NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 4

NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 4 | India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) 

NCERT Solutions for Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 4 India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 12

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NCERT | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)

NCERT Solutions Class 12 Rajniti Vigyan
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12
Subject: Rajniti Vigyan
Chapter: 4
Chapters Name: India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध)
Medium: Hindi

India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध) | Class 12 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions

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NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 India’s External Relations (भारत के विदेश संबंध)

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 Text Book Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.

इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ
(क) गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शुरुआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक सम्बन्धों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शान्ति और मैत्री की सन्धि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी। उत्तर:
(क) सही,
(ख) गलत,
(ग) सही,
(घ) गलत।

प्रश्न 2.

निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएँ-
NCERT Solutions For Class 12 Political Science


उत्तर :

NCERT Solutions For Class 12 Political Science

प्रश्न 3.

नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेत क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।

उत्तर :

नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेत इसलिए मानते थे कि स्वतन्त्रता किसी भी देश की विदेश नीति के संचालन की प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है। स्वतन्त्रता से तात्पर्य है राष्ट्र के पास प्रभुसत्ता का होना तथा प्रभुसत्ता के दो पक्ष हैं-

  1. आन्तरिक सम्प्रभुता, और
  2. बाह्य सम्प्रभुता।

आन्तरिक प्रभुसत्ता (सम्प्रभुता) उसे कहा जाता है जब कोई राष्ट्र बिना किसी बाह्य तथा आन्तरिक दबाव के अपनी राष्ट्रीय नीतियों, कानूनों का निर्धारण स्वतन्त्रतापूर्वक कर सके और बाह्य प्रभुसत्ता (सम्प्रभुता) उसे कहते हैं जब कोई राष्ट्र अपनी विदेश नीति को स्वतन्त्रतापूर्वक बिना किसी दबाव के निर्धारित कर सके। एक पराधीन देश अपनी विदेश नीति का संचालन स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं कर सकता क्योंकि वह दूसरे देशों के अधीन होता है।

दो कारण और उदाहरण

(1) जो देश किसी दबाव में आकर अपनी विदेश नीति का निर्धारण करता है तो उसकी स्वतन्त्रता निरर्थक होती है तथा एक प्रकार से दूसरे देश के अधीन हो जाता है व उसे अनेक बार अपने राष्ट्रीय हितों की भी अनदेखी करनी पड़ती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर नेहरू ने शीतयुद्ध काल में किसी भी गुट में शामिल न होने और असंलग्नता की नीति को अपनाकर दोनों गुटों के दबाव को नहीं माना।

(2) भारत स्वतन्त्र नीति को इसलिए अनिवार्य मानता था ताकि देश में लोकतन्त्र, कल्याणकारी राज्य के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपनिवेशवाद, जातीय भेदभाव, रंग-भेदभाव का मुकाबला डटकर किया जा सके। भारत ने सन् 1949 में साम्यवादी चीन को मान्यता प्रदान की तथा सुरक्षा परिषद् में उसकी सदस्यता का समर्थन किया और सोवियत संघ ने हंगरी पर जब आक्रमण किया तो उसकी निन्दा की।

प्रश्न 4.

“विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।

उत्तर :

जिस तरह किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को अन्दरूनी और बाहरी कारक निर्देशित करते हैं उसी तरह एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है। विकासशील देशों के पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने के लिए जरूरी संसाधनों का अभाव होता है। इसके चलते वे बढे-चढे देशों की अपेक्षा बड़े सीधे-सादे लक्ष्यों को लेकर अपनी विदेश नीति तय करते हैं। ऐसे देशों का जोर इस बात पर होता है कि उनके पड़ोस में अमन-चैन कायम रहे और विकास होता रहे।

भारत ने 1960 के दशक में जो विदेश नीति निर्धारित की उस पर चीन एवं पाकिस्तान के युद्ध, अकाल, राजनीतिक परिस्थितियाँ तथा शीतयुद्ध का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाना भी इसका उदाहरण माना जा सकता है। उदाहरणार्थ-तत्कालीन समय में भारत की आर्थिक स्थिति अत्यधिक दयनीय थी, इसलिए उसने शीतयुद्ध के काल में किसी भी गुट का समर्थन नहीं किया और दोनों ही गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करता रहा।

प्रश्न 5.

अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन बातों को बदलना चाहेंगे? ठीक इसी तरह यह भी बताएँ कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर :

भारतीय विदेश नीति में निम्नलिखित दो बदलाव लाना चाहूँगा-

  1. मैं वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति में बदलाव लाना चाहूँगा क्योंकि वर्तमान वैश्वीकरण और उदारीकरण के युग में किसी भी गुट से अलग रहना देश-हित में नहीं है।
  2. मैं, भारत की विदेश नीति में चीन एवं पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है उसमें बदलाव लाना चाहूँगा, क्योंकि इसके वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं।

इसके अतिरिक्त मैं भारतीय विदेश नीति के निम्नलिखित दो पहलुओं को बरकरार रखना चाहूँगा-

  1. सी०टी०बी०टी० के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को जारी रखंगा।
  2. मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सहयोग जारी रगा।

प्रश्न 6.

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(क) भारत की परमाणु नीति।
(ख) विदेश नीति के मामले पर सर्व-सहमति।

उत्तर :

(क) भारत की परमाणु नीति-भारत ने मई 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण करते हुए अपनी परमाणु नीति को नई दिशा प्रदान की। इसके प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं-

  1. आत्मरक्षा भारत की परमाणु नीति का प्रथम पक्ष है। भारत ने आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का निर्माण किया, ताकि कोई अन्य देश भारत पर परमाणु हमला न कर सके।
  2. परमाणु हथियारों के प्रथम प्रयोग की मनाही भारतीय परमाणु नीति का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है। भारत ने परमाणु हथियारों का युद्ध में पहले प्रयोग न करने की घोषणा कर रखी है।
  3. भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है।
  4. भारत परमाणु हथियार बनाकर विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है।
  5. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की भेदभावपूर्ण नीति का विरोध करना।
  6. पड़ोसी राष्ट्रों से सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बनाने का हक है।

(ख) विदेश नीति के मामले पर सर्व-सहमति-विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति आवश्यक है क्योंकि यदि एक देश की विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति नहीं होगी, तो वह देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष प्रभावशाली ढंग से नहीं रख पाएगा। भारत की विदेश नीति के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं जैसे गुटनिरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, दूसरे देशों में मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना इत्यादि पर सदैव सर्व-सहमति रही है।

प्रश्न 7.

