NCERT Solutions | Class 8 English It So Happened Chapter 8 | Jalebis

CBSE Solutions | English Class 8
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NCERT | Class 8 English It So Happened
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
---|---|
Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 8th |
Subject: | English It So Happened |
Chapter: | 8 |
Chapters Name: | Jalebis |
Medium: | English |
Jalebis | Class 8 English | NCERT Books Solutions
Jalebis NCERT Text Book Questions and Answers
Jalebis Comprehension check (Page 65)
pay the fees on the day he had brought money to school.
(ii) Do you think they were misguiding him ?
(ii) Yes, the rupee coins were misguiding him. They were asking him to buy Jalebis with the amount meant for school fees.
- He thought how he would show his face to Master Ghulam Mohammed.
- He used to get a lot to eat at home.
- He thought that it was a sin to spend the fees and funds money on buying Jalebis.
(ii) Did he follow his advice ? If not, why not?
(ii) He did not follow the advice of the oldest coin. He thought that what the coin was saying was not right. It was not right for a boy of his status and prestige so. It was not right for him to stand in the middle of inht for him to stand in the middle of the bazaar and eat Jalebis.
Jalebis Comprehension check (Page-68)
(ii) What did he do with the remaining jalebis ?
(ii) He handed out the remaining jalebis to the children who had assembled in the street.
Jalebis Comprehension check (Page-72)
Jalebis Exercise Questions and Answers
Work in small groups :
(i) that the boy is tempted to eat jalebis.
(ii) that he is feeling guilty.
(iii) that he is justifying the wrong deed.
(ii) “Now for the crime of eating a few jalebis, for the first time in my life I was absent from school, and crouching in the shade of a tree in a deserted corner of the railway station.”
(iii) “So, Allah Miyan, just this once, help me out. There is no shortage of anything in your treasury. Even our chaprasi takes a whole lot of money home every month, and Allahji, after all I am the nephew of a big officer. Won’t you give me just four rupees.”
(i) Is the boy intelligent ? If so, what is the evidence of it?
(ii) Does his outlook on the jalebis episode change after Class VIII ? Does he see that episode in a new light ?
(iii) Why are coins made to ‘talk’ in this stroy ? What purpose does it serve ?
(ii) Yes, after Class VIII the boy gets mature. And his outlook on the jalebis episode changes considerably. He thinks that if Allah Miyan were to provide all for asking then man would not learn any skill. Then the man would have been living in nests like vultures and crows.
(iii) In the story the coins are made to ‘talk’. It serves the purpose of alluring and
provoking the child to spend them and eat jalebis. If the child would not have eaten jalebis after spending fees money, the story would not have been so interesting and inspiring.
Jalebis Introduction
An honest boy of fifth standard is on his way to school. He is carrying four rupee coins to pay the school fees. The sight of crisp, syrupy jalebis in the bazaar excites him. The coins also tell him to spend them and buy jalebis. After a long debate with himself, he buys them, eats too many, and shares them liberally with other children. He cannot get the amount of scholarship and so cannot pay school fee. He does not go to school and prays to Allah for sending him four rupees. Ultimately his elders know about it.
Jalebis Word Notes Pages 62-64.
Jalebis Complete Hindi Translation
Part – I
An honest boy……… ….. temptation. (Page 62)
- एक ईमानदार लड़का, स्कूल की फीस देने के लिए अपनी जेब में पैसे लेकर स्कूल के रास्ते में है।
- बाजार में कुरकुरी और रसीली जलेबियाँ देखकर वह उत्तेजित हो जाता है, और जेब में रखे हुए सिक्के खनखनाने लगते हैं।
- अपने मन में काफी वाद-विवाद करने के बाद वह मीठे प्रलोभन के आगे आत्मसमर्पण कर देता है।
1. It happened …………. ………………. to speak.. (Page 62)
यह बहुत वर्ष पहले घटित हुआ। मैं गवर्नमेन्ट स्कूल, कम्बलपुर, जिसे अब अटक कहते हैं, का पाँचवी श्रेणी का छात्र था। एक दिन स्कूल की फीस तथा फण्ड का भुगतान करने के लिए अपनी जेब में चार रुपये लेकर मैं स्कूल गया। जब मैं वहाँ पहुँचा तो मुझे पता चला कि फीस इकट्ठी करने वाले अध्यापक, गुलाम मुहम्मद छुट्टी पर हैं इसलिए फीस अगले दिन ली जाएगी। दिन भर, चार रुपये के सिक्के मेरी जेब में पड़े रहे, परंतु जब स्कूल की छुट्टी हुई और मैं बाहर निकला तो उन्होंने बोलना (खनखनाना) शुरू कर दिया।
2. All right.. like jalebis. (Pages 62-63)
ठीक है। सिक्के बातें नहीं करते। वे टनटनाते हैं या खनखनाते हैं। परन्तु मैं आपको बता रहा हूँ कि उस दिन उन्होंने वास्तव में बातें कीं! एक रुपया बोला, “तुम क्या सोच रहे हो? वो जो दुकान में ताजा गर्म जलेबियाँ कढ़ाई से निकल रही हैं, वे बेकार में नहीं निकल रही हैं। जलेबियाँ खाने के लिए बनी हैं और उन्हें केवल वही व्यक्ति खा सकते हैं जिनकी जेब में पैसे हों। और पैसा भी बिना कारण के नहीं है। पैसे खर्चने के लिए ही बने हुए हैं, और वे ही इन्हें खर्च करते हैं जो जलेबियाँ पसंद करते हैं।”
