NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 8 | Regional Aspirations (क्षेत्रीय आकांक्षाएँ)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 12
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NCERT | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
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Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 12 |
Subject: | Rajniti Vigyan |
Chapter: | 8 |
Chapters Name: | Regional Aspirations (क्षेत्रीय आकांक्षाएँ) |
Medium: | Hindi |
Regional Aspirations (क्षेत्रीय आकांक्षाएँ) | Class 12 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 Regional Aspirations (क्षेत्रीय आकांक्षाएँ)
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 Text Book Questions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.

उत्तर :

प्रश्न 2.
उत्तर :
- बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन-असम
- ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आन्दोलन-मेघालय
- अलग देश बनाने की माँग-मिजोरम
[अलग देश बनाने की माँग नागालैण्ड व मिजोरम ने की थी। कुछ समय पश्चात् मिजोरम स्वायत्त राज्य बनने के लिए तैयार हो गया। मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर को राज्य का दर्जा दे दिया गया है।] अत: मिजोरम की माँग का समाधान हो गया है, लेकिन नागालैण्ड में अलगाववाद की समस्या का पूर्ण समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।
प्रश्न 3.
उत्तर :
पंजाब समझौता-1970 के दशक में अकालियों के एक समूह ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठायी। आनन्दपुर साहिब में सन् 1973 में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें क्षेत्रीय स्वायत्तता का मुद्दा उठाया, केन्द्र-राज्य सम्बन्धों को पुनः परिभाषित करने तथा संघवाद को मजबूत करने पर बल दिया। परन्तु इसे एक अलग सिक्ख राष्ट्र की माँग के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।80 के दशक में कुछ चरमपन्थी सिक्खों ने पंजाब को एक अलग राष्ट्र-खालिस्तान बनाए जाने के सम्बन्ध में आन्दोलन शुरू किया। यह आन्दोलन उग्र रूप धारण कर रहा था। फलत: तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के तहत स्वर्ण मन्दिर में सेना को घुसने की अनुमति दे दी। इससे पंजाब में उग्रवाद और भड़क गया। इन्दिरा गांधी हत्या इसी की एक कड़ी थी।
पंजाब समझौता-जुलाई 1985 में अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचन्द सिंह लोंगोवाल और प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे ‘पंजाब-समझौता’ कहा जाता है। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
- मारे गए निरपराध व्यक्तियों के लिए मुआवजा-1 सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्रवाई या आन्दोलन में मारे गए लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जाएगा।
- सेना में भर्ती-देश के सभी नागरिकों को सेना में भर्ती का अधिकार होगा और चयन के लिए केवल योग्यता ही आधार रहेगा।
- नवम्बर दंगों की जाँच-दिल्ली में नवम्बर में हुए दंगों की जाँच कर रहे रंगनाथ मिश्र आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाकर उसमें बोकारो और कानपुर में हुए उपद्रवों की जाँच को भी शामिल किया जाएगा।
- सेना से निकाले हुए व्यक्तियों का पुनर्वास-सेना के निकाले हुए व्यक्तियों और उन्हें लाभकारी रोजगार दिलाने के प्रयास किए जाएंगे।
- अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून-भारत सरकार अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून बनाने पर सहमत हो गई। इसके लिए शिरोमणि अकाली दल और अन्य सहयोगियों के साथ सलाह-मशविरा और संवैधानिक जरूरतें पूर्ण करने के बाद विधेयक लागू किया जाएगा।
- लम्बित मुकदमों का फैसला-सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून को पंजाब में लागू करने वाली अधिसूचना वापस ली जाएगी। वर्तमान विशेष न्यायालय केवल विमान अपहरण तथा शासन के खिलाफ युद्ध के मामले सुनेगी। शेष मामले सामान्य न्यायालयों को सौंप दिए जाएंगे और यदि आवश्यक हुआ तो इसके बारे में कानून बनाया जाएगा।
- सीमा विवाद-चण्डीगढ़ का राजधानी परियोजना क्षेत्र और सुखना ताल पंजाब में दिए जाएंगे। केन्द्रशासित प्रदेश के अन्य पंजाबी क्षेत्र पंजाब को तथा हिन्दी भाषी क्षेत्र हरियाणा को दिए जाएंगे।
समझौते के तुरन्त बाद शान्ति आसानी से स्थापित नहीं हुई। हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। केन्द्र सरकार को पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। – 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शान्ति की स्थापना हुई। सन् 1997 में अकाली दल (बादल) और भाजपा गठबन्धन को चुनावों में जीत हासिल हुई और इसके बाद राजनीति धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चल पड़ी।
प्रश्न 4.
उत्तर :
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने का मुख्य कारण यह था कि इस प्रस्ताव में पंजाब सूबे के लिए अधिक स्वायत्तता की माँग की गई, जो कि परोक्ष रूप से एक अलग सिक्ख राष्ट्र की माँग को बढ़ावा देती है।प्रश्न 5.
