NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 भक्तिन

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 भक्तिन 

NCERT Solutions for Class12 Hindi Aroh Chapter 11 भक्तिन

भक्तिन Class 12 Hindi Aroh NCERT Solutions

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Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 CBSE NCERT Solutions

NCERT Solutions Class12 Hindi Aroh
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12th Class
Subject: Hindi Aroh
Chapter: 11
Chapters Name: भक्तिन
Medium: Hindi

भक्तिन Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

You can refer to MCQ Questions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 भक्तिन to revise the concepts in the syllabus effectively and improve your chances of securing high marks in your board exams.

भक्तिन


अभ्यास-प्रश्न


प्रश्न 1. भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी था। लक्ष्मी धन की देवी है परंतु इस लक्ष्मी के भाग्य में धन तो नाम मात्र था। उसे हमेशा गरीबी भोगनी पड़ी। केवल कुछ दिन के लिए ही इसे भरपेट भोजन मिल सका अन्यथा आजीवन दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। अतः धन की देवी लक्ष्मी का मान रखने के लिए ही वह हमेशा अपने नाम को छुपाती रही।
भक्तिन का लछमिन अर्थात लक्ष्मी नाम उसके माता-पिता ने दिया होगा। इस नाम के पीछे उसकी स्नेह-भावना रही होगी। शायद उन्होंने यह भी सोचा होगा कि यह नाम रखने से उनके अपने घर में धन का आगमन होगा।
प्रश्न 2. दो कन्यारत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जेठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या आप इससे सहमत हैं?
भक्तिन ने दो नहीं अपितु तीन कन्याओं को जन्म दिया था। कन्यारत्न उत्पन्न करने के बावजूद भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जेठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी रही। इससे यह सिद्ध होता है भारतीय समाज युगो से बेटियों की अपेक्षा बेटों को अधिक महत्त्व देता रहा रहा है। सच्चाई तो यह है कि स्त्रियाँ स्वयं ही अपने आप को पुरुष से हीन समझती हैं। इसलिए वे पुत्रवती होने की कामना करती हैं। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे भी नारियों की सहमति हमेशा रहती है। स्त्रियाँ ही दहेज की मांग रखती है। अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।
प्रश्न 3. भक्तिन की पेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार( विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जोर जबरदस्ती की। उसे इस दुराचरण के लिए दंड मिलना चाहिए था लेकिन गाँव की पंचायत ने न्याय न करके अन्याय किया। और लड़की की अनिच्छा के बावजूद उस तीतरबाज युवक की पत्नी घोषित कर दिया। विवाह के मामले में लड़की की रजामंदी की ओर हमारा समाज ध्यान नहीं देता। यह निश्चित से मानवाधिकार का हनन है। अतः भक्तिन में की बेटी को जबरन पति थोपा जाना स्त्री के मानवाधिकार को कुचलना है।
प्रश्न 4. भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?
लेखिका को पता है कि भक्तिन में अनेक गुणों के बावजूद कुछ दुर्गुण भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-
क) भक्तिन लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को भंडार घर की मटकी में छिपा कर रख देती है और लेखिका को ये पैसे लौटाती भी नहीं। पूछने पर वह इसे चोरी भी नहीं मानती
ख) जब उसकी मालकिन कभी उस पर क्रोधित होती है तो वह बात को इधर-उधर करके बताती है।
ग) शास्त्रीय कथनों की वह इच्छानुसार व्याख्या करती है।
घ) वह दूसरों के कहे को नहीं मानती बल्कि दूसरों को भी अपने अनुसार बना लेती है।
प्रश्न 5. भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
भक्तिन स्वयं को बहुत समझदार समझती है। वह प्रत्येक बात को अपने ढंग से अर्थ निकालना जानती है। जब लेखिका ने उससे सिर मुंडवाने से रोकना चाहा तो भक्तिन ने शास्त्र की दुहाई दी और यह कहा कि शास्त्रों में लिखा है "तीर्थ गए मुँडाए सिद्ध" लगता है यह उक्ति उसकी अपनी गढ़ी हुई है।
प्रश्न 6. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?
भक्तिन संपूर्णता देहाती थी। वह अपनी देहाती जीवन पद्धति को नहीं छोड़ सकी। इसलिए उसने महादेवी को भी अपने सांचे में ढाल दिया। उसे जो सहज व सरल पकाना आता था, महादेवी को वही खाना पड़ता था। लेखिका को रात को बने मकई के दलिए के साथ मट्ठा पीना पड़ता था। बाजरे के तिलवाले पुए खाने पड़ते थे। ज्वार के बुने हुए भुट्टों की खिचड़ी भी खानी पड़ती थी। यह सब देहाती भोजन था। यही महादेवी को खाने के लिए मिलता था। अतः महादेवी भी भक्तिन के समान देहाती बन गई।