3. Look here, … …. home straight. (Page 63).
“इधर देखो, तुम चार रुपयो,” मैंने उनसे कहा। “मैं एक अच्छा लड़का हूँ। मुझे गलत मार्ग मत दिखाओ, अन्यथा आपके लिए यह अच्छा नहीं होगा। मुझे घर पर इतना कुछ मिलता है कि मैं बाजार में किसी चीज की तरफ देखना भी पाप समझता हूँ। इसके अतिरिक्त, तुम तो मेरी फीस और फंड के पैसे हो। यदि मैं आज तुम्हें खर्च कर देता हूँ तो कल मैं मास्टर गुलाम मुहम्मद को, और उसके बाद कयामत के समय अल्ला मियाँ को, अपना चेहरा कैसे दिखाऊँगा। शायद तुम्हें इसके बारे में जानकारी नहीं है परन्तु जब मास्टर गुलाम मुहम्मद नाराज हो जाते हैं और तुम्हें बेंच के ऊपर खड़ा कर देते हैं, तो जब तक आखिरी घंटी नहीं बजती, तुम्हें बैठने के लिए कहना भूल जाते हैं। इसलिए यह सबसे अच्छा होगा कि तुम मेरे इस तरह से कान खाने बंद करो और मुझे सीधे घर जाने दो।”
4. The coins ……….. were silent. (Page 63)
मैंने जो कहा था, रुपयों ने उसे इतना नापसन्द किया कि उन सभी ने एक साथ बोलना शुरु कर दिया। इतना शोर-शराबा हुआ कि बाजार में आए हुए लोग (राहगीर) चकित होकर आँखें फाड़-फाड़ कर मेरी जेब की तरफ घूरने लगे। उन दिनों के रुपये ने और भी अधिक शोर मचाया। अन्त में, भयभीत होकर मैंने उन चारों को पकड़ा और मजबूती से अपनी मुट्ठी में भींच लिया और तव वे मौन हो गए।
5. After taking ……….. …………. paisa hazam. (Page 64)
कुछ कदम चलने के बाद, मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी। सबसे पुराना रुपया तत्काल बोल उठा, “हम तो यहाँ आपके भले की कुछ बातें बताने का प्रयत्न कर रहे हैं तुम तो हमारा ही गला घोंट रहे हो। अब मुझे ईमानदारी से बताएँ क्या इन गरम-गरम जलेबियों को खाने के लिए आपका मन नहीं कर रहा है? फिर, अगर आज आप हमें खर्च कर के समाप्त कर देते हैं तो क्या कल आप को छात्रवृत्ति की राशि नहीं मिल जाएगी? फीस की धनराशि से मिठाइयाँ, छात्रवृत्ति की राशि से फीस। कहानी की समाप्ति! किस्सा खत्म, पैसा हज़म।”
6. What you’re ……………. ………………. sweet syrup. (Page 64)
“जो कुछ तुम कह रहे हो, वह ठीक नहीं है,” मैंने उत्तर दिया, “परन्तु यह उतना गलत भी नहीं है। सुनो, तुम असमंजस भरी बातें करना बंद करो और मुझे सोचने दो। मैं साधारण प्रकार का लड़का नहीं हूँ। परन्तु तब, ये जलेबियाँ भी कोई साधारण प्रकार की नहीं हैं। वे कुरकुरी, ताजी और मीठी चाशनी की भरी हुई हैं।
7. My mouth… ……… come home. (Page 64)
मेरे मुँह में पानी आ गया, परन्तु मैं इतनी जल्दी डगमगाने वाला नहीं था। स्कूल में, मैं होनहार विद्यार्थियों में था। चौथी श्रेणी की परीक्षा में मुझे चार रुपये महीने की छात्रवृत्ति मिली थी। इसके अतिरिक्त मैं विशेष रूप से सम्पन्न परिवार का था, इसीलिए मेरी काफी प्रतिष्ठा थी। अभी तक मेरी एक बार भी पिटाई नहीं हुई थी। इसके विपरीत, मास्टर जी मुझसे दूसरे लड़कों की पिटाई करवाते थे। इतने ऊँचे स्तर वाला बच्चा बाजार के बीच खड़ा होकर जलेबी खा रहा है? नहीं, यह ठीक नहीं था, मैंने फैसला किया। मैंने रुपयों को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और घर आ गया।