उत्तर :
अन्दरूनी विभिन्नताएँ-जम्मू-कश्मीर में अधिकांश रूप में अन्दरूनी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र-जम्मू, कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं। जम्मू पहाड़ी क्षेत्र है, इसमें हिन्दू-मुस्लिम और सिक्ख अर्थात् सभी धर्मों व भाषाओं के लोग रहते हैं। कश्मीर में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या अधिक है और यहाँ पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। जबकि लद्दाख पर्वतीय क्षेत्र है, इसमें बौद्ध मुस्लिम की आबादी है। इतनी विभिन्नताओं के कारण यहाँ पर कई क्षेत्रीय आकांक्षाएँ पैदा होती रहती हैं, यथा-- इसमें पहली आकांक्षा कश्मीरी पहचान की है जिसे कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है। कश्मीर के निवासी सबसे पहले अपने को कश्मीरी तथा बाद में कुछ और मानते थे।
- राज्य में उग्रवाद और आतंकवाद को दूर करना भी यहाँ के लोगों की एक मुख्य आकांक्षा है।
- स्वायत्तता की बात जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को अलग-अलग ढंग से लुभाती है। यहाँ पूरे राज्य में स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है, उतनी ही प्रबल माँग राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है।
जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दल हैं,जो जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की माँग करते रहते हैं। इनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे महत्त्वपूर्ण दल है। - इसके अतिरिक्त कुछ उग्रवादी संगठन भी हैं, जो धर्म के नाम पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं।
प्रश्न 6.
उत्तर :
कश्मीर की स्वायत्तता का मसला-कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर मुख्य रूप से दो पक्ष सामने आते हैं-पहला पक्ष वह है जो धारा-370 को समाप्त करना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष वह है जो इस राज्य को और अधिक स्वायत्तता देना चाहता है।
यदि इन दोनों पक्षों का उचित ढंग से अध्ययन किया जाए तो पहला पक्ष अधिक उचित दिखाई देता है जो धारा-370 को समाप्त करने के पक्ष में है। उनका तर्क है कि इस धारा के कारण यह राज्य भारत के साथ पूरी तरह नहीं मिल पाया है। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने से कई प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याएँ भी पैदा होती हैं।
प्रश्न 7.
उत्तर :
असम आन्दोलन-असम पूर्वोत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है। सन् 1979 से सन् 1985 तक असम में बाहरी लोगों के खिलाफ जो आन्दोलन चला, उसे ‘असम आन्दोलन’ के नाम से जाना जाता है। यह आन्दोलन असम के सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था क्योंकि-(1) असमी लोगों को सन्देह था कि बंगलादेश से आकर बहुत-सी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई है। लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि इन विदेशी लोगों को पहचानकर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जाएगी। या उन्हें ‘असमी संस्कति’ पर खतरा दिखाई दे रहा था। अतः सन् 1979 में ऑल असम स्टूडेण्ट यूनियन ने जब विदेशियों के विरोध में आन्दोलन चलाया, जिससे यह माँग की गई कि सन् 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए, तो असमी जनता के हर तबके ने इसका समर्थन किया तथा इस आन्दोलन को पूरे असम में समर्थन मिला।
(2) असम आन्दोलन के पीछे आर्थिक मसले भी जुड़े थे। असम में तेल, चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। अत: इस आन्दोलन के पीछे सांस्कृतिक स्वाभिमान के साथ-साथ असम के आर्थिक पिछड़ेपन की पीड़ा की भी अभिव्यक्ति थी।
प्रश्न 8.
उत्तर :
भारत के कई क्षेत्रों में काफी समय से कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन चल रहे हैं, परन्तु सभी क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी आन्दोलन नहीं होते, अर्थात् कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन भारत से अलग नहीं होना चाहते बल्कि अपने लिए अलग राज्य की माँग करते हैं; जैसे-झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का आन्दोलन, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा चलाया गया आन्दोलन तथा तेलंगाना प्रजा समिति द्वारा चलाया गया आन्दोलन इत्यादि।प्रश्न 9.
उत्तर :
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों में विविधता . में एकता के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न प्रकार की माँगें उठीं।तमिलनाडु में जहाँ हिन्दी भाषा के विरोध और अंग्रेजी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में बनाए रखने की माँग उठी, तो असम में विदेशियों को असम से बाहर निकालने की माँग उठी, नागालैण्ड और मिजोरम में अलगाववाद की मांग उठी तो आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों में, भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की माँग उठी।
इसी तरह उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड क्षेत्रों में प्रशासनिक सुविधा तथा आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु अलग राज्य बनाने के आन्दोलन हुए। अभी भी विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न प्रकार की मांग उठ रही हैं जिनका मुख्य आधार क्षेत्रीय पिछड़ापन है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता के दर्शन होते हैं। भारत सरकार ने इन मांगों के निपटारे के लिए लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एकता का परिचय दिया है। लोकतन्त्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति होती है और लोकतन्त्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र विरोधी नहीं मानता। लोकतान्त्रिक राजनीति में क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाता है। अतः स्पष्ट है कि देश में सामने आने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता की अभिव्यक्ति होती है।
प्रश्न 10.
