NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल

शिरीष के फूल Class 12 Hindi Aroh NCERT Solutions
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Class 12 Hindi Aroh Chapter 17 CBSE NCERT Solutions
Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
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Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 12th Class |
Subject: | Hindi Aroh |
Chapter: | 17 |
Chapters Name: | शिरीष के फूल |
Medium: | Hindi |
शिरीष के फूल Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions
You can refer to MCQ Questions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल to revise the concepts in the syllabus effectively and improve your chances of securing high marks in your board exams.
शिरीष के फूल
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?
अवधूत सुख-दुख की परवाह न करते हुए हमेशा हर पल हर हाल में प्रसन्न रहता है। वह भीषण कठिनाई और कष्टों में भी जीवन की एकरूपता बनाए रखता है। शिरीष के वृक्ष भी उसी कालजयी अवधूत के समान है। आसपास फैली हुई गर्मी, ताप और लू में भी वह हमेशा पुष्पित और सरस रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा हुआ बड़ा सुंदर दिखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को अवधूत कहा है। शिरीष भी मानो अवधूत के समान मृत्यु और समय पर विजय प्राप्त करके लहराता रहता है।
प्रश्न 2. हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है- प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
हृदय की कोमलता को बचाने के लिए कभी-कभी व्यवहार में कठोरता लाना आवश्यक हो जाता है। इस संदर्भ में नारियल का उदाहरण ले सकते हैं जो बाहर से कठोर होता है और अंदर से कोमल। शिरीष का फूल भी अपनी सुरक्षा को बनाए रखने के लिए बाहर से कठोर हो जाता है। यद्यपि परवर्ती कवियों ने शिरीष को देखकर यही कहा था कि इसका तो सब कुछ कोमल है। परंतु इसके फूल बड़े मजबूत होते हैं। नए फूल, पत्ते आने पर अपने स्थान को नहीं छोड़ते। अतः अंदर की कोमलता को बनाए रखने के लिए कठोर व्यवहार भी जरूरी है।
प्रश्न 3. द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन स्थितियों में अविचल रहकर जीजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
निश्चय से आज का जीवन अनेक कठनाइयों से घिरा हुआ है। कदम-कदम पर कोलाहल व संघर्ष से घिरा हुआ हैं। लेकिन द्विवेदी जी ने हमें इन स्थितियों से अविचलित रहकर जिजीविशु बने रहने की शिक्षा दी है। शिरीष का फूल भयंकर गर्मी और लू में अनासक्ति योगी के समान विचलित खड़ा रहता है। और विषम परिस्थितियों में भी वे अपने जीवन जीने की इच्छा नहीं छोड़ता। आज हमारे देश में चारों ओर भ्रष्टाचार, अत्याचार फैला हुआ है। यह सब देखकर हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि हमें स्थिर और शांत रहकर जीवन के संघर्षों का सामना करना चाहिए।
प्रश्न 4. "हाय वह अवधूत आज कहाँ है।" ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?
अवधूत आत्मबल का प्रतीक है। वे आत्मा की साधना में लीन रहते हैं। लेखक ने कबीर, कालिदास महात्मा गाँधी को अवधूत कहा है। परंतु आज के बड़े-बड़े संन्यासी देहबल, धनबल, मायाबल करने में लगे हुए हैं। लेखक का यह कहना सर्वथा उचित है कि आज भारत में सच्चे आत्मबल वाले संन्यासी नहीं रहे। लेखक यह भी स्पष्ट करना चाहता है कि आत्मबल की अपेक्षा देहबल को महत्त्व देने के कारण ही हमारे सामने सभ्यता का अंत हो चुका है।
प्रश्न 5. कवि(साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय एक आवश्यक है। ऐसा विचार कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विचार पूर्वक समझाएँ।
