NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan Chapter 6

NCERT Solutions | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 6 | The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट) 

NCERT Solutions for Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 6 The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट)

CBSE Solutions | Rajniti Vigyan Class 12

Check the below NCERT Solutions for Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 6 The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट) Pdf free download. NCERT Solutions Class 12 Rajniti Vigyan  were prepared based on the latest exam pattern. We have Provided The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट) Class 12 Rajniti Vigyan NCERT Solutions to help students understand the concept very well.

NCERT | Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)

NCERT Solutions Class 12 Rajniti Vigyan
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12
Subject: Rajniti Vigyan
Chapter: 6
Chapters Name: The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट)
Medium: Hindi

The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट) | Class 12 Rajniti Vigyan | NCERT Books Solutions

You can refer to MCQ Questions for Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence) Chapter 6 The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट) to revise the concepts in the syllabus effectively and improve your chances of securing high marks in your board exams.

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 The Crisis of Democratic Order (लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट)

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 Text Book Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.

बताएँ कि आपातकाल के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत
(क) आपातकाल की घोषणा 1975 में इन्दिरा गांधी ने की।
(ख) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए।
(ग) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आपातकाल की घोषणा की गई थी।
(घ) आपातकाल के दौरान विपक्ष के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
(ङ) सी०पी०आई० ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया।

उत्तर :

(ग) गलत,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही,
(ङ) सही।

प्रश्न 2.

निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकाल की घोषणा के सन्दर्भ में मेल नहीं खाता है-
(क) “सम्पूर्ण क्रान्ति’ का आह्वान
(ख) 1974 की रेल-हड़ताल
(ग) नक्सलवादी आन्दोलन
(घ) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
(ङ) शाह आयोग की रिपोर्ट।

उत्तर :

(ग) नक्सलवादी आन्दोलन।

प्रश्न 3.

निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-
NCERT Solutions For Class 12 Political Science


उत्तर :

NCERT Solutions For Class 12 Political Science

प्रश्न 4.

किन कारणों से 1980 के मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?

उत्तर :

सन् 1980 के मध्यावधि चुनावों का मूल कारण जनता पार्टी की सरकार में पारस्परिक तालमेल का अभाव व राजनीतिक अस्थिरता को माना जाता है। सन् 1977 के चुनावों में जनता पार्टी को जनता ने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया लेकिन जनता पार्टी के नेताओं में प्रधानमन्त्री के पद को लेकर मतभेद हो गया। आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए ही एकजुट रख सका। जनता पार्टी के पास किसी दिशा, नेतृत्व अथवा साझे कार्यक्रम का अभाव था। पहले मोरारजी देसाई, बाद में कुछ समय के लिए चरणसिंह प्रधानमन्त्री बने। केवल 18 महीने में ही मोरारजी देसाई ने लोकसभा में अपना बहमत खो दिया जिसके कारण मोरारजी देसाई को त्यागपत्र देना पड़ा। मोरारजी देसाई के बाद चरणसिंह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमन्त्री बने लेकिन बाद में कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया। इस प्रकार, चरणसिंह भी मात्र चार महीने ही प्रधानमन्त्री पद पर रह पाए। अत: सत्ता के लिए हुई उठा-पटक के कारण सन् 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाए गए।

प्रश्न 5.

जनता पार्टी ने 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गई थी और इसके क्या निष्कर्ष थे?

उत्तर :

शाह आयोग का गठन 25 जून, 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं की जाँच के लिए किया गया था। आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जाँच की और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। गवाहों में इन्दिरा गांधी भी शामिल थीं। वे आयोग के सामने उपस्थित हुईं, लेकिन उन्होंने आयोग के सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया।

शाह आयोग ने अपनी जाँच के दौरान पाया कि इस अवधि में बहुत सारी ‘अति’ हुई। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अन्तरिम रिपोर्टों और तीसरी तथा अन्तिम रिपोर्ट की सिफारिशी पर्यवेक्षणों और निष्कर्षों को स्वीकार किया। यह रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में भी विचार के लिए रखी गई।

प्रश्न 6.

1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?

उत्तर :

1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके निम्नलिखित कारण बताए थे-
(1) सरकार ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा लोकतन्त्र को रोकने की कोशिश की जा रही है तथा सरकार को उचित ढंग से कार्य नहीं करने दिया जा रहा है। इसलिए सरकार ने आपातकाल की घोषणा की। इस सन्दर्भ में श्रीमती गांधी के वाक्य थे-“लोकतन्त्र के नाम पर खुद लोकतन्त्र की राह रोकने की कोशिश की जा रही है। वैधानिक रूप से निर्वाचित सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा। आन्दोलनों से माहौल सरगर्म है और इसके नतीजतन हिंसक घटनाएं हो रही हैं। एक आदमी तो इस हद तक आगे बढ़ गया है कि वह हमारी सेना को विद्रोह और पुलिस को बगावत के लिए उकसा रहा है।”

(2) सरकार ने कहा कि विघटनकारी ताकतों का खुला खेल जारी है और साम्प्रदायिक उन्माद को हवा दी जा रही है, जिससे हमारी एकता पर खतरा मँडरा रहा है। अगर सचमुच कोई सरकार है तो वह कैसे हाथ बाँधकर खड़ी रहे और देश की स्थिरता को खतरे में पड़ता देखती रहे? चन्द लोगों की कारस्तानी से विशाल आबादी के अधिकारों को खतरा पहुंचा रहा है।

(3) षड्यन्त्रकारी शक्तियाँ सरकार के प्रगतिशील कामों में अड़गे ‘लगा रही हैं और उन्हें गैर-संवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती हैं।

प्रश्न 7.

