NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे 

NCERT Solutions for Class12 Hindi Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

काले मेघा पानी दे Class 12 Hindi Aroh NCERT Solutions

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Class 12 Hindi Aroh Chapter 13 CBSE NCERT Solutions

NCERT Solutions Class12 Hindi Aroh
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 12th Class
Subject: Hindi Aroh
Chapter: 13
Chapters Name: काले मेघा पानी दे
Medium: Hindi

काले मेघा पानी दे Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

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काले मेघा पानी दे


अभ्यास-प्रश्न


प्रश्न 1. लोगों ने लड़कों की टोली को मेंढक मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इंद्रसेना क्यों बुलाती थी?
गाँव के लोग लड़कों को नंग धड़ंग और कीचड़ में लथपथ देखकर बुरा मानते थे। उनका कहना था कि यह ढोंग और अंधविश्वास है। ऐसा करने से वर्षा नहीं होती। इसलिए वे उन्हें मेंढक मण्डली कहते थे। परंतु गाँव के किशोरों की टोली अपने आपको इंद्रसेना कहती थी। बच्चों का यह कहना था कि हम इंद्र भगवान से वर्षा कराने के लिए लोगों से पानी का अर्घ्य मांग रहे हैं। ऐसा करने से इंद्र देवता वर्षा का दान करेंगे और खूब वर्षा होगी।
प्रश्न 2. जीजी ने इंद्रसेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
जीजी का कहना था कि देवता से कुछ पाने के लिए हमें कुछ दान और त्याग करना पड़ता है। किसान भी 30-40 मण अनाज पाने के लिए 5-6 सेर गेहूँ की बुवाई करता है। तब कहीं जाकर उसका खेत हरा भरा होकर लहराता है। इंद्रसेना लोगों को यह प्रेरणा देती है कि वे इंद्र देवता को अर्घ्य चढ़ाएँ। यदि लोग भगवान इंद्र को पानी का दान करेंगे तो वह भी झमाझम वर्षा करेंगे। अतः इन्द्रसेना एक प्रकार से वर्षा की अगुवाई कर रही है। हमें इस परंपरा का पालन करना चाहिए।
प्रश्न 3. पानी दे, गुड़धानी दे, मेघो से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की मांग क्यों की जा रही है?
गुड़धानी का अर्थ है गुड़ और धान को मिलाकर बनाया गया लड्डू। इंद्रसेना के किशोर देवता से पानी के साथ गुड़धानी की भी मांग कर रहे हैं। बच्चों को पीने के लिए पानी और खाने के लिए गुड़धानी चाहिए। यह सब बादलों पर निर्भर है। यदि बादल बरसेंगे तो खेतों में गन्ना और अनाज पैदा होंगे इस प्रकार इंद्र देवता ही हमें गुड़धानी देने वाले देवता हैं। इसलिए बच्चे पानी के साथ गुड़धानी की मांग कर रहे हैं।
प्रश्न 4. गगरी फूटी बैल प्यासा इंद्र सेना के इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है?
बैल भारतीय कृषि व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहे जाते हैं। वह हमारे खेतों को जोतते हैं और अन्न उत्पन्न करते हैं। किसान इन्हीं पर निर्भर होता है। यदि वे प्यासे रहेंगे तो हमारी फसलें नष्ट हो जाएँगी। सांकेतिक रूप में लेखक यही कहना चाहता है कि वर्षा न होने से हमारे खेत सूख रहे हैं और खेती के आधार कहे जाने वाले बैल प्यास से मर रहे हैं। वर्षा होने से हमारे खेत भी बच जाएँगे और बैल भी भूखे प्यासे नहीं रहेंगे।
प्रश्न 5. इंद्र सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?
इंद्र सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती थी क्योंकि गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना गया है। गंगा का भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि में बहुत महत्त्व है। गंगा का जल प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गंगाजल अंतिम समय में मुख में डालने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से भारत के बड़े-बड़े नगर यमुना, गोदावरी और कृष्णा आदि नदियों के किनारे बसे हैं। इन्हीं नदियों के कारण हमारे समाज और सामाजिकता का विकास हुआ है। अब भी लोग नदियों को प्रणाम करते हैं और अनेक प्रमुख नदियों में स्नान करते हैं।
प्रश्न 6. रिश्तो में हमारी भावना शक्ति का बंट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमजोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए?
भावना की शक्ति मनुष्य के लिए अत्यधिक उपयोगी है। जिससे मनुष्य को स्नेह की खुराक ही मिलती है और बच्चा भावनात्मक रूप से सुरक्षित रहता है। यही नहीं इससे मानव का बौद्धिक और शारीरिक विकास होता है। बौद्धिक विकास के कारण ही लेखक कुमार सुधार सभा का उपमंत्री बना। लेखक इस स्थिति में पहुँचकर उचित और अनुचित के लिए विवेक का साहरा लेता है। लेकिन जीजी ने तर्कनिष्ठ लेखक को यह एहसास कराने का प्रयास किया कि तर्क और परिणाम ही सब कुछ नहीं होता। भावनात्मक सत्य का अपना ही महत्त्व होता है। लेखक के सारे तर्क हार गए। उसे यह अनुभव हुआ कि भावना और तर्कों में समन्वय आवश्यक है। यह तभी होगा जब मनुष्य तर्कशक्ति के साथ भावनाओं का भी ध्यान रखेगा।