कवि अथवा साहित्यकार समाज में सर्वोपरि स्थान रखता है। उससे ऊँचे आदर्शों की अपेक्षा की जाती है। एक सच्चा कवि अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता होने के कारण कठोर व शुष्क नीतिज्ञ बन जाता है। परंतु कवि के पास विदग्ध प्रेमी का हृदय भी होना चाहिए जिससे वह नियम व मानदण्डों को महत्त्व न दें। साहित्यकारों में दोनों विपरीत गुणों का होना आवश्यक है। तुलसीदास, कालिदास आदि महान कवि थे। उन्होंने जहाँ एक और मर्यादाओं का समुचित पालन किया, वहीं दूसरी ओर वे मधुरता के रस में डूबे रहे। जो साहित्यकार इन दोनों का निर्वाह कर सकता है। वहीं साहित्यकार हो सकता है।
प्रश्न 6. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
काल सर्वग्रासी और सर्वनाशी है वह सबको अपना ग्रास बना लेता है। काल की मार से बचते हुए दीर्घजीवी वही हो सकता है जो अपने व्यवहार में समय के साथ परिवर्तन लाता है। आज समय और समाज बदल चुका है। शिरीष के वृक्ष का उदाहरण इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। वह अग्नि, लू तथा तपन के साम्राज्य में भी स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेता है और प्रसन्न होकर फलता फूलता रहता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति अपने व्यवहार में जड़ता को त्यागकर स्थितियों के अनुसार गतिशील बन जाता है वही दीर्घजीवी होकर जीवन का रस भोग सकता है।
प्रश्न 7. आशय स्पष्ट कीजिए क) दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहे तो काल देवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे।
जीवनशक्ति और काल रूपी अग्नि का निरंतर संघर्ष चल रहा है। यह संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता। जो लोग अज्ञानी हैं वे समझते हैं कि जहाँ पर बने हैं वहाँ देर तक बने रहेंगे तो काल देवता की मार से बच जाएँगे, परंतु उनकी यह सोच गलत है। यदि यमराज की मार से बचना है तो मनुष्य को हिलते डुलते रहना चाहिए, स्थान बदलते रहना चाहिए। ऐसा करने से काल की मार से बचा जा सकता है।
ख) जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है? मैं कहता हूँ कि कवि बनना है तो मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।
जो कवि अपने कविकर्म में लाभ-हानि सुख-दुख यश-अपयश की परवाह न करके जीवन यापन करता है। वही सच्चा कवि कहलाता है। इसके विपरीत जो कवि अनासक्त नहीं रह सकता, मस्त मौला नहीं बन सकता, बल्कि जो अपनी कविता के परिणाम, लाभ हानि के चक्कर में फँस जाता है; वह सच्चा कवि नहीं कहा जा सकता है। लेखक का विचार है कि सच्चा कवि वही है जो मस्तमौला है। जिसे न तो सुख-दुख, न लाभ-हानि की चिंता है।
ग) फल हो या पेड़ वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
कोई फल का पेड़ अपने आप में समाप्त नहीं है बल्कि वह तो एक ऐसी अँगुली है जो किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए इशारा कर रही है। वह पेड़, फल हमें यह बताने का प्रयास करता है कि उसको उत्पन्न करने वाली या बनाने वाली कोई और शक्ति है। हमें उसे जानने का प्रयास करना चाहिए।
शिरीष के फूल
अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1:
कालिदास ने शिरीष की कोमलता और दविवेदी जी ने उसकी कठोरता के विषय में क्या कहा है ? “शिरीष के फुल पाठ के आधार पर बताए।
उत्तर -
कालिदास और संस्कृत साहित्य ने शिरीष को बहुत कोमल माना है। कालिदास का कथन है कि 'पदं सहेत भ्रमरस्य पेलयं शिरीष पुष्यं न पुनः पतन्निणाम्-शिरीष पुष्य केवल भैरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं। लेकिन इससे हजारों प्रसाद विवेदी सहमत नहीं हैं। उनका विचार है कि इसे कोमल मानना भूल है। इसके फल इतने मजबूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते, तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन पर जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है तब भी शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं।
प्रश्न 2:
शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को किस महात्मा की यद् आती है और क्यों?