भक्तिन


अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न


प्रश्न 1
भक्तिन पाठ के अधार पर भक्तिन का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथवा
भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
पाठ के आधार पर भक्तिन की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर -
'भक्तिन' लेखिका की सेविका है। लेखिका ने उसके जीवन संघर्ष का वर्णन किया है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं?
i. व्यक्तित्व-भक्तिन अधेड़ उम्र की महिला है। उसका कद छोटा व शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं तथा ऑखें छोटी हैं।
ii. परिश्रमी-भक्तिन कर्मठ महेला है। ससुराल में वह बहुत मेहनत करती है। वह घर, खेत, पशुओं आदि का सारा कार्य अकेले करती है। लेखिका के घर में भी वह उसके सारे कामकाज को पूरी कर्मठता से करती है। वह लेखिका के हर कार्य में सहायता करती है।
iii. स्वाभिमानिनी भक्तिन बेहद स्वाभिमानिनी है। पिता की मृत्यु पर विमाता के कठोर व्यवहार से उसने मायके जाना छोड़ दिया। पति की मृत्यु के बाद उसने किसी का पल्ला नहीं थामा तथा स्वयं मेहनत करके घर चलाया। जमींदार द्वारा अपमानित किए जाने पर वह गाँव छोड़कर शहर आ गई।
iv. महान सेविका भक्तिन में सच्चे सेवक के सभी गुण हैं। लेखिका ने उसे हनुमान जी से रपद्र्धा करने वाली बताया है। वह छाया की तरह लेखिका के साथ रहती है तथा उसका गुणगान करती है। वह उसके साथ जेल जाने के लिए भी तैयार है। वह युद्ध, यात्रा आदि में हर समय उसके साथ रहना चाहती है।
प्रश्न 2:
भक्तिन की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये ?
उत्तर -
भक्तिन झुंसी गाँव के एक गोपालक की इकलौती संतान थी। इसकी माता का देहांत हो गया था। फलतः भक्तिन की देखभाल विमाता ने । किया। पिता का उस पर अगाध स्नेह था। पाँच वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हैंडिया गाँव के एक ग्वाले के सबसे छोटे पुत्र के साथ कर दिया गया। नौ वर्ष की आयु में उसका गौना हो गया। विमाता उससे ईष्या रखती थी। उसने उसके पिता की बीमारी का समाचार तक उसके पास नहीं भेजा।
प्रश्न 3:
भक्तिन के ससुराल वालों का व्यवहार कैसा था?
उत्तर -
भक्तिन के ससुराल वालों का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था। घर की महिलाएँ चाहती थीं कि भक्तिन का पति उसकी पिटाई करे। वे उस पर रौब जमाना चाहती थीं। इसके अतिरिक्त, भक्तिन ने तीन कन्याओं को जन्म दिया, जबकि उसकी सास व जेठानियों ने लड़के पैदा किए थे। इस कारण उसे सदैव प्रताड़ित किया जाता था। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने भक्तिन पर पुनर्विवाह के लिए दबाव डाला। उसकी विधवा लड़की के साथ जबरदस्ती की। अंत में, भक्तिन को गाँव छोड़ना पड़ा।
प्रश्न 4 :
भक्तिन का जीवन सदैव दुखों से भरा रहा। स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर -
भक्तिन का जीवन प्रारंभ से ही दुखमय रहा। बचपन में ही माँ गुजर गई। विमाता से हमेशा भेदभावपूर्ण व्यवहार मिला। विवाह के बाद तीन लड़कियाँ उत्पन्न करने के कारण उसे सास व जेठानियों का दुझ्यवहार सहना पड़ा। किसी तरह परिवार से अलग होकर समृद्ध पाई, परंतु भाग्य ने उसके पति को छीन लिया। ससुराल वालों ने उसकी संपत्ति छीननी चाही, परंतु वह संघर्ष करती रही। उसने बेटियों का विवाह किया तथा बड़े जमाई को घर-जमाई बनाया। शीघ्र ही उसका देहांत हो गया। इस तरह उसका जीवन शुरू से अंत तक दुखों से भरा रहा।
प्रश्न 5 :
लछमिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में आते ही क्र्यो झड़ गए?
उत्तर -
लछमन की सारा का व्यवहार सदैव कटु रहा। जब उसने लछमन को मायके यह कहकर भेजा कि "तुम बहुत दिन से मायके नहीं गई हो, जाओ देखकर आ जाओ" तो यह उसके लिए अप्रत्याशित था। उसके पैरों में पंख से लग गए थे। खुशी खुशी जब वह मायके के गाँव की सीमा में पहुँची तो लोगों ने फुसफुसाना प्रारंभ कर दिया कि 'हाय! बेचारी लछमिन अब आई है। लोगों की नजरों से सहानुभूति झलक रही थी। उसे इस बात का अहसास नहीं था कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है या वे गंभीर बीमार थे। विमाता ने उसके साथ अन्याय किया था। इरालिए वह हतप्रभ धी। उसकी तमाम खुशी समाप्त हो गई।
प्रश्न 6:
लछमिन ससुराल वालों से अलग क्यों हुई? इसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर -
लछमन मेहनती थी। तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण सास व जेठानियाँ उसे सदैव प्रताड़ित करती रहती थीं। वह व उसके बच्चे घर, खेत व पशुओं का सारा काम करते थे, परंतु उन्हें खाने तक में भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता था। लड़कियों को दोयम दर्जे का खाना मिलता था। उसकी दशा नौकरों जैसी थी। अतः उसने ससुराल वालों से अलग होकर रहने का फैसला किया। अलग होते रामय उसने अपने ज्ञान के कारण खेत, पशु घर आदि में अच्छी चीजें ले लीं। परिश्रम के बलबूते पर उसका धर समृद्ध हो गया।
प्रश्न 7:
भक्तिन व लेखिका के बीच कैसा संबंध था?
उत्तर -
लेखिका व भक्तिन के बीच बाहरी तौर पर सेवक-स्वामी का संबंध था, परंतु व्यवहार में यह लागू नहीं होता था। महादेवी उसकी कुछ आदतों से परेशान थीं, जिसकी वजह से यदा कदा उसे घर चले जाने को कह देती थीं। इस आदेश को वह हँसकर टाल देती थी। दूसरे, वह नौकरानी कम, जीवन की धूप व अधिक थी। वह लेखिका की छाया बनकर घूमती थी। वह आने जाने वाले, अंधेरे-जाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब व भाम की तरह पृथक अस्तित्व रखती तथा हर सुख-दुख में लेखिका के साथ रहती थी।
प्रश्न 8:
लेखिका के परिचित के साथ भकितन केसा व्यवहार करती थी?
उत्तर -
लेखिका के पास अनेक साहित्यिक बंधु आते रहते थे, परंतु भनिन के मन में उनके लिए कोई विशेष सम्मान नहीं था। वह उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी जैसा लेखिका करती थी। उसके सम्मान की भाषा, लेखिका के प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर होती थी और सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सद्भाव से निश्चित होता था। भक्तिन उन्हें आकार-प्रकार व वेश-भूषा से स्मरण रखती थी या किसी को नाम के अपभ्रंश द्वारा। कवि तथा कविता के संबंध में उसका ज्ञान बढ़ा है, पर आदरभाव नहीं।
प्रश्न 9;
भक्तिन के आने से लेखिका अपनी असुविधाएँ क्यों छिपाने लगीं?
उत्तर -
भक्तिन के आने से लेखिका के खान-पान में बहुत परिवर्तन आ गए। उसे मीठा, घी आदि पसंद था। उसके स्वास्थ्य को लेकर उसके परिवार वाले भी चिंतित रहते थे। घर वालों ने उसके लिए अलग खाने की व्यवस्था कर दी थी। अब वह मीठे व धी से विरक्ति करने लगी थी। यदि लेखिका को कोई असुविधा होती भी थी तो वह उसे भक्तिन को नहीं बताती थी। भक्तिन ने उसे जीवन की सरलता का पाठ पढ़ा दिया।
प्रश्न 10;
लछमिन को शहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर -
लछमन के बड़े दामाद की मृत्यु हो गई। उसके स्थान पर पारेवार वालों ने जिठाँत के साले को जबरदस्ती विधवा लड़की का पति बनया दिया। पारिवारिक द्वैप बढ़ने से खेती-बाड़ी चौपट हो गई। स्थिति यहाँ तक आ गई कि लगान भी नहीं चुकाया गया। जब जमींदार ने लगान न पहुँधा घर भक्तिन को दिनभर की धूप में खड़ा रखा तो उसके स्वाभिमानी हदय को गहरा आघात लगा। यह उसी कर्मठता के लिए सबसे बड़ा कलंक बन गया। इस अपमान के कारण वह दूसरे ही दिन कमाई के विचार से शहर भा गई।
प्रश्न 11:
कारागार के नाम से भक्तिन पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर -
वह जेल जाने के लिए क्यों तैयार हो गई? भक्तिन को कारागार से बहुत भय लगता था। वह उसे यमलोक के समान समझती थी। कारागार की ऊँची दीवारों को देखकर वह चकरा जाती थी। जब उसे पता चला कि महादेवी जेल जा रही हैं तो वह उनके साथ जेल जाने के लिए तैयार हो गई। वह महादेवी के बिना अलग रहने की कल्पना मात्र से परेशान हो उठती थी।
प्रश्न 12:
महादेवी ने भक्ति के जीवन को कितने परिच्छेदों में बाँटा?
उत्तर -
महादेवी ने भक्ति के जीवन को चार परिच्छेदों में बाँटा जो निम्नलिखित हैं -
प्रथम - विवाह से पूर्व।
द्वितीय - ससुराल में सधवा के रूप में।
तृतीय - विधवा के रूप में।
चतुर्थ - महादेवी की सेवा में।
प्रश्न 13:
भक्तिन की बेटी पर पचायत द्वारा पति क्यों थोपा गया? इस घटना के विरोध में दो तर्क दीजिए।
उत्तर -
भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा पति इसलिए थोपा गया क्योंकि भक्तिन की विधया बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जबरदस्ती करने की कोशिश की थी। लड़की ने उसकी खून्य पिटाई की परंतु पंचायत ने कोई भी तर्क न सुनकर एकतरफा फसला सुना दिया। इसके विरोध में दो तर्क निम्नलिखित हैं -
1. महिला के मानवाधिकार का हनन होता है।
2. योग्य लड़की का विवाह अयोग्य लड़के के साथ हो जाता है।
प्रश्न 14:
'भक्तिन' अनेक अवगुणों के होते हुए भी महादेव जी के लिए अनमोल क्यों थी?
उत्तर -
अनेक अवगुणों के होते हुए भी भक्तिन महादेवी वर्मा के लिए इसलिए अनमोल धी क्योंकि
1. भक्तिन में सेवाभाव कूट-कूटकर भरा था।
2. भक्तिन लेखिका के हर कष्ट को स्वयं झेल लेना चाहती थी।
3, वह लेखिका द्वारा पैसों की कमी का जिक्र करने पर अपने जीवनभर की कमाई उसे दे देना चाहती थी।
4. भक्तिन की सेवा और भक्ति में नि:स्वार्थ भाव था। वह अनवरत और दिन-रात लेखिका की सेवा करना चाहती थी।