काले मेघा पानी दे


अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न


प्रश्न 1:
काले मेघा पानी दे संस्मरण के लेखक ने लोक - प्रचलित विश्वासों को अंधविश्वास कहकर उनके निराकरण पर बल दिया है। - इस कथन की विवेचना कीजिए ?
उत्तर -
लेखक ने इस संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास को अंधविश्वास कहा है। पाठ में इंदर सेना के कार्य को वह पाखंड मानता है। आम व्यक्ति इंदर सेना के कार्य को अपने-अपने तकों से सही मानता है, परंतु लेखक इन्हें गलत बताता है। इंदर सेना पर पानी फेंकना पानी की क्षति है। जबकि गरमी के मौसम में पानी की भारी कमी होती है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण देश का बौद्धिक विकास अवरुद्ध होता है। हालाँकि एक बार इन्हीं अंधविश्वास की वजह से देश को एक बार गुलामी का दंश भी झेलना पड़ा।
प्रश्न 2:
'काले मेघा पानी दे' पाठ की 'इंदर सेना' युवाओं को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा दे सकती हैं तर्क सहित उतार दीजिए।
उत्तर -
इंदर सेना युवाओं को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा दे सकती है। इंदर सैना सामूहिक प्रयास से इंद्र देवता को प्रसन्न करके वर्षा कराने के लिए कोशिश करती है। यदि युवा वर्ग के लोग समाज की बुराइयों, कमियों के खिलाफ़ सामूहिक प्रयास करें तो देश का स्वरूप अलग ही । होगा। वे शोषण को समाप्त कर सकते हैं। दहेज का विरोध करना, आरक्षण का विरोध करना, नशाखोरी के खिलाफ़ आवाज उठाना-आदि कार्य सामूहिक प्रयासों से ही हो सकते हैं।
प्रश्न 3:
यदि आप धर्मवीर भारती के स्थान पर होते तो जीजी के तक सुनकर क्या करते और क्यों? 'काले मेधा पानी दे-पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर -
यदि मैं लेखक के स्थान पर होता तो जीजी का तर्क सुनकर वहीं करता जो लेखक ने किया, क्योंकि तर्क करने से तो जीजी शायद ही कुछ समझ पातीं, उनका दिल दुखता और हमारे प्रति उनका सद्भाव भी घट जाता। लेखक की भाँति में भी जीजी के प्यार और सद्भाव को खोना नहीं चाहता । यही कारण है कि आज भी बहुत-सी बेतुकी परंपराएँ हमारे देश को जकड़े हुए हैं।
प्रश्न 4:
'काले मेघा पानी दे' पाठ के आधार पर जल और वर्षा के अभाव में गाँव की दशा का वर्णन कजिए।
उत्तर -
गली-मोहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी से भुन-भुन कर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे थे। जेठ मास भी अपना ताप फैलाकर जा चुका था और अब तो आषाढ़ के भी पंद्रह दिन बीत चुके थे। कुएँ सूखने लगे थे, नलों में पानी नहीं आता था। खेत की माटी सूख सूखकर पत्थर हो गई थी। पपड़ी पड़कर अब खेतों में दरारें पड़ गई थीं। झुलसा देने वाली लू चलती थी। ढोर-ढंगर प्यास से मर रहे थे, पर प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं था। निरुपाय से ग्रामीण पूजा-पाठ में लगे थे। अंत में इंद्र से वर्षा के लिए प्रार्थना करने इंदर सेना भी निकल पड़ी थी।
प्रश्न 5:
दिन-दिन गहराते पानी के संकट से निपटने के लिए क्या आज का युवा वर्ग काले मेघा पानी दे क इंदर सेना की तर्ज पर कोई सामूहिक आंदोलन प्रारंभ कर सकता हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर -
आज के समय पानी के गहरे संकट से निपटने के लिए युवा वर्ग सामूहिक आंदोलन कर सकता है। युवा वर्ग शहर व गाँवों में पानी की फिजूलखर्ची को रोकने के लिए प्रचार आंदोलन कर सकता है। गाँवों में तालाब खुदवा सकता है ताकि वर्षा के जल का संरक्षण किया जा सके। युवा वृक्षारोपण अभियान चला सकता है ताकि वर्षा अधिक हो तथा पानी भी संरक्षित रह सके। वह घर घर में पानी के सही उपयोग की जानकारी दे सकता है।
प्रश्न 6:
ग्रीष्म में कम पानी वाले दिनों में गाँव-गाँव में डोलती मेढ़क-मंडली पर एक बाल्टी पानी उड़ेलना जीजी के विचार से पानी का बीज बोना हैं, कैसे?
उत्तर -
जीजी का मानना है कि गरमी के दिनों में मेढक मंडली पर एक बाल्टी पानी उड़ेलना पानी का बीज बोना है। वे कहती हैं कि जब हम किसी को कुछ देंगे तभी तो अधिक लेने के हकदार बनेंगे। इंद्र देवता को पानी नहीं देंगे तो वह हमें क्यों पानी देगा। ऋषि-मुनियों ने भी त्याग व दान की महिमा गाई है। पानी के बीज बोने से काले मेधों की फसल होगी जिससे गाँव, शहर, खेत खलिहानों को खूब पानी मिलेगा।