उत्तर -
शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक हजारी प्रसाद द्रविवेदी को हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु वधूत है, क्योंकि वह बाहय परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू सत्र में शांत बना रहता है और पुष्पित पल्लवित होता रहता है। इसी प्रकार महात्मा गांधी भी मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खराबे के बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक को गांधी जी की याद आ । जाती है, जिनके व्यक्तित्व ने समाज को सिखाया कि आत्मबल, शारीरिक बल से कहीं ऊपर की चीज है। आत्मा की शक्ति है। जैसे शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल, इतना कठोर हो सका है, वैसे ही महात्मा गांधी भी कठोर-कोमल व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और वह मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।
प्रश्न 3:
शिरीष की तीन ऐसी विशेषताओं का उल्लेख कोजिए जिनके कारण आचार्य हजारी प्रसाद दविवेद ने उसे 'कलणारी अवधूत कहा है।
उत्तर -
आचार्य हजारी प्रसाद विवेदी ने शिरीष को 'कालजयी अवधूत' कहा है। उन्होंने उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं -
1. वह संन्यासी की तरह कठोर मौसम में जिंदा रहता है।
2, वह भीषण गरमी में भी फूलों से लदा रहता है तथा अपनी सरसता बनाए रखता है।
3. वह कठिन परिस्थितियों में भी घुटने नहीं टेकता।
4. वह संन्यासी की तरह हर स्थिति में मस्त रहता है।
प्रश्न 4:
लेखक ने शिरीष के माध्यम से कि दवदव को व्यक्त किया है?
उत्तर -
लेखक ने शिरीष के पुराने फलों की अधिकार-लिप्सु लड़खड़ाहट और नए पत्ते-फलों द्वारा उन्हें धकियाकर बाहर निकालने में साहित्य, समाज व राजनीति में पुरानी त नयी पीढ़ी के द्वंद्व को बताया है। वह स्पष्ट रूप से पुरानी पीढ़ी व हम सब में नएपन के स्वागत का साहस देखना चाहता है।
प्रश्न 5:
कालिदास-कृत शकुंतला के सौंदर्य-वर्णन को महत्व देकर लेखक 'सौंदर्य को स्त्री के एक मूल्य के रूप में स्थापित करता प्रतीत होता हैं। क्या यह सत्य हैं? यदि हों, तो क्या ऐसा करना उचित हैं?
उत्तर -
लेखक ने शकुंतला के रौंदर्य का वर्णन करके उसे एक स्त्री के लिए आवश्यक तत्व स्वीकार किया है। प्रकृति ने स्त्री को कोमल भावनाओं से मुक्त बनाया है। स्त्री को उसके सौंदर्य से ही अधिक गाना गया है, न कि शक्ति से। यह तथ्य आज भी उतना ही सत्य है। स्त्रियों का अलंकारों व वस्त्रों के प्रति आकर्षण भी यह सिद्ध करता है। यह उचित भी है क्योंकि स्त्री प्रकृति की सुकोमल रचना है। अतः उसके साथ छेड़छाड़ करना अनुचित है।
प्रश्न 6:
ऐसे दुमदारों से तो लडूरे भले-इसका भाच स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
लेखक कहता है कि दुमदार अर्थात सजीला पक्षी कुछ दिनों के लिए सुंदर नृत्य करता है, फिर दुम गवाकर कुरूप हो जाता है। यहाँ लेखक मोर के बारे में कह रहा है। वह बताता है कि सौंदर्य क्षणिक नहीं होना चाहिए। इससे अच्छा तो पूँछ केटा पक्षी ही ठीक है। उसे कुरुप होने की दुर्गति तो नहीं झेलनी पड़ेगी।
प्रश्न 7:
विज्जिका ने ब्रहमा, वाल्मीकि और व्यास के अतिरिक्त किसी को कवि क्यों नहीं माना है?