8. The coins ……… …………….. jalebis on it. (Page 65)
उस दिन खर्चे जाने के लिए, सिक्के इतने बेताब थे कि वे उकसाने का तब तक प्रयत्न करते रहे जब तक उनकी आवाज घुटने न लगी। जब मैं घर पहुंचा और पलंग के ऊपर बैठा, तो उन्होंने बोलना शुरु कर दिया। मैं लंच करने अन्दर गया तो वे चीखने लगे। भरपेट भोजन करके मैं नंगे पाँव घर से बाहर भागा और बाजार की तरफ दौड़ा। मैं भयभीत था, परन्तु मैंने तेजी से हलवाई को कहा कि वह एक रुपये की जलेबी तोल दे। उसकी हैरान दृष्टि यह पूछती हुई दिखाई पड़ी कि मेरी छकड़ागाड़ी कहाँ है जिसमें मैं वे सारी जलेवियाँ ले जा सकूँ। वे सस्ते जमाने थे। उस समय एक रुपये में उससे अधिक मात्रा में चीजें मिल जाया करती थीं जितनी आज बीस रुपये में मिलती हैं। हलवाई ने एक समाचार पत्र पूरा खोला और उस पर जलेबियों का एक ढेर रख दिया।
Part -II
A heap …….. …………… fees on time. (Page 65)
- वह ढेर सारी जलेबियाँ खाता है और उन्हें बड़ी उदारता के साथ सबको बाँट देता है।
- हालांकि अब उसके पास कोई पैसा नहीं बचा। वह स्वयं को जनसाधारण के नेता के कम महत्त्वपूर्ण नहीं मानता है।
- वास्तविक समस्या बाकी थी स्कूल की फीस समय पर देने की।
9. Just as …….. …….. and nostrils. (Page 65)
ज्यों ही मैं ढेर को इकट्ठा कर रहा था, तो मैंने अपना ताँगा आता हुआ देखा। चचाजान कचहरी से लौट रहे थे। मैंने जलेबियों को अपनी छाती से लगाया और एक गली में दौड़ गया। जब मैं एक सुरक्षित कोने में पहुँच गया तो मैंने जलेबियों को खाना शुरु कर दिया। मैंने बहुत सारी………इतनी सारी……….. जलेबियाँ खा लीं कि यदि कोई मेरे पेट को दबा देता तो मेरे कानों और नथुनों के भीतर से जलेबियाँ बाहर निकल आतीं।
10. Very quickly, ….. ….. the others. (Page 66)
तुरंत ही, समूचे पड़ोस के लड़कों ने गली में जमघट लगा लिया। उस समय तक मैं जलेबियों से भरे हुए अपने पेट के साथ इतना प्रसन्न था कि मैं कुछ मजाक करने के मूड में था। मैंने इर्द-गिर्द (एकत्रित हुए) बच्चों को जलेबियाँ देनी आरंभ कर दीं। खुश होकर वे उछलते और चीखते हुए गलियों में दौड़ गए। शीघ्र ही काफी और दूसरे बच्चे आ गए, शायद दूसरों से यह शुभ समाचार सुन कर।
11. I dashed. that day. (Page 66)
मैं दौड़कर हलवाई के पास गया और एक रुपये की जलेवियाँ और ले आया, वापिस आकर मैं एक घर के चबूतरे के ऊपर खड़ा हो गया। मैं बच्चों के लिए उसी प्रकार जलेबियाँ बाँट रहा था जिस प्रकार स्वतंत्रता दिवस पर गवर्नर साहिब निध निों और जरूरतमंदों को चावल बाँटा करते थे। अब तक बच्चों की अपार भीड़ ने मुझे घेर लिया था। भिखारियों ने भी धावा बोल दिया था। यदि बच्चों की एसेम्बली में निर्वाचित किया जाता तो उस दिन मेरी सफलता निश्चित हो जाती।