प्रश्न 7:
जीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
लेखक ने जीजी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं।
(क) स्नेहशील जीजी लेखक को अपने बच्चों से भी अधिक प्यार करती थीं। वे सारे अनुष्ठान, कर्मकांड लेखक से करवाती थीं ताकि उसे पुण्य मिलें।
(ख) आस्थावती-जीजी आस्थावती नारी थीं। वे परंपराओं, विधियों, अनुष्ठानों में विश्वास रखती र्थी तथा श्रद्धा से उन्हें पूरा करती थीं।
(ग) तर्कशीला-जीजी अपनी बात के समर्थन में तर्क देती थीं। उनके तकों के सामने आम व्यक्ति पस्त हो जाता था। इंदर सेना पर पानी फेंकने के पक्ष में जो तर्क वे देती हैं, उनका कोई सानी नहीं। लेखक भी उनके समक्ष स्वयं को कमजोर मानता है।
प्रश्न 8:
'गगरी फूटी बैल पियासा' का भाव या प्रतीकार्थ देश के संदर्भ में समझाइए।
उत्तर -
'गगरी फूटी बैल पियासा' एक ओर जहाँ सूखे की ओर बढ़ते समाज का सजीव एवं मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है वहीं यह देश की वर्तमान हालत का भी चित्रण करता है। यहाँ गाँव तथा आम लोगों के कल्याणार्थ भेजी अरबों-खरबों की राशि न जाने कहाँ गुम हो जाती है। भ्रष्टाचार का दानव इस समूची राशि को निगल जाता है और आम आदमी की स्थिति वैसी की वैसी ही रह जाती है अर्थात उसकी आवश्यकता रूप प्यास अनबुझी रह जाती है।
प्रश्न 9:
'काले मेघा पानी दे' सस्मरण विज्ञान के सत्य पर सहज प्रेम की विजय का चित्र प्रस्तुत करता हैं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
'काले मेघा पानी दे' संस्मरण में वर्षा न होना, सूखा पड़ना आदि के विषय में विज्ञान अपना तर्क देता है और वर्षा न होने जैसी समस्या के । सही कारणों का ज्ञान कराते हुए हमें सत्य से परिचित कराता है। इस सत्य पर लोक-प्रचलित विश्वास और सहज प्रेम की जीत हुई है क्योंकि लोग इस समस्या का हल अपने-अपने ढंग से हूँढने में जुट जाते हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लोगों में प्रचलित विश्वास इतना पुष्ट है कि वे विज्ञान की बात मानने को तैयार नहीं होते।
प्रश्न 10:
धमवीर भारती मढ़क-मडली पर पानी डालना क्यों व्यर्थ मानते थे?
उत्तर -
लेखक धर्मवीर भारती मेढक-मंडल पर पानी डालना इसलिए व्यर्थ मानते थे क्योंकि चारों ओर पानी की घोर कमी थी। लोग पीने के लिए बड़ी कठिनाई से बाल्टी-भर पानी इकट्ठा करके रखे हुए थे, जिसे वे इस मेढक-मंडली पर फेंक कर पानी की घोर बर्बादी करते हैं। इससे देश की अति होती है। वह पानी को यूँ फेकना अंधविश्वास के सिवाय कुछ नहीं मानने थे।
प्रश्न 11:
'काले मघा पानी दे' में लेखक ने लोक मान्यताओं के पीछ छिपे किस तक को उभारा है? आप भी अपने जीवन के अनुभव से किसी अधविश्वास के पीछे छिपे तक को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
‘काले मेघा पानी दे” में लेखक ने लोक-मान्यताओं के पीछे छिपे उस तर्क को उभारा है, जिसके अनुसार ऐसी मान्यता है कि जब तक हम किसी को कुछ देंगे नहीं, तब तक उससे लेने का हकदार कैसे बन सकते हैं। उदाहरणतया, यदि हम इंद्र देवता को पानी नहीं देंगे तो वे हमें पानी क्यों देंगे। इंदर सेना पर बाल्टी भरकर पानी फेंकना ऐसी ही लोकमान्यता का प्रमाण है। हमारे जीवन के अनुभव से अंधविश्वास के पीछे छिपा तर्क यह है कि यदि काली बिल्ली रास्ता काट जाती है तो अंधविश्वासी लोग कहते हैं कि रुक जाओ, बाद में जाना पर मेरा तर्क यह है कि इसमें कोई सत्यता नहीं है। यह समय को बरबाद करने के अलावा कुछ नहीं है।
प्रश्न 12:
मेढ़क मडली पर पानी डालने को लेकर लखक और जीजी के विचारों में क्या भिन्नता थी?
उत्तर -
मेढक मंडली पर पानी डालने को लेकर लेखक का विचार यह था कि यह पानी की घोर बर्बादी है। भीषण गर्मी में जब पानी पीने को नहीं मिलता हो और लोग दूर-दराज से इसे लाए हों तो ऐसे पानी को इस मंडली पर फेंकना देश का नुकसान है। इसके विपरीत, जीजी इसे पानी की बुवाई मानती हैं। वे कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं, तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँवों, शहरों में, कस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।