1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से सम्भव हुआ?

उत्तर :

1977 के चुनावों के बाद केन्द्र में पहली बार विपक्षी दल की सरकार बनने के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार रहे, इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-

1. बड़ी विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना—आपातकाल लागू होने से आहत विपक्षी नेताओं ने आपातकाल के बाद हुए चुनाव के पहले एकजुट होकर ‘जनता पार्टी’ नामक एक नया दल बनाया। नए दल ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व को स्वीकार किया। कांग्रेस के कुछ नेता भी जो आपातकाल के विरुद्ध थे, इस पार्टी में शामिल हुए।

2. जगजीवन राम द्वारा त्यागपत्र देना-चुनाव से पहले जगजीवन राम ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया तथा कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवन राम के नेतृत्व में एक नयी पार्टी—’कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ बनायी तथा बाद में यह पार्टी जनता पार्टी में शामिल हो गई।

3. आपातकाल की ज्यादतियाँ-आपातकाल के दौरान जनता पर अनेक ज्यादतियाँ की गईं; जैसेसंजय गांधी के नेतृत्व में अनिवार्य नसबन्दी कार्यक्रम चलाया गया, प्रेस तथा समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता पर रोक लगा दी गई, हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो गई। इन सब कारणों से जनता कांग्रेस से नाराज थी और उसने कांग्रेस के विरोध में मतदान किया।

4. विपक्षी वोटों के बिखराव का रुकना-सभी विपक्षी दलों द्वारा एकजुट होने से सभी गैर-कांग्रेसी मत एक ही जगह पर पड़े। जनमत का कांग्रेस के विरुद्ध होना तथा सभी गैर-कांग्रेसी मतों का एक ही जगह पड़ना कांग्रेस के हार का सबब बना।

5. जनता पार्टी का प्रचार-जनता पार्टी ने सन् 1977 के चुनावों को आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप लिया तथा इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतान्त्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों को मुद्दा बनाया।

प्रश्न 8.

हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ-
(i) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर।
(ii) कार्यपालिका और न्यायपालिका के सम्बन्ध।
(iii) जनसंचार माध्यमों के कामकाज।
(iv) पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ।

उत्तर :

(i) आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को निलम्बित कर दिया गया तथा श्रीमती गांधी द्वारा ‘मीसा कानून’ लागू किया गया जिसमें किसी भी नागरिक को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में लिया जा सकता था।

(ii) आपातकाल में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे के सहयोगी हो गए, क्योंकि सरकार ने सम्पूर्ण न्यायपालिका को सरकार के प्रति वफादार रहने के लिए कहा तथा आपातकाल के दौरान कुछ हद तक न्यायपालिका सरकार के प्रति वफादार भी रही। इस प्रकार आपातकाल के दौरान न्यायपालिका कार्यपालिका के आदेशों का पालन करने वाली संस्था बन गई थी।

(iii) आपातकाल के दौरान जनसंचार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, कोई भी समाचार-पत्र सरकार के खिलाफ कोई भी खबर नहीं छाप सकता था तथा जो भी खबर अखबार द्वारा छापी जाती थी उसे पहले सरकार से स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती थी।

(iv) आपातकाल के दौरान पुलिस और नौकरशाही, सरकार के प्रति वफादार बनी रही, यदि किसी पुलिस अधिकारी या नौकरशाही ने सरकार के आदेशों को मानने से मना किया तो उसे या तो निलम्बित कर दिया गया या गिरफ्तार कर लिया गया।

प्रश्न 9.

भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।

उत्तर :

आपातकाल का भारतीय दलीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि अधिकांश विरोधी दलों को किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं थी। आजादी के समय से लेकर सन् 1975 तक भारत में वैसे भी कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा तथा संगठित विरोधी दल उभर नहीं पाया, वहीं आपातकाल के दौरान विरोधी दलों की स्थिति और भी खराब हुई। आपातकाल के बाद सरकार ने जनवरी 1977 में चुनाव कराने का फैसला किया। सभी बड़े विपक्षी दलों ने मिलकर एक नयी पार्टी- “जनता पार्टी’ का गठन कर चुनाव लड़ा और सफलता पायी और सरकार बनाई। इस प्रकार कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राजनीतिक प्रणाली द्वि-दलीय हो जाएगी। लेकिन 18 माह में ही जनता पार्टी का यह कुनबा बिखर गया और पुन: दलीय प्रणाली उसी रूप में आ गई।

प्रश्न 10.

निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें 1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतन्त्र, दो-दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरन्त बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई…..जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची…..डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रणव रॉय। -पार्था चटर्जी
(क)किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो-दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो-दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई?