भारत की विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों को आधार मानकर हुआ। लेकिन 1962-1971 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मन्तव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर :

भारत की विदेश नीति के निर्माण में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अहम भूमिका निभाई। वे प्रधानमन्त्री के साथ-साथ विदेशमन्त्री भी थे। प्रधानमन्त्री और विदेशमन्त्री के रूप में सन् 1947 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना तथा उसके क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। उनके अनुसार विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे-

  1. कठिन संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बनाए रखना,
  2. क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना।
  3. तेजी के साथ विकास (आर्थिक) करना। नेहरू जी उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे।

स्वतन्त्र भारत की विदेश नीति में शान्तिपूर्ण विश्व का सपना था और इसके लिए भारत ने गुटनिरपेक्षता का पालन किया। भारत ने इसके लिए शीतयुद्ध में उपजे तनाव को कम करने की कोशिश की तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के शान्ति-अभियानों में अपनी सेना भेजी। भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया।

दुर्भाग्यवश सन् 1962 से 1972 की अवधि में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ा। सन् 1962 में चीन के साथ युद्ध हुआ। सन् 1965 में भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा तथा तीसरा युद्ध सन् 1971 में भारत-पाक के मध्य ही हुआ। वास्तव में भारत की विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों को आधार मानकर हुआ लेकिन सन् 1962 से 1973 की अवधि में जिन तीन युद्धों का सामना भारत को करना पड़ा उन्हें विदेश नीति की असफलता का परिणाम नहीं कहा जा सकता। बल्कि इसे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम माना जा सकता है। इसके पक्ष में तर्क इस प्रकार हैं

(1) भारत की विदेश नीति शान्ति और सहयोग के आधार पर टिकी हुई है। शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों यानी पंचशील की घोषणा भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 में की। परन्तु चीन ने विश्वासघात किया। चीन ने सन् 1956 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इससे भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक रूप से जो एक मध्यवर्ती राज्य बना चला आ रहा था, वह खत्म हो गया। तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत से राजनीतिक शरण माँगी और सन् 1959 में भारत ने उन्हें ‘शरण दी। चीन ने आरोप लगाया कि भारत सरकार अन्दरूनी तौर पर चीन विरोधी गतिविधियों को हवा दे रही है। चीन ने अक्टूबर 1962 में बड़ी तेजी से तथा व्यापक स्तर पर भारत पर हमला किया।

(2) कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के साथ बँटवारे के तुरन्त बाद ही संघर्ष छिड़ गया था। दोनों देशों के बीच सन् 1965 में कहीं ज्यादा गम्भीर किस्म के सैन्य-संघर्ष की शुरुआत हुई। परन्तु उस समय लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारत सरकार की विदेश नीति असफल नहीं हुई। भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सन् 1966 में ताशकन्द-समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई। इस प्रकार उस महान नेता की आन्तरिक नीति के साथ-साथ भारत की विदेश नीति की धाक भी जमी।

(3) बंगलादेश के मामले पर सन् 1971 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने एक सफल कूटनीतिज्ञ की भूमिका में बंगलादेश का समर्थन किया तथा एक शत्रु देश की कमर स्थायी रूप से तोड़कर यह सिद्ध किया कि युद्ध में सब जायज है तथा “हम पाकिस्तान के बड़े भाई हैं’ ऐसे आदर्शवादी नारों का व्यावहारिक तौर पर कोई स्थान नहीं है।

(4) विदेशी सम्बन्ध राष्ट्र हितों पर टिके होते हैं। राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। ऐसा भी नहीं है कि हमेशा आदर्शों का ही ढिंढोरा पीटा जाए। हम परमाणु शक्ति-सम्पन्न हैं, सुरक्षा परिषद् में स्थायी स्थान प्राप्त करेंगे तथा राष्ट्र की एकता व अखण्डता, भू-भाग, आत्म-सम्मान व यहाँ के लोगों के जान-माल की रक्षा भी करेंगे। वर्तमान परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि हमें समानता से हर मंच व हर स्थान पर अपनी बात कहनी होगी तथा यथासम्भव अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, सुरक्षा, सहयोग व प्रेम को बनाए रखने का प्रयास भी करना होगा।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सन् 1962-1972 के बीच तीन युद्ध भारत की विदेश नीति की असफलता नहीं बल्कि तत्कालीन परिस्थितियों का ही परिणाम थे।

प्रश्न 8.

क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है? 1971 के बंगलादेश युद्ध के सन्दर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।

उत्तर :

भारत की विदेश नीति से यह बिल्कुल भी नहीं झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है। सन् 1971 का बंगलादेश युद्ध इस बात को बिल्कुल साबित नहीं करता। बंगलादेश के निर्माण के लिए स्वयं पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापूर्ण नीतियाँ थीं। भारत एक शान्तिप्रिय देश है। वह शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीतियों में विश्वास करता आया है।

भारत द्वारा सन् 1971 में बंगलादेश के मामले में हस्तक्षेप-अवामी लीग के अध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान थे तथा सन् 1970 के चुनाव में उनके दल को बड़ी सफलता प्राप्त हुई। चुनाव परिणामों के आधार पर संविधान सभा की बैठक बुलाई जानी चाहिए थी, जिसमें मुजीब के दल को बहुमत प्राप्त था। शेख मुजीब को बन्दी बना लिया गया। उसके साथ ही अवामी लीग के और नेताओं को भी बन्दी बना लिया गया। पाकिस्तानी ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म ढाए तथा बड़ी संख्या में वध किए गए। जनता ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई तथा पाकिस्तान से अलग होकर स्वतन्त्र राज्य बनाने की घोषणा की तथा आन्दोलन चलाया गया। सेना ने अपना दमन चक्र और तेज कर दिया। इस जुल्म से बचने के लिए लाखों व्यक्ति पूर्वी पाकिस्तान को छोड़कर भारत आ गए। भारत के लिए इन शरणार्थियों को सँभालना कठिन हो गया। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के प्रति नैतिक सहानुभूति दिखाई तथा उसकी आर्थिक सहायता भी की। पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया कि वह उसके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा पर आक्रमण कर दिया। भारत ने दोनों तरफ पश्चिमी और पूर्वी सीमा के पार पाकिस्तान पर जवाबी हमला किया तथा दस दिन के अन्दर ही पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया और बंगलादेश का उद्भव हुआ।