उत्तर -
कर्णाट राज की प्रिया विज्जिका ने केवल तीन ही को कवि माना है-ब्रहमा, वाल्मीकि और व्यास को। ब्रहमा ने वेदों की रचना की जिनमें ज्ञान की अथाह राशि है। वाल्मीकि ने रामायण की रचना की जो भारतीय संस्कृति के मानदंडों को बताता है। व्यास ने महाभारत की रचना की, जो अपनी विशालता व विषय-व्यापकता के कारण विश्व के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। भारत के अधिकतर साहित्यकार इनसे प्रेरणा लेते हैं। अन्य साहित्यकारों की रचनाएँ प्रेरणास्रोत के रूप में स्थापित नहीं हो पाई। अतः उसने किसी और व्यक्ति को कवि नहीं माना
शिरीष के फूल
पठित गद्यांश
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
प्रश्न 1:
जहाँ बैठ के यह लेख लिख रहा हूँ उसके आगे-पीछे, दायें-बायें, शिरीष के अनेक पेड़ हैं। जेठ की जलती धूप में, जबकि धरित्री निधूम अग्निकुंड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों से लद गया था। कम फूल इस प्रकार की गरमी में फुल सकने की हिम्मत करते हैं। कर्णिकार और आरग्वध (अमलतास) की बात मैं भूल नहीं रहा हूँ। वे भी आस-पास बहुत हैं। लेकिन शिरीष के साथ आरग्यध की तुलना नहीं की जा सकती। वह पंद्रह-बीस दिन के लिए फूलता है, वसंत ऋतु के पलाश की भॉति। कबीरदास को इस तरह पंद्रह दिन के लिए लहक ठ। पसंद नहीं था। यह भी क्या कि दस दिन फूले और फिर खंड के खंड 'दिन दस फूला फूलिक, संखड़ गया पलारा!' ऐसे दुमदारों से तो लैंडूरे भले। फूल है शिरीष। वसंत के भागमन के साथ लहक उठता है, भाषाढ़ तक जो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्घात फूलता रहता है।
प्रश्न
1, लेखक कहाँ बैठकर लिख रहा है? वहाँ कैसा वातावरण हैं?
2. लेखक शिरीष के फूल की क्या विशेषता बताता हैं?
3. कबीरदास को कौन-से फूल पसंद नहीं थे तथा क्यों?
4, शिरीष किस ऋतु में लहकता है?
उत्तर -
1. लेखक शिरीष के पेड़ों के समूह के बीच में बैठकर लिख रहा है। इस समय जेठ माह की जलाने वाली धूप पड़ रही है तथा सारी धरती अग्निकुंड की भाँति बनी हुई है।
2, शिरीष के फूल की यह विशेषता है कि भयंकर गरमी में जहाँ अधिकतर फूल खिल नहीं पाते, वहाँ शिरीष नीचे से ऊपर तव फूलों से लदा होता है। ये फूल लंबे समय तक रहते हैं।
3, कबीरदास को पलास (ढाक के फूल पसंद नहीं थे क्योंकि वे पंद्रह-बीस दिन के लिए फूलते हैं तथा फिर अंखड़ हो जाते हैं। उनमें जीवन-शक्ति कम होती है। कदीरदात को अल्पायु वाले कमजोर फूल पसंद नहीं थे।
4, शिरीष वसंत ऋतु आने पर लहक उठता है तथा आषाढ़ के महीने से इसमें पूर्ण मस्ती होती है। कभी-कभी वह उमस भरे शादों मास तक भी फूलता है।
प्रश्न 2:
मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्धात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्रप्रचार करता रहता है। यद्यपि कवियों की भाँति हर फूल-पत्ते को देखकर मुग्ध होने लायक हृदय विधाता ने नहीं दिया है, पर नितांत देंठ भी नहीं हैं। शिरीष के पुष्प मेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल जरूर पैदा करते हैं।
प्रश्न:
1, अवधूत किसे कहते हैं? शिरीष को कालजयी अवधूत क्यों कहा गया है?
2. 'नितांत 3 से यहाँ क्या तात्पर्य है? लेखक स्वयं को नितांत ठेंठ क्यों नहीं मानता ?
३. शिरीष जीवन की अजेयता का मंत्र कैसे प्रचारित करता रहता है?
4. आशय स्पष्ट कीजिए-'मन रम गया तो भरे भादों में भी नियति कुलता रहता है।
उत्तर -
1. 'अवधूत वह है जो सांसारिक मोहमाया से ऊपर होता है। वह संन्यासी होता है। लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है।
योंकि वह कठिन परिस्थितियों में भी फलता फूलता रहता है। भयंकर गरमी, लू, उमस आदि में भी शिरीष का पे फूलों से लदा हुआ मिलता है।
2. 'निति हुँठ' का अर्थ है-रसहीन होना। लेखक स्वयं को प्रकृति-प्रेमी व भावुक मानता है। उसका मन भी शिरीष के फूलों को देखकर तरंगित होता है।
3. शिरीष के पेड़ पर फूल भयंकर गरमी में आते हैं तथा लंबे समय तक रहते हैं। उमस में मानव बेचैन हो जाता है तथा लू से शुष्कता आती है। ऐसे समय में भी शिरीष के पेड़ पर फूल रहते हैं। इस प्रकार वह अवधूत की तरह जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचारित करता है।
4, इसका अर्थ यह है कि शिरीष के पेड़ वसंत ऋतु में फूलों से लद जाते हैं तथा आषाढ़ तक मसा रहते हैं। आगे मौसम की स्थिति में बड़ा फेरबदल न हो तो भादों की उमस व गरमी में भी ये फूलों से लदे रहते हैं।
प्रश्न 3:
शिरीष के फूले की कोमलता देखकर परवती कवियों ने समझा कि उसका सब-कुछ कोमल है! यह भूल है। इसके फल इतने मजबूत होते हैं। कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धक्रियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली मुष्प-पन्न से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह ख ड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आत#2368; हैं, जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
प्रश्न
1. शिरीष के नए फल और पत्तों का पुराने फलों के प्रति व्यवहार संसार में किस रूप में देखने को मिलता है?