उत्तर :

(क) सन् 1977 में भारत की राजनीति दो-दलीय प्रणाली इसलिए जान पड़ती थी क्योंकि उस समय केवल दो ही दल सत्ता के मैदान में थे-सत्ताधारी दल कांग्रेस एवं मुख्य विपक्षी दल जनता पार्टी।

(ख) लेखकगण इस दौर को दो-दलीय प्रणाली के नजदीक इसलिए बता रहे हैं क्योंकि कांग्रेस कई टुकड़ों में बँट गई और जनता पार्टी में भी फूट हो गई परन्तु फिर भी इन दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता संयुक्त नेतृत्व, साझे कार्यक्रम और नीतियों की बात करने लगे। इन दोनों गुटों की नीतियाँ एक जैसी थीं। दोनों में बहुत कम अन्तर था। वामपन्थी मोर्चे में सी०पी०एम०, सी०पी०आई०, फारवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी की नीति एवं कार्यक्रमों को इनसे अलग माना जा सकता है।

(ग) सन् 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के कारण नेताओं में निराशा पैदा हुई और इस निराशा के कारण फूट पैदा हुई, क्योंकि अधिकांश कांग्रेसी नेता श्रीमती गांधी के चामत्कारिक नेतृत्व के मोहपाश से बाहर निकल चुके थे, दूसरी ओर जनता पार्टी के नेतृत्व को लेकर फूट पैदा हो गई थी। प्रधानमन्त्री पद के लिए उम्मीदवारों में आपसी होड़ मच गई।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 InText Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

गरीब जनता पर सचमुच भारी मुसीबत आई होगी।आखिर गरीबी हटाओ के वादे का हुआ क्या?

उत्तर :

श्रीमती गांधी ने सन् 1971 के आम चुनावों में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था लेकिन इस नारे के बावजूद भी सन् 1971-72 के बाद के वर्षों में देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में सुधार नहीं हुआ और यह नारा खोखला साबित हुआ।

इसी अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। इससे विभिन्न चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ी। सन् 1973 में चीजों की कीमतों में 23 प्रतिशत और सन् 1974 में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस तीव्र मूल्य वृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई। बंगलादेश के संकट से भी भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। फलत: गरीबी हटाओ कार्यक्रम के लिए दिए जाने वाले अनुदान में कटौती कर दी गई और यह नारा पूर्णत: सफल साबित नहीं हो पाया।

प्रश्न 2.

क्या ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ और ‘प्रतिबद्ध नौकरशाही’ का मतलब यह है कि न्यायाधीश और सरकारी अधिकारी शासक दल के प्रति निष्ठावान हों?

उत्तर :

प्रतिबद्ध नौकरशाही के अन्तर्गत नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों से बँधी हुई होती है और उस दल के निर्देशन में कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना किसी प्रश्न उठाए आँखें मूंदकर लागू करना होता है।

जहाँ तक प्रतिबद्ध न्यायपालिका का सवाल है यह ऐसी न्यायपालिका होती है, जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफादार हो तथा सरकार के निर्देशों के अनुसार चले।

इस प्रकार ऐसी व्यवस्था में न्यायपालिका व व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता पर प्रश्न चिह्न लग जाता है और प्रशासन निरंकुश हो जाता है अर्थात् कानून बनाने एवं फैसला या निर्णय देने की शक्ति केवल एक ही संख्या या दल के पास आ जाती है। इस प्रकार की नौकरशाही प्रायः साम्यवादी देशों में पायी जाती है।

प्रश्न 3.

क्या राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सिफारिश के बगैर आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी? कितनी अजीब बात है!

उत्तर :

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख किया गया है। भारत में 1975 में अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की गई जिसमें मन्त्रिमण्डल से सलाह करके आपातकालीन स्थिति की घोषणा का प्रावधान है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने बिना मन्त्रिमण्डल की सलाह के राष्ट्रपति को आपातकाल की घोषणा करने की सलाह दी थी, मन्त्रिमण्डल की बैठक इसके बाद हुई। इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियों में चाहे कुछ भी हुआ हो लेकिन लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यदि देश में आपातकाल लागू करना है तो राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल से पूरी तरह विचार-विमर्श करके तमाम हालातों को दृष्टिगत रखते हुए इसकी घोषणा करनी चाहिए। वर्तमान में आपातकाल के प्रावधानों में सुधार कर लिया गया है। अब आन्तरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही लगाया जा सकता है। इसके लिए भी आपातकाल की घोषणा की सलाह मन्त्रिपरिषद् को राष्ट्रपति को लिखित में देनी होगी।

प्रश्न 4.

अरे! सर्वोच्च न्यायालय ने भी साथ छोड़ दिया। उन दिनों सबको क्या हो गया था?

