NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 5 गलता लोहा

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 5 गलता लोहा 

NCERT Solutions for Class11 Hindi Aroh  Chapter 5 गलता लोहा

गलता लोहा Class 11 Hindi Aroh NCERT Solutions

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Class 11 Hindi Aroh Chapter 5 CBSE NCERT Solutions

NCERT Solutions Class11 Hindi Aroh
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 11th Class
Subject: Hindi Aroh
Chapter: 5
Chapters Name: गलता लोहा
Medium: Hindi

गलता लोहा Class 11 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

You can refer to MCQ Questions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 5 गलता लोहा to revise the concepts in the syllabus effectively and improve your chances of securing high marks in your board exams.

गलता लोहा (अभ्यास प्रश्न)


प्रश्न 1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विधि का जिक्र आया है?
लेखक ने इस प्रसंग का उल्लेख करके धनराम के किताबी ज्ञान प्राप्त करने में मंदबुद्धि की ओर संकेत किया है। एक बार मास्टर साहब ने धनराम को तेरह का पहाड़ा याद करने के लिए कहा। पूरा दिन याद करने के बाद भी उसे यह पहाड़ा याद नहीं हुआ। मास्टर साहब ने कहा कि "तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है इसमें विद्या का ताप कहाँ लगेगा।" धनराम के पिता की आर्थिक स्थिति धनराम की पढ़ाई कराने की नहीं थी। अतः छोटी सी अवस्था में ही उसे धौंकनी के काम में उलझा दिया। फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा।
प्रश्न 2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं समझता था?
धनराम और मोहन एक ही कक्षा में पढ़ते थे। धनराम ने अपने सहपाठी मोहन से अपने मास्टर के कहने पर बैंत खाए थे। मोहन कक्षा का सबसे होनहार छात्र व पुरोहित खानदान का बेटा था और धनराम निम्न जाति का था। अतः जातिगत हीनता की भावना बचपन से ही उसके मन में बैठी थी इसलिए वह मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था।
प्रश्न 3. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है?
सामान्य तौर पर ब्राह्मण टोली के लोगों का शिल्पकार टोली में उठना-बैठना नहीं होता था। कभी किसी कामकाज के सिलसिले में अगर कोई ब्राह्मण शिल्पकार टोले में आता तो वह खड़े खड़े ही बातचीत करता था। लेकिन मोहन कुछ वर्ष लखनऊ में रहने के बाद शिल्पकार धनराम के पास आकर बहुत लंबे समय तक बैठा, उससे बातचीत की तथा धनराम के साथ भट्टी पर काम भी किया। धनराम को मोहन के इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ।
प्रश्न 4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
मोहन के लखनऊ से आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय कहा है क्योंकि लखनऊ में आने का उसका उद्देश्य अधिक से अधिक विद्या प्राप्त करने का था। किंतु वहाँ रमेश ने उसे किसी अच्छे स्कूल में प्रवेश न दिलाकर एक साधारण से स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया। वह घर की औरतों और मोहल्ले की औरतों के कामकाज में हाथ बंटाता था। अतः काम के दबाव के कारण लखनऊ आने का उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए वह कारखानों व फैक्ट्रियों के चक्कर काटने लगा। इसीलिए लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय कहा है।
प्रश्न 5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान की चाबुक कहा है और क्यों?
मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि "तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ से लगेगा इसमें।" लेखक ने त्रिलोक सिंह के इस कथन को जुबान की चाबुक कहा है। क्योंकि जब मंदबुद्धि धनराम को तेरह का पहाड़ा याद नहीं हुआ। तब उन्होंने इन कठोर शब्दों में धनराम का अपमान किया। परिणाम स्वरूप यह हुआ कि वह पढ़ाई छोड़कर पिता के काम को सीखने लगा। पिता के देहांत के बाद उसने उनका पूरा काम संभाल लिया।
प्रश्न 6.
( 1 ) बिरादरी का यही सहारा होता है।
(क) किसने किससे कहा?
(ख) किस प्रसंग मं कहा?
(ग) किस आशय से कहा?
(घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
उत्तर-
(क) यह वाक्य मोहन के पिता वंशीधर ने बिरादरी के संपन्न युवक रमेश से कहा।
(ख) जब वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के बारे में चिंता व्यक्त की तो रमेश ने उससे सहानुभूति जताई और उन्हें सुझाव दिया कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें ताकि वह शहर में रहकर अच्छी तरह पढ़-लिख सकेगा।
(ग) यह कथन रमेश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कहा गया। बिरादरी के लोग ही एक-दूसरे की मदद करते हैं।
(घ) कहानी में यह आशय स्पष्ट नहीं हुआ। रमेश अपने वायदे को पूरा नहीं कर पाया। वह मोहन को घरेलू नौकर से अधिक नहीं समझता था। उसने व परिवार ने मोहन का खूब शोषण किया और प्रतिभाशाली विद्यार्थी का भविष्य चौपट कर दिया। अंत में उसे बेरोजगार कर घर वापस भेज दिया।?
(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी-कहानी का यह वाक्य-
(क) किसके लिए कहा गया हैं?
(ख) किस प्रसग में कहा गया हैं?
(ग) यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?
उत्तर-
(क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।
(ख) मोहन धनराम की दुकान पर हँसुवे में धार लगवाने आता है। काम पूरा हो जाने के बाद भी वह वहीं बैठा रहता है। धनराम एक मोटी लोहे की छड़ को गरम करके उसका गोल घेरा बनाने का प्रयास कर रहा होता है, परंतु सफल नहीं हो पा रहा है। मोहन ने अपनी जाति की परवाह न करके हथौड़े से नपी-तुली चोट मारकर उसे सुघड़ गोले का रूप दे दिया। अपने सधे हुए अभ्यस्त हाथों का कमाल के उपरांत उसकी आँखों में सर्जक की चमक थी।
(ग) यह मोहन के जाति-निरपेक्ष व्यवहार को बताता है। वह पुरोहित का पुत्र होने के बाद भी अपने बाल सखा धनराम के आफर पर काम करता है। यह कार्य उसकी बेरोजगारी की दशा को भी व्यक्त करता है। वह अपने मित्र से काम न होता देख उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ा देता है और काम पूरा कर देता है।