कुछ राजनीतिज्ञों का मत है कि भारत दक्षिण एशिया क्षेत्र में महाशक्ति की भूमिका का निर्वाह करना चाहता है। वैसे इस क्षेत्र में भारत स्वाभाविक रूप से ही एक महाशक्ति है। परन्तु भारत ने क्षेत्रीय महाशक्ति बनने की आकांक्षा कभी नहीं पाली। भारत ने बंगलादेश युद्ध के समय भी पाकिस्तान को धूल चटायी लेकिन उसके बन्दी बनाए गए सैनिकों को ससम्मान रिहा किया। भारत अमेरिका जैसी महाशक्ति बनना नहीं चाहता जिसने छोटे-छोटे देशो को अपने गुट में शामिल करने के प्रयास किए तथा अपने सैन्य संगठन बनाए। यदि भारत महाशक्ति की भूमिका का निर्वाह करना चाहता तो सन् 1965 में पाकिस्तान के विजित क्षेत्रों को वापस न करता तथा सन् 1971 के युद्ध में प्राप्त किए गए क्षेत्रों पर भी अपना दावा बनाए रखता। भारत बलपूर्वक किसी देश पर अपनी बात थोपने की विचारधारा नहीं रखता।

प्रश्न 9.

किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।

उत्तर :

किसी भी देश की विदेश नीति के निर्धारण में उस देश के राजनीतिक नेतृत्व की विशेष भूमिका होती है। उदाहरण के लिए, भारत की विदेश नीति पर इसके महान् नेताओं के व्यक्तित्व का व्यापक प्रभाव पड़ा।
पण्डित नेहरू के विचारों से भारत की विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे। वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के प्रबल समर्थक थे। साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा भारत की विदेश नीति के ढाँचे को ढाला।

इसी प्रकार श्रीमती इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व व व्यक्तित्व की भी भारत की विदेश नीति पर स्पष्ट छाप दिखाई देती है। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, गरीबी हटाओ का नारा दिया और रूस के साथ दीर्घ अनाक्रमण सन्धि की।

राजीव गांधी के काल में चीन, पाकिस्तान सहित अनेक देशों से सम्बन्ध सुधारने के प्रयास किए गए तथा श्रीलंका के देशद्रोहियों को दबाने में वहाँ की सरकार को सहायता देकर यह बताया कि भारत छोटे देशों की अखण्डता का सम्मान करता है।

इसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति नेहरू जी की विदेश नीति से अलग न होकर लोगों को अधिक अच्छी लगी क्योंकि देश में परमाणु शक्ति का विकास हुआ। उन्होंने जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का नारा दिया।

प्रश्न 10.

निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल नहीं करना…. इसका अर्थ होता है चीजों को यथासम्भव सैन्य दृष्टिकोण से नदेखना और इसकी कभी जरूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतन्त्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना। -जवाहरलाल नेहरू
(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे।
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य-गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?

उत्तर :

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि वे किसी भी सैन्य गुट में शामिल न होकर एक स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन करना चाहते थे।
(ख) भारत-सोवियत मैत्री सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं हुआ क्योंकि इस सन्धि के पश्चात् भी भारत गुटनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धान्तों पर कायम रहा तथा जब सोवियत संघ की सेनाएँ अफगानिस्तान में पहुँची तो भारत ने इसकी आलोचना की।
(ग) यदि विश्व में सैन्य गुट नहीं होते तो भी गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी रहती क्योंकि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना शान्ति एवं विकास के लिए की गई थी तथा शान्ति एवं विकास के लिए चलाया गया कोई भी आन्दोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 InText Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

चौथे अध्याय में एक बार फिर से जवाहरलाल नेहरू। क्या वे कोई सुपरमैन थे, या उनकी भूमिका महिमा-मण्डित कर दी गई है?

उत्तर :

जवाहरलाल नेहरू वास्तव में एक सुपरमैन की भूमिका में ही थे। उन्होंने न केवल भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी बल्कि स्वतन्त्रता के बाद भी उन्होंने राष्ट्रीय एजेण्डा तय करने में निर्णायक भूमिका निभायी। नेहरू जी प्रधानमन्त्री के साथ-साथ विदेशमन्त्री भी थे। उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और उसके क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। नेहरू जी की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे-

  1. कठिन संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बनाए रखना,
  2. क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना, तथा
  3. तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू जी इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे।

इसके अलावा पण्डित नेहरू द्वारा अपनायी गई राष्ट्रवाद, अन्तर्राष्ट्रीयवाद व पंचशील की अवधारणा आज . भी भारतीय विदेश नीति के आधार स्तम्भ माने जाते हैं।

प्रश्न 2.

हम लोग आज की बनिस्बत जब ज्यादा गरीब, कमजोर और नए थे तो शायद दुनिया में हमारी पहचान कहीं ज्यादा थी। है ना विचित्र बात?

उत्तर :

शीतयुद्ध के दौरान दुनिया दो खेमों में विभाजित हो गयी थी। इन दोनों खेमों के नेता के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ का विशिष्ट स्थान था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूँजीवादी विचारधारा का प्रसार करते हुए तथा सोवियत संघ ने साम्यवादी विचारधारा का प्रसार करते हुए नवोदित विकासशील व अल्प विकसित राष्ट्रों को अपने खेमे में शामिल करने का प्रयास किया।

लेकिन भारत ने अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किसी भी खेमे में सम्मिलित न होने का निर्णय लिया और स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन करते हुए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी। इसी कारण से भारत की दुनिया में एक विशेष पहचान थी और दुनिया के अल्पविकसित और विकासशील देशों ने भारत की इस नीति का अनुसरण भी किया।

लेकिन शीतयुद्ध के अन्त, बदलती विश्व व्यवस्था तथा वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की प्रासंगिकता पर एक प्रश्न चिह्न लग गया है। आज दुनिया का कोई भी राष्ट्र अकेला रहकर अपना सर्वांगीण विकास नहीं कर सकता। यही कारण है कि आज भारत स्वयं भी इस नीति से पूर्णतया सम्बद्ध नहीं है, उसका झुकाव भी महाशक्तियों की ओर किसी-न-किसी रूप में दिखाई दे रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि आज की बनिस्बत हम लोग जब ज्यादा गरीब, कमजोर और नए थे तो शायद दुनिया में हमारी पहचान ज्यादा थी।

प्रश्न 3.

