NCERT Solutions for Class 12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam 8 कैसे बनता है रेडियो नाटक

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam 8 कैसे बनता है रेडियो नाटक 

NCERT Solutions for Class12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam 8 कैसे बनता है रेडियो नाटक

कैसे बनता है रेडियो नाटक Class 12 Hindi NCERT Solutions

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Class 12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam 8 CBSE NCERT Solutions

NCERT Solutions Class12 Hindi
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12th Class
Subject: Hindi
Chapter: 8
Chapters Name: कैसे बनता है रेडियो नाटक
Medium: Hindi

कैसे बनता है रेडियो नाटक Class 12 Hindi NCERT Books Solutions

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कैसे बनता है रेडियो नाटक


अभ्यास प्रश्न


प्रश्न 1. सिनेमा, रंगमंच और रेडियो नाटक में क्या-क्या समानताएँ होती हैं ?
उत्तर-सिनेमा, रंगमंच और रेडियो नाटक में अनेक समानताएँ हैं जो इस प्रकार है-
सिनेमा और रंगमंच
1. सिनेमा और रंगमंच में एक कहानी होती है।
2. इनमें कहानी का आरंभ, मध्य और अंत होता
3. इनमें चरित्र होते हैं।
4. इनमें पात्रों के आपसी संवाद होते हैं।
5. इनमें पात्रों का परस्पर द्वंद्व होता है और अंत में समाधान।
6. इनमें पात्रों के संवादों के माध्यम से कहानी का विकास होता है।
रेडियो नाटक
1. रेडियो नाटक में भी एक ही कहानी होती है।
2. इसमें भी कहानी का आरंभ, मध्य और अंत होता है।
3. इसमें भी चरित्र होते हैं।
4. इसमें भी पात्रों के आपसी संवाद होते हैं।
5.इसमें भी पात्रों का परस्पर द्वंद्व होता है और प्रस्तुत किया जाता है। समाधान प्रस्तुत किया जाता है।
6. इनमें भी पात्रों के संवादों के माध्यम से कहानी का विकास होता है।
प्रश्न 2. सिनेमा रंगमंच और रेडियो नाटक में क्या-क्या असमानताएँ हैं ?
उत्तर-सिनेमा रंगमंच और रेडियो नाटक में अनेक समानताएँ होते हुए भी कुछ असमानताएँ अवश्य होती हैं जो इस प्रकार है-
सिनेमा और रंगमंच
1. सिनेमा और रंगमंच दृश्य माध्यम है।
2. इनमें दृश्य होते हैं।
3. इनमें मंच सज्जा और वस्त्र सज्जा का बहुत महत्त्व होता है।
4. इनमें पात्रों की भावभंगिमाएँ विशेष महत्त्व रखती हैं।
5. इनमें कहानी को पात्रों की भावनाओं के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
रेडियो नाटक
1. रेडियो नाटक एक श्रव्य माध्यम है।
2. इसमें दृश्य नहीं होते।
3. इसमें इनका कोई महत्त्व नहीं होता।
4. इसमें भावभंगिमाओं की कोई आवश्यकता नहीं होती।
5. इसमें कहानी को ध्वनि प्रभावों और संवादों के माध्यम से संप्रेषित किया जाता है।
प्रश्न 3. रेडियो नाटक की कहानी में किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर-रेडियो नाटक में कहानी संवादों तथा ध्वनि प्रभावों पर ही आधारित होती है। इसमें कहानी का चयन करते समय अनेक बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जो इस प्रकार हैं
1. कहानी एक घटना प्रधान न हो-रेडियो नाटक की कहानी केवल एक ही घटना पर आधारित नहीं होनी चाहिए क्योंकि ऐसी कहानी श्रोताओं को थोड़ी देर में ही ऊबाऊ बना देती है जिसे श्रोता कुछ देर पश्चात् सुनना पसंद नहीं करते इसलिए रेडियो नाटक की कहानी में अनेक घटनाएँ होनी चाहिए।
2. अवधि सीमा-सामान्य रूप से रेडियो नाटक की अवधि पंद्रह से तीस मिनट तक हो सकती है। रेडियो नाटक की अवधि इससे अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि रेडियो नाटक को सुनने के लिए मनुष्य की एकाग्रता की अवधि 15 से 30 मिनट तक की होती है, इससे ज्यादा नहीं। दूसरे रेडियो एक ऐसा माध्यम है जिसे मनुष्य अपने घर में अपनी इच्छा अनुसार सुनता है। इसलिए रेडियो नाटक की अवधि सीमित होनी चाहिए।
3. पात्रों की सीमित संख्या-रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए। इसमें पात्रों की संख्या 5- 6 से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसमें श्रोता केवल ध्वनि के सहारे ही पात्रों को याद रख पाता है। यदि रेडियो नाटक में अधिक पात्र होंगे तो श्रोता उन्हें याद नहीं रख सकेंगे। इसलिए रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए।