उत्तर :

आपातकाल के दौरान नागरिकों की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए तथा मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए। नागरिकों के पास अब यह अधिकार नहीं था कि वे अदालतों का दरवाजा खटखटा सकें।

सरकार ने निवारक नजरबन्दी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। लोगों को केवल अपराध की आशंका के कारण गिरफ्तार किया गया। सरकार ने आपातकाल के दौरान निवारक नजरबन्दी अधिनियमों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे। गिरफ्तार लोग अथवा उनके पक्ष से किन्हीं और ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, लेकिन सरकार का कहना था कि लोगों की गिरफ्तारी का कारण बताना कतई आवश्यक नहीं है।

अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला किया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो। सन् 1976 में अप्रैल माह में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील मान ली। इसका आशय यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिकों के जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में से एक माना गया। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बन्द हो गए अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय ने भी जनता का साथ छोड़ दिया था।

प्रश्न 5.

अगर उत्तर और दक्षिण के राज्यों में मतदाताओं ने इतने अलग ढर्रे पर मतदान किया, तो हम कैसे कहें कि 1977 के चुनावों का जनादेश क्या था?

उत्तर :

सन् 1977 के चुनावों में आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हारी। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिलीं। 3 से 35 प्रतिशत से भी कम वोट प्राप्त हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को 330 सीटें प्राप्त हुईं।

लेकिन तत्कालीन चुनावी नतीजों पर प्रकाश डालें तो यह एहसास होता है कि कांग्रेस देश में हर जगह चुनाव नहीं हारी थी। महाराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा में उसने कई सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखा था और दक्षिण भारत के राज्यों में तो उसकी स्थिति काफी मजबूत थी। लेकिन इन चुनावों की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उत्तर भारत में राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता की प्रकृति में दूरगामी बदलाव आए। उत्तर भारत में मध्य वर्ग का जनादेश कांग्रेस के हाथ से दूर जाने लगा और मध्यम वर्ग के कई तबके जनता पार्टी को एक मंच के रूप में पाकर इससे आ जुड़े।

प्रश्न 6.

मैं समझ गया! आपातकाल एक तरह से तानाशाही निरोधक टीका था। इससे दर्द हुआ और बुखार भी आया, लेकिन अन्ततः हमारे लोकतन्त्र के भीतर क्षमता बढ़ी।

उत्तर :

भारत में जून 1975 में श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करवाने की सिफारिश की गई और सम्पूर्ण देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। तत्कालीन सरकार का दावा था कि वह.आपातकाल लागू करके कानून व्यवस्था को बहाल करना चाहती थी, कार्यकुशलता बढ़ाना चाहती थी और गरीबों के हित में कार्यक्रम लागू करना चाहती थी। लेकिन आलोचकों ने ध्यान दिलाया कि सरकार के ज्यादातर वायदे पूरे नहीं हुए तथा सरकार अपने वायदों की ओट लेकर ज्यादतियों से लोगों का ध्यान हटाना चाहती थी।

आपातकाल के दौरान पुलिस हिरासत में मौत और यातनाओं की घटनाएँ घटी। गरीब लोगों को मनमाने ढंग से एक जगह से उजाड़ कर दूसरी जगह बसाने की भी घटनाएँ हुईं। जनसंख्या नियन्त्रण के अति उत्साह में लोगों को अनिवार्य रूप से नसबन्दी के लिए मजबूर किया गया। आपातकाल से सबक-आपातकाल में एकबारगी भारतीय लोकतन्त्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हुईं। पर्यवेक्षकों का मानना है कि आपातकाल के दौरान भारतीय लोकतन्त्र लोकतन्त्र नहीं रहा लेकिन यह भी सही है कि थोड़े ही दिनों के अन्दर कामकाज फिर से लोकतान्त्रिक ढर्रे पर लौट आया। आपातकाल के प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं-

  1. आपातकाल का प्रथम सबक तो यही है कि भारत से लोकतन्त्र को विदा कर पाना अत्यन्त कठिन है।
  2. दूसरे, आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब आन्तरिक आपातकाल सिर्फ सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मन्त्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित में दे।
  3. तीसरे आपातकाल से हर कोई नागरिक अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हुआ। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई।

इस प्रकार आपातकाल ने भारतीय प्रशासन व जनता को सबक सिखाया तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था की प्रामाणिकता को भी सिद्ध किया।

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 Other Important Questions

NCERT Solutions For Class 12 Political Science Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

वचनबद्ध न्यायपालिका की अवधारणा को समझाइए।

उत्तर :

वचनबद्ध न्यायपालिका वचनबद्ध न्यायपालिका से तात्पर्य न्यायपालिका का सरकार के प्रति प्रतिबद्ध होना या सरकार की नीतियों का आँख मूंदकर पालन करने से है।

सन् 1973 में श्रीमती गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों श्री जे० एम० शैलट, श्री के० एस० हेगड़े तथा श्री ए० एन० ग्रोवर की उपेक्षा करके ए० एन० रे को नियुक्त किया। इस नियुक्ति से उस समय एक राजनीतिक विवाद पैदा हो गया। श्री ए० एन० रे की नियुक्ति के विरोध में तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने त्यागपत्र दे दिया। इससे यह प्रश्न उठने लगा कि क्या न्यायपालिका सरकार के प्रति वचनबद्ध होनी चाहिए अथवा स्वतन्त्र।

वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए सरकार द्वारा प्रयोग किए गए उपाय-तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती गांधी की सरकार ने न्यायपालिका की वचनबद्धता के लिए निम्नलिखित उपाय किए थे-

1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता के सिद्धान्त की अनदेखी-श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी की तथा उन न्यायाधीशों को पदोन्नत किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे।

उदाहरणार्थ- श्री जे० एम० शैलट, के० एस० हेगड़े तथा ए० एन० ग्रोवर की वरिष्ठता की अनदेखी करके श्री ए० एन० रे को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करवाया। अतः तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। सन् 1977 में पुनः श्री एच० आर० खन्ना की वरिष्ठता की अनदेखी करके श्री एम० एच० बेग को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करवाया गया।

2. न्यायाधीशों का स्थानान्तरण-श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का सहारा भी लिया। इन्होंने सन् 1981 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस्माइल को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाकर भेजा तथा पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी० एन० सिंह को मद्रास उच्च न्यायालय स्थानान्तरित करवाया।

3. रिक्त पदों को भरने से मना करना-सरकार ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए कई बार रिक्त पदों को भरने से मना कर दिया, अथवा असमर्थता व्यक्त की।

4. न्यायपालिका की आलोचना-न्यायाधीशों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों की प्राय: अधिकारियों द्वारा आलोचना की जाती थी, जबकि ऐसा किया जाना संविधान के विरुद्ध था।

5. अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति-वचनबद्ध न्यायपालिका का एक अन्य उपाय अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति करना था। सरकार अस्थायी तौर पर नियुक्त करके न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली एवं व्यवहार का अध्ययन करती थी कि वह सरकार के पक्ष में कार्य कर रहा है अथवा विपक्ष में।

6. अन्य पदों पर नियुक्तियाँ-सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे अथवा सरकार की नीतियों के अनुसार चलते थे।

7. कम वेतन-न्यायाधीशों को अन्य विभागों के मुकाबले कम वेतन मिलता था।

8. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का प्रावधान-कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के संवैधानिक प्रावधानों को भी वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए प्रयोग किया गया।
निष्कर्ष-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत में न्यायपालिका की प्रतिबद्धता पहले की अपेक्षा कम हुई है लेकिन अभी भी वह पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं है। स्वच्छ प्रशासन के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना पहली शर्त है।

प्रश्न 2.

सन् 1975 में श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल की घोषणा के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

सन् 1975 के आपातकाल की घोषणा भारतीय राजनीति का सबसे विवादास्पद प्रकरण माना जाता है, जो 25 जून, 1975 को पहली बार आन्तरिक गड़बड़ी के आधार पर लागू किया गया। राष्ट्रपति ने प्रधानमन्त्री की सिफारिश के आधार पर सन् 1975 में राष्ट्रीय संकटकाल की घोषणा की।

आपातकाल के कारण आपातकाल के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

1. सन् 1971 के युद्ध में अत्यधिक व्यय-सन् 1975 में लागू किए गए आपातकाल की घोषणा का प्रमुख कारण सन् 1971 में हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध को माना जाता है। इस युद्ध में भारत को बहुत अधिक धन व्यय करना पड़ा। इसके अलावा पूर्वी पाकिस्तान से आए करोड़ों शरणार्थियों का भार भी भारत पर पड़ा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। श्रीमती गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा धन के अभाव के कारण पूरी तरह सफल नहीं हो पाया, जिससे लोगों में असन्तोष फैला।

2. कृषिगत उत्पादन में कमी-सन् 1972-73 में भारत में फसल भी अच्छी नहीं हुई। अन्य शब्दों में, सरकार को कृषि क्षेत्र में भी असफलता मिल रही थी, जिससे भारत में आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा था।

3. औद्योगिक उत्पादन की मात्रा में कमी-भारत में प्रशिक्षित एवं कुशल वैज्ञानिकों, इंजीनियरों तथा कर्मचारियों के होने के बावजूद भी भारत के औद्योगिक उत्पादन में निरन्तर कमी हो रही थी जिससे कर्मचारियों में असन्तोष बढ़ रहा था।

4. रेलवे की हड़ताल-सन् 1975 में की गई आपातकालीन घोषणा का एक कारण रेलवे कर्मचारियों द्वारा की गई हड़ताल भी थी जिससे यातायात व्यवस्था बिल्कुल खराब हो गई।

5. बिहार आन्दोलन-बिहार आन्दोलन का नेतृत्व जयप्रकाश नारायण ने किया। बिहार आन्दोलन भी सन् 1975 में आपातकाल की घोषणा का एक प्रमुख कारण था, क्योंकि इस आन्दोलन के कारण जयप्रकाश नारायण ने लोगों को श्रीमती इन्दिरा गांधी के विरुद्ध एकजुट कर दिया था। बिहार आन्दोलन ने केन्द्र में कांग्रेस सरकार की चुनौती पेश की तथा श्रीमती गांधी ने इस आन्दोलन के दबाव में आपातकाल की घोषणा की।