काले मेघा पानी दे


पठित गद्यांश


निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए =
प्रश्न 1:
उन लोगों के दो नाम धे-इंदर सैना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछल-कूद, उनके शोर-शराब और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ कॉदों से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेढ़ क-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ एक जधिया या कभी-कभी सिर्फ लैंगोटी। एक जगह इकड़े होते थे। पहला जयकारा लगता था, 'बोल गंगा मैया की जय जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियों को बारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी।
प्रश्न
1, गाँव से पानी मांगने वालों के नाम क्या थे? ये पानी क्यों माँगते थे
2. मेक-मंझली से क्या तात्पर्य है।
3. मेढ़क सडली में कैसे लड़के होते थे?
4. इंदर सेना के जयकारे की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
उत्तर -
1. गाँव से पानी माँगने वालों के नाम थे-मेढक-मंडली या इंदर सेना। गाँवों में जब आषाढ़ में पानी नहीं बरसता धा या' सूखा पड़ने का अंदेशा होता था तो लड़के इंद्र देवता से पानी माँगते थे।
2. जो बच्चे मेड़क की तरह उछल-कूद, शोर-शराबा व कीचड़ करते थे, उन्हें मेढक-मंडली कहा जाता था।
3, मेढकमंडली में दस-बारह वर्ष से सौलह अठारह वर्ष के लड़के होते थे। इनका रंग साँवला होता था तथा ये वस्त्र के नाम पर सिर्फ एक धिया या कभी-कभी सिर्फ लँगोटी पहनते थे।
4. इंदर सेना या मेढक मंडली का जयकारा "बोल गंगा मैया की जय” सुनते ही लोगों में हलचल मच जाती थी। स्त्रियाँ और लकियाँ बार से इस टोली के क्रियाकलाप देखने लगती थीं।
प्रश्न 2:
सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर भाषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता, पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दिखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मान खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लूऐसी कि चलते चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर इंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब्य अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्यामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए।
प्रश्न
1. लोगों की परेशानी का क्या कारण था?
2. गाँव में लोगों को क्या दशा होती थी ?
३. गाँव वाले बारिश के लिए क्या उपाय करते थे।
4. इंदर सेना क्या है? वह वया करती हैं।
उत्तर -
1, जब आषाढ़ के पंद्रह दिन बीत चुके होते थे तथा बादलों का नामोनिशान नहीं दिखाई होता था। कुओं का पानी सूख रहा होता था। नलों में पानी नहीं आता। यदि आता भी था तो वह बेहद गरम होता था इसी कारण लोगों को परेशानी होती थी।
2, गाँव में बारिश न होने से हालत अधिक खराब होती थी। खेतों में जहाँ जुताई होनी चाहिए, वहाँ की मिट्टी सूखकर - पत्थर बन जाती थी, फिर उसमें पपड़ी पड़ जाती थी और जमीन फटने लगती थी। लू के कारण लोग चलते-चलते गिर जाते थे। पशु प्यास के कारण मरने लगे थें।
3, गाँव वाले बारिश के देवता इंद्र से प्रार्थना करते थे। वे कहीं पूजा-पाठ करते थे तो कहीं कथा-कीर्तन करते थे। इन सबमें विफल होने के बाद इंदर सेना कीचड़ व पानी में लथपथ होकर वर्षा की गुहार लगाती थी।
4, इंदर सैना उन किशोरों का झुंड होता था जो भगवान इंद्र से वर्षा माँगने के लिए गली-गली घूमकर लोगों से पानी माँगते थे। वे लोगों से मिले पानी में नहाते धे, उछलते-कूदते थे तथा कीचड़ में लथपथ होकर मेघों से पानी माँगते थे।
प्रश्न 3:
पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आतीं धीं कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ प#2366;नी बाल्टी भर-भरकर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं। तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं? नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।