“मैंने सुना है कि 1962 के युद्ध के बाद जब लता मंगेशकर ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों …..’ गाया तो नेहरू भरी सभा में रो पड़े थे। बड़ा अजीब लगता है यह सोचकर कि इतने बड़े लोग भी किसी भावुक लम्हे में रो पड़ते हैं।”

उत्तर :

यह बिलकुल सत्य है कि जिन लोगों में राष्ट्रवाद व देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई हो और उनके सामने राष्ट्र का गुण-ज्ञान किया जाए तो ऐसे लोगों का भावुक होना स्वाभाविक है। जहाँ तक पण्डित नेहरू का सवाल है, वे महान राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने जीवन-पर्यन्त राष्ट्र की सेवा की। इस गीत को सुनकर उनके आँसू इसलिए छलक पड़े क्योंकि इस गीत में देश के उन शहीदों की कुर्बानी की बात कही गयी थी जिन्होंने हँसते-हँसते अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। उन्हीं की कुर्बानी ने देश को स्वतन्त्रता दिलवायी थी।

प्रश्न 4.

“हम ऐसा क्यों कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ? नेता झगड़े और सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। ज्यादातर आम नागरिकों को इनसे कुछ लेना-देना न था।”

उत्तर :

पाकिस्तान भारत का ऐसा पड़ोसी राष्ट्र है जो सबसे निकट होते हुए भी सबसे दूर है। सजातीय संस्कृति एवं ऐतिहासिक अनुभूतियों की दृष्टि से यह सबसे निकट है, लेकिन इन दोनों देशों के मध्य आपसी कटुता व संघर्ष के पीछे राजनीतिक दलों की सत्ता प्राप्ति की महत्त्वाकांक्षा सबसे अधिक जिम्मेदार है। राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति हेतु आम जनता को गुमराह करते हैं और साम्प्रदायिक दुष्प्रचार की नीति अपनाते हैं।

भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में कटुता और वैमनस्य कई बार पाकिस्तान के राजनेताओं के साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से उत्पन्न हुए हैं। धार्मिक और साम्प्रदायिक वैमनस्य पाकिस्तान के शासक जान-बूझकर बनाए रखना चाहते हैं। वे साम्प्रदायिक विष को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संगठनों में अभिव्यक्त करते रहे हैं। इसके अलावा उत्तर-भारत-सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि इस सन्धि के बाद भी भारत गुटनिरपेक्षता के मौलिक सिद्धान्तों पर कायम रहा। वह वारसा गुट में शामिल नहीं हुआ था। उसे अपनी प्रतिरक्षा के लिए बढ़ रहे खतरे, अमेरिका तथा पाकिस्तान में बढ़ रही घनिष्ठता व सहायता के कारण रूस से 20 वर्षीय सन्धि की थी। उसने सन्धि के बावजूद गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल किया। यही कारण है कि जब सोवियत संघ की सेनाएँ अफगानिस्तान में पहुँची तो भारत ने इसकी आलोचना की।

इसलिए यह कहना कि सोवियत मैत्री सन्धि पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल नहीं किया, गलत है।

प्रश्न 6.

बड़ा घनचक्कर है! क्या यहाँ सारा मामला परमाणु बम बनाने का नहीं है? हम ऐसा सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते?

उत्तर :

भारत ने सन् 1974 में परमाणु परीक्षण किया तो इसे उसने शान्तिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण किए तथा यह जताया कि उसके पास सैन्य उद्देश्यों के लिए अणु शक्ति को प्रयोग में लाने की क्षमता है। इस दृष्टि से यह मामला यद्यपि परमाणु बम बनाने का ही था तथापि भारत की परमाणु नीति में सैद्धान्तिक तौर पर यह बात स्वीकार की गई है कि भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन इन हथियारों का प्रयोग ‘पहले नहीं करेगा।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 Other Important Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

भारत की विदेशी नीति के प्रमुख सिद्धान्त एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

एक राष्ट्र के रूप में भारत का उदय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था। ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की सम्प्रभुता का सम्मान करने तथा शान्ति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा। अत: उसने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धान्त पर आधारित किया है। भारत की विदेश नीति के मूलभूत सिद्धान्तों (विशेषताओं) का विवेचन निम्न प्रकार है-

1. गुटनिरपेक्षता की नीति–द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो गुटों में बँट गया था। इसमें से एक पश्चिमी देशों का गुट था तथा दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने पीछे लगाने के अनेक प्रयास किए, लेकिन भारत ने दोनों ही प्रकार के सैन्य गुटों से अलग रहने का निश्चय किया और तय किया कि वह किसी भी सैन्य गठबन्धन का सदस्य नहीं बनेगा। वह स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाएगा और प्रत्येक राष्ट्रीय महत्त्व के प्रश्न पर स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष रूप से विचार करेगा। पं० नेहरू के शब्दों में, “गुटनिरपेक्षता शान्ति का मार्ग तथा लड़ाई के बचाव का मार्ग है। इसका उद्देश्य सैन्य गुटबन्दियों से दूर रहना है।”

2. उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद का विरोध-साम्राज्यवादी देश दूसरे देशों की स्वतन्त्रता का अपहरण करके उनका शोषण करते रहते हैं। संघर्ष तथा युद्धों का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के अधिकांश राष्ट्र स्वतन्त्र हो गए पर साम्राज्यवाद का अभी पूर्ण विनाश नहीं हो पाया। भारत ने एशियाई तथा अफ्रीकी देशों की स्वतन्त्रता का स्थागत किया है।

3. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध–भारत की विदेश नीति की अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने हेतु हमेशा तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बनाए हैं बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाए हैं। भारत के नेताओं ने कई बार घोषणा भी की है कि भारत सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है।

4. पंचशील तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व-पंचशील का अर्थ है-पाँच सिद्धान्त। ये सिद्धान्त हमारी विदेश नीति के मूल आधार हैं। इन पाँच सिद्धान्तों के लिए ‘पंचशील’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 29 अप्रैल, 1954 में किया गया था। ये ऐसे सिद्धान्त हैं कि यदि इन पर विश्व के सभी देश चलें तो विश्व में शान्ति स्थापित हो सकती है। ये पाँच सिद्धान्त अग्रलिखित हैं-

  1. एक-दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
  2. एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  4. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को मानना।
  5. आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।

5. राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा-भारत शुरू से ही एक शान्तिप्रिय देश रहा है इसीलिए उसने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धान्त पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए भारत ने संसार के समस्त देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में भारत के सम्बन्ध विश्व की महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका तथा रूस और अन्य लगभग समस्त देशों के साथ मैत्रीपूर्ण तथा अच्छे हैं।

प्रश्न 2.