2, किसे आधार मानकर बाद के कवियों को परवर्ती कहा गया है ? उनकी समझ में क्या भूल थी ?
3. शिरीष के फूलों और फलों के स्वभाव में क्या अंतर हैं?
4. शिरीष के फूलों और आधुनिक नेताओं के स्वभाव में लेखक को क्या समय दिखाई पड़ता है?
उत्तर -
1. शिरीष के नए फल व पत्ते नवीनता के परिचायक हैं तथा पुराने फल प्राचीनता के नयी पीढ़ी प्राचीन रूढ़िवादिता को धकेलकर नव- निर्माण करती है। यही संसार का नियम है।
2. कालिदास को भाधार मानकर बाद के कवियों को परवर्ती कहा गया है। उन्होंने भी भूल से शिरीष के फूलों को कोमल मान लिया।
3, शिरीष के फूल बेहद कोमल होते हैं, जबकि फल अत्यधिक मजबूत होते हैं। ये तभी अपना स्थान छोड़ते हैं अब नए फल और पत्ते मिलकर उन्हें धकियाकर बाहर नहीं निकाल देते।
4, लेखक को शिरीष के फलों व आधुनिक नेताओं के स्वभाव में अडिगता तथा कुर्सी के मोह को समानता दिखाई पड़ती है। ये दोनों तभी स्थान छोड़ते हैं जब उन्हें धकियाया जाता है।
प्रश्न 4:
मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य है। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगाई थी-धरा को प्रमान यही तुलसी, जो फरास झरा, जो बरा सो बुताना!' मैं शिरीष के फूलों को देखकर कहता हैं कि क्यों नहीं फलते ही समझ लेते बाबा कि झड़ना निश्चित है। सुनता कौन है? महाकालदेवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं, जिनमें प्राणकण थोड़ा भी ऊध्वमुखी है, वे टिक जाते हैं। दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहे तो कालदेवता की। आँख बचा जाऐंगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे!
प्रश्न:
1. जीवन का सत्य वया हैं?
2. शिरीष के फूलों को देखकर लेखक क्या कहता हैं?
3, महाकाल के कोई चलाने से क्या अभिप्राय है?
4. मुर्ख व्यक्ति क्या समझते हैं ?
उत्तर -
1. जीवन का सत्य है वृद्धावस्था व मृत्यु। ये दोनों जगत के अतिपरिचित व अतिप्रामाणिक सत्य हैं। इनसे कोई बच नहीं सकता।
2, शिरीष के फूलों को देखकर लेखक कहता है कि इन्हें फूलते ही यह समझ लेना चाहिए कि झड़ना निश्चित है।
3. इसका अर्थ यह है कि यमराज निरंतर कोड़े बरसा रहा है। समय-समय पर मनुष्य को कष्ट मिलते रहते हैं, फिर भी मनुष्य जीना चाहता है।
4, मूर्ख व्यक्ति समझते हैं कि वे जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो मृत्यु से बच जाएँगे। वे समय को धोखा देने की कोशिश करते हैं।
प्रश्न 5:
एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधों का देना। जब धरती और भासमान जलते रहते हैं, तब भी यह हजरत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आ याम मा रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह इस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस पता है। जरूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर तू के समय इतने कमल तनुजाल और ऐसे सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस धाएँ निकली हैं। कबीर बहुत कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और देपरवाह, पर सरस और मादक। कालिदास भी जस अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्ड़ाना मरूती से ही उपज सकते हैं और 'मेघदूत' का काव्य उसी प्रकार के भनासक्त भनाविल उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझगया, वह भी क्या कवि है?
