-आन्दोलनों में प्रदर्शन, नारेबाजी, जुलूस जैसे क्रियाकलाप शामिल हैं।

जन-आन्दोलनों का स्वरूप –

  1. दल आधारित आन्दोलन-जब कभी राजनीतिक दल या राजनीतिक दलों के समर्थन प्राप्त समूहों द्वारा आन्दोलन किए जाते हैं तो इन्हें ‘दलीय आन्दोलन’ कहा जाता है; जैसे—किसान सभा आन्दोलन एक दलीय आन्दोलन था।
  2. स्वतन्त्र जन-आन्दोलन-जब आन्दोलन असंगठित लोगों के समूह द्वारा संचालित किए जाते हैं, तो वे निर्दलीय जन-आन्दोलन कहलाते हैं; जैसे-चिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन।

प्रश्न 4.

क्या आपपंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों पर आरक्षण के पक्ष में हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर :

भारत में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई है। इस संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं। पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए आरक्षण की यह व्यवस्था सही है, क्योंकि-

  1. यह संस्था तभी सफलतापूर्वक कार्य कर सकती है जब इसके संगठन में पुरुष और स्त्रियों दोनों को स्थान मिले।
  2. यदि स्त्रियों को पंचायतों में आरक्षण दिया जाता है तो पंचायत और अधिक लोकतान्त्रिक संस्था बनेगी तथा लोगों का उन पर विश्वास बना रहेगा। एक धारणा यह भी है कि स्त्रियाँ शारीरिक रूप से निर्बल होती हैं, इस कारण भी उनको अपनी सुरक्षा के लिए पंचायतों में आरक्षण दिया जाना चाहिए।
  3. ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बहुत कम है, यदि पंचायतों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाती हैं तो इससे राजनीति में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ेगी तथा उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी मिलेगी।

प्रश्न 5.

मण्डल आयोग के सम्बन्ध में आप क्या जानते हैं? मण्डल आयोग की प्रमुख सिफारिशों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :

मण्डल आयोग-मण्डल आयोग का गठन 1 जनवरी, 1979 में किया गया। इस आयोग का मुख्य कार्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों की पहचान करना तथा इनके विकास के लिए सुझाव देना था। मण्डल आयोग ने 13 दिसम्बर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

मण्डल आयोग की प्रमुख सिफारिशें –

  1. सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए।
  2. अन्य पिछड़ा वर्गों (OBC’s) के कल्याण के लिए बनाए गए कार्यक्रम के लिए धन केन्द्र सरकार को देना चाहिए।
  3. भूमि सुधार शीघ्र किए जाएँ ताकि छोटे किसानों को अमीर किसानों पर निर्भर न रहना पड़े।
  4. अन्य पिछड़ा वर्गों को लघु उद्योग लगाने के लिए सहायता दी जाए तथा उन्हें प्रोत्साहित किया जाए।
  5. अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए विशेष शिक्षा योजनाएँ लागू की जाएँ।

प्रश्न 6.

भारत में लोकप्रिय जन-आन्दोलन से सीखे सबकों (पाठों) का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर :

जन-आन्दोलन के सबक जन-आन्दोलनों के द्वारा पढ़ाए जाने वाले प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं-

  1. जन-आन्दोलन के द्वारा लोगों को लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिली है।
  2. इन आन्दोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना था। इस रूप में इन्हें देश की लोकतान्त्रिक राजनीति के अहम हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए।
  3. सामाजिक आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी है जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
  4. समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को इन आन्दोलनों ने एक सार्थक दिशा दी है।
  5. इन आन्दोलनों के सक्रिय भागीदारी के नए रूपों के प्रयोग ने भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।

प्रश्न 7.