प्रश्न
1. लेखक को कौन-सी बात समझ में नहीं आती?
2. देश को किस तरह के अंधविश्वास से क्षति होती हैं?
3. कौन कहता है इन्हे इंद्र की रोना ? - इरा कथन का व्यग्य स्पष्ट कीजिए।
4. इदर सेना के विरोध में लेखक क्या तक देता हैं?
उत्तर -
1. लेखक को यह समझ में नहीं आता कि जब पानी की इतनी कमी है तो लोग कठिनाई से इकट्टे किए हुए पानी को बाल्टी भर-भरकर इंदर सेना पर क्यों फेंकते हैं। यह पानी की बरबादी है।
2. वर्षा न होने पर पानी की कमी हो जाती है। ऐसे समय में ग्रामीण बच्चों की मंडली पर पानी फेंककर गलियों में पानी बरबाद करने जैसे अंधविश्वासों से देश की क्षति होती है।
3 इस कथन से लेखक ने इंदर सेना और मेढक-मंडली पर व्यंग्य किया है। ये लोग पानी की बरबादी करते हैं तथा पाखंड फैलाते हैं। यदि ये इंद्र से औरों को पानी दिलवा सकते हैं तो अपने लिए ही क्यों नहीं माँग लेते।
4 इंदर सेना के विरोध में लेखक तर्क देता है कि यदि यह सेना इंद्र महाराज से पानी दिलवा सकती है तो यह अपने लिए घड़ा-भर पानी क्यों नहीं माँग लेती? यह सेना मुहल्ले का पानी क् बरबाद करवा रही है?
प्रश्न 4
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमारसुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सी समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे धीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज- त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमारसुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था।
प्रश्न:
1. लेखक बचपन में क्या काम करता था?
2 लेखक अंधविश्वासों को मानने के लिए क्यों विवश होता था?
3. अधविश्वासों के खिलाफ तरकस में तीर रखकर घूमने का आशय क्या हैं?
उत्तर -
1. लेखक बचपन में आर्यसमाजी संस्कारों से प्रभावित था। वह कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। वह अंधविश्वासों के खिलाफ़ प्रचार करता था। वह मेढक-मंडली को नापसंद करता था।
2. जीजी तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को मानती थीं तथा वे इन सबके विधि-विधान लेखक से पूरा करवाती थीं। लेखक को बहुत चाहती थीं। इस कारण लेखक को इन अंधविश्वासों को मानने के लिए विवश होना पड़ता था।
3. अंधविश्वासों के खिलाफ़ तरकस में तीर रखकर घूमने का आशय है-अंधविश्वासों के खिलाफ़ जन-जागृति फैलाते हुए उन्हें समाप्त करने का प्रयास करना।
प्रश्न 5:
लेकिन इस बार मैंने साफ़ इन्कार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भरकर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले गईं-उनके बूढे पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लडू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से औला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, 'देख भइया, रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?" मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोली, "तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।"
प्रश्न:
1. लेखक ने किस काय से इनकार किया तथा क्यों?
2 पानी डालते समय जीजी की क्या हालत थी?
3 जीजी ने नाराज लेखक से क्या कहा?
4 जीजी ने दान के पक्ष में क्या तर्क दिए?
उत्तर -
1. लेखक ने मेक-मंडली पर बाल्टी भर पानी डालने से साफ़ इनकार कर दिया क्योंकि वह इसे पानी की बरबादी समझता है और इसे अंधविश्वास मानता है।
2 पानी डालते समय जीजी के हाथ कॉप रहे थे तथा उसके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे।
3 जीजी ने नाराज लेखक को पहले लड़ भरी खाने को दिए पर लेखक के न खाने पर वे तमतमाई तथा फिर उसे स्नेह से कहा कि यह| अंधविश्वास नहीं है। यदि हम इंद्र को अध्य नहीं चढ़ाएँगे तो भगवान इंद्र हमें पानी कैसे देंगे।