प्रश्न 4. रेडियो नाटक में ध्वनि प्रभावों और संवादों का क्या महत्त्व है ?
अथवा
रेडियो नाटक की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-रेडियो नाटक में ध्वनि प्रभावों और संवादों का विशेष महत्त्व है जो इस प्रकार हैं-
1. रेडियो नाटक में पात्रों से संबंधित सभी जानकारियाँ संवादों के माध्यम से मिलती हैं।
2. पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ संवादों के द्वारा ही उजागर होती हैं।
3. नाटक का पूरा कथानक संवादों पर ही आधारित होता है।
4. इसमें ध्वनि प्रभावों और संवादों के माध्यम से ही कथा को श्रोताओं तक पहुँचाया जाता है।
5. संवादों के माध्यम से ही रेडियो नाटक का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
6. संवादों के द्वारा ही श्रोताओं को संदेश दिया जाता है।
प्रश्न 5. रेडियो पर रेडियो नाटक का आरंभ किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-आज से कुछ दशक पहले रेडियो ही मनोरंजन का प्रमुख साधन था। उस समय टेलीविज़न, सिनेमा, कम्प्यूटर आदि मनोरंजन के साधन उपलब्ध नहीं थे। ऐसे समय में घर बैठे ही रेडियो ही मनोरंजन का सबसे सस्ता और सुलभ साधन था। रेडियो पर खबरें आती थीं इसके साथ-साथ अनेक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम भी प्रसारित किये जाते थे। रेडियो पर संगीत और खेलों का आँखों देखा हाल प्रसारित किया जाता था। एफ० एम० चैनलों की तरह गीत-संगीत की अधिकता होती थी। धीरे-धीरे रेडियो पर नाटक भी प्रस्तुत किये जाने लगे तब रेडियो नाटक टी० वी० धारावाहिकों तथा टेली फिल्मों की कमी को पूरा करने के लिए शुरू हुए थे। ये नाटक लघु भी होते थे और धारावाहिक के रूप भी प्रस्तुत किए जाते थे।
हिन्दी साहित्य के सभी बड़े-बड़े लेखक साहित्य रचना के साथ-साथ रेडियो स्टेशनों के लिए नाटक भी लिखते थे। उस समय रेडियो के लिए नाटक लिखना एक सम्मानजनक बात मानी जाती थी। इस प्रकार रेडियो नाटक का प्रचलन बढ़ने लगा। रेडियो नाटकों ने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य आंदोलन के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। हिंदी के अनेक नाटक जो बाद में मंच पर बहुत प्रसिद्ध रहे वे मूलतः रेडियो के लिए ही लिखे गए थे। धर्मवीर भारतीय द्वारा रचित 'अंधा युग' और मोहन राकेश द्वारा रचित 'आषाढ़ का एक दिन' इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है।
प्रश्न 6. रेडियो नाटक के तत्वों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
उत्तर-रेडियो नाटक का मूल आधार ध्वनि मानी जाती है। यह मानवीय भावों को सरलता-सहजता से व्यक्त कर देने की क्षमता रखती है। रेडियो तत्वों के तीन तत्व माने जाते हैं।
उनके तत्व हैं-(1) भाषा (2) ध्वनि प्रभाव (3) संगीत।
1. भाषा-भाषा ही रेडियो नाटक की मूल आधार होती है। यही सुनने और बोलने का कार्य करती है। इसी से कठिन एवं जटिल रेडियो नाटक और संवाद जटिल हो जाते हैं। इसे जिन तीन भागों में स्वीकार किया जाता है, वे हैं-
(क) कथोपकथन (ख) नरेशन (वक्ता का कथन) (ग) कथन।
(क) कथोपकथन-रेडियो से दो प्रमुख संबंधित तत्व होते हैं-कथोपकथन और प्रवक्ता का कथन । कथोपकथन रेडियो को पात्रों की मानसिक स्थितियों को प्रकट कराते हैं और कथानक उसे गति प्रदान करता है। यही रेडियो के नाटक के पात्रों और उन की मानसिक स्थितियों का परिचय कराते हैं। इन्हीं से कथानक को गति प्राप्त होती है और श्रोता को अपनी ओर आकृष्ट करती है। नरेशन ही पाठकों के क्रिया-कलापों का निर्माण प्रदान करता है और विभिन्न घटनाओं/ विवशताओं श्रृंखला में बांधने का कार्य करता है।
(ख) ध्वनि प्रभाव-ध्वनि तरह-तरह की वातावरणों को बनाने में सहायक बनाती है। तूफान, बादल, बाज़ार आदि इन्हीं से प्रसारण के माध्यम से इधर-उधर प्रसारित करती है। इनकी सहायता से रेडियो नाटकों की वातावरण की सृष्टि होती है।
(ग) संगीत-यह रेडियो-नाटक को संजीवता प्रदान करने का कार्य करता है जिससे प्रभावित की सृष्टि होती है। संगीत से प्रभाविता की क्षमता बढ़ती है।

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