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियाँ बताइए।

उत्तर :

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-

1. गुटनिरपेक्षता की नीति को मान्यता प्रारम्भ में जब गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का आरम्भ हुआ तो विश्व के विकसित व अविकसित राष्ट्रों ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया तथा इसे राजनीति के विरुद्ध एक संकल्पना का नाम दिया। अत: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रवर्तकों ने यह सोचा कि इसके विषय में राष्ट्रों को कैसे समझाया जाए एवं विश्व के राष्ट्रों से इसे कैसे मान्यता दिलवाई जाए? विश्व के दोनों राष्ट्र अमेरिका एवं सोवियत संघ कहते हैं कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन एक छलावे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। अतः विश्व के राष्ट्रों को किसी एक गुट में अवश्य शामिल हो जाना चाहिए, परन्तु गुटनिरपेक्ष आन्दोलन अपनी नीतियों पर दृढ़ रहा।

2. शीतयुद्ध के भय को दूर करना-शीतयुद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में तनाव का वातावरण था लेकिन गुटनिरपेक्षता की नीति ने इस तनाव को शिथिलता की दशा में लाने के लिए अनेक प्रयास किए तथा इसमें सफलता प्राप्त की।

3. विश्व के संघर्षों को दूर करना–गुटनिरपेक्षता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने विश्व में होने वाले कुछ भयंकर संघर्षों को टाल दिया था। धीरे-धीरे उनके समाधान भी ढूँढ लिए गए। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों में आण्विक शस्त्र के खतरों को दूर करके अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में शान्ति व सुरक्षा को बनाने में योगदान दिया। विश्व के छोटे-छोटे विकासशील तथा विकसित राष्ट्रों को दो भागों में विभक्त होने से रोका।

गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने सर्वोच्च शक्तियों को हमेशा यही प्रेरणा दी कि “संघर्ष अपने लक्ष्य से सर्वनाश लेकर चलता है” इसलिए इससे बचकर चलने में ही विश्व का कल्याण है। इसके स्थान पर यदि सर्वोच्च शक्तियाँ विकासशील राष्ट्रों के कल्याण के लिए कुछ कार्य करती हैं तो इससे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को भी बल मिलेगा। उदाहरणार्थ-गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने कोरिया युद्ध, बर्लिन का संकट, इण्डो-चीन संघर्ष, चीनी तटवर्ती द्वीप समूह का विवाद (1955) एवं स्वेज नहर युद्ध (1956) जैसे संकटों के सम्बन्ध में निष्पक्ष तथा त्वरित समाधान के सुझाव देकर विश्व को भयंकर आग की लपटों में जाने से बचा लिया।

4. निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियन्त्रण की दिशा में भूमिका-गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के देशों ने निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियन्त्रण के लिए विश्व में अवसर तैयार किया है। यद्यपि इस क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष देशों को तुरन्त सफलता नहीं मिली, तथापि विश्व के राष्ट्रों को यह भरोसा होने लगा कि हथियारों को बढ़ावा देने से विश्वशान्ति संकट में पड़ सकती है। यह गुटनिरपेक्षता का ही परिणाम है कि सन् 1954 में आण्विक अस्त्र के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लग गया तथा सन् 1963 में आंशिक परीक्षण पर प्रतिबन्ध स्वीकार किए गए।

5. संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मान-गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का भी हमेशा सम्मान किया, साथ ही संगठन के वास्तविक रूप को रूपान्तरित करने में सहयोग किया। पहली बात तो यह है कि गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या इतनी है कि शीतयुद्ध के वातावरण को तटस्थता की नीति के रूप में बदलाव करने में राष्ट्रों के संगठन की बात सुनी गयी। इससे छोटे राष्ट्रों पर संयुक्त राष्ट्र संघ का नियन्त्रण सरलतापूर्वक लागू हो सका था। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के महत्त्व को बढ़ावा देने में भी सहायता दी।

6. आर्थिक सहयोग का वातावरण बनाना-गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विकासशील राष्ट्रों के बीच अपनी विश्वसनीयता का ठोस प्रमाण दिया जिस कारण विकासशील राष्ट्रों को समय-समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त हो सकी। कोलम्बो शिखर सम्मेलन में जो आर्थिक घोषणा-पत्र तैयार किया गया जिसमें गटनिरपेक्ष राष्ट्रों के बीच ज्यादा-से-ज्यादा आर्थिक सहयोग की स्थिति निर्मित हो सके। इस प्रकार से गुटनिरपेक्षता का आन्दोलन आर्थिक सहयोग का एक संयुक्त मोर्चा है।

प्रश्न 3.

भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाए जाने के प्रमुख कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर :

भारत ने शीतयुद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के विकास पर बहुत अधिक बल दिया। इसके अलावा भारत नि:शस्त्रीकरण का समर्थन करता रहा लेकिन सन् 1962 में चीन से युद्ध में हार तथा सन् 1965 व 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद भारत को अपनी विदेश नीति पर सोचना पड़ा। 1970 के दशक में भारत ने प्रथम बार अनुभव किया कि अन्य राष्ट्रों की तरह उसे भी परमाणु सम्पन्न बनना चाहिए। भारत ने सन् 1974 में एवं सन् 1998 में परमाणु परीक्षण किए। वर्तमान में भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाए जाने के निम्नलिखित कारण हैं-

1. आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाना—विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार उपलब्ध हैं वे सभी आत्मनिर्भर देश माने जाते हैं। भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना चाहता है जिससे कि उसकी पहचान विश्व स्तर पर स्थापित हो।

2. शक्तिशाली राष्ट्र बनने की इच्छा-विश्व में जितने भी देश परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं; वे सभी शक्तिशाली राष्ट्र माने जाते हैं। भारत भी उसी राह पर चलना चाहता है। भारत भी परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है ताकि कोई देश उस पर बुरी नजर न डाले।

3. विश्वव्यापी प्रतिष्ठा प्राप्त करना-सम्पूर्ण विश्व में सभी परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों को आदर और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। भारत भी परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करना चाहता है।