गलता लोहा (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


प्रश्न 1:
'गलता लोहा' कहानी का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
गलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राहमण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे के प्रस्तावित करता प्रत होता है मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।
प्रश्न 2:
मोहन के पिता के जीवन-संघर्ष पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
मोहन के पिता वंशीधर तिवारी गाँव में पुरोहित का काम करते थे। पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान करना करवाना उनका पैतृक पेशा था। वे दूर दूर तक यह कार्य करने जाते थे। इस कार्य से परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। वे अपने हीनहार बेटे को भी नहीं पढ़ा पाए। यजमान उनकी थोड़ी बहुत सहायता कर देते थे।
प्रश्न 3:
कहानी में चित्रित सामाजिक परिस्थितियाँ बताइए।
उत्तर-
कहानी में गाँव के परंपरागत समाज का चित्रण किया गया है। ब्राहमण टोले के लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे तथा वे शिल्पकार के टोले में उठते-बैठते नहीं थे। कामकाज के कारण शिल्पकारों के पास जाते थे, परंतु वहाँ बैठते नहीं थे। उनसे बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन कुछ वर्ष शहर में रहा तथा बेरोजगारी की चोट सही। गाँव में आकर वह इस व्यवस्था को चुनौती देता है।
प्रश्न 4:
वंशीधर को धनराम के शब्द क्यों कचोटते रहे?
उत्तर-
वंशीधर को अपने पुत्र से बड़ी आशाएँ थी। वे उसके अफसर बनकर आने के सपने देखते थे। एक दिन धनराम ने उनसे मोहन के बारे में पूछा तो उन्होंने घास का एक तिनका तोड़कर दाँत खोदते हुए बताया कि उसकी सक्रेटेरियट में नियुक्ति हो गई है। शीघ्र ही वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा। धनराम ने उन्हें कहा कि मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धमान थे। ये शब्द वंशीधर को कचोटते रहे, क्योंकि उन्हें मोहन की वास्तविक स्थिति का पता चल चुका था। लोगों से प्रशंसा सुनकर उन्हें दुःख होता था।

गलता लोहा (पठित गद्यांश)