हजारिका का एक गीत एकता की विजय पर है; पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ कहा गया है……..मेघालय अपने रास्ते गई……अरुणाचल भी अलग हुई और मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने के लिए खड़ा है……..इस गीत का अन्त असम लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है………करबी बौर मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं। -संजीव बरूआ
(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कर रहा है?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के कुछ राज्य क्यों बनाए गए?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है?
क्यों?
उत्तर :
(क) लेखक यहाँ पर पूर्वोत्तर राज्यों की एकता की बात कर रहा है।(ख) सभी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य बनाए गए।
(ग) भारत के सभी क्षेत्रों पर एकता की यह बात लागू हो सकती है, क्योंकि भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं तथा देश की एकता एवं अखण्डता के लिए उनमें एकता कायम करना आवश्यक है।
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 InText Questions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
सामान्यतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को राष्ट्र विरोधी नहीं माना जाता। इसके साथ ही लोकतान्त्रिक राजनीति में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समह क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा अथवा किसी विशेष क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइन्दगी करें। इस तरह लोकतान्त्रिक राजनीति की प्रक्रिया में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ और बलवती होती हैं। साथ ही लोकतान्त्रिक राजनीति का अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाएगा और उन्हें भागीदारी भी दी जाएगी।जहाँ तक साम्प्रदायिकता का सवाल है यह धार्मिक या भाषायी समुदाय पर आधारित एक संकीर्ण मनोवृत्ति है जो धार्मिक या भाषायी अधिकारों तथा हितों को राष्ट्रीय हितों के ऊपर रखती है इसलिए यह समाज विरोधी तथा राष्ट्र विरोधी मनोवृत्ति है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि क्षेत्रवाद साम्प्रदायिकता के समान खतरनाक नहीं है।
लेकिन क्षेत्रीय आकांक्षाएँ यदि अत्यधिक बढ़ जाएँ और यह अलगाववाद का रूप धारण कर लें तो ऐसी स्थिति में क्षेत्रवाद एक राष्ट्र के लिए गम्भीर समस्या बन जाती है। इससे पृथकतावाद व राष्ट्र से अलग होकर नये राष्ट्र के निर्माण की माँग गम्भीर मुद्दे उभरकर सामने आते हैं।
प्रश्न 2.
उत्तर :
प्राय: यह देखा गया है कि सीमान्त प्रदेश में ही क्षेत्रवाद एवं अलगाववाद की समस्या अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण विदेशी ताकतों का हाथ होना माना जा सकता है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब और पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में घटित होने वाली विभिन्न घटनाएँ इसका उदाहरण माना जा सकता है। कश्मीरियों द्वारा अलग से स्वतन्त्र राष्ट्र की ओर पंजाब द्वारा खालिस्तान की माँग के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ रहा है।प्रश्न 3.
उत्तर :
जम्मू में सन् 1989 में अलगाववादियों का विशेष प्रभाव रहा। अलगाववादियों का एक तबका कश्मीर को एक अलग राष्ट्र बनाना चाहता है। यानी एक ऐसा कश्मीर जो न पाकिस्तान का हिस्सा हो और न भारत का कुछ अलगाववादी समूह चाहते हैं कि कश्मीर का विलय पाकिस्तान में हो जाए। अलगाववादी राजनीति की एक तीसरी धारा भी है। इस धारा के समर्थक चाहते हैं कि कश्मीर भारत संघ का ही हिस्सा रहे लेकिन उसे और स्वायत्तता दी जाए। स्वायत्तता की बात जम्मू और लद्दाख के लोगों को अलग-अलग ढंग से लुभाती है। इस क्षेत्र के लोगों की एक आम शिकायत उपेक्षा भरे बरताव और पिछड़ेपन को लेकर है।इस वजह से पूरे राज्य की स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है उतनी ही प्रबल माँग इस राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर पर अलगाववादियों, आतंकवादियों एवं विभिन्न राजनीतिज्ञों की प्रशासनिक नीतियों का प्रभाव रहा है लेकिन लोकतान्त्रिक व्यवस्था के मुख्य लक्षण जनमत की इच्छा का सम्मान करते हुए जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छानुसार प्रशासनिक निर्णय लिया जाना चाहिए। अर्थात् जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में जनमत संग्रह की नीति का पालन किया जाना चाहिए जिससे इस क्षेत्र की समस्त समस्याओं का स्थायी समाधान हो सके।
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 Other Important Questions
NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