नर्मदा बचाओ आन्दोलन की प्रमुख गतिविधियों को समझाइए।

उत्तर :

नर्मदा बचाओ आन्दोलन की प्रमुख गतिविधियाँ-

  1. आन्दोलन के नेतृत्व ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि इन परियोजनाओं का लोगों के पर्यावास, आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ा है।
  2. प्रारम्भ में आन्दोलन ने परियोजना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित सभी लोगों के समुचित पुनर्वास किए जाने की माँग रखी।
  3. बाद में इस आन्दोलन ने इस बात पर बल दिया कि ऐसी परियोजनाओं की निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय समुदाय की भागीदारी होनी चाहिए और जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर उनका प्रभावी नियन्त्रण होना चाहिए।
  4. अब आन्दोलन बड़े बाँधों की खुली मुखालफत करता है।
  5. आन्दोलन ने अपनी माँगे मुखर करने के लिए हरसम्भव लोकतान्त्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। यथा
    • इसने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों तक उठायी।
    • इसके नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया।
    • नवें दशक के अन्त तक आते-आते इससे कई अन्य आन्दोलन भी जुड़े और यह देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे सम धर्म आन्दोलनों के गठबन्धन का अंग बन गया।

प्रश्न 8.

महिला सशक्तीकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :

राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण (2001) के उद्देश्य राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति, 2001 के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें महिलाओं को अपनी पूर्ण क्षमता को पहचानने का मौका मिले और उनका पूर्ण विकास हो।
  2. महिलाओं द्वारा पुरुषों की भाँति राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सभी क्षेत्रों में समान स्तर पर मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं का कानूनी और वास्तविक उपभोग।
  3. स्वास्थ्य देखभाल, प्रत्येक स्तर पर उन्नत शिक्षा, जीविका एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन, रोजगार, समान पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक पदों आदि में महिलाओं को समान सुविधाएँ।
  4. न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले किसी भी प्रकार के अत्याचारों का उन्मूलन करना।

प्रश्न 9.

महिला सशक्तीकरण के साधन के रूप में संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था का परीक्षण कीजिए।

उत्तर :

महिला सशक्तीकरण के लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया जाए। प्राय: सभी राजनीतिक दल, महिला संघ व सामाजिक संगठन निरन्तर इस बात पर बल देते रहे हैं कि जब तक स्थानीय संस्थाओं, विधानमण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित नहीं किए जाते तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।

73वें-74वें संविधान संशोधन द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक-तिहाई भाग आरक्षित किया गया है। इसमें महिला सशक्तीकरण आन्दोलन को बल मिला। संसद और राज्य विधानमण्डलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान सुरक्षित रखने के कई बार प्रयास किए जा चुके हैं लेकिन इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई है।

प्रश्न 10.

भारत में पर्यावरण सुरक्षा हेतु क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

पर्यावरणीय सुरक्षा आन्दोलन
भारत में पर्यावरण की सुरक्षा हेतु अनेक कदम उठाए जा रहे हैं, जिनमें प्रमुख हैं-

  1. स्वतन्त्र भारत में वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर अभयारण्यों की स्थापना की गई और इन अभयारण्यों में सभी प्रकार के जीवों की सुरक्षा की व्यवस्था की गई, जिससे जंगलों की संख्या बढ़े और वातावरण स्वच्छ हो।
  2. पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई तथा सर्वत्र वृक्षारोपण कार्य प्रारम्भ किया गया। वृक्षों की कटाई रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में चिपको आन्दोलन चलाया गया।
  3. सिंचाई के लिए विभिन्न बाँधों की व्यवस्था की गई, इन बाँधों में सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन दोनों कार्य चलने लगे।
  4. भारत में विकास की क्रान्ति के सन्दर्भ में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति का नारा दिया गया और अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई।

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तार

प्रश्न 1.

चिपको आन्दोलन का मुख्य पहलू क्या था?

उत्तर :

चिपको आन्दोलन का मुख्य पहलू जंगल के वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई को रोकना था।

प्रश्न 2.

‘दलित पैंथर्स’ क्या था?

उत्तर :

दलित हितों की दावेदारी के क्रम में महाराष्ट्र में सन् 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना।

प्रश्न 3.

‘ताड़ी विरोधी आन्दोलन’ क्या था?

उत्तर :

आन्ध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले में दुबरगंटा गाँव की महिलाओं द्वारा ताड़ी (शराब) की बिक्री के विरोध में किए गए आन्दोलन को ‘ताड़ी विरोधी आन्दोलन’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.

सरदार सरोवर परियोजना को कब और कहाँ प्रारम्भ किया गया था?

उत्तर :

1980 दशाब्दी के प्रारम्भ में सरदार सरोवर परियोजना को नर्मदा घाटी में प्रारम्भ किया गया था।

प्रश्न 5.

पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम बताइए।

उत्तर :

  1. चिपको आन्दोलन,
  2. नर्मदा बचाओ आन्दोलन।

प्रश्न 6.

तिभागा आन्दोलन क्या था?

उत्तर :

तिभागा आन्दोलन सन् 1947-48 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों और बटाईदारों का संयुक्त प्रयास था।

प्रश्न 7.

किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम बताइए।

उत्तर :

  1. तिभागा आन्दोलन,
  2. तेलंगाना आन्दोलन।

प्रश्न 8.

दलित पैंथर्स के उद्देश्य बताइए। (कोई दो)

उत्तर :

दलित पैंथर्स के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  1. जाति आधारित असमानता को समाप्त करना।
  2. भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना।

प्रश्न 9.

पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन से सम्बन्धित किन्हीं दो प्रमुख व्यक्तियों के नाम लिखिए।

उत्तर :

  1. सुन्दरलाल बहुगुणा,
  2. मेधा पाटकर।

प्रश्न 10.

औपनिवेशिक दौर के प्रमुख आन्दोलन कौने-से थे?

उत्तर :

औपनिवेशिक दौर के प्रमुख आन्दोलन थे—किसान आन्दोलन, मजदूर संगठनों के आन्दोलन, आदिवासी आन्दोलन तथा स्वाधीनता आन्दोलन।

प्रश्न 11.

महिला सशक्तीकरण से क्या आशय है?

उत्तर :

महिला सशक्तीकरण से आशय महिलाओं की समाज में दोयम दर्जे की भूमिका को समाप्त करना तथा समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़ते हुए सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से है।

प्रश्न 12.

एन०एफ०एफ० तथा बी०के०यू० का पूरा नाम बताइए।

उत्तर :

  1. एन०एफ०एफ० (NFF)-नेशनल फिश वर्कर्स फोरम (National Fish Workers Forum)|
  2. बीकेयू (BKU)-भारतीय किसान यूनियन।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना किस वर्ष हुई-
(a) सन् 1967 में
(b) सन् 1936 में
(c) सन् 1944 में
(d) सन् 1954 में।

उत्तर :

(b) सन् 1936 में।

प्रश्न 2.

सूचना के अधिकार का आन्दोलन किस सन में प्रारम्भ हुआ-
(a) सन् 1980 में
(b) सन् 1984 में
(c) सन् 1988 में
(d) सन् 1990 में।

उत्तर :

(d) सन् 1990 में।

प्रश्न 3.

चिपको आन्दोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई-
(a) उत्तराखण्ड
(b) छत्तीसगढ़
(c) झारखण्ड
(d) राजस्थान।

उत्तर :

(a) उत्तराखण्ड।

प्रश्न 4.

गोवा मुक्ति संग्राम का प्रमुख कार्यकर्ता था-
(a) लाल डेंगा
(b) मोहन रानाडे
(c) सुभाष धीसिंह
(d) महेन्द्र सिंह टिकैत।

उत्तर :

(b) मोहन रानाडे।

प्रश्न 5.

किस वर्ष स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ था-
(a) सन् 1962 में
(b) सन् 1967 में
(c) सन् 1970 में
(d) सन् 1972 में।

उत्तर :

(d) सन् 1972 में।

प्रश्न 6.

काका कालेलकर आयोग का गठन किया गया-
(a) सन् 1950 में
(b) सन् 1953 में
(c) सन् 1956 में
(d) सन् 1961 में।

उत्तर :

(b) सन् 1953 में।

प्रश्न 7.

दलित पैंथर्स का गठन किया गया-
(a) सन् 1970 में
(b) सन् 1972 में
(c) सन् 1974 में
(d) सन् 1978 में।

उत्तर :

(b) सन् 1972 में।

प्रश्न 8.

ताड़ी विरोधी आन्दोलन से सम्बन्धित राज्य था-
(a) राजस्थान
(b) महाराष्ट्र
(c) उत्तर प्रदेश
(d) आन्ध्र प्रदेश।

उत्तर :

(d) आन्ध्र प्रदेश।

NCERT Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)

Class 12 Rajniti Vigyan Chapters | Rajniti Vigyan Class 12 Chapter 7

NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)

NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Contemporary World Politics
( भाग ‘अ’ – समकालीन विश्व राजनीति)

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NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Politics In India Since Independence
(भाग ‘ब’ – स्वतंत्र भारत में राजनीति)

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