4. शान्तिपूर्ण कार्यों हेतु परमाणु हथियारों का उपयोग–भारत का मत है कि उसने शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु नीति को अपनाया है। भारत ने जब अपना प्रथम परमाणु परीक्षण किया तो उसे शान्तिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत का मत है कि वह अणु-शक्ति को केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों में प्रयोग करने की अपनी नीति के प्रति दृढ़ संकल्प है।

5. भारत द्वारा लड़े गए युद्ध-भारत ने सन् 1962 में चीन के साथ युद्ध किया तथा सन् 1965 व 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध किया। इन युद्धों में भारत को बहुत जन-धन की हानि उठानी पड़ी। अब भारत युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए परमाणु हथियार प्राप्त करना चाहता है।

6. पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना-भारत में पड़ोसी देशों चीन व पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं। इन देशों के साथ भारत के युद्ध भी हो चुके हैं। अत: भारत को इन देशों से अपने को सुरक्षित महसूस करने के लिए परमाणु हथियार बनाना अति आवश्यक है।

7. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना—भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से स्वयं को बचाने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है। भारत ने सदैव ही विश्व समुदाय को यह आश्वस्त किया है कि वह किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियारों के प्रयोग की पहल नहीं करेगा। परमाणु शक्ति सम्पन्न होने के बाद आज भारत इस स्थिति में पहुंच चुका है कि कोई भी देश भारत पर हमला करने से पहले सोचेगा।

8. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की भेदपूर्ण नीति-विश्व के परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों ने परमाणु अप्रसार सन्धिं एवं व्यापक परमाणु परीक्षण सन्धि को इस प्रकार लागू करना चाहा कि उनके अलावा कोई अन्य देश परमाणु हथियार का निर्माण न कर सके। भारत ने इन दोनों सन्धियों को भेदभाव मानते हुए उन पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तथा यह घोषणा की कि वह अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन इन हथियारों के प्रयोग की पहल नहीं करेगा। भारत की परमाणु नीति में यह बात स्पष्ट की गयी है कि भारत वैश्विक स्तर पर लागू एवं भेदभावरहित परमाणु निःशस्त्रीकरण के लिए वचनबद्ध है ताकि परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व की रचना हो।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

भारतीय संविधान में दिए गए विदेश नीति सम्बन्धी राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :

भारत के संविधान में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए हैं बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए, के बारे में भी निर्देश दिए गए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 में ‘अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के बढ़ावे’ के लिए राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों के माध्यम से कहा गया है कि राज्य-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
  2. राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने का,
  3. संगठित लोगों से एक-दूसरे से व्यवहार में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और सन्धि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का, और
  4. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को पारस्परिक बातचीत द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।

प्रश्न 2.

‘शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व’ से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :

भारतीय विदेश नीति का सार ‘शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व’ है। शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है-बिना किसी मनमुटाव के मैत्रीपूर्ण ढंग से एक देश का दूसरे देश के साथ रहना। यदि भिन्न राष्ट्र एक-दूसरे के साथ पड़ोसियों की तरह नहीं रहेंगे तो विश्व में शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती। शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व विदेश नीति का एकमात्र सिद्धान्त ही नहीं है बल्कि यह राज्यों के बीच व्यवहार का एक तरीका भी है।

भारत एशिया की महाशक्ति बनने की इच्छा नहीं रखता है तथा पंचशील और गुटनिरपेक्षता की नीति से समर्थित शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में आस्था रखता है। पंचशील के सिद्धान्त हमारी विदेश नीति के मूलाधार हैं। पंचशील के ये सिद्धान्त ऐसे हैं कि यदि इन पर विश्व के सभी देश अमल करें तो शान्ति स्थापित हो सकती है। पंचशील के इन सिद्धान्तों में से एक प्रमुख सिद्धान्त है-“शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को मानना।” शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों यानि पंचशील की घोषणा भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 में की।

प्रश्न 3.

भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर :

भारतीय विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य अथवा उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति व विकास करना है। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा का समर्थन करना एवं पारस्परिक मतभेदों के शान्तिपूर्ण समाधान का प्रयास करना।
  2. शस्त्रों की होड़-विशेष तौर से आण्विक शस्त्रों की होड़ का विरोध करना व व्यापारिक निःशस्त्रीकरण का समर्थन करना।
  3. राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना जिससे राष्ट्र की स्वतन्त्रता व अखण्डता पर मँडराने वाले हर प्रकार के खतरे को रोका जा सके।
  4. विश्वव्यापी तनाव दूर करके पारस्परिक समझौते को बढ़ावा देना तथा संघर्ष नीति व सैन्य गुटबाजी का विरोध करना।
  5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लवाद, पृथकतावाद एवं सैन्यवाद का विरोध करना।
  6. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा पंचशील के आदर्शों को बढ़ावा देना।
  7. विश्व के समस्त राष्ट्रों विशेष रूप से पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।

प्रश्न 4.

भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का महत्त्व बताइए। भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई है?

उत्तर :

भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का महत्त्व गुटनिरपेक्षता का अर्थ है कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के सम्बन्ध में अपनी स्वतन्त्र निर्णय लेने की नीति का पालन करता है। भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्त को अत्यधिक महत्त्व दिया। भारत प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या का समर्थन या विरोध उसमें निहित गुण और दोषों के आधार पर करता है। भारत ने यह नीति अपने देश के राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनाई है। भारत की विभिन्न सरकारों ने अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता की नीति ही अपनाई है।

भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण-

  1. किसी भी गुट के साथ मिलने तथा उसका पिछलग्गू बनने से राष्ट्र की स्वतन्त्रता कुछ अंश तक अवश्य प्रभावित होती है।
  2. भारत ने अपने को गुट संघर्ष में शामिल करने की अपेक्षा देश की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रगति की ओर ध्यान देने में अधिक लाभ समझा क्योंकि हमारे सामने अपनी प्रगति अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  3. भारत स्वयं एक महान देश है तथा इसे अपने क्षेत्र में अपनी स्थिति को महत्त्वपूर्ण बनाने हेतु किसी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं थी।

प्रश्न 5.