6. तेल संकट-सन् 1973 में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल संकट पैदा हो गया। सन् 1973 में ओपेक देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात मनवाने के लिए तेल का उत्पादन कम कर दिया। इससे तेल संकट उत्पन्न हुआ। इस तेल संकट के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ गईं। तेल की कीमतें बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रभाव देखा जाने लगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खराब हो गई।

7. गुजरात का नव-निर्माण आन्दोलन-अहमदाबाद के एन० डी० इंजीनियरिंग महाविद्यालय के छात्रावास में खाने में 20 प्रतिशत की वृद्धि पर विवाद के कारण अहमदाबाद में असन्तोष फैल गया तथा आगे चलकर इस असन्तोष ने गुजरात नव-निर्माण आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। इस घटना से अहमदाबाद राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में आ गया। यह आन्दोलन इतना व्यापक था कि गुजरात के मुख्यमन्त्री चिमनभाई पटेल को त्यागपत्र देना पड़ा। सन् 1975 में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जो आपातकाल की घोषणा की थी, उसका एक प्रमुख कारण गुजरात का नव-निर्माण आन्दोलन भी था।

8. श्रीमती गांधी के चुनाव को अवैध घोषित करना-सन् 1975 के आपातकाल का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके निर्वाचन को अवैध घोषित करना था।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

जगजीवन राम का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर :

जगजीवन राम-जगजीवन राम भारत के महान् स्वतन्त्रता सेनानी और बिहार राज्य के उच्च कोटि के कांग्रेसी नेता थे। इनका जन्म सन् 1908. में हुआ। ये स्वतन्त्र भारत के पहले केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में श्रम मन्त्री बने। सन् 1952 से सन् 1977 तक इन्होंने अनेक मन्त्रालयों की जिम्मेदारी निभाई। वे देश की संविधान सभा के सदस्य थे। वे सन् 1952 से लेकर सन् 1986 तक सांसद रहे। सन् 1977 से सन् 1979 तक देश के उप-प्रधानमन्त्री पद पर रहे। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दलितों की सेवा में बिताया और उनकी सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते थे। सन् 1986 में इनका निधन हो गया।

प्रश्न 2.

भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा का उदय कैसे हुआ?

उत्तर :

भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका का उदय-केशवानन्द भारती मुकदमे की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की एक 13 सदस्यीय संविधान पीठ ने की। 13 में से 9 न्यायाधीशों ने यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान में संशोधन कर सकती है, परन्तु संविधान के मूलभूत ढाँचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। इस निर्णय से सरकार एवं न्यायपालिका में मतभेद बढ़ गए, क्योंकि सन् 1973 में सरकार का नेतृत्व श्रीमती इन्दिरा गांधी कर रही थीं। अत: यह विवाद श्रीमती इन्दिरा गांधी एवं न्यायालय के मध्य हुआ जिसमें जीत न्यायालय की हुई क्योंकि न्यायालय ने संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया। इसी कारण श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को आगे बढ़ाया। सन् 1975 में आपातकाल के समय वचनबद्ध न्यायपालिका का सिद्धान्त कार्यपालिका का सिद्धान्त बन गया।

प्रश्न 3.

भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को उदाहरणों से समझाइए।

उत्तर :

भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका के उदाहरण

भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी-श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी की। श्रीमती गांधी ने श्री ए० एन० रे को तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी करके सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया।
  2. न्यायाधीशों का स्थानान्तरण–श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का सहारा लिया। इन्होंने सन् 1981 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस्माइल को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाकर भेजा।
  3. रिक्त पदों को भरने से मना करना-सरकार ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए कई बार रिक्त पदों को भरने से भी मना कर दिया।
  4. अन्य पदों पर नियुक्तियाँ सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत, मन्त्री या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे।

प्रश्न 4.

भारत के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में आप आपातकाल की आलोचना किन आधारों पर करते हैं?

उत्तर :

भारतीय लोकतन्त्र पर आपातकाल के दुष्प्रभाव

भारतीय लोकतन्त्र पर आपातकाल के निम्नलिखित दुष्प्रभाव पड़े, जिनके कारण हम आपातकाल की आलोचना करते हैं

1. लोकतान्त्रिक कार्यप्रणाली का ठप्प होना-आपातकाल में लोगों को सार्वजनिक तौर पर सरकार के विरोध करने की लोकतान्त्रिक प्रणाली को ठप्प कर दिया गया। देश को बचाने के लिए बनाए गए संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग इन्दिरा गांधी ने निजी ताकत को बचाने के लिए किया।

2. निवारक नजरबन्दी कानून का दुरुपयोग-आपातकाल में निवारक नजरबन्दी कानून का दुरुपयोग करते हुए लगभग 1 लाख 11 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, वे बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे।

3. प्रेस पर नियन्त्रण-आपातकाल के दौरान सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। समाचार-पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेना आवश्यक है। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।

4. संविधान का 42वाँ संशोधन आपातकाल के दौरान ही संविधान का 42वाँ संशोधन पारित हुआ। इसके जरिये संविधान के अनेक हिस्सों में बदलाव किए गए जिन्हें बाद में 44वें संविधान संशोधन द्वारा ठीक किया गया।

प्रश्न 5.