प्रश्न:
1. लेखक ने शिरीष को क्या संज्ञा दी है तथा क्यों ?
2. 'अवधूतों के मुंह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं?-आशय स्पष्ट कीजिए।
3. कबीरदास पर लेखक ने क्या टिप्पणी की है ?
4. कदीरदास पर लेखक ने क्या टिप्पणी की हैं?
उत्तर -
1. लेखक ने शिरीष को अवधूत की संज्ञा दी है क्योंकि शिरीष भी कठिन परिस्थितियों में मस्ती से जीता है। उसे संसार में किसी से मोह नहीं है।
2. लेखक कहता है कि अवधूत जटिल परिस्थितियों में रहता है। फक्कड़पन, मस्ती व अनासक्ति के कारण ही वह सरस रचना कर सकता है।
3. कालिदास को लेखक ने 'अनासक्त योगी कहा है। उन्होंने मेघदूत' जैसे सरस महाकाव्य की रचना की है। बाहरी सुख-दुख से दूर होने वाला व्यक्ति ही ऐसी रचना कर सकता है।
4. कबीरदास शिरीष के समान मा, फक्कड़ व सरस थे। इसी कारण उन्होंने संसार को सरस रचनाएँ दीं।
प्रश्न 6:
कालिदास वजन ठीक रख सकते थे, वे मजाक व अनासक्त योगी की स्थिर-प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय पा चुके थे। कवि होने से क्या होता है? मैं भी लंद बना लेता हूँ तुक जोड़ लेता हूँ और कालिदास भी छंद बना लेते थे-तुक भी जोड़ ही सकते होंगे इसलिए हम दोनों एक श्रेणी के नहीं हो जाते। पुराने सहुदय ने किसी ऐसे ही दावेदार को फटकारते हुए कहा था-'वयमपि कवयः कवयः कवयस्ते कालिदासाह्या!' में तो मुग्ध और विस्मय-विमूढ़ होकर कालिदास के एक-एक श्लोक को देखकर हैरान हो जाता हैं। अब इस शिरीष के पूल का ही एक उदाहरण लीजिए। शकुंतला बहुत सुंदर थी। सुंदर क्या होने से कोई हो जाता है? देखना चाहिए कि कितने सुंदर हृदय में वह सौंदर्य डुबकी लगाकर निकला हैं। शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी। विधाता की ओर से कोई कार्पण्य नहीं था, कवि की ओर से भी नहीं। राजा दुष्यंत भी भले प्रेमी थे। उन्होंने शकुंतला का एक चित्र बनाया था, लेकिन रह रहकर उनका मन खीझ उठता था। 3हैं कहीं-न-कह। का ठूट गया है। बड़ी देर के बाद उन्हें समझ में आया कि शकुंलता के कानों में वे उस शिरीष पुष्य को देना भूल गए हैं, जिसके करार गंडस्थल तक लटके हुए थे, और रह गया है शरच्चंद्र की किरणों के समान कोमल और शुभ्र मृणाल का हार।
प्रश्न
1. लेखक कालिदास को श्रेष्ठ कवी वयों मानता है?
2. भाम कवि व कालिदास में क्या अंतर हैं?
3. 'शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी"-आशय स्पष्ट करें।
4. दुष्यंत वे खीझने का क्या कारन था ? अंत में उसे क्या समझ में आया?