4. जीजी ने दान के पक्ष में यह तर्क दिया कि यदि हम इंदर सेना को पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देगा। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह बादलों पर अध्य चढ़ाना है। जो हम पाना चाहते हैं, उसे पहले दान देना पड़ता है। तभी हमें वह बढ़कर मिलता है। ऋषि मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।
प्रश्न 6:
फिर जीजी बोलीं, "देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है। कि अगर तीस-चालीस मन गेहूं उगाना है तो किसान पाँच-छह से अच्छा गेहूं अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे के समय हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। 'यथा राजा तथा प्रजा' सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि 'यथा प्रजा तथा राजा'। यह तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।" जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाँधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।
प्रश्नः
1. जीजी अपनी बात के समर्थन में क्या तर्क देती है ?
2. जीजी पानी की बुवाई के संबंध में क्या बात कहती है ?
3. जीजी द्वारा गांधी जी का नाम लेने के पीछे क्या कारण था ?
4. 'यथा राजा तथा प्रजा' व 'यथा प्रजा तथा राजा' में क्या अंतर है?
उत्तर -
1. जीजी अपनी बात के समर्थन में खेत की बुवाई का तर्क देती हैं। किसान तीस-चालीस मन गेहूं की फसल लेने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से खेत में क्यारियाँ बनाकर डालता है।
2. जीजी पानी की बुवाई के विषय में कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँव, शहर, कस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।
3. जीजी के लड़के को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थीं। उसके बाद से जीजी गांधी महाराज की बात करने लगी थीं।
4. 'यथा राजा तथा प्रज्ञा' का अर्थ है-राजा के आचरण के अनुसार ही प्रज्ञा का आचरण होना। 'यथा प्रजा तथा राजा’ का आशय है- जिस देश की जनता जैसी होती है, वहाँ का राजा वैसा ही होता है।
प्रश्न 7:
कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भो में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं। पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पिया के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
प्रश्न:
1. लेखक के मन को क्या बातें कचोटती हैं और क्यों?
2. गगरी तथा बैल के उल्लख से लखक क्या कहना चाहता हैं?
3. भ्रष्टाचार की चचा करते समय क्या आवश्यक हैं और क्यों?
4. 'आखिर कब बदलेगी यह स्थिति आपके विचार से यह स्थिति कब और कैसे बदल सकती है?
उत्तर -
1. लेखक के मन को यह बात बहुत कचोटती है कि लोग आज अपने स्वार्थ के लिए बड़ी-बड़ी माँगें करते हैं, स्वार्थों की घोषणा करते हैं। उसे यह बात इसलिए कचोटती है क्योंकि वे न तो त्याग करते हैं और न अपना कर्तव्य करते हैं।
2. गगरी और बैल के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि आज हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है परंतु भ्रष्टाचार के कारण वे । साधन लोगों के पास तक नहीं पहुँच पाते। इससे देश की जनता की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं।
3. भ्रष्टाचार की चर्चा करते समय यह आवश्यक है कि हम ध्यान रखें कि कहीं हम उसमें लिप्त तो नहीं हो रहे हैं, क्योंकि हम भ्रष्टाचार में| शामिल हो जाते हैं और हमें यह पता भी नहीं चल पाता है।
4 ‘आखिर कब बदलेगी यह स्थिति मेरे विचार से यह स्थिति तब बदल सकती है जब समाज और सरकार में इसे बदलने की दृढ़ इच्छा शक्ति जाग्रत हो जाए और लोग स्वार्थ तथा भ्रष्टाचार से दूरी बना लें।

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