12. Because one …. …………….matter. (Pages 66-67)
क्योंकि, मेरे जलेबी बाँटने वाले हाथ के एक छोटे से संकेत पर भीड़ मेरे लिए मारने और मरने के लिए तैयार हो जाती। मैंने बाकी दो रुपयों की भी जलेबियाँ खरीद लीं और उन्हें बाँट दिया। फिर मैंने सार्वजनिक नल पर अपने हाथ और मुँह धोए और उस प्रकार का निर्दोष चेहरा बना कर जैसे कि जीवन-भर मैंने पहले कभी जलेबी का नामो-निशान भी न देखा हो, घर लौट आया। मैंने जलेबियों को काफी आसानी से खा लिया था लेकिन उन्हें हजम करना एक और समस्या बन गई।
13. With every. … simply die. (Page 67)
हर सांस के साथ डकार आती थी, और प्रत्येक डकार के साथ यह खतरा बना हुआ था कि एक या दो जलेबियाँ बाहर निकल पड़ेंगीं-यह डर मुझे मारे जा रहा था। रात को मुझे अपना रात्रि भोज भी करना था। यदि मैंने नहीं खाया होता तो मुझ से स्पष्टीकरण मांगा जाता कि मैंने बिल्कुल भी भोजन क्यों नहीं (करना) चाहा, और यदि मैंने बीमारी का बहाना किया होता तो डॉक्टर को बुला लिया गया होता, और यदि मेरी नब्ज देखने के बाद डॉक्टर ने घोषणा कर दी होती कि मुन्ना ने एक मन जलेबियाँ खाई हैं, तो मैं मारा जाता।
14. The result .. ….. come out. (Page 67)
इसका परिणाम यह हुआ कि मैं रात भर जलेबी की तरह, सिकुड़ा हुआ पड़ा रहा और पेट के दर्द से पीड़ित रहा। भगवान का शुक्र है (शुक्रिया) कि मैंने चार रुपयों की सारी जलेबियाँ स्वयं अकेले नहीं खा लीं। अन्यथा जैसे कि लोग कहते हैं, जब बच्चे बोलते हैं तो उनके मुहँ से फूल बरसते हैं परन्तु संसार भर में मैं पहला वालक होता जिसके प्रत्येक शब्द से एक कुरकुरी, तली हुई जलेबी वाहर निकलती।।
15. Children don’t …. ………………… month. (Page 67)
बच्चों के पेट नहीं होते, उनके (भीतर) हजम करने वाली मशीनें होती हैं। मेरी मशीन भी रात भर काम करती रही। प्रातःकाल, अन्य दिनों की भाँति, मैंने अपना चेहरा धोया और एक सदाचारी विद्यार्थी की भाँति, हाथ में चॉक और स्लेट लेकर, मैं स्कूल की तरफ चल दिया। मैं जानता था कि मुझे उस दिन, पिछले महीने की छात्रवृत्ति मिलेगी और एक बार मैंने उस धनराशि से फीस दे दी, तो जलेबियाँ पूर्ण रूप से हजम हो जायेंगी। परंतु जब मैं स्कूल पहुँचा तो मुझे पता चला कि छात्रवृत्ति अगले महीने मिलने वाली हैं।
16. My head …… eat jalebis. (Page 67)
मेरा सिर चकराने लगा। मुझे ऐसा लगा मानो मैं अपने सिर के बल खड़ा हूँ, और मेरे द्वारा प्रयत्न करने के बाद भी दोबारा . अपने पैरों पर नहीं आ पा रहा हूँ। मास्टर गुलाम मुहम्मद ने घोषणा की कि फीस आधी छुट्टी में ली जाएगी। जब आधी छुट्टी की घंटी बजी तो मैंने अपना बस्ता अपनी बाजू के नीचे दबाया और स्कूल को छोड़ कर अपनी नाक की सीध में आगे ही आगे चलता गया।