गुटनिरपेक्षता की नीति किन-किन सिद्धान्तों पर आधारित है? संक्षेप में बताइए।

उत्तर :

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया। भारत ने यह नीति अपने देश की राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनाई है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को जन्म देने तथा उसको बनाए रखने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। गुटनिरपेक्षता की नीति मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है-

  1. गुटनिरपेक्ष राष्ट्र दोनों गुटों से अलग रहकर अपनी स्वतन्त्र नीति अपनाते हैं और गुण-दोषों के आधार पर दोनों गुटों का समर्थन या आलोचना करते हैं।
  2. गुटनिरपेक्ष राष्ट्र सभी राष्ट्रों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करते है इन्हें तटस्थ रहने की कोई विधिवत् औपचारिक घोषणा नहीं करनी पड़ती।
  3. गुटनिरपेक्ष राष्ट्र युद्धरत किसी पक्ष से सहानुभूति अवश्य रख सकते हैं ऐसी स्थिति में वे सैन्य सहायता के स्थान पर घायलों के लिए दवाइयाँ व चिकित्सा-सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते हैं।
  4. गुटनिरपेक्ष राष्ट्र निष्पक्ष रहते हैं, वे युद्धरत देशों को अपने क्षेत्र में युद्ध करने की अनुमति नहीं देते तथा न ही उन्हें किसी अन्य देश के साथ युद्ध करने हेतु सामरिक सुविधा प्रदान करते हैं।
  5. गुटनिरपेक्ष राष्ट्र किसी प्रकार की सैन्य सन्धि या गुप्त समझौता करके किसी भी गुटबन्दी में शामिल नहीं होते हैं।

प्रश्न 6.

भारत की विदेशी नीति की एक विशेषता के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान’ पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :

आधुनिक समय में प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए विदेश नीति निर्धारित करनी पड़ती है। सामान्य शब्दों में, विदेश नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो एक देश द्वारा अन्य देशों के प्रति अपनाई जाती है। भारत ने भी स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाई। इसकी अनेक विशेषताएँ हैं और उनमें से एक विशेषता है—अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण समाधान। इस कार्य के सफलतापूर्वक संचालन हेतु भारत ने विश्व को पंचशील के सिद्धान्त दिए तथा हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन किया। समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शान्ति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायता प्रदान की, जैसे-स्वेज नहर की समस्या, हिन्द-चीन का प्रश्न, वियतनाम की समस्या, कांगो की समस्या, साइप्रस की समस्या, भारत-पाकिस्तान युद्ध, ईरान-इराक युद्ध आदि अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए भारत ने भरसक प्रयास किए तथा अपने अधिकांश प्रयत्नों में सफलता प्राप्त की।

प्रश्न 7.

गुजराल सिद्धान्त क्या है?

उत्तर :

गुजराल सिद्धान्त-भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री इन्द्रकुमार गुजराल की विदेश नीति सम्बन्धी अवधारणा को गुजराल सिद्धान्त कहा जाता है। यह सिद्धान्त भारत के दक्षिण एशिया के छोटे पड़ोसी देशों पर ध्यान केन्द्रित करता है। यह उनसे अच्छे पड़ोसी बनने पर जोर देता है। इस सिद्धान्त की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं-

  1. भारत के आकार और क्षमता की असमानताओं की प्रभुत्वकारी प्रवृनियों में प्रकट नहीं होने देता।
  2. एकतरफा दोस्ताना रियायतें देना।
  3. पड़ोसी देशों की माँगों तथा चिन्ताओं के प्रति संवेदनशील होना।
  4. सन्देह तथा विवाद पैदा करने वाली पहलकदमियों से बचना।
  5. विवादास्पद मुद्दों पर शान्त, लचीली नीति का अनुसरण करना।
  6. पारस्परिक व्यापार में वृद्धि करना।

प्रश्न 8.

सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण बताइए।

उत्तर :

भारत-चीन युद्ध के कारण-सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. तिब्बत की समस्या-सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान मे रखकर सुलझाना चाहता था।
  2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या-भारत और चीन के बीच सन् 1962 में हुए युद्ध का एक कारण दोनो देशों के बीच मानचित्र में रेखांकित भू-भाग था। चीन ने सन् 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किए जो वास्तव में भारतीय भू-भाग में थे, अत: भारत ने इस पर चीन के साथ अपना विरोध दर्ज कराया।
  3. सीमा-विवाद-भारत-चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा-विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं। सीमा-विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 9.

ताशकन्द समझौता कब हुआ? इसके प्रमुख प्रावधान लिखिए। .

उत्तर :

ताशकन्द समझौता-23 सितम्बर, 1965 को भारत-पाक में युद्ध विराम होने के बाद सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमन्त्री कोसीगिन ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान एवं भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री को वार्ता के लिए ताशकन्द आमन्त्रित किया और 10 जनवरी, 1966 को ताशकन्द समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे-

  1. भारत एवं पाकिस्तान अच्छे पड़ोसियों की भाँति सम्बन्ध स्थापित करेंगे और विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाएँगे।
  2. दोनों देश के सैनिक युद्ध से पूर्व की ही स्थिति में चले जाएँगे। दोनों युद्ध-विराम की शर्तों का पालन करेंगे।
  3. दोनों एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  4. दोनों राजनीतिक सम्बन्धों को पुन: सामान्य रूप से स्थापित करेंगे।
  5. दोनों आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों को पुन: सामान्य रूप से स्थापित करेंगे।
  6. दोनों देश सन्धि की शर्तों का पालन करने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपस में मिलते रहेंगे।

प्रश्न 10.

शिमला समझौता कब हुआ? इसके प्रमुख प्रावधान लिखिए।

उत्तर :

शिमला समझौता-28 जून, 1972 को श्रीमती इन्दिरा गांधी एवं जुल्फिकार अली भुट्टो के द्वारा शिमला में दोनों देशों के मध्य जो समझौता हुआ उसे शिमला समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान थे-

  1. दोनों देश सभी विवादों एवं समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए सीधी वार्ता करेंगे।
  2. दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध दुष्प्रचार नहीं करेंगे।
  3. दोनों देश सम्बन्धों को सामान्य बनाने के लिए
    • संचार सम्बन्ध फिर से स्थापित करेंगे।
    • आवागमन की सुविधाओं का विस्तार करेंगे।
    • व्यापार एवं आर्थिक सहयोग स्थापित करेंगे।
    • विज्ञान एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करेंगे।
  4. स्थायी शान्ति स्थापित करने हेतु हर सम्भव प्रयास किए जाएंगे।
  5. भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

शिमला समझौता क्या है?

