NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 4

NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan समकालीन विश्व राजनीति (Contemporary World Politics) Chapter 4 | Alternative Centres of Power (सत्ता के वैकल्पिक केंद्र) 

NCERT Solutions for Class 12 Rajniti Vigyan समकालीन विश्व राजनीति (Contemporary World Politics) Chapter 4 Alternative Centres of Power (सत्ता के वैकल्पिक केंद्र)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 12

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NCERT | Class 12 Rajniti Vigyan समकालीन विश्व राजनीति (Contemporary World Politics)

NCERT Solutions Class 12 Rajniti Vigyan
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12
Subject: Rajniti Vigyan
Chapter: 4
Chapters Name: Alternative Centres of Power (सत्ता के वैकल्पिक केंद्र)
Medium: Hindi

Alternative Centres of Power (सत्ता के वैकल्पिक केंद्र) | Class 12 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions

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NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 Alternative Centres of Power (सत्ता के वैकल्पिक केंद्र)

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 Text Book Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.

तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें-
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।

उत्तर :

(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना (1957)
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना (1967)
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना (1992)
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश (2001)।

प्रश्न 2.

‘ASEAN Way’ या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षानीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।

उत्तर :

(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।

प्रश्न 3.

इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई
(क) चीन
(ख) यूरोपीय संघ
(ग) जापान
(घ) अमेरिका।

उत्तर :

(क) चीन।

प्रश्न 4.

खाली स्थान भरें-
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच……….. और ………. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कार्यों में …………. और ………. करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ………….. के साथ दो तरफा सम्बन्ध शुरू करके अपना एकान्तवास समाप्त किया।
(घ) ……….. योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) …………. आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।

उत्तर :

(क) 1962 में भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कार्यों में आर्थिक विकास और सामाजिक विकास में तालमेल करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में अमेरिका के साथ दो तरफा सम्बन्ध शुरू करके अपना एकान्तवास समाप्त किया।
(घ) मार्शल योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) सुरक्षा समुदाय आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।

प्रश्न 5.

क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?

उत्तर :

क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. अन्तर-क्षेत्रीय समस्याओं का क्षेत्रीय स्तर पर हल ढूँढना-क्षेत्रीय संगठन अन्तर-क्षेत्रीय समस्याओं का क्षेत्रीय स्तर पर हल ढूँढने में अन्य संगठनों की अपेक्षा अधिक कामयाब हो सकते हैं। यदि किसी क्षेत्र के किन्हीं दो राष्ट्रों में किसी मामले को लेकर विवाद है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने से दोनों देशों में कटुता बढ़ेगी। यदि क्षेत्रीय संगठन अपने सदस्य देशों के आपसी विवाद का हल ढूँढने में सफल रहते हैं तो आपस में अनावश्यक द्वेष अथवा विनाश से बचा जा सकता है।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों को सुगम करना–यदि छोटी-छोटी क्षेत्रीय समस्याओं को क्षेत्रीय संगठनों द्वारा क्षेत्रीय स्तर पर ही हल कर लिया जाए तो संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्य हल्का हो जाएगा और वह बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में अपना समय लगा सकता है।

3. बाहरी हस्तक्षेप का मुकाबला-क्षेत्रीय संगठनों में आमतौर पर यह प्रावधान रखा जाता है कि क्षेत्र के किसी एक देश में बाहरी हस्तक्षेप होने पर संगठन के अन्य सदस्य उस देश की सहायता करेंगे और ऐसे संकट के समय समस्त क्षेत्रीय देश बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करेंगे।

4. क्षेत्रीय सहयोग एवं एकता की स्थापना क्षेत्रीय संगठनों में आपसी सहयोग की भावना एवं एकता स्थापित होती है। क्षेत्र के विभिन्न देश क्षेत्रीय संगठन बनाकर आपस में राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में सहयोग कर लाभ उठा सकते हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शान्तिपूर्ण एवं सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने का प्रयास कर सकते हैं।

प्रश्न 6.

भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?

उत्तर :

भौगोलिक एकता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर निम्नलिखित रूप से विशेष प्रभाव पड़ता है-

  1. भौगोलिक निकटता के कारण क्षेत्र विशेष में आने वाले देशों में संगठन की भावना विकसित होती है।
  2. पारस्परिक निकटता से आर्थिक सहयोग एवं अन्तर्देशीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
  3. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करके कम धन व्यय होता है और बचे हुए धन का उपयोग अपने-अपने देश के विकास के लिए कर सकते हैं। अत: स्पष्ट है कि भौगोलिक निकटता क्षेत्रीय संगठनों को शक्तिशाली बनाने में तथा उनके प्रभाव में वृद्धि में योगदान देती है।

प्रश्न 7.

आसियान विजन-2020′ की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं?

उत्तर :

आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन दस्तावेज 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है। आसियान विजन 2020 की प्रमुख बातें-

  1. आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा हल निकालने को महत्त्व देना। इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को सँभाला है।
  2. आसियान की असली ताकत अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और शेष गैर-क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श करने की नीति में है।
  3. आसियान एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए मंच उपलब्ध कराता है।
  4. एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश मामलों की ओर ध्यान देना।
  5. नियमित रूप से वार्षिक बैठक का आयोजन करना।

प्रश्न 8.

आसियान समुदाय के मुख्य स्तम्भों और उनके उद्देश्य के बारे में बताएँ।

उत्तर :

आसियान समुदाय के निम्नलिखित मुख्य तीन स्तम्भ हैं-

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय,
  2. आसियान आर्थिक समुदाय,
  3. आसियान-सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय। 2003 में आसियान के तीन स्तम्भों के आधार पर इसे समुदाय बनाने की दिशा में प्रयास किया गया।

उद्देश्य-

1. आसियान सुरक्षा समुदाय-यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है। इस स्तम्भ के उद्देश्यों में शामिल हैं-आसियान सदस्य देशों में शान्ति, निष्पक्षता, सहयोग तथा अहस्तक्षेप को बढ़ावा देना। साथ ही राष्ट्रों को आपसी अन्तर तथा सम्प्रभुता के अधिकारों का सम्मान करना।

2. आसियान आर्थिक समुदाय-आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके में सामाजिक और आर्थिक विकास में सहायता करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारता है।

3. सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय-इसका उद्देश्य है कि आसियान सदस्य देशों के बीच संघर्ष या टकराव की जगह सहयोग एवं बातचीत को बढ़ावा दिया जाए। यह सदस्य देशों के बीच सामाजिक एवं सांस्कृतिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार करके संवाद और परामर्श के लिए रास्ता तैयार करते हैं।

प्रश्न 9.

आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियन्त्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?