भक्तिन


पठित गद्यांश


निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1:
सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पद्र्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है नाम है। लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्ध भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धसूचक नाम किसी को बताती नहीं।
प्रश्न:
1. भक्तिन के सदर्भ में हनुमान जी का उल्लख क्यों हुआ हैं?
2. भक्तिन के नाम और उसके जीवन में क्या विरोधाभास था?
3. 'जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता हैं"-अपने आस-पास के जगत से उदाहरण देकर प्रस्तुत कथन की पुष्टि कीजिए।
4 भक्तिन ने लेखिका से क्या प्राथना की ?क्यों ?
उत्तर -
1. भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख इसलिए हुआ है क्योंकि भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेवा उसी नि:स्वार्थ भाव से करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री राम की सेवा नि:स्वार्थ भाव से किया करते थे।
2 भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था जो वैभव, सुख, संपन्नता आदि का प्रतीक, जबकि भक्तिन की अपनी वास्तविक स्थिति इसके ठीक विपरीत थी। वह अत्यंत गरीब, दीन-हीन महिला थी, जिसे वैभव, सुख आदि से कुछ लेना-देना न था। यही उसके नाम और जीवन में विरोधाभास था।
3. लेखिका का मानना है कि नाम व गुणों में साम्यता अनिवार्य नहीं है। अकसर देखा जाता है कि नाम और गुणों में बहुत अंतर होता है। 'शांति' नाम वाली लड़की सदैव झगड़ती नजर आती है, जबकि 'गरीबदास के पास धन की कमी नहीं होती।
4. लेखिका ने भक्तिन को इसलिए समझदार माना है क्योंकि भक्तिन अपना असली नाम बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती। उस जैसी दीन महिला का नाम 'लक्ष्मी' सुनकर लोगों को हँसने का अवसर मिलेगा।
प्रश्न 2:
पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। 'हाय लछमिन अब आई की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गई। पर वहाँ न पिता का चिहन शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।
प्रश्न:
1. भक्तिन की विमाता ने पिता की बीमारी का समाचार देर से क्यों भेजा?
2. सास ने लछमन को क्या बहाना बनाकर मायके भेजा? क्यों?
3. गाँव में जाकर लछमन को कैसा व्यवहार मिला?
4. भक्तिन ने पितृशोक किस प्रकार जताया?
उत्तर -
1. लछमिन से पिता को अगाध प्रेम था। इस कारण विमाता उससे ईष्या करती थी। दूसरे, लछमिन इकलौती संतान थी। इसलिए पिता की संपूर्ण संपत्ति की वह हकदार थी। विमाता उस संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहती थी। अतः विमाता ने पिता की मरणांतक बीमारी का समाचार लछमन को देर से दिया।
2 सास ने लछमन को यह कहकर विदा किया कि 'तू बहुत दिन से अपने पिता के घर नहीं गई। इसलिए वहाँ जाकर उन्हें देख आ'। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह अपने घर में रोने-पीटने के अपशकुन से बचना चाहती थी।
3. गाँव जाकर लछमन को पता चला कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। लोगों की शिकायतें व सहानुभूति उसे मिली। घर में विमाता ने उससे सीधे मुँह बात नहीं की। अत: वह दुख व अपमान से पीड़ित होकर घर लौट आई।
4. मायके से घर आकर उसने अपनी सास को खूब खरी-खोटी सुनाई तथा पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर पिता के वियोग की व्यथा व्यक्त की।
प्रश्न : 3
जीवन के दूसरे परिद में भी सुख की अपेक्षा दुख हीं अधिक है। जब उसने गेहूंए ग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सात और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काकभुशडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हों गया।
प्रश्न
1. भक्तिन के जीवन के दूसरे परिच्छेद में ऐसा क्या हुआ जिसके कारण उसकी उपेक्षा शुरू हो गई?
2. लेखिका की राय में भक्तिन की उपेक्षा उचित थी या नहीं?
3. जेठानियों को सम्मान क्यों निलता था।
4. छोटी बहू कौन धी? उसने कौन-सा अपराध किया था?
उत्तर -
1, भक्तिन नै जीवन के दूसरे परिच्छेद में एक-के-बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया। इस कारण सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा शुरू कर दी।
2, लेखिका ने यह बात व्यंग्य में कही है। इसका कारण यह है कि भारतीय समाज में उसी स्त्री को सम्मान मिलता है जो पुत्र को जन्म देती है। लड़कियों को जन्म देने वाली स्त्री को अशुभ माना जाता है। भक्तिन ने तो तीन लड़कियों को जन्म दिया। अत उसकी उपेक्षा उचित ही थी।
3. ठानियों ने काकभुशंही जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया था। इस कार्य के बाद वे पुरखिन पद की दावेदार बन गई थीं।
4. लौटी बहू ललमिन थी। उसने तीन लड़कियों को जन्म देकर घर की पुत्र जन्म देने की लीक को तोड़ा था।
प्रश्न 4