यदि कोई पहाड़ या समुद्र मेरा रास्ता नहीं रोकता तो मैं तब तक चलता रहता जब तक पृथ्वी का अंत नहीं होता और आकाश प्रारंभ नहीं होता, और एक बार वहाँ पहुँचने पर मैं अल्ला मियाँ से कहता, “केवल एक बार मुझे बचा लो। किसी फरिश्ते को इधर से गुजरने की आज्ञा दीजिए और मेरी जेब में केवल चार रुपये डलवा दीजिए। मैं वचन देता हूँ कि मैं उनका प्रयोग (इस्तेमाल) केवल अपनी फीस देने के लिए करूँगा, जलेबी खाने में नहीं।”
17. I couldn’t …….. …… know.” (Pages 67-68)
मैं उस स्थान तक नहीं पहुँच सका जहाँ पृथ्वी समाप्त हो जाती है परन्तु निश्चित रूप से उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ से कम्बेलपुर रेलवे स्टेशन शुरू होता था। बुजुर्गों ने मुझे सचेत कर रखा था कि कभी भी रेल की पटरियों को पार मत करना। बढ़िया बात है। बुजुर्गों ने मुझे इस बारे में भी सचेत कर दिया था कि कभी भी फीस के पैसे से मिठाई मत खाना। उस दिन यह नसीहत मेरे दिमाग से कैसे निकल गई? मैं नहीं जानता।
Part-III
Remorseful and ……… factual. (Page 68)
- पश्चाताप करते हुए और भयभीत होते हुए वह आर्थिक सहायता के लिए अल्ला से प्रार्थना करता है। .
- वह सभी मामलों को सामान्य लगने वाले बना लेता है। परंतु पहले से भी अधिक कठोर प्रार्थना करता है।
- न टलने वाली बात घट जाती है, हालांकि मार्ग में वह कल्पना तथा वास्तविकता में विभाजन देखता है।
18. There was …. …………. never be five. (Page 68)
रेल की लाइनों के साथ में एक छायादार वृक्ष था। मैं उसके नीचे बैठा आश्चर्य कर रहा था कि संसार में क्या संभवतः मुझसे भी अधिक अभागा कोई बालक हो सकता था। जब रुपयों ने पहले मेरी जेब में कोलाहल मचा दिया था, यह सभी कुछ सादा और सीधा नज़र आ रहा था। फीस के पैसों से जलेबियाँ खाओ और फिर छात्रवृत्ति के पैसों से फीस चुकाओ। मैंने सोचा था कि दो में दो जोड़ने से चार बनेंगे, कभी भी पाँच नहीं।
19. How was. ………… like crying. (Page 68)
मुझे क्या पता था कि कभी-कभी वह जुड़कर पाँच भी हो जाता है। यदि मुझे पता होता कि मुझे छात्रवृत्ति अगले महीने मिलेगी तो मैं जलेबी खाने के अपने कार्यक्रम को अगले महीने तक भी टाल देता। अब जीवन में पहली बार कुछ जलेबियाँ खाने के जुर्म के कारण मैं स्कूल से अनुपस्थित था और रेलवे स्टेशन के वीरान कोने में एक पेड़ की छाया में दुबका बैठा था। उस पेड़ के नीचे बैठकर पहली बार मैं रोने जैसा महसूस कर रहा था।
20. Then-I……….. ………….. began to pray. (Page 69)
फिर मैंने हँसने जैसा महसूस किया जब मुझको सूझा कि मैं जो आँसू बहा रहा था वे आँसू नहीं थे बल्कि जलेबी की चाशनी के कतरे थे। जलेबियों से मेरे विचार फीस और मास्टर गुलाम मुहम्मद जी के बेंत तक गए और फिर उसके बेंत के बाद मैंने अल्ला के बारे में सोचा। मैंने अपनी आँखें बन्द कीं और प्रार्थना शुरू कर दी।