उत्तर :

आर्थिक सुधारों के प्रारम्भ करने से चीन सबसे अधिक तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है और माना जाता है कि इस गति से चलते सन् 2040 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमेरिका से भी आगे निकल जाएगा। क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है।
आज की चीनी अर्थव्यवस्था पहले की नियन्त्रित अर्थव्यवस्था से किस प्रकार अलग है, इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है

1. आर्थिक सुधारों के हेतु खुले द्वार की नीति-सन् 1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रान्ति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिक रूपरेखा सोवियत मॉडल पर आधारित थी। इसका जो विकास मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकालकर सरकारी नियन्त्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। परन्तु इसका औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय काफी कम थी।

चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में बड़े नीतिगत निर्णय लिए। सन् 1972 में अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनीतिक और आर्थिक एकान्तवाद को समाप्त किया। सन् 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका अपनाया।

2. खेती एवं उद्योगों का निजीकरण–चीन ने शॉक थेरेपी पर अमल करने के स्थान पर अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला। सन् 1982 में खेती का निजीकरण किया गया और उसके बाद 1998 में उद्योगों के व्यापार सम्बन्धी अवरोधों को केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ही हटाया गया वहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं।

3. कृषि और उद्योग दोनों का विकास-आज की चीनी अर्थव्यवस्था को मूल रूप से उभरने का अवसर मिला है। कृषि के निजीकरण के कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही। व्यापार के नए कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (स्पेशल इकॉनामिक जोन-SEZ) के निर्माण से विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई तथा कृषि और उद्योगों के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

4. विश्व व्यापार संगठन में शामिल-राज्य द्वारा नियन्त्रित अर्थव्यवस्था वाला देश चीन आज पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा है। चीन के पास विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार है और इसके दम पर चीन दूसरे देशों में निवेश कर रहा है। चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया। अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुड़ाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था का एक मनचाहा रूप देने की है।

चीन की आर्थिक स्थिति में तो नाटकीय सुधार हुआ लेकिन वहाँ हर किसी को सुधारों का लाभ नहीं मिला है। वहाँ महिलाओं को रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। गाँव और शहर के बीच भी फासला बढ़ता जा रहा है। परन्तु क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन एक ऐसी जबरदस्त आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है कि सभी उसका लोहा मानने लगे हैं। इसी स्थिति के कारण जापान, अमेरिका और आसियान तथा रूस सभी व्यापार के आगे चीन से बाकी विवादों को भुला चुके हैं। आशा की जाती है कि चीन और ताइवान के मतभेद भी खत्म हो जाएंगे। सन् 1997 में वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के उभारने में काफी मदद की है। इसकी नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्वशक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

प्रश्न 10.

किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाईं? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा कीजिए जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई?

उत्तर :

जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तब यूरोप के नेता यूरोप की समस्याओं को लेकर काफी परेशान रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध ने उन अनेक मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया जिसके आधार पर यूरोपीय देशों के आपसी सम्बन्ध बने थे। सन् 1945 तक यूरोपीय देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था की बर्बादी तो झेली ही, उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त होते हुए भी देख लिया जिन पर यूरोप खड़ा था। यूरोपीय देशों की कठिनाइयों को सुलझाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए-

1. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना एवं अमेरिका द्वारा सहयोग–अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए अभूतपूर्व सहायता की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। अमेरिका ने ‘नाटो’ के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना के तहत ही सन् 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद की गयी। यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता शुरू की।

2. यूरोपीय परिषद् का गठन एवं राजनीतिक सहयोग–सन् 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनीतिक सहयोग के मामले में अगला कदम साबित हुई। यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप सन् 1957 में यूरोपियन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

3. यूरोपीय पार्लियामेण्ट का गठन और राजनीतिक स्वरूप-यूरोपीय पार्लियामेण्ट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया। सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई और सन् 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति से आन्तरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया।

4. यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य के रूप में-एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर अधिक-से-अधिक राजनीतिक रूप लेता गया। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह ही काम करने लगा है। हालाँकि यूरोपीय संघ का कोई संविधान नहीं बन सका लेकिन इसका अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है। नए सदस्यों को शामिल करते हुए

यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की है। अनेक देशों के लोग इस बात को लेकर कुछ खास . उत्साहित नहीं थे कि जो ताकत इनके देश की सरकार को हासिल थी वह अब यूरोपीय संघ को दे दी जाए।

प्रश्न 11.

यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?

उत्तर :

यूरोपीय संघ को निम्नलिखित तत्त्व एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन सिद्ध करते हैं-

1. समान राजनीतिक रूप-यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर अधिक-सेअधिक राजनीतिक रूप लेता गया है। यूरोपीय संघ का अपना एक झण्डा, गान, स्थापना दिवस तथा अपनी मुद्रा यूरो है। इससे साझी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में सहायता मिली है।

2. सहयोग की नीति-यूरोपीय संघ ने सहयोग की नीति को अपनाया है। यूरोपीय संगठन के माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने एक-दूसरे की मदद की, इससे भी इस संघ का प्रभाव बढ़ा। इस महाद्वीप के इतिहास ने सभी यूरोपीय देशों को सिखा दिया कि क्षेत्रीय शान्ति और सहयोग ही अन्ततः उन्हें समृद्धि और विकास दे सकता है। संघर्ष और युद्ध, विनाश और पतन का मूल कारण होते हैं।

3. आर्थिक प्रभाव या शक्ति-यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव बहुत अधिक है। सन् 2005 में वह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। इसकी मुद्रा यूरो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी भागीदारी अमेरिका से तीन गुनी अधिक है और इसी के चलते वह अमेरिका और चीन से व्यापारिक विवादों में बराबरी से बात करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके निकटतम देशों पर ही नहीं बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के देशों पर भी है।

4. राजनीति और कूटनीति का प्रभाव-इस संघ का राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। संघ के कई अन्य सदस्य देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।

5. विश्व के अन्य देशों की नीतियों को प्रभावित करना-यूरोपीय संघ में विकास एवं एकीकरण के कारण विश्व के अन्य देशों को प्रभावित करने की क्षमता भी है। वह अमेरिका को प्रभावित कर सकता है और विश्व की आर्थिक, सामाजिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

6.सैन्य शक्ति-यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। यूरोपीय संघ के दो देशों ब्रिटेन एवं फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में इस संघ का विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 12.

चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।

उत्तर :

उक्त कथन से हम पूर्णत: सहमत हैं। इस विचार की पुष्टि निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट होती है-

(1) विकासशील देश भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएँ विकसित होती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं। ये नयी अर्थव्यवस्था उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा मुक्त व्यापार नीति की समर्थक हैं। ये अमेरिका और अन्य बहुराष्ट्रीय नियम समर्थक कम्पनियाँ स्थापित और संचालन करने वाले राष्ट्रों को आकर्षित करने के लिए अन्य सुविधाएँ प्रदान करके अपने देश के आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं।

(2) चीन-भारत की मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिन्ता का कारण बन सकता है। ये एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था के संचालन करने वाले राष्ट्र अमेरिका और उसके मित्रों को चुनौती देने में सक्षम हैं।

(3) आज दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति कर चुके हैं और अमेरिका को अपने शक्ति के प्रदर्शन से प्रभावित कर सकते हैं।

(4) विश्व में चीन और भारत विशाल जनसंख्या वाले देश हैं। ये अमेरिका के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकते हैं, साथ ही इन देशों के कुशल कारीगर और श्रमिक पश्चिमी देशों एवं अन्य देशों में अपने हुनर से बाजार को सहायता दे सकते हैं।