इस दंविधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों को टाल जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-फूटी गाती पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बोटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से रायी पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगो। करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम नहीं करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उसने लॉट-छाँट कर, ऊपर से असंतोष की मुद्रा के साध और भीतर से पुलकित होते हुए जो कुल लिया, वह सबसे अशा भी रहा, साथ ही परिश्रमी दंपति के निरंतर प्रयास से उसका सोना बन जाना भी स्वाभाविक हो गया।
प्रश्न
1. यहाँ दंङ-विधान की बात जिसके संदर्भ में क जा रहीं हैं? क्यों?
2. खोटे सिस्को क टकसाल हैं किसे और क्यों कहा गया है।
3, चुगली चबाई की परिणति उसके पत्नी प्रेप की बढ़कर हैर होती था।' स्यष्ट कजिए
4, भक्तिन को अलग होते समय सबसे अच्छा भाग कैसे मिला? इसका परिणाम क्या रहा?
उत्तर -
1. यहाँ दड-विधान की बात लछमिन के संदर्भ में की जा रही है। इसका कारण यह है कि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया, जबकि जेठानियों के सिर्फ पुत्र थे। अत: उसे दंड देने की बात हो रही थी।
2. 'खोटे सिक्कों की टकसाल' लछमन को कहा गया है क्योंकि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। भारत में लड़कियों को खोटा | सिक्का' कहा जाता है। उनकी दशा हीन होती है।
3. इसका अर्थ यह है कि भक्तिन की सास व जेठानियाँ सदैव उसकी चुगली उसके पति से करती रहती थीं ताकि उसकी पिटाई हो, परंतु इसका प्रभाव उलटा होता था।
4, भक्तिन को पशु, जमीन व पेड़ों की सही जानकारी थी। इसी ज्ञान के कारण उसने हर चीज़ को छाँटकर लिया। उसने पति के साथ मिलकर मेहनत कर जमीन को सोना बना दिया।
प्रश्न 5:
भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइह से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा मिठीत अपने तीतर लाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका गठबंधन हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी मों से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अतः यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लग और 'मान न मान मैं तेरा मेहमान' की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी प्रकार पति की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे।
प्रश्न:
1. भक्तिन का दुर्भाग्य क्या था? उसे हठी क्यों कहा गया है?
2. जेठों और जिठौतों को आशा की कौन - सी किरण दिखाई दी ?
3. जिठौत किसके लिए विवाह का प्रस्ताव लाया ? उसका क्या हस्र हुआ ?
4 'बर की पदवी पर अभिषिक्त करने का-क्या आशय हैं?
उत्तर -
1. भक्तिन का दुर्भाग्य यह था कि उसकी बड़ी लड़की किशोरी से युवती बनी ही थी कि उसका पति मर गया। वह असमय विधवा हो गई। दुर्भाग्य को हठी इसलिए कहा गया है क्योंकि बेटी के विधवा होने के दुख से पहले भक्तिन को बचपन से ही माता का बिछोह, अल्पायु में विवाह, विमाता का दंश, पिता की अकाल मí#2371;त्यु व असमय पति की मृत्यु से जीवन में अनेक कष्ट सहने पड़े।
2. जेठ और जिठौत भक्तिन की जायदाद पर नजर रखे हुए थे। इस कार्य में वे अभी सफल नहीं हुए थे। भक्तिन के उत्तराधिकारी दामाद | को आकस्मिक मृत्यु से उन्हें अपनी मनोकामना सफल होती नजर आई।
3. जिठौत भक्तिन की विधवा लड़की के पुनर्विवाह के लिए अपने तीतर लड़ाने वाले साले का प्रस्ताव लाया। इस विवाह के बाद भक्तिन की सारी संपत्ति जिठौत के कब्जे में आ जाती। जिठौत के विवाह-प्रस्ताव को भक्तिन की लड़की ने नापसंद कर दिया। बाहर से बहनोई से चचेरे भाइयों को फायदा नहीं मिलता। अतः विवाह प्रस्ताव असफल हो गया।
4 भक्तिन के जेठ व जिठौत किसी भी तरीके से अपने किसी संबंधी का विवाह विधवा लड़की से कराकर संपत्ति पर कब्जा करना चाहते थे। यह वर की योग्यता का प्रश्न नहीं था। यहाँ सिर्फ शादी का मामला था।
प्रश्न 6
तीतरबाज युवक कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दूध का दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे इन दोनों में एक सध्या हो चाहे दोनों झूठे; अब वे एककोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने होंठ काटकर लहू निकाल लिया और माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-दोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में। ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुँचने पर जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।
प्रश्न:
1. युवती व तीतरबाज युवक ने अपने अपने पक्ष में क्या तक दिए?
2. पंचायत ने समस्या का मूल कारण क्या माना? उन्होंने क्या फैसला किया?
३. नए दामाद का स्वागत कैसे हुआ? इस बेमेल विवाह का क्या परिणाम हुआ?
4 भक्तिन को शहर क्यों आना पड़ा?
उत्तर -
1. तीतरबाज युवक ने अपने पक्ष में कहा कि उसे भक्तिन की बेटी ने ही अंदर बुलाया था, जबकि युवती का कहना था कि उसने जबरदस्त विरोध किया। इसका प्रमाण युवक के मुँह पर छपी उसकी पाँचों औगुलियाँ हैं।
