NCERT Solutions | Class 8 Sanskrit Grammar समास-प्रकरणम्

NCERT Solutions | Class 8 Sanskrit Grammar | समास-प्रकरणम् 

NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Grammar समास-प्रकरणम्

CBSE Solutions | Sanskrit Class 8

Check the below NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Grammar समास-प्रकरणम् Pdf free download. NCERT Solutions Class 8 Sanskrit Grammar were prepared based on the latest exam pattern. We have Provided समास-प्रकरणम् Class 8 Sanskrit NCERT Solutions to help students understand the concept very well.

NCERT | Class 8 Sanskrit

NCERT Solutions Class 8 Sanskrit Grammar
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 8th
Subject: Sanskrit Grammar
Chapter:
Chapters Name: समास-प्रकरणम्
Medium: Hindi

समास-प्रकरणम् | Class 8 Sanskrit | NCERT Books Solutions

You can refer to MCQ Questions for Class 8 Sanskrit  समास-प्रकरणम् to revise the concepts in the syllabus effectively and improve your chances of securing high marks in your board exams.

Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions समास-प्रकरणम्

समास – ‘संक्षिप्तीकरणम् एव समासः भवति’ अर्थात् समास शब्द का अर्थ संक्षेप होता है। जहाँ दो या दो से अधिक पद अपने कारक (विभक्ति) चिह्नों को छोड़कर एक हो जाएँ, उन्हें समास कहते हैं। समास के कारण जो नया पद बनता है उसे समस्तपद कहते हैं। जैसे-
नृपस्य सेवकः = नृपसेवकः (समस्त पद)
जब समस्त पद के पदों को अलग-अलग करके उनमें विभक्ति जोड़ देते हैं तो उसे विग्रह कहा जाता है। जैसे-
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समास-प्रकरणम्
इस प्रकार समास के कुल छह भेद माने जाते हैं।

1. अव्ययीभाव समास
जिस समास का पूर्वपद अव्यय हो तथा पूर्वपद की ही प्रधानता हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। समस्त पद बनाने पर पूरा पद ही अव्यय और नपुंसकलिंग बन जाता है।
(i) उप-उप अव्यय का ‘समीप’ अर्थ में प्रयोग होता है। यथा-
उपग्रामम् – ग्रामस्य समीपम् (गाँव के समीप)
उपगंगम् – गंगायाः समीपम् (गंगा के समीप)
उपमुनि – मुनेः समीपम् (मुनि के समीप)

(ii) निर् – निर् अव्यय का ‘अभाव’ अर्थ में प्रयोग किया जाता है। यथा-
निर्जनम् – जनानाम् अभावः (जनों का अभाव / सुनसान)
निर्विघ्नम् – विघ्नानाम् अभावः (विघ्नों का अभाव)
निर्मक्षिकम् – मक्षिकाणाम् अभावः (मक्खियों का अभाव)

(iii) अनु-अनु अव्यय का पश्चात् तथा योग्यता के अर्थ में प्रयोग होता है। यथा-
अनुविष्णु – विष्णोः पश्चात् (विष्णु के पीछे)
अनुरथम् – रथस्य पश्चात् (रथ के पीछे)
अनुरूपम् – रूपस्य पश्चात् (रूप के योग्य)
अनुगुणम् – गुणस्य पश्चात् (गुणों के योग्य)

(iv) प्रति-प्रति अव्यय के साथ आवृत्ति (दोहराना) अर्थ में प्रयोग होता है। यथा-
प्रत्येकम् – एकम् एकम् प्रति (हर एक)
प्रतिगृहम् – गृहे गृहे प्रति (हर घर में)
प्रतिमासम् – मासं मासं प्रति (हर मास)

(v) यथा-यथा अव्यय के साथ अनतिक्रमण (अतिक्रमण या उल्लंघन न करने) के अर्थ में अव्ययीभाव समास होता है। यथा-
यथासमयम् – समयम् अनतिक्रम्य (समय के अनुसार)
यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य (शक्ति के अनुसार)
यथाविधि – विधिम् अनतिक्रम्य (विधि के अनुसार)