चौधरी चरणसिंह के जीवन पर संक्षिप्त नोट लिखिए।

उत्तर :

चौधरी चरणसिंह का जन्म सन् 1902 में हुआ। ये महान् स्वतन्त्रता सेनानी थे और प्रारम्भ में उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे। ये ग्रामीण एवं कृषि विकास की नीति और कार्यक्रमों के कट्टर समर्थक थे। सन् 1967 में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर इन्होंने भारतीय क्रान्ति दल का गठन किया। वे दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने। ये जयप्रकाश नारायण के क्रान्ति आन्दोलन से जुड़े और सन् 1977 में जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। सन् 1977 से सन् 1979 तक ये भारत के उप-प्रधानमन्त्री और गृह-मन्त्री रहे। इन्होंने लोक दल की स्थापना की। ये कुछ महीनों के लिए जुलाई 1979 से जनवरी 1980 के बीच भारत के प्रधानमन्त्री रहे। चौधरी चरणसिंह का निधन सन् 1987 में हुआ।

प्रश्न 6.

प्रतिबद्ध नौकरशाही की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

प्रतिबद्ध नौकरशाही की अवधारणा
पतिबदनौकाशाटी की प्रतिबद्ध नौकरशाही का अर्थ है कि नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों एवं नीतियों से बँधी हुई रहती है और उस दल के निर्देशन में ही कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती। इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना कोई प्रश्न उठाए आँखें मूंद कर लागू करना होता है। लोकतान्त्रिक देशों में नौकरशाही प्रतिबद्ध नहीं होती। परन्तु साम्यवादी देशों में जैसे कि चीन में वचनबद्ध नौकरशाही पायी जाती है। भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही से आशय किसी दल के सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध न होकर संविधान के प्रति वचनबद्धता है।

प्रश्न 7.

आपातकाल में संवैधानिक एवं उत्तर-संवैधानिक पक्षों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

आपातकाल के संवैधानिक एवं उत्तर-संवैधानिक पक्ष
आपातकाल के समय कुछ संवैधानिक एवं उत्तर-संवैधानिक पक्ष भी सामने आए। श्रीमती गांधी ने संविधान में 39वाँ संवैधानिक संशोधन किया। इस संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री एवं स्पीकर के चुनाव से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति समाप्त कर दी गई। 39वें संविधान संशोधन की उपधारा-4 के अन्तर्गत उपर्युक्त पदों से सम्बन्धित चुनावों को न्यायालयों में चुनौती देने की शक्ति को समाप्त कर दिया गया। इस संशोधन को पास करने का मुख्य उद्देश्य श्रीमती गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय से राहत दिलाना था।

विरोधी पक्ष ने 39वें संशोधन को संविधान के मूल ढाँचे के विरुद्ध बताया परन्तु उच्च न्यायालय की पीठ के पाँच में से चार न्यायाधीशों ने 39वें संशोधन को वैध ठहराया तथा इस संशोधन के आधार पर श्रीमती गांधी के निर्वाचन को पूर्ण रूप से वैध ठहराया। इस प्रकार श्रीमती गांधी के निर्वाचन को वैध ठहराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक बड़ी कवायद की गई।

प्रश्न 8.

विरोधी दलों के विरोध तथा कांग्रेस की टूट ने आपातकाल की पृष्ठभूमि कैसे तैयार की?

उत्तर :

आपातकाल की पृष्ठभूमि के कारण

आपातकाल की पृष्ठभूमि के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  1. सन् 1967 के चुनावों के बाद कुछ प्रान्तों में विरोधी दलों या संयुक्त विरोधी दलों की सरकार बनी। वे केन्द्र में सत्ता में आना चाहते थे।
  2. कांग्रेस के विपक्ष में जो दल थे उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मानकर प्रयोग किया जा रहा है और राजनीति हद से ज्यादा व्यक्तिगत होती जा रही है।
  3. कांग्रेस टूट से इन्दिरा गांधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गए थे।
  4. इस अवधि में न्यायपालिका और सरकार के आपसी रिश्तों में भी तनाव आए। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के अनेक निर्णयों को संविधान के विरुद्ध माना। सरकार ने न्यायपालिका को प्रगति विरोधी बताया।
  5. जयप्रकाश नारायण समग्र क्रान्ति की बात कर रहे थे। ऐसी सभी घटनाओं ने आपातकाल के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

जनता के संसद मार्च का नेतृत्व कब व किसने किया?

उत्तर :

सन् 1975 में जनता के संसद मार्च का नेतृत्व जयप्रकाश नारायण ने किया।

प्रश्न 2.

आपातकाल लागू करने का तात्कालिक कारण क्या था?

उत्तर :

  1. प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी (तत्कालीन) के लोकसभा हेतु निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित करना।
  2. विपक्षी दलों द्वारा तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी से त्यागपत्र की माँग करना।

प्रश्न 3.

आन्तरिक अशान्ति की दशा में उद्घोषित आपातकाल के कोई दो प्रभाव बताइए।

उत्तर :

  1. संसद के सभी कार्य स्थगित रहते हैं।
  2. प्रेस की स्वतन्त्रता पर भी रोक लगाई जा सकती है।

प्रश्न 4.