2. पंचायत ने समस्या का मूल कारण कलियुग को माना। उन्होंने निर्णय किया कि चाहे कोई सच्चा है या झूठा, पर कुछ समय के लिए पति-पत्नी के रूप में रहे। इस स्थिति में इन्हें आजीवन पति-पत्नी के रूप में ही रहना पड़ेगा। .
3. पंचायत के फैसले पर भनि व उसकी बेटी खून का पूंट पीकर रह गई। लड़की ने अपमान के कारण होंठ काटकर खून निकाल लिया तथा माँ ने क्रोध से जबरदस्ती के दामाद को देखा। इस बेमेल विवाह से उत्पन्न क्लेश के कारण खेत, पशु आदि सब का सर्वनाश हो गया। अंत में लगान अदा करने के पैसे भी न रहे।
4. नए दामाद के आने से घर में क्लेश बढ़ा। इस कारण खेती-बारी चौपट हो गई। लगान अदा न करने पर जमींदार ने भक्तिन को दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। इस अपमान व कमाई के विचार से भक्तेिन शहर आई।
प्रश्न: 7
दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औधाकर उसने मेरी धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और पूर्व के अंधकार और मेरी दीवार से फुटते हुए सूर्य और पीपल का दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवा का साथ टेढ़ी खीर है। अपने भोजन के संबंध में नितांत वीतराग होने पर भी मैं पाक-विद्या के लिए परिवार में प्रयात हूँ और कोई भी पाक कुशल दूसरे के काम में नुक्तानीनी बिना किए रह नहीं सकता। पर जब ठूत-पाक पर माण देने वाले व्यक्तियों का बात-बात पर भूखा मरना स्मरण हो आया और भक्ति की शंकाकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया, तब कोयले की रेखा मेरे लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के सामने दुलध्य हो उठी। निरुपाय अपने कमरे में बिछौने में पड़कर नाक के ऊपर खुली हुई पुस्तक स्थापित कर मैं चौक में पी पर उसी। अनाधिकारी को भूलने का प्रयास करने लगी।
प्रश्न
1. नौकरी मिलने के दूसरे दिन भक्तिन ने क्या काम किया?
2. लेखिका को भक्तिन से निपटना टेढ़ी खीर क्यों लगा ?
3 लिखिका के लिए कोयले की रेखा लक्ष्मण रेखा कैसे बन गई
4. अनाधिकारी को भूलने से लेखिका का क्या अभिप्राय है?
उत्तर -
1. नोकरी मिलने पर भक्तिन दूसरे दिन सबसे पहले नहाई, फिर उसने लेखिका द्वारा दी गई धुलो धोती ल के छींटों से पवित्र करके पहनी और उगते सूर्य व पीपल को जल अर्पित किया। फिर उसने दो मिनट तक नाक दबाकर जप किया और कोयले की मोटी रेखा से रसोईघर की सीमा निश्चित की।
2. लेखिका को भक्ति से निपटना टेढ़ी खीर लगा क्योंकि उसे पता था कि भक्तिन जैसे लोग पक्के इरादों के होते हैं। ऐसे लोगों के कार्य में बाधा होने पर ये खाना-पीना छोड़कर जान देने तक को तैयार रहते हैं।
3. भक्तिन धार्मिक प्रवृत्ति की औरत थी। वह रसोई के मामले में बेहद पवित्रता रखती धी। रसोई बनाते समय वह कोयले से मोटी रेखा खींच देती थी ताकि बाहरी व्यक्ति प्रवेश न कर सके। स्वयं लेखिका का प्रवेश भी वर्जित था। यदि वह रेखा का उल्लंघन करती तो भनिन जैसे लोग भूखे मरने को तैयार हो जाते हैं। अतः कोयले की रेखा लक्ष्मण रेखा जैसी बन गई थी।
4. लेखिका को अभी तक भक्तिन की पाक कला का ज्ञान नहीं था। उसे संशय था कि वह उसकी पसंद का खाना बना पाएगी या नहीं। भक्तिन स्वच्छता के नाम पर उसे रसोई में घुसने नहीं दे रही थी। इस कारण लेखिका को लगा कि शायद उसने किसी अनाधिकारी र दिया, जितु अब कोई उपाय न था। अतः वह उसे भूलकर किताब में ध्यान लगाने लगी।
प्रश्न : 8
भोजन के समय जब मैंने अपनी निश्चित सीमा के भीतर निर्दिष्ट स्थान ग्रहण कर लिया, तब भक्तिन ने प्रसन्नता से लबालब दृष्टि और आत्मतुष्टि से आप्लावित गुराकुराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार धार रोटियां रखकर उसे टेडी कर गादी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुषारपात करते हुए मैंने आँसे भाव से कहा-'यह क्या बनाया है?' तय यह हतबुद्धि हो रही।
प्रश्न
1. भत्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता और आत्मतुष्टि के भाव क्यों ?
2. लेखिका दवारा स्थान ग्रहण करने पर भक्तिन ने क्या परोसा ?
3 लेखिका ने क्या प्रतिक्रिया जाहिर की ?
4. लेखिका की प्रतिक्रिया का भक्तिन पर क्या असर हुआ ?
उत्तर -
1. लेखिका ने भक्ति की धार्मिक प्रवृत्ति और पवित्रता को स्वीकार लिया था। उसने भक्तिन द्वारा खींची गई रेखा का उल्लंघन भी नहीं किया। यह देखकर भक्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता तथा आत्मतुष्टि के भाव थे।
2. लेखिका द्वारा स्थान ग्रहण करने पर भक्तिन ने प्रसन्नता के साथ फूल की थाली में एक तरफ एक अंगुल मोटी व गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रख और दूसरी तरफ थाली टेढ़ी करके गाढ़ी दाल परोस।
3. मोटी-मोटी रोटियों देखकर लेखिका ने रुओंसे भाव से उससे पूछा कि तुमने यह क्या बनाया है?
4. लेखिका की प्रतिक्रिया जानकर भक्तिन की प्रसन्नता खत्म हो गई और वह हतबुद्धि हो गई तथा बहाने बनाने लगी।
प्रश्न :9