(vi) स-सहितम् के अर्थ में
सगर्वम् – गर्वेण सहितम् (गर्व के साथ)
सबलम् – बलेन सहितम् (बलपूर्वक)
सचित्रम् – चित्रेण सहितम (चित्र के साथ)

(vii) अधि-सप्तमी विभक्ति के अर्थ में
अधिगंगम् – गंगायाम् इति (गंगा में)
अधिहरि – हरौ इति (हरि में)

2. तत्पुरुष समास
इस समास में उत्तर पद (बाद वाला पद) प्रधान होता है। इसके पूर्वपद (पहले वाले पद) में द्वितीया विभक्ति से लेकर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। समस्त पद बनाने पर बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है। जैसे-

(i) द्वितीया तत्पुरुष – इस समास का उत्तर पद श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त, आपन्न, गमी तथा बुभुक्षुः आदि में से कोई एक होता है। यथा-
ग्रामं गतः – ग्रामगतः (गाँव को गया हुआ)
नरकं पतितः – नरकपतितः (नरक में गिरा हुआ)
कृष्णं श्रितः – कृष्णश्रितः (कृष्ण पर आश्रित)
भयम् आपन्नः – भयापन्नः (भय को प्राप्त हुआ)
अन्नं बुभुक्षुः – अन्नबुभुक्षुः (अन्न को खाने का इच्छुक)

(ii) तृतीया तत्पुरुष – पूर्व, सदृश, सम, कलह, निपुण तथा मिश्र शब्दों के संयोग में तृतीया तत्पुरुष समास होता है। यथा-
सप्ताहेन पूर्वः – सप्ताहपूर्वः (एक सप्ताह पहले का)
मात्रा सदृशः – मातृसदृशः (माता के समान)
वाचा कलहः – वाक्कलहः (वाणी के द्वारा झगड़ा)
धनेन हीनः – धनहीनः (धन से हीन)
आचारेण निपुणः – आचार-निपुणः (आचार में निपुण)

(iii) चतुर्थी तत्पुरुष – चतुर्थी विभक्ति वाले शब्दों का अर्थ, बलि, हित, सुख तथा रक्षित के साथ तत्पुरुष समास होता है। यथा-
भूतेभ्यः बलिः – भूतबलिः (प्राणियों के लिए अन्न)
द्विजाय अयम् – द्विजार्थः (द्विज के लिए)
गवे हितम् – गोहितम् (गाय के लिए हितकर)
सर्वेभ्यः सुखम् – सर्वसुखम् (सबके लिए सुख)
पाकाय शाला – पाकशाला (पकाने के लिए घर)

(iv) पंचमी तत्पुरुष – इसके पूर्व पद में पंचमी विभक्ति होती है और समास हो जाने पर समस्त पद में पूर्व पद की पंचमी विभक्ति का लोप हो जाता है। यह समास मुक्त, भय, भीत, भीति और भी के साथ होता है।
वृक्षात् पतितः – वृक्षपतितः (वृक्ष से गिरा हुआ)
सिंहाद् भीतः – सिंहभीतः (सिंह से भय)
रोगात् मुक्तः – रोगमुक्तः (रोग से मुक्त)

(v) षष्ठी तत्पुरुष – इसके पूर्व पद में षष्ठी विभक्ति होती है और समास हो जाने पर समस्त पद में पूर्वपद की षष्ठी विभक्ति का लोप हो जाता है। यथा-
राज्ञः पुरुषः – राजपुरुषः (राजा का पुरुष/सिपाही)
नृपस्य सेवकः – नृपसेवकः (राजा का सेवक)
विद्यायाः आलयः – विद्यालयः (विद्या का घर)
सूर्यस्य उदयः – सूर्योदयः (सूर्य का उदय)
परेषाम् उपकारः – परोपकारः (दूसरों का भला)