क्षेत्रवाद का अर्थ क्षेत्रवाद का अर्थ किसी देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो आर्थिक, सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जाग्रत है।प्रो० एस० गुप्ता के अनुसार, “क्षेत्रवाद का अर्थ देश की अपेक्षा किसी विशेष क्षेत्र से प्यार है।”
फॉल्टर के अनुसार, “क्षेत्रवाद का अर्थ एक देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक आदि से अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक है।”
क्षेत्रवाद का कारण
क्षेत्रवाद के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. ऐतिहासिक कारण-क्षेत्रवाद की उत्पत्ति में इतिहास का दोहरा सहयोग रहता है-सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक योगदान में शिव सेना का उदाहरण दिया जा सकता है और नकारात्मक योगदान में डी०एम०के० का उदाहरण दिया जा सकता है।
2. ऐतिहासिक विरासत-भारत प्राचीन काल से विशाल प्रादेशिक राज्यों वाला देश रहा है। कुछ शक्तिशाली राजाओं ने सम्पूर्ण भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित किया है लेकिन विशाल आकार और यातायात के साधनों के अभाव के कारण अखण्ड केन्द्रीय राज्य भारत में अधिक समय तक नहीं चल सका। केन्द्र सरकार के शक्तिहीन होने पर अधीनस्थ प्रदेशों और सामन्तों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी और स्थानीय स्वशासन स्थापित हो गया। इसी आधार पर भारत में नागालैण्ड, तमिलनाडु, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विभाजन की माँग उठी।
3. भौगोलिक एवं सांस्कृतिक कारण–स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जब राज्यों का पुनर्गठन किया गया तब राज्यों की पुरानी सीमाओं को भुलाकर नहीं किया गया बल्कि उनको पुनर्गठन का आधार बनाया गया है। इसी कारण एक राज्य के रहने वाले लोगों में एकता की भावना नहीं आ पायी। प्राय: भाषा और संस्कृति क्षेत्रवाद की भावनाओं को उत्पन्न करने में बहुत सहयोग देते हैं।
4. भाषागत विभिन्नताएँ-भारत के विभिन्न प्रान्तों और क्षेत्रों की अपनी-अपनी भाषा है। प्रादेशिक भाषा बोलने वालों को अपनी भाषा से भावनात्मक लगाव होता है। अपनी भाषा को वे अधिक श्रेष्ठ मानकर अन्य भाषाओं को हीन मान लेते हैं। इससे क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलता है।
5. आर्थिक असन्तुलन-स्वाधीन भारत में देश का आर्थिक विकास कार्यक्रम कुछ इस प्रकार चला कि कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हो गए जबकि कुछ क्षेत्र पिछड़ गए। पिछड़े क्षेत्रों में असन्तोष का उदय होना स्वाभाविक था। मिजो और नगा विद्रोहियों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
6. प्रशासनिक कारण-प्रशासनिक कारणों से भी विभिन्न राज्यों की प्रगति में अन्तर रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा राज्यों का समान विकास नहीं हुआ है। कुछ राज्यों में प्रभावशाली औद्योगिक नीति के कारण विकास हुआ है जो कुछ राज्यों में बहुत धीमी गति से हो रहा है जो क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है।
क्षेत्रवाद के दुष्परिणाम भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के प्रमुख दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-
- विभिन्न क्षेत्रों के मध्य संघर्ष और तनाव-क्षेत्रवाद का पहला दुष्परिणाम भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक, राजनीतिक, मनौवैज्ञानिक संघर्ष और तनाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
- राज्य तथा केन्द्र सरकार के मध्य सम्बन्धों का विकृत होना-भारत में क्षेत्रीय कारण कभी-कभी केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के मध्य सम्बन्धों को भी विकृत कर देते हैं। राज्यों में विरोधी दल की सरकार होने की स्थिति में तनाव और बढ़ जाता है।
- स्वार्थी नेतृत्व एवं संगठनों का विकास क्षेत्रवाद के कारण कुछ स्वार्थी नेता और संगठन विकसित होने लगते हैं जो जनता की भावनाओं को उभारकर अपने स्वार्थों की पूर्ति करना चाहते हैं।
- राष्ट्र की एकता को चुनौती-संकीर्ण क्षेत्रीयता राष्ट्र की एकता के लिए चुनौती बन जाती है।
- पृथक्तावाद को प्रोत्साहन-क्षेत्रवाद के कारण उपक्षेत्रवाद का उदय होता है। स्वार्थी तत्त्वों द्वारा क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा दिया जाता है तथा इस असन्तोष को पृथक्तावाद का रूप प्रदान कर दिया जाता है।
- नए राज्यों की माँग-क्षेत्रवाद की भावना से प्रेरित होकर नए राज्यों की माँगें की जाती हैं। कभी-कभी यह माँगें हिंसक रूप धारण कर लेती हैं। झारखण्ड, उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि राज्यों. के निर्माण से पूर्व हुए आन्दोलन इसके उदाहरण हैं।
प्रश्न 2.