उत्तर :

भारत-पाक युद्ध सन् 1971 के बाद जुलाई 1972 में शिमला में भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ जिस्से ‘शिमला समझौता’ कहा जाता है।

प्रश्न 2.

पंचशील के सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

29 अप्रैल, 1954 को भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने तिब्बत के सम्बन्ध में एक समझौता किया जिसे पंचशील के सिद्धान्त के रूप में जाना जाता है। ये सिद्धान्त हैं-

  1. सभी देश एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करें।
  2. अनाक्रमण
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  4. परस्पर समानता तथा लाभ के आधार पर कार्य करना।
  5. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व।

प्रश्न 3.

पण्डित नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ है?

उत्तर :

पण्डित नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता नकारात्मक तटस्थता, अप्रगतिशील अथवा उपदेशात्मक नीति नहीं है। इसका अर्थ सकारात्मक है अर्थात् जो उचित और न्यायसंगत है उसकी सहायता एवं समर्थन करना तथा जो अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है उसकी आलोचना एवं निन्दा करना।

प्रश्न 4.

भारतीय विदेश नीति में साधनों की पवित्रता से क्या अर्थ है?

उत्तर :

भारत की विदेश नीति में साधनों की पवित्रता से तात्पर्य है-अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में शान्तिपूर्ण तरीकों का समर्थन तथा हिंसात्मक एवं अनैतिक साधनों का विरोध करना। भारतीय विदेश नीति का यह तत्त्व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को परस्पर घृणा तथा सन्देह की भावना से दूर रखना चाहता है।

प्रश्न 5.

ग्रुप चार (G-4) का संगठन क्यों किया गया?

उत्तर :

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए अपनी सशक्त दावेदारी प्रस्तुत करने के उद्देश्य से चार देशों—भारत, ब्राजील, जर्मनी व जापान ने ग्रुप चार (G-4) नामक संगठन बनाया। इन चारों देशों ने इस संगठन के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए एक-दूसरे का पूर्ण सहयोग करने का निर्णय लिया है।

प्रश्न 6.

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना के लिए कौन-कौन उत्तरदायी थे?

उत्तर :

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना (जन्मदाता) के रूप में भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सर्वप्रथम नेहरू जी ने इस नीति को भारत के लिए उपयुक्त समझा। इसके बाद सन् 1935 के बाण्डंग सम्मेलन के दौरान नासिर (मिस्र) एवं टीटो (यूगोस्लाविया) के साथ मिलकर इसे विश्व आन्दोलन बनाने पर सहमति प्रकट की।

प्रश्न 7.

गुटनिरपेक्ष नीति से भारत को मिलने वाले दो लाभ बताइए।

उत्तर :

  1. गुटनिरपेक्ष नीति अपनाकर ही भारत शीतयुद्ध काल में दोनों गुटों से सैन्य व आर्थिक सहायता प्राप्त करने में सफल रहा।
  2. इस नीति के कारण ही भारत को कश्मीर समस्या पर रूस का हमेशा समर्थन मिला।

प्रश्न 8.

सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के क्या कारण थे?

उत्तर :

सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  1. सन् 1962 में चीन से हार जाने से पाकिस्तान ने भारत को कमजोर माना।
  2. सन् 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद नए नेतृत्व को पाकिस्तान ने कमजोर माना।
  3. पाकिस्तान में सत्ता प्राप्ति की राजनीति।
  4. 1963-64 में कश्मीर में मुस्लिम विरोधी गतिविधियाँ पाकिस्तान की विजय में सहायक होंगी।

प्रश्न 9.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 में विदेश नीति के दिए गए संवैधानिक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए। अथवा भारतीय विदेश नीति के संवैधानिक सिद्धान्तों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर :

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि।
  2. राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करना।
  4. संगठित लोगों के परस्पर व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और सन्धियों के प्रति आदर की भावना रखना।

प्रश्न 10.

भारत और चीन के मध्य तनाव के कोई दो कारण बताइए।

उत्तर :

  1. भारत और चीन में महत्त्वपूर्ण विवाद सीमा का विवाद है। चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा कर रखा है।
  2. चीन का तिब्बत पर कब्जा और भारत द्वारा दलाई लामा को राजनीतिक शरण देना।

प्रश्न 11.

भारत व चीन के मध्य अच्छे सम्बन्ध बनाने हेतु दो सुझाव दीजिए।

उत्तर :

  1. दोनों पक्ष सीमा विवादों के निपटारे के लिए वार्ताएँ जारी रखें तथा सीमा क्षेत्र में शान्ति बनाए रखें।
  2. दोनों देशों को द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 12.

भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताइए।

उत्तर :

  1. भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  2. भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों से भारत युद्ध भी लड़ चुका है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

भारतीय विदेश नीति के जनक हैं-
(a) पण्डित जवाहरलाल नेहरू
(b) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(c) वल्लभभाई पटेल
(d) मौलाना अबुल कलाम आजाद।

उत्तर :

(a) पण्डित जवाहरलाल नेहरू।

प्रश्न 2.

भारतीय विदेश नीति किन कारकों से प्रभावित है-
(a) सांस्कृतिक कारक
(b) घरेलू कारक
(c) अन्तर्राष्ट्रीय कारक
(d) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारक।

उत्तर :

(d) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारक।

प्रश्न 3.

बाण्डुंग सम्मेलन कब सम्पन्न हुआ-
(a) सन् 1954 में
(b) सन् 1955 में
(c) सन् 1956 में
(d) सन् 1957 में।

उत्तर :

(b) सन् 1955 में।

प्रश्न 4.

भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है-
(a) पंचशील
(b) सैन्य गुट
(c) गुटबन्दी
(d) उदासीनता।

उत्तर :

(a) पंचशील।

प्रश्न 5.

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रणेता हैं-
(a) पं० नेहरू
(b) नासिर
(c) मार्शल टीटो
(d) उपर्युक्त सभी।

उत्तर :

(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.

पंचशील के सिद्धान्त किसके द्वारा घोषित किए गए थे-
(a) पं० जवाहरलाल नेहरू
(b) लालबहादुर शास्त्री
(c) राजीव गांधी
(d) अटल बिहारी वाजपेयी।

उत्तर :

(a) पं० जवाहरलाल नेहरू।

प्रश्न 7.

पहला परमाणु परीक्षण भारत में कब किया गया था-
(a) सन् 1971 में
(b) सन् 1974 में
(c) सन् 1978 में
(d) सन् 1980 में।

उत्तर :

(b) सन् 1974 में।

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