(vi) सप्तमी तत्पुरुष – इसका पूर्वपद सप्तमी विभक्ति में होता है। यह कुशल, निपुण, चपल, पण्डित, पटु, प्रवीण तथा धूर्त के साथ होता है।
वाचि पटुः – वाक्पटुः (वाणी में चतुर)
युद्धे कुशलः – युद्धकुशलः (युद्ध में कुशल)
अध्ययने पटुः – अध्ययनपटुः (अध्ययन में पटु)
रणे निपुणः – रणनिपुणः (रण में निपुण)
न्याये प्रवीणः – न्यायप्रवीणः (न्याय में प्रवीण)

3. कर्मधारय समास
जिस समास में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का एक साथ प्रयोग हो, वह कर्मधारय समास होता है। प्रायः दोनों पदों में प्रथमा विभक्ति होती है। यथा-
(क) विशेषण-विशेष्य – इसमें पूर्वपद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य होता है। दोनों पदों के बीच में च, असौ या तत् लगाकर विग्रह किया जाता है। यथा-
वीरः बालः – वीरबालः (वीर बालक)
मधुरं वचनम् – मधुरवचनम् (मधुर वचन)
पीतम् अम्बरम् – पीताम्बरम् (पीला कपड़ा)
कृष्णः सर्पः – कृष्णसर्पः (काला साँप)
नीलम् च तत् कमलम् – नीलकमलम् (नीला कमल)
महान् च असौ देवः – महादेवः (शिव)

(ख) उपमान-उपमेय – उपमान तथा उपमेय वाचक शब्दों को इव या एव शब्द से जोड़ा गया होता है। समस्त-पद में इनका लोप हो जाता है। यथा-
घनः इव श्यामः – घनश्यामः (बादल के समान सांवला)
मुखम् चन्द्रः इव – मुखचन्द्रः (मुख चन्द्र-जैसा)
पुरुषः सिंहः इव – पुरुषसिंहः (पुरुष सिंह जैसा)

4. द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाची होता है तथा वह किसी समूह का बोध कराता है, द्विगु समास कहलाता है। यथा-
त्रयाणाम् – भुवनानाम् – समाहारः – त्रिभुवनम्
नवानाम् – रात्रीणाम् – समाहारः – नवरात्रम्
पंचानाम् – वटानाम् – समाहारः – पंचवटी
चतुर्णाम् – युगानाम् – समाहारः – चतुर्युगम्
त्रयाणां – फलानाम् – समाहारः – त्रिफला
सप्तानाम् – अह्नां – समाहारः – सप्ताहः
पंचानाम् – तंत्राणाम् – समाहारः – पंचतंत्रम्

5. द्वन्द्व समास
इस समास में पूर्वपद और उत्तर पद दोनों समान रूप से प्रधान होते हैं। द्वन्द्व समास के विग्रह में प्रत्येक शब्द के साथ ‘च’ लगता है। यथा-
माता च पिता च – मातापितरौ
रामः च श्यामः च – रामश्यामौ
धर्मः च अर्थः च – धर्मार्थों
सीता च गीता च – सीतागीते
सुखम् च दुःखम् च – सुखदुःखे
धर्मः च अर्थः च कामः च – धर्मार्थकामाः
पाणी च पादौ च एषां समाहारः – पाणिपादम्
अहः च निशा च अनयोः समाहारः – अहर्निशम्

6. बहुव्रीहि समास
जिस समास में पूर्वपद और उत्तर पद दोनों ही किसी अन्य पद के विशेषण हों तथा कोई अन्य पद प्रधान हो, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। यथा-
लम्बम् उदरं यस्य सः – लम्बोदरः (लम्बे पेट वाला अर्थात् श्रीगणेश)
दश आननानि यस्य सः – दशाननः (दस मुखों वाला अर्थात् रावण)
पीतानि अम्बराणि यस्य सः – पीताम्बरः (पीले कपड़ों वाला अर्थात् श्रीकृष्ण)
नीलः कण्ठः यस्य सः – नीलकण्ठः (नीले कण्ठ वाला अर्थात् शिवजी)
चत्वारि मुखानि यस्य सः – चतुर्मुखः (चार मुख वाला अर्थात् ब्रह्मा जी)
महान् आशयो यस्य सः – महाशयः (कोई बड़ा व्यक्ति)
चन्द्रं इव मुखम् यस्याः सा – चन्द्रमुखी (चाँद के समान मुख है जिसका अर्थात् स्त्री-विशेष)
चक्रं पाणौ यस्य सः – चक्रपाणिः (हाथ में चक्र है जिसके अर्थात् श्री विष्णु)

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-

प्रश्न 1.