उत्तर :
नए राज्यों के गठन के पक्ष में तर्क-भारत में नए राज्यों के समर्थक अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं-- नए राज्यों का गठन करने से पिछड़े क्षेत्रों को विकास करने का विशेष अवसर प्राप्त हो जाता है।
- उस क्षेत्र के लोगों में सांस्कृतिक भाषायी समानता के कारण अधिक निकटता बनी रहती है।
- पिछड़े क्षेत्र के लोगों को नए राज्य का दर्जा देने से यहाँ के लोगों में राजनीतिक चेतना जाग्रत होती है।
- बड़े राज्यों का विशाल आकार उनमें प्रशासनिक क्षमता और शान्ति व्यवस्था पर दबाव डालता है। छोटे राज्यों के निर्माण में इस समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है।
- नए राज्यों का गठन राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है।
नए राज्यों के विपक्ष में तर्क-भारत में नए राज्यों के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-
- नए राज्यों की माँग विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष तथा तनाव पैदा करती है।
- पिछड़े क्षेत्र का विकास नए राज्यों के गठन मात्र से सम्भव नहीं है।
- नए राज्यों के गठन से अनावश्यक प्रशासनिक तन्त्र में वृद्धि होती है।
- नए राज्यों के गठन से क्षेत्रीयतावाद की संकीर्ण भावना पैदा होती है जो राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए खतरा बन सकती है।
- नए राज्यों की माँग की प्रवृत्ति प्रगति में बाधक है। यह.समग्र विकास के स्थान पर क्षेत्र विकास को प्राथमिकता देकर सम्पूर्ण राष्ट्र की तुलना में अपने क्षेत्र विशेष के प्रति भक्ति पैदा करने का प्रयास करता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक दृष्टिकोण से यदि नए राज्यों का गठन किया जाए तो बुरा नहीं है, किन्तु क्षेत्रीयतावाद की संकीर्ण भावना को भड़काकर नए राज्य की माँग करना राष्ट्रीय हित में नहीं है क्योंकि यह प्रवृत्ति पृथक्तावाद को जन्म देती है।
प्रश्न 3.
उत्तर :
क्षेत्रवाद की समस्या के निवारण हेतु सुझाव क्षेत्रवाद को रोकने के सम्बन्ध मे निम्नलिखित उपाय सुझाए जा सकते हैं-- राष्ट्रीय नीति का निर्धारण किया जाए–केन्द्र सरकार की नीति कुछ इस प्रकार की होनी चाहिए कि सभी उप-सांस्कृतिक क्षेत्रों का सन्तुलित आर्थिक विकास सम्भव हो जिससे कि विभिन्न क्षेत्रों के बीच आर्थिक तनाव कम-से-कम हो।
- आधारभूत ढाँचे का विकास किया जाए–सरकार द्वारा बिजली, परिवहन, जल आपूर्ति आदि का समुचित विकास किया जाए जाना चाहिए। यह क्षेत्रवाद को समाप्त करने के लिए आवश्यक है। आधारभूत ढाँचे का विकास औद्योगिक प्रगति में सहायक होगा।
- सांस्कृतिक एकीकरण के लिए प्रयास किए जाएँ-प्रचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के सांस्कृतिक लक्षणों के विषय में लोगों के सामान्य ज्ञान को बढ़ाया जाए जिससे कि एक क्षेत्र के लोग दूसरे क्षेत्र के प्रति आर्थिक सहनशीलता की भावना को पनपा सकें।
- देश का सन्तुलित विकास किया जाए-सरकार द्वारा विकास की ऐसी योजनाएँ बनानी चाहिए जिससे देश के सभी क्षेत्रों को समान रूप से लाभ प्राप्त हो, सभी क्षेत्रों की अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए। विकास योजनाओं में सभी क्षेत्रों के विकास का प्रावधान रखना चाहिए जिससे इन क्षेत्रों में परस्पर तनाव उत्पन्न न हो।
- क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान-राष्ट्र भाषा के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषाओं का भी विकास तथा सम्मान होना चाहिए। हिन्दी भाषा को किसी क्षेत्रीय समूह पर जबरदस्ती लादा न जाए बल्कि इस भाषा का प्रचार व विस्तार इस ढंग से किया जाए कि विभिन्न क्षेत्रीय समूह स्वतः ही इसे सम्पर्क भाषा के रूप में स्वीकार कर लें।
- क्षेत्रीय राजनीतिक दलों पर प्रतिबन्ध-केन्द्र सरकार द्वारा ऐसे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए जो क्षेत्रवाद की भावना में वृद्धि करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को मन्त्री तथा अन्य महत्त्वपूर्ण पद नहीं होने चाहिए जो क्षेत्रवाद में विश्वास करते हैं तथा उसे बढ़ावा देते हैं।
- छोटे राज्यों का गठन करना चाहिए-बड़े व विशालकाय राज्यों का विभाजन कर छोटे राज्यों की स्थापना करनी चाहिए। यह प्रशासनिक कुशलता के लिए आवश्यक है।
- क्षेत्रीय स्वायत्त परिषदों की स्थापना की जाए–सभी क्षेत्र के लोगों को समान आर्थिक सुविधाएँ प्रदान करने हेतु क्षेत्रीय स्वायत्त परिषदों की स्थापना की जानी चाहिए, उन्हें राजनीतिक स्वायत्तता के साथ ही प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता भी प्रदान करनी चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
क्षेत्रवाद क्षेत्रवाद का अर्थ किसी छोटे-से क्षेत्र से है जो भाषायी, धार्मिक, भौगोलिक, सामाजिक अथवा ऐसे ही अन्य कारक के आधार पर अपने पृथक् अस्तित्व के लिए प्रयत्नशील है। इस प्रकार क्षेत्रवाद से अभिप्राय है-राज्य की तुलना में किसी क्षेत्र विशेष से लगाव।क्षेत्रवाद के प्रभाव-भारत की राज्य व्यवस्था को क्षेत्रवाद निम्न प्रकार से प्रभावित करता है-
- क्षेत्रवाद के आधार पर राज्य केन्द्र सरकार से सौदेबाजी करते हैं।
- क्षेत्रवाद ने कुछ हद तक भारतीय राजनीति में हिंसक गतिविधियों को उभारा है।
- चुनावों के समय क्षेत्रवाद के आधार पर राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चुनाव करते हैं और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काकर वोट प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं।
- मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय मन्त्रिमण्डल में प्राय: सभी मुख्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को लिया जाता है।
प्रश्न 2.