(5) चीन और भारत विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमेरिका और उन बड़ी शक्तियों के एकाधिकार की प्रवृत्ति को नियन्त्रित कर सकते हैं।

(6) दोनों देशों के मध्य सड़क निर्माण, रेल लाइन विस्तार, वायुयान और जलमार्ग सम्बन्धी सुविधाओं के क्षेत्र में पारस्परिक आदान-प्रदान और सहयोग की नीतियाँ अपनाकर अपने को दोनों राष्ट्र शीघ्र ही महाशक्तियों की श्रेणी में ला सकते हैं। इन देशों के इंजीनियर्स ने विश्व की सुपर शक्तियों को अत्यधिक प्रभावित किया है।

(7) इसके अतिरिक्त आतंक को समाप्त करने में सहयोग देकर, तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन पर रोक आदि में अपनी भूमिका द्वारा ये विश्व व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।

निःसन्देह चीन और भारत ऐसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ हैं जो मौजूदा एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता रखती हैं।

प्रश्न 13.

मुल्कों की शान्ति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर :

मुल्कों की शान्ति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और उन्हें मजबूत करने पर टिकी हैं क्योंकि ये संगठन व्यापार, उद्योग-धन्धों, खेती आदि संस्थाओं को बढ़ावा देते हैं। इन संगठनों के निर्माण के कारण ही रोजगार में वृद्धि होती है और गरीबी समाप्त होती है। किसी भी देश के विकास में क्षेत्रीय आर्थिक . संगठन का विशिष्ट महत्त्व होता है।

क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बाजार शक्तियों और देश की सरकारों की नीतियों से विशेष सम्बन्ध रखते हैं। प्रत्येक देश अपने यहाँ कृषि उद्योगों और व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए परस्पर क्षेत्रीय राज्यों से सहयोग माँगते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें उनके उद्योगों के लिए कच्चा माल मिले। यह तभी सम्भव होगा जब उन क्षेत्रों में शान्ति होगी। ये संगठन विभिन्न व्यापार में पूँजी निवेश, श्रम गतिशीलता आदि के विस्तार में सहायक होते हैं और अपने क्षेत्रों में समृद्धि लाते हैं।

प्रश्न 14.

भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है? अपने सुझाव भी दीजिए।

उत्तर :

भारत और चीन के बीच विवाद के मामले

1. सीमा विवाद–चीन ने कुछ ऐसे मानचित्र प्रकाशित किए जिनमें भारतीय भू-भाग पर चीनी दावा किया गया था। यहीं से सर्वप्रथम सीमा-विवाद प्रकट हुआ। चीन ने पाकिस्तान के साथ सन्धि करके कश्मीर का कुछ भाग अपने अधीन कर लिया जिसे तथाकथित पाकिस्तान द्वारा हथियाए गए कश्मीर का हिस्सा माना जाता है। चीन, भारत के एक राज्य अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता है।

2. 1962 में सैनिक मुठभेड़ और असफलता–सन् 1962 में सैनिक मुठभेड़ की असफलता का परिणाम चीन के साथ सम्बन्धों में कटुता आना रहा। सन् 1979 में वियतनाम पर हमला करते समय चीन ने यह घोषणा की थी कि दण्डानुशासन वाली यह कार्रवाई सन् 1962 के नमूने पर ही की गयी थी। इस तरह के वक्तव्यों को अनसुना करना असम्भव है।

3. विश्व व्यापार संगठन में एक जैसी नीतियों को अपनाना-चीन और भारत दोनों ही विकासशील हैं। अत: विकास के लिए विश्व व्यापार संगठन में समान नीति अपनाते हैं। समान नीति के कारण प्रतिद्वन्द्विता की भावना पैदा होती है।

4. भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण–चीन, भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध करता है। सन् 1998 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण का चीन ने काफी विरोध किया जबकि वह स्वयं परमाणु अस्त्र-शस्त्र रखता है।

भारत-चीन मतभेद दूर करने के सुझाव

1. सांस्कृतिक सम्बन्धों का निर्माण–चीन और भारत दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों। भाषा और साहित्य का आदान-प्रदान हो। एक-दूसरे के देश में लोग भाषा और साहित्य का अध्ययन करें।

2. नेताओं का आवागमन-दोनों ही देशों के प्रमुख नेताओं का एक-दूसरे देश में आना-जाना रहना चाहिए ताकि वे अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकें जिससे कि सद्भाव और सहयोग की भावना पैदा हो।

3. व्यापारिक सम्बन्ध-दोनों ही देशों में तकनीक सम्बन्धी सामान व व्यक्तियों का आदान-प्रदान हो, कम्प्यूटर आदि के आदान-प्रदान से भारत और चीन दोनों देशों में आन्तरिक व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है।

4. आतंकवाद पर संयुक्त दबाव-भारत और चीन आतंकवाद को समाप्त करने में एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं और ऐसे देशों पर दबाव डाल सकते हैं जो आतंकवादियों को शरण देते हैं। यह तभी हो सकता है जब दोनों ही देश संयुक्त रूप से दबाव डालें।

5. पर्यावरण सुरक्षा समस्या का समाधान-दोनों ही देश पर्यावरण सुरक्षा की समस्या का संयुक्त रूप से समाधान कर सकते हैं और एक-दूसरे देश में प्रदूषण फैलाने वाली समस्या को दूर करने में सहयोग कर सकते हैं।

6. विभिन्न क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण वातावरण तैयार करके-चीन और भारत तिब्बत शरणार्थियों और तिब्बत से जुड़ी समस्याओं, ताइवान की समस्या के समाधान और भारतीय सहयोग एवं नैतिक समर्थन बढ़ाकर, निवेश को बढ़ाकर, मुक्त व्यापार नीति, वैश्वीकरण और उदारीकरण, संचार-साधनों में सहयोग करके एक मैत्रीपूर्ण वातावरण बना सकते हैं।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि परस्पर सहयोग एवं बातचीत द्वारा दोनों देशों के बीच दूरी कम हो सकती है और जो मनमुटाव की स्थिति रही है वह समाप्त की जा सकती है। संघर्ष से व्यवस्था को कभी गति नहीं . मिलती। सहयोग से विकास होता है और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर सम्मान बढ़ता है।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 InText Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

ओपेन डोर (मुक्त द्वार) की नीति किसके द्वारा और कब अपनाई गई थी? इस नीति का चीन पर क्या प्रभाव (असर) पड़ा?

उत्तर :

चीनी नेता देंग श्याओपेंग ने सन् 1978 में ओपेन डोर (मुक्त द्वार) की नीति चलाई जिसका देश पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा। इस नीति के कारण चीन ने अद्भुत प्रगति की तथा वह आगामी वर्षों में विश्व की एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा।

प्रश्न 2.