उत्तर -
1, लेखक ने कालिदास को श्रेष्ठ कवि माना है कि कालिदास के शब्दों व अर्थों में साथ है। वे अनासक्त योगी की तरह रियर प्रज्ञता व विदग्ध प्रेमी का हृदय भी पा चुके थे। श्रेष्ठ कवि के लिए यह गुण आवश्यक है।
2. ओम कवि शब्दों की लय, तुक व छेद से संतुष्ट होता है, परंतु विषय की गहराई पर ध्यान नहीं देता है। हालांकि अकालिदास कविता के बाहरी तत्र्यों में विशेषज्ञ तो थे ही, वे विषय में डूबकर लिखते थे।
3. लेखक का मानना है कि शकुंतला सुंदर थी, परंतु देखने वाले की दृष्टि में सौंदर्यबोध होना बहुत जरूरी है। कालिदास की सौंदर्य दृष्टि के कारण ही शकुंतला का सौंदर्य निखरकर भाया है। यह कवि की कल्पना का चमत्कार है।
4, दुष्यंत ने शकुंतला का चित्र बनाया था, परंतु उन्हें उसमें संपूर्णता नहीं दिखाई दे रही थी। काफी देर बाद उनकी समझ में आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष पुष्प नहीं पहनाए धे, गले में मृणाल का हार पहनाना भी शेष था।
प्रश्न 7:
कालिदास सौंदर्य के बाहय आवरण को भेदकर उसके भीतर तक पहुँच सकते थे, दुख हो कि सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासक्त कृषीवल की भाँति खींच लेते थे जो निर्दलित ईक्षुदंड से रस निकाल लेता है। कालिदास महान थे, क्योंकि ये अनासक्त रह सके थे। कुछ इसी श्रेणी की अनासक्ति भाधुनिक हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत में है। कविवर रवींद्रनाथ में यह अनासक्ति थी। एक जगह उन्होंने लिखा-'राजधान का सिंहद्वार कितना हीं अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यहीं बताना उसका कर्तव्य है। फूल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।
प्रश्न:
1. कालिदास की रौंदर्य दूष्टि के बारे में बताइए।
2, कालिदास की समानता आधुनिक काल के किन कवियों से दिखाई गाई ?
3. रवींद्रनाथ ने राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या लिखा हैं?
4. फूलों या पेडों से हमें क्या प्रेरणा मिलती हैं?
उत्तर -
1, कालिदास की सौंदर्य-दृष्टि सूक्ष्म व संपूर्ण थी। वे सौंदर्य के बाहरी आवरण को भेदकर उसके अंदर के सौंदर्य को प्राप्त करते थे। वे दुख या सुख-दोनों स्थितियों से अपना भाव-रस निकाल लेते थे।
2, कालिदास की समानता आधुनिक काल के कवियों सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ टैगोर से दिखाई गई है। इन स में अनासक्त भाय है। तटस्थता के कारण ही ये कविता के साथ न्याय कर पाते हैं।
3, रवींद्रनाथ ने एक जगह लिखा है कि राजोद्यान का सिंहद्धार कितना ही गगनचुंबी वयों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर धयों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर हीं सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद हीं है, यहीं बताना उसका कर्तव्य है।
4. फूलों या पैड़ों से हमें जीवन की निरंतरता की प्रेरणा मिलती है। कला की कोई सीमा नहीं होती। पुष्य या पेड़ अपने सौंदर्य से यह बताते हैं कि यह सौंदर्य अंतिम नहीं है। इससे भी अधिक सुंदर हो सकता है।
प्रश्न 8:
शिरीष तरु सचमुच पक्के भवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाहय परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से शो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा वयों संभव हुआ है? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है।
प्रश्न
1. शिरीष के वृक्ष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है? यह वृक्ष लेखक में किस प्रकार की भावना जाता है ?
2. चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें क्या प्रेरणा दे रहा हैं?
3. गद्यांश में देश के ऊपर के किस बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया है?
4, अपने देश का एक बूढ़ा कौन था ? ऊसे बूढे और शिरीष में समानता का आधार लेखक ने क्या मन है ?
उत्तर -
1. अवधूत से तात्पर्य अनासक्त योगी से है। जिस तरह योगी कठिन परिस्थितियों में भी मस्त रहता है, उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भयंकर गर्मी, जगस में भी फुला रहता है। यह वृक्ष मनुष्य को हर परिस्थिति में संघर्षशील, जुझारू व रारा बनने की भावना गाता
2. चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए तथा हर परिस्थिति में मस्त रहना चाहिए।
3. इस गद्यांश में देश के ऊपर से सांप्रदायिक दंगों, खून-खराबा, मार-पीट, लूटपाट रूपी बवंडर के गुजरने की और संकेत किया गया है।
4, 'अपने देश का एक बूढ़ा महात्मा गांधी है। दोनों में गजब की सहनशक्ति है। दोनों ही कठिन परिस्थितियों में सहण भाय से रहते हैं। इसी कारण दोनों समान हैं।
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