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
1. लंबे बँटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ कर आएगा। बूढे वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं। यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं होल पाता।
प्रश्न
1. मोहन घर से किस उद्देश्य के लिए निकला।
2. वशीधर के लिए कौन सा कार्य कठिन हो गया?
3. यजमान किस पर श्रद्धा रखते हैं तथा क्यों?
उत्तर-
1. मोहन घर से लंबे बँटवाला हँसुआ लेकर निकला। उसका उद्देश्य था कि इससे वह अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियोंनको काट-छाँटकर साफ़ कर देगा।
2. वंशीधर अब बूढ़ा हो गए थे। वे पुरोहिताई का काम तथा खेती से घर का गुजारा करते थे। अधिक उम्र व जर्जर शरीर के कारण अब वे कठिन श्रम व व्रत उपवास को नहीं कर पाते थे।
3 यजमान वंशीधर पर श्रद्धा रखते हैं। वे उनकी निष्ठा व संयम की प्रशंसा करते हैं और इसी कारण उनका मान-सम्मान करते हैं।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
2. मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईष्य रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार समझता रहा था। बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा, धनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था। और धनराम! वह गाँव के दूसरे खेतिहर या मज़दूर परिवारों के लड़कों की तरह किसी प्रकार तीसरे दर्जे तक ही स्कूल का मुँह देख पाया था।
प्रश्न
1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वद्वी क्यों नहीं मानता था?
2. त्रिलोक मास्टर ने मोहन के बारे में क्या घोषणा की थी?
3 धनराम की नियति कयौं थे?
उत्तर-
1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था, क्योंकि उसके मन में बचपन से नीची जाति के होने का भाव भर दिया गया था। इसलिए वह मोहन की मार को उसका अधिकार समझता था।
2. त्रिलोक मास्टर ने यह घोषणा की थी कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा।
3 धनराम गाँव के गरीब तबके से संबंधित था। खेतिहर या मज़दूर परिवारों के बच्चों की तरह वह तीसरी कक्षा तक ही पढ़ पाया। उसके बाद वह परंपरागत काम में लग गया। यही उसकी नियति थी।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
3. धनराम की मंदबुद्ध रही हो या मन में बैठा हुआ इ कि पूरे दिन घोटा लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद नहीं हो पाया था। छुट्टी के समय जब मास्साब ने उससे दुबारा पहाड़ा सुनाने को कहा तो तीसरी सीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते वह फिर लड़खड़ा गया था। लेकिन इस बार मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय ज़बान की चाबुक लगा दी थी, तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?' अपने थैले से पाँच छह दतियाँ निकालकर उन्होंने धनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामध्य धनराम के पिता की नहीं थी। धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी फेंकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा। फर्क इतना ही था कि जहाँ मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट दे देते थे वहाँ गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे और ज़रा सी गलती होने पर छड़, बेंत, हत्था जो भी हाथ लग जाता उसी से अपना प्रसाद दे देते। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे तो धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली और पास-पड़ोस के गाँव वालों को याद नहीं रहा वे कब गंगाराम के आफर को धनराम का आफर कहने लगे थे।
प्रश्न
1. धनराम तेरह का पहाड़ा क्यों नहीं याद कर पाया?
2. ज़बान की चाबुक' से क्या अभिप्राय है? त्रिलोक सिह ने धनराम को क्या कहा?
3. अध्यापक और लोहार के दड़ देने में क्या अंतर था?
उत्तर-
1. धनराम ने तेरह का पहाड़ा सारे दिन याद किया, परंतु वह इस काम में सफल नहीं हो पाया। इसके दो कारण हो सकते हैं।
(क) धनराम की मंदबुद्ध
(ख) मन में बैठा हुआ पिटाई का डर।
2. इसका अर्थ है-व्यंग्य-वचन। मास्टर साहब ने धनराम को तेरह का पहाड़ा कई बार याद करने को दिया था, परंतु वह कभी याद नहीं कर पाया। उसे कई बार सजा मिली। इस बार उन्होंने उस पर व्यंग्य कसा कि तेरे दिमाग में लोहा भरा है। तुझे पढ़ाई नहीं आएगी।