2003 में यूरोपीय संघ ने एक साझा संविधान बनाने की कोशिश की थी। यह कोशिश नाकामयाब रही। इसी को लक्ष्य करके यह कार्टून बना है। कार्टूनिस्ट ने यूरोपीय संघ को टाइटैनिक जहाज के रूप में क्यों दिखाया है?
NCERT Solutions For Class 12 Political Science


उत्तर :

जिस प्रकार टाइटैनिक जैसा विशाल जहाज डूबकर नष्ट हो गया था ठीक उसी प्रकार सन् 2003 में यूरोपीय संघ के सदस्यों द्वारा एक संयुक्त (साझा) संविधान निर्मित करने का प्रयास विफल रहा। इसी को लक्ष्य करके उक्त कार्टून बना है। एरेस, केगल्स कार्टूनिस्ट ने यूरोपीय संघ को टाइटैनिक जहाज के रूप में दिखाया है। उल्लेखनीय है कि संविधान तथा जहाज दोनों ही अपनी-अपनी मंजिल को हासिल नहीं कर सके थे।

प्रश्न 3.

कल्पना कीजिए, क्या होता अगर पूरे यूरोपीय संघ की एक फुटबॉल टीम होती?

उत्तर :

यदि यूरोपीय संघ की एक फुटबॉल टीम होती तो खिलाड़ियों के चयन में कड़ी प्रतिस्पर्धा होती तथा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बलबूते ही खिलाड़ी चुने जाते।

प्रश्न 4.

क्या भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है? भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट हैं?

उत्तर :

भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का हिस्सा है। भारत आसियान देशों का पड़ोसी देश है। इसलिए भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट स्थित हैं।

प्रश्न 5.

नक्शे में आसियान के सदस्य देशों को पहचानिए। नक्शे में आसियान के सचिवालय को दिखाएँ।
पूर्व एशिया और पैसिफिक का मानचित्र
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स्रोत: http://www.unicef.org/eapro/EAP_map_final.gif

नोट-यूनीसेफ साइट पर दिए गए मानचित्र में किसी भी देश या क्षेत्र या किसी भी सीमा के परिसीमन की कानूनी स्थिति को प्रतिबिम्बित नहीं किया गया है।

उत्तर :

आसियान के सदस्य देश–इण्डोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर, थाईलैण्ड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यानमार तथा कम्बोडिया। आसियान का सचिवालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है।

प्रश्न 6.

आसियान क्यों सफल रहा और दक्षेस (सार्क) क्यों नहीं? क्या इसलिए कि उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा देश नहीं है? उत्तर:
आसियान की सफलता का मुख्य कारण इसके सदस्य देशों का अनौपचारिक, टकरावरहित एवं सहयोगात्मक मेल-मिलाप था जिससे निवेश, श्रम एवं सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में सफलता प्राप्त हुई। इसने सदस्य देशों का साझा बाजार एवं उत्पादन आधार तैयार किया है और इस क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहयोग प्रदान किया है जबकि दक्षेस (सार्क) के सफल न होने का कारण इसके सदस्य देशों में बातचीत के माध्यम से आपसी टकराव को समाप्त नहीं किया। फलस्वरूप यहाँ न तो साझा बाजार स्थापित हो सका और न ही निवेश, श्रम एवं सेवाओं के मामलों में यह मुक्त क्षेत्र बन सका।
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प्रश्न 7.

कार्टून में दिखाया गया छोटा-सा आदमी कौन हो सकता है? क्या वह ड्रैगन को रोक सकता है?

उत्तर :

कार्टून में दिखाया गया एक छोटा-सा आदमी अमेरिका है। वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा नहीं लगता है कि वह ड्रैगन को बढ़ने से रोक पाएगा।

प्रश्न 8.

चीन में सिर्फ छह ही विशेष आर्थिक क्षेत्र हैं और भारत में ऐसे 200 से ज्यादा क्षेत्रों की मंजूरी! क्या यह भारत के लिए अच्छा है?

उत्तर :

संख्यात्मक दृष्टिकोण से भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र चीन की अपेक्षा अधिक हैं, लेकिन रचनात्मक दृष्टिकोण से हमें चीन की बराबरी अथवा आगे निकलने की भरपूर कोशिश करनी होगी। भारत में ऐसे 200 से ज्यादा क्षेत्रों को मंजूरी देना भारतीय हितों के सर्वथा अनुकूल ही है।
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प्रश्न 9.

प्रथम चित्र में कोने में लिखे ‘तब’ शब्द का क्या अभिप्राय है?

उत्तर :

प्रथम चित्र में ‘तब’ का अभिप्राय है-चीन में साम्यवादी क्रान्ति के बाद माओ के नेतृत्व में लाल अर्थात् वामपंथी चीन, जो साम्यवाद अथवा समाजवाद को ही सर्वश्रेष्ठ अर्थव्यवस्था तथा प्रगति का मापदण्ड मानता था। जब तक माओ जीवित रहे उन्होंने इसी विचारधारा का अनुसरण किया।

प्रश्न 10.

दूसरे चित्र में ‘अब’ शब्द का क्या अर्थ है?

उत्तर :

दूसरे चित्र में ‘अब’ का अर्थ चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ की पूँजी-परस्त नीतियों वाले चीन से है। चीन ने मुक्त द्वार की नीति का अनुसरण किया। तब से लेकर वर्तमान तक चीन ने स्वयं को वैश्वीकरण तथा उदारवादी अर्थव्यवस्था से जोड़कर बड़ी तेजी से आर्थिक प्रगति की है।

प्रश्न 11.

उपर्युक्त दोनों चित्र चीन के दृष्टिकोण से किसका संकेत करते हैं?

उत्तर :

उक्त दोनों चित्र चीनी दृष्टिकोण में परिवर्तन का संकेत देते हैं। समाजवाद से धीरे-धीरे पूँजीवाद अथवा वैश्वीकरण तथा स्वयं को उदारीकरण से जोड़ना तथा चीनी उत्पादों को अन्य देशों में भेजते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक प्रतिस्पर्धाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना।

प्रश्न 12.

कार्टून में साइकिल का इस्तेमाल आज के चीन के दोहरेपन को इंगित करने के लिए किया गया है? यह दोहरापन क्या है? क्या हम इसे अन्तर्विरोध कह सकते हैं? उक्त साइकिल का चित्र क्या चीन में प्रचलित दोहरेपन का प्रतीक है?

उत्तर :

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चीन विश्व में सर्वाधिक साइकिल प्रयोग करने वाला देश है। कार्टून में साइकिल का प्रयोग वर्तमान चीन के दोहरेपन को दर्शाता है। यह दोहरापन है कि एक तरफ तो चीन साम्यवादी विचारधारा वाले देशों का प्रतिनिधि होने की बात करता है वहीं दूसरी ओर वह अपनी अर्थव्यवस्था में सम्मिलित होने के लिए डॉलर अर्थात् पूँजीवादी व्यवस्था को आमन्त्रित कर रहा है।

चीनी साइकिल कार्टून में दर्शायी गयी साइकिल के दोनों पहियों में से अगला पहिया यहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है वहीं पीछे का पहिया पूँजीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसे हम एक प्रकार का विचारधारागत अन्तर्विरोध कह सकते हैं।

प्रश्न 13.

चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने नवम्बर 2006 में भारत का दौरा किया। इस दौरे में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनके बारे में पता करें।

उत्तर :

चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने नवम्बर 2006 में भारत की यात्रा की। इस अवसर पर चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ और तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के मध्य 10 सूत्रीय साझा घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर हुए। इसमें दोनों देशों के लोगों का आपसी सम्पर्क, पर्यटन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विद्यार्थियों की आपसी आवाजाही के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग के समझौते हुए।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 Other Important Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के प्रयासों के आर्थिक और राजनीतिक प्रयासों की विवेचना कीजिए।

उत्तर :

पश्चिमी यूरोप का आर्थिक पुनरुद्धार और एकीकरण-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के आर्थिक-राजनीतिक प्रयास निम्नलिखित रहे-

  1. शीतयुद्ध-सन् 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप की शीतयुद्ध से भी मदद मिली। शीतयुद्ध के दौर में पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप के देश अपने-अपने खेमों में एक-दूसरे के नजदीक आए।
  2. मार्शल योजना-1947-इस योजना के तहत अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए अभूतपूर्व सहायता की।
  3. नाटो-अमेरिका ने नाटो के तहत पश्चिमी यूरोप में एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का गठन किया।
  4. यूरोप आर्थिक सहयोग संगठन-मार्शल योजना के तहत सन् 1948 में यूरोप आर्थिक सहयोग संगठन के माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता शुरू की।
  5. यूरोपीय परिषद्-5 मई, 1949 को यूरोपीय परिषद् की स्थापना हुई जिसके तहत आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए अपनी सामान्य विरासत के आदर्शों और सिद्धान्तों में एकता लाने का प्रयास किया गया।
  6. यूरोपीय कोयला तथा इस्पात समुदाय-18 अप्रैल, 1951 को पश्चिमी यूरोप के छह देशों ने यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।
  7. यूरोपीय अणु शक्ति समुदाय तथा यूरोपीय आर्थिक समुदाय-25 मार्च, 1957 को यूरोपीय आर्थिक समुदाय (यूरोपीय साझा व्यापार) और यूरोपीय अणुशक्ति समुदाय का गठन किया गया।
  8. मास्ट्रिस्ट सन्धि (1991)-इस सन्धि ने यूरोप के लिए एक अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार, एक नागरिकता, एक संसद, एक सरकार, एक सुरक्षा व्यवस्था तथा एक विदेश नीति का मार्ग प्रशस्त किया।
  9. यूरोपीय संघ (1992)-सन् 1992 में यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आन्तरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक-समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया। 1 जनवरी, 1999 को यूरोपीय संघ की साझा यूरो मुद्रा को औपचारिक रूप से स्वीकृति दे दी तथा 2007 में लिस्बन सन्धि कर निर्णय प्रक्रिया में सुधार का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया।

प्रश्न 2.

यूरोपीय संघ एक अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में कैसे उभरा? इनकी सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर :

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् अनेक यूरोपीय नेता यूरोप के प्रश्नों को लेकर दुविधा में पड़े हुए थे। क्या यूरोप को अपनी पुरानी शत्रुता को पुन: प्रारम्भ कर देना चाहिए अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सकारात्मक योगदान करने वाले सिद्धान्तों तथा संस्थाओं के आधार पर उसे अपने सम्बन्धों को नए आयाम देने, चाहिए। द्वितीय विश्वयुद्ध ने उन अनेक मान्यताओं तथा व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया जिनके आधार पर यूरोप के देशों के परस्पर आपसी सम्बन्ध विकसित हुए थे। सन् 1945 तक यूरोपीय राष्ट्रों ने अपनी अर्थव्यवस्था की बर्बादी को अति निकट से देखा था। उन्होंने उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को भी टूटते हुए देखा था जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् यूरोपीय देशों द्वारा समस्याओं का समाधान द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय देशों ने निम्नांकित ऐतिहासिक कदम उठाकर अपनी समस्याएं सुलझाई थी-

1. अमेरिकी सहयोग तथा यूरोपीय आर्थिक संगठन की स्थापना-सन् 1945 के बाद यूरोप के देशों में परस्पर मेल-मिलाप से शीतयुद्ध में भी सहायता मिली। अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए पर्याप्त सहायता प्रदान की थी। इसे ‘मार्शल योजना’ के नाम से जाना जाता है। अमेरिका ने ‘नाटो’ के अन्तर्गत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना में ही सन् 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक सहायता दी गयी। यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार तथा आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता प्रारम्भ की।

2. यूरोपीय परिषद् तथा आर्थिक समुदाय का गठन–सन् 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनीतिक सहयोग के मामले में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। यूरोप के पूँजीवादी देशों में अर्थव्यवस्था के परस्पर एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ी और इसके फलस्वरूप सन् 1957 में यूरोपीय इकोनोमिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

3. यूरोपीय पार्लियामेण्ट का गठन-यूरोपीय संसद के गठन के बाद परस्पर जुड़ाव की इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप हासिल कर लिया। सोवियत खेमे के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई और सन् 1992 में दूसरी परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश तथा सुरक्षा नीति, आन्तरिक मामलों एवं न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एकसमान मुद्रा के चलन हेतु रास्ता तैयार हो गया।

4. यूरोपीय संघ का गठन-एक लम्बी समयावधि में निर्मित यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से परिवर्तित होकर अधिकाधिक राजनीतिक स्वरूप धारण करता चला गया। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी सीमा तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही कार्य करने लगा। हालाँकि यूरोपीय संघ का एक अलग संविधान निर्मित किए जाने की असफल कोशिश की जा चुकी है परन्तु इसका अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है। अन्य देशों के सम्बन्धों के मामले में इसने काफी सीमा तक संयुक्त विदेश तथा सुरक्षा नीति भी बना ली है। – नए सदस्यों को सम्मिलित करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में रहते हुए विस्तार का प्रयास किया। मुख्यतया नए सदस्य पूर्व सोवियत गुट से थे।

यूरोपीय संघ की सीमाएँ एक अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है, परन्तु अनेक मामलों में इसके सदस्य देशों की अपनी विदेश तथा रक्षा नीति है जो विभिन्न मुद्दों पर परस्पर एक-दूसरे के विरुद्ध भी होती है। उदाहरणार्थ, इराक पर अमेरिकी हमले में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री तो उसके साथ थे, लेकिन जर्मन तथा फ्रांस इस आक्रमण के विरुद्ध थे। इसी तरह यूरोप के कुछ भागों में यूरो को लागू किए जाने के कार्यक्रम को लेकर भी काफी मतभेद रहे थे। पूर्व ब्रिटिश प्रधानमन्त्री मार्गरेट थैचर ने ग्रेट ब्रिटेन को यूरोपीय बाजार से अलग रखा। डेनमार्क तथा स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट सन्धि तथा संयुक्त यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का प्रतिरोध किया। उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विदेशी तथा रक्षा मामलों में कार्य करने की यूरोपीय संघ की क्षमता सीमित है।

प्रश्न 3.