उत्तर :
संविधान की धारा-370-कश्मीर को संविधान की धारा-370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया है। धारा-370 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता दी गई है। राज्य का अपना संविधान है।संविधान की धारा-370 का विरोध-धारा-370 का विरोध लोगों का एक समूह इस आधार पर कर रहा है कि जम्मू-कश्मीर राज्य को धारा-370 के अन्तर्गत विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ नहीं जुड़ पाया है। अतः धारा-370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर राज्य को भी अन्य राज्यों के समान होना चाहिए।
प्रश्न 3.
उत्तर :
क्षेत्रीय असन्तुलन-क्षेत्रीय असन्तुलन का अर्थ यह है कि भारत के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों का विकास एक जैसा नहीं है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के विकास स्तर और लोगों के जीवन स्तर में पाए जाने वाले अन्तर को क्षेत्रीय असन्तुलन का नाम दिया जाता है।क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रभाव क्षेत्रीय असन्तुलन भारतीय लोकतन्त्र पर मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रभाव डाल रहा है-
- पिछड़े क्षेत्रों में असन्तुष्टता की भावना बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
- क्षेत्रीय असन्तुलन से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिला है।
- क्षेत्रीय असन्तुलन ने अनेक क्षेत्रीय दलों को जन्म दिया है।
- क्षेत्रीय असन्तुलन से पृथक्तावाद तथा आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिला है।
प्रश्न 4.
उत्तर :
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण-भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-- भौगोलिक विषमताओं ने क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा किया है। परिस्थितियों के कारण भारत में एक तरफ राजस्थान जैसा मरुस्थल है जो कम उपजाऊ है तो दूसरी तरफ पंजाब जैसा उपजाऊ क्षेत्र हैं।
- भाषा की विभिन्नता ने क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा दिया है।
- ब्रिटिश सरकार ने कुछ क्षेत्रों का विकास किया और कुछ का नहीं किया, जिससे क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हुआ।
- क्षेत्रीय असन्तुलन का एक महत्त्वपूर्ण कारण नेताओं की अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास पर अधिक बल देने की प्रवृत्ति भी है।
प्रश्न 5.
उत्तर :
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के सुझाव-क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-- पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रयास किए जाएँ। पिछड़े क्षेत्रों में विशेषकर बिजली, यातायात व संचार के साधनों का विकास किया जाए।
- पिछड़े लोगों व जनजातियों के विकास के लिए विशेष कदम उठाया जाएँ।
- जो प्रशासनिक अधिकारी आदिवासी क्षेत्रों मे नियुक्त किए जाएँ उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाए और उन्हीं को नियुक्त किए जाए जो इन क्षेत्रों के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान भी रखते हों।
- केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में सभी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।
प्रश्न 6.
उत्तर :
क्षेत्रीय असन्तुलन क्षेत्रवाद के जनक के रूप में क्षेत्रीय असन्तुलन से अभिप्राय विभिन्न क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दरों, स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता, औद्योगीकरण का स्तर आदि के आधार पर अन्तर पाया जाता है। भारत के विभिन्न राज्यों के बीच बड़े पैमाने पर असन्तुलन पाया जाता है। क्षेत्रीय असन्तुलन ने भारत में निम्नलिखित रूप से क्षेत्रवाद को पैदा किया है-- क्षेत्रीय विभिन्नताओं एवं असन्तुलन के कारण क्षेत्रीय भेदभाव को बढ़ावा मिलता है।
- भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण क्षेत्रवादी भावनाओं को बल मिला है। इसके कारण कई क्षेत्रों ने पृथक् राज्यों की माँग की है।
- क्षेत्रीय असन्तुलन ने क्षेत्रवादी हिंसा, आन्दोलनों व तोड़-फोड़ को बढ़ावा दिया है।
- अनेक क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण ही बने हैं जो अब क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
प्रश्न 7.
उत्तर :
असम समझौता-सन् 1985 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी और आसू के बीच एक समझौता हुआ जिसमें यह तय किया गया कि जो लोग बंगलादेश युद्ध के दौरान या उसके बाद के वर्षों में असम आए हैं, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा।समझौते के कारण-समझौते के निम्नलिखित प्रमुख परिणाम निकले-
- समझौते के बाद ‘आसू’ और असम-गण-संग्राम परिषद् ने साथ मिलकर ‘असम-गण-परिषद्’ नामक एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल बनाया।
- असम-गण-परिषद् सन् 1985 में इस वायदे के साथ सत्ता में आया कि विदेशी लोगों की समस्या का समाधान कर लिया जाएगा।
- असम समझौते से प्रदेश में शान्ति कायम हुई तथा प्रदेश की राजनीति का चेहरा बदल गया।
- असम समझौते के बावजूद ‘आप्रवास’ की समस्या अभी भी एक जीवन्त मुद्दा बनी हुई है।
प्रश्न 8.