3. याद न करने पर मास्टर त्रिलोक बच्चे को अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट देते थे, जबकि लोहार गंगाराम सज़ा देने का हथियार स्वयं ही चुनते थे। गलती होने पर वे छड़, बेंत, हत्था-जो भी हाथ लगता, उससे सज़ा देते।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
4. औसत दफ़्तरी बड़े बाबू की हैसियत वाले रमेश के लिए सोहन को अपनी भाई-बिरादर बतलाना अपने सम्मान के विरुद्ध जान पड़ता था और उसे घरेलू नौकर से अधिक हैसियत ५ह नहीं देता था, इस बात को मोहन भी समझने लगा था। थोड़ी बहुत हीला हवाली करने के बाद रमेश ने निकट के ही एक साधारण रो रूकुल में उसका नाम लिखवा दिया। लेकिन एकदम नए वातावरण और रात-दिन के काम के बोझ के कारण गाँव का वह मेधावी छात्र शहर के स्कूली जीवन में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। उसका जीवन एक बंधी बँधाई लीक पर। चलता रहा। साल में एक बार गर्मियों की छुट्टी में गाँव जाने का मौक भी तभी मिलता जब रमेश या उसके घर का कोई प्राणी गाँव जाने वाला होता वरना उन छुट्टयों को भी अगले दरजे की तैयारी के नाम पर उसे शहर में ही गुज़ार देना पड़ता था। अगले दरजे की तैयारी तो बहाना भर थी, सवाल रमेश और उसकी गृहस्थी की सुविधा-असुविधा का था। मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था, क्योंकि और कोई चारा भी नहीं था। घरवालों को अपनी वास्तविक स्थिति बतलाकर वह दुखी नहीं करना चाहता था। वंशीधर उसके सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे।
प्रश्न
1. रमेश मोहन को किस हैसियत में रखता था तथा क्यों?
2. मोहन स्कूल में अपनी पहचान क्यों नहीं बना पाया?
3. मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया। कर्यो?
उत्तर-
1. रमेश मोहन को घरेलू नौकर की हैसियत में रखता था। इसका कारण यह था कि रमेश औसत दप्तरी बड़े बाबू की हैसियत का था| अतः वह मोहन को अपना भाई-बिरादर बताकर अपना अपमान नहीं करवाना चाहता था।
2. रमेश ने काफी कहने के बाद मोहन का एक साधारण स्कूल में दाखिला करवा दिया। वह मेधावी था, परंतु घर के अत्यधिक काम और नए वातावरण के कारण वह अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाया। अतः उसकी पहचान स्कूल में नहीं बन पाई।
3. मोहन को पढ़ने के लिए शहर भेजा गया था, परंतु वहाँ पर उसे घरेलू नौकर की तरह रखा गया। उसे अपने घर की दीन दशा का पता था। वह अपनी वास्तविक स्थिति घर वालों को बताकर दुखी नहीं करना चाहता था। अतः उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
5. लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर धनराम गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था। एक हाथ से सँडसी पकड़कर जब वह दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। मोहन कुछ देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा फिर जैसे अपना संकोच त्यागकर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया और धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नापी-तुली चोट मारते, अभ्यस्त हार्थों से धौंकनी फेंककर लोहे को दुबारा भट्टी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला।
प्रश्न
1. मोहन धनराम के आफर क्यों गया था? उस समय धनराम किस काम में तल्लीन था?
2. धनराम अपने काम में सफल क्यों नहीं हो रहा था?
3. मोहन ने धनराम का अधूरा काम कैसे पूरा किया?
उत्तर-
1. मोहन धनराम के आफर पर अपने हँसुवे की धार तेज़ करवाने के लिए गया था। उस समय धनराम लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर उसे गोलाई में मोड़ने का प्रयास कर रहा था।
2. धनराम अपने काम में इसलिए सफल नहीं हो पा रहा था, क्योंकि वह एक हाथ से सँड़सी पकड़कर दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फैसने का कारण लोहा सही तरीके से नहीं मुड़ रहा था।
3, मोहन कुछ देर तक धनराम के काम को देखता रहा। अचानक वह उठा और दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर करके धनराम का हथौड़ा लेकर नपी तुली चोट की। उसके बाद उसने स्वयं धौंकनी फूककर लोहे को दोबारा भट्टी में गरम किया और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोक-पीटकर सुघड़ गोले में बदल दिया।

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पाठ्यपुस्तक एवं पूरक पाठ्यपुस्तक
आरोह, भाग-1
(पाठ्यपुस्तक)

(अ) गद्य भाग

(ब) काव्य भाग

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वितान, भाग-1
(पूरक पाठ्यपुस्तक)

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