आसियान के संगठन एवं उसके विजन दस्तावेज-2020 का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर :

आसियान का संगठन आसियान की स्थापना-दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) की स्थापना सन् 1967 मे बैंकॉक में की गयी। इस संगठन के प्रारम्भिक सदस्यों में इण्डोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैण्ड थे। बाद में ब्रुनेई, दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यानमार एवं कम्बोडिया भी आसियान में सम्मिलित हो गए। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 10 है। इसका मुख्यालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) है।

आसियान की प्रमुख विशेषताएँ आसियान की प्रमुख संस्थाओं में आसियान सुरक्षा समुदाय, आर्थिक आसियान समुदाय एवं आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय आदि हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-

1. आसियान सुरक्षा समुदाय-आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैन्य टकराव तक ले जाने की सहमति पर आधारित है। सन् 2003 तक आसियान के सदस्य देशों ने अनेक समझौते किए जिनके माध्यम से प्रत्येक देश ने शान्ति, सहयोग, निष्पक्षता व अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने, राष्ट्रों के आपसी अन्तर एवं सम्प्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता प्रकट की। सन् 1994 में आसियान देशों की सुरक्षा एवं विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गयी।

2. आसियान आर्थिक समुदाय-आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार एवं उत्पादन आधार तैयार करना है तथा इस क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहायता प्रदान करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए निर्मित वर्तमान व्यवस्था में भी सुधार करना चाहता है। आसियान ने निवेश, श्रम एवं सेवाओं के सम्बन्ध में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर भी ध्यान दिया है। इस प्रस्ताव पर आसियान के साथ बातचीत करने की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका व चीन ने कर दी है।

3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय-आसियान का यह समुदाय सम्बन्धित देशों में शैक्षिक विकास, समाज कल्याण, जनसंख्या नियन्त्रण, संचार एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने का कार्य कर रहा है।

आसियान का विजन दस्तावेज-2020 दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के विजन दस्तावेज-2020 की व्याख्या इस प्रकार है-

  1. आसियान के विजन दस्तावेज-2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गयी है।
  2. टकराव के स्थान पर बातचीत को बढ़ावा देने की बात की गयी है।
  3. आसियान के विजन दस्तावेज-2020 के अन्तर्गत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय एवं आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गयी है।
  4. विजन दस्तावेज-2020 में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, वित्तीय सहयोग एवं व्यापार उदारीकरण के विभिन्न उपायों पर बल दिया गया है।

प्रश्न 4.

माओ युग के पश्चात् चीन द्वारा कौन-कौन सी नई आर्थिक नीतियाँ अपनायी गईं? इन नीतियों को अपनाए जाने के कारणों एवं लाभकारी परिणामों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर :

माओ युग के पश्चात् चीन द्वारा अपनायी गई नई आर्थिक नीतियाँ चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में आर्थिक संकट से उबरने के लिए कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिए; जिनका विवरण निम्नलिखित है-

1. संयुक्त राज्य अमेरिका से सम्बन्ध स्थापित करना-चीन ने अपने राजनीतिक एवं आर्थिक एकान्तवास को समाप्त करने के लिए सन् 1972 में संयुक्त राज्य अमेरिका से सम्बन्ध स्थापित किए।

2. आधुनिकीकरण-सन् 1973 में तत्कालीन चीनी प्रधानमन्त्री चाऊ एन लाई ने कृषि, उद्योग, सेना, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे।

3. आर्थिक सुधारों एवं खुले द्वार की नीति–सन् 1978 में तत्कालीन चीनी नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों एवं खुले द्वार की नीति की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी है कि विदेशी पूँजी एवं प्रोद्यौगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। चीन सन् 2001 में विश्व व्यापार संगठन में भी शामिल हो गया।

4. बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाना-चीन ने अपने देश का आर्थिक विकास करने के लिए बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाया। चीन ने बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए शॉक थेरेपी पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम सन् 1982 में खेती का निजीकरण किया गया, तत्पश्चात् सन् 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया गया तथा व्यापार सम्बन्धी अवरोधों को मात्र विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए हटाया गया, जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम स्थापित कर सकते हैं।

माओ के पश्चात् नई आर्थिक नीतियाँ अपनाने के कारण सन् 1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रान्ति के बाद से चीन पर्याप्त आर्थिक विकास नहीं कर पा रहा था जिसके निम्न कारण थे-

  1. चीनी अर्थव्यवस्था की विकास दर-5 से 6 प्रतिशत के मध्य थी, लेकिन जनसंख्या में 2 से 3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर की प्रभावशीलता को कम कर रही थी तथा बढ़ती जनसंख्या विकास से वंचित होती जा रही थी।
  2. चीन की राज्य नियन्त्रित अर्थव्यवस्था के कारण खेती की पैदावार उद्योगों को आवश्यकतानुसार अधिशेष नहीं दे पाती थी।
  3. औद्योगिक उत्पादन तेजी से नहीं बढ़ रहा था।
  4. विदेशी व्यापार बहुत कम था।
  5. चीन के निवासियों की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

नई आर्थिक नीतियों के लाभकारी परिणाम
चीन में 1970 के दशक के बाद अपनायी गयी नई आर्थिक नीतियों के कारण चीनी अर्थव्यवस्था को अपनी गतिहीनता से उभरने में सहायता मिली। नई आर्थिक नीतियों के लाभकारी परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. कृषि उत्पादों एवं ग्रामीण आय में वृद्धि-चीन ने सन् 1982 में कृषि के निजीकरण के बाद कृषि उत्पादों एवं ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि की है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बचतों में वृद्धि हुई जिससे ग्रामीण उद्योगों में तीव्र गति से वृद्धि हुई।
  2. अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि दर-नई आर्थिक नीतियों के कारण उद्योग एवं कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तीव्र रही।
  3. विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि–चीन में व्यापार के नए कानूनों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकोनॉमिक जोन-SEZ) के निर्माण से विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-नई आर्थिक नीतियों के करण चीन सम्पूर्ण विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे अधिक आकर्षक देश बनकर उभरा है।
  5. विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार-वर्तमान में चीन के पास विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार उपलब्ध है और इसी ताकत के आधार पर चीन दूसरे देशों में भी निवेश कर रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने ‘आसियान’ के निर्माण की पहल क्यों की?

उत्तर :

दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने निम्नलिखित कारणों से विवश होकर दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन (आसियान) बनाने की पहल की

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले और उसके दौरान, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश बार-बार यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद का शिकार हुए तथा इस क्षेत्र के देशों ने भारी राजनीतिक और आर्थिक कीमत चुकाई।
  2. युद्ध के बाद इस क्षेत्र को राष्ट्र निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  3. इस क्षेत्र के देशों को शीतयुद्ध के दौर में किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा।
    इसी के चलते दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने आसियान बनाकर एक वैकल्पिक पहल की।

प्रश्न 2.