मातापितरौ आगच्छतः।
(क) मातुः च पितुः च
(ख) माताः च पिताः च
(ग) माता च पितरम् च
(घ) माता च पिता च

उत्तराणि:

(घ) माता च पिता च

प्रश्न 2.

अर्जुनः युद्धनिपुणः आसीत्।
(क) युद्धस्य निपुणः
(ख) युद्धं निपुणः
(ग) युद्धे निपुणः
(घ) युद्धेन निपुणः

उत्तराणि:

(ग) युद्धे निपुणः

प्रश्न 3.

सः यथाशक्ति कार्यम् करोति।
(क) शक्ते अनतिक्रम्य
(ख) शक्तिम् अनतिक्रम्य
(ग) शक्तिः अनतिक्रम्य
(घ) शक्तौ अनतिक्रम्य

उत्तराणि:

(ख) शक्तिम् अनतिक्रम्य

प्रश्न 4.

रामः ईश्वरपूजां करोति।
(क) ईश्वरेण पूजाम्
(ख) ईश्वरम् पूजा
(ग) ईश्वरे पूजां
(घ) ईश्वरस्य पूजाम्

उत्तराणि:

(घ) ईश्वरस्य पूजाम्

प्रश्न 5.

कृष्णार्जुनौ रथे उपविशतः।
(क) कृष्णं च अर्जुनं च
(ख) कृष्णस्य च अर्जुनस्य च
(ग) कृष्णः च अर्जुनः च
(घ) कृष्णेन च अर्जुनेन च

उत्तराणि:

(ग) कृष्णः च अर्जुनः च

प्रश्न 6.

अश्वपतितः रामः रोदति।
(क) अश्वम् पतितः
(ख) अश्वेन पतितः
(ग) अश्वस्य पतितः
(घ) अश्वात् पतितः

उत्तराणि:

(घ) अश्वात् पतितः

प्रश्न 7.

सः धनहीनः अस्ति।
(क) धनम् हीनः
(ख) धनात् हीन
(ग) धनेन हीनः
(घ) धनस्य हीनः

उत्तराणि:

(ग) धनेन हीनः

प्रश्न 8.

एषा पाकशाला अस्ति।
(क) पाकाय शाला
(ख) पाकस्य शाला
(ग) पाकायाम् शाला
(घ) पाकम् शाला

उत्तराणि:

(क) पाकाय शाला

प्रश्न 9.

सः प्रतिदिनं विद्यालयं गच्छति।
(क) दिनस्य दिनस्य
(ख) दिनं दिनं
(ग) दिनात् दिनात्
(घ) दिनो दिनम्

उत्तराणि:

(ख) दिनं दिनं

प्रश्न 10.

अत्र एकः कृष्णसर्पः अस्ति।
(क) कृष्णम् सर्पः
(ख) कृष्णस्य सर्पः
(ग) कृष्णः सर्पः
(घ) कृष्णेन सर्पः

उत्तराणि:

(ग) कृष्णः सर्पः

NCERT Class 8 Sanskrit

Class 8 Sanskrit Grammar Chapters | Sanskrit Class 8

NCERT Solutions of Class 8 Sanskrit रुचिरा भाग 3 | Sanskrit Class 8 NCERT Solutions

Class 8th Sanskrit Solution | NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Pdf Download

NCERT Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions

CBSE Class 8th Sanskrit व्याकरण भागः

CBSE Class 8th Sanskrit रचना भागः

NCERT Solutions for Class 12 All Subjects NCERT Solutions for Class 10 All Subjects
NCERT Solutions for Class 11 All Subjects NCERT Solutions for Class 9 All Subjects

NCERT SOLUTIONS

Post a Comment

इस पेज / वेबसाइट की त्रुटियों / गलतियों को यहाँ दर्ज कीजिये
(Errors/mistakes on this page/website enter here)

Previous Post Next Post