21. Allah Miyan! ………. the others. (Page 69) .
अल्लाह मियाँ! मैं काफी अच्छा लड़का हूँ। मैंने पूरी नमाज को कंठस्थ कर लिया है। कुरान की अन्तिम दस सूरतें भी मुझे याद हैं। यदि आप चाहें तो मैं समूची आयत-अल-कुर्सी अभी सुना दूँ। आपके भक्त सेवक की मुराद केवल फीस की धनराशि प्राप्त करने की है जिनकी मैंने जलेबियाँ खा ली हैं। तो ठीक है, मैं स्वीकार करता हूँ कि मुझसे गलती हो गई है। हालाँकि वे सारी मैंने अकेले नहीं खाई हैं। मैंने बच्चों को भी काफी अधिक संख्या में जलेबियाँ खिलाई हैं, परन्तु हाँ, वह एक गलती थी। यदि मुझे पता होता कि छात्रवृत्ति की धनराशि अगले मास मिलेगी तो मैं उन्हें न तो स्वयं खाता और न ही दूसरों को खिलाता।
22. Now you …….. .four rupees? (Page 69)
अब आप एक काम कीजिएगा, मेरे बस्ते में बस चार रुपये डाल दें। यदि चार रुपये से एक पैसा भी अधिक हुआ तो मैं आपसे अत्यन्त रुष्ट हो जाऊँगा। मैं वचन देता हूँ कि यदि कभी मैंने फीस के पैसे से मिठाई खाई तो आप मुझे वह दंड देना जो चोर को दिया जाता है। इसलिए अल्लाह मियाँ, केवल एक बार मेरी सहायता करें। आप के खजाने में किसी चीज की कमी नहीं है। यहाँ तक कि हमारा चपरासी भी प्रत्येक मास काफी धनराशि अपने घर ले जाता है, और, अल्लाह जी, आखिर मैं तो एक बड़े अफसर का भतीजा हूँ। क्या आप मुझे केवल चार रुपये भी न देंगे?
23. After the …….. ……… me last Id. (Pages 69 – 70)
प्रार्थना के बाद मैंने नमाज अता की, दस सूरतें, आयत-ए-कुर्सी, कलमा-ए-तैयब का गान किया, वास्तव में वह सभी कुछ किया जो मुझे याद था। तब मैंने छू कहते हुए अपने बस्ते के ऊपर फूंक मारी। जब बिसमिल्लाह कहने के बाद मुझे अहसास हुआ कि जैसा लोग कहते हैं वैसा बिल्कुल ठीक है-जो भाग्य में बदा है उसे कोई नहीं मिटा सकता है। चार रुपयों को भूल जाओ, मेरे बस्ते में चार पैसे भी नहीं थे। केवल कुछेक पाठ्यपुस्तकें तथा कुछ कापियाँ। एक पेंसिल, एक शार्पनर (और) एक ईद का कार्ड था जो मेरे मामू ने पिछली ईद को मुझे भेजा था।
24. I felt like …………… ……………. from school. (Page 70)
मुझे लगा कि मैं उतने जोर से विलाप करूँ जितने जोर से कर सकता था परंतु फिर मुझे याद आया कि स्कूल की छुट्टी हो गई होगी और बच्चे अवश्य ही अपने-अपने घर चले गए होंगे। थका-मांदा और पराजित हुआ, मैं वहाँ से उठा और बाजार में पैदल चलता पहुँच गया और स्कूल की घंटी के बजने का इंतजार करने लगा, ताकि जब बच्चे बाहर निकलें तो मैं भी उनके साथ-साथ घर चला जाऊँ जैसे कि मैं स्कूल से सीधे आया हूँ।
25. I didn’t ….. …….. moved away. (Page 70)
मुझे इसका भी आभास नहीं हुआ कि मैं जलेबी वाले की दुकान के पास खड़ा था। अचानक हलवाई ने पुकारा, “क्यों भाई, क्या एक रुपये की जलेबियाँ तौल हूँ। क्या आज जलेबियाँ नहीं चाहिए?” मुझे लगा जैसे मैं कह रहा हूँ आज आप की जलेबियाँ नहीं खाऊँगा, परन्तु निश्चित रूप से आप के जिगर को भून कर उनके बजाए खा लूँगा। परन्तु उस दिन मैं ठीक महसूस नहीं कर रहा था, इसलिए मैं बस खिसक गया।
26. The next ……… one-two-three. (Page 70)
अगले दिन भी मैंने वैसा ही किया। मैंने (स्कूल की) वर्दी पहनी और घर से चल दिया, स्कूल के दरवाजे तक पहुंचा और फिर रेलवे स्टेशन की तरफ मुड़ गया। उसी वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने वही प्राथनाएँ कहनी शुरू की। मैंने बार-बार विनयपूर्वक कहा, “अल्लाह मियाँ! कम से कम वह (चार रुपये की धनराशि) मुझे आज दे दो। आज दूसरा दिन है।” फिर मैंने कहा, “ठीक है, आओ हम एक खेल खेलते हैं।