उत्तर :
जम्मू-कश्मीर में तनाव के प्रमुख कारण-जम्मू-कश्मीर में तनाव के प्रमुख कारण निम्नलिखित-- पाकिस्तानी नेताओं का विचार है कि कश्मीर का पाकिस्तान से सम्बन्ध है क्योकि राज्य की अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम है। पाकिस्तानी नेताओं का हमेशा यह दावा रहा है कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए।
- पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर राज्य पर सन् 1947 में कबायली हमला करवाकर इसका एक हिस्सा अपने नियन्त्रण में ले लिया है। भारत का दावा है कि इस क्षेत्र का पाकिस्तान द्वारा किया गया अधिग्रहण अवैध है।
- भारतीय संघ में कश्मीर की हैसियत को लेकर काफी विवाद है। धारा-370 में जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है जिसका देश में विरोध है। अनेक लोगों का मत है कि राज्य को धारा-370 के तहत विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ पूरी तरह से जुड़ नहीं पाया है।
- अधिकांश कश्मीरी लोगों का मत है कि उन्हें पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान नहीं की गयी है।
प्रश्न 9.
उत्तर :
राजीव-लोंगोवाल समझौता अथवा पंजाब समझौतासन् 1984 के चुनावों के बाद सत्ता में आने वाले तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने नरमपन्थी अकाली नेताओं से वार्ता आरम्भ की। अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचरन सिंह लोंगोवाल के साथ जुलाई 1985 में एक समझौता हुआ। इस समझौते को ‘राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौता’ अथवा ‘पंजाब समझौता’ कहते हैं।
समझौते की प्रमुख शर्ते
(1) यह समझौता पंजाब में शान्ति कायम करने की दिशा में एक शीर्षस्थ कदम था। इस बात पर सहमति हुई कि चण्डीगढ़, पंजाब को दे दिया जाएगा तथा पंजाब एवं हरियाणा के मध्य सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग आयोग की नियुक्ति होगी। समझौते में यह भी निश्चित किया गया कि पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के मध्य रावी-व्यास के पानी के बँटवारे के बारे में फैसला करने हेतु एक ट्रिब्यूनल (न्यायाधिकरण) बैठाया जाएगा।
(2) समझौते में सरकार पंजाब में उग्रवाद से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने व उनके साथ अच्छा व्यवहार करने पर राजी हुई। साथ ही पंजाब से विशेष सुरक्षा वाले अधिनियम को वापस लेने की बात पर भी सहमति हुई।
प्रश्न 10.
उत्तर :
राजीव गांधी, फिरोज गांधी और इन्दिरा गांधी के पुत्र थे। उनका जन्म सन् 1944 में हुआ। सन् 1980 के बाद वे देश की सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। अपनी माँ श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद वे राष्ट्रव्यापी सहानुभूति के माहौल में भारी बहुमत से जीते तथा सन् 1984 में देश के प्रधानमन्त्री बने और सन् 1989 तक वह प्रधानमन्त्री पद पर रहे। इन्होंने पंजाब में व्याप्त आतंकवाद के विरुद्ध उदारपन्थी नीतियों के समर्थक लोंगोवाल के साथ समझौता किया। इन्हें मिजो विद्रोहियों व असम में छात्र संघों से समझौता करने में सफलता प्राप्त हुई। राजीव गांधी देश में उदारवाद या खुली अर्थव्यवस्था एवं कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी के प्रणेता रहे। श्रीलंका में नक्सलियों की समस्या को सुलझाने के लिए इन्होंने भारतीय शान्ति सेना को श्रीलंका भेजा। ऐसा माना जाता है कि श्रीलंका के विद्रोही तमिल संगठन लिट्टे के एक आत्मघाती द्वारा सन् 1991 में राजीव गांधी की निर्मम हत्या कर दी गयी।अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उत्तर :
(1) असम,(2) नागालैण्ड,
(3) मेघालय,
(4) मिजोरम,
(5) अरुणाचल प्रदेश,
(6) त्रिपुरा और
(7) मणिपुर।
प्रश्न 2.
उत्तर :
ऑपरेशन ब्लू स्टार सन् 1984 में भारत सरकार द्वारा चलाया गया।प्रश्न 3.
उत्तर :
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतान्त्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं।प्रश्न 4.
उत्तर :
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव सन् 1973 में पास किया गया और इसका सम्बन्ध राज्यों की स्वायत्तता से है।प्रश्न 5.
उत्तर :
सन् 1984 के जून माह में स्वर्ण मन्दिर में की गई सैन्य कार्रवाई का कूट नाम ‘ऑपरेशन ब्लू – स्टार’ था।प्रश्न 6.
उत्तर :
क्षेत्रवाद से अभिप्राय किसी भी देश के उस छोटे से क्षेत्र-से है जो औद्योगिक, सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जाग्रत है। क्षेत्रवाद केन्द्रीयकरण के विरुद्ध क्षेत्रीय इकाइयों को अधिक शक्ति व स्वायत्तता प्रदान करने के पक्ष में है।प्रश्न 7.