यूरोपीय संघ के राजनीतिक स्वरूप पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :

यूरोपीय संघ का राजनीतिक स्वरूप

एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा-से-ज्यादा राजनीतिक रूप लेता गया है। यथा-

  1. अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है।
  2. यद्यपि यूरोपीय संघ की एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा (यूरो) है।
  3. अन्य देशों से सम्बन्धों के मामले में इर.ने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है।
  4. नए सदस्यों को शामिल करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की। नए सदस्य मुख्यतः भूतपूर्व सोवियत खेमे के थे।
  5. सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है।

प्रश्न 3.

यूरोपीय आर्थिक समुदाय पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :

यूरोपीय आर्थिक समुदाय/यूरोपीय साझा बाजार

यूरोपीय आर्थिक समुदाय या यूरोपीय साझा बाजार का जन्म 25 मार्च, 1957 को रोम की सन्धि के तहत 1 जनवरी, 1958 को हुआ था। इस पर हस्ताक्षर करने वाले छह राष्ट्र थे—

  1. फ्रांस,
  2. जर्मनी,
  3. इटली,
  4. बेल्जियम,
  5. नीदरलैण्ड और
  6. लक्जमबर्ग। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 27 हो गई है।

उद्देश्य-यूरोपीय साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों में उत्तरोत्तर सामंजस्य स्थापित करके समुदाय के क्रमबद्ध आर्थिक विकास की उन्नति करना तथा सदस्य देशों में निकटता स्थापित कराना है।

यूरोपीय साझा बाजार के साथ ही यूरोपीय एकीकरण की नींव पड़ी और यूरोपीय आर्थिक समुदाय ही सन् 1992 में यूरोपीय संघ में बदल गया है।

प्रश्न 4.

यूरो, अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा कैसे बन सकता है?

उत्तर :

निम्नलिखित रूप में यूरो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकता है-

  1. यूरोपीय संघ के सदस्यों की संयुक्त मुद्रा यूरो का प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है और यह डॉलर को चुनौती प्रस्तुत करता नजर आ रहा है क्योंकि विश्व व्यापार में यूरोपीय संघ की भूमिका अमेरिकी से तिगुनी है।
  2. यूरोपीय संघ राजनीतिक, कूटनीतिक तथा सैन्य रूप से भी अधिक प्रभावी है। इसे अमेरिका धमका नहीं सकता।
  3. यूरोपीय संघ की आर्थिक शक्ति का प्रभाव अपने पड़ोसी देशों के साथ-साथ एशिया और अफ़्रीका के राष्ट्रों पर भी है।
  4. यूरोपीय संघ की विश्व की एक विशाल अर्थव्यवस्था है जो सकल घरेलू उत्पाद में अमेरिका से भी अधिक है।

प्रश्न 5.

दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने आसियान के निर्माण की पहल क्यों की?

उत्तर :

दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने निम्नलिखित कारणों से आसियान के निर्माण की पहल की-

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले और उसके दौरान, दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद के शिकार हुए तथा भारी राजनीतिक और आर्थिक कीमत चुकाई।
  2. युद्ध के बाद इन्हें राष्ट्र निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  3. शीतयुद्ध काल में इन्हें किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा था।
  4. परस्पर टकरावों की स्थिति में ये देश अपने आपको सँभालने की स्थिति में नहीं थे।
  5. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तीसरी दुनिया के देशों में सहयोग और मेल-जोल कराने में सफल नहीं हो रहे थे।

प्रश्न 6.

भारत और चीन के सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले प्रमुख मुद्दे लिखिए।

उत्तर :

भारत और चीन के सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले मुद्दे-

  1. सीमा-विवाद-भारत और चीन के मध्य सीमा-विवाद चल रहा है। यह विवाद मैकमोहन रेखा, अरुणाचल प्रदेश के एक भाग तवांग तथा अक्साई चिन के क्षेत्र को लेकर है।
  2. पाक को परमाणु सहायता-चीन गोपनीय तरीके से पाकिस्तान को परमाणु ऊर्जा एवं तकनीक प्रदान कर रहा है। इससे चीन के प्रति भारत में खिन्नता है।
  3. हिन्द महासागर में पैठ–चीन, हिन्द महासागर में अपनी पैठ जमाना चाहता है। इस हेतु उसने म्यानमार से कोको द्वीप लिया है तथा पाकिस्तान में कराँची के पास ग्वादर बन्दरगाह बना रहा है।
  4. भारत विरोधी रवैया-चीन भारत की परमाणु नीति की आलोचना करता है और सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोधी है।।

प्रश्न 7.

चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?

उत्तर :

चीन के साथ भारत के सम्बन्धों में सुधार हेतु सुझाव-

  1. सांस्कृतिक सम्बन्धों में सुदृढ़ता लाना-चीन और भारत दोनों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों-इसके लिए भाषा और साहित्य का आदान-प्रदान एवं अध्ययन किया जाए।
  2. नेताओं का आवागमन-दोनों देशों के प्रमुख नेता परस्पर एक-दूसरे देश का भ्रमण करें, अपने विचारों का आदान-प्रदान कर परस्पर सहयोग एवं सद्भाव की भावना को विकसित करें।।
  3. व्यापारिक सम्बन्धों को बढ़ावा-दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्धों में निरन्तर विस्तार किया जाना चाहिए।
  4. पर्यावरण सुरक्षा पर समान दृष्टिकोण-दोनों ही देश विश्व सम्मेलनों में पर्यावरण सुरक्षा के सम्बन्ध में समान दृष्टिकोण अपनाकर परस्पर एकता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  5. बातचीत द्वारा विवादों का समाधान-दोनों देश अपने विवादों का समाधान निरन्तर बातचीत द्वारा करने का प्रयास करते रहें।

प्रश्न 8.

आसियान के सदस्य देशों के नाम तथा इसके प्रमुख उद्देश्यों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।

उत्तर :

आसियान के सदस्य देश-सन् 1967 में स्थापित दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के सदस्य देश 10 हैं-

  1. इण्डोनेशिया,
  2. मलयेशिया,
  3. फिलीपीन्स,
  4. सिंगापुर,
  5. थाईलैण्ड,
  6. ब्रुनेई दारुस्सलाम,
  7. वियतनाम,
  8. लाओस,
  9. कम्बोडिया,
  10. म्यानमार।

आसियान के प्रमुख उद्देश्य

  1. क्षेत्रीय शान्ति तथा सुरक्षा स्थापित करना।
  2. आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विकास को प्रोत्साहन देना।
  3. दक्षिण-पूर्वी एशियाई अध्ययन को बढ़ावा देना।
  4. एक-समान उद्देश्यों तथा लक्ष्यों वाले अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा अन्य दूसरे संगठनों के साथ लाभप्रद और निकटतम सहयोग बनाए रखना।
  5. कृषि, व्यापार तथा उद्योगों के विकास में हरसम्भव सहयोग देना।
  6. प्रशिक्षण तथा शोध इत्यादि सुविधाएँ देने में परस्पर सहयोग तथा सहायता देना।
  7. आसियान देशों का साझा बाजार एवं उत्पादन आधार तैयार करना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारों का क्या महत्त्व है? अथवा यूरोपीय संघ के झण्डे में बना हुआ सोने के रंग के सितारों का घेरा किस बात का प्रतीक है?