मैं यहाँ से उस सिग्नल (संकेतक) तक जाऊँगा। आप गुप्त रूप से उस बड़ी चट्टान के नीचे चार रुपये रख देना। मैं सिग्नल को छुऊँगा और वापिस आ जाऊँगा। कितना मज़ा रहेगा अगर मैं चट्टान को उठाऊँगा और उसके नीचे चार रुपये पाऊँगा। तो, क्या आप तैयार हैं ? मैं सिग्नल (संकेतक) की ओर जा रहा हूँ। एक-दो-तीन।”
27.I went …………. …………. staring at me. (Pages 70–71)
मैं संकेतक (सिग्नल) तक गया और मुस्कुराता हुआ लौट आया। परन्तु चट्टान (बड़े पत्थर) को उठाने के लिए मेरे अन्दर साहस नहीं था। क्या होगा अगर वहाँ रुपये नहीं मिले। परन्तु तभी मैंने सोचा कि कैसा होगा यदि वे वहाँ हुए। अंत में, बिसमिल्लाह कहने के बाद मैंने चट्टान को उठाया तो बालों वाला बड़ा कीड़ा वहाँ से निकला और मुड़ता और ऐंठता हुआ मेरी तरफ रेंगता हुआ आया।
मैंने चीख लगाई और दौड़ पड़ा और दोबारा सिग्नल को छुआ। फिर अपने हाथों और पैरों पर रेंगते हुए, मैं उस पेड़ के पास पहुंच गया। मैंने पूरा प्रयत्न किया कि चट्टान की तरफ नजर नहीं घुमाऊँ। परन्तु ज्यों ही मैंने अपना बस्ता उठाया और चलने ही वाला था तो मुझे एक बार फिर चट्टान को देखना पड़ा। और क्या आप जानते हैं कि मैंने देखा कि कीड़ा आराम से वहाँ पहुँच गया था और मेरी तरफ घूर रहा था। .
28. I walked ……….. ……………… after that. (Page 71)
मैं यह सोचते हुए चल पड़ा, कल मैं वजू करूँगा, साफ कपड़े पहनूँगा और यहाँ आऊँगा। सुबह से दोपहर तक मैं नमाज पढ़ता रहूँगा। यदि उसके पश्चात् भी अल्लाह मुझे चार रुपये नहीं देते तो मैं यह सीखने के लिए बाध्य हो जाऊँगा कि उनके साथ कैसे पेश आते हैं और सौदेबाजी करते हैं। आखिर, यदि मेरे अल्लाह मुझे मेरे चार रुपये नहीं देते हैं तो फिर कौन देगा? उस दिन जब मैं दिखावटी तौर पर स्कूल में पर वास्तव में रेलवे स्टेशन से घर आया, तो मैं पकड़ा गया। मेरी अनुपस्थिति की रिपोर्ट (सूचना) घर पहुंच चुकी थी। उसके बाद क्या हुआ उसका वर्णन करना व्यर्थ है।
29. Well, whatever ….. ………….. jalebis! (Page 71)
ठीक है। जो कुछ भी हुआ, वह हुआ। परन्तु सातवीं और आठवीं श्रेणी तक मैं चकित होता रहा, यदि अल्लाह मियाँ उस दिन मेरे लिए चार रुपये भेज देते तो इससे संभवतः किसी की क्या हानि होती ? यह इसके बाद की बात थी कि मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि अल्लाह मियाँ माँगते ही सभी कुछ दे देते तो आज भी मानव गिद्धों और कौओं की तरह घोंसलों में रहता और जलेबी बनाने की कला को नहीं सीख पाता!
Jalebis MCQs Multiple Choice Questions
(a) Master Gulzari Lal
(b) Master Ghulam Ali
(c) Master Ghulam Mohamed
(d) Master M. Ali.
(a) Three rupee coins
(b) Four rupee coins
(c) Five rupee coins
(d) Six rupee coins
(a) Four rupees
(b) Six rupees
(c) Eight rupees
(d) Ten rupees
(a) Carton
(b) Sack
(c) Newspaper
(d) Bag
(a) On a bridge
(b) Under a shady tree
(c) On a platform bench
(d) In a chair
(a) Holy Bible
(b) The Sita
(c) Holy Quran
(d) The Ramayan
(a) A hairy insect
(b) Four coins
(c) A snake
(d) Some pebbles
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