उत्तर :
- प्रथम सबक यह मिलता है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोक राजनीति का अभिन्न अंग हैं।
- लोकतान्त्रिक वार्ता करके क्षेत्रीय आकांक्षाओं का हल निकालना चाहिए।
प्रश्न 8.
उत्तर :
क्षेत्र उस भू-भाग को कहते हैं जिसके निवासी सामान्य भाषा, धर्म, परम्पराएँ, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास आदि की दृष्टि से भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हों। इनमें से किसी एक या अधिक तत्त्व के साथ लोग भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं।प्रश्न 9.
उत्तर :
अलगाववाद से अभिप्राय एक राज्य से कुछ क्षेत्र को अलग करके स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की माँग है। अलगाववाद का उदय उस समय होता है जब क्षेत्रवाद की भावना उग्र रूप धारण कर लेती है।प्रश्न 10.
उत्तर :
जो पार्टी सारे देश में नहीं होती बल्कि जिसका कार्यक्षेत्र किसी प्रान्त या राज्य या उसके छोटे-से क्षेत्र तक सीमित होता है, उसे ‘क्षेत्रीय दल’ कहा जाता है।प्रश्न 11.
उत्तर :
क्षेत्रवाद रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं-- राष्ट्रीय नीति का निर्धारण किया जाए।
- सांस्कृतिक एकीकरण के लिए प्रयास किए जाए।
प्रश्न 12.
उत्तर :
- जातिवाद-भारत में अनेक क्षेत्रीय दलों का निर्माण जातिवाद के आधार पर हुआ है।
- धर्म-धर्म भी क्षेत्रीय दलों के निर्माण का प्रमुख कारण माना जाता है।
प्रश्न 13.
उत्तर :
- नए राज्यों की माँग विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष तथा तनाव पैदा करती है।
- पिछड़े क्षेत्रों का विकास नए राज्यों के गठन मात्र से सम्भव नहीं है।
प्रश्न 14.
उत्तर :
- इसके प्रभावस्वरूप स्वायत्त सिक्ख पहचान की बात उठी।
- इसके प्रभावस्वरूप ही चरमपन्थी सिक्खों ने भारत से अलग होकर खालिस्तान की माँग की।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
(a) 15 अगस्त, 1985
(b) 15 अगस्त, 1986
(c) 30 अगस्त, 1988
(d) 15 जनवरी, 1990
उत्तर :
(a) 15 अगस्त, 1985प्रश्न 2.
(a) गुजरात
(b) तमिलनाडु
(c) पंजाब
(d) असम
उत्तर :
(d) असमप्रश्न 3.
(a) हामिद अंसारी
(b) लालडेंगा
(c) ई० वी० रामास्वामी नायकर
(d) शेख मुहम्मद अब्दुल्ला।
उत्तर :
(c) ई० वी० रामास्वामी नायकर।प्रश्न 4.
(a) सन् 1985
(b) सन् 1982
(c) सन् 1984
(d) सन् 1971
उत्तर :
(b) सन् 1982प्रश्न 5.
(a) सन् 1940
(b) सन् 1924
(c) सन् 1950
(d) सन् 1960
उत्तर :
(b) सन् 1924प्रश्न 6.
(a) जम्मू-कश्मीर
(b) राजस्थान
(c) पंजाब
(d) हिमाचल प्रदेश।
उत्तर :
(a) जम्मू-कश्मीर।NCERT Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)
Class 12 Rajniti Vigyan Chapters | Rajniti Vigyan Class 12 Chapter 8
NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Contemporary World Politics
( भाग ‘अ’ – समकालीन विश्व राजनीति)
-
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 1 The Cold War Era
(शीतयुद्ध का दौर)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 2 The End of Bipolarity
(दो ध्रुवीयता का अंत)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 3 US Hegemony in World Politics
(समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 4 Alternative Centres of Power
(सत्ता के वैकल्पिक केंद्र)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 5 Contemporary South Asia
(समकालीन दक्षिण एशिया)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 6 International Organisations
(अंतर्राष्ट्रीय संगठन)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 7 Security in the Contemporary World
(समकालीन विश्व में सुरक्षा)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 8 Environment and Natural Resources
(पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 9 Globalisation
(वैश्वीकरण)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)
NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Politics In India Since Independence
(भाग ‘ब’ – स्वतंत्र भारत में राजनीति)
-
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 1 Challenges of Nation Building
(राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 2 Era of One Party Dominance
(एक दल के प्रभुत्व का दौर)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 3 Politics of Planned Development
(नियोजित विकास की राजनीति)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 4 India’s External Relations
(भारत के विदेश संबंध)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 5 Challenges to and Restoration of Congress System
(कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
(लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 7 Rise of Popular Movements
(जन आन्दोलनों का उदय)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 8 Regional Aspirations
(क्षेत्रीय आकांक्षाएँ)
NCERT Solutions For Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics
(भारतीय राजनीति : नए बदलाव)
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