मेरे इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये, भंडार-पर की किसी मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भनि जानती है। पर, उस संबंध में किसी के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना किसी तर्कशिरोमणि के लिए संभव नहीं यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है। उसके जीवन का परम कर्तव्य मुझे प्रसन्न रख।। है जिस बात से मुझे ोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है! इतनी थी और इतना झूठ तो धर्मराज महाराज में भी होगा।
प्रश्न:
1. अनुछेद किसके बारे में हैं? किस रहस्य के बारे में पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती हैं?
2. इधर-उधर बिखरे रुपये-पैसों का भक्तिन जो कुछ करती हैं, क्या आप उसे चोरी मानेंगे? क्यों?
3. महादेव जी को सच न बताकर इधर-उधर की बातें बताने को वह झूठ क्यों नहीं मानती?
4 भक्तिन का परम कर्तव्य बया था। वह इसे कैसे पूरा करती थी?
उत्तर -
1. अनुच्छेद भक्तिन के बारे में है। भक्तिन चोरी के पैसे कहों और कैसे रखती है, इसके बारे में पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती है।
2. इधर उधर बिखरे रुपये पैसों का भक्ति जो कुछ करती है, उसे हम चोरी मानेंगे। इसका कारण यह है कि वह घर में नौकरी करती है। घर की किसी वस्तु पर उसका स्वामित्व नहीं है। पैसे या अन्य सामान मिलने पर उसका दायित्व यह है कि वह उन चीजों को घर के मालिक को दे। ऐसा न करने पर उसका कार्य चोरी के अतर्गत आता है।
3. लेखिका की शैली व्यंग्यपूर्ण है। वे भक्तिन को प्रत्यक्ष तौर पर चोर नहीं कहतीं, परंतु प्रत्यक्ष तौर पर अपनी सारी बात कह देती हैं। चोरी पकड़े जाने पर चोर अपने बचाव में आधारहीन अनेक तर्क देता है। इन सब बातों को लेखिका व्यंग्यात्मक शैली में कहती हैं।
4 भक्तिन का परम कर्तव्य था लैखिका को हर प्रकार से खुश रखना। इसके लिए वह उन बातों से बचती थी, जिससे लेखका को क्रोध आता हो। वह हर बात का जवाब वाक्पटुता से देती थी।
प्रश्न 10:
पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बँटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को क्रियात्मक रूप देती है।
प्रश्न:
1. भक्तिन किससे क्या आग्रह करती है?
2. भक्तिन किस बात में अपनी हीनता मानती हैं?
3. भक्तिन किस बात में अपकी हीनता मानती है ?
4. भक्तिन अन्य व्याधियों से किस प्रकार अधिक बुदिधमान प्रमाणित होती है ?
उत्तर -
1. भक्तिन लेखिका से आग्रह करती है कि वह उसे कुछ काम करने को बताए।
2. भक्तिन इस बात में अपनी हीनता मानती है कि वह महादेवी की चित्रकला और कविता लिखने के दौरान किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती।
3. भक्तिन लेखिका की सहायता अनेक प्रकार से करती थी। कभी वह उत्तर-पुस्तकों को बाँध देती थी तो कभी अधूरे चित्र को कोने में रख देती थी। कभी वह रंग की प्याली धौती थी तो कभी चटाई को ऑचल से झाड़ती थी।
4. अन्य व्यक्ति लेखन या चित्रकारी में सहायता करने के विषय में सोचते हैं, परंतु भक्तिन सदैव लेखिका के सामने बैठकर कुछ-न-कुछ क्रियात्मक सहयोग देती रहती थी। अन्य लोग जहाँ लेखिका का हाथ बँटाने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे, वहीं भक्तिन सदैव उनके सामने बैठकर सहयोग करती थी। इससे सिद्ध होता है कि वह अन्य लोगों से बुद्धमान थी।
प्रश्न 11:
इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उद्भासित हो उठती है जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, आँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता। यह स्वाभाविक भी है। किसी चित्र को पूरा करने में व्यस्त, मैं जब बार-बार कहने पर भी भोजन के लिए नहीं उठती, तब वह कभी दही का शर्बत, कभी तुलसी की चाय वहीं देकर भूख का कष्ट नहीं सहने देती।
प्रश्न:
1. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन कैसे अपनी प्रसन्नता प्रकट करती थी ?
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे कैसे देखती थी?
3. भक्तिन लेखिका को किस प्रकार भूख का कष्ट नही सहने देती थी?
4. अनपढ़, भक्तिन को लेखिका की नवप्रकाशित पुस्तकों से निराश नहीं होना पड़ता था - स्पष्ट कीजिए?
उत्तर -
1. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मुख से प्रसन्नता ऐसे प्रकट हो जाती थी जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा प्रकाश उद्भासित हो जाता है।
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन बहुत प्रसन्न होती थीं। अकेले में वह उसे बार-बार छूती थी। उसे आँखों के समीप ले जाकर तथा चारों तरफ घुमाकर अपनी सहायता का अंश खोजती थीं।
3. जब लेखिका चित्र को पूरा करने में व्यस्त रहती थी तब भक्तिन कभी दही का शर्बत तो कभी कभी तुलसी की चाय बनाकर लेखिका को देती थी। इस तरह वह लेखिका को भूख का कष्ट नहीं रहने देती थी।
4. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन पुस्तक को चारों ओर से छूकर तथा अपनी आँखों के समीप लाकर असीम आनंद की अनुभूति करती थी। इस तरीके से वह अपनी सहायता का अंश खोजती थी। उसकी नजरों से आत्मतुष्टि की झलक मिलती थी। इससे लगता है कि भक्तिन को निराश नहीं होना पड़ता।
प्रश्न 12:
मेरे भ्रमण की भी एकांत साथिन भक्तिन हो रही है। बदरी-केदार आदि के ऊँचे नीचे और तंग पहाड़ी रास्ते में जैसे वह हठ करके मेरे आगे चलती रही है, वैसे ही गाँव की धूलभरी पगडंडी पर मेरे पीछे रहना नहीं भूलती। किसी भी समय, कहीं भी जाने के लिए प्रस्तुत होते ही हैं। भक्तिन को छाया के समान साथ पाती हैं। देश की सीमा में युद्ध को बढ़ते देखकर जब लोग आतंकित हो उठे, तब भक्तिन के बेटी-दामाद उसके नाती को लेकर बुलाने आ पहुँचे, पर बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह उनके साथ नहीं जा सकी। सबको वह देख आती है; रुपया भेज देती है; पर उनके साथ रहने के लिए मेरा साथ छोड़ना आवश्यक है; जो संभवतः भक्तिन को जीवन के अंत तक स्वीकार न होगा।
प्रश्न:
1. पहाड़ी तंग रास्त पर भक्तिन महादेवी के आगे क्यों चलती थी?
2. गाँव की पगडंडी पर महादेवी के पीछे भक्तिन के चलने का कारण बताइए।
3. युदध के दिनों में भक्तिन गाँव क्यों नहीं गई?
4. परिवार वालों के साथ भक्तिन का व्यवहार कैसा था?
उत्तर -
1. भक्तिन महादेवी की सच्ची सेविका थी। पहाड़ों के तंग व ऊँचे-नीचे रास्तों पर वह हठ करके महादेवी के आगे चलती थी ताकि आगे आने वाले खतरे को वह स्वयं उठा ले।
2. गाँव की पगडंडी धूलभरी होती है। व्यक्ति के पीछे चलने वाले व्यक्ति को धूल सहनी पड़ती है। यही कारण है कि विकल पड़ी परभक्त महादेव के पछे भक्त चली थी ताकि चलने से ध्लउड्ने पारवहउसे स्वय सहन कर।
3. युद्ध के दिनों में सभी लोग आतंकित थे। भक्तिन के दामाद-बेटी व नाती उसे लेने के लिए आए, परंतु वह उनके साथ नहीं गई क्योंकि वह महादेवी को अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी।
4. परिवार वालों के साथ भक्तिन के संबंध मात्र औपचारिक थे। वह उन्हें रुपया भेज देती थी, कभी-कभी सबको देख आती थी, परंतु वह उनके साथ रहना पसंद नहीं करती थीं।
प्रश्न 13:
गत वर्ष जब युद्ध के भूत ने वीरता के स्थान में पलायन-वृत्ति जगा दी थी, तब भक्तिन पहली ही बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ मुझसे गाँव चलने का अनुरोध करने आई। वह लकड़ी रखने के मचान पर अपनी नयी धोती बिछाकर मेरे कपड़े रख देगी, दीवाल में कीलें गाड़कर और उन पर तख्ते रखकर मेरी किताबें सजा देगी, धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर और उस पर अपना कंबल बिछाकर वह मेरे सोने का प्रबंध करेगी। मेरे रंग, स्याहीं आदि को नयी हैंड़ियों में सँजोकर रख देगी और कागज-पत्र को छींके में यथाविधि एकत्र कर देगी।
प्रश्न:
1. लेखिका और भक्तिन में आप कैसे अधिक साहसी मानता है और क्यों ?
2. लेखिका के मन में क्या प्रवृत्ति आई? उसका कारण क्या था ?
3. भक्तिन ने लेखिका से क्या आग्रह किया?
4. भक्तिन ने उन्हें क्या क्या कार्य करने का आश्वासन दिया !
उत्तर -
1. लेखिका और भक्तिन दोनों में मैं भक्तिन को अधिक साहसी मानता हूँ क्योंकि युद्ध का डर लेखिका को विचलित कर गया परंतु भक्तिन को नहीं। इस डर से लेखिका अन्यत्र रहने को तैयार हो गई।
2. लेखिका के मन में पलायन प्रवृत्ति आई। इसका कारण युद्ध का भूत था।
3. भक्तिन ने पहली बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ लेखिका से गाँव चलने का अनुरोध किया।
4. भक्तिन नै लेखिका को निम्नलिखित कार्य करने का आश्वासन दिया-
*. लकड़ी रखने के मचान पर नयी धोती बिछाकर कपड़े रखना।
*. दीवार में कीलें गाड़कर व उन पर तख्ते रखकर किताबें रखना।
*. सोने के लिए धान के पुआल का गदरा बनवाकर उस पर कंबल बिछाना।
*. रंग, स्याही आदि को नयी हँड़ियों में रखना।
*. कागज-पत्रों को सही तरीके से छींके में रखना।
प्रश्न 14:
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है; क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है।
प्रश्न:
1. उपर्युक्त गदयांश में किनके स्वामी सेवक संबंधों की चर्चा की गई है ?उन संबंधों की क्या विशेषता बताई गई है?
2. लेखिका के लिए आँगन में फूलने वाला गुलाम और आम सेवक क्यों नहीं है? क्या यह बात भक्तिन पर भी लागू होती है?
3. आम और गुलाब किन रूपों में लेखिका से सुख-दुःख के कारण है और क्यों ?
4. भक्तिन का लेखिका के साथ किस प्रकार का संबंद है?
उत्तर -
1. उपर्युक्त गद्यांश में लेखिका और भक्तिन के संबंधू की चर्चा की गई है। इन दोनों में मालकिन और सेविका का संबंध नहीं है। भक्तिन ने लेखिका को अपनी संरक्षिका मान लिया है। लेखिका भी उसे अपने परिवार का सदस्य मानती है।
2. लेखिका के लिए आँगन में फूलने वाला गुलाब व आम सेवक नहीं हैं। इसका कारण यह है कि ये हमें सुख देते हैं, परंतु हमसे कोई अपेक्षा नहीं रखते। इनका अपना अस्तित्व है। भक्तिन पर भी यह बात लागू होती है।
3 आम और गुलाब का स्वतंत्र अस्तित्व है। ये लेखिका के सुख-दुख के साझीदार हैं। ये फल व फूल प्रदान करके सुख की अनुभूति कराते हैं तथा काँटों व पत्तों के बिखराव से कष्ट भी उत्पन्न करते हैं।
4. भक्तिन लेखिका को अपना संरक्षक मानती है।वह उसे छोड़ने की सोच भी नहीं सकती। महादेव ने भी उसे रूप में स्वीकार किया है।

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