25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के किन्हीं दो परिणामों को बताइए।

उत्तर :

  1. मौलिक अधिकारों का हनन।
  2. संवैधानिक उपचारों का अधिकार तथा न्यायालय द्वारा सरकार विरोधी घोषणाएँ।

प्रश्न 5.

सन् 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की विजय प्राप्ति के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :

  1. जयप्रकाश नारायण का व्यक्तित्व-जयप्रकाश नारायण इस दौर के सबसे करिश्माई व्यक्तित्व थे। उन्हें अपार जन-समर्थन प्राप्त था। जनता पार्टी की जीत में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
  2. इन्दिरा गांधी की घटती लोकप्रियता-इन्दिरा गांधी का जिद्दी स्वभाव, हठधर्मी, न्यायपालिका से उनका टकराव आदि ऐसे कारण थे जिनसे इन्दिरा गांधी की लोकप्रियता घटी।

प्रश्न 6.

वचनबद्ध नौकरशाही को समझाइए।

उत्तर :

वचनबद्ध नौकरशाही का अर्थ है कि सरकार की नीति व कार्यक्रमों के प्रति वचनबद्ध अधिकारीगण (अफसर) आँखें मूंद करके शासक दल की नीतियों को लागू करेंगे, चाहें उनका परिणाम कुछ भी क्यों न हो। वचनबद्ध नौकरशाही में राज्य का महत्त्व बढ़ जाता है, राज्य का क्षेत्र व्यापक हो जाता है।

प्रश्न 7.

वचनबद्ध न्यायपालिका से क्या आशय है?

उत्तर :

ऐसी न्यायपालिका जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफादार हो तथा उसके निर्देशों एवं आदेशों के अनुसार ही चले, उसे वचनबद्ध न्यायपालिका कहा जाता है।

प्रश्न 8.

भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता हेतु किए गए कोई दो प्रावधान लिखिए।

उत्तर :

  1. न्यायाधीशों को केवल महाभियोग द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है।
  2. न्यायाधीशों की योग्यता का संविधान में वर्णन किया गया है।

प्रश्न 9.

अनुच्छेद 352 क्या है?

उत्तर :

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में देश में आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। सन् 1962, सन् 1971 एवं सन् 1975 में की गई आपातकाल की घोषणा अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत ही की गई थी।

प्रश्न 10.

शाह आयोग की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

उत्तर :

शाह आयोग की स्थापना आपातकाल के दौरान की गई कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विविध पहलुओं की जाँच करने के लिए की गई।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

जनता पार्टी के शासन काल में भारत के प्रधानमन्त्री कौन थे-
(a) चौ० देवीलाल
(b) चौ० चरण सिंह
(c) मोरारजी देसाई
(d) ए० बी० वाजपेयी

उत्तर :

(c) मोरारजी देसाई।

प्रश्न 2.

श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा कब की थी-
(a) 18 जून, 1975
(b) 25 जून, 1975
(c) 5 जुलाई, 1975
(d) 10 जून, 1975

उत्तर :

(b) 25 जून, 1975

प्रश्न 3.

भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही तथा प्रतिबद्ध न्यायपालिका की घोषणा को किसने जन्म दिया-
(a) इन्दिरा गांधी
(b) लालबहादुर शास्त्री
(c) मोरारजी देसाई
(d) जवाहरलाल नेहरू।

उत्तर :

(a) इन्दिरा गांधी।

प्रश्न 4.

समग्र क्रान्ति के प्रतिपादक कौन थे-
(a) जयप्रकाश नारायण
(b) मोरारजी देसाई
(c) महात्मा गांधी
(d) गोपाल कृष्ण गोखले।

उत्तर :

(a) जयप्रकाश नारायण।

प्रश्न 5.

निम्नलिखित में से नक्सलवादी आन्दोलन से किसका सम्बन्ध है-
(a) सुरेश कलमाड़ी
(b) चारु मजूमदार
(c) ममता बनर्जी
(d) जयललिता।

उत्तर :

(b) चारु मजूमदार।

प्रश्न 6.

भारतीय क्रान्ति दल का गठन किसने किया-
(a) लाला लाजपत राय
(b) सुभाषचन्द्र बोस
(c) लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
(d) चौधरी चरणसिंह।

उत्तर :

(d) चौधरी चरणसिंह।

NCERT Class 12 Rajniti Vigyan स्वतंत्र भारत में राजनीति (Politics In India Since Independence)

Class 12 Rajniti Vigyan Chapters | Rajniti Vigyan Class 12 Chapter 6

NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)

NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Contemporary World Politics
( भाग ‘अ’ – समकालीन विश्व राजनीति)

NCERT Solutions for Class 12 Political Science in Hindi Medium (राजनीतिक विज्ञान)

NCERT Solutions for Class 12 Political Science : Politics In India Since Independence
(भाग ‘ब’ – स्वतंत्र भारत में राजनीति)

NCERT SOLUTIONS

Post a Comment

इस पेज / वेबसाइट की त्रुटियों / गलतियों को यहाँ दर्ज कीजिये
(Errors/mistakes on this page/website enter here)

Previous Post Next Post