उत्तर :

यूरोपीय संघ के झण्डे में सोने के रंग के 12 सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की एकता और मेल-मिलाप का प्रतीक है क्योंकि 12 की संख्या को वहाँ पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 2.

मार्शल योजना क्या है?

उत्तर :

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए महत्त्वपूर्ण सहायता की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। यह योजना अमेरिकी विदेश मन्त्री मार्शल के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3.

यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन कब और कैसे हुआ?

उत्तर :

अप्रैल 1951 में पश्चिमी यूरोप के छह देशों-फ्रांस, प० जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैण्ड और लक्जमबर्ग ने पेरिस सन्धि पर हस्ताक्षर कर यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।

प्रश्न 4.

यूरोपीय संघ की किन्हीं चार साझी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :

यूरोपीय संघ की चार साझी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोपीय संघ की साझी मुद्रा, स्थापना दिवस, गान एवं झण्डा।
  2. यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है।
  3. यूरोपीय संघ के दो सदस्य ब्रिटेन व फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं।
  4. यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनीतिक, कूटनीतिक एवं सैन्य प्रभाव बहुत अधिक है।

प्रश्न 5.

यूरोपीय संघ के देशों के मध्य पाए जाने वाले किन्हीं चार मतभेदों को बताइए।

उत्तर :

यूरोपीय संघ के देशों के मध्य पाए जाने वाले चार मतभेद निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोपीय देशों की विदेश एवं रक्षा नीति में परस्पर मतभेद पाया जाता है।
  2. इराक युद्ध का ब्रिटेन ने समर्थन किया, लेकिन फ्रांस व जर्मनी ने विरोध किया।
  3. यूरोप के कुछ देशों में यूरो मुद्रा को लागू करने के सम्बन्ध में मतभेद है।
  4. डेनमार्क तथा स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट सन्धि और साझी यूरोपीय मुद्रा ‘यूरो’ को मानने का प्रतिरोध किया।

प्रश्न 6.

यूरोपीय संघ क्या है? इसके गठन के कोई दो कारण बताइए।

उत्तर :

यूरोपीय संघ यूरोप के देशों का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना फरवरी 1992 में हुई थी। इसका राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य एवं कूटनीतिक रूप से विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

यूरोपीय संघ के निर्माण (गठन) के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोप के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए।
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक शक्ति से मुकाबला करने के लिए।

प्रश्न 7.

यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन क्या है?

उत्तर :

यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना सन् 1948 में अमेरिकी विदेश मन्त्री मार्शल के द्वारा प्रस्तुत योजना के आधार पर की गई थी।
इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोप के देशों की आर्थिक मदद करना था। इस संगठन ने एक ऐसा मंच प्रस्तुत किया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता की।

प्रश्न 8.

आसियान के झण्डे के विषय में आप क्या जानते हैं?

उत्तर :

दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के झण्डे (प्रतीक चिह्न) में धान की दस बालियों को दर्शाया गया है। ये दस बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को दर्शाती हैं जो परस्पर मित्रता व एकता के धागे से बँधे हुए हैं। झण्डे में दिया गया वृत्त आसियान की एकता का प्रतीक है।

प्रश्न 9.

भारत और आसियान के सम्बन्धों को संक्षेप में बताइए।

उत्तर :

भारत और आसियान के सम्बन्ध के विषय में कुछ तथ्य निम्नलिखित हैं-

  1. भारत और आसियान परस्पर मुक्त व्यापार सन्धि के प्रयास में है।
  2. भारत ने दो आसियान सदस्यों-सिंगापुर व थाईलैण्ड से मुक्त व्यापार सन्धि कर ली है।
  3. भारतीय विदेश नीति में आसियान देशों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है।
  4. भारत आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति के प्रति आकर्षित हुआ है।

प्रश्न 10.

चीन ने ‘खुले द्वार की नीति’ कब और क्यों अपनाई?

उत्तर :

सन् 1978 में चीन के तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों एवं खुले द्वार की नीति की घोषणा की। चीन ने विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता प्राप्त करने के लिए तथा बाधामूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए यह नीति अपनाई।

प्रश्न 11.

चीन की नई आर्थिक नीति की कोई चार असफलताएँ बताइए।

उत्तर :

चीन की आर्थिक नीति की चार असफलताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. चीन में हुए आर्थिक सुधारों का लाभ सभी वर्गों को समान रूप से प्राप्त नहीं हुआ है।
  2. चीन में बेरोजगारी बढ़ी है।
  3. चीन में अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है तथा पर्यावरण खराब हुआ है।
  4. चीन द्वारा अपनाई गई अर्थव्यवस्था से ग्रामों व शहरों, तटीय व मुख्य भूमि पर रहने वाले लोगों में आर्थिक असमानता बढ़ी है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

मास्ट्रिस्ट सन्धि पर हस्ताक्षर कब हुए थे-
(a) 7 फरवरी, 1993
(b) 7 फरवरी, 1992
(c) 8 जून, 1992
(d) 7 जुलाई, 1992.

उत्तर :

(b) 7 फरवरी, 1992.

प्रश्न 2.

मास्ट्रिस्ट सन्धि किस संगठन का आधार है-
(a) गैट
(b) विश्व व्यापार संगठन
(c) नाफ्टा
(d) यूरोपीय संघ।

उत्तर :

(d) यूरोपीय संघ।

प्रश्न 3.

उत्तर अटलाण्टिक सन्धि संगठन (नाटो) का निर्माण किया गया-
(a) 1945 में
(b) 1947 में
(c) 1949 में
(d) 1950 में।

उत्तर :

(c) 1949 में।

प्रश्न 4.

यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब की गई-
(a) 1949 में
(b) 1950 में
(c) 1948 में
(d) 1951 में।

उत्तर :

(c) 1948 में।

प्रश्न 5.

आसियान का मुख्यालय स्थित है-
(a) जकार्ता में
(b) बांडुंग में
(c) मनीला में
(d) सिंगापुर में।

उत्तर :

(a) जकार्ता में।

प्रश्न 6.

आसियान का स्थापना वर्ष है-
(a) 1967
(b) 1977
(c) 1966
(d) 1958

उत्तर :

(a) 1967

प्रश्न 7.

चीन की साम्यवादी क्रान्ति कब हुई-
(a) दिसम्बर 1948
(b) जनवरी 1949
(c) अक्टूबर 1949
(d) फरवरी 1950

उत्तर :

(c) अक्टूबर 1949.

प्रश्न 8.

चीन में साम्यवादी क्रान्ति के प्रमुख नेता थे-
(a) सन-यातसेन
(b) च्यांगकाई शेक
(c) माओत्से तुंग
(d) लेनिन।

उत्तर :

(c) माओत्से तुंग।

प्रश्न 9.

दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन कहलाता है-
(a) आसियान
(b) सार्क
(c) नाटो
(d) सेन्टो।

उत्तर :

(a) आसियान।

प्रश्न 10.

आसियान के झण्डे में प्रदर्शित वृत्त किसका प्रतीक है
(a) एकता का
(b) मित्रता का
(c) प्रतियोगिता का
(d) संघर्ष का।

उत्तर :

(a) एकता का।

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